- योगेन्द्र नाथ त्रिपाठी एवं डॉ. राशिदा अतहर
शोध
सार : पुरातन
काल
से
ही
अपनी
स्वाभाविक
दुर्बलता
के
कारण
महिलाओं
के
साथ-साथ
बच्चे
भी
अपराधों
के
शिकार
होते
रहे
हैं।
बाल
भिक्षावृत्ति
की
समस्या
कोई
नई
नहीं
है।
यह
एक
प्राचीन
और
सार्वभौमिक
समस्या
है।
विश्व
स्तर
पर
शस्त्र
और
ड्रग्स
के
बाद
मानव
तस्करी
व
बाल
भिक्षावृत्ति,
तीसरा
सबसे
विस्तृत
एवं
लाभदायक
व्यवसाय
है|
यदि
भिक्षावृत्ति
के व्यवसाय में
भीख
देनेवालों
का
ध्यान
आकर्षित
करने
के
लिए
बच्चे
नहीं
होते
तो
भिक्षावृत्ति
एक
लाभदायक
व्यवसाय
नहीं
होता।
इसलिए, भिक्षावृत्ति
के व्यवसाय में
बच्चे
सबसे
बहुमूल्य
संपत्ति
माने
जाते
हैं
और
इसी
वजह
से
बच्चों
को
बेचा
या
ख़रीदा
जाता
है।
बच्चे
आम
जनता
की
सहानुभूति
आसानी
से
खींच
सकते
हैं।
इसलिए, कई
बच्चों
को
इस
पेशे
में
जबरन
धकेल
दिया
जाता
है|
यूनिसेफ
के
एक
अध्ययन
में
बताया
गया
है
कि
दक्षिण
पूर्वी
यूरोप
में
तेरह
प्रतिशत
तस्करी
पीड़ितों
का
जबरन
भीख
मांगने
के
उद्देश्य
से
तस्करी
की
जाती
है।
सामाजिक
न्याय
व
अधिकारिता
मंत्रालय
के
आँकड़ों
के
अनुसार
वर्तमान
में
भारत
में
14
साल
तक
के
उम्र
के
लगभग
4
लाख
बच्चे
भिक्षावृत्ति
के
धंधे
में
लगे
हैं
तथा
खानाबदोश
की
जिंदगी
जी
रहे
हैं।
यह
एक
ऐसा
व्यवसाय
बन
गया
है
जिसमें
काम
करने
के
घंटे, मुनाफा-
घाटा, दलाल
और
मैनेजर
आदि
सबकी
एक
श्रेणी
बन
चुकी
है।
अर्थात्
यह
कार्य
एक
संगठित
अपराध
में
तब्दील
हो
चुका
है| दुनिया
भर
के
कई
देश
इस
खतरे
का
सामना
कर
रहे
हैं
और
भारत
में
राज्यों
की
लापरवाही
के
कारण
इस
समस्या
पर
कभी
भी
गंभीरता
पूर्वक
ध्यान
नहीं
दिया
गया।
प्रस्तुत
शोध
पत्र
बाल
भिक्षावृत्ति
की
परिभाषा,
बाल
भिक्षावृत्ति
के
कारण
एवं
इससे
जुडे
मुद्दे
और
चुनौतियों
के
साथ-साथ
बाल
भिखारियों
के
अधिकारों
के
संरक्षण
और
संवर्धन
के
लिए
प्रारूपित
राष्ट्रीय
एवम्
अंतरराष्ट्रीय
विधि
का
विश्लेषण
करता
है।
बीज
शब्द : बाल
भिक्षावृत्ति,
गरीबी,
शिक्षा,
अधिकार,
ब्यापार,
विधि,
तस्करी,
भिक्षा
माफिया।
मूल
आलेख : आज के
बच्चे
कल
की
संपत्ति
एवम्
भविष्य
दोनों
माने
जाते
हैं|
अगर
आज
बच्चों
का
सही
विकास
होगा
तो
कल
देश
का
भविष्य
अंधकार
में
नहीं
रहेगा।
बच्चों
को
वह
सब
कुछ
प्रदान
किया
जाना
चाहिए
जो
उनके
भविष्य
को
उज्ज्वल
और
ज्ञानवर्धक
बनाने
के
लिए
अपरिहार्य
एवं
आवश्यक
है।
बच्चों
का
सही
पालन
पोषण
किया
जाना
हर
पीढ़ी
का
दायित्व
है[i]|
प्रत्येक
व्यक्ति
को
चाहे
वह
बच्चा
हो
या
वयस्क, मूलभूत
मानवाधिकार
प्रदान
किये
गये
हैं
जिन्हें
कोई
भी
उनसे
वंचित
नही
कर
सकता
या
उनका
उल्लंघन
नहीं
कर
सकता
है।
हर
बच्चा
खुशहाल
बचपन
और
शिक्षा
का
हकदार
है,
लेकिन
