शोध आलेख :- भारत की भाषायी विविधता में स्वास्थ्य संचार : चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ / अजय कुमार तिवारी एवं डॉ. कुंवर सुरेंद्र बहादुर

भारत की भाषायी विविधता में स्वास्थ्य संचार : चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ
- अजय कुमार तिवारी एवं डॉ. कुंवर सुरेंद्र बहादुर

शोध सार : नेल्सन मंडेला ने अनुसार  यदि आप किसी व्यक्ति से उस भाषा में बात करते हैं, जिसे वह समझता है, तो यह बात उसके दिमाग में चली जाती है। अगर आप उससे, उसकी भाषा में बात करते हैं, तो वह उसके दिल में उतर जाती है। भारत के बारे में एक कहावत बहुत प्रचलित हैकोस कोस पर बदले पानी और चार कोस पर वाणी। अर्थात् हमारे देश भारत में हर एक कोस की दूरी पर पानी का स्वाद बदल जाता है और चार कोस की दूरी पर भाषा यानी वाणी भी बदल जाती है। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में भी 22 भाषाएँ शामिल की गई हैं। इसके अतिरिक्त आम बोलचाल की भाषा की अनेक उपभाषाएँ एवं अनगिनत बोलियां भी प्रयोग की जाती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में अशिक्षा तथा उच्च शिक्षा का अभाव अब भी एक समस्या के रूप में अपनी जड़ें जमाये हुए है। स्वास्थ्यसंचार से संबंधित सामग्री, साधारणतः अंग्रेजी भाषा में ही उपलब्ध है, साथ ही स्वास्थ्य शिक्षा का माध्यम भी अभी अंग्रेजी भाषा ही है। उपर्युक्त सामाजिक यथार्थ को देखते हुए स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं एवं रोगियों के बीच संवाद में बहुधा, अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त सामान्य जनता के स्वास्थ्य मानकों में सुधार और विभिन्न महामारी के प्रसार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से बहुत सारे सार्वजनिक स्वास्थ्य जागरूकता संदेशों को सम्प्रेषित करने की भी आवश्यकता होती है। भारत में भाषायी विविधता की इस सामाजिक वास्तविकता को देखते हुए स्वास्थ्य जागरूकता के सन्देश आमतौर पर स्थानीय भाषाओं में तथा लोक मीडिया द्वारा प्रसारित किये जाते रहे हैं। वर्तमान में इंटरनेट एवं मशीनी अनुवाद जैसी सुविधाएँ उपलब्ध होने तथा ऑक्सीजन टीवी जैसे कुछ अभिनव प्रयोगों के द्वारा इस समस्या के समाधान का प्रयास किया जा रहा है।


बीज शब्द : स्वास्थ्य संचार, भाषायी विविधता, स्वास्थ्य संचार और मीडिया, स्वास्थ्य जागरूकता।


मूल आलेख : स्वास्थ्य संचार एक बहु-विषयक अध्ययन का क्षेत्र है, जो आम आबादी के स्वास्थ्य और कल्याण को आगे बढ़ाने वाले व्यवहार, नीतियों एवं प्रक्रियाओं को बढ़ावा देने के लिए संचार रणनीति बनाने एवं रचनात्मक रूप से लागू करने में सहायक होता है।[1] स्वास्थ्य संचार में रोगियों एवं सामान्य आबादी के स्वास्थ्य में सुधार पर केंद्रित पारस्परिक या जनसंचार गतिविधियां शामिल होती हैं। भारत में स्वास्थ्य संचार को लेकर शोध अभी भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है, ऐसे में बहुत से संचार निर्णय बिना किसी आधारभूत शोध जानकारी के अभाव में निर्णयकर्ताओं के स्वविवेक पर ही आधारित होते हैं।


