-रिंकल त्यागी एवं डॉ. सुभाष कुमार बैठा
शोध सार : एक देश की समस्या पूरे विश्व को प्रभावित करती है, सम्पूर्ण विश्व एक इकाई की तरह आपस में जुड़ा हुआ है। यह शोधपत्र अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली यौनिक हिंसा की घटनाओं से सम्बंधित है। इसमें तर्क दिया गया है कि यौनिक हिंसा, विशेषकर रेप, का मुख्य कारण है- असामान्य स्थिति, चाहे वह गृहयुद्ध हो या दो देशों के बीच का युद्ध। आज हम वैश्वीकरण के युग में रह रहे है जहाँ सम्पूर्ण विश्व को एक गाँव माना जाता है। इस लेख का मुख्य ध्यान इस ओर है कि कैसे महिलाएं युद्ध या संघर्षकाल से प्रभावित होती हैं, उन्हें कितनी प्रताड़नाएं सहनी पड़ती है तथा इस प्रकार की स्थिति से बचने के क्या उपाय किये जा सकते हैं। यह लेख उन पुरुषों की सोच पर चोट करता है, जो अपनी शक्ति प्रदर्शन के लिए, महिलाओं का शोषण करने के लिए कभी युद्ध, कभी गृहयुद्ध तथा कभी-कभी धर्म, संस्कृति आदि का सहारा लेता है।
बीज शब्द : वैश्वीकरण, यौनिक हिंसा, गृहयुद्ध, संघर्षकाल, शक्ति प्रदर्शन, धर्म, संस्कृति।
मूल आलेख : संकटकालीन, संघर्षपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं में महिलाएं कई परतों में समस्या का सामना करती हैं। सार्वजनिक स्तर पर अनभिज्ञ दुश्मन से तथा निजी स्तर पर अपने घर, जनजाति, राजनीतिक मुद्दे इत्यादि से प्रभावित होती हैं। युद्ध जैसी अंतर्राष्ट्रीय घटनाएं वास्तव में पुरुषों से ज्यादा महिलाओं को प्रभावित करती हैं। इसलिए विश्व राजनीति को नारीवादी नजरिए से देखने की जरुरत है। चूँकि युद्ध को मुख्यतः पौरुषत्व से जोड़कर देखा जाता है तथा महिलाओं की सुरक्षा भी उनके सुपुर्द कर दी जाती है, इसलिए युद्ध या संघर्षकालीन परिस्थितियों में महिलाओं को निर्बल, असहाय नारी के रूप में देखकर उन्हें शोषण का शिकार बनाया जाता है। आज विश्व में तीसरे विश्वयुद्ध की संभावनाएं बन रहीं हैं। लीबिया, सीरिया, इराक, अफगानिस्तान और यूक्रेन इत्यादि अनेक देशों में युद्ध और गृहयुद्ध देखने को मिलते हैं। इन सभी परिस्थितियों में महिलाओं के बेघर होने और यौनिक हिंसा का शिकार होने की वारदातें बढ़ी हैं।(कुमार करुणा, 2022)
इतिहास इसका गवाह है कि शारीरिक परिवर्तन के अलावा, स्त्रियों में पुरुषों के बराबर बौद्धिक, तार्किक और साहसिक प्रतिभाएं हैं। परन्तु सभी स्त्रियों को यह अवसर नहीं मिल पाता। आज 21वीं सदी में भी जब स्त्री पुरुष के कंधे से कन्धा मिलाकर काम करने की बात है तो वहां भी यह पूर्णतया सत्य नहीं। आज भी कितनी प्रतिभाएं शारीरिक और मानसिक प्रताड़नाओं के पीछे दम तोड़ रहीं हैं। महिलाओं को नारीत्व गुणों, जिनमें भावुकता व शांति मुख्य हैं, से जोड़ा जाता है। ज्यादा आशा इस बात की है कि यदि महिलाएं उच्च स्तर तक पहुँचती हैं तो युद्ध और संघर्षकाल में कमी आएगी।