बाल
भिखारियों
के
जीवन
में
इन
चीजों
की
जगह
नहीं
है।
किसी
अन्य
विकल्प
के
अभाव
में
बाल
भिखारियों
को
रोग
और
बुखार
की
परवाह
किए
बिना
केवल
एक
बार
भोजन
के
लिए
दिन
भर
भीख
मांगनी
पड़ती
है।
बालिका
भिखारियों
की
स्थिति
और
बदतर
है
उन्हें
अपराधियों
के
बुरे
इरादों
का
सामना
करना
पड़ता
है। बाल
भिक्षा
के
इस
कृत्य
से
हजारों
बच्चे
बर्बाद
हो
चुके
हैं, तथा
गुलाम
बनकर
अपना
प्यारा
और
मासूम
बचपन
खो
दिया
है[ii]।
भारत
के ‘राष्ट्रीय
मानवधिकार
आयोग’ द्वारा
तैयार
की
गयी
रिपोर्ट
के
अनुसार हर
साल
40,000
बच्चों
का
अपहरण
किया
जाता
है, जिससे
पता
चलता
है
की
भारत
में
हर
8
मिनट
में
से
एक
बच्चा
लापता
हो
जाता
है, जिनमें
25%
से
अधिक
का
पता
ही
नहीं
चल
पाता
है[iii]।इनमें
से
कई
बच्चों
को
भिक्षा
माफियाओं
के
द्वारा
भिक्षावृत्ति
के
पेशे
में
जबरन
धकेल
दिया
जाता
है।
बाल
भिक्षावृत्ति सामाजिक
अपराध
होने
के
साथ-साथ
जबरन
भिक्षावृत्ति
रैकेट
का
एक
हिस्सा
है।
यह
रैकेट अपराधियों
या
समाज
के
कुख्यात
लोगों
द्वारा
चलाया
जाता
है|
भिक्षावृत्ति
रैकेट
का
मुखिया
इन
बाल
भिखारियों
को
इनके
द्वारा
कमाए
गये
पैसों
का
इतना
कम
हिस्सा
देते
हैं
जो
उनके
एक
बार
के
भोजन
के
लिए
भी
शायद
पर्याप्त
नहीं
होता
है।
राष्ट्रीय
बाल
अधिकार
संरक्षण
आयोग
(एनसीपीसीआर) के
अनुसार, देश
में
हर
साल
हजारों
बच्चों
को
जबरन
भिक्षावृत्ति
के
लिए
अपहरण
कर
लिया
जाता
है, इसके
बाद
उनके
अंगों
को
विभिन्न
तरीके
से
क्षतिग्रस्त
करके
जबरन
भीख
मँगवाया
जाता
है।
बाल
भिक्षावृत्ति
भारत
में
गंभीर
मुद्दों
में
से
एक
है।
यह
बच्चों
के
अधिकारों
के
हनन
से
जुड़ा
एक
सामाजिक
मुद्दा
है।
आम
तौर
पर, यह
शब्द
उन
बच्चों
को
संदर्भित
करता
है
जो
खेलने
और
शिक्षा
की
उम्र
में
भिक्षा
के
लिए
गलियों
में
घूमते
रहते
हैं[iv]।
दुनिया
भर
के
कई
देश
इस
खतरे
का
सामना
कर
रहे
हैं
और
भारत
में
राज्यों
की
लापरवाही
के
कारण
इस
समस्या
पर
कभी
भी
गंभीरता
पूर्वक
ध्यान
नहीं
दिया
गया।
इसलिए
राज्य
को
स्वयंसहायता
समूह
व
व्यक्तियों
के
साथ
मिलकर
इस
मुद्दे
पर
गंभीरता
पूर्वक
विचार
करने
और
सामूहिक
रूप
से
इस
मुद्दे
को
खत्म
करने
के
लिए
काम
करने
की
आवश्यकता
है[v]।
परिभाषा - सामान्यतया
भिक्षुक
उस
दीन
हीन
व्यक्ति
को
कहते
हैं
जो
चलने
फिरने, काम
करने
में
अयोग्य
होने
के
कारण
अपनी
जीविका
कमा
पाने
में
असमर्थ
होता
है
और
भिक्षा
मांगकर
अपना
पेट
पालता
है। बॉम्बे
भिक्षावृत्ति
निवारण
अधिनियम, 1959 "भिक्षावृत्ति"
को
इस
प्रकार
परिभाषित
करती
है:
1. किसी
सार्वजनिक
स्थान
पर
भिक्षा
मांगना
या
प्राप्त
करना, चाहे
गायन, नृत्य, भाग्य
बताने, प्रदर्शन
करने
या
बिक्री
के
लिए
किसी
भी
वस्तु