भारत सांस्कृतिक एवं भाषायी विविधता वाला देश है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारतीय लोगों द्वारा बोली जाने वाली कुल 121 भाषायें हैं, इनमें प्रमुख भाषायें 22 हैं। प्रत्येक क्षेत्र में एक भाषा मुख्य रूप से बोली जाती है, लेकिन उसके साथ-साथ बहुत सी उपभाषाएँ भी बोली जाती हैं, जिन्हें बड़ी संख्या में लोग अपनी मातृभाषा के रूप में बताते हैं।


2011 की जनगणना के अनुसार 43.63 प्रतिशत भारतीय अपनी मातृभाषा हिंदी बोलते हैं। बंगाली 8.03 प्रतिशत बोलने वालों के साथ सूची में दूसरे स्थान पर है। इसके बाद मराठी 6.86 प्रतिशत बोलने वालों के साथ तीसरे, तेलुगु 6.7 प्रतिशत बोलने वालों के साथ चौथे और तमिल 5.7 प्रतिशत बोलने वालों के साथ पांचवे स्थान पर है। कुल मिलाकर 22 अनुसूचित भाषाओं में से 13 को कम से कम 1 प्रतिशत जनसंख्या द्वारा मातृभाषा के रूप में सूचित किया गया है। संस्कृत भाषा को छोड़कर, कम से कम 10 लाख लोगों द्वारा 22 अनुसूचित भाषाओं में से प्रत्येक को मातृभाषा के रूप में सूचित किया गया था। संस्कृत एकमात्र ऐसी भाषा है जो लगभग 25000 लोगों द्वारा बोली जाती है।[2] इस परिप्रेक्ष्य में ये अतिआवश्यक हो जाता है, की स्वास्थ्य संचार नीतियाँ और कार्यक्रम इस महत्वपूर्ण तथ्य को ध्यान में रखकर बनाये जायें।


स्वास्थ्य संचार को मुख्यतः दो भागों में बाँटा जा सकता है, जो कि निम्न है -

1. स्वास्थ्य प्रदाताओं और रोगियों के बीच में पारस्परिक संवाद।

2. स्वास्थ्य प्रदाता संस्थाओं द्वारा आम जनमानस के साथ जनसंचार माध्यमों का उपयोग कर किये जाने वाला सार्वजनिक स्वास्थ्य संचार।[3]


इसमें स्वास्थ्य प्रदाताओं द्वारा रोगियों के साथ किये जाने वाले संवाद में, एक ही भाषा बोलने के कारण चिकित्सा में कई बार, अपर्याप्त संचार का होना, एक आम बाधा के रूप में उभरकर सामने आया है। एक उदाहरण के तौर पर कोविड-19 के रोगियों के आकस्मिक चिकित्सा भर्ती के दौरान यह तथ्य निकल कर सामने आया कि चिकित्सक ट्रायल प्रोटोकॉल का अनुपालन कर रहे थे, लेकिन रोगी जल्द से जल्द भर्ती करने की मांग कर रहे थे। ऐसी परिस्थिति में स्थानीय भाषा का आना रोगियों की अपेक्षाओं और सही चिकित्सकीय प्रक्रिया के अनुपालन करने के बीच में तालमेल बैठाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। कम अनुभव या कम शिक्षा वाले व्यक्ति को एक जटिल चिकित्सा प्रक्रिया की व्याख्या करना चुनौतीपूर्ण तो होता ही है, इसके अतिरिक्त यह कभी-कभी कुछ भाषाओं द्वारा चिकित्सा घटना की व्याख्या करने के लिए समान शब्दों के होने के कारण अधिक जटिल हो जाता है। ऐसे में स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को अक्सर प्रकृति, फूलों या कुछ स्थानीय उपमानों का प्रयोग करके शारीरिक प्रक्रियाओं की व्याख्या करनी पड़ती है।


