शोध आलेख : मोटापा के प्रबंधन में योग चिकित्सा की उपयोगिता / अमित कुमार एवं डॉ. ऊधम सिंह

मोटापा के प्रबंधन में योग चिकित्सा की उपयोगिता
- अमित कुमार एवं डॉ. ऊधम सिंह

शोध सार : वर्तमान युग में अनेक प्रकार की बीमारियाँ उत्पन्न हो रही हैं, जिनमें से एक मोटापा भी है। वर्तमान समय में मोटापा एक भयंकर रोग के रूप में सामने रही समस्या है जिसके फलस्वरूप अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो रहे हैं। पहले मोटे व्यक्ति को देख कर ऐसा माना जाता था कि यह कुलीन परिवार का सदस्य है किन्तु आज मोटापा एक रोग का रूप ले चुका है। मोटापा के बढ़ जाने से व्यक्ति के शरीर में अनेक व्याधियाँ उत्पन्न हो जाती हैं, जिससे व्यक्ति का शारीरिक आकर्षण भी बिगड़ जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन कि रिपोर्ट के अनुसार विश्व के लगभग 39 मिलियन बच्चे मोटापा रोग से ग्रसित हैं जो संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। इस मोटापा जैसे रोग से मुक्ति का एक सरल और सुलभ उपाय है योग के साधनों का अनुपालन; योगिक चिकित्सा के माध्यम से मोटापा जैसे रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है। योग चिकित्सा में योगिक आहार, षट्कर्म, आसन, प्राणायाम, मुद्रा, बन्ध, आदि शामिल हैं। प्रस्तुत शोध पत्र में मोटापा के प्रबंध हेतु योगिक चिकित्सा को सुझाया गया है। जिसके अनुपालन से मोटापा जैसे रोगों से मुक्ति प्राप्त कर स्वस्थ जीवन का लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

बीज शब्द : योग, चिकित्सा, समाज, आहार, स्वास्थ्य, मानसिक, रोग, मोटापा, प्रबंधन, आसन।

मूल आलेख : मोटापा एक आधुनिक रोग है जिसमें व्यक्ति के शरीर का भार आवश्यकता से अधिक बढ़ जाता है मोटापा के कारण शारीरिक आकृति में भी परिवर्तन जाता है जिससे व्यक्ति का आकर्षण भी बिगड़ जाता है। वर्तमान समय में शारीरिक निष्क्रियता के चलते मोटापा बहुत तेजी से बढ़ रहा है। शारीरिक निष्क्रियता का मुख्य कारण है आधुनिक मशीनीकरण। वर्तमान में दैनिक जीवन में श्रम का अभाव होने से शारीरिक क्रियाशीलता एवं अन्य व्यायात्मक गतिविधियों में न्यूनता होती जा रही है जिससे मोटापा की सम्भावना कई गुना बढ़ रही है। मोटापा से बच्चे, युवा, वयस्क एवं वृद्ध सभी पीडि़त होते जा रहे हैं। अधिकतम कार्य स्वचालित मशीनों के द्वारा ही सम्पन्न किये जा रहे हैं जिससे शारीरिक श्रम घट रहा है। आयुर्वेद में मोटापा को कफ दोष के अधिक बढ़ जाने के कारण होना बताया गया है जिसे वहाँ मेद धातु नाम दिया है। मेद धातु सप्त धातुओं (रस,रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, तथा शुक्र) में से एक है। मेद धातु के अधिक बढने से व्यक्ति के पसीने में से विशेष दुर्गंध आने लगती है जिससे व्यक्ति में स्वयं के प्रति हीन भावना उत्पन्न होने लगती है।[1] महर्षि शुश्रुत ने स्वस्थ व्यक्ति की परिभाषा में कहा है कि जिसके तीनों दोष सम हों, तेरह अग्नियाँ सम हों, सभी धातुएँ समान हों, मल का निष्कासन नित्यप्रति होता हो, तथा जिसकी आत्मा, इंद्रियाँ, तथा मन तीनों प्रसन्न हों वही व्यक्ति स्वस्थ है।[2] वास्तविकता में हम जितना भोजन ग्रहण करते हैं उससे हमें जो ऊर्जा प्राप्त होती है उतनी ही ऊर्जा हमारी शारीरिक श्रम या व्यायाम करने में खर्च हो जानी चाहिए इसके अभाव में शरीर में ऊर्जा एकत्रित हो जाती है जो वसा के रूप में मोटापा जैसे रोग उत्पन्न करती हैं। जून 2021 में प्रकाशित विश्व स्वास्थ्य संगठन कि रिपोर्ट के अनुसार विश्व में 2020 में 5 वर्ष से कम आयु के 39 मिलियन बच्चे मोटापा से ग्रसित थे।[3]

