- मुकेश कुमार प्रजापति व प्रो. शिखा श्रीवास्तव
शोध
सार : वर्तमान समय में गिलगित-बाल्टिस्तान पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर का उत्तरी हिस्सा है, जिस पर पाकिस्तान का 1947 से अवैध कब्जा है। इस क्षेत्र में पाकिस्तान और चीन के बढ़ते प्रभाव ने भारत की भू-राजनीतिक, भू-रणनीतिक और भू-आर्थिक हितों के समक्ष गंभीर चुनौती उत्पन्न की है। इस क्षेत्र में बीते कुछ
वर्षों
से चीन और पाकिस्तान के मध्य प्रस्तावित कई परियोजनाएँ संचालित की जा
रहीं
हैं। जो भारत की सीमा सुरक्षा के समक्ष गंभीर चुनौतीयों को प्रस्तुत करती हैं। इस क्षेत्र में सैन्य बुनियाद का विकास करना तथा LoC के पास अपने सैनिकों की उपस्थिति बढ़ाना आदि “गिलगित-बाल्टिस्तान में चीन का प्रभाव एवं भारत की चिंता” के शीर्षक की प्रासंगिकता को बढ़ाता है। प्रस्तुत शोध-पत्र के माध्यम से गिलगित-बाल्टिस्तान में चीन की प्रस्तावित परियोजनाओं का विश्लेषणात्मक अध्ययन करते हुए भारतीय सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभावों पर प्रमुखता
से
प्रकाश
डाला
गया
है।
बीज
शब्द
:
गिलगित-बाल्टिस्तान, भू-राजनीतिक, भू-रणनीतिक, ग्रेट गेम, बेल्ट एंड
रोड
इनीशिएटिव, चीन-पाकिस्तान
आर्थिक
गलियारा, ऋणजाल कूटनीति, विशेष आर्थिक
क्षेत्र, बुनियादी विकास।
मूल
आलेख : पाकिस्तान के कई शिक्षाविदों एवं राजनेताओं ने जम्मू-कश्मीर की ऐतिहासिक स्थिति विशेष रूप से गिलगित-बाल्टिस्तान की ऐतिहासिक स्थिति के बारे में दशकों से मिथकों का प्रचार किया है। पश्चिमी देशों के कुछ शिक्षाविदों द्वारा उनके इन प्रयासों का समर्थन किया गया है। भारत में जम्मू-कश्मीर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बारे में व्यापक अज्ञानता एवं उपेक्षा ने इन मिथकों को मज़बूती प्रदान करने में मदद की है। कुछ लोगों में यह विश्वास है कि जम्मू-कश्मीर डोगरा राजाओं द्वारा बनाई गई एक कृत्रिम इकाई है, और जम्मू-कश्मीर का संपूर्ण क्षेत्र अतीत में कभी भी एक ही राजनीतिक व्यवस्था का भाग नहीं था। ऐसी धारणा विशेष रूप से गिलगित-बाल्टिस्तान के संबंध में प्रचारित की गयी, जिसको 2009 से पहले "उत्तरी क्षेत्र" (Northern Area) कहा जाता था।1
राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण इस क्षेत्र को एक अलग राजनीतिक इकाई के रूप में पेश करने के उद्देश्य से पाकिस्तान ने इसे अपने संविधान एवं मुख्य भूमि से अलग रखा।
जम्मू-कश्मीर का वर्तमान परिदृश्य अक्टूबर 1947 से बिलकुल अलग है। यह भौगोलिक रूप से कई भागों में विभाजित है, इसके कुछ भागों पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है, तो कुछ भागों पर चीन का अवैध कब्जा है। व्यावहारिक रूप से जम्मू-कश्मीर के लगभग आधे भागों पर हमारे पड़ोसी देशों का किसी न किसी न रूप में दशकों से अवैध कब्जा है। अक्टूबर 1947 में भारत में शामिल होने से पहले मूल जम्मू-कश्मीर राज्य का सम्पूर्ण क्षेत्रफल 2,22,236 वर्ग किमी था। परन्तु आज इसके सम्पूर्ण क्षेत्रफल का 1,06,566 वर्ग किमी क्षेत्र भारत के पास, 72,496 वर्ग किमी पाकिस्तान के पास और 37,555 वर्ग किमी चीन के पास है। 3 मार्च, 1963 को एक तथाकथित पाक-चीन सीमा समझौते के तहत पाकिस्तान ने पाक-अधिकृत जम्मू-कश्मीर के एक क्षेत्र, शाक्सगम घाटी (जिसका क्षेत्रफल 5180 वर्ग किमी था) चीन को दे दिया था। अर्थात् वर्तमान में जम्मू-कश्मीर राज्य के सम्पूर्ण क्षेत्रफल में से 42,735 वर्ग किमी भाग पर चीन का कब्जा है।2 (चित्र संख्या 1 देखें)
