- डॉ. पवन कुमार जांगिड
शोध सार : अंग्रेजों द्वारा भारतीय कला की कटु आलोचना की गई। भारतीय कला में राष्ट्रवादी परम्परा को सर्वप्रथम विकसित करने का कार्य ई. वी. हैवेल एवं अवनीन्द्र नाथ ठाकुर ने किया। गांधी जी ने कला का संबंध नीति, हितकारिता और उपयोगिता से किया। महात्मा गांधी जी के विचारों से प्रेरित होकर कई कलाकारों ने कलात्मक कार्य किए है तथा अपनी कलाकृतियों के माध्यम से महात्मा गाँधी जी के विचारों को जन-जन तक पहुँचाया। इसिलिए उस समय इन कलाकारों ने स्वतंत्रता संग्राम को अपने चित्रों के लिए विषय के रूप में चूना। आज भी सरकारी योजनाओं का नाम गाँधी जी नाम के साथ जोड़कर नाना प्रकार के सकारात्मक संदेश दिये जा रहे हैं। श्री भूरसिंह शेखावत ने भी गाँधी के अलावा बहुत से देशभक्तों, स्वतंत्रता सग्राम से जुड़ी विभूतियों को रेखाकिंत किया था।
बीज शब्द
: गाँधी, विचार, कलाकार,
राष्ट्रवाद, सत्य, नीति,
हितकारिता, उपयोगिता, छवि,
पोस्टर, मंचसज्जा, श्री
भूरसिंह शेखावत के चित्र।
मूल आलेख :
19वीं शताब्दी के अन्त में अंग्रेजों ने भारतीय जनता को उनकी सांस्कृतिक
विरासत से विमुख अंग्रेजी सभ्यता सिखाने की चेष्टा की। अंग्रेजों द्वारा भारतीय
कला की कटु आलोचना की गई। ऐसे समय में सर्वप्रथम रवीन्द्रनाथ टेगौर तथा देशबन्धु
चितरंजन दास आदि ने भारतीय जनता को अपने उद्बोधन द्वारा आकर्षित किया। भारतीय कला
में राष्ट्रवादी परम्परा को प्रेरित करने का कार्य सर्वप्रथम कोलकाता आर्ट स्कूल
द्वारा किया गया, जिसकी स्थापना 1854
में अंग्रेजी शिक्षा पद्धति को महत्व देने के लिए की गई। भारतीय कला में
राष्ट्रवादी परम्परा को सर्वप्रथम विकसित करने का कार्य ई.वी. हैवेल द्वारा
कोलकाता आर्ट स्कूल के प्राचार्य बनने के उपरान्त किया गया। हैवेल ने कहा कि
यूरोपियन कला तो केवल सांसारिक वस्तुओं का ज्ञान कराती है पर भारतीय कला
सर्वव्यापी अमर तथा अपार है। ई. वी. हैवेल तथा अवनीन्द्र नाथ ठाकुर ने भारतीय कला
के महत्त्व को समझकर राष्ट्रवादी मूल्यों को प्रतिस्थापित करने का प्रयास किया।
अवनीन्द्र नाथ ठाकुर के शिष्यों ने बंगाल स्कूल में उत्पन्न कला के उन राष्ट्रवादी
मूल्यों का बीजारोपण सम्पूर्ण भारत में किया। राष्ट्रवाद से प्रेरित होकर साहित्य
भी अछूता नहीं रहा। बंकिमचंद चटर्जी के आनंदमठ लिखित वंदे मातरम् गीत में
राष्ट्रवाद की लो को ज्वाला में परिवर्तित करने का कार्य किया। इस प्रकार उस समय
सम्पूर्ण राष्ट्रवादी वातावरण में कलाकारों ने भी महात्मा गाँधी के साथ इस पूनीत
यज्ञ में अपना सहयोग दिया।
सत्य और
अहिंसा के आधार पर चलाये गये शांतिपूर्ण आन्दोलनों द्वारा भारत को आजादी दिलाने
वाले महापुरूष के जीवन, उनके सिद्धान्तों और आदर्शों का
