बुनियादी विद्यालय का शिक्षा दर्शन एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020
- गणेश शुक्ल व प्रो. आशीष श्रीवास्तव
शोध सार : गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सामाजिक एकता और सामाजिक समानता के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है एवं शिक्षा एक स्थायी समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है। स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय शिक्षा के विकास एवं गुणात्मक संवर्धन हेतु भारत सरकार ने समय-समय पर विभिन्न नीतियों का निर्माण किया। स्वतंत्र भारत की पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण वर्ष 1968 में किया गया। इस नीति में सभी स्तरों पर शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए व्यापक प्रयास के साथ विज्ञान, तकनीकी, नैतिक एवं सामाजिक मूल्यों के निर्माण के लिए ठोस कदम उठाये गये। वर्ष 1986 में पुनः राष्ट्रीय शिक्षा नीति, तत्पश्चात 1992 में संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति के समानता के लिए शिक्षा, विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक पुनर्गठन, तकनीकी शिक्षा, शिक्षा के पाठ्यक्रम तथा प्रक्रिया का अभिनवीकरण आदि सुझाओं को शिक्षा के क्षेत्र में प्रस्तावित किया गया। वर्ष 2020, में भारत सरकार द्वारा एक राष्ट्रीय शिक्षा नीति को प्रस्तुत किया गया। इसमें भारतीय ज्ञान परम्पराओं को केंद्र मानते हुए शिक्षा के क्षेत्र में अवधारणात्मक समझ, रचनात्मकता एव तार्किकता, नैतिकता, बहुभाषिकता, जीवन कौशल, स्थानीय परिवेश के लिए सम्मान को महत्वपूर्ण स्थान देते हुए व्यापक परिवर्तन करने के सुझाओं को प्रस्तुत किया गया। आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में भारतीय ज्ञान परम्परा की महत्ता बुनियादी विद्यालय के शैक्षिक दर्शन में दृष्टिगोचर होती है। बुनियादी शिक्षा का शैक्षिक दर्शन और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में स्पष्ट रूप में उल्लेखनीय समानता है। इस लेख में बुनियादी विद्यालय के शैक्षिक विचारों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में दिए गए सुझाओं के दृष्टिकोण से अन्वेषित किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप यह पाया गया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के विभिन्न अध्यायों में वर्णित शिक्षा संबंधी सुझाव महात्मा गाँधी के बुनियादी विद्यालय के शैक्षिक दर्शन तथा शैक्षिक सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित करते हैं।
बीज शब्द : बुनियादी शिक्षा, शिक्षा दर्शन, बुनियादी विद्यालय, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020।
मूल आलेख : भारत वर्ष में प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक शिक्षा के विभिन्न स्वरूप दिखाई देते है। विभिन्न कालखंडों में अनेक महान विभूतियों ने जन्म लिया है। वे अपने सामाजिक कृतित्व के माध्यम से अज्ञानता के अन्धकार से भरे समाज को समय-समय पर न केवल ज्ञान रूपी प्रकाश पुंज से समाज को अवलोकित किया है, अपितु मानवीय सभ्यता की श्रेष्ठता की पराकाष्ठा तक पहुँचाने के नूतन मार्ग प्रशस्त किया है। (चौधरी & गंगवार, 2021) भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में महात्मा गाँधी की बुनियादी शिक्षा (नई तालीम या बेसिक शिक्षा) का विचार भारतीय समाज के सामाजिक