शोध आलेख : 'कल्‍याण' पत्रिका के प्रतिबंधित अंक के अंतर्वस्‍तु का विश्‍लेषण / डॉ. अख्‍तर आलम

'कल्‍याण' पत्रिका के प्रतिबंधित अंक के अंतर्वस्‍तु का विश्‍लेषण
 -डॉ. अख्‍तर आलम

शोध सार : स्‍वाधीनता आंदोलन के दौरान अंग्रेजों द्वारा जब भारतीयों पर दमनकारी नीति तेज हुई तो उस दौर में पत्र-पत्रिकाओं ने भी अपनी कलम की धार तेज कर दी थी। भारतीय पत्र-पत्रिकाओं ने अपने लेखों के माध्‍यम से आमजन की वाणी को अभिव्‍यक्ति देना प्रारंभ कर दिया था। इसको ब्रिटिश हुकूमत सहन न कर सकी। अंग्रेजों की हुकूमत ने भारतीय पत्र-पत्रिकाओं पर प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया। अंग्रेजों ने इन पत्र-पत्रिकाओं पर सिर्फ प्रतिबंध ही नहीं लगाया अपितु संपादकों को कड़ी प्रताड़ना भी दी। इसी प्रतिबंध का शिकार आध्‍यात्मिक पत्रिका ‘कल्‍याण’ भी हुई। यह शोध पत्र आध्‍यात्मिक पत्रिका कल्‍याण के प्रतिबंधित अंक ‘मालवीय अंक’ पर आधारित है। इसमें कल्‍याण पत्रिका के मालवीय अंक के प्रतिबंध के कारणों की शोधपरक पड़ताल की गयी है। 

बीज शब्‍द : आध्‍यात्मिक पत्रिका, प्रतिबंधित अंक, दमनकारी नीति, स्‍वाधीनता आंदोलन, मालवीय अंक, हनुमान प्रसाद पोद्दार, सनातन धर्म, अंतर्वस्‍तु, विद्रोह, कल्‍याण।

कल्‍याण पत्रिका की पृष्‍ठभूमि- कल्‍याण पत्रिका के प्रकाशन के प्रेरणाश्रोत स्‍व. घनश्‍याम दास बिड़ला थे। सन् 1926 में दिल्‍ली में आयोजित मारवाड़ी अग्रवाल महासभा के वार्षिक अधिवेशन का स्‍वागत भाषण हनुमान प्रसाद पोद्दार ने तैयार किया था जो बिड़ला जी को काफी पसंद आया। घनश्‍याम दास बिड़ला ने पोद्दार जी से आग्रह किया कि वे अपने सिद्धांतों एवं विचारों पर एक पत्रिका निकालें। हनुमान प्रसाद पोद्दार ने बिड़ला जी के इस आग्रह को स्‍वीकार करते हुए कल्‍याण पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया। हनुमान प्रसाद पोद्दार कल्‍याण पत्रिका के प्रकाशन से पूर्व महात्‍मा गांधी के पास सुझाव मांगने गये। गांधी जी ने पत्रिका के बारे में दो सुझाव दिये-
बाहरी कोई विज्ञापन मत छापना
पुस्‍तकों की समालोचना मत छापना
महात्‍मा गांधी के इस सुझाव का कल्‍याण पत्रिका आज भी पालन कर रही है। 

कल्‍याण के पहले अंक का प्रकाशन अगस्‍त 1926 में मुंबई के सत्‍संग भवन से हुआ। इसके उपरांत कल्‍याण पत्रिका अगस्‍त 1927 से गोरखपुर के गीता प्रेस से अनवरत प्रकाशित हो रही है। कल्‍याण पत्रिका प्रत्‍येक वर्ष के शुभारंभ में एक विशेषांक तथा 11 सामान्‍य अंकों के रूप में प्रकाशित होती है। कल्‍याण पत्रिका का अंग्रेजी संस्‍करण भी ‘कल्‍याण कल्पतरु’ नाम से सन् 1937 से प्रकाशित हो रही है। कल्‍याण पत्रिका की लोकप्रियता का प्रमुख आकर्षण इसके विशेषांक रहे हैं। इसके विशेषांक अपने विषय के विश्‍वकोश होते हैं। 

  ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ की भावना से ‘कल्‍याण’ पत्रिका निकाली गयी। कल्‍याण पत्रिका प्रकाशित करने का उद्देश्‍य भक्ति, ज्ञान, वैराग्‍य, धर्म और सदाचार समन्वित लेखों द्वारा जन-जन को कल्‍याण के पथ पर अग्रसरित करना है। इस पत्रिका का मुख्‍य उद्देश्‍य पाठक को धार्मिक शिक्षा एवं चारित्रिक सामग्री प्रदान करना है। हनुमान प्रसाद पोद्दार ने 45 वर्षों तक कल्‍याण पत्रिका का संपादन किया। हनुमान प्रसाद पोद्दार एक संपादक के साथ-साथ स्‍वतंत्रता सेनानी भी थे। प्रेम से लोग उन्‍हें 'भाईजी' कहते थे। ‘कल्‍याण’ पत्रिका के संपादक पोद्दार जी के अलावा श्री चिमनलाल गोस्‍वामी, स्‍वामी रामसुख दास, मोतीलाल जालान, राधेश्‍याम खेमका रहे हैं। वर्तमान में ‘कल्‍याण’ पत्रिका के संपादक डॉ. प्रेम प्रकाश लक्‍कड़ जी हैं। 

    ‘कल्‍याण’ के प्रतिबंधित मालवीय ‘अंक’ का विश्‍लेषण-कल्‍याण पत्रिका का अक्‍टूबर 1946 के अंक को ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंधित किया गया था। यह अंक सामान्‍य अंक न होकर कल्‍याण का एक अतिरिक्‍त अंक था। इस अंक के संपादक भी हनुमान प्रसाद पोद्दार थे। कल्‍याण के इस अतिरिक्‍त अंक के प्रकाशन का उद्देश्‍य संपादक ने- ‘यह अंक क्‍यों और किसलिए’ शीर्षक से स्‍पष्‍ट किया है, यह कल्‍याण का इस साल का एक अतिरिक्‍त अंक है। इस साल गीता प्रेस लगभग दो महीने बंद रहा। इससे आगामी वर्ष के विशेषांक के प्रकाशन में दो-तीन महीने की देरी हो गयी। पाठकों को इतने लंबे समय तक कल्‍याण की प्रतीक्षा में न रहना पड़े, इसलिए सोचा गया कि बीच में एक अंक और निकाल दिया जाय। दूसरी खास बात-हिंदू जाति और सनातन धर्म के स्‍तम्‍भ-स्‍वरूप महामना मालवीय जी महाराज हाल ही में कैलासवासी हो गये। आगे इसी अंक में लिखा है कि ‛हिंदू जाति की इस समय क्‍या स्थिति है और उसे मानवता की रक्षा के लिए क्‍या करना चाहिए, इसलिए थोड़ा-सा दिग्‍दर्शन देशवासियों को कराना आवश्‍यक है। इसलिए इस अंक को निकालने का पूरा निश्‍चय किया गया।’

कल्‍याण पत्रिका के अतिरिक्‍तांक में मदन मोहन मालवीय से संबंधित अनेक रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। इस अंक में ‘पूज्‍यपाद महामना श्री मालवीय जी महाराज’ शीर्षक से संपादकीय प्रकाशित हुई, जिसमें लिखा गया कि पूज्‍यपाद पंडित महामना मदन मोहन मालवीय जी का गत मार्गशीर्ष 4, दिन में 4 बजे 13 मिनट पर श्रीकाशीधाम में कैलासवास हो गया। मालवीय जी का सारा जीवन भारतवर्ष, सनातन धर्म और हिंदू जाति की सेवा में बीता है। वे जीवन के प्रभात काल से ही मानवता की रक्षा और समृद्धि की चिंता में लगे थे। इसलिए उन्‍होंने भारत वर्ष, सनातन धर्म, हिंदू जाति की रक्षा समृद्धि और विश्‍व में मानवता की रक्षा और अभ्‍युदय के लिए लगे हुए थे। संपादकीय में आगे लिखा गया है कि आज सभी ओर से उन्‍हें श्रद्धांजलियां दी जा रही हैं। हमारी समझ से उनको सच्‍ची श्रद्धांजलि इसी में है और भारतवर्ष पर उनका अमिट ऋण है। उसे चुकाने का कुछ सौभाग्‍य भी इसी में है कि समस्‍त देशवासी खास करके हिंदू मात्र उनकी अंतिम इच्‍छा को जो उनके इस अंतिम संदेश में व्‍यक्‍त है, अपने कर्तव्‍य-पालन के द्वारा पूर्ण करें। 
कल्‍याण के इस प्रतिबंधित अंक में महामना मालवीय जी का अंतिम पूरा वक्तव्य  भी प्रकाशित हुआ है। इस वक्तव्य में मालवीय जी अपनी प्‍यारी जन्‍मभूमि के नाम पर समस्‍त हिंदुओं से अपील करते हुए कहते हैं कि यदि वे भारतवर्ष में चिरकाल के लिए शांति चाहते हैं और ऐसा संदेश देना चाहते हैं कि जिसको मुसलमान तथा अन्‍य जाति एवं धर्म के लोग सुनें तो वे एक हो जाएं और अपनी रक्षा करें। संदेश यह हो जैसे वह पहले रह चुके हैं, अब भी वे एक साथ एक ही भूमि पर रहना चाहते हैं तो ‛हिंदुओं के धर्म का आदर करना पड़ेगा।’ वे हिंदुओं के पूजा गृहों, मंदिरों को स्‍पर्श नहीं कर सकेंगे और धार्मिक स्‍वतंत्रता,जीवन की पवित्रता एवं स्त्रियों के सतीत्व का उन्‍हें अवश्‍य सम्‍मान करना पड़ेगा, यह पक्ष मालवीय जी की धार्मिक रूप से संकीर्ण दृष्टि को दिखाता है,लेकिन हमें याद रखना होगा कि वह समय धार्मिक रूप से गोलबंदी का भी था इसीलिए इस तरह के उद्गार मालवीय जी द्वारा दिए गए थे।   

