- दिगंत बोरा एवं प्रो. श्याम शंकर सिंह
शोध सार : फणीश्वरनाथ रेणु का साहित्य संसार विस्तृत है। उन्होंने केवल एक ही विधा पर अपनी लेखनी नहीं चलायी है, अपितु हिंदी साहित्य के सभी विधाओं में रेणु ने अपना लेखन कार्य किया है। उनके उपन्यास और कहानी हिंदी साहित्य जगत में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ‘मैला आँचल’ और ‘परती परिकथा’ उनकी महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं। उनकी तीसरी कसम, लाल पान की बेगम, रसप्रिया आदि कहानियाँ हिंदी साहित्य की धरोहर हैं। उनके द्वारा लिखे गए संस्मरण और आत्म संस्मरण उनके व्यक्तित्व समझने में सहायक हैं। रेणु ने अपने कथा साहित्य या कथेतर साहित्य में सामाजिक यथार्थ का ही चित्रण किया है। उनके कथेतर साहित्य में भी तत्कालीन ग्राम्य जीवन, समाज और संस्कृति के साथ-साथ गाँव के आर्थिक, राजनीतिक परिवेश को समझने में सहायक है। उनके साहित्य में लोकजीवन और संस्कृति के सभी तत्व विद्यमान हैं। उनकी रचनाएँ लोक से भिन्न नहीं है। रेणु के साहित्य के अध्ययन से तत्कालीन भारत के ग्राम्य जीवन को समझ सकते हैं।
बीज शब्द : संस्मरण, कथेतर, संस्कृति, लोकजीवन, राजनीति आदिI
मूल आलेख : हिंदी साहित्य के मूर्धन्य साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु ने उपन्यास और कहानी के साथ-साथ निबंध, संस्मरण, रिपोर्ताज, स्केच, कविता, पत्र, डायरी आदि विधाओं में अपनी लेखनी चलायी है। कथा साहित्य के साथ-साथ कथेतर साहित्य में भी उनकी साहित्यिकता दृष्टिगोचर होती है। “वे एक साथ हिंदी की लग-भग तमाम विधाओं में अपनी रचनात्मक प्रतिभा की चमक लेकर उपस्थित होते हैं।”1
1. काव्य : फणीश्वरनाथ रेणु ने अपनी साहित्यिक जीवन का प्रारंभ कविता से शुरू किया था। वे बचपन से ही तुकबंदी करते थे। उन्होंने सन 1936 में प्रेमचंद की मृत्यु पर एक कविता लिखी थी और इस कविता पर हिंदी सम्मेलन कविता प्रतियोगिता में उन्हें प्रथम पुरस्कार मिला। रेणु की ‘रामनामी’ कविता प्रसिद्ध कविता है, जिसमें उन्होंने गांधीवादियों पर व्यंग किया है। भारत यायावर लिखते हैं – “रेणु की प्रारंभिक कविताएँ साप्ताहिक विश्वामित्र में छपी थी। ये कविताएँ हल्की-फुल्की हैं। उनकी पहली महत्वपूर्ण कविता ‘अपने जिले की मिट्टी से’ विभाजन की त्रासदी की पीड़ित मनः स्थिति में 1947 के अंत में लिखी गयी।”2 ‘होली’, ‘पार्कर 51 के प्रति’, ‘मिनिस्टर मँगरु’, ‘अग्रदूत’, ‘खून की कसम’, ‘मेरा मीत सनीचर’, ‘इमर्जेंसी’ आदि रेणु की महत्वपूर्ण कविताएँ हैं। रेणु का एकमात्र कविता संग्रह ‘कवि रेणु कहें’ का प्रकाशन सन 1988 में हुआ था।