एवं आर्थिक ढाँचे में परिवर्तन गाँधी के दर्शन के साथ उठा तथा पनपा। यह विचार शिक्षा व्यवस्था को भीतर से सुधारने के लिए था। वस्तुतः यह अंग्रेजी शिक्षा के विरुद्ध भारत की शिक्षा व्यवस्था को गाँधी के आदर्शों के अनुरूप बनाने का विकल्प था। बुनियादी शिक्षा न केवल शिक्षा के पुनर्गठन का प्रयास था वरन सम्पूर्ण भारतीय समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने का एक बड़ा कदम था | बुनियादी शिक्षा भारत की तात्कालिक वास्तविकताओं के सन्दर्भ में बृहद समस्या का एक मात्र व्यावहारिक हल था। इस आत्मनिर्भर, श्रम केन्द्रित बुनियादी शिक्षा को यथासंभव लागू किया जाना, डॉ. जाकिर हुसैन ने इसके समर्थन में अपनी राय देकर उनके पक्ष को मजबूत बनाया, उनका मुख्य उद्देश्य समाज का नव निर्माण करके शिक्षा को मानविकीकरण और व्यक्तिवाद का वर्चस्व बनाना था। (सक्सेना 2010)। बिहार राज्य में बुनियादी शिक्षा का श्रेय डॉ. राजेंद्र प्रसाद को है। महात्मा गाँधी को बुनियादी शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार करने के क्रम में ही नवम्बर 1937 में पटना विश्वविद्यालय की सीनेट के बैठक में डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने एक प्रस्ताव रखा की बिहार में प्रचलित शिक्षा के सभी क्षेत्रों की जाँच की जाय तथा भविष्य के लिए सर्वांगीण कार्य योजना बनाई जाय। सीनेट सरकार से सिफारिश करती है कि वह एक समिति नियुक्त करे, जो बिहार के प्राथमिक, माध्यमिक, विश्वविद्यालयीय, शिल्प उद्योग एवं व्यवसाय सम्बन्धी सभी प्रकार की शिक्षा की प्रगति की जाँच करके अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करे। तात्कालिक बिहार की कांग्रेसी सरकार ने सुविख्यात शिक्षाशास्त्री के.टी. शाह की अध्यक्षता में एक समिति गठित की। डॉ. राजेंद्र प्रसाद एव आचार्य बद्रीनाथ वर्मा (बिहार विद्यापीठ के संचालक) उस समिति के सदस्य थे। उक्त तीनों व्यक्तियों ने सलाह मशविरा के उपरांत पं. रामशरण उपाध्याय के संचालन में एक प्रशिक्षण विद्यालय खोलने का निश्चय किया। परिणामस्वरुप पटना के प्राचीनतम प्रशिक्षण स्कूल में पं. रामशरण उपाध्याय के निर्देशन में प्रशिक्षण विद्यालय खोला गया, जिसमें बुनियादी विद्यालय के शिक्षकों को प्रथम चरण का प्रशिक्षण दिया गया था। इन्हीं शिक्षकों के द्वारा 6-13 अप्रैल 1939 के राष्ट्रीय सप्ताह के पावन अवसर पर वृन्दावन सघन क्षेत्र के अंतर्गत 35 बुनियादी विद्यालय एक साथ खुले। (झा, 2006)
महात्मा गाँधी का विचार था कि बुनियादी शिक्षा का प्रयोग चंपारण में हो। इसके लिए 150 वर्गमील के क्षेत्र का चयन करना था जहाँ लोक भागीदारी से जमीन एवं विद्यालय भवन का निर्माण हो सके। पंडित प्रजापति मिश्र ने 103 बीघे जमीन में महात्मा गाँधी के रचनात्मक कार्यों पर आधारित 6 अप्रैल 1936 को चंपारण के वृन्दावन में ग्राम सेवा केंद्र की स्थापना की। उसी को केंद्र मानकर उनके चारों ओर राष्ट्रीय बुनियादी शिक्षा का प्रयोग करने की बात पर सहमति बनी। (शोभाकांत झा, 2006) बुनियादी विद्यालयों के लिए एक कमेटी गठित हुई जिसे बुनियादी शिक्षा बोर्ड कहा गया। इसमें निम्नलिखित सदस्य थे –
- सर्व श्री आर्यनायकम- हिन्दुस्तानी तालीम संघ के मंत्री,
- श्री मति आशा देवी- उपमंत्री
- श्री लक्ष्मी नारायण - अखिल भारतीय चरखा संघ के बिहार शाखा के मंत्री
- आचार्य बद्रीनाथ वर्मा - बिहार विद्यापीठ के कुलपति