परिचय पाना भारतीय प्रजा की वर्तमान पीढ़ी और भावी पीढियों के लिए आवश्यक है।1 गाँधीवाद का मतलब है अन्याय, अत्याचार और तानाशाही
का प्रतिरोध। गाँधीवाद का मतलब है अपने आप को बदलना और स्वावलंबी बनना। गाँधीवाद
का मतलब है कायरता की जगह निर्भिकता, रूढ़िवादिता की जगह
परिवर्तन, सांप्रदायिक विद्वेष की जगह प्रेम और जातिवाद की
जगह समरसता।2
महात्मा
गाँधी जी को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं हैं वे हमारे देश के अनमोल रत्नों में से
एक है। गाँधी जी का जीवन सत्य, अहिंसा, सादगी और भाईचारा पर आधृत था इसलिए कला के संबंन्ध में उनका विचार भी
सादगी, सरलता, जीवंतता और जनमानस से
जुड़ने की प्रक्रिया के अनुकूल था। उन्होंने देश के उत्थान के लिए अनेक कार्य किए
अपितु देश के कलाकारों को एवं उनकी कलाओं को प्रोत्साहन दिया। उनका मानना था कि
सत्य एवं अहिंसा तो दुनियां में उतने ही पुराने हैं जितने हमारे पर्वत हैं। कला हर
तरह कि हिंसा, चाहे वह दैहिक हो या मानसिक, उसका प्रतिकार है। महात्मा गांधी जी के विचारों से प्रेरित होकर कई
कलाकारों ने कलात्मक कार्य किए है तथा अपनी कलाकृतियों के माध्यम से महात्मा गाँधी
जी के विचारों को जन-जन तक पहुँचाया।
गाँधी जी
का मानना था कि जहाँ अहिंसा है वहाँ सत्य है, और जहाँ सत्य है
वहाँ ईश्वर है। कला को मानवीय सत्य की रक्षा का ध्येय लेकर चलना होगा और यह सत्य
बिना हिंसा को निर्मूल किये नहीं पाया जा सकता। वे कला को सत्यम, शिवम्, सुन्दरम् के स्थान पर रखते थे। ऐसा लगता है
मानो वे सभी क्षेत्रों में सत्य-अहिंसक जीवन शैली की लक्ष्य पूर्ति के लिए ही बने
हो। उनके आध्यात्मिक आदर्शवाद में ईश्वर नैतिकता, अहिंसा,
साधना की श्रेष्ठता तथा सत्य का महत्व कहीं भी ओझल नहीं होते हैं।3 गाँधी जी का स्वदेशी अपनाओं का नारा भी सिर्फ स्वदेशी उद्योग क्षेत्र तक
ही सीमित नहीं है, यह स्वदेशी कला एवं संस्कृति को बढ़ावा
देना भी रहा है। भारतीय लोक कला के पुनरूत्थान एवं जनसामान्य की कला को गाँधी जी
बढ़ावा देना चाहते थे फिर भी वे कहते थे कि हमें चाहिए कि “हम
पहले जीवन की आवश्यक वस्तुएँ जुटाकर जनसाधारण को उपलब्ध करावें और जीवन को सजाने
संवारने वाली चीजें पीछे स्वयं आ जायेंगी।”4
स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग उनकी द्दष्टि में लोक जीवन और लोक कला को बढ़ावा देना
था। गांधी जी की स्वदेशी सोच के परिणाम में यामिनी राय जैसे कई चित्रकारों की पीढ़ी
तैयार हुई। गांधी जी यामिनी राय को शुद्ध स्वदेशी राष्ट्रवादी कलाकार मानते थे।
देखा जाए तो गाँधी जी का कला से प्रारम्भ से ही लगाव रहा हैं। इसी के परिणाम से
भारतीय पुनरूत्थान कालीन कला आंदोलन में भागीदार कलाकारों से इनके करीबी सम्बन्ध
रहे थे। भारतीय कला जब अपने अस्तित्व को छोड़ देने की कगार पर थी ऐसे समय ई. वी.
