ग्रामीण समाज का सच्चा चितेरा विवेकी राय
डॉ. राजासलीम इमामसाब बिडी
शोध सार :- प्रस्तुत शोध आलेख में ग्रामीण प्रदेश को लेकर लिखा गया है । प्रमूख उपन्यासकार विवेकीय अपने उपन्यासों के माध्यम से गाँव की स्थितिगति का वर्णन किया है । किस प्रकार उनका जीवन था । गरीबी और शोषण के द्वारा किसानों का जीवन नरकीय जीवन बना हुआ था । स्त्रीयों पर किस प्रकार शोषण किया गया और उस समय गाँव में जाति प्रथा की व्यवस्था को भी उन्हेंने अपने उपन्यासों के माध्यम से बताने का भरपूर प्रयास किया है। उस समय अतिवृष्टि और अनवृष्टि के कारण गाँव के लोगों की स्थिति कितनी चिंताजनक बन जाती है। गाँव में जमींदारी प्राप्त थी और लोगों को उनके द्वारा किस प्रकार शोषण किया जाता है और गाँव के लोग किस प्रकार अंधविश्वास का शिकार बनते है, पुत्र प्राप्ति के लिए दूसरे प्राणियों को बलि देते हैं। और उसके साथ-साथ ग्रामीण लोग शिक्षा से किस प्रकार वंचित रहतेहैं। और अंग्रेजी काल में गाँव के स्थिति किस प्रकार थी। उस समय जमींदारी प्रथा आरंभ थी। बेरोजगारी युवा वर्ग गाँव से निकलकर शहर जाने लगे। नवयुवक सुख-सुविधाओं के कारण नगर की ओर आकर्षित होने लगे, विवेकी राय ने अपने उपन्यासों के माध्यम से बताने का भरपूर प्रयास किया है। भारतीय गाँवों की स्थिति गति का खूलकर चित्रण अपने उपन्यास में किया है।
बीज शब्द :- गाँव, भारतीय, विवेकी राय, उपन्यास, समाज,जमींदार
प्रस्तावना:१. धीरेन्द्र वर्मा ने ग्रामगीत की परिभाषा करते समय ४ ग्राम के संबंध में लिखा है। ग्राम तो एक इकाई है। उसमें लोकमानस विद्यमान रहता है।
२.
“प्राचीन काल में प्राय: ‘ग्राम में भिन्न जाति के लोग
रहते थे, जो जातिगत प्रेशा कराते थे। ग्राम के समीप की भूमि उपशल्य कहलाती थी।
३.
हिन्दी शब्द सागर में ‘ग्राम शब्द का अर्थ है, छोटी बस्ती।
गाँव मनुष्य के रहने का स्थान’।
अनेक
विद्वानों ने अपने मतानुसार ग्राम शब्द की परिभाषा दी है।
गाँव
या ग्राम छोटी-छोटी मानव बस्तियों को कहते हैं जिनकी जनासंख्या कुछ सौ से पाँच हजार
के बीच होती है तथा जहाँ की बडी आबादी खेती और अन्य परंपरागत पेशे से जुडी होती है।
पहले के समय में सुख
सुविधाएँ एवं साधन नहीं हुआ करते थे, तो सारे लोग एक छोटी सी बस्ती में रहा करते थे
। उसे एक गाँव कहा जाता था । इसी प्रकार दुनिया में लोगों का आना आरंभ हुआ, इसके कारण
शहर की उत्पत्ति हुई आज भी कुछ स्थान ऐसी है जहाँ पर सुविधाएँ नहीं पहुँच पाई है ।
आज बही दुनिया में बहुत से गाँव है, गाँव में रहने वालो लोगों का जीवन बहुत साधारण
होता है । वह सिर्फ कृषि पर अवलंबित होते हैं ।
जब भी मन में गाँव
का विचार आता है, खेतों में दूर-दूर तक लहलहाती हुई हरी फसले, आसमान के नीचे काम करते
किसान उनके साथ काम करती स्त्रियाँ पेडों की ताजी हवा, ताजा और शुद्ध दूध ताजी हवा
ताजी-ताजी सब्जियाँ ऐसे भी चीजें भारत वासियों को अपनी ओर आकशक कर रहे है । गाँव में
रहनेवाले लोग आपस में एक दूसरे की मदद के लिए सदैव तत्पर रहते हैं तो गाँवों की विशेषता
है ।
भारतीय ग्रामीण जीवन
कृषि पर ही आधारित है । कृषि ही लोगों का प्रमूख व्यवसाय बन गया है । इसी प्रकार गाँव