- मो. सादिक - विद्या इंजीनियरिंग कालेज के उप प्रधान
- मो. अहमद – पटना प्रशिक्षण विद्यालय से प्रशिक्षित होकर 60 शिक्षकों के सहारे प्रथम चरण में 35 बुनियादी विद्यालय खोलने की स्वीकृति बुनियादी शिक्षा बोर्ड ने प्रथम बैठक द्वारा प्राप्त हुयी। (झा, 1996)
सन 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ने के पश्चात् तात्कालिक कांग्रेसी सरकार ने इस्तीफा दे दिया। अब योजना को आगे बढ़ाने की बात तो अलग रही यह विचार किया जाने लगा कि जो विद्यालय खुल चुके है उन्हें किस तरह से बचाकर रखा जाए। लेकिन बिहार के तात्कालिक गवर्नर ने जे.आर. कजिन्स को शिक्षा विभाग के संचालन के लिए बुनियादी शिक्षा बोर्ड का अध्यक्ष मनोनीत किया। बुनियादी शिक्षा के संस्थापक कार्यकर्ता बताते हैं कि वे एक सच्चे विचारवान एवं शिक्षामर्मज्ञ थे। 1940 से 1945 तक का कार्य कजिन्स साहब के नेतृत्व में पास किये हुए बोर्ड के उसी प्रस्ताव के अनुसार चलता रहा और उसी के फलस्वरूप चंपारण के बुनियादी विद्यालय को 1942 के 'अंगेजों भारत छोड़ों आन्दोलन' से बचाया जा सका। इसमें कुशल क्षेत्रीय नेतृत्व पं. प्रजापति मिश्र से मिला तथा प्रशासकीय सूझबूझ पं. रामशरण उपाध्याय जी से प्राप्त हुई। आगे चलकर बुनियादी विद्यालय के कुशल संचालन के लिए 1946 ई. में एक शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय, कुमारबाग़ की स्थापना 35 एकड़ जमींन में की गयी। उक्त जमीन पं. प्रजापति मिश्र ने बेतिया राज से दिलाई। (झा, 1996)
बुनियादी विद्यालय के शैक्षिक दर्शन अर्थात महात्मा गाँधी के शैक्षिक दर्शन की प्रासंगिकता राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, में बनी हुई है। समय के कालखंड में यदि हम एन. सी. ई. आर. टी. के द्वारा तैयार किये गए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रुपरेखा-2005 पर नजर डालें तो इसमें गाँधी के विचारों को देखा जा सकता है। ( बुनियादी शिक्षा, एक नई कोशिश, 2011) राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, 21वीं सदी की शिक्षा के लिए आकान्क्षात्मक लक्ष्यों, जिसमें सतत विकास लक्ष्य (एस. डी.जी. 4) शामिल है, के संयोजन में शिक्षा के सभी सुधार एवं पुनर्गठन के लिए प्रतिबद्ध है। भारतीय दार्शनिक, राजनीतिज्ञ, विचारक, समाज सुधारक एवं शिक्षाशास्त्री महात्मा गाँधी के विचारों पर आधारित वर्धा सम्मेलन के बाद बिहार राज्य के चंपारण में स्थापित बुनियादी विद्यालयों के शैक्षिक विचारों की चर्चा राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के संदर्भ में अत्यंत प्रासंगिक हो जाती है, जिसका प्रारंभ महात्मा गाँधी ने चंपारण सत्याग्रह के दौरान ही की थी। बुनियादी विद्यालयों के बीज 1917 ई. में ही महात्मा गाँधी के द्वारा चंपारण सत्याग्रह के दौरान तीन आश्रमों की स्थापना करके कर दी की गयी थी।
बुनियादी विद्यालय के अनिवार्य तथा निःशुल्क शिक्षा संबंधी विचार एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 –