चित्र संख्या- (1)
गिलगित-बालटिस्तान(जीबी) की पृष्ठभूमि में दुनिया की तीन प्रसिद्ध ऊँचाई वाली पर्वत शृंखलाओं जैसे हिमालय, काराकोरम और हिंदूकुश पर्वत के मिलन बिंदु का घर है। गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तान का एक प्रशासनिक क्षेत्र है। जिसके पश्चिम में पाकिस्तान के उत्तरी प्रांत खैबर पख्तूनख्वा का चित्राल जिला, दक्षिण-पश्चिम में आज़ाद जम्मू-कश्मीर, उत्तर-पश्चिम में अफगानिस्तान का वाख़ान गलियारा, पूर्वोत्तर में चीन के झिंजियांग प्रान्त का उइघुर स्वायत्त क्षेत्र और दक्षिण व दक्षिण-पूर्व में भारतीय प्रशासित जम्मू-कश्मीर का क्षेत्र है। विश्व में 8000 मीटर से अधिक ऊँचाई की 14 चोटियों में से पांच चोटियाँ जीबी में है जिसमें K2 (माउंट गॉडविन ऑस्टिन) या छोगोरी भी शामिल है, जो दुनिया की दूसरी सबसे ऊँची चोटी है। वर्ष 2017 की पाकिस्तानी जनगणना के अनुसार गिलगित-बालतिस्तान की जनसंख्या पूर्व में 1998 की जनगणना में दर्ज 8,70,347 की तुलना में लगभग 18 करोड़ हो गई है।4
भू-राजनीतिक रूप से यह पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर का सबसे संवेदनशील क्षेत्र है। भू-राजनीति
भौगोलिक
स्थान
से
जुड़ी
राजनीतिक
शक्ति
पर
केंद्रित
होती
है। कराकोरम राजमार्ग के अस्तित्व में आने के बाद इस क्षेत्र का अतिरिक्त भू-रणनीतिक दृष्टि से महत्त्व बढ़ गया है। जिसके तहत
भौगोलिक
तत्त्व
एवं
स्थान
का
युद्ध
कौशल
में
उपयोग
करके
यौद्धिक
कूट
योजना
को
श्रेष्ठ
बनाने
का
प्रयास
किया
जाता
है।
प्राचीन काल में जितने भी विदेशी आक्रांता अरब एवं मध्य एशिया से भारत की धरती पर कदम रखा, वो सब हिन्दुकुश पर्वत पार करके भारत में प्रवेश कर पाए
थे। इसीलिए यह क्षेत्र वास्तविक रूप से न सिर्फ़ भारत की सुरक्षा व्यवस्था को सुनिश्चित करता था, बल्कि मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार करने का मार्ग प्रशस्त भी करता था। भारत का व्यापार चीन, मध्य एशिया, एवं मध्य-पूर्व के देशों के साथ इसी क्षेत्र से होता था। अर्थात इस क्षेत्र का भू-सामरिक एवं व्यापारिक महत्त्व तब भी था और आज भी है। साम्यवादी सोवियत संघ रूस के प्रसार को रोकने के लिए 1928 में ब्रिटिश भारत सरकार के द्वारा जीबी को सोवियत रूस और ब्रिटिश भारत के बीच एक बफ़र राज्य के रूप में स्थापित किया गया था। सोवियत रूस के आक्रमक और ब्रिटिश भारत की इस सुरक्षात्मक नीति को ग्रेट गेम के रूप में भी जाना जाता है। विडंबना यह है कि यह क्षेत्र व्यावहारिक रूप से भारत के प्रशासनिक नियंत्रण में नहीं है। वर्तमान समय में जीबी और पाक-अधिकृत जम्मू-कश्मीर (जिसे पाकिस्तान आज़ाद कश्मीर कहता है) का संपूर्ण क्षेत्र पाकिस्तान के प्रशासनिक नियंत्रण में है।
चीन का पाक-अधिकृत जम्मू-कश्मीर में प्रवेश 1959 में कराकोरम राजमार्ग (KKH) के निर्माण के साथ शुरू हुआ तथा इसीके परिणामस्वरूप चीन और पाकिस्तान के बीच 1963 में एक सीमा समझौता हुआ जिसके तहत पाकिस्तान ने हुंजा राज्य का 5140 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र चीन को सौंप दिया था। KKH 1978 से परिवहन के लिए चालू हो गया इस राजमार्ग को ‘चीन-पाकिस्तान मैत्री राजमार्ग‘ के रूप में जाना जाता है। KKH पाकिस्तान के पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा प्रांत को गिलगित-बाल्टिस्तान के रास्ते चीन में शिंजियांग प्रांत के काशगर (काशी) शहर से जोड़ता है।5