इसके अतिरिक्त सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों परबाईस्टैंडर्सएक ऐसी अन्य आम समस्या के रूप में उभर कर सामने आये हैं, जिसका सामना चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य कर्मियों को क्लिनिक या आपातकालीन स्थिति में करना पड़ता है। बाईस्टैंडर्स आपातकालीन विभाग में एक मरीज के परिवार और दोस्त होते हैं। एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार चिकित्सकों ने विभिन्न विचारों, अपेक्षाओं वाले कई लोगों की उपस्थिति से स्वास्थ्य संचार के जटिल होने एवं नकारात्मक रूप से प्रभावित होने की बात कही है।[4] 


स्वास्थ्य संचार का दूसरा महत्वपूर्ण भाग, सार्वजनिक स्वास्थ्य संचार है। सार्वनजिक स्वास्थ्य संचार में जनसंचार माध्यम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जनसंचार माध्यम जैसे कि प्रिंट मीडिया, टेलीविज़न, रेडियो एवं परंपरागत लोक मीडिया, स्वास्थ्य संवर्धन के विभिन्न पहलुओं के बारे में लोगों को जागरूक करके रोग की रोकथाम, रोग को फैलने से रोकने एवं उसके उचित उपचार के बारे में जागरूकता पैदा करने में सहायक सिद्ध होते हैं। भारत की भाषायी विविधता को देखते हुए देश के आज़ाद होने के पश्चात् स्वास्थ्य संचार में लोक मीडिया का बहुत अच्छा उपयोग किया गया है। प्रारम्भ में लोक मीडिया जैसी विधा भारत के विभिन्न प्रदेशों में अनेकों स्वास्थ्य सूचनायें पहुँचाने के लिए ग्रामीण इलाकों में उपयोग की जाती रही हैं। इसका उपयोग मुख्यतः सूचना देने, प्रेरित करने, शिक्षित करने एवं प्रभावित करने के लिए किया गया है। व्यवहार और सामाजिक परिवर्तन लाना भी इसके उद्देश्यों में शामिल रहे हैं। इन्ही उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य साक्षरता को बढ़ाने में लोक मीडिया घटकों का उपयोग किया गया है।


इस संदर्भ में आज़ादी के बाद तेजी से बढ़ती आबादी पर लगाम लगाने के लिए परिवार नियोजन की विभिन्न योजनाओं में लोक कलाओं का बहुत अच्छा उपयोग किया गया है। परिवार नियोजन के लाभ और उससे जुड़े संदेशों को आम जनता तक उन्हीं की भाषा में पहुँचाने के लिए, SIFPSA (स्टेट इनोवेशन इन फैमिली प्लानिंग सर्विसेज प्रोजेक्ट एजेंसी) ने उत्तर प्रदेश की विविध लोक कलाओं जैसे नौटंकी, कठपुतली नाच, क़व्वाली, आल्हा, बिरहा, जादूगरी आदि का सम्यक् उपयोग किया है।[5]


पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में जापानीज इन्सेफेलाइटिस हर साल एक महामारी की तरह सामने आती थी। भाषायी विविधता के कारण लोक मीडिया के नवीनतम प्रयोग के एक उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश सरकार ने दस्तक अभियान के माध्यम से इसे नियंत्रित करने का सफल प्रयास किया। इस अभियान में जनसंचार के अन्य माध्यमों के अलावा लोक माध्यमों जैसे नौटंकी, लोकगीतों, सोहर इत्यादि का प्रयोग करके हाट बाज़ारों में स्वास्थ्य सम्बन्धी संदेशों को लोगों तक पहुँचाया गया था।[6]


