शोध आलेख : स्वतंत्रता की पुकार 'अग्निवीणा' / धर्मवीर

स्वतंत्रता की पुकार 'अग्निवीणा'
- धर्मवीर

शोध सार : कन्हैयालाल सेठिया आधुनिक राजस्थानी और हिंदी कविता में अपनी एक विशेष पहचान रखते हैं। उन्होनें राजस्थान में सामंतवादी शासन एवं जमींदारी प्रथा का विरोध किया और आजादी के संघर्ष में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सेठिया जी ने साहित्य का सर्जन जनता में स्वराज की भावना जागृत करने के लिए किया। देशभक्ति और देशप्रेम से ओतप्रोत काव्य संग्रह ‘अग्निवीणा’ के कारण इन पर राजद्रोह का मुकदमा लगा और तत्कालीन बीकानेर सरकार ने इस रचना पर प्रतिबंध लगा दिया। उन्हें भारत के स्वाधीन होने पर मुकदमे से सेठिया जी को राहत मिली। इस रचना में क्रांतिकारी विचारों का प्रस्फुटन और जमींदारी उत्पीड़न के विरुद्ध सशक्त स्वर है। ‘अग्निवीणा’ ने अपनी  ओजपूर्ण वाणी से राष्ट्र की शक्ति को जागृत करने का काम किया। सेठिया जी  स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान युवाओं को अपनी कविताओं के माध्यम से आज़ादी के लिए प्रेरणा देते रहे। 

बीज शब्द : प्रतिबंधन, स्वाधीनता, राष्ट्र, जमींदारी-प्रथा, क्रांतिकारी-विचार। 

मूल आलेख : साहित्य समाज का दर्पण मात्र नहीं है बल्कि वह उन सरोकारों की जटिलता से गहरे स्तर से जुड़ा रहता है कि जो सरोकार मनुष्य के जीवन की जटिलता को ही व्यक्त करता है। इसलिए  साहित्य और मनुष्य के जीवन को द्वन्द्वात्मक रूप में ही लक्षित किया जाना चाहिए। क्योंकि साहित्य समाज को बदलने की पहल करता है तो समाज साहित्य को भी। यही साहित्य जब कभी शासक वर्ग के विरुद्ध आवाज़ उठाता है तब उसकी आवाज़ पर पाबंदी  लगा दी जाती है। स्वाधीनता आंदोलन के समर्थन में लिखा हुआ कुछ भी प्रकाशित नहीं किया जा सका क्योंकि अंग्रेंजी राज ने रचनाओं पर प्रतिबन्ध लगा कर उन्हें दण्डित किया।

    ‘प्रतिबन्धन’ का सामान्य अर्थ निषेध होता है। लेकिन राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में इसका अर्थ उस वैधानिक कार्यवाही से है जो प्रकाशन, संगठन आदि को गैर कानूनी घोषित कर दमनात्मक रुख अपनाता है। सरकार उनके विरुद्ध होता है, जो उनके षड्यंत्रों का खुलासा करता है। उनके द्वारा विकृत की गई दुर्व्यवस्था के विरुद्ध जनता को जागरूक करता है। अपने हक की लड़ाई के लिए प्रेरणा देता है। साहित्य में जन चेतना में जागृति का संचरण करने की प्रेरणा जहाँ-जहाँ दिखाई पड़ती है उस साहित्य को साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया।

    कन्हैयालाल सेठिया जी राजस्थानी भाषा के भीष्म पितामह कहे जाते हैं। वे एक संत और दार्शनिक की भांति गहरे चिंतक, शब्दों की बारीकियों के कलाकार, शब्दों की मधुर अभिव्यक्ति और कम शब्दों में अधिक कहने की विशिष्टता रखने वाले सेठिया जी राजस्थानी और हिंदी के सिरमौर कवि माने जाते हैं। सेठिया जी का जन्म 11 सितंबर,1919 को चुरू जिले के सुजानगढ़ कस्बे में एक धनी सेठिया परिवार में हुआ। प्रारंभिक अध्ययन सुजानगढ़ कस्बे में हुआ और बी.कॉम की पढ़ाई कलकत्ता से की। वे 11 नवंबर, 2008 को अनंत में लीन हो गए। उन्हें साहित्य सेवा और सहृदयता विरासत में मिली थी। स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के कारण पढ़ाई में निरंतरता नहीं रह पायी। राजस्थानी कविता को देश-विदेश में ख्याति दिलाने वालों में सेठिया जी शीर्ष पर है। इनकी राजस्थानी भाषा में एक दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और इतनी ही हिंदी भाषा में भी। जुगल किशोर जैथलिया ने 2005 में ‘कन्हैयालाल सेठिया समग्र’, राजस्थान परिषद, कलकत्ता से प्रकाशित हुआ। उन्हें ‘निर्ग्रन्थ’ रचना पर भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली द्वारा मूर्तिदेवी साहित्य पुरस्कार दिया गया और राजस्थानी भाषा में ‘लीलटांस’ कृति पर साहित्य अकादमी पुरस्कार से अलंकृत किया गया। सेठिया जी पद्मश्री और राजस्थान रत्न से सम्मानित हैं।