महात्मा गाँधी ने बुनियादी शिक्षा की व्याख्या करते हुए कहा है कि - "बुनियादी शिक्षा जीवन के लिए शिक्षा है, इसका क्षेत्र सात से चौदह वर्ष तक के बच्चे नही हैं, माँ के पेट से आने से लेकर मरने तक हमारा बुनियादी शिक्षा का क्षेत्र है।" वर्धा शिक्षा परिषद् द्वारा स्वीकृत प्रस्तावों में पहला प्रस्ताव यह था कि देश के सभी सात वर्ष के बच्चों की मुक्त एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रबंध होना चाहिए, जिसे नेशनल कांग्रेस ने हरिपुरा सम्मेलन में मार्च 1938 को पास किया था। (केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड, 1937) इसी दिशा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 अपने अध्याय 2, में स्पष्ट रूप से गुणवत्तापूर्ण सार्वभौमिक शिक्षा का लक्ष्य निर्धारित करती है तथा अपने आरम्भिक 6 वर्षों में प्राथमिक विद्यालयों में सार्वभौमिक मूलभूत साक्षरता ज्ञान का लक्ष्य रखती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बिंदु 3.1 में इस तथ्य का जिक्र किया गया है कि देश के लगभग 3.22 करोड़ बच्चों को यथासंभव पुन: शिक्षा प्रणाली में वापस लाना है तथा इसके साथ ही 2030 ई. तक प्रारम्भिक तथा माध्यमिक स्तर पर 100% सकल नामांकन एवं भविष्य के छात्रों का 'ड्रापआउट' दर कम करने का लक्ष्य रखा गया है।
बुनियादी विद्यालय के सर्वांगीण विकास संबंधी विचार एव राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 -
जुलाई 1937 में महात्मा गाँधी ने हरिजन में लिखा था कि - "शिक्षा से मेरा तात्पर्य, बालक और मनुष्य के शरीर, मन और आत्मा का चहुँमुखी और श्रेष्टतम विकास है, मेरी नजरों में केवल साक्षरता शिक्षा नही है।" इसलिए महात्मा गाँधी विद्यार्थियों को कोई उपयोगी दस्तकारी सिखाकर शिक्षित करना चाहते थे, जिससे विद्यार्थी शिक्षा का प्रारम्भ होते ही कुछ बनाना व पैदा करना सीखे सकें। उनका मानना था कि बचपन में बालकों के ह्रदय की वृत्तियों को ठीक दिशा की ओर मोड़ा जाय। उन्हें खेती चरखा आदि उपयोगी कामों में लगाया जाय और जिस उद्योग द्वारा उनका शरीर खूब कसा जा सके उस उद्योग की उपयोगिता और उसमें काम आने वाले औजारों की बनावट आदि का ज्ञान उन्हें दिया जाय तो उनके बुद्धि का विकास सहज ही होता है। वे इन्हीं तौर-तरीकों के द्वारा गणितशास्त्र, साहित्य एवं आवश्यक सभी महत्वपूर्ण ज्ञान को दिए जाने के पक्षधर थे। इसके द्वारा विद्यार्थियों के सभी पक्षों ( ज्ञानात्मक, भावात्मक, मनोचालक) का विकास करना चाहते थे। मनुष्य न केवल बुद्धि है, न केवल शरीर है, न केवल ह्रदय व आत्मा है, अपितु तीनों के एक समान विकास से ही मनुष्य का मनुष्यत्व सिद्ध होगा। इसी में जीवन का सच्चा अर्थशास्त्र है। (ग्राम स्वराज, 2011) राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के भाग-एक में उपरोक्त उद्देश्यों को अपने शिक्षा प्रणाली में समाहित करता है, जिसमें प्रारम्भिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ई. सी. सी. ई.) में मुख्य रूप से लचीली, बहुआयामी, बहुस्तरीय, खेल आधारित , गतिविधि आधारित खोजआधारित के साथ साथ सामाजिक कार्य, मानवीय संवेदना, अच्छे व्यवहार, शिष्टाचार, नैतिकता, व्यक्तिगत और सार्वजनिक स्वच्छता , समूह में कार्य करना और आपसी सहयोग को विकसित करने पर ध्यान केन्द्रित किया गया है।
बुनियादी विद्यालय का मातृभाषा संबंधी विचार एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 –