की
पेशकश
करने
जैसे
किसी
भी
ढोंग
के
तहत
हो
या
नहीं;
2. भिक्षा
मांगने
या
प्राप्त
करने
के
उद्देश्य
से
किसी
भी
निजी
परिसर
में
प्रवेश
करना;
3. भिक्षा
प्राप्त
करने
या
उगाही
करने
की
वस्तु
के
साथ, किसी
भी
पीड़ादायक, चोट, बीमारियों
की
विकृति
को
उजागर
करना
या
प्रदर्शित
करना, चाहे
वह
मनुष्य
या
जानवर
का
हो;
4. निर्वाह
का
कोई
दृश्य
साधन
नहीं
होना
और
ऐसी
स्थिति
या
तरीके
से
किसी
भी
सार्वजनिक
स्थान
पर
भटकना
या
शेष
रहना, जैसा
कि
यह
संभावना
बनाता
है
कि
ऐसा
करने
वाला
व्यक्ति
भिक्षा
मांगने
या
प्राप्त
करने
से
मौजूद
है;
5. भिक्षा
मांगने
या
प्राप्त
करने
के
उद्देश्य
से
खुद
को
एक
प्रदर्शनी
के
रूप
में
उपयोग
करने
की
अनुमति
देना[vi]।
आसान
भाषा
में
हम
कह
सकतें
हैं
की
जब
किसी
18 साल से कम
उम्र
के
बच्चे
के
द्वारा
बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1959 की धारा 2 में
परिभाषित
भिक्षावृत्ति
से
सम्बंधित
कोई
कार्य
किया
जाता
है
तो
उसे
बाल
भिक्षावृति
कहतें
हैं।
भारत
में बाल
भिक्षावृत्ति के
कारण - ‘भिक्षावृत्ति
मुक्त
अभियान’
चलाने
वाले
शरद
पटेल
के
एक
शोध
के
अनुसार
31
फीसदी
भिक्षुक
गरीबी, 16 फीसदी
भिक्षुक
विकलांगता, 14 प्रतिशत
भिक्षुक
शारीरिक
अक्षमता, 13 फीसदी
बेरोजगारी, 13 फीसदी
पारम्परिक, तीन
फीसदी
भिक्षुक
बीमारी
की
वजह
से
भीख
मांग
रहे
हैं[vii]।
संक्षेप
में
भारतीय
समाज
में
भिक्षावृत्ति
के
पनपने
के
पीछे
निम्न
कारणों
को
रखा
जा
सकता
हैं-
- संसाधनों का
असमान वितरण।
- गरीबी व
बेरोजगारी का
उच्चतम स्तर
पर होना।
- लोगों की
बुनियादी आवश्यकताओं
(रोटी, कपड़ा
व मकान)
का पूरा
नहीं हो
पाना।
- गंभीर स्वास्थ्य
समस्या व
अपंगता।
- कुछ आपराधिक
संगठनों द्वारा
जबरदस्ती भिक्षावृत्ति
करवाना।
- वर्ल्ड बैंक
के अर्थशास्त्री
गौरव दत्त
के अनुसार
आर्थिक उदारीकरण
के साथ
भारत में
‘ग्रामीण औद्योगिकीकरण’
पर ध्यान
नहीं दिया
गया, जिससे
गरीबी ने
धीरे धीरे
गम्भीर रूप
धारण कर
भिक्षावृत्ति जैसे
जघन्य कृत्य
को जन्म
दिया है[viii]।
- आर्थिक उदारीकरण
के लागू
होने के
बाद विदेशी,
निजी व
सरकारी निवेश
भारी मात्रा
में आया
जिससे पूँजी
की उपलब्ध
मात्रा में
बढ़ोतरी हुयी।
इसके कारण
उत्पादन प्रक्रिया
में श्रम
के स्थान
पर पूँजी
के प्रतिस्थापन
को अधिक
बढ़ावा मिला।
अतः अकुशल
श्रमिक धीरे
धीरे बेरोजगार
होने लगे
और गरीबी
के जाल
में फँसते
चले गए।
बाद में
गरीबी के
इसी स्तर
ने भिक्षावृत्ति
का रूप
धारण कर
लिया[ix]।
- भारत में
भिक्षावृत्ति या
गरीबी के
कुछ ऐतिहासिक
कारण भी
हैं। औपनिवेशीकरण
के दौरान
अंग्रेजों ने
भारत को
इस कदर
लूटा कि
‘सोने की
चिड़िया’ कहलाने
वाला देश
