- डॉ. कुमार माधव
साहित्य की सभी विधाओं की अपनी भाषा शैली होती है। जैसे- नाटक की अलग भाषा शैली, कहानी कीअलग भाषा शैली, उपन्यास की अलग भाषा शैली आदि। सभी विधा की अपनी विशिष्टता होती है। यही भाषिक विशिष्टता इसे अन्य साहित्यिक विधाओं से अलग करती है। एक प्रकार से उपन्यास में कथा कहना और सुनाना के साथ-साथ, नाटकीयता का तत्त्व भी शामिल होता है। पाठक के सामने जब रचना हो तो लगे कि उसके सामने एक नया संसार उतर आया हो, कथा में ऐसी प्रवाह हो कि मानो उसके सामने सामने फिल्म चल रही हो। यदि उपन्यास लेखन के तत्त्वों पर ध्यान केन्द्रित किया जाए तो उसमें मूल रूप से छह तत्व पाएँ जाते हैं- कथानक/कथावस्तु, चरित्र चित्रण, कथोपकथन, देशकाल वातावरण, भाषा शैली और उद्देश्य। किन्तु इसमें महत्त्वपूर्ण तत्त्व भाषा शैली है। यही वह तत्त्व है जो उपन्यास को पहचान देता है कि वह ऐतिहासिक उपन्यास है या आंचलिक उपन्यास। इस प्रपत्र में आंचलिक उपन्यास मैला आँचल का चयन किया गया है। जिसकी भाषा इसे अन्य उपन्यास से अलग करती है। भाषा और इसके शिल्प के आधार पर ही इस उपन्यास की बहुमंजिला इमारत रेणु द्वारा खड़ी की गई है। वैसे तो कई उपन्यास फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा लिखे गए हैं - परती परिकथा, जूलूस, दीर्घतपा, कितने चौराहे, पलटू बाबू रोड आदि। किन्तु जो पहचान मैला आँचल (1954) को मिली वो किसी और को नहीं।
मैला आँचल उपन्यास की भाषा बोलचाल की भाषा है,
जिसने इस उपन्यास के भाषिक रंग को बहुत गहरा किया है। इसलिए बोलचाल की भाषा में जो गुण पाएँ जाते हैं, जैसे- व्यंग्य, लोकोक्ति, मुहावरा, भाषा द्वैत, कोड स्वीचिंग, कोड मिक्सिंग, कोड मैट्रिक्स आदि के सभी गुणों का प्रयोग इस उपन्यास में किया गया है। मैला आँचल की भाषा में प्रयोग किए भाषा द्वैत का विश्लेषण किया जाएगा। साथ ही पूर्णिया जिले की आंचलिक भाषा ठेठी या अंगिका का संवैधानिक आधार पर विश्लेषण किया जाएगा।
मैला आँचल में भाषा द्वैत / समष्टि द्विभाषिता या द्विभाषारूपिता (Diglossia) – भाषाविज्ञान में भाषा-द्वैत या समष्टि द्विभाषिता या द्विभाषारूपिता (diglossia) उस स्थिति को कहते है, जिसमें एक ही समुदाय के लोग दो अलग-अलग तरह की भाषाओं का प्रयोग करते हैं। यह देखा जाता है कि प्रायः दैनिक जीवन में बोली जाने वाली भाषा 'निम्न स्तर’ की होती है जिसे समाज में गँवारों की भाषा कही जाती है। या इसे भाषा का बिगड़ा हुआ रूप कहते हैं। किन्तु इस भाषा के अलावा एक दूसरी उच्च भाषा भी होती है। इसका जीवंत उदाहरण मानक भाषा और उसकी बोली है। जैसे बिहार में हिन्दी भाषा की दो उपभाषा (मगही और भोजपुरी) एवं इसकी बोली लोगों द्वारा बोली जाती है। जनसमूह द्वारा अंगिका, मगही, भोजपुरी को घर, परिवार या दोस्तों के बीच बोली जाती है। जिसे भाषा द्वैत सिद्धान्त के आधार पर निम्न (L) या बाजारू/कामचलाऊ हिन्दी द्वारा सूचित किया जाता है। लेकिन इसी समाज द्वारा 'उच्च भाषा' या शुद्ध भाषा का प्रयोग प्रायः साहित्य, औपचारिक शिक्षा, प्रशासनिक भाषा, सार्वजनिक अवसरों या सरकारी कार्यलयों में संवाद के दौरान किया जाता है। हिन्दी प्रदेश में उच्च भाषा को संस्कृतनिष्ठ भाषा से जाना जाता है जिसे बोलने वालों समूह के भीतर एक कुलीनता और श्रेष्ठता का भाव भी होता है। एक ही परिवार, समुदाय और जाति के लोगों इसके आधार भाषिक भेदभाव भी होता है।
ऐसे में भाषा द्वैत/'डिग्लोसिया' क्या है? - भाषाविद् चार्लस् अल्बर्ट फर्ग्यूसन द्वारा वर्ष 1959 में ‘डिग्लोसिया' शीर्षक से शोध प्रपत्र लिखा गया। चार्ल्स अल्बर्ट फर्ग्यूसन (6 जुलाई, 1921 - 2 सितंबर,1998) एक अमेरिकी भाषाविद् थे, जो स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में प्राध्यापक भी थे। वे सामाजिक भाषाविज्ञान के जनक माने जाते है। उन्हें डिग्लोसिया पर उनके काम के लिए जाना जाता है।
चार्लस् फर्ग्यूसन नें सार्वजनिक, औपचारिक और आधिकारिक भाषा के लिए एक 'उच्च' (H) भाषा का उपयोग किया है। जबकि बाजारू या कामचलाऊ भाषा के लिए निम्न भाषा (L) का प्रयोग किया है। निम्न भाषा प्रायः अनौपचारिक शिक्षित समूह द्वारा प्रयोग की जाती है। इस भाषा का लिखित रूप उपलब्ध नहीं होता है। इसलिए इसे जन प्रचलित भाषा या बोली भी कहते हैं।
रेणु द्वारा जब 1954 में मैला आँचल लिखा गया तो उस समय बिहार की साक्षरता दर 13.49
(वर्ष 1951) फीसदी थी, जबकि वर्तमान में बिहार की साक्षरता दर 71.82 फीसदी है। इसलिए भाषा द्वैत होना स्वाभाविक है। यातायात का अभाव, सूचना का अभाव आदि भी इसके प्रमुख कारण बनते है। किन्तु औपचारिक शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
मैला आँचल उपन्यास में ऐसे शब्दों की भरमार है जहां भाषा द्वैत की स्थिति देखी जा सकती है। जहाँ शिष्ट भाषा या उच्च भाषा से कहीं बेहतर ठेठी या अंगिका का प्रयोग किया गया है। इसलिए चार्लस् फरग्यूसन द्वारा विभाजित उच्च भाषा की श्रेणी (H) और साथ निम्नभाषा की (L) से के आधार पर मैला आँचल उपन्यास से आँकड़े एकत्रित किए गए है -
1 स्टेशन - मोगलाही रोशन
2 फरार - फिरारी
3 सुराजी -स्वराजी
4 डिस्ट्रिक्ट बोर्ड - डिस्टीबोट
5 जवाहरलाल - जमाहिरलाल
6 बालंटियरी - भेलटिपटी
7 उपवास - उपास
8 ज्योतिषी जी - जोतखी जी
9 भाषण - मासन
10 प्रोग्राम -
11 इन्क्लाब जिंदाबाद - इनकिलाब जिंदाबाद
12 डॉक्टर - डागटर
13 सोशलिस्ट पार्टी - सुशलिंग पाटी
14 क्रांति - किरान्ती
15 ट्रेनिंग - टरेनि
16 शेखचिल्ली - सिकचिल्ली
17 महात्मा गांधी - गनी महात्मा
18 मिस्त्री - मिस्तिरी
19 ज्ञान - गियान
20 इन्क्लाब - इन्किलास
21 क्षमा - छिमा
22 नमक कानून - नीमक कानून
23 क्रांति दल - किरान्ती दल
24 अलर्जी - अन्नसर्जी
25 नपुंसक - हनुआ
26 पेट्रोमैक्स - पंचलैट
27 सेक्रेटरी - सिकएटरी
28 मिलिट्री - मलेटरीवाले
29 काली देवी का स्थान - कालीथान
30 जेल - जेहल
31 गोस्वामी तुलसीदास - गुसाईं
32 रामचरित मानस - रमैन
33 बकरा - खस्सी
34 ऑफिस - आफिस
35 इत्तला - यतलाय
36 त्रुटि - तरुटी
रेणु जिस बिहार के जिस क्षेत्र से आते हैं वहाँ की स्थानीय भाषा ठेठी या अंगिका है। जो पहले हिन्दी भाषा की उपबोली मानी जाती थी। किन्तु वर्तमान समय में यह मैथिली भाषा की बोली है। जिसका भाषिक विश्लेषण आगे किया गया है।
वाक्य के स्तर पर भाषा द्वैत -
H L
हम लोग मूर्ख ठहरे तुम ज्ञानी। “हम लोग मूरख ठहरे और तुम गियानी।”1
डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से मिस्त्री लोग आए है। “डिस्टीबोट से मिस्तिरी जी लोग आए हैं।”2
कॉंग्रेस ऑफिस में वॉलंटियरी करते थे, अब अन्धों में काना बनकर यहाँ नेता बनने आया है। “कांग्रेस आफिस में भोलटियरी करते थे, अब अन्धों में काना बनकर यहाँ लीडरी छाँटने आया है।”3
रौतहट स्टेशन में जो होम्योपैथी डॉक्टरर साहेब थे। “रौतहट टीसन में जो हेमापोथी डागडर साहेब थे।”4
उपरोक्त टेबल में यह पाया गया कि उपन्यास के पात्रों की हिन्दी भाषा में औपचारिक शिक्षा नहीं होने के कारण भाषा द्वैत की स्थिति उत्पन्न हुई। साथ ही रेल और बाह्य सम्पर्क होने के कारण भी लोगों का भाषिक संपर्क बढ़ा है।
क्षेत्र में औपचारिक शिक्षा का तो अभाव है किन्तु ब्रिटिश साम्राज्य के शासन के कारण लोगों की भाषा में आंतरिक द्विभाषिता एवं कोड़ मिश्रण एवं अंतरण हुआ है। यदि मैला आँचल’ के गाँव का नाम तो मेरीगंज (Merry-Ganj)
है, जो हिन्दी का न होकर अँग्रेजी का शब्द है। “आज से करीब पैंतीस साल पहले, जिस दिन डब्लू. जी. मार्टिन ने इस गाँव में कोठी की नींव डाली, आस-पास के गाँवों में ढोल बजवाकर ऐलान कर दिया-आज से इस गाँव का नाम हुआ मेरीगंज। मेरी मार्टिन की नई दुलहिन थी जो कलकत्ता में रहती थी।”5
डॉक्टर प्रशांत बनर्जी का ही बात की
जाए तो वह मूल रूप से बंगभाषी है और पेशे से डॉक्टर हैं। जब वर्तमान समय में मेडिकल शिक्षा का माध्यम हिन्दी भाषा नहीं है तो उस समय यह बात कल्पना से पड़े है। इसलिए डॉक्टर प्रशांत बनर्जी की भाषा में न केवल आंतरिक कोड़ मिश्रण (हिन्दी और अंगिका) बंगला और हिन्दी, अंगिका और बंगला और कोड़ अंतरण होगा बल्कि बाह्य भाषा का (अँग्रेजी और हिन्दी) भी होगा। इसके साथ डॉक्टर प्रशांत बनर्जी के भाषिक शैली का प्रभाव वहाँ के लोगों पर भी पड़ेगा। इसलिए ग्रामीणों के शब्द भंडार में तो बढ़ोत्तरी होगी लेकिन वहाँ diglossia
कोड मिश्रण की की स्थिति भी उत्पन्न होगी। इसलिए रेणु के 'लेक्सिकोन का आधार पूर्णियाँ जिला है। जहां औपचारिक शिक्षा का अभाव है।
पारबंगा स्टेट का जनरल मैनेजर अँग्रेजी भाषी है;
अत: उसकी भाषा शैली में 'भाषा द्वैत की स्थिति पाई जाती है। क्योंकि वह जिस प्रकार की हिन्दी बोलता है वह निम्न हिन्दी (L) है एवं अंग्रेजी के उच्चारण से प्रभावित है-
“अमारा स्टेट में एक भी बडमाश को अम नहीं देखने माँगटा, तुम अमारा टेसीलडार को जूठा बोला अमारा अमला जूठा ? तुम साला का बच्चा सच्चा?
चेतरू मंडल!
-माय - बाप, हाथ जोड़े एक अर्धनग्न आदमी थर - थर काँपता हुआ खड़ा हुआ।
टुम मुकडमा में गुवाई क्यों नहीं डीया?
माय - बाप ... - -
फं ... माय बाप का बच्चा। सिपाय, चाबुक डेगा - शपाक ... शपाक , शपाक ... कोड़े बरसने लगते - तुम चटेरी आय, राजपाट आय? टुम अमारा टेसीलडार से नेई जीट सकेगा।
अम टुमको बेज्जट करेगा बडमाश”6...
अँग्रेजी भाषा में त और द की ध्वनि नहीं है। इसलिए यहाँ लेखक द्वारा तुम के स्थान पर टुम का प्रयोग किया गया है। बेज्जत के लिए बेज्जट, तहसीलदार के टेसीलडार, जीत के लिए जीट, मुकदमा के लिए मुकडमा, दिया के लिए डीया का प्रयोग हुआ है। यदि इस जनरल मैनेजर नें हिन्दी भाषा की औपचारिक शिक्षा ग्रहण की होती तो यहाँ ध्वनि के स्तर पर त्रुटि को कम किया जा सकता था। इसलिए भाषा द्वैत (diglossia)
की स्थिति बनती है।
भाषा द्वैत के कारण अन्य प्रदेश के पाठक (जैसे हैदराबाद या हरियाणा) के उन लोगों को अवश्य ही समस्या आएगी जिन्होंने हिन्दी भाषा में औपचारिक दक्षता हासिल नहीं की है।
मैला आंचल की भाषा शिल्प इसकी शक्ति है,
किन्तु सिर्फ भाषा ही इसकी मजबूती नहीं है बल्कि इस आँचल की विविधता नें भी इसे सजीव बनने का का पूरा अवसर प्रदान किया।
भाषा के विविध आयाम - जिस आँचल को केंद्र में रखकर यह उपन्यास लिखा गया है। हिन्दी भाषा को एक तरफ तो वहाँ की राजभाषा के रूप में संवैधानिक स्वीकृति मिल गई थी किन्तु वहीं दूसरी तरफ जनसमूह के व्यवहार में मानक हिन्दी की स्वीकृति न के बराबर थी। इसके स्थान पर स्थानीय भाषा ठेठी/अंगिका का ही बोलबाला था। दूसरा तर्क यह भी है कि भारतीय संविधान में हिन्दी को 14 सितंबर 1949 को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। यदि राजभाषा हिन्दी के समय को देखा जाए तो इसे 26 जनवरी 1950 के बाद क्रियान्वित करने की योजना बनाई गई। उसमें भी 15 वर्ष अँग्रेजी को अतिरिक्त दिया गया है। जिसके कारण राजभाषा हिन्दी के साथ लीपापोती की स्थिति बनी रही। यह किसी भी तरह से संभव नही है कि सिर्फ 4 वर्ष के अंदर पूर्णिया जिले के लोग साहित्यिक या प्रयोजनमूलक हिन्दी बोलने लगेंगे। इसलिए उपन्यास की भाषा में मुख्य धारा की उपन्यास की तुलना में कम मिलावटीपन है। रेणु नें मैला आँचल के आधार पर अंगिका बोली के हिन्दी भाषा के सहारे साहित्य के दुनिया में प्रतिष्ठित किया। परिणाम स्वरूप यह भाषा भागलपुर स्थित तिलकामांझी विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाती है।
अंगिका/ठेठी मुख्य रूप से मुंगेर, पूर्णिया, भागलपुर, कटिहार, बांका जिलों सहित दक्षिण-पूर्वी बिहार में बोली जाती है। बिहार और झारखंड को मिला दिया जाए तो इसे बोलने वाले लोगों की संख्या 1.5 करोड़ है। साथ ही नेपाल के तराई इलाके में भी बोली जाती है। अंगिका भाषा को भारतीय भाषाई सर्वेक्षण 1903 में जॉर्ज ए. ग्रियर्सन द्वारा मैथिली की एक बोली के रूप में वर्गीकृत किया गया था। किन्तु यह अंगिका बोलने वालों स्वीकार्य नहीं है। इसलिए इस क्षेत्र में मैथिली भाषा का विरोध भी होता रहा है। स्थिति तब बिलकुल बदल गई जब मैथिली को आठवीं अनुसूची में शामिल कर लिया गया। जिसके कारण यह बोली हिन्दी भाषा की सीमा से बाहर हो गई। हालांकि मैथिली भाषा को संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद इस क्षेत्र को बिहार से अलग कर स्वतंत्र मिथिला राज्य बनाने की मांग छिटपुट तरीके से उठती रही है। उपन्यास में दिए गए एक उद्धरण को यहाँ शामिल करना आवश्यक है- “यह है मैला आँचल, एक आंचलिक उपन्यास। कथानक है पूर्णिया। पूर्णिया बिहार राज्य का एक जिला है; इसके एक ओर है नेपाल, दूसरी ओर पाकिस्तान (बांग्लादेश) और पश्चिम बंगाल। विभिन्न सीमा-रेखाओं से इसकी बनावट मुकम्मल हो जाती है, जब हम दक्खिन में सन्थाल परगना और पच्छिम में मिथिला की सीमा-रेखाएँ खींच देते हैं। मैंने इसके एक हिस्से के एक ही गाँव को-पिछड़े गाँवों का प्रतीक मानकर-इस उपन्यास-कथा का क्षेत्रा बनाया है।” जिस गाँव की इस उपन्यास में चर्चा की गई है उसका नाम है मेरीगंज। मेरीगंज के नामकरण की चर्चा उपन्यास में हुई है इस क्षेत्र में यदि वर्तमान समय में देखें तो गंज प्रयोग होता है- बिहारीगंज, मुरलीगंज। किन्तु उपन्यास जिस कारण चर्चा में रहा है वह है इस उपन्यास की भाषा।
कल्पना कीजिए यदि फणीश्वर नाथ रेणु नें इस रचना में भाषिक हेराफेरी करते हुए इसे मैथली भाषा में लिखा होता तो क्या होता। स्थिति पूरी विपरीत होती। आज मैला आँचल मैथिली भाषा की रचना मानी जाती। हिन्दी भाषा का इस कालजयी रचना से भाषिक दावेदारी सामाप्त हो जाती। किन्तु हिन्दी के अंतर्गत होने के कारण आज इस उपन्यास का न सिर्फ़ रूसी भाषा में अनुवाद हुआ बल्कि जापानी भाषा में अनुवाद हुआ है। सार यह है है कि हिन्दी के अंतर्गत आने वाली सभी उपभाषा का विकास जितना हिन्दी की छतरी के नीचे हो सकता है उतना अलग होकर नहीं हो सकता है।
इसलिए राजस्थानी, भोजपुरी, मगही या अन्य किसी भारतीय भाषा को सी सूची में शामिल कर भी लिया जाए। इससे न सिर्फ प्रथम भाषा के रूप में हिन्दी बोलने वालों की संख्या में कमी आएगी जैसा कि उर्दू और मैथिली को अलग भाषा मानने के कारण हुआ। बल्कि अखिल भारतीय स्तर पर पहचान मिलना भी मुश्किल होगा।
मैथिली भाषा की संवैधानिक स्थिति- भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्ष 2003 में 92वें संसोधन करते मैथिली को भाषा के रूप में शामिल किया गया था। जो इस भाषा को संवैधानिक रूप से न सिर्फ साहित्यिक रूप से बल्कि सरकारी एवं अन्य कार्य करने की अनुमति देती है। जिसके परिणाम स्वरूप ही यूपीएससी परीक्षा में मैथिली भाषा को वैकल्पिक पेपर के रूप में शामिल किया गया। साथ ही बेटी रोटी के सबंध होने के कारण इसे पड़ोसी देश नेपाल में भी राजभाषा की मान्यता मिली है। इसके अतिरिक्त झारखंड राज्य नें इसे उप राजभाषा का दर्जा दिया है। इस भाषा के कई पक्ष हैं जिसके कारण इसकी संवैधानिक स्थिति पर प्रश्नचिह्न उठता है। राजभाषा के रूप में मान्यता मिली किन्तु प्रयोग का अभाव, हिन्दी की उपबोलियों को इसकी बोलियाँ मानना जैसे ठेठी या अंगिका हिन्दी की उपबोली थी किन्तु वर्तमान में इसे मैथिली की बोली माना जाता है, साहित्यिक दावेदारी पर विवाद आदि। बिहार पहला ऐसा राज्य है जहां की राजभाषा के साथ-साथ उपराजभाषा को भी संवैधानिक मान्यता प्राप्त है। इसलिए राज्य पात्रता परीक्षा को हिन्दी, अँग्रेजी के साथ साथ उर्दू और मैथिली में भी किया जाना चाहिए। किन्तु ऐसा नहीं होता है जिसकी भाषिक राजनीति पर भी प्रपत्र लिखा जाना चाहिए। यही स्थिति अन्य भाषा के साथ भी होगी यदि उसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर भी लिया जाता है।
निष्कर्ष : भाषाविज्ञान में कई ऐसे सिद्धान्त है जिसका अनुप्रयोग साहित्य में किया जा सकता है। ऐसे में ही एक शब्द है - भाषा-द्वैत या समष्टि द्विभाषिता या द्विभाषारूपिता (diglossia)। जिसका सर्वप्रथम उल्लेख चार्लस् फरग्यूसन नें वर्ष 1959 में किया था। इस प्रपत्र में भाषा-द्वैत के अंतर्गत फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा रचित चर्चित उपन्यास मैला आँचल का विश्लेषण किया गया। जिसकी विधि वर्णात्मक थी। साथ ही इस प्रपत्र के लिए द्वितयिक आंकड़ों को उपन्यास एवं इस पर लिखे गए विभिन्न शोध प्रपत्रों से एकत्रित किया गया है।
मैला आँचल उपन्यास की भाषा में यह पाया जाता है कि प्रमुख पात्र की शैली आंतरिक द्विभाषी है। जिसके अंतर्गत भाषा की उस स्थिति को लिया जाता है जब वक्ता एक ही भाषा की दो बोलियों जैसे कि हिंदी के साथ - साथ मैथिली और अंगिका की दक्षता रखता हो या फिर एक मानक रूप भाषा जैसे हिंदी और एक बोली जैसे कि मैथिली की दक्षता रखता हो। इस स्थिति को भाषा द्वैत के नाम से जाना जाता है। जिसका सर्वप्रथम उल्लेख चार्लस् फरग्यूसन नें वर्ष 1959 में किया था। इस स्थिति में वक्ता एक ही भाषा की दो विभिन्न शैलियों का या कोडों का प्रयोग करता है जिनमें से एक उच्च और दूसरी निम्न समझी जाती है। इस उपन्यास में भी यही स्थिति है। पात्रों द्वारा बाह्य एवं आंतरिक दोनों तरह से कोड मिश्रण हुआ है। कोड मिश्रण का आधार औपचारिक नहीं है। जिसके कारण यहाँ भाषा द्वैत की स्थिति न सिर्फ हिन्दी भाषी के लिए है बल्कि अँग्रेजी भाषी के लिए भी है।
