प्रेमचंद की प्रतिबंधित कहानियाँ
( विशेष संदर्भ- ‘सोजेवतन’)
- डॉ. भारती
प्रतिबंधित साहित्य वह साहित्य है जिसे ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर लिया था। ब्रिटिश सरकार द्वारा समय-समय पर अनेक रचनाएँ प्रतिबंधित कर दी गई। जब भी किसी रचना में राष्ट्रीय भाव-बोध अधिक दिखाई पड़ा या जिन रचनाओं को पढ़कर जनता अपने समय और समाज की वास्तविक सच्चाई से अवगत होती अथवा ब्रिटिश सरकार की आलोचना जिन रचनाओं में मिलती अक्सर वे रचनाएँ प्रतिबंधित कर दी जाती। भारतीय भाषाओं की ऐसी तमाम रचनाएँ जिनमें ब्रिटिश सरकार को बगावत के स्वर दिखाई पड़े उनको ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर दिया गया। ‘सोजेवतन’ प्रेमचंद का पहला कहानी संग्रह है। इसका प्रकाशन 1908 में हुआ था। उस समय प्रेमचंद नवाब राय के नाम से उर्दू में लिखते थे। इस कहानी संग्रह में पाँच कहानियाँ हैं- ‘दुनिया का सबसे अनमोल रतन’, ‘शेख़ मख़मूर’, ‘यही मेरा वतन है’, ‘शोक का पुरस्कार’, सांसारिक प्रेम और देश प्रेम’। इन कहानियों में देशप्रेम और राष्ट्रीय भावना के स्वर निहित हैं। इस कहानी संग्रह की लोकप्रियता और इसमें अभिव्यक्त देशप्रेम की भावना से आशंकित होकर ब्रिटिश सरकार ने ‘सोजेवतन’ की प्रतियां जब्त कर ली थी। शंभुनाथ लिखते हैं :-“उनके कहानी संकलन ‘सोजेवतन’ की 700 प्रतियां जब्त करके जला दी गई थी। फिराक गोरखपुरी ने कहा था, ‘सोजेवतन’ के प्रकाशित होने से भारत के गल्प लेखन के इतिहास में एक शांत और मौन क्रांति हो गई। ’ बीसवीं सदी के पहले दशक में राष्ट्रीय चेतना का एक नया ज्वार आया था, ‘सोजेवतन’ उसी की साहित्यिक प्रतिध्वनि था।”।
‘दुनिया का सबसे अनमोल रत्न’ यह कहानी देशप्रेम की कहानी है। अपनी बनावट में यह कहानी अलिफ़-लैला की कहानियों की तर्ज पर लिखी गई है जिसमें दिलफिगार नामक युवक सौंदर्य की देवी मलका का सच्चा और उस पर अपनी जान देने वाला प्रेमी है। मलका दिलफिगार से कहती है कि अगर वह उसका सच्चा प्रेमी है तो वह दुनिया की सबसे अनमोल चीज लेकर उसके दरबार में हाजिर हो तभी वह उसे अपना दीदार कराएगी और उसे अपनी गुलामी में कबूल करेगी। आखिर दुनिया की सबसे अनमोल चीज क्या हो सकती है ? इसी विचार चिंतन में दिलफिगार यहाँ से वहाँ भटकता रहता है और कई बार प्रयास करने पर भी जब उसे दुनिया की सबसे अनमोल चीज नहीं मिलती तो अंत में वह एक सच्चे देशप्रेमी के खून का आखिरी कतरा लेकर मलका के दरबार में पेश होता है जिसे देखकर मलका खुश हो जाती है और उसे अपना मालिक कबूल करती है और कहती है कि ‘खून का यह आखिरी कतरा जो वतन की हिफ़ाजत में गिरे दुनिया की सबसे अनमोल चीज है’। वस्तुतः यह कहानी देशभक्ति के जज्बे को और वतन पर जान कुर्बान करने वाले भारत के सपूतों को सलाम करती है। कहानी यह संदेश भी देती है कि एक सच्चे देशभक्त के खून के इस आखिरी कतरे से ज्यादा अनमोल कोई चीज इस दुनिया में नहीं हो सकती है। अतः देशभक्ति की भावना सर्वोपरि है।
