धरोहर : अध्यात्म का संदेश प्रसारित करता एक वैज्ञानिक : डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम / डॉ. प्रशान्त कुमार

अध्यात्म का संदेश प्रसारित करता एक वैज्ञानिक : डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम

-डॉ. प्रशान्त कुमार

( 15 अक्टूबर कलाम साहेब की जयंति पर विशेष )

 

"सृष्टि आध्यात्मिक सिद्धांतों का उसी प्रकार पालन करती है, जिस प्रकार भौतिक शास्त्र और गुरुत्व के नियमों का। इन सिद्धांतो को समझना, जानना और फिर उनके अनुसार जीवन मार्ग का चुनाव करना हमारा कर्तव्य है।"

 

ये शब्द हैं उस महान शख्सियत के जिसने अपना पूरा जीवन विज्ञान व तकनीक को समर्पित करते हुए भी दुनिया में ईश्वर, अध्यात्म, प्रेम व शांति का संदेश प्रसारित किया। एक अद्भुत मानवतावादी चिंतक, संवेदनशील कवि, ऊर्जावान लेखक व प्रभावी शिक्षक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने अपनी असाधारण मानसिक क्षमता, कार्य के प्रति समर्पण, ईमानदारी, तीव्र लगन व  प्रगतिशील चिंतन के बल पर भारत को उन्नत देशों के समूह में अग्रणीय स्थान पर पहुंचाने के लिए प्रक्षेपण यानों और मिसाइल प्रौद्योगिकी के  क्षेत्र में अपना संपूर्ण जीवन गुजार दिया। डॉ. कलाम का संपूर्ण जीवन आध्यात्मिक–वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भरपूर तथा नैतिक मूल्यों की सार्थकता की मिसाल था। इक्कीसवीं सदी में भी जब देश में आज लगातार सांप्रदायिक ताकतें अपना सिर उठा रही हैं, देश में कट्टरता और धर्म के नाम पर कर्मकांड या नफरत का माहौल चहुंओर पसरा दिखाई देता है, ऐसे में देश की युवा पीढ़ी को कलाम एक अंतर्दृष्टि प्रदान करते हुए राह दिखाते है की यह पीढ़ी किस तरह ईश्वर, तत्वज्ञान और विज्ञान की व्याख्या करते हुए इनके बीच संतुलन से अपना जीवन बेहतर बना सकती है। 

डॉ. कलाम की जयंती को पूरे देश में ‘विद्यार्थी दिवस’ के रूप मनाया जाता हैं। बच्चों और युवा पीढ़ी से उनका विशेष स्नेह था। आइए आज हम डॉ. कलाम के दिए कुछ ऐसे ही संदेशों को जाने जिससे कि भारत की युवा पीढ़ी अपना मार्ग प्रशस्त कर एक दिशा पा सकती है। 

 

ईश्वर संबंधी संकल्पना

डॉ. कलाम ईश्वर को मानव बोध से परे एक सर्वोच्चता मानते हुए उसे धर्म से अलग रखते थे। उनका मानना था कि यहाँ केवल एक व्यवस्था है– ब्रह्मांड। बाकी सभी अन्य व्यवस्थाएं इस विराट व्यवस्था की ही उपव्यवस्थाएं है। आकाशगंगा में हमारा सौरमंडल, पृथ्वी के चक्कर लगाता चंद्रमा जिसके असर से  ज्वार भाटा उत्पन्न होना और उससे मछुआरों का जीवन जुड़ा होना, इस बात को साबित करता है कि हम सब एक ही हैं। उन के अनुसार ब्रह्मांड का अध्ययन करने से हम ईश्वर के कार्य पर विचार करते हैं। वे सर्वोच्च ईश्वरी कानून के रूप में ‘कारण और प्रभाव’ के सिद्धांत को मानते थे। उनके अनुसार व्यक्तियों, संगठनों और सरकारों के पथभ्रष्ट तरीकों से समस्याएं और दुःख उत्पन्न होते है। जबकि हमें ये ध्यान में रखना होगा कि ‘क्रिया–प्रतिक्रिया’ का नियम ही समस्त जीवो का नियंता है। ‘सभी धर्मों में अंतिम सत्य एक ही है’ इस सिद्धांत को कलाम हिंदू और मुस्लिम धर्मग्रंथों के उद्धरण से समझाते हैं। उनके अनुसार ‘ईश्वर के एकत्व का सिद्धांत (तौहीद)’ इस्लाम की मूल अवधारणा हैं। ठीक उसी प्रकार गीता में अर्जुन को दिए गए संदेश में  कृष्ण कहते हैं– “मैं अपने बहुत ही छोटे से अंश से संपूर्ण ब्रहमांड को थाम रहा हूं। मैं सर्वव्याप्त हूं।” इस प्रकार डॉ. कलाम के दर्शन से स्पष्ट है कि वे विभिन्न धर्मों को परमसत्ता  तक पहुंचने का एक मार्ग मानते थे, जो वास्तव में एक ही है, चाहे वो खुदा के नाम से जाना जाए या भगवान के। वह ईश्वर को ऊर्जा का एक स्वरूप मानते थे तथा मानव को उसी ऊर्जा का एक अंश। उनके अनुसार ऊर्जा के रूप में विद्यमान यह दिव्य प्रकाश एक ऐसी शक्ति है जो स्वयं व्यक्ति के भीतर गहराइयों से उपजती हैं। यही वह ताकत है जो उत्कृष्टता की तरफ ले जाती हैं, अतः व्यक्ति को अपने भीतर की ऊर्जा को पहचानना चाहिए। इस प्रकार कलाम ईश्वर की अनुभूति को एक वैज्ञानिक तथ्य मानते थे तथा ‘कारण–प्रभाव’ के सार्वभौम नियम की समझ पर जोर देते। कलाम अपनी आध्यात्मिक चर्चाओं में विभिन्न महान वैज्ञानिकों जैसे- न्यूटन, आइंस्टीन, स्पिनोजा आदि की ईश्वर संबंधी धारणाओं का उल्लेख किया करते थे।