मोटापा का मापन - मोटापा को बॉडी मास इन्डेक्स (BMI) के माध्यम से मापा जाता है।

बी॰एम॰आई॰ = वजन (किलोग्राम)/ऊँचाई मीटर²[4]

जैसे

  1. बी॰एम॰आई॰ 25 से 29 के बीच हैं तो उसका वजन अधिक है।
  2. यदि किसी व्यक्ति का बी॰एम॰आई॰ 30 से 40 के बीच है तो वह मोटापा की श्रेणी में आता है।
  3. यदि किसी व्यक्ति का बी॰एम॰आई॰ 40 से अधिक है तो वह अत्यधिक मोटापा से ग्रसित है।
  4. मोटापा मापन की एक सामान्य विधि यह भी है कि इसमें शरीर के विभिन्न घेरों का अनुपात विशेषतः कमर और कूल्हे के घेरे का अनुपात मापा जाता है।

मोटापा के  लक्षण

  1. कार्य क्षमता में कमी तथा काम में मन लगना।
  2. मेद धातु के बढ़ने से पसीने में विशेष दुर्गंध आना।[5]
  3. पेट का आकार छाती से ज्यादा बड़ा होना।
  4. सीढि़या चढ़ने उतरने में कठिनाई होना तथा श्वास फूलना।
  5. कठिन कार्यों में प्रतिस्पर्धा की कमी।
  6. शारीरिक थकान महसूस होना।
  7. शरीर की आयु एवं ऊँचाई के अनुसार निर्देशित भार में 10 प्रतिशत से ज्यादा वृद्धि होना।[6]
  8. भूख प्यास अधिक लगना।
  9. अधिक नींद आना।[7]
  10. शरीर में सुस्ती रहना।

मोटापा के कारण - मोटापे का मुख्य कारण जीवनशैली का अनियमित होना है। हमारी जीवनचर्या में भोजन और शयन समय पर हो पाने के कारण शरीर प्रभावित होता है। दिनचर्या की अस्तव्यस्तता के कारण जो दुष्परिणाम सामने आते हैं उनमें मोटापा भी एक है। इसके अतिरिक्त मोटापा को प्रभावित करने के अनेक कारण हैं जो निम्न प्रकर हैं -

  • वंशानुगत कारण - मोटापा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरित हो सकता है। वंशानुगत सिद्धान्तानुसार वर्तमान में जो व्यक्ति मोटापे से ग्रसित हैं उनके पूर्वजों में किसी किसी को मोटापा अवश्य रहा होगा।
  • अत्यधिक वसा युक्त आहार - जो व्यक्ति स्वाद इन्द्रिय के वशीभूत होकर आवश्यकता से अधिक आहार ग्रहण करते हैं वे व्यक्ति मोटापे से ग्रसित हो जाते हैं। अत्यधिक वसा तथा शर्करायुक्त भोजन करने से मोटापा बढ़ता है।
  • ज्यादा प्रोटीन युक्त खाना - आहार में प्रोटीन की अधिकता शरीर में वसा वृद्धि का कारण हो सकती है। न्यूयार्क में कई लोग इस्टेंट एनर्जी पाने के लिए बार-बार प्रोटीन खाते हैं, एक शोध में पता चला है प्रोटीन बार में बर्गर के बराबर फैट पाया गया है।
  • थायराईड ग्रन्थि में वृद्धि - मोटापा बढ़ने का एक मुख्य कारण थायराईड ग्रन्थि बढ़ने को भी माना जाता है। थायराईड से स्त्रावित होने वाले हार्मोन्स के असंतुलन से भी शरीर के वजन में परिवर्तन आने लगता है।
  • दिन में सोने के कारण - सामान्यतः यह देखा गया है कि जो व्यक्ति दिन में सोते हैं तथा रात्रि जागरण करते हैं ऐसे व्यक्तियों में मोटापा ज्यादा होता है।
  • उचित व्यायाम की कमी - शारीरिक व्यायाम का अभाव एवं कार्बोहाइड्रेड का अधिक प्रयोग भी मोटापा का कारण हो सकते हैं।[8]
  • विटामिन डीकी कमी - साइन्टिफिक रिपोटर्सपत्रिका में प्रकाशित रिसर्च पेपर से यह बात सामने आई है कि मोटापा और विटामिन डी की कमी का गहरा सम्बन्ध है जब शरीर में विटामिन डी की कमी होती है, तो वसा शरीर में संचित होने लगता है।[9]

