शोध आलेख : सोशल मीडिया एवं राजनीतिक सहभागिता / मौर्य दिनेश नरसिंह एवं डॉ. नागेन्द्र कुमार सिंह

सोशल मीडिया एवं राजनीतिक सहभागिता
(इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के छात्रों पर आधारित एक अध्ययन)
- मौर्य दिनेश नरसिंह एवं डॉ. नागेन्द्र कुमार सिंह

 

शोध सार : प्रस्तुत शोध आलेख में सोशल मीडिया ने भारत के लोगों के राजनीतिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित और परिवर्तित किया है, इसका अध्ययन किया गया है। भारत में राजनीतिक पार्टियाँ आम जनता तक अपनी बातों को पहुँचाने, उनसे संवाद करने और उनकी राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने के लिए नित नए प्रयोग कर रही हैं, जिसमें सोशल मीडिया के द्वारा संवाद एक अभिनव प्रयोग है। वर्तमान समय में लोगों की बढ़ती राजनीतिक भागीदारी में सोशल मीडिया की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है क्योंकि फेसबुक, ट्विटर और यू ट्यूब जैसी साइटों ने राजनीतिक जुड़ाव और संवाद के लिए नए रास्ते प्रदान किए हैं। सोशल मीडिया पर ऑनलाइन राजनीतिक भागीदारी बढ़ने के दो कारण हैं। पहला जानकारी प्राप्त करने की लागत में कमी और दूसरा आसानी से सूचनाओं की उपलब्धता। भारत में स्मार्टफोन की बढ़ती संख्या और लोगों की इंटरनेट आधारित सोशल मीडिया पर बढ़ती निर्भरता ने राजनीतिक सहभागिता को बहुत तेज़ी से बढ़ाया है। वैश्विक स्तर पर चुनावों में वृहद् रूप से सोशल मीडिया का उपयोग करने का श्रेय अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को जाता है, जिन्होंने 2008 और 2012 के चुनावों में इसका प्रयोग किया जिसके सकारात्मक परिणाम भी मिले। भारत में इसका उदाहरण 2014 के आम चुनावों में देखने को मिला। नरेन्द्र मोदी देश के पहले राजनेता हैं जिन्होंने सोशल मीडिया का उपयोग प्रचार और मतदाताओं से जुड़ने के लिए बड़े पैमाने पर किया। सोशल मीडिया पर राजनैतिक मुद्दों पर चर्चा-परिचर्चा बढ़ती राजनीतिक भागीदारी को दर्शाता है। प्रस्तावित अध्ययन का उद्देश्य यह जानना है कि सोशल मीडिया मतदाता जागरूकता और छवि निर्माण में किस प्रकार की भूमिका निभा रहा है? क्या सोशल मीडिया से मतदाता और राजनीतिक पार्टियों या जनप्रतिनिधियों में संवादात्मक राजनीतिक भागीदारी बढ़ रही है? अध्ययन हेतु प्रश्नावली के माध्यम से आँकड़ें एकत्र किये गए हैं। चूँकि प्रस्तावित विषय व्यापक एवं विस्तृत है इसलिए तथ्यों के संकलन में आसानी तथा उद्देश्यपूर्ण एवं विश्वसनीय परिणाम प्राप्त करने हेतु यथा सीमित समय, अर्थ, तकनीक आदि सीमाओं को देखते हुए केवल इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के छात्रों को अध्ययन का आधार बनाया गया है ताकि निष्कर्ष में यह अध्ययन किया जा सके कि कैसे राजनीतिक दल सोशल मीडिया पर राजनीतिक एवं सामाजिक मुद्दों पर संवाद करते हैं तथा उससे युवा छात्र कैसे जुड़ते हैं?


