आजादी के
आंदोलन में हरियाणा की पत्रकारिता की भूमिका का अध्ययन एवं विश्लेषण
– डॉ. अशोक कुमार, डॉ. जगदीश यादव, डॉ. प्रदीप कुमार
शोध-सार : प्रस्तुत शोध-पत्र भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम में हरियाणा में पत्रकारिता के विकास खंड को क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत करने और उसके स्वतंत्रता संग्राम पर प्रभावों की स्पष्टता के अन्वेषण का प्रयास है। इन सभी तथ्यों को अर्थवत्ता प्रदान करने के लिए शोध के द्वितीय स्रोत के रूप में उपलब्ध प्रमाणों की विवेचना की गई है। भारतीय पत्रकारिता के 241 वर्षों के इतिहास में हरियाणा से हुई पत्रकारिता को लेकर कोई समग्र दृष्टि नहीं बन पाई। इस शोध समस्या को केंद्र में रखते हुए शोध-पत्र संबंधित शोध प्रश्नों के उत्तर खोजते हुए अमुक विषय पर एक सुगठित व संगत विचार का मूर्तरूप देने का प्रयास करता है। विषय की प्रकृति के दृष्टिगत ‘अन्तर्वैषयिक दृष्टि’ से इसमें अन्वेषण कार्य किया गया है। अर्थात् यह इतिहास और जनसंचार विषय के शोधार्थियों का संयुक्त उपक्रम है।
प्रस्तुत
शोध-कर्म उपलब्ध ऐतिहासिक आलेखों के विश्लेषण व देश के अमुक क्षेत्र में प्रकाशित
तात्कालिक समाचार-पत्रों के सन्दर्भ में इतिहासकारों की व्याख्याओं को तथ्य के रूप
में प्रयोग करते हुए अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करता है। प्रदेश के रोहतक, झज्जर, रेवाड़ी आदि क्षेत्र
मुख्यतः तात्कालिक पत्रकारिता का केन्द्र रहे और सर्वोपरि सन्दर्भ यह बनता है कि
इतने पिछड़े क्षेत्र में पत्रकारिता का स्वर मुख्यधारा की राष्ट्रीय पत्रकारिता
जैसा ही था। इस पक्ष की स्पष्टता दौ सौ बरसों से अधिक की भारतीय पत्रकारिता के
क्रमिक विकास के अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर प्रदान करती है। शोध तत्कालीन
पत्रकारिता में उल्लेखनीय योगदान देने वाली कई बड़ी शख्सियतों को शोध साहित्य का
हिस्सा बनाता है जिससे भविष्य में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर
स्वतंत्रता प्राप्ति के अंतिम सोपान तक पत्रकारिता के क्रमिक विकास और उसके
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को अधिक रोशनी में समझने में सहायता मिलेगी।
बीज शब्द : आजादी का आंदोलन,
हरियाणा, आर्य समाज, चौधरी
छोटू राम, बाल मुकुंद गुप्त
मूल आलेख: पत्रकारिता शिक्षण एवं प्रशिक्षण में पत्रकारिता के इतिहास को
विश्व भर के देशों में अन्य विषयों से कमतर आंकते हुए ही अध्ययन किया जाता रहा है।
पत्रकारिता का इतिहास स्लोवेनिया, अमेरिका व अन्य
देशों में पत्रकारिता के पाठयक्रम का विद्यार्थियों के बीच सबसे कम लोकप्रिय विषय
रहा है।[1]
इस संबंध में बहुत ही कम शोध प्रोजेक्ट व पुस्तकें लिखी गई हैं। प्रस्तुत अध्ययन
में राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में हरियाणा के विभिन्न क्षेत्रों में हुई
पत्रकारिता का अन्वेषण करते हुए उस समय के समाचार पत्रों एवं संपादकों की लेखनी से
देश की स्वतंत्रता के लिए हुई पत्रकारिता का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।
प्रस्तुत शोध-पत्र पूर्ववर्ती पश्चिमी पंजाब व वर्तमान के हरियाणा क्षेत्र में
स्वतंत्रता पूर्व पत्रकारिता के उद्भव और विकास के अनछुए पक्षों को स्पष्ट करने का
प्रयास करता है।
शोध उदेश्य- प्रस्तुत शोध कार्य ऐतिहासिक प्रमाणों के अध्ययन एवं इतिहासकारों
से मंत्रणा के उपरांत यह शोध प्रश्न को स्थापित कर पाया है कि हरियाणा में
स्वतंत्रता से पूर्व पत्रकारिता का उदगम एवं उदभव शोध की दृष्टि से अछूता विषय रहा
है। दूसरा आजादी से पूर्व के समाचार पत्रों एवं पत्रकारिता के क्रमिक विकास को सही
तरीके से प्रस्तुत नहीं करता। आजादी से पूर्व हरियाणा प्रदेश से पैदा हुई
पत्रकारिता का आजादी के आंदोलन में भूमिका को जानने व उसका मूल्यांकन करने के लिए
इस शोध की अंतर्वैषयिक प्रकृति को ध्यान में रखते हुए इतिहास एवं पत्रकारिता के
शोधार्थियों ने सुंयक्त रूप से इस शोध पत्र पर कार्य किया है।
शोध प्रविधि- जहां तक शोध प्रविधि का प्रश्न है, उसमें अमुक शोध कर्म में इतिहास विषय की स्थापित शोध प्रविधि
पर्याप्त प्रमाण सिद्ध पुस्तकों को द्वितीय स्रोत के रूप में प्रयोग किया। यद्यपि