गिलगित-बाल्टिस्तान के नक्शे को करीब से देखने पर इसके संवेदनशील स्थान और सामरिक महत्त्व का पता चलता है। चीन ने KKH की मरम्मत, विस्तार एवं पाकिस्तान में बुनियादी विकास के लिए 2015 में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) परियोजना को लांच किया। जिसके तहत अरब सागर की खाड़ी में स्थित पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ने के लिए 62 बिलियन अमेरिकी डालर का निवेश किया गया है।6
जिसके
अंतर्गत
पाकिस्तान
में
सड़क, बिजली, भूमि परिवहन
के
लिए
नेटवर्क
अवसंरचना, जल आपूर्ति
जैसे
बुनियादी
विकास शामिल हैं। इसके अलावा
सीपीईसी
के
तहत
विशेष
आर्थिक
क्षेत्र
शामिल
है।
जिसमें
अतिरिक्त
आर्थिक
गतिविधियों
का
सृजन
करना,
वस्तुओं
और
सेवाओं
के
निर्यात
को
बढ़ावा
देना,
घरेलू
और
विदेशी
स्रोतों
से
निवेश
को
बढ़ावा
देना
इत्यादि
प्रस्तावित
है।
हालांकि यह बात जगजाहिर है कि चीन, पाकिस्तान की सह पर गिलगित-बाल्टिस्तान में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है, जो भारतीय सुरक्षा के लिए दूरगामी और घातक परिणाम पैदा कर सकते हैं। यह मेगा परियोजना भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी सैन्य शक्ति स्थापित करने के लिए चीन की ओर से एक मज़बूत कदम है। CPEC परियोजना के तहत, चीन दक्षिण एशियाई क्षेत्र में पहुँचने के लिए कराकोरम राजमार्ग के साथ एक रेलवे लाइन का निर्माण कार्य कर रहा है। पाकिस्तान की गिरती अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाने के लिए चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा को चीन और पाकिस्तान के मध्य एक "गेम चेंजर"
परियोजना माना जा रहा है।7
चीन गिलगित-बाल्टिस्तान में विकास परियोजनाओं को वस्तुतः नियंत्रित कर रहा है, तकनीशियनों और इंजीनियरों की आड़ में पीएलए की उपस्थिति, भारी मशीनरी और बड़े पैमाने पर जनशक्ति को बढ़ा रहा। यह भी बताया गया है कि चीन ने कई सुरंगों का निर्माण किया है जिसके माध्यम से रेलवे लाइन गुज़रेगी और जिसमें बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्चिग पैड भी स्थापित हैं।8
शोध
समस्या : वर्तमान समय
में
साम्राज्यवादी
चीन
की
विश्व
शक्ति
बनने
की
महत्त्वाकांक्षा
एवं
सीमा
विस्तार
की
चाह
ने
क्षेत्रीय
अस्थिरता
एवं
सीमा
विवाद
को
उत्पन्न
किया
है।
चीन
अपने
इस
उद्देश्य
को
प्राप्त
करने
के
लिए
भारत
जैसे
लोकतांत्रिक
देश
की
न
सिर्फ
सम्प्रभुता
एवं
क्षेत्रीय
अखण्डता
की
अवहेलना
की
है, बल्कि
भारतीय
सुरक्षा
के
समक्ष
चुनौतियों
को
खड़ा
किया
है। इस शोध
आलेख
में
गिलगित-बाल्टिस्तान, जिसे भारत
अपना
अभिन्न
अंग
मानता
है, में चीन
की
सैन्य
उपस्थिति
के
कारण
उत्पन्न
निम्नलिखित
समस्याओं
पर
प्रकाश
डाला
गया
है।
- गिलगित-बाल्टिस्तान
में साम्यवादी
चीन द्वारा
किए जा
रहे सैन्य
विनिर्माण कार्य
का अध्ययन
करना।
- गिलगित-बाल्टिस्तान
में क्षेत्रीय
स्थिरता एवं
भारत की
राष्ट्रीय सुरक्षा
के समक्ष
चीन की
चुनौतियों का
अध्ययन करना।
साहित्यावलोकन : 2016 में प्रकाशित
अपने
लेख
‘चाइनीज़ इंटरेस्ट्स
इन
पाकिस्तान
अकुपाइड
कश्मीरः
स्ट्रैटेजिक
इम्प्लीकेशंस
फार
इंडिया’ में
अवतार
सिंह
सेखों
ने
चीन-पाकिस्तान
आर्थिक
गलियारा, जो पाक-अधिकृत
कश्मीर
के
गिलगित-बाल्टिस्तान वाले क्षेत्र
से
होकर
गुजरता
है, एवं चीन
की
वन
बेल्ट, वन रोड
परियोजना
को
भारतीय
संप्रभुता
एवं
क्षेत्रीय
अखंडता
के
विरुद्ध
बताया
है। 2017 में प्रकाशित
अपने
लेख
‘चाइना-पाकिस्तान
इकोनामिक
कारीडोर
एंड
इट्स
सोसल
इम्प्लीकेशन
आन
पाकिस्तानः
हाऊ
विल
सीपीईसी
बूस्ट
पाकिस्तान
इनफ्रास्ट्रक्चर्स
एंड
ओवरकम
द
चैलेंजेस’ में आर.