    कल्‍याण के इस अतिरिक्‍तांक में मदन मोहन मालवीय से संबंधित अनेक रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। कल्‍याण के इसी प्रतिबंधित अंक में वैदिक वीर गर्जना नामक पुस्‍तक से एक कविता छपी है जो विभिन्‍न वेदों के श्‍लोकों का संग्रह है। यह पुस्‍तक गुरुकुल कागड़ी के प्रोफेसर रामनाथ वेदालंकार द्वारा लिखी गयी है। कविता का भावार्थ इस प्रकार है-

उत्तिष्‍ठत संनह्यध्‍वमुदारा: केतुभि: सह।
                                 सर्पा इतरजना रक्षांस्‍यमित्राननु धावत।।         (अथर्व. 11.10.1)

    भावार्थ- उठो वीरो तैयार हो जाओ, झंडे हाथों में पकड़ लो। जो भुजंग हैं, लंपट हैं, गैर हैं, राक्षस हैं, उन पर धावा बोल दो।

यदि नो गां हंसि, यद्यश्‍वं यदि पूरूषम्।
   तं त्‍वा सीसेन विध्‍यामो, यथा नोसो अबीरहा।।

     भावार्थ- ओ आततायी तू मुझे निस्‍तेज, बुझा हुआ मत समझना, मत समझना कि तू आकर मुझे सता लेगा ओर मैं चुप सह लूंगा। देख यदि तू मेरी गाय को मारेगा, घोड़े को मारेगा, मेरे संबंधी पुरूषों को मारेगा तो याद रख- मैं तुझे शीशे की गोली से बेध दूंगा।

     यो नो टिप्‍साददिप्‍सतो दिप्‍सतो यश्च दिप्‍सति।
     वैश्‍वानरस्‍य दंष्‍टयोरग्‍नेरपि दधामि तम।।  (अथर्व. 4-16-2)

भावार्थ-जो कोई व्‍यर्थ में किसी का वध न करने वाले, किंतु दुष्‍टों को पकड़-पकड़कर वध करने वाले हम लोगों को मारने का मंसूबा करेगा, उसे मैं जल्‍दी ही आग की लपटों में झोंक दूंगा। 

जितमस्‍माकमुत्रिद्ममस्‍माक-
मन्‍यष्‍ठां विश्‍वा: पूतना अराती:।
इदमहमामुव्‍यायस्‍यामुव्‍या: पुत्रस्‍य
वर्चस्‍तेज: प्राणमायुनिवेष्‍टयामी-
दमेनमधरास्‍तं पादयामि।। 
(अथर्व. 10-5-36)

भावार्थ-निश्‍चय ही हमारी विजय होगी, हमारा अभ्‍युदय होगा, शत्रु की सेना को हम परास्‍त कर देंगे। मुझसे शत्रुता जानने वाला जो अमुक पुरूष का बेटा और अमुक मां का बेटा है उसके वर्चस्‍व को, तेज को, प्राण को, आयु को मैं हर लूंगा। उसे जमीन पर दे मारूंगा।

वीर नारी के उद्गार 
अधीरामिद मामयं मरासरभिमन्‍यत।
अतामस्मि ..... ........ .......
विश्‍वमामिन्‍द्र उत्‍तर: ।।