इन पुस्तकों के आधार बने तत्कालीन दस्तावेज प्राथमिक स्रोत की श्रेणी के शोध आधार हैं,
परन्तु प्रस्तुत शोध कार्य इन्हें द्वितीय स्रोत के रूप में ही
अंगीकार कर अपनी शोध व्याख्या करता है। उल्लेखनीय है कि इतिहास विषय की शोध
प्रविधि का स्थापित नियम है कि उच्चकोटि के सिद्ध प्रमाणों को ही शोध की
व्याख्याओं का आधार बनाया जाए। इन नियम की अनुपालना करते हुए प्रमाण चयन के लिए
उन्हीं पुस्तकों का चयन किया है, जो तत्कालीन प्रमाणिक
दस्तावेजों के आधार पर अपनी व्याख्या करते हैं। इसके अतिरिक्त द्वितीय स्रोत के
रूप में डाटा उपलब्ध कराने वाले व्याख्याकार हरियाणा की पत्रकारिता के अधिकारी
लेखक ही हैं।
भारतीय प्रेस व स्वतंत्रता
संग्राम के अंतर्सम्बन्ध-
भारतीय प्रेस ने स्वतंत्रता
आंदोलन में एक ऐतिहासिक भूमिका भी निभाई थी,
जो स्वयं में अन्वेषण का वृह्द विषय रहा है, जिसने
ज्ञान परम्परा को नये विचारों से समृद्ध किया। देशभक्ति की कविताओं, गीतों और अखबारों में प्रकाशित लेखों ने ब्रिटिश सरकार को बेचैन कर दिया
था। समाचार पत्रों के माध्यम से भारतीय लोग देश में चल रही गतिविधियों से खुद को
अवगत कराते रहे। समाचार पत्रों में प्रकाशित लेख ब्रिटिश सरकार के लिए किसी चुनौती
से कम नहीं थे। इसी के चलते अनेक समाचार पत्रों पर अंग्रेजों ने प्रतिबंध लगा दिया
था। दमन की पराकाष्ठा को चुनौती देते हुए तत्कालीन पत्रकारों ने सशक्त संचार की शक्ति से जनजारण के
कार्य को निरंतर जारी रखा।
भारत में
प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत भारतीय लोगों के जीवन में एक क्रांतिकारी घटना थी।
उनमें राष्ट्रीय चेतना के जागरण और विकास ने राष्ट्रवादी प्रेस को जन्म दिया।
भारतीय प्रेस ने 1870
ई. के दशक में अपनी जड़ें फैलाना शुरू कर दिया था। 1870 से 1918 के दौरान प्रतिष्ठित और निडर पत्रकारों ने कई शक्तिशाली समाचार पत्रों की
शुरूआत की। भारत में प्रथम समाचार पत्र जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने कलकत्ता से बंगाल
गजट अंग्रेजी भाषा में 29 जनवरी 1780
ई. में प्रकाशित किया था। इसके बाद 1785 में मद्रास कुरियर,
1789 में बाम्बे गजट, द कुरियर, 1791 में ‘बंगाल जर्नल‘, ‘इंडियन
वर्ल्ड‘, कोलकता क्रॉनिकल जैसे समाचार पत्रों की शुरूआत हुई।
हिन्दी का प्रथम समाचार पत्र उदंत-मार्तण्ड भी कलकता से 1826
में ही प्रकाशित हुआ था। देशभर में पत्रकारिता के शंखनाद से भारत में स्वतंत्रता
आंदोलन को लेकर जनजागरण और इसी सामूहिक चेतना ने भारतीयों को ब्रिटिश राज के खिलाफ
खड़ा कर दिया (पार्थसारथी, 2009)।[2]
महर्षि
दयानन्द सरस्वती द्वारा स्थापित आर्यसमाज का कर्मक्षेत्र पंजाब रहा है।
उन्होंने आर्यसमाज के प्रचार-प्रसार के
लिए भारत भर का भ्रमण किया। आमजन तक ऋषि दयानन्द का संदेश पहुचाने के लिए आर्यसमाज
के उपदेशकों ने आर्य समाज की पताका को देश के कोने-कोने तक फहराया। आर्यसमाज ने
सामाजिक कुरीतियों के साथ-साथ राष्ट्र जागरण को अपने एजेंडे में लिया।
राष्ट्रजागरण के लिए भाषायी पत्रकारिता का वंदनीय योगदान रहा है। देश में मराठी, मलायली, पंजाबी सहित सभी
क्षेत्रीय भाषाओं में समाचार पत्रों की शुरुआत यही कारण था कि जीयालाल जैन के बाद
आर्य समाज ने अपनी लेखनी से हरियाणा की हिन्दी पत्रकारिता की सेवा की।
जब भारत में
पत्रकारिता के इतिहास को देखा जाता है तो तत्कालीन कलकत्ता, वाराणसी, भोपाल आदि मुख्य श्रेणी में
खड़े नजर आते हैं। देश के
अधिकतर शहरों में लोगों ने आजादी के आंदोलन के लिए समाचार पत्रों का प्रकाशन किया।
आजादी से पूर्व हरियाणा संयुक्त पंजाब का हिस्सा था। इसलिए स्वतंत्रता आंदोलन के
लिए कई नए प्रयास इस क्षेत्र से ही हुए। बाबू बाल मुकुन्द, माधव प्रसाद मिश्र, विष्णु
प्रभाकर व गिरीलाल जैसे ऐसे कई नाम हैं जो हरियाणा की पत्रकारिता के आधार स्तंभ
रहे हैं (कुमार, 2021)[3]। यदि हरियाणा में पत्रकारिता को देखा जाता है तो सर्वप्रथम स्थान फर्रुखनगर
के जियालाल जैन के ‘जैन
प्रकाश’ अखबार का आता है, इसके बाद अम्बाला, भिवानी,
झज्जर, तथा रोहतक आदि के अखबारों की चर्चा आती
है(कादयान, 2019 )[4]। हरियाणा की लेखनी ने अनवरत राष्ट्रीय चेतना, लोकमंगल,
और लोकशिक्षण में अहम् भूमिका निभाई है। ऐसे में हरियाणा की