अहमद
और
एच.
मी
ने
इस
बात
पर
ज़ोर
दिया
कि चीन के
आर्थिक
विकास
और
सीपीईसी
के
लिए
गिलगित-बाल्टिस्तान
का
सामरिक
महत्त्व
को
बनाए
रखने
के
लिए
चीन
को
पाकिस्तान
के
सहयोग
की
ज़रूरत
है। यह कारीडोर
चीन
को
पाकिस्तान
के
ग्वादर
बंदरगाह
पर
एक
नौसैनिक
अड्डा
बनाने
का
अवसर
भी
प्रदान
करेगा
जो
क्षेत्र
में
चीन
के
प्रभाव
को
बढ़ाएगा। 2017 में प्रकाशित
अपने
लेख
‘सेवरिंग गिलगित-बाल्टिस्तांस
कश्मीर
लिंक’ में प्रियंका
सिंह
ने ने बताया
कि, गिलगित-बाल्टिस्तान
को
पाकिस्तान
का
पांचवा
प्रान्त
के
रूप
में
शामिल
करने
का
विचार
पाकिस्तान
और
चीन
की
क्षेत्रीय
हितों
में
साझा
आर्थिक
महत्त्वाकांक्षाओं
को
प्राथमिकता
देने
की
इच्छा
को
दर्शाता
है।
उनका
यह
भी
मानना
है
कि
गिलगित-बाल्टिस्तान
में
पाकिस्तान
और
चीन
की
मज़बूत
पकड़
इस
क्षेत्र
पर
भारतीय
दावों
को
कमज़ोर
कर
सकती
है। 2017 में प्रकाशित
अपने
लेख
‘1947 के
बाद
गिलगित-बाल्टिस्तान
का
दुःखद
इतिहास’ में एस.
के.
लांबा
ने
गिलगित-बाल्टिस्तान
के
इतिहास
पर
अपनी
चिंता
व्यक्त
करते
हुए
बताया
कि 1947 के बाद
से
यह
क्षेत्र
पाकिस्तान
सरकार
के
द्वारा
उपेक्षित, अलग-थलग, मताधिकार हीन
और
इसकी
स्थिति
जानबूझकर
संदिग्ध
और
अपरिभाषित
रखा
गया।
वर्तमान
समय
में
इस
क्षेत्र
में
चीन
और
पाकिस्तान
के
संयुक्त
तानाशाही
शासन
और
नियंत्रण
के
कारण
स्थानीय
लोग
अपने
अधिकारों
से वंचित और
जिल्लत
की
ज़िन्दगी
जी
रहे
हैं। 2019 में प्रकाशित
अपने
लेख
‘पाकिस्तान एंड
चाइना
आर
बिल्डिंग
एन
एसईजे़ड
इन
पीओके
गिलगित-बाल्टिस्तान
सैटेलाइट
इमेजेस
शो’ में कर्नल
विनायक
भट
ने
बताया
कि
1963 में
पाकिस्तान
ने
सियाचिन
ग्लेशियर
के
उत्तर
में
शक्सगाम
घाटी
की
विशाल
भूमि
चीन
को
सौंपने
के
बाद
लंबे
समय
से
जम्मू
और
कश्मीर
क्षेत्र
में
चीन
की
घुसपैठ
को
सुविधा
प्रदान
की
हे।
चीनियों
ने
2017 में
यहाँ
सड़क
और
सैन्य
चौकियाँ
बना
ली
है।
शोध क्रियाविधि
:
शोध अध्ययन गिलगित-बाल्टिस्तान में चीन का बढ़ता प्रभाव एवं भारत की चिंता पर केन्द्रित है। इसके लिए वर्णनात्मक शोध विधि का चयन किया गया है। इसके अंतर्गत किसी स्थिति का वर्णन किया जाता है। इसमें गुणात्मक आँकड़ों का उपयोग किया गया है। जिसके तहद प्राथमिक एवं द्वितीयक स्रोत से उपलब्ध तथ्यों एवं जानकारी को शामिल किया गया है। जिसमें मौजूदा सम्बन्धित साहित्य शोध-प्रबन्ध, शोध-पत्र, अनुच्छेद, मैगज़ीन, समाचार-पत्र, विदेश एवं रक्षा मंत्रालय की मासिक, अर्द्धवार्षिक एवं वार्षिक रिपोर्ट और मानचित्र, ग्लोब, गूगल अर्थ, एटलस इत्यादि शोध अध्ययन से सम्बन्धित यथासम्भव सूचनाओं का संकलन किया है। शोध पत्र
से
सम्बन्धित
लोकसभा
वार्तालाप
एवं
संसद
टीवी
के
साक्षात्कार
से
प्राप्त
जानकारी
को
शामिल
किया
गया
है।
इसके अलावा इंटरनेट के विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बेवसाइटों से सूचनाओं का संकलन किया गया है। शोधकर्ता के द्वारा प्राप्त आकड़ों को श्रेणीबद्ध करके अंतर्निहित शोध तथ्यों का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया गया है।