‘अपने जिले की मिट्टी से’ कविता में रेणु ने भारत पाकिस्तान विभाजन की पीड़ा तथा त्रासदी का चित्रण किया है। वे लिखते हैं कि विभाजन में लाखों लोग बेबस होकर अपने जमीन, वतन से दूर हो गए। अपनों से दूर होने तथा अपने वतन को छोड़ने के लिए वे विवश हो गए थे। बेबस लोग मारे गए थे। अपनों के दूर होने की पीड़ा को वे लोग सह कर दूसरे देश में आने के लिए विवश हो गए थे। वे लिखते हैं – “हजारों युवतियों ने माँग के सिंदुर बोए/ बहनों ने अस्मत और ईमान बोए’।” 3 ‘मिनिस्टर मँगरु’ राजनेताओं पर व्यंगात्मक कविता है। वह जनता की सेवा करने के बजाय कहाँ पार जलपान करना है, किस परमिट को बेचकर पैसा कमाया जा सकता है आदि बातों का विचार कर रहे थे। वह जनता के लिए आँसू बहाने का नाटक कर उन लोगों को ठगकर पैसा कमाने, वोट पाने का प्रयास करता है। ‘अग्रदूत’ कविता में पूर्वी बंगाल से भारत आए शरणार्थियों की पीड़ा तथा त्रासदी को चित्रण हुआ है। वह लिखते हैं - “हमारा सबकुछ चला गया/ रो उठा सर्वहारा/ बांगादेश से आगत एक जन।” 4
कविताओं के अतिरिक्त ‘ओ लाल आफताब’ नाम से एक गद्य गीत भी प्रकाशित हुआ है। यह गद्यगीत सन 1949 में नई दिशा पत्रिका के शहीद अंक में प्रकाशित हुआ था। ‘मेरा मीत सनीचर’ कविता के बारे में भारत यायावर लिखते हैं - “ एक अमर,अविस्मर्णीय कविता, जिसमें गद्य की ठाठ है, कविता की तरलता है, ह्रास और करुणा के स्थल भी हैं नाटकीयता भी है और कथा के सच्ची होने की प्रामाणिकता भी हैI”5
2. संस्मरण : फणीश्वरनाथ रेणु कथाकार होने के साथ-साथ संस्मरणकार भी हैं। उनके द्वारा विविध साहित्यकारों पर लिखा गया स्केच एवं संस्मरण हिंदी साहित्य का अमूल्य संस्मरण साहित्य है। भारत यायावर उनके संस्मरण साहित्य के बारे में लिखते हैं कि -“साहित्यकारों में बालकृष्ण सम, सुहैल अजीमावादी, यशपाल, अज्ञेय, उपेद्रनाथ अश्क, शैलेंद्र, शरतचंद्र आदि पर लिखे रेणु के स्केच एवं संस्मरण हिंदी की अमूल्य निधि हैं।”6
ठीक उसी प्रकार रेणु के आत्म संस्मरण भी अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण हैं। नेपाल क्रांति की शहीद कुलदीप झा पर लिखा गया संस्मरण भी अत्यंत ही मनोरम है। इसमें रेणु ने नेपाल क्रांति में शहीद कुलदीप झा के व्यक्तित्व तथा नेपाल की क्रांति और उनके शहीद होने के क्षणों का जीवंत चित्रण प्रस्तुत किया है। ‘झूठ : जो सच है’ आत्म संस्मरण में रेणु ने अपने बचपन की कई घटनाओं को प्रस्तुत किया है। उनमें से उनके घर में ‘चाँद’ पत्रिका के ‘फाँसी’ अंक के लिए दारोगा का तलाशी लेने की घटना महत्त्वपूर्ण है- “परिवार में राजनीतिक चेतना पहले से ही थी। पिताजी कांग्रेस के मेम्बर थे और पढ़ने के लिए बहुत तरह की पत्रिकाएँ मँगाते थे। हिंदी और बांगला, बचपन में मेरी आँखों के सामने ‘चाँद’ पत्रिका के फाँसी अंक और ‘हिंदू पंच’ के बलिदान अंक और सुंदरलाल की पुस्तक ‘भारत में अंग्रेजी राज’ के लिए मेरे घर की तलाशी ली गयी थी ...... प्रथम आम चुनाव के पहले से ही मैं अपने को पार्टी के लिए अनुप्रयुक्त समझने लगा था। यह विश्वास जरूर बन गया था कि लिखने के क्षेत्र में ही मैं कुछ कर सकता हूँ।”