मोटापा जनित रोगमोटापा के कारण शरीर में अनेक जटिलताएँ पैदा होती हैं। मोटापा बहुत सारे रोगों को जन्म देता है। जिसमें से एक है, मृत्यु की ओर यात्रा का समय छोटा होते जाना, व्यक्ति का वजन जितना अधिक होगा उसकी आकस्मिक मृत्यु की सम्भावनाएँ उतनी ही अधिक होती हैं।[10] मोटापा के कारण अनेक रोग उत्पन्न होते हैं जिनमें से कुछ मुख्य निम्न प्रकार हैं

·         उच्च रक्त चाप

·         निम्न एचडीएल कोलेस्ट्रॉल

·         मधुमेह

·         उच्च ट्राइग्लिसराइडीनिया

·         स्ट्रोक

·         स्लीप एपनिया (सोते समय श्वसन क्रिया में बाधा आना। जिसमें खर्राटे आते हैं )

·         कैंसर - मोटापा के कारण कई प्रकार के कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। मोटापे के कारण पुरूषों में लीवर कैंसर अधिक होना पाया जाता है।

·         जोड़ों से सम्बन्धित रोग - मोटापा होने से जोड़ों पर दबाव अधिक होने से इनसे सम्बन्धित रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

·         श्वास से सम्बन्धित समस्याएँ - मोटापा के कारण श्वास सम्बन्धी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।

मोटापा की योगिक चिकित्सा

  1. मिताहार मोटापा को कम करने के लिए हमें जीवनशैली में योगिक मिताहार को अपनाना होगा। मित का अर्थ है कम तथा आहार का अर्थ है भोजन अर्थात् कम भोजन ग्रहण करना मिताहार कहलाता है। मिताहार के विषय में हठप्रदीपिका में वर्णन मिलता है कि आहार स्निग्ध अर्थात् चिकना, मधुर अर्थात् मीठा होना चाहिए, पेट के दो भागों में आहार, तीसरे में पानी तथा चौथे भाग को वायु के लिए खाली छोड़ कर अपने इष्ट देव को समर्पित करके गृहण करना चाहिए।[11] मिताहार ग्रहण करने से भोजन शीघ्र पच जाता है और उससे मिलने वाली ऊर्जा शरीर के सभी अंगों को मजबूती देती है।[12]
  2. षट्कर्ममुख्य रूप से षट्कर्म का मुख्य उद्देश्य शरीर का शोधन है घेरण्ड ऋषि ने कहा भी है कि षट्कर्म से शरीर की शुद्धि होती है।[13] हठ्प्रदीपिका में भी स्वात्माराम जी ने कहा है कि जिन लोगों में कफ दोष की अधिकता है शरीर स्थूल अर्थात् मोटा है उन्हें षट्कर्म का अभ्यास करना चाहिए [14] स्थूल रूप से शरीर में विद्यमान विजातीय द्रव्यों के निष्कासन हेतु षटकर्मों का प्रयोग किया जाता है।[15] अग्निसार क्रिया के अभ्यास से पेट के सभी अंगों की मालिश होती है और उनकी क्रियाशीलता बढ़ती है।[16] धौति क्रिया से बीस प्रकार के कफजनित दोषों का नाश होता है जिसमें से एक मोटापा भी है।[17]