भावार्थ-अरे, यह घातक मुझे अबला समझ बैठा है। मैं अबला नहीं, वीरांगना हूँ, वीर की पत्‍नी हूँ। मृत्‍यु से न डरने वाले वीर मेरे सखा हैं। मेरा पति दुनिया में अपना सानी नहीं रखता है।
 
मम पुत्रा: शत्रुहणोथो मे दुहिता विराट।
उता......................(ऋण्. 20-151-1)

भावार्थ-मेरे पुत्र शत्रु के...देने वाले हैं, मेरी पुत्री अतितीय तेजस्‍वनी है और मैं अपनी क्‍या बताऊं कोई मेरी तरफ आंख उठाकर तो देखे, ऐसा परास्‍त होकर लौटेगा कि हमेशा याद रखेगा। मेरे पति में सर्वश्रेष्‍ठ गुण हैं। 
यही कविता ब्रिटिश हुकूमत को खटक रही थी जो प्रतिबंध लगाने का प्रमुख कारण बना।

कल्‍याण के इसी प्रतिबंधित अंक में महात्‍मा गांधी ने प्रश्‍नोत्‍तर के रूप में एक लेख लिखा है। इस लेख का शीर्षक था ‘बहादुर बनो’। गांधी जी का बिहार और बंगाल में हुए दंगों के संदर्भ में प्रश्‍नोत्‍तर टिप्‍पणी के द्वारा लेख छापा गया है। कल्‍याण के संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार ने भी अनेक महत्‍वपूर्ण लेख लिखे हैं। बंगाल में हुए हिंदू-मुस्लिम दंगों पर अपने विचार व्‍यक्‍त करते हुए एकता पर बल दिया गया है। पोद्दार जी ने ‘प्रेम में ही सुख और कल्‍याण है’ नामक लेख में लिखा है कि असल में हिंदू हो या मुसलमान वे पहले मनुष्‍य हैं, उसके बाद हिंदू और मुसलमान। 

इसी प्रतिबंधित अंक में श्‍यामाप्रसाद मुखर्जी का वक्‍तव्‍य भी प्रकाशित हुआ है। कल्‍याण के इस अंक में लेख, कविता पाठकों के पत्र आदि प्रकाशित किये गये हैं। 

पोद्दार जी ने इस अंक को निकालने का तर्क दिया है कि ‘कल्‍याण’ अपने आध्‍यात्मिक मिशन से भटका नहीं है, जैसे सनातन धर्म में ‛अध्‍यात्म’ कर्म का हिस्‍सा है वैसे ही कर्म आध्‍यात्मिकता का हिस्‍सा है। उन्‍होंने कहा कि गीता प्रेस की ओर से अतिरिक्‍त मूल्‍य वहन कर मालवीय अंक की एक लाख प्रतियां छापना उस अंक के महत्‍व को दर्शाता है। 

‘कल्‍याण’ के मालवीय अंक को प्रतिबंधित करने का मुख्‍य कारण ‘उठो जागो’ नामक शीर्षक से प्रकाशित कविता तथा बंगाल एवं बिहार में हुए सांप्रदायिक दंगे पर आपत्तिजनक सामग्री छापना रहा है। इस संदर्भ में आपराधिक जांच विभाग को इलाहाबाद में हिंदू महासभा के मंत्री द्वारा प्रकाशित एक आपत्तिजनक पर्ची का मिलना  जिसका उल्‍लेख मालवीय अंक में किया गया था। उसके बाद से संयुक्‍त प्रांत की सरकार मालवीय अंक में की गयी इस अपील पर तुंरत ही सतर्क हो गयी। सीआईडी की स्‍पेशल ब्रांच के एफ. आर. स्‍टॉफवेल ने ‘कल्‍याण’ के विशेष अंक की एक प्रति संयुक्‍त प्रांत के गृह सचिव राजेश्‍वर दयाल को भेजी और इसे गैर कानूनी करार दिये जाने का सुझाव दिया। उन्‍होंने विशेषतौर पर बताया कि भारत में कल्‍याण की प्रसार संख्‍या बहुत ज्‍यादा है और इस तरह लिखे गये लेख का प्रभाव बहुत बुरा हो सकता है। संयुक्‍त प्रांत के गृह सचिव ने गोरखपुर के जिलाधीश को पत्र लिखकर कहा कि संपादक को चेतावनी दी जाये कि भविष्‍य में ऐसी कोई भी भड़काऊ अपील छापने से बचें। स्‍टॉफवेल ने एक बार फिर दयाल को सुझाव देते हुए लिखा कि कल्‍याण के उस अंक को अब गैर कानूनी करार दे देना चाहिए या प्रकाशक और मुद्रक को अभियुक्‍त बना लेना चाहिए। भविष्‍य में सांप्रदायिक तौर पर आपत्तिजनक ऐसा कोई भी लेख नहीं प्रकाशित करने के बदले गारंटी के तौर पर सिक्‍योरिटी जमा करवानी चाहिए। इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने कल्‍याण के मालवीय अंक को जब्‍त कर प्रतिबंध लगा दिया। सरकार ने जब तक मालवीय अंक पर प्रतिबंध लगाया तब तक कल्‍याण के नियमित पाठकों को डाक द्वारा यह अंक मिल चुका था। ऐसे में प्रतिबंध का नियमित पाठकों पर कोई ज्‍यादा प्रभाव नहीं पड़ा। 