इसके उपरांत भारत में जनसंचार माध्यमों के तीव्र विकास के कारण स्वास्थ्य संचार से सम्बंधित संदेशों को प्रसारित करने में अत्यधिक सहयोग मिला है। प्रारंभिक समय में रेडियो एवं टेलीविज़न द्वारा स्थानीय भाषाओं में परिवार नियोजन, उत्तम स्वास्थ्य के लिए पालन करने योग्य नियमों इत्यादि का प्रसारण स्थानीय भाषाओं में किया जाता था। आज भारत में देश की विभिन्न भाषाओं में अनेक समाचार पत्र एवं पत्रिकाएं, टेलीविज़न चैनल्स उपलब्ध हैं। इन सभी माध्यमों द्वारा स्वास्थ्य सम्बंधित सूचनायें भी स्थानीय भाषाओं में मिल जाती हैं। वर्तमान समय में बहुतायत सूचना उपलब्ध होने पर जो समस्या सामने रही है वो इन स्वास्थ्य सूचनाओं के सत्यापन एवं सत्यता इत्यादि को लेकर है, जिसके बारे में जनजागरण अत्यन्त आवश्यक हो जाता है। कोरोना महामारी के दौरान झूठी एवं अर्धसत्य सूचनाओं के प्रसार को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना महामारी को एकइनफोडेमिकके रूप में भी सम्बोधित किया था।[7] भारत जैसे भाषायी विविधता वाले देश में सोशल मीडिया के दौर में ऐसी सूचनाओं का प्रसार रोकना, एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया है। सार्वजनिक स्वास्थ्य संचार के लिए किये गये उपरोक्त प्रयास यद्यपि स्वास्थ्य सूचनाओं को साझा करने में तो सहायक सिद्ध हुये हैं, लेकिन इन संचार प्रयासों का कोई शोध या वैज्ञानिक आधार होकर, ये केवल नीति निर्धारकों एवं संचार विशेषज्ञों की व्यावहारिक बुद्धिमत्ता एवं विदेशी शोधों से ही प्रेरित रहे हैं। भारत में भाषायी विविधता के सन्दर्भ में इन संचार कार्यक्रमों के व्यावहारिक प्रभाव को चिन्हित करते हुए अभी तक कोई प्रमाणिक अध्ययन उपलब्ध नहीं है, जिसके द्वारा भाषायी विविधता के सन्दर्भ में इन संचार संदेशों के प्रभाव को मापा गया हो।


भारत की भाषायी विविधता के कारण स्वास्थ्य संदेशों को विविध भाषाओं में प्रसारित करना अति आवश्यक हो जाता है, इस बात का उल्लेख करते हुए डॉ. ललित नारायण (2013) अपने शोध पत्र में कहते हैं किसामान्य परिस्थितियों के लिए जनसामान्य की भाषा में स्वास्थ्य सम्बन्धी पुस्तकें एवं रोगी सूचना पत्रक क्षेत्र में प्रचलित सामान्य भाषाओं में तैयार किये जा सकते हैं[8]


डॉ. कृष्ण कांत शर्मा 2018 के अपने शोध पत्र में बिहार की सामुदायिक स्वास्थ्य सेवाओं पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं किबिहार में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता एवं पहुँच को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने में बिहार की भाषायी विविधता काफी हद तक जिम्मेदार है। बिहार में स्वास्थ्य संदेशों को प्रभावी बनाने से रोकने वाले मुख्य कारणों में दो मुख्य कारण है। पहला कारण पांच प्रमुख स्थानीय भाषाओं, मगही, भोजपुरी, मैथिली, अंगिका और वज्जिका की उपस्थिति एवं दूसरा, सम्पूर्ण चिकित्सा शिक्षा अनुसंधान, प्रकाशन सहित स्वास्थ्य प्रणाली, रसद और दवाईयां अंग्रेजी भाषा में होना है। वहां किसी भी सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र में अनुवादकों की कोई सेवा नहीं है, जो रोगियों एवं स्वास्थ्य कर्मियों के उपयुक्त संचार को रोकता है। रोगियों, परिचारकों एवं स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिए सुझाई गई दवाओं और उपचार को समझना एवं समझाना एक कठिन कार्य के रूप में सामने आता है। ऐसे में उचित संचार की कमी होने पर प्रतिकूल प्रभावों की गुंजाइश हमेशा से रहती है।[9]


स्वास्थ्य संचार में लोक भाषा की महत्ता को रेखांकित करते हुए डॉ. अजित कुमार मिश्रा (2020) अपने शोध पत्र में कहते हैं कि बोधगम्यता एक सफल जनसंचार और सम्बंधित व्यवहार परिवर्तन की कुंजी है तथा स्वास्थ्य संचार कोई अपवाद नहीं है। किसी भी स्वास्थ्य संचार रणनीति के सफल होने के लिए भारत के भाषायी, सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक विविधताओं में अधिक अंतर्दृष्टि की आवश्यकता रहती है। कोविड-19 के महामारी के रूप में फैलने के दौरान प्रयोग में किये गये विभिन्न शब्दों के विश्लेषण एवं लोगों पर उसके प्रभाव के अध्ययन में ये बात उभर कर सामने आयी कि स्वास्थ्य संचार में भाषा की बारीकियों पर ध्यान केंद्रित करना अति आवश्यक हो जाता है। इसलिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि शब्दावली निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सहायक सिद्ध हो। डिज़ाइन और डिलीवरी स्वास्थ्य सूचना के लिए जटिल प्रक्रियायें हैं, क्योंकि स्वास्थ्य संचार विभिन्न प्रकार के होते हैं, इस जटिलता को दूर करने के लिए एक शक्तिशाली तरीका अपनी कार्य योजना को एकीकृत एवं समावेशी और भाषा को लोक संचार के लिए प्रभावी बनाना है।[10]


उपर्युक्त स्वास्थ्य संचार की चुनौतियों के समाधान के रूप में अनेक प्रयास किये जा रहे हैं, जिसमें कुछ प्रमुख प्रयास निम्न हैं। अनेक राज्यों में सामुदायिक स्वास्थ्य सेवा में एवं कुछ स्वास्थ्य सेवा प्रदाता प्रतिष्ठानों द्वारा, भारत में भाषायी विविधताओं के मध्य स्वास्थ्य संदेशों को रोगियों तक प्रभावी रूप से पहुँचाने में ऑक्सीजन हेल्थकेयर द्वारा लॉन्च किया गया ऑक्सीजन टीवी को भारत के पहले और एकमात्र कैप्टिव ऑडियंस नेटवर्क के रूप में उपयोग किया जा रहा है। ऑक्सीजन टीवी चैनल विशेष रूप से डॉक्टर के प्रतीक्षालय और उसके लिए तैयार किया गया। यह डिजिटल एलसीडी टीवी है, जो डॉक्टर के प्रतीक्षालय में बैठे रोगियों, एवं उनके साथ आये व्यक्तियों से स्वास्थ्य और जीवन शैली पर केंद्रित सूचनाएँ लोक भाषा में साझा करता है। यह स्वास्थ्य सेवा प्रदाता एवं रोगियों के मध्य संचार के क्षेत्र में किया गया एक अभिनव प्रयोग है, जिसके प्रभाव को समझना शायद विविध भाषाओं में प्रभावी स्वास्थ्य सूचना रोगियों के साथ साझा करने में सहायक सिद्ध होगा।[11]


नवीनतम सूचना संचार तकनीक का उपयोग कर विभिन्न भारतीय भाषाओं में टेलीकंसल्टेशन देने कीप्रैक्टोनामक स्वास्थ्य सूचना प्रदाता संस्था ने अभिनव प्रयोग किया है। यह पहल 22 आधिकारिक भाषाओं और अनगिनत बोलियों वाले देश में भाषा की बाधाओं को तोड़ने के बारे में एक प्रयास है। भारत की आबादी का केवल 10% से थोड़ा अधिक हिस्सा ही अंग्रेजी में संवाद कर सकता है तथा शहरी इलाकों, टियर 2, टियर 3 शहरों और ग्रामीण इलाकों के बाहरी इलाकों में रहने वाले लोगों के बीच डिजिटल देखभाल सेवाओं के पहुंचने का यह एक प्राथमिक कारण रहा है।


