ग़ज़ल / मोहित दशोरा

ग़ज़ल
- मोहित दशोरा

 

      (1)

तीरगी से रौशनी तक गया
और फिर मैं ख़ामुशी तक गया
 
पाक था यूँ देखना भी आपका
रूह की जो वापसी तक गया
 
मो'जिज़ा ये हो रहा था साथ में
बावरापन आगही तक गया
 
रहा था मैं कहानी में यहाँ
शोर फिर से ख़ामुशी तक गया
 
साँस से भारी रहा ये मन मिरा
हाल--दिल भी इस कमी तक गया
 
चार-सू था हर किसी को ये गुमां
के ख़ुदा भी आदमी तक गया
 
रूप तेरा खो दिया जब ख़्वाब में
ख़्वाब भी फिर बेकसी तक गया
 
हो रही थी बात मेरी आप से
बात से मैं शायरी तक गया
 
था अँधेरा छोड़कर मैं जब चला
लौट कर फिर आप ही तक गया
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कठिन शब्द
तीरगी - अँधेरा
पाक - पवित्र
मो'जिज़ा - चमत्कार
चार-सू - हर दिशा में
बेकसी - दुःख , मजबूरी

 

(2)

जब मिरा ही दिल दुखाने लग गया मैं
काम ख़ुद के रोज़ आने लग गया मैं 
 
बात करनी थी मुझे कुछ आप से पर
बात से ही जी चुराने लग गया मैं
 
ज़िन्दगी भर रक़्स करना था मुझे तो
और इक दिन गीत गाने लग गया मैं
 
क्या ख़बर है रूह को ये प्यास क्या है
इस बदन को फिर सताने लग गया मैं
 

       (3)

कहाँ आया उसे भी रास कोई
नहीं भटका मिरे भी पास कोई
 
रहेगा याद मुझको इस क़दर तू
ग़ज़ल में शेर जैसे ख़ास कोई 
 
हमारा हाल देखो क्या हुआ है
नहीं रखना किसी से आस कोई
 
नहीं लेते किसी का नाम ऐसे
मिरा भी यार था इक ख़ास कोई
 
रहा है दुख मिरा उस्ताद बनकर
नहीं छोड़ी कभी भी क्लास कोई

                  

मोहित दशोरा
पता - 15 , मधुवन , सोमनगर 3rd , चित्तौड़गढ़ , राजस्थान
mohitdashora1999@gmail.com, 7737595016
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-46, जनवरी-मार्च 2023 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक व जितेन्द्र यादव चित्रांकन : नैना सोमानी (उदयपुर)

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