- सुनीता
शोध सार : मैला आँचल फणीश्वरनाथ रेणु जी का प्रसिद्ध उपन्यास है। यह 1954 में प्रकाशित हुआ।मेरीगंज गांव की कहानी के बहाने लेखक ने उत्तर भारत के संपूर्ण गांवों का चित्रण किया है। गांव में जातिगत एवं लिंगगत भेदभाव को दर्शाया है। मैला आँचल में नारी के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं। वर्तमान समय में 21वीं सदी में भी इन समस्याओं में मूलभूत परिवर्तन नहीं आया है।आज भी अखबारों में खबर देखने को मिल जाती है कि, महिला को डायन कहकर मारा गया। अंधविश्वासों में भी कोई खास कमी नहीं आई है। कोरोना महामारी के दौरान हमने कोरोना माई की पुजाई करते हुए खबरों को देखा व सुना। आज भी गांव में नारी का शोषण किया जा रहा है। कबीरपंथी मठों के बहाने धार्मिक स्थानों की व्यवस्था का चित्रण लेखक ने किया है। आज भी तथाकथित आश्रमों में बाबाओं द्वारा छोटी-छोटी बालिकाओं का यौन शोषण जारी है। शिक्षा द्वारा ही स्थिति को बदला जा सकता है। विशेषतौर पर स्त्रियों की शिक्षा।
विधवा स्त्री के समस्याओं का चित्रण भी 'मैला आंचल' में बखूबी हुआ है। उपन्यास में फुलिया, पार्वती की माँ, झुबरी मुस्मात, सुनरी मुस्मात विधवा महिलाओं का जिक्र है। फुलिया व झुबरी युवती है इसलिए वह यौन शोषण की शिकार हैं। पार्वती की माँ विधवा है, उसे सामाजिक शोषण का सामना करना पड़ता है। परिवार के नाम पर उसका एकमात्र नाती गणेश है। अन्य सदस्यों की मृत्यु हो चुकी है। जिसके लिए पार्वती की माँ को ही दोषी ठहराया जाता है। चिचाय की माँ कहती है”पार्वती की माँ थी। डायन है! तीन कुल में एक को भी नहीं छोड़ा। सब को खा गई। पहले भतार को, इसके बाद देवर देवरानी, बेटा बेटी सब को खा गई। अब एक नाती है, उसको भी चबा रही है।”7 कालीचरण, कमली, डॉक्टर प्रशांत के अतिरिक्त अन्य सभी की राय में पार्वती की माँ डायन है। जोतखी जी तो पोलियाटोली के हीरू को यह विश्वास भी दिलाने में सफल रहते हैं कि, उसके बेटे की मृत्यु डायन (पार्वती की माँ) का करिश्मा है। इस गलतफहमी में हीरू गांजे के नशे में रात को पार्वती की माँ का कत्ल कर देता है। एक निर्दोष, स्नेहिल, सभ्य, गुणी महिला को अकारण ही प्राण गंवाने पड़ते हैं। पार्वती की मां के बारे में कमली कहती है”मौसी में बहुत गुण है सीकों से बड़ी अच्छी चीजें बनाती है, फुलदानी, डाली, पंखे।कशीदा कितना सुंदर काढती है! पर्व त्योहार और शादी-ब्याह में दीवार पर कितना सुंदर चित्र बनाती है।"8 इतनी काबिल महिला को ग्रामीणों की घृणा का शिकार बनना पड़ा यह एक विडंबना ही है। वास्तव में डायन की समस्या किसी एक राज्य की नहीं, पूरे भारत की समस्या है। संदीप मील लिखते हैं”टोंक जिले के झालरा गाँव में 27 अगस्त 2010 को एक दलित महिला ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई की ग्रामीणों ने उसे डायन कहकर अपमानित किया और उसकी पिटाई की।”