‘अकाल और
भुखमरी’ का
पर्याय बन
गया[x]।
- इस सामाजिक
कुरीति के
बढ़ने का
सबसे बड़ा
कारण अशिक्षा
भी है।
एक तरफ
जहाँ सरकार
सर्वशिक्षा अभियान
के तहत
सभी को
शिक्षित करना
चाहती है,
तो महँगी
होती शिक्षा
से गरीब
तबका कोसों
दूर होता
जा रहा
है।
भारत
में बाल
भिक्षावृत्ति के
विरूद्ध संवैधानिक
एवम् विधिक प्रावधान - भारत
में
बाल
भिक्षावृति
समाप्त
करने
के
लिए
सरकार
और
संविधान
दोनों
के
द्वारा
कुछ
नियम
और
कानूनी
ढाँचे
बनाये
गएँ
हैं
जो
बाल
भिक्षावृत्ति
की
प्रथा
के
उन्मूलन
और
बच्चे
के
कल्याण
को
बढ़ावा
देता
है।
भारतीय संविधान, 14 वर्ष
की
आयु
तक
के
सभी
बच्चों
के
लिए
मुफ्त
और
अनिवार्य
शिक्षा
का
प्रावधान करता है[xi]
तथा
मानव
तस्करी
और
जबरन
श्रम
को
प्रतिबंधित
करता
है[xii]।
संविधान
में
यह कहा गया
है
कि
14 वर्ष से कम
उम्र
के
किसी
भी
बच्चे
को
किसी
कारखाने
या
खदान
में
काम
करने
के
लिए
या
किसी
अन्य
खतरनाक
रोजगार
में
नहीं
लगाया
जाएगा[xiii]।
यह
सुनिश्चित
करना
राज्य
का
दायित्व
है
कि
बच्चों
के
कम
उम्र
का
दुरुपयोग
न
हो
और
उन्हें
आर्थिक
आवश्यकता
से
मजबूर
होकर
भीख
मांगने
जैसे
व्यवसायों
में
प्रवेश
करने
के
लिए
मजबूर
न
होना
पड़े[xiv]।
बच्चों
को
स्वस्थ
वातावरण,
स्वतंत्रता
और
गरिमामय
स्तिथि
में
विकसित
होने
के
अवसर
और
सुविधाएं
प्रदान
की
जानी
चाहिए[xv]।
संविधान
के
अनुच्छेद
51A में यह
वर्णित
है
कि
माता-पिता
का
यह
दायित्व
है
कि
वे
अपने
बच्चों
को
शिक्षा
के
अवसर
प्रदान
करें।
इसलिए
यह
माना
गया
है
कि
माता-पिता
के
पास
अपने
बच्चों
को
शिक्षित
करने
के
लिए
पर्याप्त
वित्तीय
संसाधन
होने
चाहिए
।
लेकिन
दुर्भाग्य
से, जो
माता-पिता
स्वयं
भीख
मांग
रहे
हैं, उनके
पास
ऐसे
संसाधन
की
कमी
है[xvi]।
बाल
भिक्षावृत्ति
के
विरुद्ध
कोई
राष्ट्रीय
कानून
नहीं
है, लेकिन
यह
कई
भारतीय
राज्यों
और
केंद्र
शासित
प्रदेशों
में
अपराध
घोषित
है।
हालांकि, संविधान
के
अन्तर्गत
राज्य
सरकार
भिक्षावृत्ति
विरोधी
उपाय
करने
और
भिखारियों
का
पुनर्वास
सुनिश्चित
करने
के
लिए
उत्तरदायी
संस्था
हैं।
कुछ
केंद्र
शासित प्रदेशों सहित 22 राज्यों में
भिक्षावृत्ति
विरोधी
कानून
हैं।
बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट (बीपीबीए), 1959
सभी
राज्यों
के
भिक्षावृत्ति
विरोधी
कानूनों
के
मानक
के
रूप
में
कार्य
करता है।
इस
अधिनियम
के
अन्तर्गत
यदि
कोई
व्यक्ति
जिसे
पहले
किसी
प्रमाणित
संस्थान
में
हिरासत
में
रखा
गया
है, भीख
माँगता
हुआ
पाया
जाता
है, तो
उसे
तीन
साल
तक
की
हिरासत
की
सजा
दी
जा
सकती
है[xvii]।
अगर
दूसरी
बार
दोषी
ठहराया
जाता
है, तो
उसे
दस
साल
की
अवधि
के
लिए
हिरासत
में
रखा
जाएगा[xviii]।
बीपीबीए
