शोध सार : इस अध्ययन से उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा जनपद लखीमपुर खीरी जो चीनी उत्पादन तथा गन्ना उत्पादन के साथ-साथ उप-उत्पादों की ओर बढ़ते कदम के बारे में विश्लेषण तथा उनकी भूमिका के बारे में जानकारी हो सकेगी। यहाँ अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर है इसका मुख्य कारण यहाँ की भूमि उपजाऊ है जो अधिकांश भूमि पर गन्ने का उत्पादन होता है। यहाँ की कृषि आधारित फसलें मुख्यतः गन्ना, गेहूँ, धान, मक्का, सरसों, आलू, मूँगफली आदि है। जिसमें लगभग 80 प्रतिशत गन्ने का उत्पादन किया जाता है। जिसको जनपद की 9 चीनी मिलों तथा 16 क्रेशर तथा लगभग 520 कोल्हू द्वारा इनकी पेराई किया जाता है। जिससे जनपद के ग्रामीण क्षेत्रों में समाज के आर्थिक व सामाजिक उत्थान में गन्ने का महत्वपूर्ण योगदान है।
बीज शब्द : गन्ना, चीनी, उत्पादकता, इथेनॉल, उप-उत्पादों, बैगास, उत्पादन, शीरा, चीनी परता, पेट्रोल।
मूल आलेख : भारत का गन्ना उत्पादन में सबसे बड़ा राज्य उत्तर
प्रदेश जिसमें लखीमपुर जनपद का गन्ना उत्पादन में अहम भूमिका है जिसमें वर्तमान
में 9 चीनी मिलें कार्यरत है जिसमें से 2 सहकारी तथा 7 प्राइवेट चीनी मिलों द्वारा
सामाजिक, आर्थिक कल्याण में महत्वपूर्ण
भूमिका है। जिसमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्राप्त होता है।
वर्तमान समय में चीनी मिलें उप-उत्पादों के उत्पादन को बढ़ावा दे रही है और भारत
सरकार भी सहयोग कर रही है भारत सरकार का लक्ष्य 2025 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत तक
इथेनॉल को सम्मिश्रण करना जिससे कच्चे तेल की निर्भरता को कमकिया जा सके क्योंकि
कच्चे तेल की निर्भरता जितना कम होगा उतना हम को धन कम खर्च करना पड़ेगा इससे
राजकोषीय घाटा कम करने में कामयाब होंगे क्योंकि जब हम विदेशों से कच्चा तेल आयात
करते हैं तो उसके बदले में सरकार को डॉलर में भुगतान करना पड़ता है। जब कच्चा तेल
देश में आता है उसको रिफाइनरियों में शुद्ध होने के लिए जाता है उस प्रक्रिया में
प्रदूषण फैलता है जिस पर हम काबू करने में सक्षम होंगे। वैसे ही प्रदूषण हमारे
पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहा है भारत2070 तक लक्ष्य निर्धारित किया है भारत को
पर्यावरण से प्रदूषण मुक्त करना है। जिसे हमें कच्चे तेल पर निर्भरता कम करना होगा
और ग्रीन एनर्जी की तरफ हमें मुड़ना पड़ेगा,
जीवाश्म
ईंधन को त्यागना होगा। तभी हम अपने लक्ष्य जीरो प्रदूषण तक पहुँच पायेंगेतभी भारत
को समृद्धमय भारत बनाया जा सकता है। क्योंकि इथेनॉल भविष्य में पेट्रोल, डीजल पर निर्भरता कम करने की एक
अच्छी पहल साबित हो सकती है जो लाभदायक सिद्ध हो सकती है जो किसानों की आमदनी
दोगुनी करने में सहायक सिद्ध हो सकती है। हमारा देश पर्यावरण प्रदूषण मुक्त होने