हैवेल जैसे कलाकारों ने संसार का ध्यान भारतीय कला और संस्कृति की ओर आकर्षित
किया। भारतीय जीवन आदर्श से अजंता, राजपूत एवं मुगल शैली को
आधार मानकर कलाभिव्यक्ति करने की सलाह दी।5
कला के
क्षेत्र में गांधी जी ने शिव और सत्य पर ही विशेष बल दिया। सुन्दर को उन्होंने इन
दोनों तत्वों में अभिन्न तत्व स्वीकार किया और उसका कलात्मक निषेध किया। गांधी जी
ने कला की कसौटी और श्रेष्ठता पर उपयोगितावाद की मान्यता स्थिर की। जो लोग कला को
केवल सौन्दर्य की वस्तु मानते हैं, उनसे गांधी जी का
मतभेद था। उन्होंने कला का संबंध नीति, हितकारिता और
उपयोगिता से किया। उनका विश्वास था कि सत्य ऊंची से ऊंची कला का श्रेष्ठ सौंदर्य
है और नीति हितकारिता और उपयोगिता से भिन्न नहीं है। गांधी जी ने संगीत की
श्रेष्ठता प्रतिपादित की। उनकी दृष्टि में संगीत प्रार्थना और नैतिक उन्नति में
सहायक है न कि उसमें किसी सुन्दरता का स्वरारोहण है, इसलिए
उसे श्रेष्ठ माना जाए। वे मानते थे कि चित्र, संगीत और कला
में बाह्य पक्षों की अपेक्षा आचरणगत शुद्ध अभिव्यक्ति मानव की नैतिक भावना का
उच्चतम प्रकाशन है। उत्तम जीवन की भूमिका के अभाव में कला का सत्य चित्रण असंभव
है। कला जीवन की अज्ञमय पराकाष्ठा है। गांधी जी ने कला को आत्ममंथन का प्रसाद
सिद्ध किया। कला के आन्तरिक और बाह्य स्वरूपों का अंतर करते हुए उन्होंने स्वीकार
किया है कि समस्त कला अंतर के विकास का आविर्भाव है। जो कला आत्मदर्शन का
साक्षात्कार नहीं कराती, व्यक्ति की आत्मा को स्पंदित नहीं
करती, वह कला नहीं है। प्राकृतिक कलाकृतियों की अपेक्षा
मानुषिक कला तुच्छ और अपूर्ण हैं। जिस कला में सत्य और ऊर्ध्वगामिनी प्रकृति की
अभिव्यंजना होती है वही कला सच्ची कला है। गांधीवाद की सात्विक कला भावना आनन्द
तथा सौंदर्य का तिरस्कार करती है। वह सत्य और तापसी कला सृजन में विश्वास करती है।6
गांधी जी
का प्रमुख कार्यक्षेत्र राजनैतिक था। उनके अनुयायियों ने त्याग और अहिंसा को साधन
मानकर जीवन में अपनाया। लोग उनकी जीवन प्रणाली ग्रहण कर उसे साध्य रूप से अपनाने
में असफल रहे। भारत की विविध भाषाओं के साहित्य पर गांधीवाद का व्यापक प्रभाव पड़ा
है। गांधी जी की जीवन दृष्टि इतनी व्यापक थी कि अपने कर्म और इच्छा द्वारा
उन्होंने मानव समाज को गांधीवादी चेतना में प्रभावित करने का यत्न किया। आचार्य
जे. बी. कृपलानी ने गांधी जी का मूल्यांकन करते हुए कहा है-‘‘गांधी जी महान नैतिक और आध्यात्मिक देव थे। विश्व के बड़े से बड़े सुधारकों
में उनका महत्वपूर्ण स्थान है। इसलिए भारतवासी उन्हें ‘महात्मा’
कहते थे। किन्तु यह बात भी कभी भूलने की नहीं कि गांधी जी महान्
सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनैतिक
मनीषी थे।
गाँधी जी
गाँव के गरीबों तक कला और संस्कृति के प्रसार के पक्ष में थे इसिलिए आदिवासी
कलात्मक उपकरणों में उनका गहरा लगाव था। उनका विचार था कि ”मेरी कल्पना में आदर्श गाँव में ग्राम कवि, दस्तकार,