जैसेधौति, वस्ति, नेति, नौलि तथा कपालभाति के अभ्यास से मोटापा जैसे विकारों को ठीक करने में लाभकारी हैं।

  1. आसनआसन के अभ्यास से मोटापा को दूर किया जा सकता है, महर्षि घेरण्ड बताते हैं कि आसन के अभ्यास से दृढ़ता आती है।[18] स्वामी स्वात्माराम जी आसन के लाभ के रूप में बताते हैं कि आसन के अभ्यास से शरीर पतला, अरोगी तथा अंगों में हल्कापन आता है।[19] महर्षि पतंजलि सुखपूर्वक बैठने को आसन की संज्ञा देते हैं[20] और आसन के फल के रूप में बताते हैं कि आसन से द्वंदों को सहने की क्षमता जाती है[21] अर्थात् किसी भी प्रकार के कष्ट व्यक्ति को नहीं सताते हैं। योगचूड़ामण्युपनिषद् में कहा गया है की आसन के अभ्यास से रोगों का नाश होता है।[22] आसन के अभ्यास से शरीर की मांसपेशियों में जमा वसा कम होती है, मोटापा दूर करने हेतु निम्न आसनों का अभ्यास करना चाहिए -

·         ताड़ासन, तिर्यक ताड़ासन, कटिचक्रासन, त्रिकोणासन, पादहस्तासन, चक्रासन, पश्चिमोत्तानासन, सेतुबंधासन, मत्स्येंद्रासन, मयूरासन, भुजंगासन, धनुरासन, उष्ट्रासन आदि।

  1. प्राणायामघेरण्ड ऋषि ने बताया है कि प्राणायाम के अभ्यास से शरीर में में हल्कापन आता है जिसे वहाँ लाघवता कहा गया है।[23] मोटापा को दूर करने में सहायक कुछ प्रमुख प्राणायाम निम्न प्रकार हैं -

·         सूर्यभेदन- सूर्यभेदन प्राणायाम के अभ्यास से जठराग्नि प्रदीप्त होती है जिससे भोजन का पाचन अच्छे से होता है जो मोटापा को कम करने में सहायक सिद्ध होता है।[24]

·         उज्जायी- घेरण्ड संहिता में उज्जायी प्राणायाम के लाभ के रूप में बताया गया है कि उज्जायी प्राणायाम करने से शरीर में स्थित कफ दोष ठीक हो जाते हैं जिनमें से एक मोटापा भी है।[25] हठप्रदीपिका में कहा गया है कि उज्जायी प्राणायाम से धातु रोगों का नाश होता है[26] अत: मोटापा भी मेद धातु की अधिकता से होने वाला रोग है अर्थात् मोटापा जैसे रोग भी ठीक हो जाते हैं।

·         भस्त्रिकाभस्त्रिका प्राणायाम के अभ्यास से जठराग्नि तीव्र हो जाती है जिससे आहार का पाचन भी सही से होता है, जब आहार का पाचन सही से होगा तो मोटापा जैसे रोग का नाश स्वत: हो जाएगा। हठप्रदीपिका में कहा गया है कि भस्त्रिका प्राणायाम के अभ्यास से वात, पित्त, तथा कफ, के रोग एवं, शरीर में उपस्थित जठराग्नि प्रदीप्त हो जाती है।[27]

  1. मुद्रा

·         महामुद्रा- घेरण्ड संहिता में कहा गया है कि महामुद्रा के अभ्यास से अपथ्य वस्तु भी पथ्य हो जाती है अर्थात् सब कुछ पच जाता है, नीरस वस्तु भी रसमय हो जाती है। अपच के कारण बढ़ने वाला मोटापा समाप्त हो जाता है।[28]

·         विपरितकरणी- विपरितकरणी मुद्रा के अभ्यास से थाइरॉईड ग्रंथि की समस्या ठीक हो जाती है हार्मोन्स का संचालन ठीक से होने लगता है जिससे व्यक्ति का मोटापा घटने लगता है। घेरण्ड संहिता में कहा भी गया है कि विपरीतकरणी के अभ्यास से पाचन भी अच्छा होने लगता है।[29] हठदीपिका में कहा गया है कि विपरीतकरणी का अभ्यास करने से जठराग्नि तीव्र होकर भोजन को शीघ्र पचा देती है। जिससे मोटापा, कब्ज आदि दोष समाप्त हो जाते है।[30]