में एक अहम भूमिका होगी।
इसके साथ ही किसानों की आमदनी में बढ़ोत्तरी होगी जिससे
किसानों का अधिकतम लाभ तथा रोजगार की व्यवस्था होगी क्योंकि भारत की लगभग आधे से
अधिक जनसंख्या कृषि पर आधारित है जो मुख्यतः उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा जिला
लखीमपुर-खीरी गन्ना तथा चीनी उत्पादन में उत्तर प्रदेश में प्रथम स्थान पर है
क्योंकि चीनी मिलों के उप-उत्पादों से रोजगार के साथ जनपद-खीरी की ढाँचागत विकास
बहुत तेजी से विकास की ओर अग्रसर हो रहा है इसके पीछे जनपद-खीरी की कृषि उपजाऊ
मृदा की बहुत बड़ी भूमिका है।
अभी हाल में माननीय प्रधानमंत्री जी एक कार्यक्रम में
बताया कि बीते 8 वर्षों में पेट्रोल में इथेनॉल का सम्मिश्रण 10 गुना बढ़ा है। वर्ष
2014 से पहले इथेनॉल मिश्रण 40 करोड़ लीटर था जो अब 400 करोड़ लीटर पहुँच गया है।
इसने किसानों की आय बढ़ाने में भी मदद की है।
साहित्यावलोकन-
अभय
प्रसाद पांडे (2007) ने अपने शोध में प्रस्तुत पत्र
में भारत की चीनी उद्योग की प्रगति की समीक्षा करने का प्रयास किया है, कि यह समस्याएँ और चुनौतियाँ है
जो कि उदारीकरण प्रक्रिया के संदर्भ में है। भारतीय चीनी उद्योग एक वैश्विक नेता
हो सकता है, बशर्ते यह है कि गन्ने की कमी और
अधिशेष, कम गन्ने की उपज, चीनी की कम रिकवरी, कभी बढ़ती उत्पादन लागत और बढ़ते
घाटे के दुष्चक्र से बाहर निकाला जाए। उत्पादकता और उत्पादन बढ़ाने के लिए इस
गतिविधि के सभी स्रोतों पर गुणवत्ता प्रवर्धन की आवश्यकता है। उत्पादन प्रसंस्करण
गतिविधियों द्वारा लागत को कम करने और उपक्रम पर ध्यान देने की आवश्यकता है। (4)
एस.लक्ष्मी
(2018)ने अपने शोध के दौरान स्पष्ट किया किचीनी मिलें
कृषि आधारित उद्योगों में से एक है और भारत में यह कपास और कपड़ा उद्योग के बाद दूसरी
सबसे बड़ी कंपनी है। इतिहास कहता है कि चीनी बनाने की कला फारस और उसके बाद भारत से
दुनिया में आई। चीनी का उत्पादनपहले गन्ने से और बाद में बीट से, सबसे पुरानी और सबसे अच्छी तरह
से अध्ययन की जाने वाली तकनीकी प्रक्रियाओं में से एक है। यह सर्वमान्य है कि भारत
गन्ने और चीनी की मातृ भूमि है। तमिलनाडु में चीनी मिलों का विकास और प्रदर्शन
प्रभावशाली है और वे सरकार की नीतियों से भी काफी संबंधित है। उत्पादन और
प्रौद्योगिकी में सुधार के संदर्भ में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में
तमिलनाडु में विकासात्मक कारकों को उत्तेजित किया। (5)
पायल वेंकट विकास,
प्रसाद
वी मंडे, योगेन्द्र शास्त्री (2018)ने अपने अध्ययन में बताया कि गन्ने के बस्ते से
एथेनॉल का उत्पादन करने के लिए मौजूदा चीनी मिलों को फिर से तैयार करना भारत देश
की तरल परिवहन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।