वास्तुशिल्पी, भाषाविद, शोधकर्ता
आदि सभी होगें। महात्मा गाँधी भारतीय कला एवं कलाकारों के प्रेरणास्त्रोत रहे हैं।
कला और कलात्मक निर्माण में हमेशा एक समाज की सामाजिक, आर्थिक
और बौद्धिक परिवेश का प्रतिबिम्ब दिया है। भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन, देशभक्ति तथा महान पुरूषों के नेतृत्व का सार्वजनिक जीवन पर जबरदस्त
प्रभाव पड़ा। 19वीं शताब्दी के अन्त और 20 वीं शताब्दी की शुरूआत में इसे एक अधिक संगठित और चरम चरण में पेश किया।7 इसने समकालीन कलाकारों को भी प्रभावित किया। इसिलिए उस समय इन कलाकारों
ने स्वतंत्रता संग्राम को अपने चित्रों के लिए विषय के रूप में चूना। इन कलाकारों
ने स्वदेशी और राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए एक तरह से सेवा की दूसरी और कुछ राष्ट्रीय
नेताओं जैसे महात्मा गाँधी और जवाहरलाल नेहरू ने भी पारम्परिक भारतीय कला से देश
भक्ति की अभिव्यक्ति के रूप में मदद की। कुछ हद तक इन राष्ट्रीय नेताओं ने इन
कलाकारों के साथ इस संबंध में काम किया और भारतीय नेशनल मूवमेंट के प्रति अपनी
वफादारी को व्यक्त किया।8
एक
स्वतंत्रता सेनानी के रूप में गाँधी जी के जीवन की शुरूआत से, उनके कई समकालीन देशी और विदेशी कलाकारों द्वारा उनके कई चित्र बनाए गए।
कलाकारों का प्रयास यह रहता कि गाँधी जी को मॉडल के रूप में उपस्थित देखकर अपनी
कृति बना सकें। गाँधी जी ने कलाकारों के साथ अच्छे रिश्ते बनाए व कला व कलाकारों
को प्रोत्साहित भी करते थे। शान्ति निकेतन के कलाकार नंदलाल बोस ने महात्मा गाँधी
के जीवन से प्रेरणा लिए कलाकारों की कुँजी को पूर्ण रूप से व्यक्त किया। उन्होने
लिखा हैं गाँधी जी भले ही हमारी तरह पेशेवर कलाकार न हो परन्तु फिर भी वे एक सच्चे
पेशेवर कलाकार है, उन्होंने अपने पूरे जीवन में व्यक्तित्व
और आदर्शों को ही बनाया है जो कि अविस्मरणीय है। उनका मानना था कि मिट्टी के
मनुष्य को भगवान बनाया जाए। उनका यह आदर्श पूरी दुनिया के कलाकारों को प्रेरित
करता है।9
कलाकारों
ने दाँडी मार्च से प्रेरित होकर अनेकों कृतियाँ बनाई। 1920-30 के दशक में नंदलाल बोस ने लिनोकट छवि ‘बाबूजी’ बनाई जो कई ऐसे राजनीतिक
पोस्टरों में से एक है जो सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान उत्पादित किए गए थे
जिसमें से अधिकतर नष्ट कर दिये गए थे। इन्होंने कांग्रेस के विभिन्न अधिवेशन में
मंचसज्जा का कार्य भी किया जिनके विषय भारतीय लोक आदिम कला के थे जिससे अधिवेशन
में आने जाने वाले लोग इन चित्र संसार को स्वदेशी संस्कृति से प्रेम भाव का संचरण
हो सके। 1936 में गाँधी जी ने नंदलाल बोस को लखनऊ में
कांग्रेस के मण्डप को सजाने के लिए बुलाया, जहाँ कलाकारों को
भारत के इतिहास और परम्परा को स्थापित करने का अवसर मिला। बोस व उनकी टीम द्वारा
सजायी गई इस प्रदर्शनी के बारे में गाँधी जी ने कहाँ “मेरे दिमाग में पहली बार एक
सच्ची ग्रामीण प्रदर्शनी की अवधारणा ठोस रूप में सामने आती हैं। यह इस प्रदर्शनी