‘शेख़ मख़मूर’ कहानी एक सच्चे देशभक्त के चारित्रिक गुणों को बयां करती है। इस कहानी के केंद्र में मसऊद नामक युवक है जो बाद में शेख़ मख़मूर के नाम से भी जाना जाता है। इसमें मसऊद नामक देशभक्त के अद्भुत पराक्रम और वतन पर मर मिटने का जज्बा तो प्रेमचंद ने दिखाया ही है, साथ ही विपरीत हालातों में उसके असीम धैर्य का परिचय भी दिया है। वस्तुतः यह कहानी देशप्रेम की भावना को प्रसारित करते हुए देशभक्ति के जज्बे की विजय गाथा को प्रस्तुत करती है।
‘यही मेरा वतन है’ यह एक प्रवासी भारतीय की कहानी है जो अपनी आकांक्षाओं के वशीभूत होकर विदेश चला गया और आज जब उसके पास वो सभी सुख-सुविधाएँ है जिनको उसने चाहा था तब भी वह खुश नहीं है । सबकुछ होते हुए भी एक परायापन उसे विदेश में कचोटता रहता है। वह कहता है –“मैं यहाँ अपने देश से निर्वासित हूँ। यह देश मेरा नहीं है, मैं इस देश का नहीं हूँ। धन मेरा था, बीवी मेरी थी, लड़के मेरे थे और जायदादें मेरी थीं, मगर जाने क्यों मुझे रह रहकर अपनी मातृभूमि के टूटे-फूटे झोंपड़े, चार-छः बीघा मौरूसी जमीन और बचपन के लंगोटिया यारों की याद सताया करती थी और अक्सर खुशियों की धूमधाम में भी यह ख़याल चुटकी लिया करता कि काश अपने देश में होता !”
आज अपनी मातृभूमि के लिए वह जितना लालायित है उसी मातृभूमि को छोड़कर वह कभी इस विदेश की चकाचौंध में आ बसा था। उसको किसी ने निर्वासित नहीं किया था बल्कि अपने लिए यह निर्वासन उसने स्वयं चुना था –“मुझे प्यारे हिन्दुस्तान से किसी जालिम की सख्तियों और इंसाफ के जबरदस्त हाथों ने अलग नहीं किया था...यह मेरे बुलंद इरादे और बड़े-बड़े मंसूबे थे जिन्होंने मुझे देश निकला दिया।” उसको अपना वतन याद आता है, बचपन याद आता है , वो गाँव याद आता है जहाँ उसका पालन-पोषण हुआ था। इसलिए सब कुछ छोड़कर वह अपने वतन वापस जाने का निर्णय लेता है। जिस हालत में वह मातृभूमि को छोड़कर विदेश गया था वही स्मृति उसके मन में बसी हुई है परंतु जब वह लौटकर भारतभूमि पर वापस आया तो सब कुछ बदला हुआ पाता है। वह यह महसूस करता है कि भारतभूमि अंग्रेजो के अधीन होकर अपना धन बल खोती जा रही है। अब पहले जैसा कुछ नहीं बचा है यह सोचकर वह बहुत उदास होता है। लेखक के ही शब्दों में कहें तो –“और रेल पर सवार होकर अपने गाँव को चला, प्यारे गाँव को जो हरी-भरी पहाड़ियों के बीच में आबाद था, तो मेरी आँखों में आँसू भर आए। मैं खूब रोया, क्योंकि यह मेरा प्यारा देश न था, यह वो देश न था जिसके दर्शन की लालसा हमेशा मेरे दिल में लहरें लिया करती थीं।” अपनी मातृभूमि कि इस अवस्था को देखकर उसे बहुत दुःख होता है अतः वह अपने जीवन के अंतिम दिन अपनी मातृभूमि में मिलकर रहना चाहता है और उन तमाम सुख-सुविधाओं को वह त्याग देता है जिनके लिए कभी उसने वतन को छोड़ा था।