में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो दूसरा व्यवसाय करते हैं । जैसे लकडी का और लोहे का काम जो
की उनका काम भी कृषि पर अवलंबित है । शहर के अंदर संयुक्त परिवार लिखने को को कम मिलते
हैं । मगर आज भी इस प्रकार के परिवार को देख सकते है । गाँव के अन्दर बसी जाती व्यवस्था
को आज भी हम देख सकते हैं । मगर शहरी जीवन में जाती व्यवस्था को जोड़कर लोग आगे जा रहे
हैं । विवेकी राय अपने उपन्यासों के माध्यम से इस बात को उजागर किया है ।
गाँव के लोग पंचाग
और फाँलो को निकालकर देखते हैं आज भी यह प्रथा को देख सकते हैं । मगर शहरी लोगों में
ये प्रथा कम दिखाई देती है । गाँव के लोगों का जीवन बहुत सादा जीवन बना रहता है । जिस
किसान की बदौलत हमें भोजन मिलता है । वह खुद ही ढंग से दो वक्त की रोटी नहीं जुटा पाता
है । दुख जब होता है, जब किसानों द्वारा पैदा किए गए अन्न को दूसरे लोग बेचकर ज्यादा
मुनाफा कमाते है । इस सभी विषय को विवेकी राय अपने उपन्यासों के माध्यम से ग्रामीण
जीवन की समस्याओं को समझाने का प्रयास किया है ।
विवेकी
राय ने उपन्यासों में गाँव को केंद्र में रखकर वहाँ की माठी की महक को महसूस किया है।
भारत कृषि प्रधान देश है। भारत में प्राचीन काल से खेती की जा रही है। देश का प्रमुख
व्यवसाय खेती ही रहा है। देश की अर्थव्यवस्था और सामान्य जन जीवन खेत पर ही निर्भर
है। विवेकी राय भी एक कृषक व्यक्तित्व रहे हैं। गाँव में रहनेवाले लोगों का रहन-सहन
खान-पान रीति-रिवाज आचार-विचार बोली भाषा भोले-भाले अनपढ अज्ञानी होने से रूढी एवं
परंपराओं को मानते है। ग्रामीण लोगों में अंधविश्वास अधिक रहता है। आपसी मतभेद द्वेष,
प्रतिष्ठा एवं ऊँच-नीच, जात-पात की भावना उनमें अधिक रहती है। ग्रामों में जमींदारी,
सेठ-साहुकार, पूँजीपति आदि से शोषण और अत्याचार सदियों से चला आ रहा है।
गाँवों
में किसान असंख्या समस्याओं से संघर्ष करके भूमि पर रह रहे जीव-जंतु, पशु-पक्षी, मनुष्य
के लिए भोजन सामग्री का उत्पाद कर रहा है। अगर किसान कृषि से मुँह मोड ले तो सृष्टि
के लोग भूखे मर जाऐंगे। किसान को ‘अन्नदाता’ के रूप में देखा जाता है। इस छोटे से भूभाग
में एकत्र होकर कुछ लोग रहते हैं। ऐसे भूभाग को ग्राम कहते हैं। ग्राम शब्द से ही ग्रामीण
शब्द बना है। ग्राम छोटा होता है। लोग यह एकत्र होकर रहते है। खेती और पशुपालन इनका
मुख्य व्यवसाय होता है।
विवेकी
राय ग्राम जीवन में रहकर साधहीन । गरीब मजदूरी पर पलते किसानों के जीवन का यथार्थ रूप
किसान जीवन काँटों की तरह चुभती समस्याओं, यातनाओं जीर्ण-शीर्ण कल्पनाओं किसानों के
हृदय से आनेवाली करूण आवाजे इन सभी को चित्रित करने की उनमें सूक्ष्म दृष्टि है। इसलिए
लेखक गाँव को नरक की संज्ञा देते हैं। उनके उपन्यासों के आरंभ में ही उन्होंने कहा
है। “यह गाँव, यह दूर का ढोल, यह नरक और इसी में मुझे स्वर्ग खोजना है। हँसी-खुशी खोजनी
है”। ऊँचा दर्जा धोखा है। सबको पेट की ही चिंता लगी है। किसी का पेट खाते-खाते बड़ा
हो गया है। सबकी गति एक है। पेट में जाने पर सभी अत्र बराबर है, फट जाने पर सभी वस्त्र
फेंक दिये जायेंगे”।
अंग्रेजी काल में
ग्राम जीवन:
अंग्रेजी के शासन काल में गाँवों में गाँवों की स्थिति बहुत बिगड गई थी। उन्हें लोगों की उन्नति तथा विकास से अधिक अपने स्वार्थ की चिंता थी। इसलिए ग्रामों की अवस्था पहले से और बिगडी हुई थी। अंग्रेजों से होनेवाले शोषण और दैवी आपदाओं के कारण लोगों को जीवन जीना मुश्किल हो गया था। अंग्रेजो के शासन काल में सुविधाएँ न मिलने से उनकी स्थिति में सुधार ना करने से उनकी स्थिति शोचनीय हुई थी। अंग्रेज सरकार उस समय के गाँवों में जमींदारी प्रथा शुरू की। ग्रामों में चलनेवाले छोटे-छोटे व्यवसाय बंद पडा गए। इस कारण से गाँव के अनेक लोग बेकार हो गए। उन्हें जीवन को किस प्रकार जीना है यह बहुत मुश्किल हो गया और ग्रामों में बेरोजगारी की समस्या दिन-ब-दिन बढने लगी। इस एक कारण से गाँव खेती पर अवलंबीत रहनेवाले, किसान और नवयुवक शहर जाने लगे। आर्थिक और सामाजिक राजनीतिक दृष्टि से देश और ग्रामों की अवस्था बहुत ही दयनीय हुई थी।
आधुनिक काल में ग्राम
जीवन :
आधुनिक काल में देश की राजनीति का स्वरूप बदला
है। नेता केवल अशवासन देते हैं। नारे लगाते हैं। कुछ करते नहीं। चुनावों के दौरान ग्रामों
के विकास का अशवासन देते है, पर करते कुछ नहीं है। ग्रामों में लोगों को दो वक्त की
रोटी मिलना मुश्किल हो गया। उन्हें कही काम नहीं मिलता। कर्ज लेने पर सूद के कारण शोषण
होने लगा। ऐसी हालत में लोग बेरोजगारी, गरीबी, शोषण आदि से तंग आए लेकिन सरकार ने उनकी
ओर ध्यान नहीं दिया। इसलिए लोग रोजगार पाने के लिए नगरों की चकाचौंध से और जीविका चलाने
के लिए वे नगरों की ओर जा रहे हैं”। इस स्थिति के कारण भारत के ग्राम धीरे-धीरे उजड़ने
लगे हैं।
पढे-लिखे
ग्रामीण युवक नौकरी की तलाश में नगर चले आ रहे हैं। उन्हें नौकरी मिलने पर वे अपने
परिवार के साथ वहाँ बसाते है। कुछ लोग नगरों की रोनक सुख-सुविधाओं के कारण नगर की ओर
आकर्शित हो रहे है”। इससे ग्रामों की जिंदगी पर गहरा असर पड रहा है। लोग ग्रामों में
रहने के लिए हिचकिचाने लगे हैं। वे अपनी खेती-बाडी जायदाद आदि छोडकर नगर की ओर जा रहे है।
इसलिए गाँव धीरे-धीरे उजडने लगे है। आधुनिक काल में भी गाँव की हालत दयनीय है।
विवेकी
राय अपने उपन्यासों में प्रकृति प्रकोप का चित्रण किया है। ‘बबूल’ उपन्यास में अतिवृष्टि
के कारण हुई हानि का चित्रण किया है। महेशराम तथा अन्य किसानों की गेहूँ चने की हानि
पर उन्होंने चिंतन व्यक्त किया है। उसके साथ अकाल की स्थिति का भी उन्होंने वर्णन किया
है। गाँव के अच्छे-अच्छे लोगों के चेहरे पर हवाईयाँ उड रही है। महिनों से पानी की एक
बूँद धरती पर नहीं गिरी फसल सूख रही है इसके साथ गाँव में उत्पन्न होनेवाले वर्ग संघर्ष
की समस्या का भी वर्णन किया है।
ग्रामीण
प्रदेश में अधिक मात्रा में अंधविश्वास दिखाई देता है। विवेकी राय ने अपने उपन्यासों
के माध्यम से स्पष्ट किया है। ‘लोकऋण’ उपन्यास में यही धारण पाई जाती है। किसी बाबा
या पीरबाबा किसी भगवान के नाम पर तावीज बांधने से घर में पूजा हवन करने से सुख शांति
मिलती है। इस तरह कि भावनाओं को स्पष्ट किया है। अंधविश्वास से दूर होने के कुछ संकेत
भी दिए है।
लोग
समाज में पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत, उपवास मनोतियाँ मांगते है। मंदिर दर्गह अन्य
कई धार्मिक स्थान जाकर अनेक-अनेक प्रकार के मंत्रते माँगते है उसकी पूर्ति के लिए दिन