2021 की शुरुआत में हिंदी, मराठी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और बंगाली सहित 15 भाषाओं के साथ प्रैक्टो की स्थानीय भाषा सेवा ने अपनी शुरुआत की एवं 2021 में प्लेटफॉर्म पर कुल टेलीकंसल्टेशन का 30% हासिल किया। प्रैक्टो ऐप पर सबसे लोकप्रिय भाषाओं में कन्नड़, तमिल, तेलुगु और मराठी हैं।[12]


सार्वजनिक स्वास्थ्य संचार में इंटरनेट क्रांति ने भी आमूलचूल परिवर्तन किये हैं। आजकल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एवं मशीन लर्निंग के विकास के साथ विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में सूचना पत्रक इत्यादि तैयार करना अत्यधिक सरल हो गया है। डॉ. हिलाल अल शम्सी (2020) अपने शोध पत्र में भाषायी बाधाओं को दूर करने में मशीन ट्रांसलेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल की सलाह देते हुए कहते हैं कि भाषा की बाधाएं उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवा की डिलीवरी को बहुत चुनौतीपूर्ण बना सकती हैं। स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता, रोगी सुरक्षा और चिकित्सा पेशेवरों और रोगियों की संतुष्टि पर उनका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कुछ स्वास्थ्य संगठन इन समस्याओं के समाधान के लिए दुभाषिया सेवाएं प्रदान करते हैं। ये सेवाएं अप्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य सेवाओं की लागत में वृद्धि करती हैं और उपचार की अवधि को बढ़ाती हैं। गूगल अनुवाद और मेडिबेबल जैसे ऑनलाइन अनुवाद उपकरण, इन चुनौतियों पर काबू पाने के लिए संभावित समाधान प्रस्तुत करते हैं। वे अपने शोध में गूगल अनुवाद को और अधिक चिकित्सा वाक्यांशों के साथ नए अपडेट और मेडिबेबल एप्लीकेशन के लिए और अधिक भाषाओं को शामिल करने की आवश्यकता बताते हैं।[13] इन अत्याधुनिक सूचना एवं जनसंचार माध्यमों का उपयोग करके स्वास्थ्य संचार में सदेशों के आदान-प्रदान को अधिक रुचिकर एवं बोधिगम्य बनाने की दिशा में विशेष शोध की आवश्यकता है।


निष्कर्ष: उपरोक्त चर्चा से यह स्पष्ट है कि भारत एक भाषायी और सांस्कृतिक विविधता वाला देश है, जहाँ 22 आधिकारिक भाषाओं के साथ कई उपभाषाएँ एवं अनगिनत बोलियां हैं। भारत में समस्त स्वास्थ्य सम्बन्धी पठन सामग्री अभी भी इंग्लिश में ही उपलबध है तथा स्वास्थ्य साक्षरता आम जनमानस में अभी भी बहुत निम्न स्तर पर है। इस परिस्थिति में चिकित्सक-रोगी संवाद एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य संदेशों को उनके सही अर्थ में आम जनमानस तक पहुँचाना हमेंशा से एक चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है। कुछ दशक पूर्व आधुनिक संचार माध्यमों जैसे इंटरनेट इत्यादि के होने पर लोक मीडिया एवं स्थानीय भाषाओं में रेड़ियो, टेलीविज़न का उपयोग कर ये सन्देश पहुंचाये जाते थे। आज सोशल मीडिया एवं इंटरनेट की सुविधाओं का उपयोग कर इन संदेशों को आम जनमानस तक पहुँचाया जा रहा है, जिसमें संदेशों की सत्यता एवं सत्यापन अति आवश्यक हो जाता है। इस परिस्थिति में, इस दिशा में इन माध्यमों के प्रभाव को समझने के लिए निरंतर शोध की आवश्यकता है। यह शोध भाषायी और सांस्कृतिक समझ के साथ, स्वास्थ्य संदेशों को प्रभावी बनाने के लिए अति आवश्यक है। इस अध्ययन से यह तथ्य स्पष्ट रूप से सामने आता है कि प्रभावी स्वास्थ्य संचार के लिए एकीकृत रूप से विभिन्न भाषायी और उपभाषायी बारीकियों की विवेचना करने के पश्चात् स्वास्थ्य संदेशों के सम्प्रेषण की महती आवश्यकता है। समसामयिक परिदृश्य में स्वास्थ्य संचार अनुसंधान पर भारत में अत्यधिक काम करने की आवश्यकता है। इसमें विशेष रूप से स्वास्थ्य संचार में नई सूचना संचार प्रौद्योगिकी की उपस्थिति एवं संचार और सेवा प्रदाताओं, स्वास्थ्य कर्मियों तथा रोगियों पर इसके प्रभाव का अध्ययन सम्मिलित है।