बीज शब्द : सोशल मीडिया, आभासी दुनिया, राजनीतिक भागीदारी, लोकतंत्र, मतदाता, जागरूकता, राजनीतिक सहभागिता, वैश्वीकरण, लोकतंत्र, भारतीय चुनाव, युवा, स्मार्टफोन, डिजिटल संवाद,।

 

मूल आलेख : मार्शल मैक्लुहान ने साठ के दशक में जिस ग्लोबल विलेजके रूप में तकनीकी क्रांति की कल्पना की थी वह आज सच हो चुकी है। सोशल मीडिया ने एक माध्यम के रूप में आभासी दूरियों को लगभग ख़त्म कर दिया है। पिछले दो दशकों में वेब 2.0 आधारित सोशल मीडिया ने सूचनाओं के उत्पादन, प्रसारण और संग्रहण के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव किए हैं। भारत सरकार का डिजिटल अभियान भी इसी दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है। अब इसका प्रभाव केवल मनोरंजन, उद्योग और व्यापार तक ही सीमित नहीं रहा है। अब शिक्षा, राजनीति, चिकित्सा से लेकर हमारी संस्कृति और दैनिक दिनचर्या तक इससे प्रभावित और संचालित हो रही है। यहाँ तक कि दुनिया को प्रभावित करने वाले टेलीविजन और अखबार जैसे पारंपरिक जनसंचार माध्यम भी इससे प्रभावित हो रहे हैं।


सोशल मीडिया दुनिया भर के राजनीतिक क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण और अनिवार्य कारक के रूप में उभरा है। सर्वप्रथम अमेरिकी राजनेताओं द्वारा चुनावों में इसे प्रस्तुत और प्रयोग किया गया, अब दुनियाभर में सोशल मीडिया को स्वीकृति प्राप्त हुई है और इसकी भूमिका निर्विवाद है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव 2008 से अरब स्प्रिंग तक, इस नए मीडिया की भूमिका और उपयोगिता को दुनिया ने अपनी आँखों से देखा है। समय के साथ-साथ सोशल मीडिया की लोकप्रियता और उपयोगिता बढ़ती जा रही है। इसके विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों में फेसबुक, ट्विटर, यू-ट्यूब, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम इत्यादि काफ़ी लोकप्रिय हैं। राजनीतिक पार्टियों और राजनेताओं ने इन प्लेटफार्मों का उपयोग स्वयं लोगों से जुड़ने और दूर दराज़ तक के लोगों के साथ संवाद करने के लिए उपयोग किया है। प्रौद्योगिकी की त्वरित स्वीकृति, उपयोग में आसानी और इसकी किफायती लागत ने सोशल मीडिया की पहुँच को और व्यापक बना दिया है।


डाटा रिपोर्टल डॉट कॉम के अनुसारजनवरी 2022 तक भारत की आबादी लगभग 140 करोड़ थी जिसमें से 48 प्रतिशत महिला एवं 52 प्रतिशत पुरुष की हैं। इस पूरी आबादी में 36 प्रतिशत शहरी और 64 प्रतिशत ग्रामीण आबादी है। इसमें 18 से 34 वर्ष के युवा लोगों की आबादी 29 प्रतिशत है। जनवरी 2022 तक इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या लगभग 65 करोड़ से अधिक है जबकि भारत का इंटरनेट पेनेट्रेशन रेट अब अभी 47 प्रतिशत है। भारत के 75 करोड़ से अधिक लोगों के पास स्मार्टफ़ोन हैं। जनवरी 2022 तक भारत में 33 करोड़ से अधिक लोग फ़ेसबुक इस्तेमाल कर रहे  हैं जिसमें 24 प्रतिशत महिलाएं और 76 प्रतिशत पुरुष हैं। गूगल के अनुसार 2022 के शुरुआत में 47 करोड़ से अधिक यू ट्यूब उपयोगकर्ता भारत में हैं, जिसमें 31 प्रतिशत महिलाएं और 69 प्रतिशत पुरुष हैं। इसी प्रकार INSTAGRAM के 23 करोड़, ट्विटर के 24 करोड़ , व्हाट्सएप के 53 करोड़ यूजर भारत में हैं।“ (Kemp, 2022)1


इतनी बड़ी संख्या में सीधे लोगों से जुड़ने का मौका अन्य किसी माध्यम में उपलब्ध नहीं है। इन आँकड़ों को देखें तो ये समझना मुश्किल नहीं कि राजनातिक पार्टियां ऑनलाइन कैंपेन या सोशल मीडिया के इस्तेमाल को तवज्जो क्यों दे रहीं हैं? बीते कुछ सालों में चुनावों में सोशल मीडिया की भूमिका कितनी ज़रूरी हो गई है, लांस प्राइस ने  अपनी किताब द मोदी इफेक्टमें बताया हैं। प्राइस  कहते हैं कि मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही समझ चुके थे कि लोगों तक सीधे पहुंचने के लिए सोशल मीडिया बेहद ज़रूरी है। उनके लिए ये केवल जुनून नहीं बल्कि उनकी ज़रूरत बन गया है और साल 2014 में उनकी जीत के पीछे इसकी अहम भूमिका रही थी। (Price, 2015)2