गिलगित-बाल्टिस्तान दशकों से बड़े पैमाने पर विद्रोह और जटिल राजनीतिक माहौल से जूझ रहा है। इस क्षेत्र में पाकिस्तान और चीन जैसे देशों द्वारा बड़े पैमाने पर भूमि का कब्जा करके प्रशासन किया जा रहा है, जो पूर्व रियासत जम्मू-कश्मीर को कई क्षेत्रीय संस्थाओं में विभाजित करता है। नतीज़न, भू-राजनीतिक इकाई आज तीन देशों, अर्थात् पाकिस्तान(पाक-अधिकृत जम्मू-कश्मीर/आज़ाद जम्मू-कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान), भारत (लद्दाख और जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश) और चीन (चीन-अधिकृत अक्साई चिन और शक्सगाम घाटी) द्वारा प्रशासित है। कथित तौर पर गिलगित-बाल्टिस्तान में चीन की उपस्थिति प्राचीन सिल्क रोड के पुनर्निर्माण की अपनी महत्त्वाकांक्षाओं का विस्तार है। इस संदर्भ में CPEC का निर्माण चीन के महान खेल में एक महत्त्वपूर्ण मोहरा है। शोध-पत्र के विभिन्न उद्देश्यों के अध्ययन एवं विश्लेषण से प्राप्त परिणाम निम्नलिखित हैं-
1. गिलगित-बाल्टिस्तान में चीन की प्रस्तावित एवं संचालित परियोजनाएँ
- चीन ने पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में कई ढांचागत परियोजनाएँ शुरू की हैं और काराकोरम राजमार्ग को सुधारने और बढ़ाने के लिए पर्याप्त मात्रा में वित्त और श्रमशक्ति का निवेश किया है। पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने 2015 में इस क्षेत्र में सात किलोमीटर लंबी पाँच सुरंगों का उद्घाटन किया था, जिसे पाकिस्तान-चीन मैत्री सुरंग के रूप में संदर्भित किया गया था। इस सुरंग का निर्माण चीन द्वारा गिलगित-बाल्टिस्तान के हुंजा घाटी में अट्टाबाद झील के ऊपर किया गया था। रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण, काराकोरम राजमार्ग का कम से कम 440 किलोमीटर सड़क, जो सीपीईसी की जीवन रेखा है, गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है।
दिसंबर, 2013 में CPEC की घोषणा के बाद आया नया आदेश, पाकिस्तान के आर्थिक हितों के लिए क्षेत्र के सामरिक महत्त्व को मज़बूत करता है। 2018 के आदेश ने यह सुनिश्चित किया कि असली सत्ता देश के प्रधानमंत्री के अलावा किसी और के पास न रहे। सितंबर, 2020 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार ने जीबी को अनंतिम प्रांतीय दर्जा देने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था। एक बार इसे अंतिम रूप देने के बाद, यह आदेश जीबी को पाकिस्तान का पाँचवाँ प्रांत बना देगा। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि पाकिस्तानी सरकार चीन के दबाव में ऐसा काम कर रही है, क्योंकि जीबी सीपीईसी कॉरिडोर के लिए एक महत्त्वपूर्ण एवं रणनीतिक क्षेत्र है। CPEC
के तहद PoK को USD 5.94 बिलियन आवंटित किया गया, जिनमें से जीबी के लिए USD 2 बिलियन का निवेश और शेष राशि आज़ाद जम्मू-कश्मीर में बुनियादी ढाँचागत परियोजनाओं के विकास के लिए प्रस्तावित है।9
PoK में इतना अधिक निवेश इस क्षेत्र में निश्चय ही पाकिस्तान के प्रभाव में वृद्धि और भारतीय हितों व सुरक्षा को चुनौती प्रस्तुत करता है। पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर में चीन द्वारा प्रस्तावित परियोजनाएँ इस प्रकार हैं-
- कोहाला हाइड्रो प्रोजेक्ट(Kohala Hydro Project)- यह परियोजना पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के मुजफ्फ़राबाद जिले के पास स्थित झेलम नदी के ऊपर है।10