 

आत्मा का विचार 

आत्मा की अमरता का दर्शन कलाम की जीवन में था जिसे वे सीधा  मनुष्यों के कर्म से जोड़ते थे। उनके अनुसार अच्छे कर्म आत्मा को लाभ पहुंचाते हैं और बुरे कर्मों से आत्मा को हानि होती है। कलाम के अनुसार आत्मा वास्तव में एक ईश्वरीय तत्व है। इसका निजी पहचान और  व्यक्तिगत रूप से कुछ लेना-देना नहीं हैं। हम अलग-अलग मानव है क्योंकि हम अलग-अलग तरह के रूपों और पदार्थों का यौगिक है। किंतु हमारा शरीर समान क्षमता वाले समूह और समान आत्मा द्वारा ही चलता है। आत्मानुभूति व आत्मबोध जैसे जटिल दार्शनिक शब्दों की व्याख्या वे बड़े ही सुंदर व सरल रूप में वैज्ञानिक ढंग से करते हैं– ‘विमान चालन से संबंधित अनुसंधानात्मक समस्याओं को हम यूक्लिडय ज्यामिति सिद्धांत की सहायता से हल करते हैं, जहां प्रत्येक आयाम एक सीधी रेखा के रूप में होता है और वह अन्य आयामों को समकोण पर प्रतिच्छेदित करता है। अधिक जटिल समस्याओं को सुलझाने में हम राइमन ज्यामिति का प्रयोग करते हैं, जिसमें आयाम एक दूसरे का समकोण पर प्रतिच्छेदन नहीं करते, अपितु परस्पर अंतर्निहित देखे जाते हैं। आत्मानुभूति के बारे में प्रायः यूक्लिडय ज्यामिति सरीखे भ्रम विचार आते रहते हैं, परंतु वस्तुतः आत्मबोध एक राइमन ज्यामिति सरीखा अनुभव हैं–भावनाओं की अनवरत अंतर्बद्धता।  

 