शोध समस्या : वर्तमान में विश्व के अनेक भागों में युद्धकालीन परिस्थितियां व्याप्त हैं। यूक्रेन और रूस के बीच चल रहा युद्ध, अफगानिस्तान में हुआ गृहयुद्ध और सत्ता परिवर्तन जैसे ताजा उदाहरण विश्व पटल पर मौजूद हैं। इस लेख में लैंगिक हिंसा की वर्तमान चर्चा की तीन प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डाला गया हैं-
1. यौनिक हिंसा सिर्फ लिंग की समस्या नहीं हैं, बल्कि यह उतनी ही महत्वपूर्ण और राजनीतिक हैं, जितनी युद्ध की सामाजिक, आर्थिक और कानूनी समस्या।
2. सशस्त्र संघर्ष के दौरान यौन हिंसा एक अनोखी घटना नहीं हैं। क्योंकि यह वर्षों से चली आ रही पुरुष प्रभुत्व की सोच का एक नमूना मात्र हैं। ऐसी ही अनेकों समस्याएं इस पितृसत्तात्मक समाज में प्रचलित हैं।
3. संघर्ष में यौन हिंसा के इस विचलन को रोकना तभी संभव है, जब बड़े पैमाने पर समस्या से निपटने के उपाय होंगे। राजनीतिक, सामाजिक, कानूनी, सांस्कृतिक तथा आर्थिक सिस्टम को संबोधित किये बिना इसकी समाप्ति सरल नहीं हो सकती, क्योंकि यही वह जड़ है, जो समस्या को जन्म देती है।
साहित्यावलोकन : 2004 में प्रकाशित अपने लेख ‘इन वॉर एस इन पीसः सेक्सुअल वायलेंस एंड वीमेनस स्टेटस’ में लाशॉन जेफर्सन युद्ध तथा शांति दोनों समयकाल में महिलाओं द्वारा झेले जाने वाली प्रताड़नाओं का बखूबी वर्णन करते हैं। जेफर्सन रवांडा नरसंहार से लेकर 21वीं शताब्दी में होने वाले युद्धों में महिलाओं के साथ होने वाली यौनिक हिंसा तथा एच. आई. वी. जैसी गंभीर बीमारियों पर चर्चा करते हैं। 2016 में प्रकाशित लेख ‘द फैटीशीजेशन ऑफ सेक्सुअल वायलेंस इन इंटरनेशनल सिक्योरिटी’ में सारा मेगेर बताती हैं कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने संकटकालीन यौनिक हिंसा को समाप्त करने के लिए पांच प्रस्ताव पारित किए। इस लेख में बताया गया है कि किस प्रकार यह बुतपरस्ती सुरक्षा वस्तुओं की अवधारणा को उत्पन्न करता है और फिर यह सुरक्षा, बाजार में वस्तु विनिमय के रूप में बदल जाती है। देविका मित्तल ने 2013 में ‘दामिनी रेप केस’ तथा 2019 में डॉ. रुहिला हस्सान ने ‘कठुआ रेप व हत्या केस’ पर लिखे गए अपने लेखों में पुरुषों की रूढ़िवादी सोच को उजागर किया है। उन्होंने बताया है कि किस प्रकार पुरुष अपना प्रभुत्व बनाये रखने तथा महिलाओं को सीमाओं में बांधे रखने के लिए यौनिक हिंसा का सहारा लेते हैं। समाज में कई अन्य समूह भी उनका समर्थन करते हैं और शारीरिक हिंसा के लिए महिलाओं को ही दोषी ठहराते हैं। ऐसे विश्व के अनेक देश हैं जहां संस्कृति के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता है। इसी तरह के तर्क 2022 में मलांचा चक्रबर्ती भी अपने लेख ‘युद्ध के भीतर एक और युद्ध’ में देतीं हैं। लाइबेरिया में महिलाएं युद्धकालीन परिस्थितरियों से परे भी यैनिक हिंसा का शिकार बनती हैं।