- मीरपुर में विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zone in Mirpur)- यह विशेष आर्थिक क्षेत्र आज़ाद जम्मू-कश्मीर के मीरपुर ज़िले में है। हालांकि एसईजेड के व्यवहार्यता अध्ययन को चीनी पक्ष के साथ साझा करने के बाद भी इस परियोजना पर अभी तक निर्माण कार्य नहीं शुरू हुआ है।11
- मकपोंडास क्षेत्र में विशेष आर्थिक क्षेत्र(Special Economic Zone in Moqpondas)- यह विशेष आर्थिक क्षेत्र गिलगित शहर से लगभग 40 किमी दूर मोकपोंडास में है। एसईजेड अधिनियम 2012 के प्रावधानों के अनुसार एसईजेड की घोषणा के लिए औपचारिक आवेदन अभी भी प्रतीक्षित है।12
- मनसेहरा-मीरपुर एक्सप्रेस
वे (Mansehra-Mirpur Expressway)- पाकिस्तान में चीन द्वारा वित्तपोषित यह सड़क परियोजना 200 किमी तक फैलेगी। यह पूरे जीबी, आज़ाद जम्मू-कश्मीर को सीपीईसी के केंद्रीय मार्ग से जोड़ेगा। यह एक्सप्रेसवे राटो-शंटर सुरंग के माध्यम से आज़ाद जम्मू-कश्मीर और पंजाब के लिए जीबी तक पहुँचने का सबसे छोटा मार्ग भी होगा और एक छोटे मार्ग के माध्यम से नीलम ज़िले को भी जीबी से जोड़ेगा।13
- आज़ाद पत्तन जलविद्युत परियोजना (Azad Pattan Hydroelectric Project)- यह परियोजना आज़ाद जम्मू-कश्मीर के सुधोती जिले में 700.7 मेगावाट की झेलम नदी पर एक रन-ऑफ-द-रिवर तालाब परियोजना होगी। इस परियोजना 2027 के अंत तक वाणिज्यिक परिचालन शुरू कर देगी।14
- फंदर जल
विद्युत परियोजना (Phandar Hydroelectric Project)- यह परियोजना क्षेत्र जीबी के घिज़र जिले की फंडर झील और छाशी गोल के बीच घिज़र नदी के बेसिन पर बनाया जाएगा। फंदर झील गिलगित शहर से लगभग 168 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है। इसका निर्माण 2023 में शुरू होने की संभावना है और 2025 में वाणिज्यिक संचालन के लिए शुरू करने की उम्मीद है।15
- KIU जलविद्युत परियोजना (KIU Hydroelectric Project)- CPEC में B2B मॉडल (Business to Business Model) के तहत जलविद्युत परियोजना को मंजूरी दी गई थी। वर्तमान में 100 मेगावाट की स्थापित क्षमता वाली इस परियोजना को दोनों सरकारों से अंतिम मंजूरी मिलने का इंतज़ार है।16
- चीन-पाकिस्तान ऑप्टिकल फाइबर परियोजना (China-Pakistan Optical Fiber Project)- फाइबर ऑप्टिक प्रोजेक्ट, एक क्रॉस बॉर्डर ऑप्टिकल फाइबर केबल एक परियोजना है, जिसका निर्माण मई 2016 में, 44 मिलियन डालर की लागत से शुरू किया गया। इस परियोजना के अंतर्गत 820 किमी लंबी ऑप्टिक फाइबर केबल लाइन के माध्यम से चीन और पाकिस्तान सीमा पर खुंजेराब दर्रे को रावलपिंडी शहर से जोड़ना है। इस परियोजना का लगभग 440 किमी का एक बड़ा हिस्सा जीबी के क्षेत्रों से गुज़रने की उम्मीद है।17
- चित्राल सीपीईसी लिंक रोड; गिलगित, शांडोर, चित्राल से चकदरा तक (Chitral CPEC Link Road; Gilgit, Shandor,
Chitral to Chakdra)- इस सीपीईसी परियोजना के द्वारा खैबर पख्तूनख्वा में चकदरा को शांडोरा और चित्राल के रास्ते जीबी में गिलगित से जोड़ने की उम्मीद है। सितंबर 2017 में परियोजना को आधिकारिक तौर पर सीपीईसी में शामिल किया गया था।18
2. भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष चीन की चुनौतियाँ