चीनी मिल में गन्ना कचरा का उपयोग इस दृष्टिकोण कीआर्थिक व्यवहारिता को बढ़ा सकता
है। इस कार्य ने चीनी मिल की ऊर्जा क्षमता सुनिश्चित करने के साथ-साथ इथेनॉल
उत्पादन के लिए वैगास और कचरा के इष्टतम विवरण का निर्धारण करने के लिए अनुकूल
मॉडल विकसित किया। चीनी मिल की अधिसंरचना को कूड़ेदान उपयोग और लिग्निन वेलोराइजेशन
प्रक्रियाओं के साथ दूसरी पीढ़ी के इथेनॉल सुविधा के साथ एकीकृत किया गया है। मॉडल
बड़े पैमाने पर और ऊर्जा संतुलन की कमी और लागत कार्यों के अधीन किए गए बैगास और
कचरा के वितरण को अनुकूलित करके इथेनॉल के ब्रेक (बिक्री) मूल्य को भी निर्धारित
करता है। 150 मिलीग्राम (मेगा ग्राम)/एच के
गन्ना के साथ चीनी मिल के लिए मॉडल के आवेदन ने इथेनॉल बीईपीएस को रू/63/ एल जब कचरा और लिग्निन गर्मी
उत्पादन के लिए बैगास के साथ उपलब्ध था। खेत पर कचरा प्रति धारण बीईपीएस को बढ़ाकर
रू॰/117/
एल, कचरा उपयोग के आर्थिक मूल्य को
दर्शाता है। (6)
अनिल कुमार तिवारी और बी.एन. शर्मा (2019)
ने
अपने अध्ययन में पूर्वी उत्तर प्रदेश में चीनी उद्योग के वितरण पैटर्न और
क्लस्टर्रिंग का विश्लेषण करते है। अध्ययन प्राथमिक और माध्यमिक आंकड़ों पर निवेश
और रोजगार शामिल हैं। कुल 30 कामकाजी मिलों में से 25
मिलें
आठ जिलों यानी,
कुशीनगर
देवरिया, गोरखपुर, महाराजगंज और बहराइच, बलरामपुर, गोंडा, बस्ती पर कब्जा करती है। ये
क्लस्टर सरयू पार मैदान के साथ-साथ तराई में भी स्थित है जो बताते हैं कि चीनी
उद्योग विशेष रूप से गहन गन्ना उत्पादन क्षेत्रों में विकसित किया गया है। (7)
सायन
सरकार (2019)ने अपने अध्ययन में स्प्ष्ट किया कि, भारत दुनिया का चौथा प्रमुख चीनी
उत्पादक देश था। भारत अब दुनिया के सबसे बड़े चीनी उत्पादक देश के रूप में उभरा है, जो दुनिया के चीनी उत्पादन का 22
प्रतिशत
हिस्सा है। शुगर उद्योग देश में दूसरा सबसे बड़ा कृषि उद्योग है। यह गन्ने के 45
मिलियन
किसानों के लिए व्यापक अप्रत्यक्ष रोजगार पैदा करने के अलावा, विनिर्माण द्वारा जोड़े गए शुद्ध
मूल्य में लगभग 3
लाख
श्रमिकों के योगदान के मामले में तीसरा सबसे बड़ा उद्योग है। इसलिए भारतीय
अर्थव्यवस्था में चीनी उद्योग एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भारत में गन्ने के
उत्पादन और चीनी उद्योग के विकास के लिए उपयुक्त वातावरण और उचित जलवायु और मौसम
है। लेकिन अब यह उद्योग विभिन्न प्रकार की समस्याओं से पीड़ित है। इस समस्या को दूर
करने केलिए सरकार ने विभिन्न प्रकार की नीतियाँ शुरू की हैं जो पर्याप्त नहीं है।
समस्या को पूरी तरह से जड़ से मिटाने के लिए सरकार को एक तरफ और अधिक मजबूत नीतिगत
उपाय अपनाने चाहिये और दूसरी तरफचीनी उद्योग की संख्या और घरेलू के साथ-साथ विदेशी
निवेश राशि को भी बढ़ाना चाहिये। (8)