·         उड्डीयान बन्ध- उड्डीयानबन्ध के अभ्यास से उदार की मासपेशियों मेँ मजबूती आती है तथा वे लचीली होती हैं जिससे वहाँ जमा वसा कम होने लगता है। घेरण्ड संहिता मेँ कहा गया है कि पाचन संस्थान के लिए उड्डीयान बन्ध से बढ़कर कोई दूसरा अभ्यास है ही नहीं।[31] यह बन्ध मणिपुर चक्र को जागृत करता है इसलिए इसे बन्धों मेँ श्रेष्ठ कहा गया है।[32]

·         मूलबन्ध- मूलबन्ध के अभ्यास से कब्ज तथा बड़ी आंत से संबन्धित रोग जैसे बवासीर, भगंदर आदि ठीक हो जाते  हैं तथा जठराग्नि प्रदीप्त हो जाती है जिससे भोजन का अच्छे से पाचन होता है।[33]

निष्कर्ष : उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि योग के अभ्यास मोटापा जैसे विकारों के समाधान में सक्षम हैं, योगिक आहार, मिताहार, आसन, प्राणायाम, मुद्रा एवं बन्धों के अभ्यास से पाचन संस्थान अच्छा रहता है। शरीर की मासपेशीयां मजबूत लचीली हो जाती हैं, आसन के अभ्यास से शरीर में जमा अतिरिक्त वसा पिघल कर समाप्त हो जाती है। अत: कहा जा सकता है कि योग के अभ्यास मोटापा की समस्या के समाधान हेतु उचित चिकित्सा पद्धति है।