आधुनिक शिक्षाशास्त्री तथा तमाम मनोवैज्ञानिक इस तथ्य को स्वीकारते हैं कि मातृभाषा में शिक्षण दिए जाने से विद्यार्थी सहजता, सरलता, स्पष्टता एवं शीघ्रता से सीखता है। यह सिखाने की स्वभाविक प्रक्रिया है, भाषा के रूप में अंग्रेजी ही नहैं किसी अन्य भाषा को सिखाने के प्रति गाँधी जी का कोई विरोध नही था किन्तु शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होना चाहिए। (सिंह, 2011) अपने मन के भावों की अभिव्यक्ति के साधनों में भाषा सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, उसमें मातृभाषा का महत्त्व सर्वोच्च है। मातृभाषा में पूर्वजों के चिन्तन की अन्तःसलिला प्रवाहित होती है, जो युग-युग तक मानव के अन्तः करण को पवित्र करती है। मातृभाषा में मनुष्य की संस्कृति तथा उसकी जातिगत सारी प्रवृत्तियाँ समाहित रहती हैं। (झा, 2005) अतएव कहा जा सकता है कि मातृभाषा की समुचित शिक्षा ही सारी शिक्षा की नींव है। जब तक व्यक्ति अपनी मातृभाषा को नही समझ सकता तब तक उसके विचारों में संतुलन नही आ सकता है। यही कारण है कि मातृभाषा द्वारा दी गयी शिक्षा सबसे अच्छी शिक्षा होती है। विद्यार्थी अपनी अनुभूतियों को अपनी रचनाओं द्वारा प्रकट करने की कुशलता प्राप्त करता है। एक भाषा के तौर पर गाँधी जी ने अंग्रेजी का कभी विरोध नहीं किया लेकिन वे शिक्षण का माध्यम मातृभाषा हो इसका पुरजोर समर्थन करते थे। बुनियादी विद्यालय के इस तथ्य को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के भाग-एक के बहुभाषावाद और भाषा शक्ति के बिंदु संख्या 4.11 में अपना स्थान सुनिश्चित किया है, जिसमें यह कहा गया है कि विद्यार्थी मातृभाषा में सार्थक अवधारणाओ को तीव्रता से सीखते हैं और समझते हैं, जहाँ तक संभव हो शिक्षा का माध्यम घर की भाषा/मातृभाषा/स्थानीय भाषा होगी। इसके बाद स्थानीय भाषा को जहाँ तक संभव हो भाषा के रूप में पढ़ाया जाता रहेगा।
बुनियादी विद्यालय के उत्पादक काम एव ज्ञान के समन्वय संबंधी विचार एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 -
प्रारम्भिक शिक्षा के संदर्भ में महात्मा गाँधी का मानना था कि इसके प्रारम्भ से लेकर अंत तक शिक्षा का सारा काम किसी न किसी उत्पादक शिल्प द्वारा संपन्न होना चाहिए। साथ ही साथ अन्य सम्पूर्ण क्रियाओं का विकास तथा दी जानेवाली शिक्षा यथासंभव किसी प्रमुख शिल्प कार्य से संभव हो। इसके पीछे उनका तर्क था कि इसमें दो मकसद पूर्ण होंगे। एक बच्चे श्रम का मूल्य समझेंगे और दूसरा भारत जैसे गरीब देश के लिए ऐसी शिक्षा विद्यार्थियों को एक कौशल दे पायेगी। (सक्सेना, 2011) महात्मा गाँधी ने 1937 के वर्धा सम्मेलन में कहा था कि अगर बच्चा तकली कटता है तो तकली काटते हुए केवल वह गिनती नही सीखता कि कितने फेरे लगा लिए, केवल सूत का वजन, कपास का वजन नापना ही नही सीखता या इसमें कितने वर्गफीट कपड़ा बनेगा केवल इतना नही सीखता। वो साथ में कपास का इतिहास भी सीखता है और वो विद्यार्थी कपास के जरिये किस तरीके से भारतीय अर्थव्यवस्था का शोषण होता है यह भी सीखता है। (सदगोपाल,अनिल. 2011) अर्थात बुनियादी विद्यालय के शिक्षा दर्शन में कर्म और ज्ञान को अलग-अलग दृष्टि से नहीं देखा जाता था, बल्कि दोनों क्रिया एक साथ सम्पादित होती थीं। बुनियादी विद्यालय के इस तथ्य को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के बिंदु के 4.26 में समाहित किया गया है, जिसमें कहा गया है कि राज्य एव स्थानीय समुदायों द्वारा तय किये गए महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक शिल्प जैसे बढ़ईगीरी, बिजली का काम, धातु का काम, बागवानी का काम, मिट्टी के बर्तनों का काम कराकर अनुभवात्मक अधिगम प्रदान किया जायेगा और कक्षा 6 से 8 वीं कक्षा में पढ़ने के दौरान सभी विद्यार्थी दस दिन बस्ता रहित पीरियड में स्थानीय व्यावसायिक विशेषज्ञों, जैसे बढ़ई, माली, कुम्हार, कलाकार आदि के साथ प्रशिक्षु के रूप में काम करेंगे।