का उद्देष्य है कि जो चीजे हम शहर में पसंद नहीं करते वे ग्रामीणों के लिए
इस्तेमाल करना तथा हमारे लाभ के लिए इस्तेमाल की जा सकती है|” कलाकारों के बारे
में उन्होंने कहा “नंदलाल और शान्तिनिकेतन के प्रसिद्ध कलाकार और उनके सहकर्मियों
ने ग्रामीणों की कलाओं को कलात्मक प्रतीकों के रूप में प्रदर्शित किया है वह
सराहनीय है आप सब ने बहुत अच्छा काम किया है|” भारतीय पौराणिक कथाओं एवं चरित्रों
के साथ ही गाँधी जी के सत्याग्रह आन्दोलनों एवं राष्ट्रीय भावनाओं का अंकन
इन्होंने बड़ी सरलता एवं सजीवता से किया। शान्ति निकेतन के कलाकार मुकुल डे की जब
गाँधी जी से मुलाकात हुई तो उनकी साधारण पौशाक और सरल जीवन ने इस कलाकार को आकर्षित
कर लिया तभी उनका व्यक्ति चित्र बनाया। मुकुल डे को महात्मा जी के भीतर एक संत और
राजनीतिक नेता मिला।
कलाकार
विनायक एस. मासोजी ने दाँडी मार्च के दौरान गाँधी जी की गिरफ्तारी को लेकर ”द मिडनाइट अरेस्ट“ नामक अपने चित्र में गेट्सैमिने
के बगीचे में भारी सशस्त्र अज्ञानी सैनिकों की ताकत से आधी रात को यीशु मसीह की
गिरप्तारी से तुलना कर अपनी भावना को व्यक्त किया। 1930 में
राऊड टेबल सम्मेलन के दौरान जब गाँधी जी लंदन में थे तब प्रसिद्ध अमेरिकी
मूर्तिकार “जो डेविसन” ने उनकी एक मूर्ति की रचना की। सी. वैकचलन ने गाँधी जी के
बारे में लिखा कि “महात्मा गाँधी को फोटो या प्रचार करना नापसंद था क्योंकि उनको
दिखावा पसंद नहीं था। वे कला और कलाकारों का सम्मान करते थे परन्तु दिखावा नहीं।
शान्ति निकेतन
के प्रसिद्ध कलाकार के. वेकटप्पा द्वारा बनाये गए ऊटी के विभिन्न मौसम और मूड के
चित्र गाँधी जी को अच्छे लगे। गाँधी जी ने कहाँ “मैं खुश हूँ”। मेरा आशीर्वाद आपके
साथ है,
लेकिन मैं एक सुझाव देता हूँ कि अगर चरखा आपको आकर्षित करता है और
चरखा ग्रामीणों के लिए क्या महत्त्व रखता है इसे चित्रित कर सकते हो तो मुझें अधिक
प्रसन्नता होगी|”10
किसी भी
बात को सहज ढंग से कहने या समझाने के लिए चित्रों का प्रयोग किया जाए, तो वह बात बहुत सरल तरीके से समझ आ जाती है। समकालीन परिदृश्य में महात्मा
गाँधी जी की बात करें तो गाँधी एक ऐसे आइकन रहें हैं जिनके चित्रों का प्रयोग
अधिकतर योजना से जोड़कर किया जाता रहा है। निःसंदेह गाँधी एक ऐसे हीरो है जिनके
कृतित्व एवं व्यक्तित्व से सभी परिचित है। इसिलिए इनके चित्रों का प्रयोग जन
कल्याणकारी योजनाओं से अक्सर जोड़कर जनप्रसार हेतु प्रयोग किया जाता रहा है। जैसे
रोजगार के लिए, आत्मनिर्भरता के लिए चरखे का प्रयोग, मनरेगा योजना, स्वच्छता अभियान में गाँधी के चस्मे
का प्रयोग आदि कई उदाहरण है।
कलाकार
सुबोध गुप्ता, जीतिश कालत, अतुल डोडिया
जैसे कलाकारों सहित कई मास्टर्स के लिए ”राष्ट्र के पिता“
पंसदीदा विषय रहें। अतुल डोडिया महात्मा जी की शिक्षा से विशेष
प्रेरित है। गाँधी जी के सन्देश उनके कार्यों में प्रतिबिम्बित होते हैं। उन्होने
अपने चित्रों के माध्यम से महात्मा के अहिंसा, शांति और