वस्तुतः यह कहानी वतन से प्रेम की कहानी है जिसका अहसास उसे वतन से दूर जाने पर होता है। इस कहानी के संदर्भ में शम्भुनाथ लिखते हैं-“ ‘यही मेरा वतन है’ कहानी में अमेरिका से हिन्दुस्तान लौटा प्रवासी एक प्रबल लगाव के साथ अपने गाँव और मुहल्ले की एक-एक चीज को देखता है। उसे गाँव में हल्के आधुनिकीकरण के बावजूद चारों तरफ अवसाद दिखाई देता है, औपनिवेशिक अत्याचार के दृश्य दिखाई देते हैं। वह अंततः अमेरिका न लौटकर यही गंगा किनारे बसकर अपनी बाकी जिन्दगी बिता देना चाहता है। यह कहानी पढ़कर पता चल सकता है कि बीसवीं सदी के पहले और आखिरी दशक के दृश्य में कितना फर्क आ चुका है।”
‘शोक का पुरस्कार’ एक ऐसे व्यक्ति की या कहें कि ऐसे पुरुष वर्ग को सम्बोधित कहानी है जो अपनी पतिव्रता पत्नी की अनदेखी कर पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित नए रंग ढंग में ढली स्त्रियों की तरफ आकर्षित हैं। जो अपनी पत्नी के गुणों की अनदेखी कर भौतिकता की चमक धमक को महत्व देते हैं। परंतु भौतिकता हमेशा ही नहीं रहती, रूप आज है तो कल निश्चित ही ढल जाएगा। प्रेमचंद इस कहानी में ऐसी स्थितियाँ रखते हैं जिनमें व्यक्ति को यह एहसास होता है कि वास्तव में गुण हमेशा ही रूप पर भारी होते हैं। यह कहानी रूप के स्थान पर गुणों को स्थापित करती हुई दिखाई देती है।
‘सांसारिक प्रेम और देश प्रेम’ यह कहानी एक ऐसे देशभक्त की है जिसका नाम जोज़ेफ मैजिनी है। वह इटली का नामवर देश-प्रेमी है। मैजिनी अपने देश इटली से अगाध प्रेम करता है और देश की स्वतंत्रता के लिए पुरजोर कोशिश करता है। उसके जीवन की मात्र एक ही अभिलाषा है कि उसका देश आजाद हो जाए और वहाँ जनता का शासन हो। मैजिनी इटली की दुर्दशा को देखकर उदास होता है और कहता है –“ऐ मजलूम इटली ! क्या तेरी किस्मतें कभी न सुधरेंगी, क्या तेरे सैकड़ों सपूतों का खून जरा भी रंग न लाएगा ! क्या तेरे देश से निकाले हुए हजारों जाँनिसारों की आहों में जरा भी तासीर नहीं ! क्या तू अन्याय और अत्याचार और गुलामी के फंदे में हमेशा गिरफ्तार रहेगी। शायद तुझमें अभी सुधरने की, स्वतंत्र होने की योग्यता नहीं आयी। शायद मेरी किस्मत में कुछ दिनों और ज़िल्लत और बर्बादी झेलनी लिखी है। आज़ादी, हाय आज़ादी, तेरे लिए मैंने कैसे-कैसे दोस्त, जान से प्यारे दोस्त कुर्बान किए। कैसे-कैसे नौजवान, होनहार नौजवान, जिनकी माँएँ और बीवियाँ आज उनकी कब्र पर आँसू बहा रही हैं और अपने कष्टों और आपदाओं से तंग आकर उनके वियोग के कष्ट में आभगे, आफ़त के मारे मैजिनी को शाप दे रही हैं। कैसे-कैसे शेर जो दुश्मन के सामने पीठ फेरना ण जानते थे, क्या यह सब कुर्बानियां, यह सब भेंट काफ़ी नहीं हैं ? आज़ादी, तू ऐसी कीमती चीज है !”