अवधारणात्मक विमर्श : आज पुरुषों की विकृत सोच के अनेक उदाहरण अंतर्राष्ट्रीय पटल पर मौजूद हैं। संघर्षपूर्ण परिस्थितियों को महिलाओं का शोषण करने का अवसर समझा जाने लगा है। अनेक ऐसी घटनाएं हैं, जब परिस्थितियों के असामान्य होते ही महिलाओं के साथ यौनिक हिंसा की वारदातें बढ़ीं, जिससे रेप से लेकर देह व्यापार जैसी घटनाओं में इजाफा होता है। संकटकालीन परिस्थितियों में महिलाओं की मानसिक स्थिति का अंदाजा लगाना बहुत ही मुश्किल होता है, क्योंकि पहले से ही परिस्थिति से विवश तथा साथ में शारीरिक प्रताड़नाएं। 2005 में बलूचिस्तान में बड़े पैमाने पर संघर्ष हुआ, जिसने गृहयुद्ध को जन्म दिया। मुख्यतः बलूचिस्तान में एक महिला को लेकर ही विद्रोह की आग शुरू हुई। बलूचिस्तान में एक सैनिक द्वारा बलूच महिला डॉक्टर शाजिया खालिद का रेप किया गया, परन्तु उसे गिरफ्तार नहीं किया गया तथा रक्षा सुरक्षा गार्ड्स ने इस मामले को रफादफा करने की कोशिश की। बलूचिस्तान में जिस प्रकार अराजकता बढ़ी उसमें ब्लोच पुरुष ही सुरक्षित नहीं हैं, तो महिलाएं तो असुरक्षित होंगी ही। बलूचिस्तान के ‘मारो और डंप’ ऑपरेशन के तहत अनेक लोगों का अपहरण और हत्याएं की गयी।(गरारे फ्रेडेरिक, 2013)
1. रवांडा नरसंहार में लगभग 100000 से 250000 महिलाएं यौन उत्पीड़न का शिकार हुईं।
2. सिएरा लियोन के गृहयुद्ध में दोनों पक्षों द्वारा बलात्कार को अंजाम दिया गया। 1991 से 2002 के बीच 60000 से अधिक महिलाओं ने यौन उत्पीड़न का सामना किया।
3. बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन के समय 200000 से अधिक बंगाली महिलाओं का यौन उत्पीड़न किया गया। (चक्रबर्ती मलांचा, 2022)
4. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2003 में पूर्वी डीआरसी में सशस्त्र संघर्ष में हजारों महिलाओं को यौन हिंसा को झेलना पड़ा। (जेफर्सन लाशॉन, 2004)
5. कांगो रिपब्लिक गणराज्य में 1998 में
200000 से अधिक महिलाओं को यौन हिंसा का शिकार बनाया गया।
6. म्यांमार में बड़े पैमाने पर हुए संघर्ष में रोहिंग्या मुस्लिम महिलाओं को यौनिक हिंसा के अनुभवों से गुजारना पड़ा।
7. लाइबेरिया के 14 साल के गृहयुद्ध के दौरान करीब 40000 महिलाएं यौन उत्पीड़न का शिकार हुईं।
8. अफ्रीकी देश इथियोपिया के संघर्ष में टाइग्रेयन महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न, सामूहिक बलात्कार के मामले बढ़े, जिसका मकसद उन्हें शुद्ध करना बताया गया। (चक्रबर्ती मलांचा, 2022)
इन सबके अतिरिक्त कश्मीर, दक्षिणी सूडान, अल्जीरिया, उत्तरी यूगांडा सहित सभी संघर्षो में महिलाओं को यौन उत्पीड़न का शिकार बनाया गया। इस प्रकार के अनेक उदाहरण बताते हैं कि आज महिलाओं के साथ शोषण को युद्ध के समय एक अस्त्र के रूप में प्रयोग किया जाने लगा है।