- पाक अधिकृत जम्मू और कश्मीर में चीन की महत्त्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव का एक हिस्सा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा जीबी क्षेत्र से गुजरता है, जिस पर भारत अपना दावा करता है। सीपीईसी, जीबी में पाकिस्तान एवं चीन के सबसे बड़े हितों में से एक है। चीनी कंपनियों के अभूतपूर्व निवेश के कारण इस क्षेत्र में पाकिस्तान की भू-राजनीतिक एवं भू-रणनीतिक स्थिति में अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि हुई है। आज़ाद जम्मू-कश्मीर में LoC के नजदीक सीपीईसी के तहत कई प्रकार की भूमिगत सुरंग, सड़क और बिजली संयंत्र का निर्माण पाकिस्तान की रणनीतिक प्रभुत्व को बढ़ाता है। इसी तरह जीबी में प्रस्तावित मोकपोण्डास विशेष आर्थिक क्षेत्र, (Moqpondass Special Economic Zone) स्थानीय लोगों के प्रति सहानभूति दिखाने का पाकिस्तान का प्रयास है। जलगोट-स्कार्दू रणनीतिक राजमार्ग (Jalgot-Skardu Strategic Highway) का निर्माण चीनियों ने अपने हितों की पूर्ति के लिए किया था। यद्यपि इसका प्रयोग पाकिस्तानी सेना भारत के ख़िलाफ़ भी कर सकती है क्योंकि यह राजमार्ग पाकिस्तानी और चीनी सैनिकों को पाक-अधिकृत कश्मीर में एक रणनीतिक बढ़त प्रदान करती है। चीन गिलगित-बाल्टिस्तान में सुरंगों के निर्माण में पाकिस्तानी सेना की मदद कर रहा है, जिसका इस्तेमाल रणनीतिक रूप से मिसाइलों और सैन्य उपकरणों के भंडारण के लिए किया जा सकता है।19
गिलगित-बाल्टिस्तान में चीन की परियोजनाएँ आर्थिक एवं बुनियादी विकास को अपेक्षाकृत कम परंतु चीन की सामरिक महत्त्वाकांक्षा को अधिक प्रदर्शित करती है। यही कारण है कि सीपीईसी की सुरक्षा के लिए चीन, गिलगित-बाल्टिस्तान को पाँचवाँ प्रांत घोषित करवाने के लिए पाकिस्तान के ऊपर दबाव बना रहा है। इसके अलावा PoK में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए पीपल्स लिबरेशन आर्मी को तैनात किया है। जो चीन की विस्तारवादी व साम्राज्यवादी नीति को दर्शाता है। जहाँ एक ओर चीन गिलगित-बाल्टिस्तान में स्कार्दू तक स्त्रातजिक राजमार्ग-1 बना रहा है जो LoC से 160 किमी. की दूरी पर है। वहीं दूसरी ओर AJK वाले क्षेत्र में चीन LoC के नजदीक पहुँचने के लिए मुज़फ्फराबाद तक रणनीतिक राजमार्ग-2 और कोटली में रणनीतिक राजमार्ग-3 का निर्माण भी कर रहा है। जहाँ से भारतीय उरी ब्रिगेड हेडक्वॉर्टर की दूरी लगभग 32 किमी. है। इससे चीन के वास्तविक मंशा साफ़ जाहिर होता है कि वह भारत के चारों तरफ अपनी रणनीतिक स्थिति को मज़बूत करना चाहता है।
गिलगित-बाल्टिस्तान में चीन द्वारा किए जा रहे बुनियादी ढाँचागत विकास (रेल, सड़क, औद्योगिक क्षेत्र, हाइवे और विशेष आर्थिक क्षेत्र) जिसमें स्कार्दू सड़क सामरिक रूप से काफ़ी महत्त्वपूर्ण है। चीन द्वारा किया जा रहा यह ढाँचागत विकास इस क्षेत्र के सामरिक महत्त्व अपेक्षाकृत अधिक बढ़ाता है। इसके साथ ही यह चीनी सैनिकों को भारतीय सीमा के और नज़दीक लाता है। गिलगित-बाल्टिस्तान में चीनी पीएलए सैनिकों के सैन्य उद्देश्य को पूरा करने के लिए सैन्य निर्माण कार्य का विकास कहीं न कहीं इस क्षेत्र को अतिसंवेदनशील बना रही है तथा इस क्षेत्र पर भारत के दावों को कमज़ोर कर रही है। जीबी में डायमर बांध पर चीन का नियंत्रण इस क्षेत्र में पीएलए कर्मियों को लाने में सक्षम करेगा। यह बाँध चीन को भारत के ख़िलाफ़ बहुत कम समय में रसद आपूर्ति को गिलगित में स्थानांतरित करने में सहायता पहुँचाएगी। इसके अलावा चीन, पाकिस्तान के स्कार्दू एअरबेस को उन्नत करने में मदद कर रहा है।20