क्रिया
विधि-
सर्वेक्षण के माध्यम से संबंधित समस्याओं और तथ्यों को
समझने के लिए जनपद लखीमपुर-खीरी की आवश्यकताओं के आकलन के लिए एक वैज्ञानिक अध्ययन
की आवश्यकता होती है। सभी सर्वेक्षण किए गए तथ्यों और आंकड़ों को ध्यान में रखते
हुए, यह वर्तमान अध्ययन निम्नलिखित
उद्देश्यों की रूपरेखा तैयार करता है।
अध्ययन के उद्देश्य-
1-चीनी उद्योग के उप-उत्पादों की स्थिति के बारे में
अध्ययन करना।
2-चीनी उद्योग के उप-उत्पादों के उत्पादन में होने वाली समस्याओं का अध्ययन करना।
3-चीनी उद्योग के लिए उप-उत्पादों को आगे-रखना और उत्तर प्रदेश में कुल उप-उत्पादों के साथ तुलना करना।
4-चीनी उद्योग के उप-उत्पादों की समस्याओं को हल करने
के लिए उपाय सुझाना।
5-चीनी उद्योग तथा गन्ना उत्पादकों के बीच में
उत्पन्न समस्याओं को जानना तथा सुझाव देना।
अध्ययन
की आवश्यकता-
चीनी
उद्योग भारत में कपड़ा उद्योग के बाद दूसरा सबसे बड़ा उद्योग है वर्तमान में चीनी
उद्योग के उप-उत्पादों को एक लाभ का सौदा माना जा रहा है। तथा इसकी भूमिका के बारे
में अध्ययन की आवश्यकता है कि चीनी उ़द्योग से जनपद की आर्थिक तथा सामाजिक उन्नति
में कितना परिवर्तन हुआ है जोकि आज भारत सरकार का 2025
तक
लक्ष्य है पेट्रोल में 20
प्रतिशत
इथेनॉल का सम्मिश्रण करना। इससे चीनी उद्योग की एक बड़ी भूमिका हो सकती है। क्योंकि
जनपद लखीमपुर खीरी एक तराई क्षेत्र है जो गन्ना उत्पादन में बहुत बड़ी भूमिका है
जिससे किसानों की आमदनी को बढ़ाने में बढ़ा कदम साबित हो सकता है।
उपरोक्त चार्ट से स्पष्ट हो रहा
है कि पेट्रोल में इथेनॉल का सम्मिश्रण लगातार बढ़ रहा है।
1- वर्ष 2013-14 से 2015-16
तक
2 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गयी जो
कि तीन वर्षों का परिणाम है। जबकि 2016-17
में
1.4 प्रतिशत अचानक गिरावट देखी गयी
इसका प्रमुख कारण चीनी का कम उत्पादन,
इथेनॉल
कम उत्पादन का संकेत करता है।
2-
2016-17
से
2017-18 में इथेनॉल का पेट्रोल में
सम्मिश्रण 2.1 प्रतिशत का छलाँग लगाते हुए 4.2 प्रतिशत रहा तब से 2020-21 तक उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है
जो वर्ष 2017-18 से 4.2
प्रतिशत
से 2020-21 में 8.5
प्रतिशत
तक रहा जो एक अच्छा संकेत रहा है।
3-
क्योंकि भारत सरकार के द्वारा 2025 तक एथेनॉल का पेट्रोल में मिश्रण
20 प्रतिशत लक्ष्य पाने में मददगार
साबित हो सकता है। इसलिए सरकार के द्वारा इथेनॉल के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा
है चीनी मिलों के द्वारा जितना अधिक इथेनॉल का उत्पादन होगा, वह चीनी मिलों के साथ-साथ गन्ना
कृषकों की आमदनी बढ़ेगी जिससे कृषकों की आजीविका के साधनों में वृद्धि हो सकेगी।
घरेलू स्तर पर भारत 173
करोड़
लीटर इथेनॉल पेट्रोल में सप्लाई वर्ष 2019-20