बुनियादी विद्यालय के मानवीय गुणों संबंधी विचार एव राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 -
बुनियादी शिक्षा के श्रेष्टतम व्याख्याता डॉ. जाकिर हुसैन ने कई बार स्पष्ट शब्दों में कहा है कि बुनियादी शिक्षा में शिल्प का काम लक्ष्य नहीं बल्कि बालकों की बुद्धि और विकास का साधन मात्र है, और उसी शिल्प को चुना या अपनाया जायेगा जो शिक्षा के संभावनाओं से परिपूर्ण होगा जिस शिल्प से मनुष्य की चेष्टा और ऊंचाइयों का संबंध स्वाभाविक और निकटतम होगा। (शुक्ल & श्रीवास्तव, 2021) गांधी इसमें अटूट विश्वास रखते हैं कि जब कोई विद्यार्थी मेहनत करता है तो उसके मन में शांति से जुड़े हुए भाव पैदा होते है, अहिंसा से जुड़े हुए भाव पैदा होते हैं, इसलिए मेहनत एक नैतिक ताकत है, इसको इस रूप में देखने की जरूरत है। शिल्प का काम करते हुए विद्यार्थी एक-दूसरे से मदद माँगते हैं और वे एक-दूसरे की मदद करते हैं। वे चाहे अलग-अलग कक्षाओं या जातियों के हों, चाहे उनकी रूचि और सहानभूति विभिन्न दिशा में हो, एक साथ काम करने से विद्यार्थियों में परस्पर सहयोग और सहायता जैसे मानवीय मूल्यों का विकास होता है। अर्थात शिल्प के काम में परस्पर सहयोग और सहानभूति की भावना अवश्य ही उत्पन्न होगी। यही भावना एक ऐसे आदर्श समाज का बीज बोएगी जिसमें आक्रामक, प्रतिस्पर्द्धा, शोषण और दूसरों के अधिकारों का अपहरण असंभव होंगे। एक मौन सामाजिक क्रांति के लिए बुनियादी शिक्षा पद्दति एक शक्तिशाली साधन है। महात्मा गाँधी कहते हैं कि बुनियादी शिक्षा सत्य और अहिंसा पर अवलंबित है। (ग्राम स्वराज, 2011) शिक्षा द्वारा लोगों के मन और चरित्र को इतना प्रभावित किया जा सकता है कि वे हिंसा और लड़ाई से घृणा करने लगें। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 इस वास्तविकता का पुरजोर समर्थन करती है कि हमें बालक में नैतिक मानवीय और संवैधानिक मूल्य जैसे सहानुभूति, दूसरों के लिए सम्मान, स्वच्छता, शिष्टाचार, लोकतांत्रिक भावना, सेवा की भावना, सार्वजनिक संपत्ति के लिए सम्मान, वैज्ञानिक चिंतन, स्वतंत्रता, जिम्मेदारी, बहुलतावाद, समानता और न्याय जैसे मूल्यों का विकास करना है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि बुनियादी शिक्षा द्वारा इन उद्देश्यों की पूर्ति की जा सकती है।
बुनियादी विद्यालय का करके सीखने (प्रायोगिक) संबंधी विचार एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 -
बुनियादी शिक्षा की पद्धति स्पष्ट करते हुए गाँधी जी ने कहा था कि - "बुनियादी शिक्षा में सिखाने की पद्धति यह होगी कि जब बच्चा बोलना शुरू करता है तब भाषा की तालीम मौखिक शुरू होगी। पहले रंगों की पहचान कराएँफिर चित्रों से शुरू कर अक्षर की पहचान कराएँ क्योंकि अक्षर भी एक चित्र होते है।" (बुनियादी शिक्षा, 2015) बच्चों का चलना, हिलना खेलकूद सभी सृजनात्मक होते हैं। खेल का मतलब होता है कुछ करते हुए सीखना। यदि शुरू से बच्चे को रचनात्मक काम करने कि आदत पड़ जाय तो उसकी प्रगति उसी दिशा में होगी। काम के साथ वह उस काम में दिमाग लगाएगा जिससे उसकी सृजनात्मक प्रवृत्ति अधिक बढ़ती जाएगी। (सिंह, 2008) बुनियादी शिक्षाक्रम में खेलकूद, नृत्य, संगीत, नाट्य, प्रयोग, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक उत्सवों को मनाना, साहित्य-रचना आदि कई गतिविधियाँ शामिल हैं। बच्चों में कलात्मक