शोध आलेख: मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों में वर्णित नारी जीवन/निवेदिता पाराशर

 


मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों में वर्णित नारी जीवन

निवेदिता पाराशर


शोध सार :



प्रेमचंद जी बहुत ही सहज और सरल स्वभाव के व्यक्ति थे यही झलक उनके साहित्य में भी देखने को मिलती है। वह जनजीवन को बहुत बारीकी से देखते थे और अपने साहित्य से इन सभी छोटी-छोटी बातों का वर्णन करते थे जो की सामान्य जीवन से जुड़ी हैं। प्रेमचंद जी ने नारी जीवन को अपने उपन्यासों में बहुत ही सुंदर तरीके से उकेरा है। उन्होंने नारी को समस्याओं और मार्मिक स्थिति के साथ-साथ नारी को एक शक्तिशाली और स्वाभिमानी नारी के रूप में वर्णन किया है। नारी के प्रति उनका दृष्टिकोण सुधारवादी था और नारी की सभी समस्याओं दहेज प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह, वेश्यावृत्ति , अनमेल विवाह , नारी शिक्षा आदि विषयों को अपने उपन्यास में वर्णन किया है। साथ ही साथ इन समस्याओं से बाहर आने का समाधान भी बताया है। उन्होंने अपने उपन्यासों में नारी को पुरुष के साथ  कंधे से कंधा मिलाकर चलते हुए दिखाया है और पुराने जमाने की रूढ़ियों को तोड़कर एक स्वाभिमानी नारी के रूप में वर्णन किया है। 

मुख्य शब्द:-  दहेज प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह, अनमेल विवाह, वेश्यावृत्ति नारी शिक्षा

 

प्रस्तावना: 

प्रेमचंद जी  ने अपने उपन्यासों में नारी के प्रति सुधारवादी प्रगतिवादी धारणा को अपनाया है वे नारी को हमेशा समस्याओं में घिरा हुआ नहीं देखना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपने उपन्यास में नारी को समस्याओं का सामना करते हुए उससे बाहर निकलने का रास्ता भी दिखाया हैA उन्होंने अपने उपन्यास में नारी को समस्याओं से  घिरा हुआ और उसकी मार्मिक स्थिति का इसलिए वर्णन किया है जब पाठक वर्ग उपन्यास को पढे तो उन्हें नारी की समस्याओं के मूल कारण पता चल सके प्रेमचंद के उपन्यास में नारी पात्र स्वाभिमानी है और अपने दुखों का निदान करती हुई दिखाई देती है, पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती है वर्तमान समय में नारी को सशक्त बनाने के लिए अनेक कार्यक्रम और योजनाएं बन रही है परंतु प्रेमचंद जी ने तो अपने उपन्यास में 100 साल पहले ही नारी को सशक्त बनाने की बात कही है। 

दहेज प्रथा : 

प्रेमचंद जी ने दहेज प्रथा जैसी कुप्रथा को अपने उपन्यासों में वर्णन किया है कि दहेज न मिलने के कारण एक सुशील कन्या को अच्छा वर नहीं मिलता है। पैसों के अभाव में एक पिता को अपनी बेटी का विवाह एक ऐसे व्यक्ति से करना पड़ जाता है जो उम्र दराज है या पहले से विवाहित है। अपने उपन्यास निर्मला में उन्होंने इस  कुप्रथा का वर्णन किया है। निर्मला के पति की मृत्यु के बाद ससुराल पक्ष वाले लोग उससे विवाह करने से मना कर देते हैं क्योंकि उन्हें यह लगता है कि उस की मां उन्हें दहेज ना दे पाएगी। वर्तमान समय में भी दहेज के कारण अनेक विवाह टूट जाते हैं अगर हो भी जाते हैं तो उन्हें शादी के बाद ससुराल पक्ष दहेज के लिए प्रताड़ित करते हैं, और कई बार तो जीवित ही जला देते हैं। सेवासदन उपन्यास में भी दहेज की मांग को पूरा करने के लिए एक मजबूर पिता रिश्वत लेता है और इस काम में माहिर ना होने के कारण पकड़ा जाता है। दहेज प्रथा एक ऐसा अभिषाप है जो लड़की और उसके परिवार वालो दोनो के लिए बहुत ही कष्टदायी होता है जो उन्हे जिंदगी भर की पीड़ा देता है। यदि लड़की पक्ष वाले दहेज देना बंद कर दे तो धीरे-धीरे यह दहेज प्रथा भी बंद हो जायेगी। यदि पूरे भारतवर्ष ने लड़की पक्ष के लोग यह ठान ले कि अपनी बेटी का विवाह बिना दहेज के करेंगे तो यह कुप्रथा अपने आप ही समाप्त हो जाएगी। इसके लिए लड़की के माता-पिता को ही कड़ा कदम उठाना पड़ेगा। नही तो ये कुप्रथा सदियो तक ऐसे ही बरकरार रहेगी। दहेज के लोभी तभी समाप्त होंगे जब उन्हें कोई भी अपनी बेटी नहीं देगा। इस कुप्रथा के कारण माता-पिता अपने जीवन भर की कमाई लगा देते हैं फिर भी दहेज के लोभी व्यक्तियो का पेट नहीं भरता है, वह और दहेज के लालच में लड़की पर अत्याचार करते रहते हैं। इसके लिए सरकार के साथ-साथ समाज को भी कड़े कदम उठाने पड़ेंगे तभी यह कुप्रथा खत्म होगी। स्कूल कॉलेज में भी बच्चों को इस कुप्रथा से अवगत कराना चाहिए। प्रेमचन्द जी ने अपने उपन्यास में इस कुप्रथा से होने वाले नुकसान से पाठक वर्ग को अवगत कराया है । पाठक वर्ग को जागरूक किया है ताकि पाठक वर्ग इस कुप्रथा के नाकारात्मक प्रभाव से बच सके।