सहिष्णुता के संदेश को पुनः सन्दर्भित करने का प्रयास किया। कई संवेदनशील कलाकारों
ने महात्मा गाँधी जी के मूल्यों को तथा उनकी याद में चित्रण किया। कई कलाकारों की
रचनाएँ महात्मा जी की विचारधारा को वास्तविक अर्थों में पालन करने का संदेश देती
है। चित्रकार धीरेन डे ने महात्मा गाँधी का ‘प्रार्थना में लीन’ नामक चित्र बनाया
जिसमें उन्होंने सत्य, अहिंसा और प्रार्थना यही गाँधी का बल
था, उसे दर्शाया है।11
कलाकार
बी.सी. सान्याल ने कहा “महात्मा गाँधी का अहिंसा का सिद्धान्त और अंग्रेजों के साथ
असहयोग ने मुझे प्रभावित किया। भारतवर्ष ही नहीं बल्कि दुनिया में शायद ही कोई ऐसा
व्यक्ति होगा जिसने महात्मा गाँधी का नाम न सुना होगा। इसका मुख्य कारण उनका जीवन
त्याग,
तपस्या और सच्चाई से ओत प्रोत था। वे सदा स्वयं कष्ट उठाकर
प्राणीमात्र के दुखों को दूर करने का प्रयत्न करते थे। उन्होंने सोते हुए भारत को
जगाकर उसमें राष्ट्रीय चेतना का संचार किया। संसार को सत्य और अहिंसा का संदेश
दिया। गांधीवाद, महात्मा गांधी का विचार दर्शन है। गांधी जी
राजनीतिज्ञ, अर्थवेत्ता, समाज सुधारक,
शिक्षाशास्त्री, धर्मोपदेशक और भारतीय समाज
शासन के युगप्रवर्तक नियामक थे। जीवन के सभी पक्षों पर उन्होंने मौलिक ढंग से
विचार किया है। उन्होंने अपने स्वतंत्र चिंतन का प्रतिपादन अपनी दैनिक साधना के
बीच स्थिर किया था। गांधीवाद का आधार स्वानुभूति चिंतन है। गांधीवाद आत्मशक्ति को
भारतीय जन जीवन में प्रतिष्ठित कराने का सशक्त साधन है। आत्मशक्ति की प्रधानता के
कारण गांधीवाद में आध्यात्मिकता और विचार स्वातंत्र्य की मौलिक उद्भावना है।
उन्होंने परंपरा प्राप्त सामाजिक व्यवस्थाओं का नवीन पद्धति पर परिष्कार किया और
पूर्ववर्ती जीवनधारा में अपने विचारों को समन्वित किया। गांधी जी का सामाजिक आदर्श
सर्वोदय है। उनका शासनादर्श रामराज्य है और जीवन का आदर्श सत्याग्रह था। गांधीवाद
का प्रमुख अंग सर्वोदय है। सर्वोदय का अर्थ है सभी की समान भाव से उन्नति करना और
ध्येय है शोषक, अनीतिभाव और अन्यायियों का हृदय परिवर्तन।
गांधी जी ने समस्त सृष्टि में व्याप्त चैतन्य की सत्ता को स्वीकार किया। ईश्वर और
मनुष्य तथा मनुष्य एवं अन्य जीवधारियों की एकता की स्वीकृति से उनका सत्य सिद्धांत
प्राणिमात्र के लिए सार्वभौमिक, कल्याणास्पद सिद्ध हुआ।
उन्होंने प्राणिमात्र की अर्न्तभूत एकता की आवश्यकता स्वीकार की।
समकालीन
दौर की ओर ध्यान आकर्षित करें तो हाल ही में सरकार के स्वच्छता अभियान की बात करें
तो यह योजना जमीनी तौर पर लागू एवं जनप्रसार हेतु गाँधी के चस्मे एवं चित्र संदेश
माध्यम का प्रयोग पूरे देश में भरपूर किया गया। वॉल पेंटिंग पर गाँधी जी के
चित्रों के साथ स्वच्छता के संदेश देखे जा सकते हैं। आज की समकालीन आदिवासी कला की
बात करें तो उसमें भी गाँधी के व्यक्ति चित्र बनने लगे हैं जैसे बिहार की मधुबनी
पेंटिग में गाँधी को बनाया गया। वही वर्ली आदिवासी कला में गाँधी जी का चरखा कातते