7 ‘मेरा बचपन’ में रेणु ने 1930-31 के आंदोलन में भाग लेना अर्थात आंदोलन का समर्थन करके अररिया के दुकान बंद करना, पिकेटिंग करना आदि बातों का चित्रण किया है, जिनके कारण शिक्षकों ने सजा के रूप में रेणु तथा उनके साथियों को बेंत लगाए थे। रेणु और उनके साथियों ने बेंत खाते समय बंदे मातरम, भारत माता की जय नारा लगाया था। इस तरह इस आत्म संस्मरण में रेणु ने 1930 के आंदोलन को रूप प्रदान किया है। ‘नेपाल मेरी सानोआमा’ में रेणु ने अपनी नेपाल यात्रा तथा विराटनगर के आदर्श विद्यालय में पढ़ने जाने की बात लिखी है। ठीक उसी प्रकार ‘अथ बाल कांडम’ में रेणु ने अपने बचपन के मुण्डन तथा अपनी रेल यात्रा की रोचक घटनाओं के बारे में बताया है। इस प्रकार रेणु के आत्म संस्मरण भी अत्यंत ही रोचक और मनोरम बन पड़े हैं। फणीश्वरनाथ रेणु का संस्मरण साहित्य ‘श्रुत अश्रुत पूर्व’, बन तुलसी की गंध’, में संकलित है। दोनों ही पुस्तकों का संपादन भारत यायावर ने किया है।
3.. रिपोर्ताज : रेणु उपन्यासकार तथा संस्मरणकार होने के साथ-साथ एक रिपोर्ताज लेखक भी हैं। भारत यायावर के शब्दों में – “हिंदी में रिपोर्ताज बहुत कम लिखे गए हैं। रेणु के रिपोर्ताज इस कमी को पूरा करते हैं। ‘धर्मयुग’ ने 1963-64 में हिंदी के महत्वपूर्ण कथाकारों की कहानियाँ प्रकाशित की थी। उन कहानियों के बीच रेणु का कथा रिपोर्ताज ‘पुरानी कहानी: नया पाठ’ प्रकाशित हुआ। इस रिपोर्ताज के साथ रेणु के संबंध में यह वक्तव्य गौरतलब है – ‘गत महायुद्ध ने चिकित्सा शास्त्र के चीड़-फाड़ विभाग को पेनिसिलिन दिया और साहित्य के कथा विभाग को रिपोर्ताज। हिंदी में इस विधा की विधिवत शुरुआत करनेवाले रेणु ही है। उनका पहला रिपोर्ताज ‘विदापत नाच’ साप्ताहिक विश्वामित्र में 1945 में प्रकाशित हुआ था।”8
रेणु का पहला रिपोर्ताज ‘विदापत नाच’ रेणु के इलाके के ग्रामीण नृत्य विदापत नाच पर आधारित है। उनके समाज के दलित वर्ग में प्रचलित यह नृत्य अत्यंत ही मनोरम है और इस नाच का उल्लेख रेणु के उपन्यास और कहानियों में भी मिलता है। इस रिपोर्ताज में रेणु ने विदापत नाच के सभी तत्व का जीवंत चित्र प्रस्तुत किया है। ‘सरहद के उस पार’ रिपोर्ताज में रेणु ने नेपाल के मजदूरों के कष्ट और पीड़ा को उजागर किया है। मिलों में काम करनेवाले मजदूरों के जीवन का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करने के साथ पूँजीपति, तानाशाही पर भी व्यंग्य किया है – “जूट मिल्स एरिया खत्म ।यह कॉटन मिल्स है। जरा उन बंगलों को देखिए। स्वर्ग में देवताओं को भी ऐसे सुंदर बंगले शायद नसीब न हो। ...... इसके साथ ही अबोध नेपाली जनता की गाढ़ी कमाई की रकम विदेशी बैंकों के खातों में भरी जा रही है। दिन-प्रतिदिन नेपाली प्रजा की जिंदगी बदतर होती जा रही है।” 9