में
की जो 91 प्रतिशत गन्ने द्वारा उत्पादन
किया जाता है बाकी 9
प्रतिशत
मक्का, गेहूँ, चावल द्वारा उत्पादन किया जाता
है।[1]
हॉल में सरकार द्वारा घोषणा की गयी 17मिलियन टन, अनाज को इथेनॉल के उत्पादन में
प्रयोग किया जायेगा।
उत्तर प्रदेश राज्य में कुल 80 आसवनियाँ स्थापित हैं जिसमें तीन
आसवनी अनाज पर आधारित एक डूअल मोड पर आधारित है दो आसवनियाँ पी॰डी॰ 33 अनुज्ञापन के आधार पर पेय मदिरा
की भराई कर रही हैं। शेष आसवनियाँ शीरे से अल्कोहल का निर्माण करती हैं।
उपरोक्त सारणी से स्पष्ट है कि
उत्तर प्रदेश में पॉवर अल्कोहल (इथेनॉल) का उत्पादन प्रतिवर्ष बढ़ रहा है।
1-वर्ष 2017-18में इथेलॉल का उत्पादन समस्त
राज्यों का उत्तर प्रदेश में लगभग29प्रतिशत है।
2-वर्ष 2018-19
में
भारत के कुल उत्पादन का उत्तर प्रदेश में लगभग 35.5
प्रतिशत
हुआ जो अग्रसर बढ़ रहा है।
3-2019-20 से 2021-22 में उत्तर प्रदेश 32.96 प्रतिशत उत्पादन बढ़ा जोकि प्रदेश की आमदनी में बढ़ौत्तरी करने में अहम भूमिका है।
जैसाकि
उपरोक्त सारणी से स्पष्ट है भारत के इथेनॉल का मूल्य भौगोलिक दृष्टि में अधिक है
इसमें सरकार द्वारा तथा खाद्यान्न का मूल्य निर्धारित कर तथा कृषकों को मदद करनी
चाहिए जो गन्ने तथा खाद्यान्न का उत्पादन करते हैं। भौगोलिक दृष्टि से तीन प्रमुख
कारकों से जो इथेनॉल के उत्पादन तथा प्रयोग होता है जो निम्न है।
1.माँग की पहुँच- सरकार का दृष्टिकोण है कम से कम
प्रतिशत में इथेनॉल के साथ गैसोलीन फ्यूल और पेट्रोलियम में नियन्त्रण किया जाय।
2.सप्लाई की पहुँच-’
इथेनॉल
उत्पादन स्कीम के तहत रिफाइनरी को स्टॉक क्षमता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जा
रहा है।
3.प्रोत्साहन- पेट्रोल में इथेनॉल सम्मिश्रण के लिए
कर में छूट तथा मूल्य प्रोत्साहन लाभ दिया जा रहा है।
जबकि भारत ने 2022 में 175 गीगावॉट ग्रीन एनर्जी का लक्ष्य
प्राप्त किया जिसमें बायोफ्यूल का सबसे बड़ी भूमिका जो पर्यावरण को भी प्रदूषण से
बचायेगा, क्योंकि भारत का 2025 तक लक्ष्य है 20 प्रतिशत इथेनॉल का पेट्रोल में
सम्मिश्रण करने का लक्ष्य प्राप्त करना है। क्योंकि भारत बायो इथेनॉल विभिन्न
स्त्रोतों से प्राप्त करता है जैसे गन्ना,
खराब
खाद्यान्न, आदि से उत्पादन किया जाता है। अब
कृषकों को अन्नदाता से ऊर्जादाता की तरफ बढ़ते कदम इस लक्ष्य को प्राप्त करने में
बड़ी भूमिका होगी।
उपरोक्त सारणी से ज्ञात हो रहा है कि उत्तर प्रदेश के
चीनी मिलों द्वारा शीरा के उत्पादन में निरन्तर बढ़ौत्तरी हो रही है।
1.
वर्ष 2015-16 में 30.43 लाख टन शीरा का उत्पादन हुआ तब
शीरा परता 4.71 प्रतिशत था वहीं वर्ष 2021-22 में 56.27 लाख टन शीरा उत्पादन पर 5.54 प्रतिशत शीरा परता है जो चीनी
मिलों के उप-उत्पादों के लिए अच्छा है।
2.