9 ग्रामीण जीवन में अंधविश्वास परंपरा व संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है अंधविश्वासों को ढोने में महिलाएं महती भूमिका निभाती हैं। अंधविश्वासों के दुष्परिणाम भी अधिकांश महिलाओं को ही भोगने पड़ते हैं। अंधविश्वास नारी की उन्नति में बाधक है। यह एक वृहद समस्या है, जिसका भरपूर चित्रण मैला आँचल में देखने को मिलता है। मेरीगंज में कदम-कदम पर अंधविश्वासों से सामना करना पड़ता है। गांव का परिचय देते समय ही लेखक बताते हैं कि, नील कोठी के जंगल को भुतहा जंगल कहा जाता है। उधर दिन में भी कोई नहीं जाता। कमला नदी के बारे में यह किवदंती प्रचलित है कि, जिसके घर कोई भोज होता था वह कमला नदी से विनती करता था और किनारे पर बर्तनों के ढेर लग जाते थे। इसी तरह की कई बातें गांव की नस नस में बस चुकी हैं। उपन्यास में अनपढ़ लोग ही नहीं बल्कि पढ़ी-लिखी व पेशे से डॉक्टर ममता भी बाबा विश्वनाथ के प्रसाद के बिना प्रशांत को विदा नहीं करती। पार्वती की माँ को डायन बनाने में इन्हीं अंधविश्वासों का हाथ है। पार्वती की माँ के बारे में लोग कहते हैं”कितना ओझा गुनी थक गया उसको बस नहीं कर सका जितिया परब की रात में कितनी बार लोगों ने इसको कोठी के जंगल के पास गोदी में बच्चा लेकर नंगा नाचते देखा है। गैनू भैंसवार ने एक बार पकड़ने की कोशिश की थी। ऐसा झरका बान मारा कि गैंग के सारे देह में फफोले निकल आए। दूसरे ही दिन मर गया।”10 अंधविश्वासों के कारण ही पार्वती की माँ की जान चली जाती है। जोतखी जी तो इन अंधविश्वासों के जीते जागते पुतले हैं। हरगौरी तहसीलदार के बही- बस्ता लेते समय छींक पड़ जाने को अशुभ मानते हैं। गांव में किसी भी बदलाव को वह शंका की दृष्टि से देखते हैं। हैजा के टीके व कुएं में डाली जाने वाली दवाई के प्रति भी उनकी धारणा है कि यह हैजा फैलाने के लिए हथियार है।”जोतखी जी का विश्वास है कि डॉक्टर लोग ही रोग फैलाते हैं। सुई भोंक कर देह में जहर दे देते हैं।आदमी हमेशा के लिए कमजोर हो जाता है। हैजा के समय कूपों में दवा डाल देते हैं, गांव का गांव हैजा से समाप्त हो जाता है।”11
अशिक्षा नारी जीवन की सभी समस्याओं का केंद्र है। शिक्षित ना होने के कारण उनका मानसिक विस्तार सीमित होता है। अंधविश्वासों कुप्रथाओं को मानने के लिए वह विवश होती हैं। अपने प्रति हुए अन्याय का विरोध तक नहीं कर पाती। कमला व लक्ष्मी के अतिरिक्त अन्य सभी ग्रामीण महिलाएं अशिक्षित हैं।
स्नेहमयी के रूप में रेणु जी ने परित्यक्ता के जीवन की व्यथा दिखाई है।”स्नेहमयी को उसके पति डॉ अनिल कुमार बनर्जी ने त्याग कर एक नेपाल से शादी कर ली थी।”15 इस दुखिया स्नेहमयी ने लावारिस प्रशांत को अपना बच्चा समझकर पाला पोसा। महिलाओं के प्रति होने वाले अन्याय अत्याचार रेणू जी की पैनी दृष्टि से बच नहीं सके हैं। छोटी बच्ची के साथ हुए बलात्कार की घटना को बड़ी कुशलता से डॉक्टर ममता की चिट्ठी द्वारा कथानक में डाला गया है। ममता लिखती है”फुलमतिया, जो मिल्क सेंटर में पिछले साल तक दूध पीने आती थी और ताली बजा बजाकर नाचती थी उसे तुम भूले नहीं होगे, शायद! परसों से अस्पताल में पड़ी हुई है। रामनवमी की शाम को नहीं रंगीन साड़ी पहनकर फुदकती हुई राम मंदिर गई थी और रात को दो बजे पुलिस ने 'सिटी' के एक पार्क में उसे कराहते हुए पाया। फुलमतिया का बयान है- टेढ़ी नीम गली के पास एक मोटर गाड़ी रुक गई और दो आदमियों ने पकड़कर उसे मोटर में बिठा दिया। ...बड़े बड़े बाबू लोग थे।!”16