सोशल मीडिया :- सोशल मीडिया दुनियाभर के लोगों के लिए निजी, व्यावसायिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक, मनोरंजन इत्यादि विचारों और मुद्दों पर चर्चा-परिचर्चा करने का एक मंच है। सोशल मीडिया पारस्परिक संबंध के लिए अंतरजाल या अन्य माध्यमों द्वारा निर्मित आभासी समूहों को संदर्भित करता है। यह व्यक्तियों और समुदायों के साझा, सहभागी बनाने का माध्यम है। सोशल मीडिया एक ऐसा शब्द है जिसका उपयोग समूहों या व्यक्तियों के बीच बातचीत का वर्णन करने के लिए किया जाता है। जिसमें इंटरनेट के द्वारा आभासी समुदायों में विचारों, ध्वनि, चित्रों, वीडियो आदि को साझा और आदान-प्रदान करते हैं। इसका उपयोग सामाजिक संबंध के अलावा उपयोगकर्ता सामग्री के संशोधन के लिए उच्च पारस्परिक मंच बनाने के लिए मोबाइल और वेब आधारित प्रौद्योगिकियों के प्रयोग के रूप में भी देखा जा सकता है। सोशल मीडिया के कई रूप हैं जिनमें कि इन्टरनेट फोरम, वेबलॉग, सामाजिक ब्लॉग, माइक्रोब्लागिंग, विकीज, सोशल नेटवर्क, पॉडकास्ट, फोटोग्राफ, चित्र, चलचित्र आदि सभी आते हैं। अपनी सेवाओं के अनुसार सोशल मीडिया के लिए कई संचार प्रौद्योगिकी उपलब्ध हैं।

 

राजनीतिक सहभागिता :- राजनीतिक सहभागिता ऐसी गतिविधि है जो राजनीतिक क्षेत्र को आकार देती है, प्रभावित करती है या इसमें शामिल है। राजनीतिक सहभागिता से राजनीतिक व्यवस्था में नागरिकों के सम्पूर्ण भागीदारी से है यह व्यवस्था को आधुनिक बनाती है। मौलिकता के आधार पर देखा जाये तो राजनीतिक सहभागिता ‘’जन साधारण की राजनीतिक व्यवस्था में जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से भाग लेना है।“ (Meena, 2022)3

परंपरागत माध्यमों में राजनीतिक सहभागिता काफी जटिल और समय लेने वाली प्रक्रिया थी लेकिन सोशल मीडिया ने इस राजनीतिक पार्टियों, राजनेताओं और सरकार में जन भागीदारी को काफी सरल कर दिया है।

 