गिलगित-बाल्टिस्तान में सीपीईसी के सुरक्षा के नाम पर 1800 से अधिक चीनी सैनिकों को तैनात किया गया है।
इसके अलावा जम्मू और कश्मीर मुद्दे को SCO और UNO जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को चीन का समर्थन मिलना स्वाभाविक है। हालांकि चीन ने ऐसा पहले एक बार मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ में वीटो किया था। इसलिए पाकिस्तान का पाक-अधिकृत कश्मीर में प्रभुत्व बढ़ना भू-राजनीतिक रूप से भारतीय हितों को चुनौती एवं इस क्षेत्र में भारतीय दावों को कमज़ोर कर सकता है। रिपोर्टों से पता चलता है कि चीन मिसाइलों की तैनाती के लिए गिलगित बाल्टिस्तान में 22 से अधिक सुरंगों की खुदाई कर रहा है। गिलगित-बाल्टिस्तान के अन्य क्षेत्रों में प्राकृतिक खनिज भंडार, विशेष रूप से सोने के संसाधनों की खोज की जा रही है। इन ज़मीनों के स्थानीय मालिकों को इन इलाकों में जाने से रोक दिया जाता है। गिलगित-बाल्टिस्तान के लोगों का उनके प्राकृतिक संसाधनों और खनिजों पर कोई अधिकार नहीं है।
निष्कर्ष : आज चीन, गिलगित-बाल्टिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था को नियंत्रित कर रहा है, एवं इसके प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा करके दोहन कर रहा है। इससे स्थानीय लोगों के आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। जिसके कारण गिलगित-बाल्टिस्तान समेत पूरे पाकिस्तान में विरोध हो रहे हैं। क्या पाकिस्तान के आवाम के लिए यही चीन की विन-विन परियोजना है? बीते कुछ वर्षो में सीपीईसी पाकिस्तान के आर्थिक विकास से सैन्य विकास की ओर बढ़ रहा है। यही कारण है कि पाकिस्तान और चीन CPEC के तहद उन्नत जेट, हथियार और अन्य सैन्य हार्डवेयर के सह-उत्पादन के लिए एक गुप्त योजना को अंतिम रूप दे रहे हैं। इसलिए यह कहना अनुचित नहीं होगा कि CPEC एक सैन्य संधि है जो पाकिस्तान की जनता एवं भारत की सुरक्षा व्यवस्था दोनों के लिए घातक साबित हो सकता हैं। वर्तमान समय में जीबी सहित पूरे पाकिस्तान में आर्थिक संकट, बिजली संकट, खाद्य संकट एवं राजनीतिक अस्थिरता अपने चरम पर है। सीपीईसी को लेकर के पाकिस्तान की आवाम आक्रोश में है।
श्रीलंका
की
तरह
पाकिस्तान
भी
चीन
के
ऋणजाल
कूटनीति
में
फँस
चुका
है।
जिसको
चुकाने
के
लिए
गिलगित-बाल्टिस्तान
की
अवाम
से भारी कर
वसूले
जा
रहें
है।
जिसका
सीधा
प्रभाव
इनके
आजीविका
पर
पड़
रहा
है, यही कारण
है
कि
जीबी
में
विरोध
प्रदर्शन
आए
दिन
देखने
को
मिलता
रहता
है। जीबी के लोग जो पहले से ही पाकिस्तान के द्वारा शोषित थे, चीन की उपस्थिति के कारण उनका जीवन बद से बदतर हो गया है। नतीजन सीपीईसी व चीनी सैनिकों की उपस्थिति को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
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शोधार्थी, रक्षा एवं स्त्रातजीय अध्ययन विभाग, तिलकधारी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जौनपुर (उ.प्र.)
शोध निर्देशिका, रक्षा एवं स्त्रातजीय अध्ययन विभाग, तिलकधारी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जौनपुर (उ.प्र.)
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