शीरा उत्पादन से चीनी मिलों को विभिन्न कम्पनियों
के साथ सौदा हो सकेगा क्योंकि शीरा से बहुत सारे खाने की वस्तुएँ बनाई जाती हैं।
उपरोक्त
सारणी से स्पष्ट हो रहा है कि भारतीय चीनी उद्योग को घरेलू खपत को भी पूरा करना है
और चीनी उद्योग में अधिक लाभ कमाने के लिए विदेशों को निर्यात भी करना है इसके लिए
चीनी का उत्पादन प्रति वर्ष बढ़ाना है।
भारत
ने वर्ष 2020-22 में कुल पेट्रोलियम आयात किया 185 मीट्रिक टन जिसकी लागत 55 बिलियन डॉलर है। जो पेट्रोलियम
उत्पादों का प्रयोग परिवहन में किया जाता है जबकि E20
प्रोग्राम
से देश 4 बिलियन डॉलर की प्रतिवर्ष बचत हो
सकती है इथेनॉल में सबसे कम प्रदूषण के साथ क्षमता बराबर होती है। इसलिए लागत भी
कम है। इथेनॉल उत्पादन गन्ना तथा खाद्यान्न से किया जाता है।
उपरोक्त सारणी से ज्ञात हो रहा
है कि जनपद लखीमपुर-खीरी में चीनी उद्योग के उप-उत्पादों में आये दिन बढ़ौत्तरी हो
रही है जो इस प्रकार है।
1. वर्ष 2014-15 में जहाँ शीरा का उत्पादन 45.22 लाख कुन्तल हुआ जो शराब बनाने
वाली कम्पनियों को बेचा जाता है क्योंकि अल्कोहल से राज्य सरकारों को काफी मुनाफा
होता है। जिससे शीरे का उपयोग सबसे अधिक अल्कोहल कम्पनियों को सप्लाई किया जाता
है।
2. वर्ष 2015-16 से वर्ष 2017-18 में देखा जाये तो जहाँ 2015-16 में 38.52 लाख कुन्तल शीरे का उत्पादन हुआ
वहीं पर 2017-18 में 66.64 लाख कुन्तल शीरा का उत्पादन हुआ
जो लगभग 28.22 लाख कुन्तल अधिक उत्पादन हुआ
जिससे चीनी मिलों को अधिक लाभ हुआ।
3. वर्ष 2018-19 में शीरे का उत्पादन 55.77 लाख कुन्तल हुआ जो पिछले वर्ष
से 10.87 लाख कुन्तल कम हुआ जिससे स्पष्ट
हो रहा है कि शीरा उत्पादन में उतार-चढ़ाव लगा रहता है।
4. वर्ष 2019-20 में शीरे का उत्पादन 63.00 लाख कुन्तल हुआ इसी वर्ष से
जनपद में इथेनॉल का उत्पादन 800 लाख लीटर हुआ जोकि शीरा के
साथ-साथ इथेनॉल का उत्पादन एक बड़ी उपलब्धता थी जो चीनी मिलों द्वारा हासिल की गयी।
5. वर्ष 2020-21 व 2021-22 में क्रमशः शीरे का उत्पादन 59.00 लाख कुन्तल तथा वर्ष 2021-22 में 61.00 लाख कुन्तल हुआ इसी वर्षों में 2020-21 में इथेनॉल का उत्पादन 1150 लाख लीटर तथा वर्ष 2021-22, 1300 लाख लीटर इथेनॉल का उत्पादन हुआ
क्योंकि उपरोक्त वर्षों में कोविड-19 महामारी से देश गुजर रहा था
इसमें हैण्ड सैनीटाइजर का उत्पादन बड़ी मात्रा में चीनी मिलों से प्राप्त कच्चे माल
से किया गया था।
हालाँकि जनपद लखीमपुर-खीरी के चीनी उद्योग का
उप-उत्पादों की तरफ बढ़ते कदम से वर्तमान समय में चीनी मिलों की बहुत बड़ी भूमिका है
जो इस विश्लेषण से ज्ञात हो रहा है क्योंकि जनपद की चीनी मिलें शीरा के साथ-साथ
वर्ष 2019-20 से इथेनॉल का बड़ी मात्रा में
उत्पादन कर रही है जिससे केन्द्र सरकार के महत्वाकांक्षी प्रोग्राम E20 को आने वाले 2025 तक में महत्वपूर्ण भूमिका साबित
हो सकती है।
वर्तमान समय में जनपद की चीनी
मिलों की प्रमुख समस्याएँ निम्न है।
1. सहकारी चीनी मिलों में गन्ना पेराई की क्षमता कम
होने से इथेनॉल का उत्पादन कम हो पाता है।
2. निजी क्षेत्र की चीनी मिलों में गन्ने का क्षेत्र
का निर्धारण सही न होने के कारण यात्रा लागत बड़ी समस्या है।
3. खीरी जनपद तराई होने की वजह से गन्ने में चीनी कम
निकल पाती है।
4. जनपद के सहकारी चीनी मिलों में उच्च तकनीकी वाले
यंत्रों की कमी महसूस की गयी है।
5. सहकारी चीनी मिलों में उच्च प्रबन्धन की कमी पायी
गयी है।
6. जनपद की चीनी मिलों में उप-उत्पादों के उत्पादन में
गन्ने का लाल सड़न रोग होने से उप-उत्पादों में कमी पायी गयी है।
चीनी
उद्योग के उप-उत्पादों के विकास हेतु सुझाव:-
जनपद-खीरी
के चीनी उद्योग के उप-उत्पादों के उत्थान/विकास हेतु निम्न कदम उठाये जा सकते हैं।
1. जनपद-खीरी के चीनी मिलों को उप-उत्पादों को बढ़ावा
देने के लिए अधिक से अधिक इथेनॉल,
बिजली
तथा शीरा का उत्पादन करना चाहिये जिससे चीनी मिलों की आमदनी बढ़ेगी।
2. चीनी मिलों के कर्मचारियों का फीड बैक लेकर सुधार
किया जा सकता है।
3. चीनी मिलों के कर्मचारियों से कार्यों का
क्रियान्वयन तथा फीड बैक लेना चाहिए जिससे वे कार्य को सही समय तथा सही कार्य कर
सके जिससे चीनी मिलों में उप-उत्पादों को बढ़ाने में सहयोग हो सके।
4. चीनी मिलों में उच्च तकनीकी विशेषज्ञों की नियुक्ति
की जानी चाहिए जिससे चीनी परता तथा उप उत्पादों के उत्पादन की मात्रा में बढ़ोत्तरी
की जा सके।
5. जनपद के खास कर सहकारी चीनी मिले उच्च प्रबन्धन तथा
उच्च विशेषज्ञों को नियुक्ति करके उनमें सुधार किया जा सकता है।
निष्कर्ष : इस अध्ययन से चीनी उद्योग के उप उत्पादों का उत्पादन, गन्ना उत्पादन, चीनी पऱता के रूझानों का विश्लेषण किया गया है, इथेनॉल की उत्पादकता में योगदान करने वाले कारकों को निर्धारित किया गया तथा भारत में इथेनॉल की मात्रा लगातार बढ़ रही है जिसमें उत्तर प्रदेश की बहुत बड़ी भूमिका है। अध्ययन से पता चला है कि मानव, श्रम, मशीन उर्वरक कीटनाशकों के उचित प्रयोग से गन्ने की उत्पादकता बढ़ाई है जिससे उप-उत्पादों के उत्पादन में बढ़ोत्तरी सम्भव हो पायी है इस प्रकार वर्तमान अध्ययन से गन्ने की वर्तमान उत्पादकता के साथ-साथ इथेनॉल की उत्पादकता बढ़ी है। कोरोना काल में चीनी मिलों की अहम भूमिका हैण्ड सैनीटाइजर को बनाने में एल्कोहल की सप्लाई बड़ी मात्रा में हुई। इस तरह भविष्य में उप-उत्पादों को अधिक उत्पादन किया गया तो चीनी उद्योग एक लाभप्रद उद्योग साबित होगा जो इस अध्ययन से पता चलता है।
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15. https://dir.indiamart.com/lucknow/sugar-plant.html
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-43, जुलाई-सितम्बर 2022 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक एवं जितेन्द्र यादव, चित्रांकन : धर्मेन्द्र कुमार (इलाहाबाद)
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