- डॉ. रीना कुमारी. वी.एल
शोध सार : आँचलिक उपन्यास को रेणु ने जिस ऊँचाई पर पहुँचाया, वह अन्यतम है। रेणु ने ग्रामीण यथार्थ को व्यक्त करने के लिए आंचलिक उपन्यास को सृजित किया जो हिन्दी साहित्य में मील का पत्थर साबित हुआ। रेणुजी के 'मैला आंचल' का मेरीगंज गाँव सामंती व्यवस्था में जकड़ा हुआ, अंध विश्वासों में दम तोड़ता हुआ सामान्य गाँव ही है। पूरे उपन्यास में गाँव का संगीत है जिसका लय जीवन के प्रति आस्था का संचार करता है।
बीज शब्द : फूल, शूल, गुलाल, कीचड़, शोषण, टोली, विद्रोह, कर्जदार, कट्टर हिमायती।
मूल आलेख : हिन्दी में ग्रामीण जीवन पर लिखने वाले रचनाकारों में फणीश्वरनाथ रेणु एक ऐसे समर्थ रचनाकार हैं, जिन्होंने ग्रामीण जीवन को एक विशेष प्रकार की अभिव्यक्ति दी है। एक ऐसी अभिव्यक्ति, जिसमें ग्रामीण आत्मीयता की गंध है, जो रेणु को अन्य ग्रामीण जीवन के कथाकारों से अलग करती है। हिंदी साहित्य में आधुनिकता के प्रचारक भारतेंदु हरिश्चंद्र भी मानते रहे कि “भारत का स्वत्व और आत्मा गाँव है।” भारतीय आत्मा गाँवों में बसती रही है। भारतीय साहित्य की मूल धारा की प्रेरणा और उसका केन्द्रीय भाव ग्रामीण जीवन ही है। कविवर पन्त की ग्रामीण जीवन की प्रसिद्ध पंक्तियाँ रेणु को प्रभावित करने का कार्य करती हैं -
खेतों में फैला है श्यामल
धूल भरा मैला सा आँचल,
भारत माता ग्रामवासिनी।” 1
रेणु के उपन्यासों के माध्यम से पाठक वर्ग ने हिन्दुस्तान के एक ग्रामीण अंचल को उसके प्रकृत रूप में देखा और अनुभव किया। उनके उपन्यासों में चित्रित गाँवों की समस्याएँ आज के प्रत्येक भारतीय गाँव की समस्याएँ हैं। हिन्दी उपन्यासों का इतिहास में गोपाल राय ने लिखा है कि “भारत की राजधानी से दूर, देश के सर्वाधिक पिछड़े राज्य बिहार के सर्वाधिक पिछड़े जिले पूर्णिया के उत्तर में मेरीगंज नामक गाँव से जुड़ा हुआ है जो केंद्र से बहुत दूर होने के कारण भौतिक प्रगति से नितांत पिछड़ा हुआ है। इस सुदूर और अत्यंत पिछड़े हुए अंचल को उसकी संपूर्णता में प्रस्तुत करने के लिए रेणु ने एक ऐसे कथा शिल्प और भाषा का इस्तेमाल किया है जो इससे पूर्व हिन्दी उपन्यास के लिए अपरिचित थी।”2
आँचलिक उपन्यास साहित्य में फणीश्वरनाथ रेणु का अपना अलग महत्त्व रहा है। ‘मैला आँचल'
आँचलिक उपन्यास का महाकाव्य है। उपन्यास के संबंध में स्वयं रेणु ने कहा है- “इसमें फूल भी है, शूल भी है, गुलाल भी है, कीचड़ भी है, चन्दन भी है, सुन्दरता भी है, कुरूपता भी है।”3 उपन्यास के केंद्र पूर्णिया जिले का मेरीगंज है। जिसमें ब्राह्मण, राजपूत यादव और कायस्थ इत्यादि जातियों के लोग रहते हैं मुख्यतः जाति-पाँति के आधार पर इस गाँव का विभाजन हुआ है। किसान, ज़मींदार, महंत जैसे वर्गों की समस्याओं की ओर भी लेखक ने संकेत दिया है।
डॉ. कुँवरपाल सिंह कहते हैं कि मैला आँचल में रेणु का उद्देश्य किसी अवधारणा चरित्र का निर्माण करना या किसी हीरो की स्थापना करना नहीं है। उन्हें तो मेरीगंज को जैसा कि वह है उसी रूप में पाठकों के सम्मुख रखना है। वहाँ के मनुष्य ही हैं, न कि देवता या दानव। ग्रामीण जीवन में जातिवाद कितना सुदृढ़ है जो राजनीतिक रूप धारण करता जा रहा है तथा वर्ग संघर्ष को कुंठित कर रहा है। इस तथ्य की ओर रेणु ने सर्वप्रथम पाठकों का ध्यान आकृष्ट किया है।”4
‘मेरीगंज’ की कहानी एक गाँव की कथा न रहकर एक देश की कथा बनती है। पहले महायुद्ध के बाद डब्ल्यू जी मार्टिन ने अपनी पत्नी मेरी के नाम पर ‘मेरीगंज रखा था। उपन्यास में जो चीज़ सबसे पहले सामने आती है वह है अंचल के निवासियों की निर्धनता, उनका मानसिक पिछड़ापन, ज़मींदार और तहसीलदार का शोषण, जातिगत आधार पर आपस की फूट आदि। ‘मेरीगंज’ की सारी धरती दो-तीन आदमियों के अधिकार में है। शेष ग्रामीण या तो खेतिहर मजदूर है या बटाईदारी पर खेती करते हैं उन्हें भरपेट भोजन और तन ढकने के लिए कपड़ा भी नहीं मिलता है और आवास के नाम पर फूस की झोंपड़ी में उनकी सारी ज़िंदगी कट जाती है। इसमें तहसीलदार और धनी किसानों द्वारा गरीब किसानों का शोषण है।
‘मैला आँचल’ उपन्यास में लगभग 300 पात्र हैं। यहाँ कोई भी केन्द्रीय पात्र या नायक नहीं है। डॉ. प्रशांत, विश्वनाथ प्रसाद, कालीचरण, बालदेव, कमली, लक्ष्मी आदि पात्र सम्मुख हैं परन्तु यह सब उपन्यासकार के कथानक का प्रतिनिधित्व ही करते हैं।‘मेरीगंज जातियों के आधार पर अनेक टोली में बंटा हुआ है। इनमें से कुछ टोली पिछड़े जातियों के हैं, जिसके लोग निर्धन, अशिक्षित, अंधविश्वासों और बौद्धिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं। लोगों के मन में जातिवाद इतना प्रबल हुआ है कि डॉक्टर जब गाँव में पहली बार आते हैं तो सबसे पहले लोग उनकी जात को जानना चाहते हैं। डॉक्टर ठीक ही सोचते हैं-“जाति बहुत बड़ी चीज़ है। जाति-पाँत नहीं मानने वालों को भी जाति होती है। सिर्फ हिन्दू कहने से पिंड नहीं छूट सकता। ब्राह्मण है ! कौन ब्राह्मण। गोत्र क्या है? मूल कौन है? शहर में कोई किसी से जात नहीं पूछता। शहर के लोगों की जाति का क्या ठिकाना, लेकिन गाँव में तो बिना जाति के आपका पानी नहीं चल सकता।”5 सच तो यह है कि शहर में कोई जातीय सरोकार नहीं पर गाँव जातीय दलदल में फंसे हुए हैं, बंधे हुए हैं। गोपालराय कहते हैं-“रेणु ने‘मैला आँचल ' में पूर्णिया अंचल के दलित जीवन के चित्रण में गहरी संवेदनशीलता का परिचय दिया है। ‘मैला आँचल’का मेरीगंज जातियों के आधार पर अनेक टोलियों में बंटा हुआ है। इनमें कुछ टोले दलित जातियों और आदिवासियों के हैं, जो निहायत, गरीब, अशिक्षित, अंधविश्वासी और बौद्धिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं। सवर्ण जातियों के लोग उनका शोषण करते हैं। रेणु ने इनके जीवन के सहानुभूतिपूर्ण अंकन के साथ-साथ उच्च जातियों के विरुद्ध इनके विद्रोह का भी चित्रण किया है।”6
‘मेरीगंज ' भारत का प्रतिनिधि गाँव है। संकुचित दृष्टिकोण जो भारतीय ग्राम जीवन की कमज़ोरी है वह यहाँ भी देखी जा सकती है। व्यक्तिगत द्वेष से राजनीतिक दल और नेता लोग परस्पर लड़ते हैं। सभी राजनीतिक दल जनता से बड़े-बड़े वादे करते हैं लेकिन साधारण जनता की स्थिति में कोई बदलाव नहीं होता। गरीब जनता की दशा दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। बावनदास इस दशा पर दुखी है परन्तु वह भी कोई हल नहीं खोज पाता। वह किसानों की ज़िंदगी में आई जातिवाद की भावना का मुख्य कारण राजनीति मानता है। वह बालदेव से कहता है “यह बेमारी ऊपर से आई है। यह पटनियाँ रोग है।......अब तो और धूमधाम से फैलेगा। भूमिहार, राजपूत, कैथ, यादव, हरिजन सब लड़ रहे हैं।....किसका आदमी ज्यादे चुने जाए, इसी की लड़ाई है। यदि राजपूत पाटी के लोग ज्यादा आये तो सबसे बड़ी मन्तरी भी राजपूत होगा।”7 उनके इस वक्तव्य से बालदेव सोचता है कि“वह अब अपने गाँव में रहेगा, अपने समाज में, अपनी जाति में रहेगा। जाति बहुत बड़ी चीज़ है।.....जाति की बात ऐसी है कि सभी बड़े-बड़े लीडर अपनी-अपनी जाति की पार्टी में है। यह तो राजनीति है।”8