‘पुरानी कहानी : नया पाठ’ बाढ़ पर लिखा गया रिपोर्ताज है। इसमें रेणु ने बाढ़ में उत्पन्न परिस्थितियों का चित्रण करने के साथ-साथ बाढ़ के लिए जिम्मेदार नेताओं तथा जनसेवकों के चरित्र भी उजागर किया है। ‘नेपाली क्रांतिकथा’ नेपाल की क्रांति पर आधारित रिपोर्ताज है। नेपाल की मुक्ति की इस क्रांति में स्वयं रेणु ने भाग लिया था और घायल भी हुए थे। इस आंदोलन के कारण रेणु और उनके साथी कारावास गए। यह रिपोर्ताज नेपाल में प्रजातांत्रिक शासन की स्थापना के होनेवाले संघर्ष की गाथा है। ‘श्रुत-अश्रुत पूर्व’ बांगादेश की मुक्ति संग्राम की गाथा पर आधारित रिपोर्ताज है।
इन सबके अतिरिक्त रेणु के रिपोर्ताज भी अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण है। रेणु ने अकाल, बाढ़ से लेकर मुक्ति संग्राम तक को रिपोर्ताज का रूप प्रदान किया है। भारत यायावर लिखते हैं – “रेणु का पहला रिपोर्ताज 1945 में प्रकाशित हुआ एवं अंतिम रिपोर्ताज ‘पटना जलप्रलय’ पर 1975 में, यानी उनके लेखन के आरंभिक दौर से अंतिम दौर तक रिपोर्ताज विधा से उनका गहरा जुड़ाव रहा।”10 ‘ऋणजल-धनजल’ सूखा तथा बाढ़ पर आधारित रिपोर्ताज का संग्रह है। इस संग्रह का प्रकाशन 1977 में हुआ था।
4.. निबंध एवं व्यंग्य : फणीश्वरनाथ रेणु एक अच्छे निबंधकार एवं व्यंग्यकार भी हैं। वह उपन्यासकार तथा कहानीकार के रूप में जिस तरह से प्रसिद्ध हुए, निबंधकार के रूप में उतना प्रसिद्ध नहीं। ‘वह एक कहानी’ फणीश्वरनाथ रेणु का आत्मव्यंजक निबंध है। ‘सामाजिक कार्यकर्ताओं से दो शब्द’ निबंध में फणीश्वरनाथ रेणु ने समाज को बेहतर बनाने के कुछ सुझाव रखे हैं। रेणु ने समाज के लोगों को सही राह पर लाने के लिए प्रयास करने के लिए, एक-दूसरे को सही राह दिखाने के लिए, मदद करने के लिए कहा है। वे कहते हैं कि हम एक दूसरे को मदद करके सही राह दिखा सकते हैं। किसी को पतन होने से बचा सकते हैं। लोगों को मदद करने के लिए कहने के साथ-साथ लोगों की आदतों पर भी रेणु चर्चा करते हैं। ‘राष्ट्र निर्माण में लेखक का सहयोग’ निबंध में रेणु राष्ट्र के निर्माण में साहित्यिकों के योगदान तथा महत्त्व के बारे में बताते हैं। रेणु के अनुसार देश के निर्माण के लिए नवीन चिंतन का होना जरूरी है। जनसाधारण को शिक्षित करना आवश्यक है। लोगों के मन के अंधकार को दूर करने से ही राष्ट्र के अंधकार को दूर किया जा सकता है। रेणु कहते हैं कि साहित्यकार ही लोगों के मन में सदभाव, त्याग, आदर्श भाव को जगा सकते हैं। बिना सदभाव और त्याग के लोगों में एकता नहीं बन सकती, जो एक राष्ट्र के लिए अत्यंत ही आवश्यक है। लेखक ही जनता को शासन तथा शासक के विरोध में जागरुक कर सकते हैं। इस तरह रेणु इस निबंध में राष्ट्र के निर्माण में लेखकों के सहयोग के बारे में बताते हैं। ‘जनजागरण में साहित्यकार की भूमिका’ निबंध में लोगों में जागरण लाने में साहित्यकार के महत्त्व के बारे में बताते हैं। कुल मिलाकर उनके निबंध समाज के यथार्थ पर आधारित हैं।