पत्रकारिता का अध्ययन एक महत्त्वपूर्ण विषय हो जाता है।
राष्ट्रीय
आंदोलन हो, समाज सुधार के
आंदोलन या फिर सैन्य परम्पराओं में यहाँ के सूरमाओं की वीरगाथायें गाई जाती हैं।
हरियाणा साहित्यिक और पत्रकारिता की दृष्टि से साधन सम्पन्न रहा है। हरियाणा में
सनातन धर्म सभा की स्थापना सर्व प्रथम सन् 1886 में झज्जर
में हुई थी, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन के समय में भारतीयता और
राष्ट्रीयता की आवाज को बुलन्द किया। पण्डित दीनदयाल शर्मा ने 22 अगस्त 1886 ई. को झज्जर में सनातन धर्म सभा की
ज्योति जलाई, जिसके प्रकाश में राष्ट्रीयता के पुजारियों की
शिक्षा-दीक्षा हुई थी, जो कि पत्रकारिता में राष्ट्रीयता के
ध्वजारोहक रहे। अतः हरियाणा की पत्रकारिता में राष्ट्रीय चेतना पर काम कुछ कम ही
मिला, जबकि यहाँ के पत्रकारों ने देश के अलग-अलग क्षेत्रों
में राष्ट्रीयता की अलख जगाई। अतः राष्ट्रीय चेतना जगाने में हरियाणा की
पत्रकारिता की भूमिका गौरवमयी इतिहास को झांकने का कार्य हैं।
स्वतंत्रता पूर्व हरियाणा में
पत्रकारिता-
पूर्ववर्ती पश्चिमी पंजाब व
आजादी के करीब दो दशक बाद हरियाणा राज्य के रूप में अस्तित्व में आए भू-भाग में
पत्रकारिता की आरंभ का श्रेय पंडित दीनदयाल शर्मा व्याख्यान वाचस्पति को जाता है, जिन्होंने झज्जर में रिफा-ए-आम सोसायटी बनाई,
(तिथि का उल्लेख नहीं है) जिसके हिन्दू और मुसलमान दोनों सदस्य थे।
इन्होंने रिफा-ए-आम नामक एक साप्ताहिक अखबार निकाला, जिसका
प्रकाशन झज्जर से होता था। वाचस्पति जी इसके प्रधान संपादक थे। यह अखबार अधिक समय
तक नहीं चल पाया। इसके बाद पं. दीनदयाल शर्मा ने हरियाणा नामक एक साप्ताहिक अखबार
निकाला। जिसमें हरियाणा की संस्कृति और लोकजीवन पर लेख छपते थे। अतः इस अखबार की
भी रिफा-ए-आम की तरह छोटी जिन्दगी रही। परन्तु पत्रकारिता के क्षेत्र में झज्जर की
ख्याति चारों ओर फैला दी। झज्जर के बाद रेवाड़ी में पत्रकारिता का श्रीगणेश हुआ
(यादव, 2019)।[5]
स्वतंत्रता
आंदोलन में इस क्षेत्र की पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम बालमुकंद गुप्त का है।
बालमुकुन्द गुप्त का जन्म गुड़ियानी गाँव,
जिला रेवाड़ी, हरियाणा में हुआ इन्होंने
विद्यार्थी जीवन में ही उर्दू समाचार पत्रों में लेख लिखना आरम्भ कर दिया।
झज्जर(जिला रोहतक) के ‘रिफा-ए-आम’ अखबार
और मथुरा के ‘मथुरा समाचार’ उर्दू
मासिक पत्रों में पं॰ दीनदयाल शर्मा के सहयोगी रहने के बाद, 1886 ई॰ में चुनार के उर्दू अखबार ‘अखबारे चुनार’
के दो वर्ष संपादक रहे। 1888-1889 ई॰ में
लाहौर के उर्दू पत्र ‘कोहेनूर’ का
संपादन किया। राष्ट्रीय स्तर पर बाबू बालकुकन्द गुप्त की लेखनी ने तूफान लाकर
ब्रिटिश सत्ता को हिलाकर रख दिया। उनके शिवशंभू के चिट्ठे ने अंग्रेजी सरकार की
शीर्ष सत्ता को व्यंग्यात्मक चुनौती दी थी। उन्होंने इसके माध्यम से लोगों को
अंग्रेजी सरकार के खिलाफ जागरूक किया। 1877 में अवध पंच,
लखनऊ से उर्दू भाषा में निकालना आरम्भ हुआ था जिसका सम्पादक 1884 में बाबू बालमूकन्द गुप्त को बनाया था। उनके 1884-1889 तक अवध पंच में छपी रचनाओं का संकलन हरियाणा इतिहास एवं संस्कृति अकादमी
ने किया है(यादव, 2019)।[6]
1889
ई॰ में महामना मालवीय जी के अनुरोध पर कालाकाँकर (अवध) के हिंदी दैनिक ‘हिंदोस्थान’ के सहकारी संपादक हुए जहाँ तीन वर्ष 1889 से 1891 तक रहे। यहाँ पं. प्रतापनारायण मिश्र के
संपर्क से हिंदी के पुराने साहित्य का अध्ययन किया और उन्हें अपना काव्यगुरू
स्वीकार किया। सरकार के विरुद्ध लिखने पर वहाँ से हटा दिए गए। अपने घर गुड़ियानी
में रहकर मुरादाबाद के ‘भारत प्रताप’ उर्दू
मासिक का 1891 से 1892 तक संपादन किया
और कुछ हिंदी तथा बंगला पुस्तकों का उर्दू में अनुवाद भी किया तथा इसी बीच
अंग्रेजी का अध्ययन भी करते रहे। गुड़ियानी में रहते हुये पं. दीनदयाल शर्मा के
हरियाणा अखबार में भी लिखते रहे। अतः बालमुकुन्द ने अपनी लेखनी से हर भारतवासी के
दिल पर राज किया। आज की पीढ़ी भी उनके व्यंग्यात्मक लेखन की कायल है(कादयान, 2019)।[7]
वे 1893 ई॰ में ‘हिंदी बंगवासी‘
के सहायक संपादक होकर कलकत्ता चले गए और छह वर्ष तक काम करके नीति
संबंधी मतभेद के कारण इस्तीफा दे दिया। इसके पश्चात 1899 ई.