सोशल मीडिया और राजनीति सहभागिता :- राजनीति और सोशल मीडिया का रिश्ता लगभग एक दशक का है जो कि नया ही माना जा सकता है। इंडिया अगेंस्ट करप्शनने फेसबुक के ज़रिए एक बड़ी आबादी को भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे से लोगों को जोड़ने का प्रयास किया और फिर बात बढ़ती ही चली गई। इस आंदोलन के बाद एक तरह से सोशल मीडिया की ताकत का अंदाज़ा लगा। राजनीतिक नेताओं ने सोशल मीडिया को अपना हथियार बना डाला। जिसके बाद ट्विटर पर बड़े नेताओं या राजनीतिक पार्टियों की उपस्थिति, फेसबुक पर राजनीतिक दलों और नेताओं के पेज हों या फिर यू-ट्यूब पर अपना चैनल आज सोशल मीडिया के द्वारा लोगों को राजनीतिक दलों से जोड़ने की कोशिश जमकर हो रही है। इसके माध्यम से लोग कमेंट (टिप्पणी), लाइक, शेयर, ट्वीट, रीट्वीट, मीम्स बनाने और यहाँ तक कि ट्रोलिंग भी कर रहे  हैं। वह न्यूज फीड के माध्यम से कार्यों को अत्यधिक सरलतापूर्वक करा रहे हैं। इस तरह उन्हें कई राजनीतिक व्यक्तियों से संपर्क बनाने या किसी अभियान में शामिल होने के लिए भी अधिक भ्रमण करने की आवश्यकता नहीं है। आज के वक्त में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का उपयोग सोशल मीडिया की अपेक्षा काफी कम होने लगा है। अब इस मंच के माध्यम से लोगों के साथ जुड़कर अपने विचारों को व्यक्त कर रहे हैं। स्टिंग ऑपरेशन के वीडियो और पिक्चर्स को फेसबुक, यू-ट्यूब और अन्य प्लेटफार्मों के माध्यम से प्रदर्शित किए जा रहे हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आम जनता तक पहुंचने के लिए सोशल मीडिया एक असरदार विकल्प के रुप में उभरा है और राजनीतिक पार्टियाँ भी इसका भरपूर लाभ उठा रही हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि इससे केवल फायदा ही पहुँच रहा है, कई बार तो इससे पार्टी और व्यक्ति की छवि को भी नुकसान हुआ है।


राजनीतिक पार्टियों के फेसबुक पेज लाइक और ट्विटर फालोवर :-

भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टियाँ

फेसबुक पेज लाइक्स (जुलाई 2022)

ट्वीटर फालोवर ( जुलाई 2022)

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)

1 करोड़ 60 लाख से अधिक

 

1 करोड़ 89 लाख से अधिक

 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस)

62 लाख से अधिक

87 लाख से अधिक

आम आदमी पार्टी (आप)

54 लाख से अधिक

 

62 लाख से अधिक

 

समाजवादी पार्टी (सपा)

35 लाख से अधिक

34 लाख से अधिक

 

तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी)

41 लाख से अधिक

 

5 लाख 53 हज़ार से अधिक

 

शिव सेना

7 लाख 81 हज़ार से अधिक

 

7 लाख 97 हज़ार से अधिक

 

 

राजनीतिक नेताओं के फेसबुक लाइक और ट्वीटर फालोवर :-

 

भारत के राजनेता

फेसबुक पेज लाइक्स (जुलाई 2022)

ट्वीटर फालोवर ( जुलाई 2022)

नरेन्द्र मोदी (बीजेपी)

4 करोड़ 70 लाख से अधिक

8 करोड़ 20 लाख से अधिक

राहुल गांधी (कांग्रेस)

48 लाख से अधिक

2 करोड़ 14 लाख से अधिक

अरविन्द केजरीवाल (आप)

92 लाख से अधिक

2 करोड़ 62 लाख से अधिक

अखिलेश यादव (सपा)

77 लाख से अधिक

1 करोड़ 72 लाख से अधिक

चन्द्र बाबू नायडू (टीडीपी)

18 लाख से अधिक

 

49 लाख से अधिक

उद्धव ठाकरे (शिव सेना)

4 लाख 65 हज़ार से अधिक

15 लाख से अधिक

 

साहित्य पुनरावलोकन :- दिलीप मंडल की पुस्तक दलाल स्ट्रीट’ (मंडल, 2011)4 के अनुसार वेब पत्रकारिता को अन्तरराष्ट्रीय राजनीतिक में मान्यता देने का कार्य सबसे पहले पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कार्यभार संभालते ही किया। बराक ओबामा ने राष्ट्रपति बनने के बाद अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में हफिंगटन पोस्ट नाम की वेबसाइट के एक पत्रकार को बुलाया और इस तरह इंटरनेट की पत्रकारिता को व्हाइट हाउस ने मान्यता दे दी। राष्ट्राध्यक्षों की प्रेस कांफ्रेंस में अब ब्लागर्स भी बुलाए जाते है। अब ज़्यादातर बड़े माने जाने वाले मुख्यधारा के पत्रकार ब्लागिंग और ट्विट करते हैं। वोट राजनीति में सोशल मीडिया की संचारक शक्ति को सबसे पहले अमेरिका के 2008 के आम चुनावों में देखा गया जब डिमाक्रेटिक उम्मीदवार बराक ओबामा ने युवाओं से सीधे जुड़ने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया और इसका उनको सकारात्मक परिणाम हासिल हुआ इसी तरह 2012 में भी यही इतिहास दोहराया गया।