 

अनमेल विवाह : 

प्रेमचंद जी ने अपने उपन्यास निर्मला और सेवा सदन में अनमेल विवाह का वर्णन किया है। निर्मला के पिता की मृत्यु के बाद उसकी मां ससुराल पक्ष को दहेज देने में सक्षम नहीं होती है यह बात ससुराल पक्ष वालों को पता चलती  है तो वह बहाना बनाकर विवाह करने  से मना कर देते हैं जिस कारण मजबूरी में निर्मला की मां को उसका विवाह एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति के साथ करना पड़ता है। निर्मला की उम्र बहुत छोटी होती है वह उसे अधेड़ उम्र के व्यक्ति के साथ ताल मेल नहीं बिठा पाती है और हमेशा दुखी रहती है और अंत में मृत्यु को प्राप्त हो जाती है। इसी प्रकार से सेवा सदन में भी जब नायिका सुमन के पिता रिश्वत के मामले में जेल चले जाते हैं तो उसकी मां सुमन का अनमेल विवाह करवा देती है। आज के समय में भी गरीब व्यक्ति जिसके पास धन का अभाव होता है वह अपनी बेटी का विवाह एक ऐसे व्यक्ति से कर देता है जो उम्र में बड़ा हो। अनमेल विवाह नारी के शोषण और दासता का एक भयानक रूप प्रकट करता है। वर्तमान समय में भी अनमेल विवाह होते हैं जिसमें नारी का सबसे अधिक कष्ट और दुःख झेलने पड़ते है। कोई भी माता-पिता अपनी बेटी का विवाह किसी भी वृद्ध या बेटी की आयु से दुगने व्यक्ति के साथ नहीं करना चाहते है, परन्तु परिस्थितियाँ माता-पिता को इतना मजबूर बना देती है कि उन्हे ना चाहते हुए भी अपनी बेटी को ज़िन्दगी भी की पीड़ा में धकेलना पड़ता है। एक किशोरी जिसका मस्तिषक और शरीर इतना परिपक्व नहीं हुआ है वह अनमेल विवाह कि इस कुरीति के कारण अपना बचपना भूल जाती है, पिता की उम्र के व्यक्ति के साथ उसे अपना जीवन बिताना पड़ता है जिसकी सोच और विचार दोनो ही मेल नहीं खाते हैं। पति विचार दोनो ही मेल नहीं खाते हैं। पति की इच्छा यह होती है कि वह ऐसे की घर की ज़िम्मेदारी सम्भाले जैसे एक परिपक्व औरत संभालती है। अनमेल विवाह से सबसे अधिक नुकसान लड़की को होता है। जो खुल कर कभी अपना जीवन यापन नही कर पाती हमेशा घुट-घुट कर जीवन जीती है। उसका जीवन नरक से भी भयावह होता है। किसी भी माता-पिता को भले ही उनके जीवन में कितनी ही विवम परिस्थितिया हो अपनी बेटी का अनमेल विवाह नहीं करना चाहिए, भले ही अपनी बेटी को जीवन भर अविवाहित रखना पड़े परन्तु इस नरक भरे जीवन में नहीं धकेलना चाहिए। अपनी बेटी को आत्मनिर्भर बनाना चाहिए ताकि वह अपने पैरो पर खड़ी हो सके और इसे किसी का भी सहारा ना लेना पड़े। समय चाहे पुराना हो या आधुनिक नारी की समस्या स्वरूप बदल कर आज भी खड़ी है। इन समस्या को दूर करने के लिए समाज को जागरूक होना बहुत जरूरी है।