से 1907 ई. तक भारतमित्र’ कलकत्ता का संपादन
करते रहे। बाबू बालकुकन्द गुप्त भारतीय नवजागरण के पुरोधा, स्वदेशी
एवं स्वराज के मन्त्र-द्रष्टा, राष्ट्र-भाषा और लिपि के
उन्नायक, पत्रकार शिरोमणि सही मायनों में एक इतिहास-पुरुष
थे। आप उर्दू में शाद नाम से लिखते थे(मामगई, 2001)।[8]
पं. बालकृष्ण शर्मा ’नवीन’ ने क्या ठीक
कहा है:
‘जिस समय
हमारे देश में स्तब्धता थी, जिस
समय हमारी वाणी मूक थी, जिस समय हमारे हृदय स्पन्दनहीन थे,
उस समय एक शंख-ध्वनि हुई और उस ध्वनि से हमारा यह भारतीय आकाश
प्रकम्पित हुआ। उस वायु-तरंग को आन्दोलित करने वालों में बाबू बालमुकुन्द गुप्त का
विशेष स्थान था’(यादव एवं अन्य 2013 )।[9]
पं. दीनदयालु
शर्मा के छोटे भाई विश्वम्भर दास शर्मा ने भारत प्रताप नामक उर्दू अखबार झज्जर से
निकाला था। जिसकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई और पाठकों को राष्ट्रीयता का पाठ
पढ़ाया। यद्यपि यह अखबार थोड़े समय तक चला,
परन्तु इन्होंने अल्पकाल में ही राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाया था।
यह 19वीं सदी का प्रारम्भिक युग था। हरियाणा में पत्र
निकालने की शुरुआत फर्रूखनगर, गुड़गांव से हुई और 1 मई 1884 को जैन समाज की मासिक पत्रिका ’जैन प्रकाश’ का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ (मामगई, 2013)।[10] इसे आठ पृष्ठ में हिन्दी में निकाला गया था।
इसके प्रकाशक मुंशी जियालाल जैन थे। ‘जैन प्रकाश’ मासिक पत्र जनवरी 1985 में पाक्षिक हो गया और इसका नाम ‘जीयालाल प्रकाश’ रखा गया और तत्पश्चात् ‘जैन
प्रकाश हिन्दुस्तान’ मासिक पत्र बन गया। जैन प्रकाश के सम्बन्ध में ‘भारत-भ्राता’ ने
लिखा था-
“इस नाम का एक मासिक पत्र छह
वर्ष से प्रकाशित होता है। इसके उत्तमोत्तम लेख नए-नए समाचार देखने लायक होते हैं।
आगामी मास का फल ‘होनहार
ज्योतिष’ के बड़े-बड़े प्रसिद्ध ग्रन्थों से लिखा जाता था। सम्पूर्ण लेख प्रणाली
निरपक्षता सहित होता है, पक्षपात का इसमें नाम तक नही है।
जनवरी 1890 से इसका आकार भी दूना बढ़ाकर वैद्यक का विषय विशेष
कर दिया था जिसमें नाना प्रकार के रोगों की पहचान और चिकित्सा करना शीघ्र आ जाए;(भारत भ्राता, 1890)।।”[11]
ये पत्र काशी
से लीथो प्रेस से छपते थे। इन पत्रों की भाषा और उनकी सामग्री में पठनीय व सराहनीय
है। इसमें जैन मत संबंधी समाचार तो हैं ही अन्य घटनाओं से संबंधित समाचार एवं लेख
भी होते थे। श्री जैन प्रकाश हिंदुस्तान मासिक पत्र का मुख पृष्ठ अच्छा सजा हुआ
मिलता है। सन 1889 में फरुखनगर
(गुरुगांव) से दूसरा अखबार कन्हैयालाल के सम्पादन में जाट समाचार मासिक प्रकाशित
हुआ। यह पत्र विद्याविलास प्रेस आगरा से छपता था। यह मुख्य रूप से जातीय और
धार्मिक पत्र था(श्रीधर, 2008)।[12]
ऐसे ही एक
अन्य यशस्वी पत्रकार पंडित विश्वम्भरदयाल झज्जर के रहने वाले प्रथम श्रेणी के
पत्रकारों में थे। आपने पंडित दीनदयाल शर्मा की छत्रछाया में परवरिश पाई और 1885 के पश्चात पत्रकारिता का व्यवसाय ग्रहण कर
लिया और कलकता के प्रसिद्ध हिन्दी अखबार भारत मित्र के विख्यात संपादक बाबू
बालमुकंद गुप्त के शिष्य बन गए। आपने सन 1901 से सनातन धर्म
का उर्दू मासिक पत्र भारत-प्रताप अपने जन्म-स्थान झज्जर निकाल दिया। जिसमें
संस्कृति और समाज सुधार के उच्च कोटि के लेख छपते थे। यह पत्र प्रायः 5 वर्ष तक निकलने के पश्चात वितीय कठिनाइयों के कारण बंद हो गया। इसके बाद
लगभग तीस वर्ष तक इन्होंने कलकता में भारत-मित्र का, बंबई के
बेंकटेश्वर समाचार, दिल्ली के हिन्दी समाचार, फतह दिल्ली, तेज, वतन, रियासत, स्वराज्य, अला अमान,
अमृत, लाहौर के पैसा अखबार, राजपूत गजट, तथा आजादी, के
समाचारों व रोहतक के जाट गजट, गौड़ ब्राह्मण तथा हिसार के
हिसार गजट आदि समाचार पत्रों में कार्य किया (रल्हन एवं अन्य,
1998)।[13]
अपनी पत्रकारिता के माध्यम से इन्होंने न केवल हरियाणा में बल्कि देश के अन्य
राज्यों में भी आजादी के आंदोलन को मजबूत बनाने व उस समय की पत्रकारिता को समृद्ध
करने का कार्य किया।
हरियाणा को यह
गौरव प्राप्त है कि बाबू बालमुकुंद गुप्त,
पं. माधवप्रसाद मिश्र और पं. राधाकृष्ण मिश्र ने हिंदी पत्रकारिता
का जो वृक्ष लगाए और उसे हरा-भरा करने के लिए जो प्रयास किए, वे हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में सदा याद रहेंगे। गुप्त जी के समकालीन