विज्ञान की आध्यात्मिक व्याख्या

अपनी एटोमिक स्टडीज के अध्ययन के दौरान कलाम ने पढ़ा की परमाणु अस्थिर होते है और एक निश्चित समय के बाद दूसरे परमाणु में परिवर्तित हो जाते हैं, इससे जहां उन्हें एक ओर ‘आत्मा की अमरता’ कि सीख मिली वहीं दूसरी ओर अपने अध्ययन में सभी यौगिक  पदार्थों का क्षय अपरिहार्य है जैसे सिद्धांत से उन्हें ‘जीवन की नश्वरता’ का ज्ञान मिला। उनके अनुसार वैज्ञानिक दृष्टिकोण से किसी व्यक्ति के अंतकरण, चिंतन, कल्पना, संवेग, अनुभूति, स्वप्न, अंतर्दृष्टि और प्रेरणा को एक  निराकार संचन प्रक्रम के रूप देखा जा सकता है। वे मानते थे कि संपूर्ण ब्रह्मांड एक निश्चित व्यवस्था के अंतर्गत निरंतर गतिशील है। जिस प्रकार सृष्टि के बाह्य संसार के संचालन के कुछ निश्चित नियम है, जैसे–गुरुत्व का नियम, बल का नियम, गति का नियम, ऊर्जा का नियम आदि। ठीक उसी प्रकार मन के आंतरिक संचालन के भी निर्धारित नियम हैं। इन नियमों की समझ से जीवन के अनुभवों को बेहतर ढंग से समझा जा सकता हैं। ‘कारण-प्रभाव’ की श्रृंखला को समझना बहुत आसान नहीं होता, लेकिन इस नियम से कोई बच नहीं सकता। कलाम का मानना था कि कानून के कई स्तर होते हैं तथा इसमें कई तरह के समय के पैमाने भी काम करते हैं। वह मानव जाति से संबंधित एक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए बताते हैं कि विश्व स्तर पर जीवाश्म ईंधन को अंधाधुंध जलाने से ही तकलीफें मिलनी शुरू हो चुकी हैं। सामाजिक-आर्थिक असमानता से जीवन में पीड़ा व तनाव तथा नए तरह के रोग उत्पन्न हुए हैं। इस अपरिवर्तनीय नियम से बचने का कोई रास्ता नहीं हैं। हम त्रुटिपूर्ण चयन के परिणामों को भुगत रहे हैं। हम जो कुछ भी सोचते हैं, करते हैं या महसूस करते हैं, अपने इर्द-गिर्द और इस संपूर्ण ब्रह्मांड में अपने कोशिकीय क्षेत्र द्वारा ऊर्जा की गति से जुड़ जाता है। यह ऊर्जा पेंडुलम की तरह हमारे पास वापस आती है। ऐसा भी हो सकता है कि यह पलक झपकते ही वापस आ जाए या पीढ़ियों के बाद लौटे।

 

धर्म और अध्यात्म

भारत की संस्कृति अति प्राचीन हैं। यह इस्लाम के जुड़े जमाने से और ईसाई धर्म के प्रचार से भी बहुत पहले से मौजूद है। लेकिन कई वर्षों तक उन संस्कृति के लोगों ने यहां रच-बस कर और भारतीय संस्कृति के साथ अपनी–अपनी संस्कृतियों का आदान प्रदान कर भारतीयता को एक नया आयाम दिया हैं। ए. आर. रहमान जब वंदे मातरम गाते हैं तो उनका स्वर हर भारतीय की आत्मा को झकझोर देता है, चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाला क्यों न हो। कलाम का मानना था कि धार्मिक स्वरूप को धार्मिक भावनाओं पर लादने की कोशिश इस राष्ट्र के लिए चिंता का विषय हैं। हमें अपनी विरासत के लिए ‘धर्म’ की जगह ‘सांस्कृतिक’ संदर्भ विकसित करना चाहिए, जो हम सभी को भारतीय बनाने के लिए कार्य करेगा। देश में सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ाने एवं आतंकवाद जैसी गंभीर समस्या के रोकथाम के लिए कलाम समाज के विभिन्न वर्गों के मध्य व्याप्त विविध प्रकार की विषमताओं को दूर करना आवश्यक मानते थे, साथ ही रोजगारोन्मुखी नैतिक मूल्य आधारित शिक्षा उपलब्ध कराना भी आवश्यक मानते थे। उनका मानना था कि प्राथमिक कक्षाओं से ही हमें सभी धर्मों का आदर करना सिखाया जाता हैं फिर भी राष्ट्र सांप्रदायिक दंगों की आग में झुलसता है। ऐसे में कलाम का मानना था कि हमारे सभी धर्म सुंदर द्वीपों का अद्भुत समूह है। जब धर्म अध्यात्म का रूप लेने लगता है तो हमें इन सब में एकांत के दर्शन होने लगते हैं। छात्रों को वे एक शपथ का पालन करने को कहते हैं– ‘मैं किसी भी धार्मिक, जातीय तथा भाषिक विभिन्नताओं का समर्थन नहीं करूंगा।’ विभिन्न धर्मों के मतभेद व विरोधाभास पर कलाम कहते हैं कि आजकल धर्म के क्षेत्र में राजनीति का प्रवेश हो गया हैं। वास्तव में धर्मों के बीच से अधिक तो हर एक धर्म के अपने भीतर ही ज्यादा उठापटक हैं। ये मतभेद इस बात पर निर्भर करते हैं कि किसी भी  धर्म में आधुनिकता और धर्मनिरपेक्षता का किस सीमा तक समायोजन हो पाया और कितना इन्हें अलग रखा जाता हैं। कलाम का मानना था कि हमारी आध्यात्मिक समझ ही हमारी ताकत हैं। एक राष्ट्र के तौर पर हमने हमलावरों की मारकाट और उपनिवेशवाद को झेला हैं। हम अपने समाज में दरारों और विभाजन के साथ सामंजस्य बिठाना सीख गए हैं, लेकिन इस प्रक्रिया के दौरान हमने अपने लक्ष्यों और अपेक्षाओं का कद कम किया हैं। हमें अपने विशाल दृष्टिकोण को दोबारा प्राप्त करना होगा तथा अपनी विरासत और समझ में अपने जीवन को समृद्ध बनाना होगा। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र से उन्नति करने अर्थ यह नहीं कि हम आध्यात्मिक विकास को रोक दें। हमें अपनी आर्थिक ताकत के आधार पर विकास का अपना मॉडल इसी भूमि पर तैयार करना होगा।

