शोध सार : ये मूल्य ही हैं जो मनुष्य को पशुता से मनुष्यता की ओर उन्मुख करते हैं। इन्हीं मूल्यों का परम और चरम सोपान 'देवत्व' है। लोकतांत्रिक मूल्य असल में सार्वभौम मानवीय मूल्य ही हैं। भारतीय संविधान में लोकतांत्रिक मूल्यों को जीवन दर्शन के रूप में स्थापित किया गया है जिसकी झलक हमें प्रस्तावना में देखने को मिलती है। फ्रांस की राज्य क्रांति के बाद तमाम लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं ने ‘स्वतंत्रता, समानता और न्याय’ कोआधारभूत लोकतांत्रिक मूल्य के रूप में स्वीकार किया। अच्छी कविता सदैव लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ ही खड़ी होती है। ‘स्वतंत्रता, समानता और न्याय’ के साथ प्रेम, बंधुता, अहिंसा, बहुलता का स्वीकार, सम्मान, समावेशिता और सामंजस्य आदि अन्य ऐसे लोकतांत्रिक मूल्य हैं जो गीत चतुर्वेदी की कविताओं में देखे जा सकते हैं। लोकतंत्र की त्रासद-कामदी को भी गीत ने अपनी कविताओं में बखूबी व्यक्त किया है ।
बीज शब्द : लोकतंत्र, मानवीय मूल्य, जीवन दर्शन, स्वतंत्रता, समानता, न्याय, असहमति, राजनीतिक चेतना, कविता, लोकतांत्रिक मूल्य।
मूल आलेख : 27 नवम्बर, 1977 को मुम्बई में जन्मे और फ़िलवक्त भोपाल में रहने वाले गीत चतुर्वेदी समकालीन हिंदी कविता के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले कवियों में से एक है। अब तक उनके तीन कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। गीत चतुर्वेदी
का पहला कविता संग्रह ‘आलाप में गिरह’ 2010 में प्रकाशित हुआ। लंबे अंतराल के बाद दूसरा कविता संग्रह ‘न्यूनतम मैं’ 2017 में तथा तीसरा कविता संग्रह 'खुशियों के गुप्तचर’ 2019 में प्रकाशित हुआ। गीत ने लंबे समय तक पत्रकारिता की। अब वे पूर्णकालिक साहित्यकार हैं। गीत समाधिस्थ कवि हैं। उनकी कविताएँ ध्यान (मेडिटेशन) की तरह हैं। गीत की कविताएँ अगरबत्ती की ख़ुशबू सरीखी हैं जिसकी महक दूर तक जाती है। वहाँ प्रेम है, मृत्यु है, स्मृति है, विस्मृति भी; स्त्री का अनूठा सौंदर्य है तो राजनीति भी। “आमतौर
पर देखा
जाता है
कि हिन्दी
में वे
कवि (Famous
Hindi Poet) लोकप्रिय
होते हैं,
जो या
तो ग़ज़ल
लिखते हों
या अशआर,
फ़िल्मों में
गीत लिखते
हों या
मंच पर
छंदबद्ध रचनाएं। गीत
चतुर्वेदी इनमें
से कुछ
नहीं लिखते। वह
मुख्यधारा के
गंभीर साहित्यिक
कवि हैं। वह
पूरी तरह
मुक्तछंद में
लिखते हैं,
मंचों पर
नहीं जाते,
ना ही
उनका कोई
फ़िल्मी बैकग्राउंड
है।
इसके बावजूद,
गद्य जैसी
दिखने वाली
उनकी काव्य-पंक्तियां
जनता के
बीच हाथोंहाथ
ली जाती
हैं।”[i]
उनकी नई किताब का पाठकों को बेसब्री से इंतजार रहता हैं। फेसबुक हो या इंस्टाग्राम
की स्टोरी, वॉट्सअप स्टेटस हो या ट्वीट्स.... युवाओं के प्रेम निवेदन से लेकर विरोध-प्रदर्शन तक सब जगह उनकी कविता की पंक्तियाँ इस्तेमाल की जा रही हैं -
गीत चतुर्वेदी की कविता ‘उभयचर’ के बारे में आशुतोष भारद्वाज लिखते हैं कि “अचूक राजनीतिक समझ के साथ लिखी गई यह कविता एक मास्टर स्ट्रोक है।” उनकी राजनैतिक समझ किसी विचारधारा से आक्रांत नहीं अपितु उसके केंद्र में है मानवीय मूल्य। अपनी कविताओं के संबंध में वे लिखते हैं –
दरअसल ये मूल्य ही हैं जो मनुष्य को पशुता से मनुष्यता की ओर उन्मुख करते हैं। इन्हीं मूल्यों का परम और चरम सोपान देवत्व है। लोकतांत्रिक मूल्य असल में सार्वभौम मानवीय मूल्य ही हैं। भारतीय संविधान में लोकतांत्रिक मूल्यों को जीवन दर्शन के रूप में स्थापित किया गया है जिसकी झलक हमें प्रस्तावना में देखने को मिलती है। फ्रांस की राज्य क्रांति के बाद तमाम लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं ने ‘स्वतंत्रता, समानता और न्याय’ को आधारभूत लोकतांत्रिक मूल्य के रूप में स्वीकार किया। अच्छी कविता सदैव लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ ही खड़ी होती है। ‘स्वतंत्रता, समानता और न्याय’ के साथ प्रेम, बंधुता, अहिंसा, बहुलता का स्वीकार, सम्मान, समावेशिता और सामंजस्य, आदि अन्य ऐसे लोकतांत्रिक मूल्य हैं जो गीत चतुर्वेदी की कविताओं में देखे जा सकते हैं। लोकतंत्र की त्रासद-कामदी को भी गीत ने अपनी कविताओं में बखूबी व्यक्त किया है। इस लोकतंत्र में आम आदमी जो इस लोकतंत्र का भाग्य-विधाता है, की दशा को व्यक्त करते हुए वे लिखते हैं -