गत एक करते है। ग्रामीण प्रदेश में अनेक मान्यताएँ देखने को मिलती है। दांपत्य जीवन
में पुत्र होने पर ही उस माता-पिता को मुक्ति मिलती है। ऐसी मान्यताएँ ग्रामीण प्रदेश
में देखने को मिलती है। ग्रामीण प्रदेश में राजनीतिक दावपेंच की धारणाओं को देख सकते
है। गाँव के लिए चुनाव एक महामारी है इसके आने के साथ लूट भ्रष्टाचार, जातिवाद और अनैतिकता
की भावनाओं को देख सकते है। उनका ‘लोकऋण’ उपन्यास में ग्रामीण प्रदेशों में किस तरह
राजनीतिक दावपेंच खेले जाते हैं। वोट मांगने आकर उन्हें लालच की आशाएँ दिखाते है। ग्रामीण
जीवन का यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया है।
हम
आज इक्कीसवीं सदी में जी रहे है। यहाँ तक आते हमने सदियों की कई ऐसी कुप्रथाओं का विरोध
किया है। जो मनुष्य या मानव जाति के लिए हानिकार थी। ऐसी हानीकारक प्रथाओं में, एक
दहेज प्रथा है। जिसने कई मासूम बेगुनाह, बेसहारा, माँ-बहनों को नरक की यातना दी है।
विवेकी राय अपने उपन्यासों में ग्रामीण जन जीवन में बसे हुए ऐसे प्रथा का खूल कर चित्रण
किया है। “समर शेष है” उपन्यास में संतोषी अपनी बेटी कांलिदी का विवाह तय करने के लिए
जूते घिसता है, लेकिन विवाह नहीं जमता। ग्रामीण प्रदेश में दहेज की बढ़ती प्रवृत्ति
से अनेक समस्याएँ निर्माण होती है।
अर्थशास्त्र
में कहा गया है कि भारत कुछ ही अमीरों से बन गरीब राष्ट है। ग्रामीण प्रदेश में किस
प्रकार भूखमारी की समस्या रहती है। जब अतिवृष्टि और अकाल के कारण लोगों को एक वक्त
का खाना भी नसीब नहीं होता किस प्रकार उनका जीवन नरक बन जाता है। विवेकी राय गाँव के
लोगों की प्रती उनका हृदय भर आता है, क्योंकि उनका जन्म ही गाँव में हुआ था। उनका लगाव
गाँव से था। ग्रामीण समाज के प्रति उनका जीवन आदर्शमय बना हुआ था।
निष्कर्ष :-
भारत एक कृषि प्रधान देश है । इस कारण से भारत देश अनेक गाँव से जुडा हुआ देश मानते हैं । गाँव में रहने वाले लोग कृषि को अपना प्रमुख आधार मानते हैं । उन्हें दूसरा व्यवसाय करने का कोई साधन नहीं है । गाँव के लोगों की स्थिति कितनी चिंताजनक है । और खुद कथाकार विवेकी राय का जन्म गाँव में एक कृषक परिवार में हुआ है । इस कारण से वह अपने रचनाओं में गाँव को प्रमुख मानकर रचनाएँ की है । इस लेख में उन्होंने गाँव में रहनेवाले लोगों पर और वहाँ की समस्याओं का चित्रण किया है । उसके साथ आज का गाँव के नवयुवक शहर की ओर किस प्रकार आकर्षित हुए हैं, आज गाँव मर रहे हैं । इस सभी का चित्रण किया है ।
संदर्भ ग्रंथ सूची:
१.
धीरेंद्र वर्मा :- हिन्दी साहित्य कोश – प.सं.३०९
२.
डॉ. ज्ञान अस्थाना – हिन्दी उपन्यासों में ग्राम समस्याएँ
– पृ.सं. ३३
३.
डॉ. श्यानसुंदर दास – हिन्दी शब्द सागर – पृसं. १३७०
४.
डॉ. पंकज कुमार सिंह – दलित विमर्श – बबुल – पृ.सं. १५५
५.
डॉ. विवेकी राय – बबूल – पृ.सं. २०३
६.
डॉ. विवेकी राय – लोकऋण – पृ.सं. १०२
७.
डॉ. विवेकी राय – समर शेष है – पृ.सं. ११८
डॉ. राजासलीम इमामसाब
बिडी
अंजुमन पी.यू. कॉलेज,
बेळगाँव
मोबाइल -7353279879
सम्पादक-द्वय : माणिक एवं जितेन्द्र यादव, चित्रांकन : धर्मेन्द्र कुमार (इलाहाबाद)
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