पं. माधवप्रसाद मिश्र जिला हिसार के निवासी थे। सन् 1900 में
वे ‘सुदर्शन’ के सम्पादक बने। विद्वान् लोग ‘सुदर्शन’ को ‘सरस्वती’ के समकक्ष
मानते हैं। उसके बाद ‘वैश्योपकारक’ (कलकता) के सम्पादक बने। ‘वैश्योपकारक’
के द्वारा उन्होने हिन्दी पत्रकारिता को नया आयाम दिया। मिश्र जी के अनुज
राधाकृष्ण मिश्र ने ‘भारत मित्र’ और ‘वैश्योपकारक’ के सम्पादक के रूप में
पत्रकारिता की सराहनीय सेवा की (मामगई, 2001)।[14]
गढ़ी सांपला
में जन्मे और झज्जर के सरकारी स्कूल में पढ़कर ख्याति प्राप्त करने वाले चौधरी
छोटूराम का हरियाणा की पत्रकारिता में किरदार कम नहीं आंका जा सकता। उन्होंने
झज्जर को अपनी कर्मभूमि बनाया तथा मातनहेल के रायसाहब से आर्थिक सहायता लेकर जाट
गजट उर्दू साप्ताहिक पत्र 1916
में रोहतक से प्रकाशित करना प्रारम्भ किया। इसके प्रथम अंक में जाट गजट की नीति को
स्पष्ट करते हुए छोटूराम ने लिखा है -
“चूंकि हिन्दू, मुसलमान और सिख किसानों का बहुत बड़ा भाग जाटों
का है इसलिए हम चाहते हैं कि यह अखबार हमारी बिरादरी की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति की तरफ सरकार का ध्यान आकृष्ट करने और हमारे
राजनीतिक अधिकारों को प्राप्त करने का माध्यम बनें।(जाट गजट,
1916 )” [15]
जाट गजट ने
किसान और खेतिहरों में राष्ट्रीय क्रांति के बीज बोये। इससे पहले चौधरी छोटूराम ने
कालाकाकंर नरेश राजा रामपाल सिंह के निजी सचिव रहते हुए हिन्दोस्तान अखबार का 1907 में संपादन किया था(सिंह,
2005)।[16]
जो उत्तरी भारत का अग्रणी हिन्दी भाषी अखबार था। चौधरी छोटूराम ने मिडल तक की
परीक्षा झज्जर के राजकीय स्कूल से प्राप्त की थी। उन्होंने राष्ट्रीय अखबारों में
भी लेख लिखे। अतः उन्हीं की राष्ट्रीयता की प्रवाह धारा के आगे मोहम्मद अली जिन्हा
भी नहीं टिक पाये। वे कलम के जरिये राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाते थे। चौधरी छोटूराम के
लेखों को बेचारा जमीदार पुस्तक में संकलित किया गया है(बेचारा
जमींदार, 2005)।[17]
जाट गजट जैसा
की नाम से ही परिचित होता है, एक जाति विशेष एवं किसानों की आवाज बनने की कोशिश करता हुआ दिखाई देता है।
असहयोग आन्दोलन के समय चौ. छोटूराम रोहतक कांग्रेस के अध्यक्ष थे। लेकिन महात्मा
गांधी की नीतियों के कारण कांग्रेस से अलग हो गये तथा यूनियनिष्ट पार्टी की
स्थापना कर ली। जिसका तत्कालीन पंजाब में बोलबाला था। प्रथम विश्व युद्ध की खबरों
को जाट गजट में जिलेवार विवरण के साथ प्रमुखता से छापी जाती थी(जाट गजट, खंड -2, 2019)[18]। जहां छोटूराम ने जाट गजट में
उर्दू भाषा में लिखा, वहीं दूसरी तरफ द ट्रिब्यून और सिविल
एवं मिलिट्री गजट में अंग्रेजी भाषा में लिखा (जाट गजट,
खंड -3, 2019)।[19] उनके अधिकतर लेख सामाजिक समस्याओं पर होते थे।
हरियाणा की पत्रकारिता को समृद्ध करने एवं आजादी के आंदोलन में चौधरी छोटूराम की
भूमिका इस क्षेत्र में विशेष रुप से प्रभावी रही है।
लाला लाजपतराय
ने उर्दू में ’वंदे मातरम’
नाम से एक साप्ताहिक पत्र निकाला था, लेकिन
आर्यसमाजी विचारधारा के अनुसार, राष्ट्रभाषा के रूप में
हिंदी के ही हिमायती थे। उन्होंने ‘यंग इंडिया’, ‘द पीपुल’,
‘वंदे मातरम’ जैसे समाचार-पत्रों का संपादन करके अपने संपादकीय कौशल
और लेखकीय क्षमता का भी परिचय दिया। मिस कैथरीन नाम की एक अंग्रेज महिला ने अपनी
पुस्तक ‘मदर इंडिया’ में भारतीयों की कटु आलोचना करते हुए उन्हें जंगली और बर्बर
चित्रित किया था। लाला लाजपतराय ने इसका मुंहतोड़ जवाब देने के लिए ‘अनहैपी इंडिया’
पुस्तक लिखी। इससे ब्रिटिश सरकार की कूटचाल का भंडाफोड़ हुआ और पुस्तक की सर्वत्र
सराहना हुई(वोहरा, 2009)।[20]
हरियाणा के
प्रसिद्ध नेता श्रीराम शर्मा ने कारागार के समय अपनी आवाज को जन-जन तक पहुँचाने के
लिए महसूस किया कि एक अखबार निकालना चाहिए जो देशभक्ति की तथा त्याग की भावनाओं का
प्रचार कर सके और साधारण लोगों में जागृति ला सके। महान् देशभक्त बाल गंगाधर तिलक
के प्रशसंक होने के कारण 18
मार्च 1923 को उर्दू भाषा में साप्ताहिक पत्र उन्ही के नाम
पर हरियाणा तिलक रोहतक से प्रारम्भ कर दिया। लेकिन कुछ समय पश्चात अखबार और प्रेस
झज्जर ले जाया गया और वर्ष 1930 तक वही से ही छपता रहा। बाबू
शिव नारायण भटनागर हरियाणा तिलक के सह सम्पादक थे, जो कुछ
दिन काम करने के पश्चात दिल्ली के दैनिक पत्र तेज में चले गए थे।
यह अखबार इस