 

साइंटिफिक टेंपर युक्त आध्यात्मिक युवा तैयार करने का सपना

आज हमें नजर आता है कि विज्ञान को विषय के रूप में युवक–युवतियां एक यांत्रिक तरीके से पढ़कर, परीक्षा पास कर केवल सर्टिफिकेट मात्र इकट्ठे कर रहा है किंतु उनके जीवन से विज्ञान के अनुप्रयोग नदारद हैं। ऐसे में हमें डॉ. कलाम के वैज्ञानिक दर्शन को जीवन में अपनाकर, उनके सपनों को साकार करने का संकल्प लेते हुए आधुनिक भारत के नवनिर्माण की रूपरेखा में अपना योगदान देना चाहिए। वे चाहते थे कि भारत का युवा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से युक्त हो तथा शांति व प्रेम का संदेश विश्व को प्रसारित करने वाला बने क्योंकि ये बुद्ध, विवेकानंद और गाँधी की पुण्यभूमि हैं। कलाम कहते थे कि मैं हमेशा से ही विज्ञान में विश्वास करने वाला व्यक्ति हूं, लेकिन साथ ही मेरा आध्यात्मिक विश्वास भी रहा है। मेरे मन में ईश्वर के बारे में विभिन्न मत थे। मुझे ज्ञान की प्राप्ति कुरान, गीता, बाइबल द्वारा और जीवन संस्कारों का मिलाप अपनी जन्मभूमि से मिला था। इस शहर (रामेश्वरम) के अनूठे संस्कारों ने मेरा पूर्ण विकास किया। अगर मुझे कोई एक सच्चे मुस्लिम के गुणों के बारे में पूछे तो मैं निश्चित रूप से अपने पिता, शास्त्री जी तथा फादर बोदेल का जिक्र करूंगा, जिनके साथ में बड़ा हुआ था या ऐसे ही कुछ और व्यक्ति जो मेरी जिंदगी में आए और जिन्होंने हमारे देश के नैतिक मूल्यों और धर्म की नींव को मजबूत किया, जहां विभिन्न धर्मों तथा विभिन्न मतों का विकास हुआ तथा हर किसी को अपना उचित स्थान मिला। इस प्रकार डॉ. कलाम न केवल ईश्वर के प्रति आस्थावान थे वरन आध्यात्मिक शक्ति के अस्तित्व को भी मानते थे। समय-समय पर उनके द्वारा दिए गए विभिन्न व्यक्तियों एवं लेखों में हमें उनका प्रबल आध्यात्मिक पक्ष दृष्टिगोचर होता है। इसके साथ ही हमें यह भी जानने को मिलता है कि किस तरह एक उचित वातावरण ने उनके जीवन दर्शन और व्यक्तित्व में महत्वपूर्ण योगदान दिया। हमें यह ध्यान रखना होगा कि हमारे बच्चे किस पारिवारिक, सामाजिक या विद्यालयी वातावरण में पढ़ रहे हैं और उनका व्यक्तित्व निर्माण हमारी जिम्मेदारी है। एक अच्छे वातावरण में पल–बढ़कर समृद्ध हुई शिक्षित युवा शक्ति एक नागरिक के रूप में राष्ट्र में अहम योगदान देगी।

  

डॉ. प्रशान्त कुमार
प्राचार्य
श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ मानव हितकारी संघ महिला शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय, राणावास
Prashant.kalam@gmail.com, 7976918930
 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-43, जुलाई-सितम्बर 2022 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक एवं जितेन्द्र यादवचित्रांकन : धर्मेन्द्र कुमार (इलाहाबाद)

1 टिप्पणियाँ

  1. जी जी सुंदर आलेख,, जिसमें उपनिषद के मूल विचार है तो साथ ही ओशो का विज्ञान अध्यात्म और आचार्य महाप्रज्ञ की दृष्टि नजर आती है,,विचार अंदर से एक ही है,.....

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