                 आर. अनुराधा द्वारा सम्पादित न्यू मीडियाः इंटरनेट की भाषायी चुनौतियाँ और सम्भावनाएँनामक पुस्तक के अध्याय-4 में “फेसबुक का समाज और हमारे समाज में फेसबुक” (अनुराधा, 2013)5 में आशीष भारद्वाज ने इस बात का उल्लेख किया है कि किस तरह से युवाओं और सोशल मीडिया की भूमिका से मिस्र में सत्ता परिवर्तन सम्भव हो पाया। इसका एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण मिस्र में सत्ता पलट आन्दोलन में फेसबुक की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी जो वैश्विक स्तर पर समाचार बनकर सामने आई। जब मिस्र में सत्ता के खिलाफ जनता के आन्दोलन के बाद पूरी दुनिया का ध्यान फेसबुक की राजनीतिक क्षमताओं पर भी गया और देखा गया कि लगभग एक दर्जन फेसबुक पेज की बदौलत वहाँ का मिडिल क्लास काहिरा के तहरीर चौक पर जमा हो गया और 30 साल से सत्ता पर काबिज हुस्ने मुबारक को सत्ता से बेदखल कर दिया। इस पुस्तक में, इस घटना के संदर्भ में सोशल मीडिया उपयोगिता की पुष्टि सिटी यूनिवर्सिटी, लंदन में पत्रकारिता के शिक्षक और जाने माने ब्लागर रॉय ग्रीनस्लैड अपने एक लेख (Greenslade, 2016)6 में वेब मीडिया की राजनीतिक प्रासंगिकता को साबित करते हुए कहते है कि हर पल हमारे लोकतंत्र पर हमले हो रहे है, जबकि उनका सामना करने के लिए वेब पत्रकारिता बहुत कमाल का औज़ार है। वे कहते हैं कि पत्रकारिता को और अधिक लोकतांत्रिक बनाने के लिए वेब मीडिया का इस्तेमाल ज़रूर किया जाना चाहिए, क्योंकि पुराना मीडिया अपने घुटनों पर है और इसमें लोकतांत्रिक फेरबदल की गुंजाइश भी कम ही बची है।


डॉ. मुकुल श्रीवास्तव ने राष्ट्रीय सहारा में अपने लेख चुनावी जंग में सराबोर सोशल मीडिया’ (श्रीवास्तव, 2015)7 में बताया है कि 2014 के लोकसभा चुनाव देश के इतिहास में इसलिए याद रखे जायेंगे जब पहली बार प्रचार के लिए सोशल नेटवर्किंग साईट्स का इस्तेमाल किया गया और चुनाव में नेटीजन ने अहम भूमिका निभायी। इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन आफ इंडिया के मुताबिक देश के 24 राज्यों में इंटरनेट उपयोगकर्ता मतदान में तीन से चार प्रतिशत तक का बदलाव लाएँगे। इसबार के आम चुनावों में राजनीतिक दल अपनी ऑनलाइन उपस्थिति के ऊपर अपने बजट का दो से पाँच प्रतिशत खर्च कर रहे हैं। माना जा रहा है कि सोशल मीडिया वर्तमान में टीवी, अखबार से ज्यादा लोकतांत्रिक और निरपेक्ष है।


अगर भारतीय राजनेताओं की लोकप्रियता के बारे में बात करें तो द इंडियन एक्सप्रेस डॉट कॉम (द इंडियन एक्सप्रेस, 2022)8 में छपे लेख में जो आँकड़े मिलते हैं। वे बताते हैं कि सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लोकप्रियता इस समय भी देश में सबसे ऊपर बनी हुई है। 2014 में जहाँ फेसबुक पर इनके 14 मिलियन फालोवर थे वहीं 2022 में इसकी संख्या 47 मिलियन हो गयी है।