    सेठिया जी का काव्य सृजन बहुत विस्तृत है। इनकी कविताओं  में मानवता, चरित्र और नैतिकता का आग्रह देखने को मिलता है। हमारे राष्ट्र और समाज में हो रहे जीवन मूल्य के विघटन की गहरी चिंता उनकी कविताओं में मिलती है। सेठिया जी की रचनाओं में दार्शनिकता का पुट मिलता हैं। इनकी रचनाओं में संवेदनशीलता और अपनापन मिलता है। 

    सेठिया जी लोकप्रिय कविता ‘धरती धोरां री’ और ‘अरे घास री रोटी जद बन बिलावड़ो ले भाग्यो’ (पाथळ और पीथळ) आज करोड़ों लोगों की जुबां पर है। वे अपने लोकगीतों के कारण पूरे देश में प्रसिद्ध एवं आदरणीय हैं। इनका लिखा अमर गीत ‘धरती धोरां री’ प्रदेशवासियों के दिल में बसता है।

“धरती धोराँ री, आ तो सुरगां नै सरमावै,
ईं पर देव रमण नै आवै, ईं रो जस नर नारी गावै,
धरती धोराँ री ...”1

    इनकी रचनाओं में राजस्थान की बहुरंगी संस्कृति का चित्रण भी मिलता है। सेठिया जी के काव्य में प्रकृति चित्रण के सहारे मनुष्य को सत्य का साथ देने की प्रेरणा दी है। लोकजीवन की शब्दावली सेठिया जी के काव्य की व्यंजना को प्रभावी बनाती है। इनकी कविता चित्रात्मकता और संप्रेषणीयता से परिपूर्ण है। इनकी लेखनी में मायड़ भूमि से जुड़ाव रखा है और राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए आजन्म प्रयास किए।

    सेठिया जी का वर्ष 1941 में छायावादी भावनाओं पर आधारित काव्य-संग्रह ‘वनफूल’ प्रकाशित हुआ। इससे सेठिया जी को साहित्य संसार में संवेदनशील कवि की प्रतिष्ठा मिली। सन्1942 में प्रकाशित ‘अग्निवीणा’ में देश की आजादी की छटपटाहट देखने को मिलती है। इस रचना में उनकी राजनीतिक चेतना मुखरित होती है। इस रचना का एक-एक पद शौर्य भावनाओं को जागृत करने वाला था। ‘अग्निवीणा’ कविता संग्रह में 20 कविताएँ है – सारी कविताओं ने अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत का स्वर थोड़ा ओर ऊँचा कर दिया, इसी कारण बीकानेर राज्य ने इस महान कवि पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया और ‘अग्निवीणा’ रचना की प्रतियों को जब्त कर प्रतिबंधित कर दिया। हालांकि भारत आजाद होने के बाद सेठिया जी को मुकदमे से राहत मिली। साथ ही भारत सरकार ने स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सम्मानित भी किया। 