क्षेत्र में राजनीतिक स्वतन्त्रता आन्दोलन की लड़ाई में सदैव सबसे आगे चल रहा था।
हर संकट से गुजरता हुआ खतरों का बड़ी बहादुरी से सामना किया। पंडित श्रीराम शर्मा, पंडित दुर्गाशंकर शर्मा, चौधरी
भरत सिंह, चौधरी बख्तावर सिंह, पंडित
भगवानदास तथा रामचन्द्र शर्मा रहे हैं। हरियाणा तिलक समाचार पत्र की भूमिका को उस
समय लोगों ने जमकर सराहना की।
स्वतंत्रता-आंदोलन
को गति देने के लिए पंडित नेकीराम शर्मा ने संदेश नामक साप्ताहिक पत्र निकाला, जो कभी दिल्ली से तो कभी भिवानी से छपता था।
राजनीतिक गतिविधियों में व्यस्त रहने के कारण और अंग्रेजी सरकार के दमनकारी कदमों
के कारण यह पत्र अनियमित निकलता रहा। इस पत्र में राष्ट्रीय आंदोलन के पक्ष में और
ब्रिटिश सत्ता के विपक्ष में समाचार छपते थे। उथल-पुथल की परिस्थितियों में संदेश
हरियाणा में स्वाधीनता आंदोलन का वाहक पत्र बन गया। इस पत्र के संपादक निरंजन
प्रसाद ‘अजित’ थे। दो वर्ष बाद यह पत्र बंद हो गया। इसके बाद सावधान पत्र निकला,
जिसके संपादक श्री मदन शर्मा थे। औदीच्य ब्राह्मण छपा तो दिल्ली से
परन्तु कुछ दिनों बाद रामदत्त शर्मा ब्यास के संपादकत्व में ज्योतिषी बाबा
शिवप्रकाश द्विवेदी ने करनाल से प्रकाशित करना आरंभ कर दिया(मामगई,
2001)।[21]
इन सभी समाचार पत्रों में उस समय में लोगों को जागरूक किया व आजादी के आंदोलन को
एक नई धार देने का काम किया।
सन् 1926 में भक्ति नाम से मासिक पत्रिका निकली। इसकी
संपादिका सूरदेवी प्रभाकर थीं। यह भक्ति आश्रम रेवाड़ी से छपती थी। जैसा कि इसके
नाम से ही स्पष्ट है कि उसकी मुख्य ध्वनि धार्मिक थी। उधर जगाधरी(अम्बाला छावनी)
से पंडित जगन्नाथ कौशल ने ब्राह्मण नामक पत्र निकाला, जिसमें
ब्राह्मणों के हितपरक सामग्री तथा ब्राह्मण सभाओं के समाचार प्रकाशित होते थे। सन्
1928 में रमेश कौशिक द्वारा ज्योतिषी समाचार रेवाड़ी से आरंभ
हुआ जो ज्योतिष शास्त्र सम्मत पत्र था। इसके संपादक पंडित प्रहलाद दत्त शर्मा थे।
उर्दू प्रधान हरियाणा में हिंदी पत्र निकालकर पंडित प्रहलाद दत्त शर्मा ने
स्वभाषा-प्रेम और ज्योतिष के प्रति लगाव का अच्छा परिचय दिया। इसी वर्ष भिवानी से
मेड प्रभाकर मासिक पत्र अस्तित्व में आया, जिसके संपादक
नानूराम शर्मा थे(मामगई, 2001)।[22]
अगले साल जून 1929 में राव गणेशीलाल द्वारा ‘अहीर हितैषी’ रेवाड़ी
से शुरू हुआ और दिसंबर 1929 से नया पत्र ‘यादव हितैषी’ प्रकाश
में आया। ‘अहीर हितैषी’ का दिसंबर में ‘यादव हितैषी’ में विलय कर दिया गया। इसके
प्रकाशक शोभाराम यादव थे। यह पत्र भी भक्ति प्रेस रेवाड़ी से छपता था। यादव जाति का
सार्वदेशिक महत्त्व रखने वाला यह पत्र तत्कालीन परिस्थितियों का प्रतिबिम्ब प्रस्तुत
करता है।
सन् 1930 में अंबाला नगर से ‘आत्मानंद’ मासिक पत्र
छपने लगा। जिसमें जैन धर्म संबंधी लेख लिखे जाते थे। इसको आत्मानंद जैन महासभा,
पंजाब संचालित करती थी। इसका मूल स्वर सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक होता था। इसके मानद संपादक कीर्तिप्रसाद जैन थे।
पंजाब सरकार
की दमनकारी नितियों के कारण 15 सितम्बर 1939 से हरियाणा तिलक का पंजाब में प्रवेश
ही बंद कर दिया और यह पत्र पंजाब में वितरित नहीं हो सका। फलस्वरूप हरियाणा तिलक
गाजियाबाद, ज़िला मेरठ से जलावतन के नाम से छपने लगा। 10 जनवरी 1940 से 23 अक्टूबर 1940 तक जलावतन जारी रहा। मेरठ में जब क्रान्तिकारियों के प्रेस को बन्द कर
दिया गया तो इनका नाम देशभक्त रखकर दिल्ली से प्रकाशित कर दिया(रल्हन एवं अन्य, 2009 )।[23]
व्यक्तिगत सत्याग्रह में चौथी बार कैद होने के कारण अखबार को फिर कुछ महीनों के
लिए स्थगित कर दिया गया। तत्कालीन सरकार को हरियाणा में इस समाचार पत्र द्वारा
अपना विरोध तथा आलोचना सहन करने की शक्ति नहीं थी।
सन् 1942 में श्रीराम शर्मा को पाँचवीं बार जेल भेज
दिया गया। अंग्रेज़ भारत छोड़ो आन्दोलन देश में पूरे यौवन पर था। ऐसे वातावरण में
देशभक्त जैसे अखबार को जारी रहने की शक्ति कहां थी। पूर्ववर्ती पश्चिमी पंजाब के
इस अखबार ने अपने तीसरे नाम की हस्ती भी गुम कर दी। इस समय तो बड़े-बड़े राष्ट्रीय
समाचार पत्रों को भी जीवित रहना कठिन हो गया था। अन्तिम आंदोलन बड़ा था। परिणामतः
अखबार भी बड़े लम्बे समय के लिए बंद हो गया[24]
तथा मार्च 1947 में हरियाणा तिलक कई वर्षों के बाद अपने असली
नाम से अपने जन्म स्थान रोहतक से प्रकाशित होना प्रारम्भ हो गया।(नैयर, 2015)[25]