चित्र बनाया है। आज व्यापक स्तर पर स्वच्छता व गाँधी जी के संदेशों को लेकर
चित्रकला प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है। इस प्रकार गांधी जी का योगदान
प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से कला एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण है।
कलाकार का सृजन समाज का प्रतिबिम्ब होता है इस बात की समझ गांधी जी में गहरी थी
तभी उन्होंने नन्दलाल बोस जैसे कलाकार को अपने साथ रखा और कांग्रेस के विभिन्न अधिवेशनों, सामाजिक आयोजनों में अपने साथ रखा। आज भी बहुत से कलाकार गाँधी के विचारों
का चित्रण करते हैं। सरकारी योजनाओं का नाम गाँधी जी के नाम के साथ जोड़कर नाना
प्रकार के सकारात्मक संदेश दिये जा रहे हैं।
गाँधी जी
का चिन्तन अत्यन्त व्यापक रहा है। उन्होने प्रत्येक विषय पर अपने विचार व्यक्त
किये है। सत्य और अहिंसा पर आधारित गाँधी का जीवन और दर्शन इतना प्रेरक और
प्रभावशाली था कि भारत में जन-जागरण की एक आँधी सी चल पड़ी थी। इसलिए गाँधीवाद का
प्रभाव समाज के हर क्षेत्र पर पड़ा। गाँधी जी के व्यक्तित्व एवं विचारों से
प्रभावित होकर कवियों व कलाकारों ने प्रकृति और ग्रामीण जीवन को अपने चित्रण का
विषय बनाया। निराला ने भारतीय किसान का मार्मिक चित्र प्रस्तुत किया - चूस लिया है
सारा सार, हाड़-मास ही है आधार। ऐसे ही
कलाकारों ने भी उनके व्यतित्व व कृतित्व से प्रभावित होकर कलाकृतियों का निर्माण
किया।
भारतवर्ष
की पवित्र भूमि पर समय समय पर अनेक महापुरूषों, संतों एवं महाराजाओं
ने जन्म लिया इनमें लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, गोखले शिवाजी,
महाराणा प्रताप, सुभाष चन्द बोस, महात्मा गाँधी, जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री आदि के नाम प्रमुख हैं, जिन्होंने
अपने देश की महान् सेवा में अपना जीवन अर्पण कर दिया। महात्मा गाँधी वास्तव में एक
महान् संत थे वे गुणों की खान थे इसलिए वे एक बैरिस्टर होकर भी महात्मा कहलाए। इसी
महात्मा के कई पोट्रेट (व्यक्ति चित्र) श्री भूरसिंह शेखावत ने बनाये जैसे कि एक
चित्र में विचारमग्न मुद्रा में चित्रित किया है। बिड़ला हाउस नई दिल्ली के संग्रह
में यह संगृहीत है। अनेकों बार आंदोलनों की वजह से गांधी जी को जेल की कठोर
यंत्रणा सहन करनी पड़ी किन्तु उन्होंने अपने शरीर की चिन्ता न करके दिन रात बड़ी लगन
से स्वतंत्रता संग्राम में देश का नेतृत्व किया। स्वतंत्रता संग्राम की याद को
बनाए रखने के लिए भूरसिंह शेखावत ने बहुत नजदीक से गाँधी जी के इस रूप को चित्रों
में कैद किया। आज उनके चित्र भूरसिंह जी को अमर बना गए। भूरसिंह जी द्वारा निर्मित
एक चश्म चित्र में चादर ओढ़े हुए गाँधी जी एक तरफ देख रहे है, किसी कार्य में निमग्न है| सरल व हल्की पेंसिल से बनाये गए इस चित्र में
इस महापुरूष का व्यक्तित्व निखर गया है।
महान्
नेता गाँधी जी के हर क्षण को कैद करने वाले भूरसिंह शेखावत ने एक चित्र में गाँधी