निष्कर्ष रूप में यही कहा जा सकता है कि फणीश्वरनाथ रेणु ने 'मैला आंचल' में जातिगत व्यवस्था, अंधविश्वास, स्वतंत्रता संग्राम की गांव में दशा के साथ-साथ नारी जीवन की समस्याओं का बेबाकी से चित्रण किया है। चाहे वह समस्या यौन शोषण की हो, आर्थिक अभाव की हो, अंधविश्वासों की हो, परित्यक्त स्त्री व विधवा स्त्री की हो, निरक्षरता की हो या फिर छोटी बच्चियों के बलात्कार की, रेणु जी की सूक्ष्म दृष्टि से नारी जीवन की समस्याओं का कोई भी पहलू बच नहीं सका है। आज हम इक्कीसवीं सदी का भी पांचवा हिस्सा तय कर चुके हैं, परंतु आज भी सोशल मीडिया पर 'मी टू' जैसे अभियान औरत के यौन शोषण की कथा कहते हैं। आज भी समाचार पत्रों में ग्रामीणों द्वारा डायन बताकर स्त्री को मार डालने की खबरें छपती ही रहती हैं। बलात्कार आज भी एक ज्वलंत समस्या है, पहले से भी वीभत्स रूप में। इक्कीसवीं सदी में भारत तकनीकी क्षेत्र में 'मैला आंचल' के समय से बहुत प्रगति कर चुका है, परंतु दु:ख तब होता है जब उसी तकनीक का प्रयोग अंधविश्वासों को फैलाने के लिए किया जाता है। पूरा विश्व कोविड-19 कोरोना महामारी से लड़ रहा है। सभी जानते हैं कि यह वायरस से फैलता है। परंतु सोशल मीडिया पर ऐसी खबरें देखने को मिल रही हैं कि, बिहार के गांव में महिलाएं झुंड बनाकर कोरोना माई की पूजा कर रही हैं। अंधविश्वास आज भी गांवो में मौजूद है और इसे फैलाने में व्हाट्सएप जैसी तकनीकों की महती भूमिका है। शहरों में स्थिति कुछ बदली है, परंतु गांवों में अभी भी जागरूकता की आवश्यकता है। शिक्षा की आवश्यकता है। वह शिक्षा जो केवल डिग्रीयां ना बांटे बल्कि अज्ञान के अंधकार को दूर करे।
संदर्भ :
03. फणीश्वरनाथ रेणु : 'मैला आँचल' राजकमल प्रकाशन, आठवाँ संस्करण, बारहवीं आवृत्ति 2007, पृ. 25
04. वही, पृ. 25- 26
05. वही, पृ. 59
06. वही, पृ. 167
07. वही, पृ. 96
08. वही, पृ. 98
10. फणीश्वरनाथ रेणु, मैला आँचल, राजकमल प्रकाशन, आठवाँ संस्करण, बारहवीं आवृत्ति 2007, पृ. 97
11. वही, पृ. 18
13. फणीश्वरनाथ रेणु, मैला आँचल, राजकमल प्रकाशन, आठवाँ संस्करण, बारहवीं आवृत्ति-2007, पृ. 255
14. वही- पृ. 254
16. वही, पृ. 153
17. वही, पृ. 140
सहायक प्राध्यापिका, हिन्दी विभाग,राजा सिंह महाविद्यालय, सीवान
(जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा,बिहार)
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) फणीश्वर नाथ रेणु विशेषांक, अंक-42, जून 2022, UGC Care Listed Issue
अतिथि सम्पादक : मनीष रंजन
सम्पादन सहयोग : प्रवीण कुमार जोशी, मोहम्मद हुसैन डायर, मैना शर्मा और अभिनव सरोवा चित्रांकन : मीनाक्षी झा बनर्जी(पटना)
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