सन्दर्भ :
1.Renata Shiavo, Health Communication from Theory to Practice: John Wiley and Sons, 2007 Edition, Page 6-7.
3.Hirono Ishikawa and Takahiro Kiuchi : Health Literacy and Health Communication, BioPsychoSocial Medicine. 5thNovember,2007. https://bpsmedicine.biomedcentral.com/articles/10.1186/1751-0759-4-18
4.Katherine Douglas,Lalit Narayan, Rebecca Allen, Jay Panda, Zohray Talib: Language diversity and challenges to communication in Indian emergency departments. International Journal of Emergency Medicine. 22ndSeptember,2021. Language diversity and challenges to communication in Indian emergency departments | International Journal of Emergency Medicine | Full Text (biomedcentral.com)
6.Anil.K.Singh,Pradip,Kharya,Vikasendu Agarwal, Soni Singh,Naresh.P.Singh,Pankaj K Jain, Sandip Kumar, Prashant K Bajpai, Anand M Dixit, Amit K Singh, Tanya Agarwal: Japanese encephalitis in Uttar Pradesh, India: A situational analysis. Journal of Family Medicine and Primary Care. 30th July,2020. https://journals.lww.com/jfmpc/Fulltext/2020/09070/Japanese_encephalitis_in_Uttar_Pradesh,_India__A.93.aspx
8.Lalit Narayan: Addressing Language Barriers to healthcare in India. National Medical Journal of India.14thApril,2014. https://www.researchgate.net/publication/261837065_Addressing_language_barriers_to_healthcare_in_India
9.Dr Krishna Kant Sharma: Language Barrier and Public Health Sector of Bihar. Indian Journal of Management and Economics. 2018. https://zenodo.org/record/3490014/files/Language%20Barrier%20and%20Public%20Health.pdf?download=1
10.Ajit Kumar Mishra: Rethinking the India-Bharat Divide vis-à-vis COVID-19: Implications for a Sociolinguistics of Health Communication. Rupkatha Journal on Interdisciplinary Studies in Humanities.Volume12, Number 5,2020. Rethinking the India-Bharat Divide vis-à-vis COVID-19: Implications for a Sociolinguistics of Health Communication – Rupkatha Journal on Interdisciplinary Studies in Humanities
13.Hilal Al Shamsi, Abdullah G. Almutairi, Sulaiman Al Mashrafi and Talib Al Kalbani: Implications of Language Barriers for Healthcare: A Systematic Review. Oman Medical Journal.Vol.35, No.2: e122,2020.

अजय कुमार तिवारी, शोध छात्र
जन संचार एवं पत्रकारिता विभाग, बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ- 226025

डॉ. कुंवर सुरेंद्र बहादुर,  सहायक प्रोफेसर
जन संचार एवं पत्रकारिता विभाग, बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ - 226025 


अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-41, अप्रैल-जून 2022 UGC Care Listed Issue

सम्पादक-द्वय : माणिक एवं जितेन्द्र यादव, चित्रांकन सत्या सार्थ (पटना)

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