निष्‍कर्ष : पत्र-पत्रिकाओं पर प्रतिबंध के कारण से स्‍पष्‍ट है कि कोई भी सरकार विरोध में उठने वाली आवाज को सहन नहीं कर पाती है। कल्‍याण के मालवीय अंक पर प्रतिबंध का कारण यह है कि इसमें प्रकाशित सामग्री से अंग्रेज सरकार की नींव हिल रही थी। इसमें प्रमुख रूप से मालवीय अंक में प्रकाशित विचारोत्‍तेजक लेख एवं कविताएं शामिल थी। इसी कारण से कल्‍याण के मालवीय अंक पर अंग्रेजों की निगरानी बनी रही। इससे यह भी सिद्ध होता है कि प्रतिबंधित सामग्रियों से आमजन को स्‍वाधीनता आंदोलन की चेतना से जोड़ती है। इसके साथ ही कल्‍याण पत्रिका के प्रतिबंधित ‛मालवीय अंक’ का हिंदू जनमानस को जागृत करने में  महत्‍वपूर्ण योगदान रहा है। 

संदर्भ : 
  1. भगवती प्रसाद सिंह, भाई जी पावन स्‍मरण, गीतावातिका प्रकाशन, गोरखपुर, 2006, पृ.84-85
  2. रजनीश कुमार चतुर्वेदी, प‍त्रकारिता के युग निर्माता : हनुमान प्रसाद पोद्दार, प्रभात प्रकाशन दिल्‍ली, 2010, पेज 30
  3. अक्षय मुकुल, गीता प्रेस और हिंदू भारत का निर्माण, हार्पर पब्लिकेशन इंडिया, 2015, पेज 58
  4. भगवती प्रसाद सिंह, कल्‍याण पथ : निर्माता और राही, राधवमाधव सेवा संस्‍थान गीता वाटिका, गोरखपुर, पेज 117
  5. कल्‍याण मालवीय अंक, अक्‍टूबर 1946, पेज 1409
  6. कल्‍याण मालवीय अंक, अक्‍टूबर 1946, पेज 1400
  7. कल्‍याण मालवीय अंक, अक्‍टूबर 1946, पेज 1395
  8. कल्‍याण मालवीय अंक, अक्‍टूबर 1946, पेज 1440
  9. कल्‍याण मालवीय अंक, अक्‍टूबर 1946, पेज 1386
  10. कल्‍याण मालवीय अंक, अक्‍टूबर 1946, पेज 1389
  11. कल्‍याण मालवीय अंक, अक्‍टूबर 1946, पेज 1393
  12. कल्‍याण मालवीय अंक, अक्‍टूबर 1946, पेज 1397
  13. कल्‍याण मालवीय अंक, अक्‍टूबर 1946, पेज 1411
  14. कल्‍याण मालवीय अंक, अक्‍टूबर 1946, पेज 1421
  15. कल्‍याण मालवीय अंक, अक्‍टूबर 1946, पेज 1425

डॉ. अख्‍तर आलम
सहायक प्रोफेसर, जनसंचार विभाग, क्षेत्रीय केंद्र प्रयागराज, महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा
dr.akhtaralam786@gmail.com
 

 अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  प्रतिबंधित हिंदी साहित्य विशेषांक, अंक-44, नवम्बर 2022 UGC Care Listed Issue
अतिथि सम्पादक : गजेन्द्र पाठक
 चित्रांकन : अनुष्का मौर्य ( इलाहाबाद विश्वविद्यालय )


1 टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने