साक्षात्कार : 'मेरी इच्छा शक्ति ही मेरी प्रेरणा व ऊर्जा का स्त्रोत है।' (कलाकार डॉ. कृष्णा महावर से हेमन्ता मीणा )

'मेरी इच्छा शक्ति ही मेरी प्रेरणा व ऊर्जा का स्त्रोत है।'
(कलाकार डॉ. कृष्णा महावर से हेमन्ता मीणा की बातचीत)

कला शिक्षिका,चित्रकार, लेखिका, परफॉर्मेंस कलाकार, एक माँ, पत्नी, शोध निर्देशिका और ना जाने कितने ही क्षेत्रों में अपने दम पर सफलता के परचम लहराती डॉ. कृष्णा महावर आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है। पेंटिंग, न्यू मीडिया, वीडियो आर्ट, परफॉर्मेंस आर्ट, इंस्टॉलेशन आर्ट आदि माध्यमों में कार्य करती है। उनकी सबसे सकारात्मक प्रेरणादायी बात जो मुझे उनकी शोध छात्रा होने के नाते प्रभावित करती हैं, वह यह हैं कि वे असीम ऊर्जा से भरी रहती है। हर समय कोई ना कोई नये कार्य पर विचारमग्न रहती हैं और विचार परिपक्व होते ही उसे अंजाम देने का साहस भी रखती हैं। उनके कुछ साहसी कला परफॉर्मेंससर्चिंग वुम्ब’’, मेपिग माइंड,  “24 x 7’’, आई एम फ्लावर’’ रहें हैं, जो राजस्थान के कला प्रेमियों को नयी कला विधा परफॉर्मेंस  कला से  भी रूबरू करवाते हैं। रंग, ब्रश, कैनवास माध्यम में दो दशक से भी अधिक कार्य करने के बाद वर्तमान में वे शरीर को भी अपना अभिव्यक्ति का माध्यम बना रही है, जो नया तो हैं ही, सोचने पर मजबूर भी करता है। अत: उन्हे राजस्थान की प्रथम महिला परफॉर्मेंस कलाकार के तौर भी देखा जा सकता है। कलाकारों का जहाँ एक एकल चित्र प्रदर्शनी करने के बाद ही जोश ठंडा हो जाता हैं, वहाँ उन्होने 25 से भी अधिक एकल प्रदर्शनियाँ आयोजित की हैं। आपको राजस्थान ललित कला अकादमी से दो बार वर्ष 2014 वर्ष 2020 में राज्य स्तरीय कला पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। गत वर्ष ही 15 अगस्त के अवसर पर भी आपको कला के क्षेत्र में विशेष योगदान हेतु राज्य स्तरीय प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया। पुरस्कारों, शोध पत्र लेखनों, प्रदर्शनियों, कलात्मक गतिविधियों में भागीदारिता की लंबी सूची हैं। आपकी रुचि 1960 के दशक के बाद की समकालीन कला में अधिक है। इसी से प्रभावित होकर समकालीन कला के अंतर्गत आपने  न्यू आर्ट ट्रेंड्स”, भारतीय संस्थापन कला”, पश्चिमी संस्थापन कला”, नवीन मीडिया कला पुस्तकों का लेखन किया हैं। वर्तमान में आप राजस्थान विश्वविद्यालय में सहायक आचार्य पद पर कार्यरत हैं आपके चित्र परफॉर्मेंस नारी केन्द्रित विषय लिए होते हैं। ऐसा क्यों हैं? उनकी सृजन यात्रा को थोड़ा और नजदीक से जानने, समझने के लिए मैंने उनसे कुछ वार्ता की कि कैसे वे अपने परिवार, नौकरी कला क्षेत्रों में सामंजस्य स्थापित करती है, तो आइयें आपसे ही जानते हैं आपकी कलायात्रा के बारे में ......

हेमन्ता : आपने कब कैसे तय किया कि आपको कला के क्षेत्र में आना हैं ?

डॉ. कृष्णा : कला के क्षेत्र में आने या ना आने का प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि आरंभ से ही मैंने चित्रकला के अतिरिक्त कुछ और नहीं किया और ही सोचा। हां, यह जरूर है, कि पढ़ाई के दौरान जब कक्षा ग्यारहवीं  में कोई विषय लेना होता है, तो मैंने चित्रकला को ऐच्छिक विषय चुना और उसके पश्चात तो फिर कहीं और देखने का मौका ही नहीं मिला। मेरे परिवार में मेरे नानाजी अच्छे प्रोफेशनल आर्टिस्ट थे, जो कि ऑर्डर पर बहुत उम्दा रियलिस्टिक चित्र पोट्रेट करते थे। मेरे मामाजी जो कि हमारे साथ ही रहा करते थे, वह भी पोट्रेट बनाया करते थे तो इन सभी को देखते हुए और ऐसे माहौल में अपना बचपन बिताते हुए मैंने भी कब इस कला विधा को आत्मसात कर लिया मुझे पता ही नहीं चला।

हेमन्ता : आपकी कला यात्रा के बारे में कुछ बताइए ?

डॉ. कृष्णा : बी. एम. स्वर्ण पदक के साथ पूर्ण किया और अपनी शोध उपाधि भी ललित कला में ही प्राप्त की। इन सभी अकादमिक अध्ययन के पश्चात कहीं ना कहीं मुझे यह महसूस होता रहा कि कला का वास्तविक अध्ययन अभी बाकी है और मैंने अपनी कलात्मक पिपासा को शांत करने के लिए अपने स्तर पर यात्राएं करना, प्रदर्शनियाँ देखना, कलाकारों के स्टूडियो जाकर उनकी कला को बारीकी से जानना आरंभ किया। इसी दौरान मेरी कॉलेज लेक्चररशिप की नौकरी लग गई थी। फिर भी मेरी यह कला साधना जारी रही। चित्र तो बनते ही रहे और प्रदर्शनियाँ लगाना भी आरंभ कर दिया। इसी दौरान शांति निकेतन भी गई। मेरी कला यात्रा में अन्य महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब मुझे स्पिक मैके के द्वारा गुरु शिष्य स्कॉलरशिप मिली, जिसमें देश की प्रख्यात चित्रकार पद्मश्री श्रीमती अंजलि इलामेनन के सानिध्य में रहने का मौका मिला। तब मैंने उनके निजामुद्दीन स्थित स्टूडियो में रहकर कला की बारीकियाँ सीखी। तब दिल्ली में फिल्म फेस्टिवल में जाना, आर्ट गैलरीज में कई प्रयोगात्मक समकालीन प्रदर्शनी को देखने जाना, शाम को नृत्य, संगीत समारोह में भी उपस्थिति दर्ज कराना सभी प्रक्रियाओं से गुजरते हुए जाना की कला वास्तव में मात्र रंग, ब्रश के माध्यम से अभिव्यक्त कर देना नहीं है, बल्कि कलाओं की सम्पूर्ण समझ इनको समग्रता में देखने से विकसित होतीं हैं। मुझे एक वास्तविक अकादमिक माहौल की कमी हमेशा से खलती रही थी और इस कमी को मैंने अपनी कला शिक्षा को निरंतर अपनी ही जिज्ञासा और इच्छा शक्ति के बल पर दूर करने की कोशिश की है।

हेमन्ता : आपको कला सृजन के लिए किस चीज़ ने सर्वाधिक प्रेरित किया ?

डॉ. कृष्णा : मेरा कला सृजन कहीं ना कहीं मेरी अंदर की बैचेनी छटपटाहट का ही परिणाम हैं। मेरी दृढ़ इच्छा शक्ति ही मेरी प्रेरणा ऊर्जा का स्त्रोत हैं, जो कुछ भी मेरे अंदर चल रहा होता है, उसे मैं अभिव्यक्त करना चाहती हूं। प्रत्येक इंसान हर वक्त कुछ ना कुछ अभिव्यक्त करना चाहता है, जो वह सोचता है, जो वह देखता है, जैसा वह महसूस करता है और उसे ही वह अपने अपने माध्यम में अभिव्यक्त कर देना चाहता है। उसी प्रकार मैंने भी रंगों के माध्यम से अपने ही आंतरिक विचारों को प्रेरणा के रूप में अपने चित्रों अन्य कार्यों में अभिव्यक्त किया है।

हेमन्ता : आपकी कलाकृतियों के विषय क्या थे? चित्रकला के अतिरिक्त आपकी रुचि किन विधाओं में हैं।                                                                                          

डॉ. कृष्णा : मेरे चित्रों के विषय समय-समय पर बदलते रहे है, क्योंकि मेरे निजी जीवन में भी मेरे विचार और मेरी भावनाएं समय-समय पर बदली है। शुरुआती दौर में मैंने मत्स्यगंधा सीरीज पर काम किया। जब मैं ममत्व के दौर मे आती हूं तो बालक को लेकर मैंने एक सीरीज तैयार की जिसे डिवाइन इनोसेंसशीर्षक दिया। उसके पश्चात बीच में मैंने अमूर्त कला शैलियों पर भी काम किया। इस दौरान मैंने काफी साधना (मैडिटेशन) की। उस दौरान मैंने उसी विषय पर काफी चित्रों की श्रृंखला तैयार की, फिर प्रयोगात्मक कार्य भी किए और आज के दौर में डिजिटल और परफॉर्मेंस कि ओर भी बढ़ी हूं, तो इस प्रकार मैंने अपने सोचने की प्रक्रिया के साथ ही अपने कला में भी समयसमय पर बदलाव किए                                                                                                   

मैं अपने वर्तमान कलाकार्यों के विषय सामाजिक समसामयिक मुद्दों से लेती हूं जो कि मेरे प्रयोगात्मक कार्यों में दिखते हैं। मेरी परफॉर्मेंस में मैं आज के दौर की पढ़ी लिखी नौकरी शादीशुदा महिलाओं की पीड़ा को अपने काम में दर्शाती हूं, तो उसी प्रकार डिजिटल माध्यम में सामाजिक पृष्ठभूमि भौतिकतावाद और विज्ञापनों की अंधाधुंध दौड़ में कहीं ना कहीं खो गई आत्मिक सुख शांति जैसे विषयों को लेती हूँ मुझे कला के अतिरिक्त संगीत सर्वाधिक प्रिय हैं, गाना सुनना सिनेमा देखना और पुस्तकें पढ़ना भी भाता हैं।       

हेमन्ता : वह महत्वपूर्ण उपलब्धि चित्रकला के क्षेत्र में जिससे आपको सबसे ज्यादा प्रसन्नता की अनुभूति हुई?                                                                                                             

डॉ. कृष्णा : असल में कला के क्षेत्र में कभी भी कोई उपलब्धि का दौर मेरे ख्याल से आता ही नहीं है। यूं तो मान सम्मान समय-समय पर मिलता ही रहा है, पुरस्कार और प्रशंसा भी मिली है परंतु इन्हें मैंने कभी भी एक उपलब्धि के तौर पर नहीं देखा है। मेरे लिए उपलब्धि का क्षण वही होता है, जब मैं शत-प्रतिशत अपनी भावनाओं को अपनी कलाकृतियों में उकेर देती हूं। वही संतुष्टि का क्षण मेरे लिए उपलब्धि का क्षण होता है।  

हेमन्ता : कला की नयी विधाएं इंस्टॉलेशन और परफॉर्मेंस आर्ट की तरफ कैसे प्रेरित हुए?

डॉ. कृष्णा : दरअसल लगभग 20 वर्षों तक मैंने चित्रकला माध्यम में काम किया उसके पश्चात मेरा कर्मस्थल कोटा से जयपुर की ओर शिफ्ट हो गया। यह जो शिफ्टिंग का दौर रहा जिसे मैं निजी तौर पर और व्यावसायिक तौर पर देखती हूं, तो बहुत सारे बदलाव मेरे जीवन में हुए। इन बदलावों के दौरान जो मेरी मन:स्थिति बनी उस स्थिति को अभिव्यक्त करने के लिए मुझे चित्रकला माध्यम नाकाफी दिखाई पड़ा और मुझे किसी नए माध्यम की तलाश होने लगी। उसी दौरान में एक पुस्तक लेखन पर भी काम कर रही थी, जिसमें मुझे नवीन कला आंदोलनों के बारे में लिखना था, तो पढ़ने पढ़ाने के दौरान मुझे यह बहुत ही आकर्षक और बहुत ही रुचिकर लगा। बहुत से ऐसे माध्यम है जिनका तत्काल प्रभाव हम दर्शकों पर देखते हैं और उन प्रभावों की प्रतिक्रिया भी हम तुरंत पाते है। इनमें कुछ कला विधाओं का मैं नाम लूंगी जैसे इंस्टॉलेशन आर्ट, परफॉर्मेंस आर्ट मैंने इन्ही विधाओं को अपनाते हुए अपनी अभिव्यक्ति आरंभ कर दी। इन माध्यमों में अभिव्यक्ति का खुलापन हैं।

हेमन्ता : शुरुआती दौर में परफॉर्मेंस आर्ट को लेकर लोगों की कैसी प्रतिक्रियाएँ देखने को मिली?

डॉ. कृष्णा : परफॉर्मेंस भारत में अभी बहुत ही नया माध्यम है। कई शहरों में तो इस माध्यम के बारे में बहुत से लोगों और कलाकारों को मालूम भी नहीं है और जहां मालूम है वहां अभी तक उसे स्वीकार्यता की स्थिति प्राप्त नहीं हुई है। जयपुर में भी कुछ कलाकार है जो परफॉर्मेंस कर रहे हैं। मैंने इस माध्यम में काम करना आरंभ किया तो लोगों को अच्छा तो लगा, नया भी लगा परंतु समझने की बात पर जरूरी नहीं कि वे कुछ समझे ही हो। लेकिन दर्शक या आम व्यक्ति हमेशा ही कुछ नया देखना और सुनना चाहता है और यह इच्छा हर मानव में हर वक्त रहती है। इसीलिए नए-नए कला आंदोलन, कला शैलियों का जन्म होता रहता है, अत: जयपुर जैसे शहर में या राजस्थान में परफॉर्मेंस कला को जिज्ञासा की दृष्टि से देखा जाता है। दर्शक पूछते जरूर है कि यह क्या था? लेकिन जब उसके बारे में एक्सप्लेन किया जाए तो वह वास्तव में उसका आनंद भी लेते हैं।   

हेमन्ता : परफॉर्मिंग परफॉर्मेंस आर्ट में क्या अंतर हैं ?

डॉ. कृष्णा : परफॉर्मिंग आर्ट में तो सभी मंचीय कला जाती हैं, जो मंच पर प्रदर्शित की जाती है जैसे- नृत्यकला है, या नाट्यकला या किसी भी प्रकार का मंचन जो मंच पर पूरे तामझाम के साथ, नियमों के साथ किया जाए। परंतु परफॉर्मेंस आर्ट कि मैं बात करूं तो यहाँ ऐसा कोई नियम नहीं है, जिसका पालन किया जाए। एक कलाकार एक विचार के साथ रंगो या कैनवास या ब्रश की जगह पर अपने शरीर को इस्तेमाल करते हुए अभिव्यक्ति देता  है, तो यहां सबसे महत्वपूर्ण जो टूल होता है वह कलाकार का स्वयं का शरीर। वैचारिक स्तर पर प्रदर्शन ही परफॉर्मेंस कला होती है। इसमें कलाकार कुछ समय या अधिक समय के लिए आंतरिक स्थलों पर या बाहरी स्थलों पर, सजीव तौर पर या रिकॉर्ड के रूप में, कैसे भी अपनी परफॉर्मेंस दे सकता है। परफॉर्मेंस पूरी तरीके से कॉन्सेप्चुअल होता है। इसीलिए वह आर्ट की तरफ अधिक झुका होता है। इसमें स्क्रिप्ट की आवश्यकता नहीं होती, ना कोई कॉस्टयूम की आवश्यकता है। इसीलिए यह पूरी तरीके से ललित कला विधा है और इसे कलाकार 5 मिनट, 5 महीने के लिए या 5 साल के लिए भी कर सकता है। परफॉर्मेंस अधिकतर गैर पारंपरिक स्थानों पर किया जाता है।

हेमन्ता : अक्सर कहा जाता हैं की परफॉर्मेंस आर्ट पश्चिमी कला की देन है, आप इस बात से कहाँ तक सहमत हैं?