सामान्य परिस्थितियों में महिलाओं की दशा : यदि गहन विचार किया जाए तो हम पाएंगे कि यहां समस्या केवल युद्ध या संघर्षकाल के स्थिति की नहीं है, बल्कि यह पुरुषों की अधिपत्य जमाने वाली सोच की समस्या है। विश्व के सामने अनेक ऐसे उदाहरण मौजूद हैं जो यह बताते हैं कि यदि संघर्षपूर्ण स्थिति ना भी हो, तब भी महिलाओं को किसी न किसी बहाने से शारीरिक हिंसा का शिकार बनाया जाता है। महिलाओं को प्रत्येक जगह, प्रत्येक स्तर पर भेदभाव व हिंसा का सामना करना पड़ता है। विश्व के अधिकांश देशों में आज भी एक परिवार या समुदाय का सम्मान महिलाओं की यौन स्थिति पर टिका हुआ है। नतीजतन, किसी समुदाय पर हमला करने के लिए उस समुदाय की महिलाओं को निशाना बनाया जाता है, और जब तक यह अवधारणा नहीं बदलेगी तब तक महिलाओं पर खतरा मंडराता रहेगा।
धर्म, संस्कृति के नाम पर महिलाओं को लक्षित किए जाने के अनेक उदाहरण हमारे आस पास मौजूद हैं। वर्ष 2018 में भारत में घटी एक घटना आसिफा रेप केस में पुरुषों ने अपराध को ढकने के लिए धर्म की चादर का सहारा लिया। कई लोगों ने अपराधियों के दुष्कर्म का समर्थन केवल इस आधार पर किया, कि पीड़ित बालिका मुस्लिम थी जबकि अपराधी हिन्दू थे। इस घटना ने भारत में धार्मिक संघर्ष को बढ़ावा दिया तथा हिन्दू राष्ट्रवादियों ने आरोपियों के बचाव में रैली की। अति पुरुषत्व की संस्कृति के कारण लाइबेरिया में संघर्ष खत्म होने के बाद भी यौन हिंसा के मामले लगातार बढ़े हैं। ऐसा ही एक मामला भारत में 2012 में देखने को मिलता है, जिसको सभी दामिनी रेप केस के नाम से जानते है। यहां पर अपराधियों का समर्थन इस आधार पर किया गया कि दामिनी भारतीय संस्कृति की सीमाओं में नहीं थी। रात में एक लड़की का किसी पुरुष साथी के साथ होना संस्कृति के खिलाफ है। बलात्कार को महिलाओं को उनकी सीमा दिखने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह काफी दुखद बात है कि जहाँ लगभग पूरा विश्व तथा स्वयं भारत में इस केस की आलोचना की जा रही थी, वहीं अपराधियों के समर्थक संस्कृति का जामा ओढ़कर इस दुष्कर्म को छिपाने का प्रयास कर रहे थे।
1. दक्षिणी सूडान में महिलाओं के लिए 25% कोटे का निर्धारण एक सकारात्मक कार्यवाही है। (जेंडर एंड कनफ्लिक्ट नोट, 2012) दक्षिणी सूडान के राष्ट्रपति सलवा कीर की सरकार में एक वरिष्ठ प्रमुख के रूप में एक महिला को निर्वाचित किया जाना असामान्य घटना है। गृहयुद्ध से प्रभावित रहे देश में इस प्रकार के लिंग विशिष्ट विचारों का एकीकरण आवश्यक है। (वुडू वाखे साइमन, 2020)
2. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् ने भी 2007 के बाद से संघर्षकालीन यौन हिंसा जैसे विशिष्ट मुद्दे पर पांच प्रस्तावों को अपनाया। युद्धकालीन परिस्थितियों में यौनिक हिंसा का उन्मूलन इन प्रस्तावों की विशेषता है। (मेगेर सारा, 2016)
3. महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी के सम्बन्ध में रवांडा की संसद आज विश्वभर में उच्चतम स्तर की संसद की श्रेणी में आती है। (अली नाडा मुस्तफा, 2011)
4. एलेन जॉनसन सरलीफ 2005 में लाइबेरिया की राष्ट्रपति बनीं। सरलीफ लोकतान्त्रिक रूप से चुनी गयी अफ्रीका की पहली महिला राष्ट्रपति बनीं।