हालाँकि आजकल जन-सामान्य के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला ‘आम आदमी’ शब्द भी एक खास साँचे में ढाल दिया गया है, एक निश्चित अर्थ में वह रूढ़ हो गया है और अब तो समय ऐसा आ गया है कि पूँजी, तकनीक और बाजारवाद लोकतान्त्रिक मूल्यों सहित तमाम मानवीय मूल्यों को अजगर की भांति निगलते जा रहे हैं। तब गीत लिखते हैं -
कवि ख़ुद से सवाल करता है “इतिहास में ऐसे मौके ज्यादा आए जब ग़लत चीज़ों पर एकमत रहा बहुमत; उन मौकों पर मैं किस तरफ रहा?”[viii] बहुमत से चलने वाला लोकतंत्र सदा ही इस परिपाटी से सही हो आवश्यक नहीं। कविता हाशिए का मुख्य स्वर है। अच्छी और श्रेष्ठ कविता हमेशा न्याय, धर्म और सत्य के साथ खड़ी रहती है। वह सदैव सत्ता का प्रतिपक्ष रचती है। वह सदा ही जन-गण-मन के हक़ में अपनी आवाज बुलंद करती है। आज के मुश्किल के समय में जब पूरी दुनिया में खात्मा किया जा रहा है लोकतांत्रिक मूल्यों का, अभिव्यक्ति की आजादी को जा रहा है कुचला; जब सच कहना-सुनना हो गया है अपराध; असहमति को कहा जा रहा है जब देशद्रोह; तब -
असहमति लोकतंत्र की रीढ़ है। असहमति विमर्श को जन्म देती है। विमर्श से लोकतंत्र बेहतर होता है। असहमति और मत भिन्नता इस देश की परंपरा रही है। इस देश की बहुसंख्यक आबादी जब आस्तिक रही हो तब नास्तिक दर्शन चार्वाक के प्रतिपादक को भी हमने महर्षि कहकर आदर दिया। आजादी के आंदोलन के दौरान हम देखते हैं कि नेहरू व पटेल विभिन्न मुद्दों पर गाँधी जी से भिन्न राय रखते हैं। गाँधी जी कांग्रेस व अपने कई सहयोगियों से भिन्न मत प्रकट करते हैं। आजादी के बाद भी देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से जुड़े कई प्रसंग यह बताते हैं कि नेहरू प्रधानमंत्री होने पर भी अपने सहयोगियों, मातहतों और जनता की असहमतियों को पूरा सम्मान देते थे, आवश्यकता होने पर उसे स्वीकार भी करते थे। असहमति का यह स्वीकार भाव ही लोकतंत्र को मजबूत बनाता है। आज हम देखते हैं कि घर-परिवार से लेकर देश तक में असहमति का आदर नहीं है, मत भिन्नता की सामाजिक स्वीकार्यता समाप्त होती जा रही है। ऐसे समय में जब असहमति को सन्देह की दृष्टि से देखा जा रहा है तब गीत चतुर्वेदी लिखते हैं –
गीत चतुर्वेदी सजग, भिन्न व अभिनव रचनाकार हैं। वे मानव-प्रेम और विश्व-बोध के कवि हैं। “उनकी कविताओं में सजग इतिहास बोध और राजनीतिक चेतना देखने को मिलती हैं जो हमें मुक्तिबोध-रघुवीर सहाय की परम्परा का स्मरण दिलाती हैं। ‘आलाप में गिरह’ संग्रह की ‘सिंधु लाइब्रेरी’ ऐसी ही कविता हैं जिसमें एक ओर विभाजन के बाद का भारत दूसरी ओर विश्व की प्राचीनतम सभ्यता वाले भारत के लुप्त वैभव को देखा जा सकता हैं।”[xi]
उनकी कविताओं में समय का बोध परिलक्षित होता है जो विश्व इतिहास के गहन अध्ययन के मार्फ़त आता है। उनका कहना है कि “ईश्वर पर अब भी राजा का कब्ज़ा है”[xii]
इसलिए वे ईश्वर से अधिक प्रेम पर भरोसा करते हैं। वे आज के समय के एक जरूरी कवि हैं। अपनी कविताओं के द्वारा वे जोर देकर कहना चाहते हैं कि प्रेम एक लोकतांत्रिक मूल्य है।
सन्दर्भ :
शोध/आलोचनात्मक लेख में रचना का सा आस्वाद निर्वाह इस आलेख को औरों से अलग करता है।निष्कर्षात्मक सूत्र कथन तो अद्भुत बन पड़े हैं जैसे 'गीत समाधिस्थ कवि हैं।उनकी कविताएँ ध्यान की तरह हैं।गीत इस दौर के जरूरी कवि हैं' आदि।उनकी लीक से हटकर लोकप्रियता का आकलन भी रोचक है।गीत चतुर्वेदी की कविताओं की नई समझ उपजाता आलेख!
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