 

बाल विवाह :

प्रेमचंद जी ने बाल विवाह जैसी गंभीर समस्या को भी अपने उपन्यास में वर्णन किया है । उन्होंने निर्मला में बाल विवाह जैसी गंभीर समस्या को उठाया है जिसमें निर्मला का बाल अवस्था में विवाह तोताराम नाम के एक अधेड़ उम्र व्यक्ति से हो जाता है जिसके तीन बच्चे होते हैं। वह उम्र में इतनी छोटी होती है कि जिससे उसकी शादी होती है उसका बड़ा बेटा ही निर्मला की उम्र का होता है। निर्मला उम्र के अंतर के कारण अपने पति से ताल मेल नहीं बन पाती क्योंकि उसका पति उसके पिता की उम्र का होता है। वह हमेशा दुख में अपना जीवन व्यतीत करती है। आज के समय में बाल विवाह को भले ही कानूनी अपराध घोषित कर दिया गया है, परंतु आज भी अनेकों गांव ऐसे हैं जहां बाल विवाह कर दिया जाता है, परंपरा को आधार बनाकर यह लड़कियां मानसिक और शारीरिक रूप से परिपक्व नहीं होतीं। प्रेमचंद जी ने इसी परंपरा का विरोध अपने उपन्यास में किया है और उसके दुष्परिणाम को पाठक वर्ग के सामने उजागर किया है। बाल विवाह में भले ही आज कमी आई है लेकिन यह पूरी तरीके से खत्म नहीं हुआ है। आज में हमारे सामने बाल विवाह की खबर आ जाती है। देष में सबसे अधिक विवाह राजस्थान के कई ज़िलों में हाते हैं। भले ही सरकार ने कई कड़े कानून बना दिये हैं इन सब के बावजूद आज भी बाल विवाह समाप्त नहीं हो रहे है। लोग पुरानी परंपरा का हवाला देकर अपनी छोटी-छोटी बच्चियों का विवाह कर देते हैं। इतने कड़े कानून और नियम के बावजूद भी लोग चोरी छिपे बाल विवाह करवा देते हैं और इस अपराध में उनके आसपास का समाज भी उनका साथ देता है। इसका सबसे बड़ा कारण है अशिक्षा और आर्थिक तंगी। लेकिन सबसे बड़ा शिकार इस कुप्रथा का बनती है छोटी-छोटी लड़कियाँ जिसे कुछ भी समझ नहीं होती है वे तो गुड्डे-गुड़ियो का खेल समझकर इस कुप्रथा का हिस्सा बन जाती है। पिछड़े और आदिवासी वर्ग में यह कुप्रथा ज़्यादा है क्योंकि उनमें शिक्षा की कमी है और वे पुराने रीति रिवाज के जाल में फंसे हुए है, उससे बाहर निकलने का प्रयास भी नहीं करते है। सरकार को घर घर जाकर इस कुप्रथा से लोगो को अवगत कराना चाहिए उन्हे इसके दुश्प्रभाव की जानकारी देनी चाहिए। हमारा देश तभी तरक्की कर पाएगा। जब हम इन कुप्रथाओं से बाहर आ पायेंगे।



वेश्यावृत्ति:  

आज के समय में भी वेश्यावृत्ति सबसे बड़ी समस्या है। कोई भी स्त्री अपनी इच्छा से इस काम को नहीं करती है। परिस्थिति उसे विवश करती है इस दलदल में फंसने के लिए। एक बार वह इस दलदल में फंस गई तो इसके बाद बाहर निकलना उसके लिए असंभव है। अगर वह किसी कारणवश बाहर निकल भी आए तो समाज उसे स्वीकार नहीं करता है, उसे बाहर समाज में कोई भी काम नहीं दिया जाता है। वह चाहकर भी बाहर नहीं आ सकती। प्रेमचंद ने अपने उपन्यास सेवा सदन में वेश्यावृत्ति की समस्या को उपन्यास की नायिका सुमन के माध्यम से उठाया है। वह भी विपरीत परिस्थितियों के कारण वेश्यावृत्ति के दलदल में फंस जाती है। जब वह वहां से बाहर निकलती है तो समाज में उसे स्वीकार नहीं किया जाता। बाद में वह वेश्याओं और उनकी कन्याओं के लिए सेवा सदन आश्रम की स्थापना करती है। 