डॉ. कृष्णा : परफॉर्मेंस कला को पश्चिमी कला के देन कहा जाता है यह वास्तव में सत्य नहीं है। दरअसल पश्चिम में प्रत्येक कला शैलियों को परिभाषित कर दिया जाता है इसके पश्चात वह लोगों की निगाह में आती है और सभी को ऐसा लगता है कि यह कोई नई कला शैली है। दरअसल सभी कला शैलियों का अस्तित्व आरंभ से ही दुनिया में मौजूद रहता है। हमारी दृष्टि उसकी कलात्मकता को देख पाने में बहुत देर बाद सफल हो पाती है। इसी प्रकार परफॉर्मेंस कला भी पूर्वी देशों में या भारत देश में हमेशा से मौजूद रही है। हम पुराने लोक कला शैलियों को उठाकर देखे तो उनमें परफॉर्मेंस के तत्व नजर आते हैं जैसे फड़ वाचन शैली है जहां पर चित्र दिखाने के साथ कलाकार उसका वाचन करते हुए परफॉर्मेंस करता है या किसी रिचुअल को देखें। मंदिरों में कितने प्रकार के रिचुअल्स परफॉर्मेंस के दायरे में आते हैं। समाज में परफॉर्मेंस के ढेरों उदाहरण हमेशा से मौजूद है।

हेमन्ता : वर्तमान समय में परफॉर्मेंस कला की क्या धारणाएँ हैं , यह बाकी कलाओं से किस तरह अलग हैं?

डॉ. कृष्णा : मेरे अनुसार परफॉर्मेंस कला कोई नई शैली नहीं है, बल्कि अभिव्यक्ति का एक ऐसा माध्यम है जहां पारंपरिक सामग्रियों के स्थान पर शरीर का इस्तेमाल करना कलाकारों ने आरंभ कर दिया है, इससे अभिव्यक्ति का माध्यम ही भिन्न हुआ है, अभिव्यक्ति वही है, विचार वही है, कलाकार वही है, दृश्य कलाकारों ने थोड़ा संगीत से, थोड़ा अभिनय से, थोड़ा काव्य से,थोड़ा नृत्य से, लेते हुए अपनी पसंद और विचारों के अनुसार अपने शरीर के माध्यम से अपने आप को अभिव्यक्त करना आरंभ कर दिया है और यही परफॉर्मेंस की कला है।

हेमन्ता : कला के क्षेत्र में आपके सामने क्या चुनौतियाँ आई और आपने उनका किस तरह सामना किया?

डॉ. कृष्णा : कलात्मक जीवन जीना मेरा जुनून रहा है और इस जुनून को पूरा करने में जाहिर है कि कई प्रकार की बाधाएं समय-समय पर महसूस हुई। परंतु मैंने उन बाधाओं को चुनौतियों के  तौर पर देखा और पूरा किया। जैसे कि किसी भी महिला के साथ हो सकता है कि उसे अपने पैशन को जीने के लिए बहुत से समझौते करने होते हैं। ऐसा मैंने कभी नहीं किया। मेरा जन्म एक अच्छे परिवार में हुआ जहां मुझे अपने अनुसार जीने की पूरी स्वतंत्रता थी। उसी प्रकार विवाह के पश्चात मुझे ऐसा परिवार मिला जहां यह स्वतंत्रता जारी रही और एक रचनात्मक हमसफर का साथ मिला जो स्वयं नाट्यकला में माहिर सिद्धहस्त कलाकार है। चुनौतियाँ मुझे वहां महसूस हुई जहां समय की कमी, सामाजिक निजी जिम्मेदारियों को पूर्ण करते हुए अपननी कलात्मक पिपासा को भी शांत करना, अकेले रहते हुए बच्चे की परवरिश, व्यावसायिक जीवन में भी अच्छा कर्म करना और पारिवारिक जीवन को भी संतुष्ट करना। इन सभी के बीच में मैंने युद्धस्तर पर समय प्रबंधन करते हुये कार्य किया। दिन-रात टाइम मैनेज करते हुए शिक्षिका, कलाकार, माँ, पत्नी, लेखिका की भूमिका को निभाती हूँ। हर क्षण चुनौतियाँ का सामना करते हुये जीवन का आनंद लेती हूँ।

हेमन्ता : परफॉर्मेंस कला ने आपके जीवन को किस तरह प्रभावित किया हैं ?