आर्य समाज के
पुरोधा, दार्शनिक स्वामी श्रद्धानन्द आर्य समाज के
प्रचार-प्रसार के लिए दिल्ली से 1923 में वीर-अर्जुन समाचार
पत्र प्रकाशित करना प्रारम्भ किया। श्रद्धानंद के पश्चात इसका संपादन इंद्र विद्या
वाचस्पति ने किया। 1934 में इसे बंद करना पड़ा। जब दोबारा
शुरु किया गया तथा इसका नाम वीर-अर्जुन रखा गया। इस पत्र में आर्य समाज की
गतिविधियों को विशेष रूप से जगह दी गई(प्रभाकर, 1976)[26]।
सन् 1928 तक पहुँचते-पहुँचते पंजाब और हरियाणा में
समाचार पत्रों का विकास हो चुका था। इनके माध्यम से भी राजनीतिक चेतना के प्रसार
में पर्याप्त सहायता मिली। इस युग में उर्दू और हिन्दी में छपने वाले समाचार पत्र
तथा पत्रिकाएं अधिकतर राष्ट्रीय भावनाओं की प्रतीक थी। हरियाणा तिलक ने समय-समय पर
अंग्रेजी सरकार की चेतावनी मिलते रहने पर भी बड़ी निर्भीकता से अंग्रेजी प्रशासन की
आलोचना की (प्रभाकर, 1976)।[27]
भारत में
उर्दू-हिंदी अखबारों का विभाजन धर्म के आधार पर नहीं हुआ था। सभी का उद्देश्य
राष्ट्रीय चेतना उत्पन्न कर स्वाधीनता प्राप्त करना था। उर्दू अखबारों का हिंदी
संस्करण निकालने वाले संपादक भी हिंदू ही थे। यद्यपि अंग्रेज सरकार ने फारसी लिपि
तथा उर्दू भाषा का संबंध इस्लाम धर्म एवं मुस्लिम संप्रदाय के साथ तथा हिंदी भाषा
एवं देवनागरी लिपि का संबंध हिंदू धर्म तथा हिंदुओं के साथ जोड़ने का प्रयास किया
था। लेकिन तब भी प्रतिक्रियास्वरूप पत्रों के हिंदी तथा उर्दू संस्करणें का, विशेष रूप से हिंदी समाचार पत्रों का भी बहुत
विकास हुआ। इन पत्रों ने भारत के प्राचीन सांस्कृतिक ग्रंथों को प्रकाशित कर
भारतीय जन-मानस में भारतीय संस्कृति के गौरव की महत्ता को प्रतिष्ठित किया(अरविंद,2011)।[28]
सातरोड़ निवासी
ठाकुरदास भार्गव ने 1936
में हिसार से ग्राम सेवक साप्ताहिक पत्र निकाला, जिसके
सम्पादक लाला हरदेव सहाय थे। ग्राम सेवक में लाला हरदेव ने समाज की जातियों में
आपसी द्वेष व दुर्भावना पर जागरूकता पैदा करने, बेगार के
शिकार, विशेषकर दलितों को, सरकारी
कर्मचारियों के कारनामों पर, पंजाब में प्रस्तावित बूचड़खाने
का विरोध करने, शिक्षा व्यवस्था पर टिप्पणी, लोकतन्त्र को ही श्रेष्ठ तन्त्र मानना, सातरोड़ स्कूल
का पथ-प्रदर्शक, शराब-सेवन का विरोध, हिन्दी
भाषा का समर्थन, पुस्तकालयों के महत्त्व पर बल, ग्रामोद्योग का प्रोत्साहन, सट्टेबाजी का विरोध,
आदि विषयों पर बेबाक लिखा तथा समाज को नई दिशा दी(जुनेजा एवं अन्य2011)।[29]
इस प्रकार लाला जी जीवन भर स्वाधीनता आन्दोलन में रहते हुए भी पत्रकारिता के
द्वारा हरियाणा में राजनीतिक जागरण का शंख फूंकते रहे।
इन्होंने बाद
में गोधन तथा सन् 1941
में सेवक पत्र भी निकाला था। गोधन समाचार पत्र में गोरक्षा हेतु गाय को स्वतंत्रता
का आधार मानना, मांस निर्यात पर आपत्ति, गौ की दुर्दशा पर प्रतिक्रिया, वनस्पति घी के
उत्पादकों पर कटाक्ष, गोरक्षकों के प्रति श्रद्धांजलि,
सरकार पर राष्ट्रध्वज के अपमान का आरोप, गो
साहित्य के प्रकाशन पर बधाई, गो मांस के निर्यात पर दु:ख
प्रकट, राजनीतिज्ञों के नैतिक पतन पर प्रतिक्रिया, गोवंश की रक्षा हेतु आह्वान, साधु-सन्तों के महत्त्व
की गाथा इत्यादि विषयों पर खुलकर लिखा(जुनेजा एवं अन्य,
2011)।[30]
लाला जी ने पूरे भारत में गोवध के आंकड़े इकट्ठे किये। इस विषय में 18 दिसम्बर 1956 को गोवध में लिखते हैं- भारतवर्ष में
गोवध की औसत, प्रतिवर्ष 1.25 करोड़ जान
पड़ती है(जुनेजा एवं अन्य, 2011)।[31]
राव मोहरसिंह
ने जाट गजट, रोहतक से
प्रभावित होकर गुड़गांव में यादव जमींदार उर्दू साप्ताहिक समाचार पत्र 1939 ई. में चलाया। जो यादव समाज में जन चेतना लाने का एक प्रयास था। मिलाप
समाचार पत्र लाहौर से 11 सितम्बर 1927
में आरम्भ हुआ। यह हिन्दी एवं उर्दू दोनों भाषाओं में समान रूप से प्रकाशित होता
था। 23 सितम्बर 1949 में इसका सम्पादन
श्री यश ने किया था। इस पत्र को अग्रेजी सरकार के साथ-साथ पंजाब सरकार का भी शिकार
होना पड़ा। क्योंकि हिन्दी आन्दोलन में इसने आर्य सत्याग्रहियों की गतिविधियों को
जगह दी थी। सन् 1943 में कुरुक्षेत्र से धर्मक्षेत्र,
सफीदों से कायाकल्प (मासिक), तथा अम्बाला से
विश्वव्यापी सनातन धर्म मासिक पत्र प्रकाशित हुए(जुनेजा एवं
अन्य, 2011)।[32]
1947 तक की पत्रकारिता मिशनरी भावना से ओत-प्रोत रही तथा
सरकारी भाषा अंग्रेजी, गुरुमुखी तथा उर्दू भाषा रही। विश्वम्भर