आंकड़ों का संकलन  : आंकड़ों के लिए इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक, मध्य प्रदेश को लिया गया है। इसमें सिर्फ उन छात्रों को सम्मिलित किया गया है जो 18 वर्ष या इससे अधिक उम्र के हो और सोशल मीडिया का प्रयोग करते हो। आँकड़ों के लिए 50 छात्रों से जानकारी ली गई है, जिसमें विभिन्न प्रकार के 10 वैकल्पिक प्रश्न शामिल किए गये थे। जिसमें सोशल नेटवर्किंग साइट से संबंधित, राजनीतिक सहभागिता से संबंधित, सोशल मीडिया द्वारा राजनीतिक जागरूकता और सशक्तिकरण से संबंधित, सोशल  मीडिया के द्वारा दी गयी जानकारियों के उपयोग एवं प्रभाव से संबंधित प्रश्न थे। इसके साथ ही सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक, ट्वीटर और ब्लॉग का अवलोकन किया गया, तथा वहाँ से प्राप्त आँकड़ें संकलित किये गए। विषय के अध्ययन के लिए प्राथमिक एवं द्वितीयक स्रोत का इस्तेमाल किया जाएगा। तथ्यों के लिए प्राथमिक स्रोत के अंतर्गत प्रश्नावली, साक्षात्कार तथा अवलोकन और द्वितीयक स्रोत के अंतर्गत संबंधित साहित्य का अध्ययन, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के आलेखों एवं चर्चित ख्यातिलब्ध विद्वानों द्वारा शोध के आलोक में प्रस्तुत विचार इत्यादि का प्रयोग किया गया। उत्तरदाताओं से प्राप्त आँकड़ो के विश्लेषण से महत्त्वपूर्ण परिणाम निकलकर आए हैं वे निम्न हैं-


सहभागी उत्तरदाताओं का सामान्य परिचय- प्रस्तुत अध्ययन में उत्तरदाता स्नातकोत्तर एवं शोधार्थी छात्र शामिल हैं, सभी उत्तरदाता 21 से 35 वर्ष के बीच हैं। जिसमें 40 प्रतिशत उत्तरदाता महिला एवं 60 प्रतिशत उत्तरदाता पुरुष हैं। अध्ययन में उन्हीं उत्तरदाताओं को शामिल किया गया है, जो सोशल नेटवर्किंग साइट का इस्तेमाल करते है। सभी 100 प्रतिशत उत्तरदाता किसी न किसी सोशल नेटवर्किंग साइट से जुड़े हुए हैं। कोई ऐसा उत्तरदाता नहीं है, जो किसी भी सोशल नेटवर्किंग साइट से न जुड़ा हो अर्थात सोशल नेटवर्किंग साइट का इस्तेमाल न करने वालों का प्रतिशत शून्य है।


प्रश्न 1 का विश्लेषण- अध्ययन में शामिल उत्तरदाताओं में सर्वाधिक 60 प्रतिशत फेसबुक का इस्तेमाल करते है, 20 प्रतिशत यू ट्यूब का, 10 प्रतिशत ट्वीटर तथा 10 प्रतिशत फेसबुक और ट्वीटर दोनों का इस्तेमाल करते है। वहीं 10 प्रतिशत लोग ऐसे है जो किसी अन्य सोशल साइट से जुड़े हुए हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक ज़्यादातर लोगों के द्वारा प्रयोग में लाया जाता है।


प्रश्न 2 का विश्लेषण- अध्ययन में शामिल उत्तरदाताओं में 25 प्रतिशत लोग प्रतिदिन 10 से 20 मिनट, 40 प्रतिशत लोग 20 से 40 मिनट, 20 प्रतिशत लोग 40 मिनट से एक घंटे तक तथा 15 प्रतिशत लोग एक घंटे से अधिक समय किसी न किसी सोशल साइट नेटवर्किंग पर बिताते हैं।


प्रश्न 3 का विश्लेषण- अध्ययन में सम्मिलित उत्तरदाताओं में 45 प्रतिशत लोगों का मानना है कि राजनीति से संबंधित जानकारी सोशल मीडिया से प्राप्त करते हैं, वहीं 42 प्रतिशत लोंगों का कहना है कि वे कभी-कभी सोशल मीडिया से ली गई जानकारी को उपयोग में लाते हैं। अध्ययन में शामिल 4 प्रतिशत लोगों का कहना है कि वे इस विषय में कुछ कह नहीं सकते, साथ ही नौ प्रतिशत लोग राजनीति से जुड़ी जानकारी सोशल मीडिया के अलावा किसी अन्य माध्यम से भी प्राप्त करते हैं।