डॉ. कृष्णा : परफॉर्मेंस कला को जब से मैंने अपने अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया तब से मेरा दायरा बढ़ गया है और अलग-अलग प्रकार की जानकारियां और ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा भी बढ़ गई है, क्योंकि दिमागी स्तर पर बहुत सी चीजों से होकर गुजरना होता है और यदि आपके पास उस स्तर का ज्ञान नहीं होगा तो परफॉर्मेंस बहुत बचकाना भी हो सकता है। शारीरिक मानसिक दोनों प्रकार से साहसी होना पड़ता हैं। इसलिए जब से परफॉर्मेंस कला को अपनाया तब से मैंने अपना ज्ञान प्राप्ति का रुझान और बढ़ा दिया है और इच्छाएं बढ़ गई है कि मैं और नये- नये माध्यमों और विषयों को जानने समझने में व्यस्त हुई हूँ।

हेमन्ता : आपकी दिनचर्या क्या रहती हैं और आप कला को समय कब देती हैं?

डॉ. कृष्णा : आप कह सकते है मैं अपना पूरा दिन कला को ही देती हूँ। मैं प्रात: 5 बजे उठती हूँ व्यायाम वगैरह घर का सारा काम करने के बाद, कैनवास पर एकदो घंटे काम करने कॉलेज जाती हूँ। कॉलेज के बाद जब तक बेटा स्कूल से नहीं आता तब तक फिर अपना रचनात्मक काम करती हूँ। शाम को एक घंटे टहलने के पश्चात रात तक चित्र या लेखन प्रक्रियाँ जारी रहती है। यानि प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में कला चिंतन ही चलता रहता है।  ऐसा ही है एक महिला का कला कर्म। सब कुछ करते हुए उसे अपने आप के लिये भी जीना होता हैं। अपना समय सबको देते हुए भी खुद के लिए भी समय निकालना होता है। वरना कोई अन्य आपसे कभी नहीं कहेगा कि सब काम छोड़ो और अपने मन का काम करों, चित्र बनाओं, पढ़ों या लिखों। हम महिलाओं के लिए ऐसा दिन आना दिन में सपने देखना जैसा ही हैं। जिम्मेदारियों से भरपूर जीवन को जीते हुए ही अपने पैशन को भी पूरा करना होता हैं।   

हेमन्ता : आपकी शिक्षण पद्धति पर कुछ कहिये। कला की नयी विधा परफॉर्मेंस आर्ट को विकसित करने के लिए भविष्य में आपकी क्या योजनाएँ हैं? जिससे नयी पीढ़ी के कलाकार भी इससे जुड़ सके। 

डॉ. कृष्णा : शिक्षिका होने के नाते मैं कक्षाओं के दौरान भी विद्यार्थियों को अपने पाठ्यक्रम के परे जाकर इस नई कला विद्या के बारे में जानकारी प्रदान करती हूँ, जो कि वास्तव में पाठ्यक्रम का भी हिस्सा होनी चाहिए। बहुत दुख होता है जब यह महसूस होता है कि विद्यार्थियों को वर्तमान में हो रहे नवीन कला माध्यमों के बारे में ज्ञान तक नहीं है उसे अपनाने की बात तो बहुत दूर की है। विद्यार्थियों को वैश्विक कला ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है।   मेरा अध्यापन इसी दिशा में रहता है। पाठ्यक्रम के अतिरिक्त अन्य कला विधाओं का परिचय भी मैं विद्यार्थियों को देते चलती हूँ। परफॉर्मेंस कला पर अभी मेरा लेखन कार्य चल रहा है, जो आने वाले भविष्य में पुस्तक रूप में  आप के समक्ष उपस्थित होगा।  

       

हेमन्ता मीणा
शोधार्थी, ललित कला संकाय, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर
hemantameenarrb@gmail.com, 7568558815

  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-45, अक्टूबर-दिसम्बर 2022 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक व जितेन्द्र यादव चित्रांकन : कमल कुमार मीणा (अलवर)

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