प्रवृत्तियों का विकास करने की अपेक्षा रखी जाती है। बुनियादी विद्यालय का उक्त विचार राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के बिंदु 4.7 तथा 4 .8 में अपना स्थान सुनिश्चित किया है, जिसमें विद्यालयी शिक्षा के सभी चरणों में प्रायोगिक अधिगम की बात की गयी है जो कला समन्वय जैसी क्रास कैरिकुलर शैक्षणिक दृष्टिकोण को परिलक्षित करता है। दूसरी ओर खेल समन्वय शिक्षण बच्चों के स्वास्थ्य के साथ-साथ सम्बन्धित जीवन कौशल को प्राप्त करने में सहयोग भी प्रदान करेगा।
उपसंहार : इक्कीसवीं सदी में राष्ट्रों की प्रगति, विकास और उन्नति का मूल आधार उसकी ज्ञान सम्पदा होगी। यह ज्ञान आधार जितना अधिक सशक्त समेकित, सजग तथा परिवर्तनों के प्रति सतर्क एवं गतिशील होगा, राष्ट्र की प्रगति उतनी ही विस्तृत एवं सर्वव्यापी होगी। बुनियादी शिक्षा की संकल्पना और संरचना भारत की ज्ञानार्जन की उस परम्परा पर आधारित है, जिसकी जड़ें गहराई तक भारत की मिट्टी में गड़ी हुई थीं। महात्मा गाँधी बुनियादी शिक्षा का प्रतिपादन भारत के लोगों की आवश्यकताओं, इच्छाओं, अपेक्षाओं को समझकर उनकी कमजोरियों, अज्ञानता, निराशा, मनोबल की क्षीणता, अध्यात्म और मानवीय गुणों के मूल्यों के अंतर्निहित तत्वों को पहचान कर, भारत में विविधता की स्वीकार्यता के महत्त्व को समझकर किया था। मूलरूप से यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 महात्मा गाँधी के बुनियादी विद्यालय (नई तालीम) के सम्पूर्ण शैक्षिक विचारों को समेटे हुए है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 बुनियादी विद्यालय के शैक्षिक दर्शन का यथार्थ रूप में साक्षात्कार कराती है जो अवधारणात्मक समझ, रचनात्मक सोच, जीवन कौशल, नैतिकता, मानवीय और संवैधानिक मूल्य, भारतीय परम्परा एव सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित करते हुए उच्च शैक्षिक प्रतिमान स्थापित करने पर बल देती है।
सन्दर्भ :
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- गाँधी, एम. के.( 2015), मेरे सपनों का भारत , अहमदाबाद : नवजीवन पब्लिशिंग हॉउस
- गुप्ता, एस. पी. और गुप्ता, एल (2020) , भारतीय शिक्षा का ताना बाना इलाहबाद : शारदा पुस्तक भवन
- चौधरी, एस. और गंगवार, एस. ( 2020 ), पंडित मदन मोहन मालवीय का शिक्षा दर्शन और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारतीय आधुनिक शिक्षा राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद नई दिल्ली
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- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020 ), मानव संसाधन विकास मंत्रालय , भारत सरकार
गणेश शुक्ल
(शोध छात्र)
शैक्षिक अध्ययन विभाग, महात्मा गाँधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय पूर्वी चंपारण बिहार
ganeshkpuc91@gmail.com, 9696303078
प्रो. आशीष श्रीवास्तव
(संकायाध्यक्ष )
शिक्षा संकाय, महात्मा गाँधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय,पूर्वी चंपारण , बिहार
profasheesh@mgcub.ac.in
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-45, अक्टूबर-दिसम्बर 2022 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक व जितेन्द्र यादव चित्रांकन : कमल कुमार मीणा (अलवर)
सम्पादक-द्वय : माणिक व जितेन्द्र यादव चित्रांकन : कमल कुमार मीणा (अलवर)
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