हम दिनचर्या में किए भाषिक प्रयोग पर बहुत कम ध्यान देते है। किन्तु देखा जाए तो अलग-अलग समाज के लोगों से मिलने जुलने के कारण हम एक साथ कई भाषाओं, बोलियों, शैलियों और प्रयुक्तियों (प्रयोजनमूलक रूपों) का प्रयोग करते हैं। द्विभाषिता की स्थिति में यह पाया जाता है कि व्यक्ति की एक भाषा प्रमुख (dominant)
जाती है, दूसरी भाषा गौण हो जाती है। यही स्थिति रेणु के उपन्यास में पाई जाती है। जहां हिन्दी की उप-बोली ठेठी या अंगिकामैथिली की बोली ठेठी प्रमुख हो जाती है जबकि हिन्दी भाषा गौण हो जाती है। मैला आँचल उपन्यास भाषा के भाषा के क्षेत्र में कार्य करने वाले शोधार्थी के लिए एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है जिसके आधार पर पिछले 68 वर्षों में भाषिक एवं शाब्दिक बदलावों का मूल्यांकन किया जा साकता है। वर्तमान इस पूर्णिया जिले की भाषा मैला आँचल से कितनी भिन्न होगी। इसी आधार पर उपन्यास मैला आँचल की भाषा का भाषा द्वैत (diglossia)
के आधार पर विश्लेषण किया गया है।
संदर्भ :1. फणीश्वरनाथ रेणु : मैला आँचल,
राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, नौवाँ संस्करण: 2007, पृष्ठ-82. वही,
पृष्ठ-83. वही,
पृष्ठ-10 4. वही,
पृष्ठ-285. वही,
पृष्ठ-66. वही,
पृष्ठ-1147. नामवर सिंह : हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग,
लोकभारती प्रकाशन, पहली मंजिल, दरबारी बिल्डिंग, महात्मा गाँधी मार्ग, इलाहाबाद (संस्करण – 2010)8. रामविलास शर्मा : भाषा और समाज,
राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, (पाँचवाँ संस्करण –2002, आवृत्ति– 2010)9. राज मणि शर्मा : आधुनिक भाषा विज्ञान, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली (प्रथम संकरण-1999, चतुर्थ संस्कारण-2007)10.http://www.mapageweb.umontreal.ca/tuitekj/cours/2611pdf/Ferguson-Diglossia.pdf11. David Odden ;Introducing
Phonology(PDF) Second Edition Cambridge University Press, New York
सहायक प्राध्यापक, हिन्दी विभाग, सेंटर फॉर डिस्टेंस एवं ऑनलाइन एजुकेशन
लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी फगवाड़ा, पंजाब
kumarmadhav071@gmail।com, 9652043290
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) फणीश्वर नाथ रेणु विशेषांक, अंक-42, जून 2022, UGC Care Listed Issue
अतिथि सम्पादक : मनीष रंजन
सम्पादन सहयोग : प्रवीण कुमार जोशी, मोहम्मद हुसैन डायर, मैना शर्मा और अभिनव सरोवा चित्रांकन : मीनाक्षी झा बनर्जी(पटना)
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