5. 2020 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा में एक प्रस्ताव पारित हुआ जिसमें संघर्ष रोकने, शांति वार्ता तथा रक्षा क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका बढ़ाने पर जोर दिया गया। (कुमार करुणा, 2022)
इस प्रकार के उदाहरण दर्शाते हैं कि युद्धकालीन यौन हिंसा इतनी विकट और जटिल भी नहीं हैं, कि इनसे निपटा ना जा सके। संसार की क्रूरता के शस्त्रागार से बलात्कार जैसे युद्ध के हथियार को नष्ट करना हमारे वश में है। सच तो यह है कि सरकारें केवल अपने बल पर यह सब खत्म नहीं कर सकतीं। इस प्रकार की युद्धकालीन हिंसा को खत्म करने के लिए हमें सांचे को तोडना होगा। सरकारों, नागरिकों और नागरिक समाज को साथ मिलकर एक नए तरीके से काम करना होगा, जिस तरह हम बड़े बड़े वैश्विक मुद्दों से निपटते हैं। आज विश्व जिस तनावपूर्ण स्थिति में है, जहाँ प्रत्येक राष्ट्र अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर तथा उसे बढ़ाकर दूसरे राष्ट्रों को डराने में लगा है, वहां उन्हें यह सर्वथा दिखाई दे कि किसी भी राष्ट्र या कहें तो सम्पूर्ण विश्व के लिए महिलाएं अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, पृथ्वी उन्ही पर चलायमान है। ऐसे में यह सभी राष्ट्र मिथ्या शक्ति प्रदर्शन की होड़ छोड़कर (कुल जनसंख्या का आधा हिस्सा) इन महिलाओं के विकास और उन्हें आगे बढ़ाने पर ध्यान दे। कोई राष्ट्र भले ही कितना भी शक्तिशाली हो, परन्तु यदि संघर्षपूर्ण स्थिति उत्पन्न होती है तो उस राष्ट्र की महिलाएं भी उस परिस्थिति से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगी। यह बात विश्व की प्रत्येक महिला भी भलीभांति समझती है, अतः यदि महिलाएं अंतर्राष्ट्रीय महत्व की संस्थाओं में बड़े पैमाने पर उच्च पदों पर निर्वाचित होती हैं तो वह मिथ्या शक्ति प्रदर्शन में ना पड़कर वास्तविक विकास की ओर ले जाने वाले कार्यों की ओर विश्व का रुख अग्रसर करेंगी।
निष्कर्ष : इस लेख में प्रस्तुत आंकड़ों के बाद अब आवश्यकता इस बात की है कि महिलाओं को जागरूक किया जाए। इसके साथ ही युद्ध और असामान्य परिस्थितियों जैसी समस्याओं से निपटने के लिए महिलाओं को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा से ज्यादा भागीदार बनाया जाए, उन्हें उच्च पद दिए जाएँ। महिलाएं युद्ध जैसी परिस्थितियों को रोकने का पूर्णतया प्रयास करेंगी। आज के समय में भी जहाँ अमेरिका, उत्तरी कोरिया, चीन, रूस इत्यादि देश अपनी शक्ति का विस्तार कर संघर्ष को बढ़ावा दे रहे हैं, वहां इस प्रकार के उपाय सर्वाधिक आवश्यक हो जाते हैं। युद्ध और गृहयुद्ध की मार झेल चुके देशों ने महिलाओं के सम्बन्ध में कुछ कदम भी उठाये हैं। हालाँकि यह कदम ज्यादा ठोस परिणाम नहीं देते, परन्तु यह सकारात्मक घटना है। संकटकालीन परिस्थितियों की मार झेल चुके देशों में शोषित महिलाओं के लिए यह कदम एक नई उम्मीद लेकर आते है।
सन्दर्भ :