सन्दर्भ :
[1] गिरी, राकेश (2021), “स्वस्थवृत्त विज्ञान एवं यौगिक चिकित्सा”,शिक्षा भारती (उत्तराखण्ड) निकुंज बिहार, आर्य नगर, हरिद्वार - 249404,पृष्ठ 321
[2] समदोष: समाग्निश्च, समधातु मलक्रियप्रसन्नात्मेन्द्रिय मन: स्वस्थ इत्यभिधीयते।। सू॰स. सूत्र स्थान15/10
[3] Obesity and overweight report, WHO 2 June 2021.  https://www.who.int/news-room/fact-sheets/detail/obesity-and-overweight
[4]https://www.who.int/news-room/fact-sheets-detail/obesity-and-overweight
[5]गिरी, राकेश (2021), “स्वस्थवृत्त विज्ञान एवं यौगिक चिकित्सा”,शिक्षा भारती (उत्तराखण्ड) निकुंज बिहार, आर्य नगर, हरिद्वार - 249404,पृष्ठ 321
[6]गिरी,राकेश (2021), “स्वस्थवृत्त विज्ञान एवं यौगिक चिकित्सा”,शिक्षा भारती (उत्तराखण्ड) निकुंज बिहार, आर्य नगर, हरिद्वार - 249404,पृष्ठ 321
[7]मूर्ति प्रो॰ बी॰टी॰ चिदानन्द (2010), “साधारण रोगो की यौगिक एवं प्राकृतिक चिकित्सा”,केन्द्रिय योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली,पृष्ठ 34
[8]मूर्ति प्रो॰ बी॰टी॰ चिदानन्द (2010), “साधारण रोगो की यौगिक एवं प्राकृतिक चिकित्सा”,केन्द्रिय योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली,पृष्ठ 35
[9]http://m-jagran-com.edn. atnppoject.org/v/s-/m jagran-com/lite/lifestyle/health-How-vitamin-d deficiency-increase obesity know-The S. Research 21869846-html
[10]डोगरा सुरेन्द्र निर्दोष (2012), मोटापा कारण एवं निवारण”,वी एण्ड एस पब्लिशर्स, एफ-2/16, अंसारी रोड़, दरियागंज, नई दिल्ली - 110002पृष्ठ 15
[11] सुस्निग्धमधुराहारश्चतुर्थांशविवर्जित: भुज्यते शिवसंप्रीत्यै मिताहार: उच्यते॥ हठ्प्रदीपिका1/58
[12] स्वामी दिगम्बर जी डॉ. पीताम्बर, झा, हठ्प्रदीपिका, कैवल्यधाम श्रीमन्माधव योगमन्दिर समिति लोनावाला पुणे, 2011,पृष्ठ सं.29.
[13] षट्कर्मणा शोधनम्  च॥  घेरण्ड संहिता 10
[14] मेद: श्लेश्माधिक: पूर्वषट्कर्माणि समाचरेत् अन्यस्तु नचरेत्तानिदोषाणा संभावत: हठ्प्रदीपिका 2/21
[15]गिरी,राकेश (2021), “स्वस्थवृत्त विज्ञान एवं यौगिक चिकित्सा”,शिक्षा भारती (उत्तराखण्ड) निकुंज बिहार, आर्य नगर, हरिद्वार - 249404,पृष्ठ 139
[16]सरस्वती स्वामी निरंजनानन्द (2011), घेरण्ड संहिता,योग पब्लिकेशन ट्रस्ट, मुंगेर, बिहार, भारत,पृष्ठ 47
[17]कासश्वासप्लीहकुष्टं कफरोगाश्च विंशतिः। धौतिकर्मप्रभावेन प्रयान्तयेव संशयः।।[17]
[18] आसनेन भवेद्दृढ़म॥ घेरण्ड संहिता 10 
[19] कूर्यात्तदासनं स्थैर्यमारोग्यं चाङ्ग्लाघवम्॥ हठ्प्रदीपिका 1/17
[20] स्थिरसुखमासनम्॥ योग दर्शन 2/46
[21] ततो द्वंद्वानभिघात: योग दर्शन 2/48
[22] आसनेन रुजं हन्ति प्राणायामेन पातकाम्। विकारं मानसं योगी प्रत्याहारेण मुच्चति॥ योगचूड़ामणयोपनिषद् 109
[23] प्राणायामा: लाघवम् च॥घेरण्ड संहिता 11
[24] कुम्भक: सूर्यभेदस्तु जरामृत्युविनाशक: बोधयेत्कुंडलीं शक्तिंदेहानलविवर्धनम्। इतिते कथितं चण्डं सूर्यभेदनमुत्तमम्॥ घेरण्ड संहिता 5/69
[25] उज्जायी कुम्भकं कृत्वा सर्वकायार्णिसाधयेत्: भवेत्कफरोगश्च क्रूरवायुरजीर्णकम् घेरण्ड संहिता  5/72
[26] नाड़ीजलोदराधातुगतदोषविनाशनम्। गच्छता तिष्ठता कार्यमुज्जायाख्यंतु कुम्भकम् ॥हठ्प्रदीपिका 2/56
[27] वातपित्तश्लेष्महरं शरीराग्निविवर्धनम् 2/65
[28] हि पथ्यमपथ्यं वा रसा: सर्वेअपि नीरसा: अपि भुक्तं विषं घोरं पीयूषमिव जीर्यति हठ्प्रदीपिका3/15
[29] घेरण्ड संहिता पृ॰स॰ 246
[30] नित्यभ्यासयुक्तस्य जठराग्निविवर्धीनी। आहारो बहुलस्तस्य संपाद्य: साधकस्य: च। हठ्प्रदीपिका 3/79
[31] घेरण्ड संहिता पृ॰स॰ 219
[32] घेरण्ड संहिता पृ॰स॰ 219
[33] घेरण्ड संहिता पृ॰स॰ 212

अमित कुमार
शोधार्थी, योग विज्ञान विभाग, गुरुकुल कांगड़ी ( समविश्वविद्यालय ), हरिद्वार
amitkm2003@gmail.com, 91933 37140

डॉ॰ ऊधम सिंह
सहायक प्रोफेसर, योग विज्ञान विभाग, गुरुकुल कांगड़ी 
( समविश्वविद्यालय ), हरिद्वार

  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-46, जनवरी-मार्च 2023 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक व जितेन्द्र यादव चित्रांकन : नैना सोमानी (उदयपुर)

Post a Comment

और नया पुराने