नारी शिक्षा: 

प्रेमचंद की नारी शिक्षा को बहुत अधिक महत्व देते थे। वे चाहते थे की नारी को ऐसी शिक्षा मिलनी चाहिए जिससे कि वह अपने कर्तव्यों को समझ सके और उन्हें उचित और अनुचित को समझने की परख हो। अपने उपन्यास गबन और गोदान में उन्होंने नारी शिक्षा का वर्णन किया है। गोदान में प्रोफेसर मेहता जब भाषण दे रहे होते हैं तो उसमें स्त्री शिक्षा के महत्व को बताते हैं। इस उपन्यास में स्त्री शिक्षा के महत्व को प्रेमचंद जी प्रोफेसर मेहता के माध्यम से पाठक वर्ग तक पहुंचाना चाहते थे। वर्तमान समय में जब हम नारी शिक्षा दर देखते है तो वह पुरुषों की अपेक्षा आज भी बहुत कम है। नारी का शिक्षित होना बहुत ही महत्वपूर्ण है। अगर नारी शिक्षित होगी तो पुरुष और नारी के बीच जो भेदभाव है वह काफी हद तक कम होगा। समाज और देश की प्रगति तब तक अधूरी है जब तक देश में नारी शिक्षित नहीं होगी, आज भी खास तौर पर ग्रामीण इलाको में शिक्षा की बात आती है तो कोई भी परिवार बेटियों की अपेक्षा बेटो को पढ़ाना पसंद करते है। बेटियों को षिक्षा से वंचित रखा जाता है। आज के समय में नारी का शिक्षित होना बहुत ही ज़रूरी है। नारी अगर शिक्षित होगी तो वह अपने परिवार, देश और समाज के लिए अच्छे निर्णय ले सकेगी। उसे किसी भी चीज़ के लिए किसी पर भी निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। वर्तमान समय में शिक्षित नारी किसी भी रूप में पुरुषों से कम नहीं है आज बड़े-बड़े उच्च पद पर नारी ने बाज़ी मारी है। हमारी राष्ट्रपति दरोपदी  मुर्मू इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण है। सरकार ने नारी की शिक्षा के लिए अनेक कदम उठाए है परन्तु समाज में सभी लोगो को सामने आकर नारी शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए। शिक्षित नारी आर्थिक और सामाजिक रूप से आत्मनिर्भर होती है और उसमें अपने निर्णय स्वयं लेने की ताकत है। माता-पिता को आगे बढ़कर अपनी बेटियों को घर के काम के साथ-साथ शिक्षा पर भी विषेश ध्यान देना चाहिए। अगर उनकी बेटी आत्मनिर्भर रहेगी तो उन्हें कोई भी भविश्य से सम्बंधित अपनी बेटी की चिन्ता नहीं करनी पड़ेगी। उन्हें दहेज के लिए पैसे ना जुटाकर अपनी बेटी की शिक्षा पर धन खर्च करना चाहिए ताकि वे अपनी बेटी का भविष्य सुरक्षित रख सके। 