1. कुमार, करुणा, युद्ध में महिलाएं सुरक्षा का बहुपक्षीयवाद और उसकी मुख्यधारा में महिलाओं की मौजूदगी, आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, 2022, नई दिल्ली।
2. गरारे, फ्रेडरिक, बलूचिस्तानः द स्टेट वर्सेज द नेशन, कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पी, आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, 2022, नई दिल्ली।
4. जेफर्सन, लाशॉन, इन वॉर एस इन पीसः सेक्सुअल वायलेंस एंड वीमेनस स्टेटस, वर्ल्ड रिपोर्ट, 2007 ।
5. डॉ. हस्सान, रुहिला, मीडिया पोरट्रायल ऑफ कठुआ रेप-एंड-मर्डर केस, रिसर्च गेट, 2019, वॉल्यूम 6, इशू 12
6. मित्तल, देविका, “दामिनी” गैंग-रेप केस एंड द उपरोअरः न्यू कॉशन ऑन सेक्सुअल वायलेंस, रोल ऑफ स्टेट एंड द नीड टू ट्रांसफॉर्म द सोसाइटी, एस एस आर एन, 2013, न्यूयोर्क।
7. सुर, एसिटा, ट्रिपल तलाक बिल इन इंडियाः मुस्लिम वीमेन एस पोलिटिकल सब्जेक्ट्स और विक्टिम्स, स्पेस एंड कल्चर, 2018, वॉल्यूम 5, सं 3, इंडिया।
8. अंद्रेव्स, पेनलोप, वायलेंस अगेंस्ट वीमेन इन साउथ अफ्रीकाः द रोले ऑफ कल्चर एंड द लिमिटेशंस ऑफ द लॉ, सी यु एन व्हाई अकादमिक वर्क्स, 1999, वॉल्यूम 8, पृ 446 ।
9. जेंडर एंड कनफ्लिक्ट नोटः साउथ सूडान, लर्निंग ऑन जेंडर एंड कनफ्लिक्ट इन अफ्रीका, 2012, पृ 1।
10. वाखे, साइमन वुडू, साउथ सूडान प्रेजिडेंट अप्पोइन्ट्स 1 वुमन अमंग 8 गवर्नर्स, 3 एडमिनिस्ट्रेटर्स, साउथ सूडान इन फोकस, 2020, https://www.voaafrica.com/a/africa_south-sudan-focus_south-sudan-president-appoints-1-woman-among-8-governors-3-administrators/6192013.html
11. मेगेर, सारा, द फैटीशीजेशन ऑफ सेक्सुअल वायलेंस इन इंटरनेशनल सिक्योरिटी, इंटरनेशनल स्टडीज क्वार्टरली, 2016, वॉल्यूम 60, पृ 149-159 ।
12. अली, नाडा मुस्तफा, जेंडर एंड स्टेट बिल्डिंग इन साउथ सूडानः स्पेशल रिपोर्ट, द यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ पीस, 2011,स, 2013, पृ 3, वाशिंगटन डी सी।
3. चक्रबर्ती, मलांचा, युद्ध के भीतर एक और युद्धः जंग के हथियार के रूप में यौन हिंसा का इस्तेमाल वाशिंगटन डी सी ।
13. https://www.un.org/en/conf/migration/assets/pdf/Ellen-Sirleaf-Bio.pdf
रिंकल त्यागी
पीएचडी रिसर्च स्कॉलर
पता- झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय,
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डॉ. सुभाष कुमार बैठा
सहायक प्रोफेसर
पता- झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय,
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सम्पादक-द्वय : माणिक एवं जितेन्द्र यादव, चित्रांकन : धर्मेन्द्र कुमार (इलाहाबाद)
यौन हिंसा की पृष्ठभूमि के रूप में इतिहास के कोई उदाहरण होते तो और अच्छा होता.....जैसे कि जिहादी धर्मांध आक्रमण और जौहर या रानी क्लियोपेट्रा
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