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प्रश्न 4 का विश्लेषण- अध्ययन से यह बात सामने निकलकर आई कि 25 प्रतिशत उत्तरदाता अकसर सोशल मीडिया द्वारा प्रदान किये गए संदेशो से प्रभावित होकर पार्टियों/ व्यक्तियों से जुड़े कार्यों के लिए मन बनाते है, 42 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जिनके निर्णय को सोशल मीडिया प्रभावित करता है, जबकि 33 प्रतिशत लोगों का मानना है कि वे इस बारे में कुछ कह नहीं सकते।


प्रश्न 5 का विश्लेषण- अध्ययन में शामिल उत्तरदाताओं में 54 प्रतिशत लोगों ने यह मानना है कि राजनीति से संबंधित जानकारी या सूचना को वे सोशल नेटवर्किंग साइट पर शेयर करते हैं, 17 प्रतिशत लोग कभी-कभी राजनीति से जुड़ी सूचना को शेयर करते हैं। 25 प्रतिशत लोगों का विचार है कि इस प्रकार की कोई जानकारी सोशल मीडिया पर कभी शेयर नहीं की जाती, जबकि चार प्रतिशत लोगों का कहना है कि इस बारे में कुछ कह नहीं सकते। निष्कर्षतः अध्ययन में शामिल अधिकतर लोग सोशल नेटवर्किंग साइट से सूचना प्राप्त करने तथा खुद से जुड़े लोगों तक सूचनाओं को पहुँचाने का काम करते हैं।


प्रश्न 6 का विश्लेषण- अध्ययन में शामिल किये गए उत्तरदाताओं से पूछे गये इस सवाल पर कि क्या आप को लगता है कि सोशल मीडिया की राजनीतिक सहभागिता में महत्त्वपूर्ण भूमिका है, सर्वाधिक 55 प्रतिशत लोगों ने इसका उत्तर हाँ में दिया, जबकि 37 प्रतिशत लोग ने इस सवाल का जवाब कभी-कभी में दिया है, आठ प्रतिशत लोगों ने कहा कि इस बारे में वे कुछ कह नहीं सकते है। निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि अध्ययन में शामिल लोगों में से अधिकतर लोगों का मानना है कि सोशल मीडिया की राजनीतिक सहभागिता में महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

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प्रश्न 7 का विश्लेषण- अध्ययन में शामिल किए गए उत्तरदाताओं में से 58 प्रतिशत लोगों का मानना है कि सोशल मीडिया के राजनीतिक संदेश लोगों को ख़ास करके युवाओं को प्रभावित करते है, 23 प्रतिशत लोगों का मानना है कि इस कार्य में सोशल  मीडिया की भूमिका कुछ हद तक है, वहीं 09 प्रतिशत लोग कुछ कह नहीं सकते। निष्कर्षतः सोशल नेटवर्किंग साइट पर प्रसारित संदेश लोगों को प्रभावित करते हैं।


प्रश्न 8 का विश्लेषण- अध्ययन में शामिल उत्तरदाताओं में 21 प्रतिशत का मानना है कि सोशल नेटवर्किंग साइट पर दी गई सूचना या जानकारी प्रामाणिक होती है, वहीं 68 प्रतिशत लोगों का मानना है कि इस प्रकार की जानकारी कभी-कभी सही होती है, जबकि 11 प्रतिशत लोगों ने कहा कुछ कह नहीं सकते। निष्कर्षतः लोगों का विश्वास सोशल मीडिया द्वारा दी गई सूचनाओं पर कायम है।


अध्ययन में शामिल उत्तरदाताओं से एक खुला प्रश्न भी पूछा गया कि सोशल मीडिया और राजनीतिक सहभागिता के संबंध में आपके क्या विचार हैं, जिसके जवाब में विभिन्न प्रकार के विचार सामने आए।