    सेठिया जी जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और जमींदारों-जागीरदारों की ओर से किसानों पर किए जा रहे अत्याचारों का विरोध किया। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अनेक उल्लेखनीय कार्य किए। वे वर्ष 1934 में महात्मा गांधी के संपर्क में आये और हरिजन सेवा एवं उत्थान के लिए उन्होंने कार्य किया। उन्होंने गांधीजी के संपर्क में आने के बाद में स्वदेशी चीजों को अपनाया। हरिजन बालकों की शिक्षा के लिए स्कूल की स्थापना भी की। वह आजादी के दौरान आमजन को मातृ भाषा में भाषण देकर प्रेरित भी किया करते थे। उन्होनें जमींदारों के खिलाफ ‘कुण जमीन रो धणी’ जैसी लोकप्रिय कविता की रचना की। इस रचना द्वारा किसानों की पीड़ा को आवाज दी। यह रचना सामंती और जागीरदारी अत्याचारों के विरुद्ध 1945 ई. में लिखी गई। ‘कुण जमीन रो धणी’ कविता में सेठिया जी ने समकालीन समाज की जर्जर रुढियों से बगावत करके क्रांतिकारी माहौल का निर्माण करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ विद्रोह की चिंगारी स्वरूप ‘कुण जमीन रो धणी’ राजस्थानी गीत लिखा। यह गीत इतना लोकप्रिय हुआ कि गाँव-गाँव के किसानों के जुबां की शोभा बन गया। वे लिखते हैं - 

“बळद बेच ब्याज रै, ब्याज नै उघाणियों
राज सीर चोर कै करै’र करसणी,
ओ जमीन रो धणी’क बो जमीन रो धणी?
कुण जमीन रो धणी”2

    सेठिया जी ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के समय कराची में जयराम दास जी, दौलतराम जी और डॉ. चौथीराम गिडवानी जो कि सिंध में उस जमाने में कांग्रेस के बड़े नेताओं में जाने जाते थे, उनके साथ कराची के खलीकुज्जमा हॉल में हुई जनसभा में भाग लिया था, उस दिन सबने मिलकर तीनों नेताओं के नेतृत्व में एक जुलुस निकाला था, जिसे वहाँ की गोरी सरकार ने कुचलने के लिए लाठियाँ बरसायी, घोड़े छोड़ दिये। सेठिया जी को कोई चोट तो नहीं आयी, पर अंग्रेजी सरकार के व्यवहार से उनके मन में गोरी सरकार के प्रति नफरत पैदा हो गयी। उस सभा में सेठिया जी ने ‘देस भक्ति रै जज्बै रा विचार’ पर भाषण दिया। उनमें देशभक्ति की भावना थी। उन्होंने 1942 में स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया और आम जनता में राजनीतिक चेतना को जागृत किया। वे 1943 में जयप्रकाश नारायण और राममनोहर लोहिया के संपर्क में आये। उन्होंने 1945 में प्रजा परिषद बीकानेर के प्रमुख सेनानी के रूप में सामंतवाद और जागीरदारी प्रथा के खिलाफ जमकर संघर्ष किया। सेठिया जी महाकवि से पहले स्वतंत्रता सेनानी रहे  हैं। वे राष्ट्रभक्त कवि है। आज हम देश की आजादी का अमृत-महोत्सव मनाने जा रहे हैं। तो सेठिया जी जैसे महान व्यक्तित्व का स्मरण करना समीचीन है। वे मूर्धन्य कवि हैं, उन्होनें देश और समाज की निष्काम सेवा की है। 

    सेठिया जी का जन्म अंग्रेजों द्वारा शासित भारत में हुआ। उस समय अंग्रेजों के अत्याचारों से आम जनता दुखी थी। सेठिया जी बचपन से ही अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे जुल्मों और अत्याचारों की बातें न सिर्फ सुनी बल्कि वह इससे मुखातिब भी हुए और अपने देश के रणबाँकुरों के संघर्ष के भी गवाह बने। अंग्रेजों और देशी रियासतों के शासन से परेशान जनता और जागीरदारी व्यवस्था की निरंकुशता को देखकर सेठिया जी पर गहरा प्रभाव पड़ा। साथ ही वे उसी समय राष्ट्रीय कार्यकर्ता रहे। उस परिवेश में सेठिया जी ने कलम से क्रांति का रुख मोड़ा और सामंती उत्पीड़न के विरुद्ध रचनाएँ लिखी। 

    इनके गीतों और कविताओं से युवा शक्ति को ‘करो और मरो’ का संदेश मिला। इनके काव्य में ब्रिटिश साम्राज्यवाद और रियासती सामंतवाद को चेतावनी थी इसलिए सेठिया जी पर बीकानेर रियासत ने मुकदमा चलाया, जो आजादी के बाद खत्म हुआ। 

“कोनी कोरो नावं 
रेत रो हल्दीघाटी, 
अठै उग्यो इतिहास 
पुजीजै ईंण री माटी।”3 

    इनकी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रभक्ति, गांधी दर्शन, राजस्थानी संस्कृति, सामाजिक विषमता, आमजन की पीड़ा का सहृदय चित्रण किया जा सका है। महात्मा गांधी के आदर्शों को आत्मसात कर सेठिया जी ने शोषित वर्ग के पक्ष की आवाज उठाई। वे तत्कालीन स्वतंत्रता सेनानियों का उत्पीड़न देखकर विचलित हुए और सामंतशाही का विरोध किया। उन्होनें राजस्थान के नवनिर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सामाजिक उत्थान के लिए अनुकरणीय कार्य किये। अस्पृश्यता का विरोध किया और शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की।

    जीवन के विभिन्न रंगों से कवि ने अपनी चिंतन धारा को जीवंत किया है। ‘रमणियै रा सोरठा’ (1940)   रचना में विषम परिस्थितियों और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह के स्वर मुखरित हुए हैं। जिसमें कवि ने  संघर्षशील किसान को जमीन का सच्चा मालिक साबित कराने के लिए क्रांतिकारी स्वरों से सुविधाभोगी समाज की  मानसिकता को ललकारा है। यहाँ कवि के दर्शन में चिंतन की परिपक्वता, सत्यान्वेषण, जीवनानुभव की सच्चाई आदि आदि पहलुओं का साक्षात्कार होता है। साहित्य और समाज लंबे समय से एक-दूसरे का साथ निभाते आये हैं। सेठिया जी की कविता में क्रांतिमय चेतना के प्रबल स्वर हैं। सेठिया जी पीड़ित, शोषित मानव का उद्धार करना चाह रहे थे। ‘अग्निवीणा’ में क्रांतिमय चेतना का उद्घाटन हुआ है। परिस्थितियों के परिवर्तन के लिए रणबाँकुरों को उन्होनें ललकारा है –

“किन घड़ियों में बैसुध सोये,
मारवाड़ के पूत,
पराधीन तुम देश तुम्हारा,
ओ बांके राजपूत।”4

“अग्निवीणा झनझना दो 
आज ताण्डव नृत्य होगा
हिल उठे प्राण कवि के 
आज भीषण कृत्य होगा।”5

    सेठिया जी ने राजाशाही और अंग्रेजी हुकूमत के अन्याय, अत्याचार और शोषण के विरुद्ध में प्रतीकात्मक रूप में अपनी कविताओं और गीतों का सृजन किया। ‘महामरण की बेला में’ कविता में आज़ादी के प्रखर स्वर है। अंग्रेजों की दमन नीति के आगे भारतीय वीर घुटने टेकने वाले नहीं है। उन्हें देश की स्वतंत्रता के महा-रण में जेलें भी उनके उत्साह और गति को अवरुद्ध नहीं कर सकती। 

“कफ़न बाँधकर आज खड़े हम 
कातिल अपना बल अजमा लो 
हम न हटेंगे एक कदम भी 
चाहे जितने जुल्म ढहा लो 
आज हमारी रग-रग में महालय की बिजली दौड़ी 
अब न अधिक अन्याय सहेंगे, हमने युग की रासें मोड़ी।” (अग्निवीणा) 

“लौह सींख वो वाली जेलें गति को कैसे तोड़ सकेंगी।
आज हमारी हथकड़ियाँ भी इंकलाब का गान करेंगी।”6

    1942 में देशभक्ति का आह्वान करने वाली कृति ‘अग्निवीणा’ हिंदी में निकाली गई, जो मात्र काव्य संग्रह ही नहीं, साक्षात् अग्निवीणा ही थी।

‘अपने पहरेदारों पर है
इतना जो विश्वास तुम्हारा
पर मौके पर वे भी देंगे
तुम्हें छोड़कर साथ हमारा।’7 

    देसी रियासतों और सामंती व्यवस्था के दमघोटू वातावरण में आम आदमी की बात करना ही देशद्रोह माना जाता था, उस समय राजस्थान के मूर्धन्य कवि पद्मश्री कन्हैयालाल सेठिया जी ने उनके खिलाफ आवाज उठायी।

“म्हे आज सुणी है नाहरियो, स्याला रै सागै सोवेलो।
म्हे आज सुणी है सूरजड़ो, बादल री ओटाँ खोवेलो।”8

    सेठिया जी की इस कविता ने लोगों में दुगुने उत्साह के साथ उनमें उर्जा का संचार किया, जिसने स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी के लिए संकल्प पुन: जगाया। इनकी कविताओं ने अपनी मातृभूमि पर सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए युवकों में जोश भरा।

    सेठिया जी भारत माता को गुलामी से स्वतंत्र कराने के लिए निरंतर अपनी कविताओं से उत्साह का संचार करते रहे। 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का अंग्रेज शासकों ने क्रूरता से दमन किया। तब सेठिया जी ने ‘पीथल-पाथल’ जैसी ओजस्वी कविता की रचना की, जो भारतीय नव-युवकों में नवीन ऊर्जा का संचार करने में सहायक रही।

“राखो थें मूंछ्याँ ऐंठ्योड़ी, लोही री नदी बहा द्यूंला,
हूँ अथक लडूला अकबर स्यूं, उजडयों मेवाड़ बसा द्यूंला।”9

    उन्होंने ‘अग्निवीणा’ जैसी रचना का सृजन करके आजादी की माँग को बुलंद किया, जो महत्त्वपूर्ण और साहसिक कार्य है।

“रूक न सकेंगे चाहे अपना 
दमन चक्र तुम खूब चला लो 
महा मरण की इस बेला में 
जीवन का त्यौहार मना लो।”10

    भारतवर्ष अंग्रेजों की गुलामी से आक्रांत था। ऐसे में ‘अग्निवीणा’ के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अनवरत लोगों से सम्मिलित होने का आह्वान किया गया। यथा –

“रक्त उबलता रहे रगों में, जीवन की परवाह न हो।
बढ़े चलो विद्रोही मेरी, और दूसरी चाह न हो।”11
 
    सेठिया जी की कविताएं हजारों लोगों के कंठों की शोभा बनी हुई थी। इनकी कविताओं ने भारत की हताश जनता में दुगुना उत्साह भरने का कार्य किया और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए संकल्पित किया। सेठिया जी की ओजपूर्ण काव्य संग्रह ‘अग्निवीणा’ स्वतंत्रता संग्राम का एक आधार बना। उन्होंने राजस्थानी और हिंदी भाषा में राष्ट्रीय भावों को आमजन तक पहुंचाने का सफलतम् प्रयास किया।
 
“चलते फिरते मुर्दों में तू 
ज़िन्दा बन कर जो न रुकेगा
बहुत पिया पर बचा बूंदभर 
उस शोषित को पी न सकेगा।”12

    वे समसामयिक समस्याओं पर काव्य सृजन के साथ-साथ पथ प्रदर्शक का कार्य भी कर रहे थे। यथार्थ के धरातल पर सेठिया ने अनेक कविताएँ लिखी हैं। उनकी हमदर्दी किसानों और मजदूरों के साथ है। जब भारत में अंग्रेजों की हुकूमत थी, तब भारत की आम जनता को असह्य पीड़ा और अत्याचार सहने पड़े। सेठिया जी ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसी दौर में सेठिया जी द्वारा ‘अग्निवीणा’ नामक कविता संग्रह की रचना की गई, जो स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए प्रेरणास्रोत बनी। आज भी उनकी कविताएँ सार्थकता सिद्ध होती है। सेठिया जी का काव्य तात्कालिक राष्ट्रीय राजनीति और सामाजिक उथल-पुथल को कविताओं के माध्यम से आम लोगों तक पहुंचाया है।

    देशभक्ति के प्रति उनका समर्पण ‘अग्निवीणा’ में मिलता है। आजादी से पहले अंग्रेजों के दमनकारी राज, रियासत और सामंती अत्याचारों के सामने इनकी ‘अग्निवीणा’ की धधकती हुई कविताएँ समाज और लोगों को सचेत करती है। आजादी की माँग करने वाले देशद्रोही और अपराधी समझे जाते थे। सेठिया जी की कविताओं में निडरता और साहसिकता से राष्ट्रवादी विचारों को प्रकट किया गया है। सेठिया जी ने अपनी तेजस्वी वाणी से स्वतंत्रता की अलख जगायी और युवाओं में संघर्ष की चेतना को जाग्रत किया। उन्होंने भारत माँ की मुक्ति के लिए देशवासियों के सामने अनेक यशगाथा प्रस्तुत की। उन्होंने चितौड़ की व्यथा का चित्रण ह्रदय विदारक और मार्मिक ढंग से किया है। मेवाड़ के वीरों को ललकारते हुए लिखते हैं कि -

“आज शेर की माँदों में है 
गीदड़ का आवास 
नहीं रहा क्या तुमको अपने 
साहस पर विश्वास 
माँग रही है कितने युग 
पीड़ित माँ बलिदान 
किन्तु छिपाए बैठे हो तुम 
कायर अपने प्राण।”13

    स्वाधीनता संग्राम में जितना बलिदान सेनानियों ने किया उससे कम कलम के सिपाहियों ने नहीं किया। जब भारत माता भारतीय रणबांकुरों को स्वतंत्रता के लिए पुकारती है तो वे अपने प्राणों की परवाह न करते हुए महाकाल से टकराने के लिए प्रस्थान कर जाते हैं।

“चौंक तुम्हारे जयनादों से
हल्दीघाटी जाग उठे 
चम्बल की शीतल लहरों में 
महाक्रान्ति की आग उठे।”14 

निष्कर्ष : कहा जा सकता है कि सेठिया जी ने स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय जनमानस में स्वतंत्रता के महत्त्व के प्रति उन्हें सचेत किया और स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने की प्रेरणा दी। सेठिया जी ने देश सेवा से बड़ा किसी भी धर्म या कर्म को महत्त्व नहीं दिया। उनके अनुसार मातृभूमि पर न्यौछावर होना तथा तन-मन-धन से समर्पित होना सर्वोत्कृष्ट मानवीय गुण है। वे भारत को स्वतंत्र कराने के लिए निरंतर अपनी कविताओं के माध्यम से भारतीयों में ऊर्जा का संचार करते रहे, उनकी ‘अग्निवीणा’ की रचनाएँ इन्हीं तथ्यों की ताकीद करती हैं।  

संदर्भ:-
1.कविता कोश - धरती धोरां री / कन्हैया लाल सेठिया - कविता कोश (kavitakosh.org),28/07/2022,2.50PM 
2.कविता कोश -  कुण जमीन रो धणी / कन्हैया लाल सेठिया - कविता कोश (kavitakosh.org)
3.कविता कोश -  हळदीघाटी! / कन्हैया लाल सेठिया - कविता कोश (kavitakosh.org)
4. जुगल किशोर जैथलिया - ‘कन्हैयालाल सेठिया समग्र’, राजस्थान परिषद, कलकत्ता, 2005, पृ.53 
5.वही, पृ.86
6.कन्हैयालाल सेठिया – ‘अग्निवीणा’ कविता संग्रह, आर्यावर्त प्रकाशन, सुजानगढ़ (चूरू), पृ.27
7.वही, पृ.27
8.जुगल किशोर जैथलिया - ‘कन्हैयालाल सेठिया समग्र’, राजस्थान परिषद, कलकत्ता, 2005, पृ.75
9.कविता कोश - पातल’र पीथल / कन्हैया लाल सेठिया - कविता कोश (kavitakosh.org)
10.जुगल किशोर जैथलिया - ‘कन्हैयालाल सेठिया समग्र’, राजस्थान परिषद, कलकत्ता, 2005, पृ.56
11.वही,पृ.56
12.कन्हैयालाल सेठिया – ‘अग्निवीणा’ कविता संग्रह, आर्यावर्त प्रकाशन, सुजानगढ़ (चूरू), पृ.26
13.जुगल किशोर जैथलिया - ‘कन्हैयालाल सेठिया समग्र’, राजस्थान परिषद, कलकत्ता, 2005, पृ.49
14.वही, पृ.60

धर्मवीर
शोधार्थी, हिंदी विभाग, हैदराबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद।
सम्पर्क : dharmveersarancuk@gmail.com

  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  प्रतिबंधित हिंदी साहित्य विशेषांक, अंक-44, नवम्बर 2022 UGC Care Listed Issue
अतिथि सम्पादक : गजेन्द्र पाठक
 चित्रांकन अनुष्का मौर्य ( इलाहाबाद विश्वविद्यालय )

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