यही ख्वाहिश लिए आजीवन मैजिनी संघर्ष करता रहता है। उसके देशप्रेम के विचारों में बगावत के स्वर से आशंकित होकर मैजिनी को देश निकाला दे दिया जाता है परंतु अपने देश की आजादी का विचार लगातार मैजिनी के मन में चलता रहता है। उसके जीवन में मैग्डलीन नामक स्त्री आती है जो मैजिनी के देशप्रेम के विचारों से प्रभावित होकर उससे अगाध प्रेम करने लगती है परंतु मैनिजी देशप्रेम के लिए दृढ़ संकल्प है इसलिए वह मैग्डलीन के प्रेम निवेदन को स्वीकार नहीं करता। वह उसका एक मित्र की भांति सम्मान करता है। मैजिनी कहता है –“ मैं तेरे प्रेम, सच्चे नेक और निःस्वार्थ प्रेम का आदर करता हूँ। मगर मेरे लिए, जिसका दिल देश और जाति पर समर्पित हो चूका है, तू एक प्यारी और हमदर्द बहन के सिवा और कुछ नहीं हो सकती।” यह कहानी प्रेम के उदार स्वरूप को प्रस्तुत करती है जिसमें देशभक्ति की भावना निहित है। यह एक ऐसे देशभक्त की कहानी है जो अपने देश की रक्षा में अपने प्राणों की बाजी लगा देता है और एक ऐसी प्रियसी जो अपना संपूर्ण जीवन उस देशभक्त प्रेमी को समर्पित कर देती है। मैजिनी की मृत्यु के बाद मैग्डलीन उसके नाम से एक आश्रम बनवाती है और बेसहारा लोगों की मदद करने में अपना जीवन लगा देती है। स्वयं लेखक के शब्दों में –“उसका प्रेम मामूली प्रेम न था, एक पवित्र और निष्कलंक भाव था और वह हमको उन प्रेम-रस में डूबी हुई गोपियों की याद दिलाता है जो श्रीकृष्ण के प्रेम में वृन्दावन की कुंजों और गलियों में मंडलाया करती थीं, जो उससे मिले होने पर भी उससे अलग थीं और जिनके दिलों में प्रेम के सिवा और किसी चीज की जगह न थी।”
वस्तुतः यह कहानी सांसारिक प्रेम से ऊपर उठकर देशप्रेम की भावना को स्थापित करती है। अतः यह प्रेम के उदार स्वरूप की कहानी है जिसमें कहीं से भी पाने की आकांक्षा नहीं है अपितु अपना सर्वस्व न्योछावर करने की भावना निहित है। इन प्रतिबंधित कहानियों में देशभक्ति की भावना का स्वर मुखर रूप में दिखाई देता है। पराधीन भारत में आजादी के परवानों की ललक और स्वराज के प्रति उनका जज्बां इन कहानियों के मूल स्वर के रूप में अभिव्यक्त हुआ है।
संदर्भ :
- दुस्समय में साहित्य, शम्भुनाथ , वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण, 2002, पृष्ठ 62
- सोजेवतन, प्रेमचंद, स्वर्ण जयन्ती प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण 2018, पृष्ठ 40
- वही पृष्ठ 39
- वही पृष्ठ 40
- दुस्समय में साहित्य, शम्भुनाथ , वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण, 2002, पृष्ठ 62
- सोजेवतन, प्रेमचंद, स्वर्ण जयन्ती प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण 2018, पृष्ठ 60
- वही पृष्ठ 64
- वही पृष्ठ 71
डॉ. भारती
सम्पर्क : bharti9206@gmail.com
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) प्रतिबंधित हिंदी साहित्य विशेषांक, अंक-44, नवम्बर 2022 UGC Care Listed Issue
अतिथि सम्पादक : गजेन्द्र पाठक चित्रांकन : अनुष्का मौर्य ( इलाहाबाद विश्वविद्यालय )
अतिथि सम्पादक : गजेन्द्र पाठक चित्रांकन : अनुष्का मौर्य ( इलाहाबाद विश्वविद्यालय )
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