निष्कर्ष : सोशल मीडिया ने राजनीति और प्रोपेगेंडा को पूरी तरह बदल दिया। सोशल मीडिया बहुत तेज़ी से सामाजिक और राजनीतिक हालात पर लोगों की राय बनाने और उसमें परिवर्तन करने का काम कर रहा है। भारतीय राजनीति के पुराने ढर्रे में बदलाव आ रहा है और परिवर्तनों के इस दौर में लोगों के साथ जुड़ने के लिए सोशल मीडिया सबसे बेहतर साधन है। सोशल मीडिया राजनीतिक विचारों और मुद्दों से संबंधित जानकारी के लिए बेहतर सुविधा प्रदान करते हैं। सोशल मीडिया सूचनाओं का सागर है जहाँ राजनीतिक दल की सकारात्मक या नकारात्मक जानकारियों के साथ ही अन्य कई प्रकार की सूचना भी होती है। अन्य जन मीडिया की भाँति यहाँ मामला एकतरफ़ा नहीं होता है। ऐसे माहौल में आम आदमी को बहकाया नहीं जा सकता। इस प्रकार से सोशल मीडिया के द्वारा युवा ज़्यादा जागरूक हो रहे हैं। आज का समय इंटरनेट का है। लोग किसी भी सूचना को लेकर सोशल साइट्स के माध्यम से अपनी त्वरित टिप्पणी दे रहे हैं। राजनीतिक सहभागिता के मामले में भी ऐसा देखने को मिल रहा है। किसी भी जानकारी या सूचना से असंतुष्ट युवा तुरंत सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर तीखी प्रतिक्रिया देता नज़र आ रहा है। ऐसे में सहज ही सोशल मीडिया के द्वारा राजनीतिक सहभागिता के क्षेत्र में आए बदलाव को देखा जा सकता है। हालाँकि इसके बारे में कोई पूरे भरोसे के साथ कुछ नहीं कह सकता लेकिन कोई इस बात से इनकार भी नहीं कर सकता कि आने वाले वर्षों में भारतीय राजनीति के लिए सोशल मीडिया एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।


सुझाव :  सोशल मीडिया के आने से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का स्वरूप बदला है। पहले की तरह अंकुश, नियंत्रण और शर्तें अब नहीं रह गई है। आज सोशल मीडिया प्रत्येक व्यक्ति की दिनचर्या का अंग बन गया है। व्यक्ति इससे जुड़कर अपनी प्रतिक्रिया, भाव व विचार व्यक्त कर रहा है। सोशल मीडिया बहुत तेजी से सामाजिक और राजनीतिक हालात पर राय बना और बिगाड़ रहा है। वहीं सोशल मीडिया के दुरुपयोग ने इसे एक खतरनाक उपकरण के रूप में भी स्थापित किया है इसी को ध्यान में रखते हुए सूचना और प्रसारण मंत्रालय सोशल मीडिया प्लेटफार्मों और उपयोगकर्ताओं के लिये कुछ कड़े नियम बनाए हैं लेकिन अब भी इसमें कई संशोधनों की आवश्यकता है। तकनीकी और आविष्कार ने हमेशा विकास और विनाश को जन्म दिया है। सोशल मीडिया भी दुधारी तलवार की तरह ही है इसका प्रयोग सोच समझकर नए भारत के नवनिर्माण में करने की आवश्यकता है।

 

संदर्भ :
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16. http://mukulmedia.blogspot.com/2015/08/blog-post_15.html#.Yw5pTHZBzIU
17. https://www.bbc.com/hindi/india/2013/06/130529_social_media_politics_intro_skj
18. https://hindi.mapsofindia.com/my-india/voices/social-media-and-its-impact-on-politics
19. https://www.bbc.com/hindi/social-38954751
20. शालिनी, जोशी, शिवप्रसाद जोशी, नया मीडिया: अध्ययन और अभ्यास, पेंगुइन बुक्स, 2015, पृष्ठ सं 40
  
मौर्य दिनेश नरसिंह
शोध छात्र, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक, मध्यप्रदेश
dineshnmaurya@gmail.com, 9918787572
 
डॉ. नागेन्द्र कुमार सिंह
सहायक प्राध्यापक, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक, मध्यप्रदेश
snkmediavns@gmail.com, 9415869521 

 अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-43, जुलाई-सितम्बर 2022 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक एवं जितेन्द्र यादवचित्रांकन : धर्मेन्द्र कुमार (इलाहाबाद)

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