जी को विश्राम करते चित्रित किया है। शरीर चादर से ढ़का हुआ है, पैरों में धोती है बहुत ही सरलता से चित्र को केवल पेंसिल से पूर्ण किया
गया है। श्री शेखावत सीधे-साधे निरभिमान व्यक्तित्व के धनी सर्ववन्ध बापू महात्मा
गाँधी से अत्यधिक प्रभावित थे तथा उनके विचारों के सच्चे समर्थक भी थे। उन्होंने
बापू की सादगी और विचारधारा को अपने जीवन व्यवहार में अपनाया था। 1939 में उन्हें बापू के सानिध्य में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ तब शायद
बापू भारत छोड़ो आंदोलन की उधेड़बुन में थे।
श्री
भूरसिंह शेखावत को स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व महात्मा गाँधी के सानिध्य में
बिड़ला हाउस दिल्ली में रहने का अवसर मिला तब उन्हें स्वतंत्रता सग्राम से जुड़े
देशभक्तों, युग पुरूषों से साक्षात्कार का मौका मिला।
इन्होंने गाँधी के अलावा बहुत से देशभक्तों, स्वतंत्रता सग्राम
से जुड़ी विभूतियों को रेखांकित किया था इसलिए उन्हें स्वतंत्रता सग्राम का सेनानी
कलाकार कहा गया है। गाँधी जी एक दूरर्द्शी नेता थे उन्होंनें देश की स्वतंत्रता के
लिए नैतिक, सामाजिक, आर्थिक सभी
परिस्थितियों में सुधार किये। परहित सोचने वाले गाँधी जी दिनभर अपना समय पुस्तकों
को पढ़ने व डायरी लिखने में व्यतीत करते थे उसी क्रम में गाँधी जी को पुस्तकों का
अध्ययन करते चित्रित किया गया। इसमें श्री भूरसिंह जी ने बड़ी स्पष्टता से एक चश्म
व्यक्ति चित्र बनाया है जो कि चश्मा धारण किए गाँधी जी कुछ विचार की गहन मुद्रा
में बैठे हैं।12
निष्कर्ष : कलाकारों ने स्वतंत्रता संग्राम को अपने चित्रों के लिए विषय के रूप में चूना। इन कलाकारो ने स्वदेशी और राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए एक तरह से सेवा की। गाँधी जी विचारों, संघर्षों से प्रेरणा पाकर राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया। देश के कई प्रसिद्ध कलाकारों नें अपने विभिन्न माध्यमों के द्वारा कलात्मक सृजन के साथ महात्मा गाँधी को प्रेरणा स्रोत मानते हुए स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रवाद हेतु अपना पूर्ण योगदान दिया।
01. गांधी, मो. क. एवं त्रिवेदी, काशिनाथ (अनुवादक) :- सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा, नवजीवन प्रकाशन मंदिर, अहमदाबाद, पृ.सं. 5
05. रीता प्रताप, भारतीय चित्रकला एवं मूर्तिकला का इतिहास, राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर, 2013. पृ.सं. 317.
सह आचार्य - चित्रकला, श्री रतनलाल कंवरलाल पाटनी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, किशनगढ (राजस्थान)
सम्पादक-द्वय : माणिक एवं जितेन्द्र यादव, चित्रांकन : धर्मेन्द्र कुमार (इलाहाबाद)
पवन जी आपके कॉलेज आया हुआ हूं,,हुकम सिंह जी हिंदी मेरे अच्छे मित्र है,,आपका आलेख इतिहास व कला से ज्ञानप्रद लगा,,मजा आया,,आनंद से पूर्ण सन्दर्भ
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