शर्मा ने भारत प्रताप अखबार निकाला। बाबू बालमुकुन्द गुप्त ने हरियाणा में ही नही
कलकता में रहकर अपनी पत्रकारिता से देश सेवा की है। चौधरी छोटू राम की पत्रकारिता
जो किसान, मजदूर की आवाज थी, एक तरह से
सभी किसानों को जगाने का काम किया था।
स्वतंत्रता संग्राम पर हरियाणा
की पत्रकारिता का प्रभाव-
हरियाणा की भूमि से निकलने वाले
जैन प्रकाश, हरियाणा अखबार,
भारत प्रताप, भारत मित्र, गौड़ ब्रहाम्ण, सुदर्शन, जाट
गजट, द ट्रिब्यून, भक्ति, ब्राह्मण, अहीर हितैषी, यादव
हितैषी, आत्मानंद, ग्राम सेवक, गोधान, सेवक पत्र, यादव
जमींदार, धर्मक्षेत्र, कायाकल्प समाचार
पत्रों न केवल इस क्षेत्र में लोगों को जागरूक किया बल्कि आजादी के आंदोलन में
लोगों को भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उस समय के समाचार पत्रों ने अशिक्षित
भारतीय समाज जातीय द्वेष, नशे, सरकारी
कर्मचारियों के आचरण व्यवहार, ब्रिटिश कंपनी की कुनीतियों के
खिलाफ जमकर आवाज उठाई। समाचार पत्रों ने समाज में व्याप्त विभिन्न कुप्रथाओं के
बारे में समाज की चेतना को जगाते हुए स्वतंत्रता संग्राम में सभी को एक साथ मिलकर
संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। समाचार पत्रों में प्रकाशित लेख व समाचारों ने
ब्रिटिश सरकार के खिलाफ उद्वेलित किया।
समाचार पत्रों
के साथ साथ हरियाणा की माटी से जियालाल प्रकाश,
पंडित दीनदयाल शर्मा, चौधरी छोटूराम, श्री रामनाथ शर्मा, नेकीराम शर्मा, सुरदेवी, जगन्नाथ कौशल, विश्वभरदास
शर्मा, कन्हैयालाल, राधाकृष्ण मिश्र,
बाबू शिवनारायण भटनागर, पंडित श्रीराम शर्मा,
पंडित दुर्गाशंकर शर्मा, चौधरी भरत सिंह,
बाबू बाल मुकंद गुप्त, चौधरी बख्तावर सिंह,
पंडित भगवानदास, रामचंद्र शर्मा, रामदत शर्मा, शिवप्रकाश द्विवेदी, रमेश कौशिक, पंडित प्रहलाद दत शर्मा, राव गणेशीलाल, शोभाराम यादव, स्वामी
श्रद्वांनद, ठाकुरदास भार्गव, राव
मोहरसिंह जैसे यशस्वी पत्रकार व संपादक हुए हैं जिन्होंने आजादी के आंदोलन में
हरियाणा की इस भूमि से आंदोलन का शंखनाद किया व ब्रिटिश सरकार की क्रुरताओ के
खिलाफ अपनी कलम चलाकर लोगों को इस आंदोलन से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। अध्ययन से
प्रमाणित होता है कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अंग्रेज़ सरकार की ओर से तमाम तरह
के अवरोध पैदा करने के बाद भी स्वतंत्रता सेनानियों ने हरियाणा के रोहतक, झज्जर, हिसार, रेवाड़ी, कुरुक्षेत्र, करनाल, गुड़गांव
सहित लगभग सभी मुख्य शहरों से समाचार पत्र पत्रिकाएं शुरू की। उस समय लोगों को
सांस्कृतिक एवं सामाजिक रूप से लोगों को शिक्षित करने के साथ देश के स्वाधीनता के
लिए आम जनमानस को जागरूक करने के लिए पत्र-पत्रिकाएं निकालीं। इन पत्रिकाओं व उस
समय के संपादकों व पत्रकारों ने लोगों के दिल-ओ-दिमाग पर अमिट छाप छोड़ी। इसी का
परिणाम था कि देश के अन्य हिस्सों की तरह पंजाब के लोगों ने भी आजादी के आंदोलन
में बढ़-चढ़कर भाग लिया और पूर्ववर्ती पंजाब के वर्तमानकालिक हरियाणा क्षेत्र में भी
पत्रकारिता राष्ट्रीय जनजागरण में अपना उल्लेखनीय योगदान दे पाई।
निष्कर्ष: द्वितीय स्रोत के रूप में उपलब्ध विभिन्न आलेखों के विवेचन के
आधार पर प्रस्तुत शोध-पत्र हरियाणा क्षेत्र में स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारिता
के योगदान को एक समरूपता से प्रस्तुत कर पा रहा है। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है
कि स्वतंत्रता से पूर्व पंजाब के भाग के रूप में पहचाने जाने वाले इस हरियाणा क्षेत्र
में सक्रिय पत्रकारिता हुई। जो सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य उभरकर आता है, वह यह है कि अमुक क्षेत्र में उस समय पत्रकारिता
राष्ट्रीय स्तर की मुख्यधारा पत्रकारिता के समानांतर ही थी। हिन्दी पत्रकारिता ने
स्वतंत्रता संग्राम में बडी भूमिका की जो परम्परा रही, उसमें
इस क्षेत्र का व्यापक योगदान था। यह विवेचन यह स्पष्ट करता है कि अमुक क्षेत्र में
पत्रकारिता बहुआयामी थी। इसमें लेखन की विधाओं से लेकर, शैली
और विषय चयन को लेकर बहुत विविधता देखने को मिलती है। उस समय की पत्रकारिता
स्वाधीनता आंदोलन के लिए एक मशाल बन गई।
सम्पादक-द्वय : माणिक एवं जितेन्द्र यादव, चित्रांकन : सत्या कुमारी (पटना)
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