उपन्यास का पात्र कालीचरण पिछड़े और उपेक्षित अंचल की नयी पीढ़ी के विद्रोह को मुखरित करता है। वह कम पढ़ा-लिखा, अविकसित बुद्धि का युवक है फिर भी उसके चरित्र में कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं जो उसे लोकप्रिय बनाती हैं। वह मेरीगंज गाँव में समाजवादी चेतना का स्रोत है, वर्ग-संघर्ष का कट्टर हिमायती भी है। वह किसानों और मज़दूरों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करता है। सभाओं का आयोजन करता है। समस्त मेरीगंज में नारा गूंजने लगते हैं“किसान राज कायम हो ! मजदूर राज कायम हो!”9
गाँव के सभी किसान कर्जदार रहे हैं, इनको कोरे कागज़ पर अंगूठा लगाकर कर्ज दिया जाता है। कालीचरण जो उसका विरोध करता है। ज़मींदार तथा व्यापारियों के संबंध में कहता है-“ये पूंजीपति और ज़मींदार खटमलों और मच्छरों की तरह शोषक हैं। खटमल ! इसलिए बहुत से मारवाड़ियों के नाम के साथ ‘मल’ लगा हुआ है और ज़मींदारों के बच्चे मिस्टर कहलाते हैं। मिस्टर.....मच्छर।”10
वह मज़दूरों में चेतना लाना चाहता है। वह कहता है कि मैं आप लोगों के दिल में आग लगाना चाहता हूँ। सोए हुए को जगाना चाहता हूँ। आप अपने हकों को पहचानें। आप भी आदमी हैं, आपको आदमी का सभी हक़ मिलना चाहिए। जिससे संथाल लोग तहसीलदार विश्वनाथ प्रसाद के चालीस बीघावाले बीहान के खेत में से बीहान लूट जाते हैं। तहसीलदार उलझाव में पड़ जाता है। गरीब मज़दूरों में चेतना का स्वर सुनकर वह हैरान हो जाता है।
भारतीय किसान पौराणिक तत्वों के आधार पर, अंधविश्वास, परंपरा पर चलनेवाले हैं। ‘मेरीगंज’ गाँव में अस्पताल शुरू करने की बात चली तो कुछ किसानों का मत यह रहा कि डॉक्टर लोग ही रोग फैलाते हैं। लोगों ने दल बाँधकर विरोध किया कि “चालाकी रहने दो ! डॉक्टर कूपों में दवा डालकर सारे गाँव में हैजा फैलाना चाहता है। खूब समझते हैं।”11 किसी ने यह भी कहा कि अंग्रेज़ी दवा में गाय का खून मिला रहता है। इसके सिवा अनेक अंधविश्वासों से भरे चित्र हमारे सम्मुख आते दिखाई देते हैं। जैसे “सिन्दूर लगाते समय जिस लड़की के नाक पर सिन्दूर झड़कर गिरता है, वह अपने पति की दुलारी होती है।”12 अंधविश्वासों से भरी हुई यह कथा भारतीय ग्रामीण जीवन का नया दस्तावेज़ है, जो आँचलिकता का प्रतीक बनकर सामने आता है।
आँचलिक क्षेत्रों की राजनीति, जातिगत भेद और वैमनस्य, धार्मिक पाखण्ड, श्रमिक-कृषक संथालों पर ज़मीन मालिकों के अत्याचार, भोली-भाली अशिक्षित जनता को ठगनेवाले पंडित और ज्योतिषी, मठों में व्याप्त भ्रष्टाचार आदि की प्रस्तुति आँचलिक परिवेश के धरातल पर बड़ी ईमानदारी से हुआ है।
वस्तुतः फणीश्वरनाथ रेणु हिन्दी के पहले बड़े कथाकार थे जिनकी जीविका का आधार कृषि था। वे खेती के दिनों में गाँव में रहकर एक कृषक का जीवन जीते थे और शेष समय पटना में रहकर एक लेखकीय जीवन बिताते थे। इसलिए उनके कथा साहित्य में ग्रामीण जीवन के इतने विविध और प्रगाढ़ चित्र मिलते हैं कि पाठक उनमें रम जाता है।
निष्कर्ष : रेणु जी ने 'मैला आंचल ' में ग्राम्य जीवन और उसकी विविध समस्याओं का अंकन विस्तार और सूक्ष्मता से किया है । ग्राम्य जीवन का इतना यथार्थ एवं रोचक चित्रण प्रेमचंद के बाद रेणु के उपन्यास में देखने को मिलता है ।
1. सुनित्रानंदन पंत, तारापथ (भारतमाता ), लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, सं.2002, पृ. 117
5. फणीश्वरनाथ रेणु, मैला आंचल, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, सं.1967, पृ.41
सहायक आचार्य, हिन्दी विभाग, महाराजास कॉलेज, एरणाकुलम-682011, केरल
9746157666
अतिथि सम्पादक : मनीष रंजन
सम्पादन सहयोग : प्रवीण कुमार जोशी, मोहम्मद हुसैन डायर, मैना शर्मा और अभिनव सरोवा चित्रांकन : मीनाक्षी झा बनर्जी(पटना)
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