फणीश्वरनाथ रेणु ने निबंधों के साथ-साथ व्यंग्य भी लिखा है। ‘प्रतिनिधि चिट्ठियाँ’, ‘अखिल भारतीय ब्लैक मार्केटियर्स सम्मेलन का प्रथम अधिवेशन’ आदि रेणु की महत्त्वपूर्ण व्यंग्य रचनाएँ हैं। ‘मैला आँचल’ व्यंग्य रचना में ‘मैला आँचल’ का विरोध करनेवाले आलोचकों को उन्हीं के शब्दों में व्यंग्य किया है। रेणु लिखते हैं – “मैला आँचल ? वहीं उपन्यास जिसमें हिंदी का एक भी शुद्ध वाक्य नहीं है। जिसे पढ़कर लगता है कि कथानक की भूमि में सती-सावित्री के चरण चिह्नों पर चलनेवाली एक भी आदर्श भारतीय नारी नहीं हैं ? …..वहीं ‘मैला आँचल’, न जिसमें लेखक ने न जाने लोकगीतों के किस संग्रह से गीतों के टुकड़े चुराकर जहाँ-तहाँ चस्पा कर दिए हैं ? क्यों जी, इन्हें तो उपन्यास लिखने के बाद ही इधर-उधर भरा गया होगा ?”11
इन सबके अतिरिक्त रेणु ने पत्र साहित्य के विकास में भी योगदान दिया है। भारत यायावर लिखते हैं – “रेणु के पत्र के कई-कई ड्राफ्ट मिले हैं,
जिनसे पता चलता हैं कि वे पत्रों पर भी अन्य रचनाओं की तरह मेहनत करते थे। वे पत्रों में अपना सबकुछ निचोड़कर रख देते थे। उनके पत्र धरोहर की तरह हो गए हैं।”12 फणीश्वरनाथ रेणु ने विविध साहित्यकारों को पत्र दिए हैं, जिनसे तत्कालीन साहित्य, समाज, राजनीति आदि के बारे में जाना जा सकता है।
फणीश्वरनाथ रेणु की ‘उत्तर नेहरु चरितम्’, ‘ये हैं आपकी पड़ोसिन : कवयित्री’ और ‘पाँच नम्बर प्लेटफार्म’ शीर्षक तीन नाटिकाएँ भी प्रकाशित हैं। इन सबके अतिरिक्त रेणु के साक्षात्कार, डायरी और बहुत से प्रकाशित आधी-अधूरी रचनाएँ हैं, जिनका संकलन भारत यायावर ने ‘रेणु रचनावली’ शीर्षक से किया है।
फणीश्वरनाथ रेणु का साहित्य संसार विस्तृत है। उन्होंने केवल एक ही विधा पर अपनी लेखनी नहीं चलायी है, अपितु हिंदी साहित्य के सभी विधाओं में रेणु ने अपना लेखन कार्य किया है। रेणु ने अपने कथेतर साहित्य में सामाजिक यथार्थ का चित्रण किया है। यह तत्कालीन ग्राम्य जीवन, समाज और संस्कृति के साथ-साथ गाँव के आर्थिक, राजनीतिक परिवेश को समझने में सहायक बनता है। उनके साहित्य में लोकजीवन और संस्कृति के वे सभी तत्त्व विद्यमान हैं। लोक से अभिन्न रेणु के साहित्य के अध्ययन से तत्कालीन भारत के ग्राम्य जीवन की गहरी समझ बनाई जा सकती है।
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) फणीश्वरनाथ रेणु विशेषांक, अंक-42, जून 2022, UGC Care Listed Issue
अतिथि सम्पादक : मनीष रंजन
सम्पादन सहयोग : प्रवीण कुमार जोशी, मोहम्मद हुसैन डायर, मैना शर्मा और अभिनव सरोवा चित्रांकन : मीनाक्षी झा बनर्जी(पटना)
एक टिप्पणी भेजें