विधवा विवाह:-  

प्रेमचंद जी विधवा के पुनर्विवाह के समर्थक थे। उन्होंने खुद भी बाल विधवा शिवरानी देवी से विवाह किया था । वह विधवा के मन की व्यथा बहुत अच्छे से समझते थे। पति की मृत्यु के बाद एक औरत बहुत ज्यादा मानसिक तनाव का से गुजरती है साथ ही साथ उसे आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ता है ऐसे में समाज भी उसे वैसे सम्मान नहीं देता जैसा पति की उपस्थिति में देता था। प्रेमचंद जी ने अपने उपन्यास प्रेमाश्रम में पूर्णा का अमृत राय से विवाह करवाया है। प्रतिज्ञा उपन्यास में प्रेमचंद जी ने यह बताने का प्रयास किया है कि अगर कोई विधवा स्वावलंबी बन जाए तो उसे किसी दूसरे की सहायता की आवश्यकता नहीं होती। वह अपने पैरों पर खुद खड़ी होकर अपना और अपने परिवार का पालन पोषण कर सकती है। विधवा को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी गई है। प्रतिज्ञा उपन्यास में पूर्ण विवाह न करके वनिता आश्रम में शरण लेती है। हिन्दू विधवा पुनर्विवाह एक्ट के अनुसार विधवा फिर से विवाह कर सकती है। पहले विधवा की दशा  बहुत ही दर्दनाक होती थी। पति के मरने के बाद उन्हे समाज में तिरस्कार का सामना करना पड़ता था समाज उन्हे पहले की तरह नहीं अपनाना चाहता था। लेकिन इस एकट के आने के बाद विधवा महिला को उनके मृत पति की सम्पत्ति पर भी पूरा अधिकार होता है। सरकार द्वारा एक्ट बनाने के बावजूद वर्तमान में बहुत सी विधवा स्त्रियाँ ऐसी हैं जिन्हें उनके मृत पति की सम्पत्ति से बेदखल कर दिया जाता है और यदि उसके बच्चे होते हैं तो उसकी स्थिति और भी खराब हो जाती है। सरकार द्वारा विधवा के उत्थान के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं जैसे कि विधवा की पेन्षन चालू की गई है और कई जगह तो ऐसा भी प्रावधान है कि यदि कोई विधवा पुर्नविवाह करती है तो उसे उपहार में सरकार द्वारा राशि पहुंचाई जाती है। सरकार के द्वारा बनाई गई नीति का सब लाभ नहीं ले पाते है क्योंकि उन्हे पता ही नहीं होता है कि सरकार ने विधवा के लिए क्या नीति बनाई है और उसका फायदा कैसे लेना है। इसलिए सरकार को अपनी नीति का छोटी छोटी जगहों पर गाँवो में अशिक्षित लोगो के बीच में प्रचार-प्रसार अधिक करना चाहिए। 

निष्कर्ष:  

प्रेमचंद के उपन्यास में नारी जीवन की समस्याओं के साथ-साथ नारी की समस्याओं से बाहर निकलने के निदान भी दिए हैं। उन्होंने नारी जीवन की उन सभी समस्याओं को उठाया है जो उस समय भी व्याप्त थी और आज भी हैं बस अपने वर्तमान में उन समस्याओं ने अपना स्वरूप बदल लिया है। वे नारी को एक सक्षम रूप में देखना चाहते थे। आत्मनिर्भर और शक्तिशाली रूप में देखना चाहते थे। इन्हीं कारणो से उन्होंने अपने उपन्यास में नारी को पुरानी रूढ़ियों को तोड़ते हुए और आधुनिकता की ओर अपने कदम बढ़ाते हुए दिखाया है। प्रेमचंद जी के उपन्यास नारी को उसके जीवन में होने वाली समस्याओं के मूल कारण  से अवगत कराते हैं साथ ही साथ उनको शक्तिशाली और आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा भी देते हैं। 

 

संदर्भ ग्रंथ सूची

1.     शिवरानी देवी , प्रेमचंद- घर में , आत्माराम एंड संस, दिल्ली 1956 पृष्ठ संख्या 71 , 113 , 205

2.     प्रेमचंद, नारी जीवन की कहानी , प्रेम प्रकाशन मंदिर दिल्ली 1987 पृष्ठ संख्या 52

3.     डॉ रामविलास शर्मा , प्रेमचंद और उनका युग , राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली 2008 प्रश्न संख्या 17 20 150 155

4.     प्रेमचंद , कुछ विचार, डायमंड पॉकेट बुक्स नई दिल्ली 2011 पृष्ठ संख्या 46 1011

5.     अमृतराय , प्रेमचंद , विविध प्रसंग , भान हंस प्रकाशन इलाहाबाद 1962 पृष्ठ संख्या 284

6.     शंभूनाथ , प्रेमचंद का पुनर्मूल्यांकन , नेशनल पब्लिशिंग हाउस दिल्ली 1988 पृष्ठ संज्ञा 27


निवेदिता पाराशर

शोध छात्रा हिन्दी

मंगलायतन विश्वविद्यालय,

बेसवा, अलीगढ


                     अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-46, जनवरी-मार्च 2023 UGC Care Listed Issue

सम्पादक-द्वय : माणिक व जितेन्द्र यादव चित्रांकन : नैना सोमानी (उदयपुर) 

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