के
अनुसार, जब
भिखारी
पांच
साल
से
कम
उम्र
का
बच्चा
है, तो
अदालत
बच्चे
को, बाल अधिनियम, 1960 के अनुसार
नियंत्रित
जाने
के
लिए
"बच्चों की अदालत," भेज देगी[xix]।
बीपीबीए
यह
घोषणा
करता
है
कि
अगर
किसी
बच्चे
का
हिरासत प्रभारी
या
देखभाल
करने
वाला
व्यक्ति
बच्चे
को
भिक्षा
मांगने
या
प्राप्त
करने
के
लिए
विवश
करता
है
या
प्रोत्साहित
करता
है
तो
उसे
एक
से
तीन
वर्ष
के
कारावास
की
अवधि
से
दंडित किया
जाएगा[xx]।
इसके
अतिरिक्त
भारतीय दंड संहिता के अनुसार
अगर
कोई
भी
व्यक्ति
भीख
मंगवाने
के
लिए
किसी
बच्चे
का
अपहरण
या
उसे
अपंग
करता
है
तो
उसे
10
साल
की
कैद
होगी[xxi]।
भारतीय
दंड
संहिता
यह
बताती
है
कि
एक
व्यक्ति
सार्वजनिक
उपद्रव
का
दोषी
है
यदि
वह
जनता
को
चोट, खतरा
या
झुंझलाहट
का
कारण
बनता
है।
यह
कानून
वहां
लागू
किया
जा
सकता
है
जहां
भीख
मांगते
हुए
पाए
जाने
वाले
व्यक्तियों
को
सार्वजनिक
उपद्रव
कारित
करने
का
दोषी
माना
जाता
है[xxii]।
बाल अधिनियम, 1960 में यह
प्रावधान
है
की
अगर
कोई
व्यक्ति
किसी
बच्चे
को
भीख
मांगने
के
लिए
काम
पर
रखता
है
या
उसे
भीख
मांगने
के
लिए
प्रेरित
करता
है
तो
वह
दंडनीय
होगा[xxiii]।
भारतीय रेलवे अधिनियम, 1989 फेरी लगाने
और
भीख
मांगने
पर
रोक
लगाती
है[xxiv]।
किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण अधिनियम), 2000 में
प्रावधान
है
कि
जो
कोई
भी
भीख
मांगने
के
उद्देश्य
से
किसी
किशोर
या
बच्चे
को
नियोजित
करता
है
या
उसका
उपयोग
करता
है
या
किसी
भी
किशोर
को
भीख
मांगने
के
लिए
प्रेरित
करता
है, उसे
तीन
साल
तक
की
कैद
हो
सकती
है
और
जुर्माना
भी
लगाया
जा
सकता
है[xxv]।
किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के तहत, श्रम
कानूनों
का
उल्लंघन
करके
काम
करते
हुए, भीख
मांगने
या
सड़कों
पर
रहने
वाले
बच्चे
को
'चाइल्ड
इन
नीड
ऑफ
केयर
एंड
प्रोटेक्शन' (सीएनसीपी)
कहा
जाता
है।
यह अधिनियम भीख मांगने
के
लिए
किशोर
या
बच्चे
के
नियोजन
को
अपराध
घोषित
करती
है।
इस
अपराध
के
लिए
पांच
साल
तक
की
कैद
या
100,000 रुपये के
जुर्माने
का
प्रावधान
है[xxvi]।
इसके
अतिरिक्त, "निराश्रित व्यक्ति
मॉडल
बिल,2016"
को
अक्टूबर
2016 में संसद में
पेश
किया
गया
था।
इस
बिल
का
उद्येश्य
भारत
के
भीख
मांगने
के
कानून
को
सजा
से
पुनर्वास
में
स्थानांतरित
करना
है, हालांकि
यह
गिरफ्तारी
पर
पूर्ण
प्रतिबंध
नहीं
लगाता
| परन्तु दुर्भाग्यवश
यह
बिल
संसद
में
आज
तक
पास
नही
हो
सका|
सन्
2018
में
दिल्ली हाईकोर्ट ने हर्ष
मंदेर बनाम भारत संघ[xxvii] और कार्निका शाहनी बनाम भारत संघ[xxviii]के वाद में भिक्षावृत्ति निरोधक कानून, को
खारिज
करते
हुए
कहा
कि
भिक्षावृत्ति
निरोधक
कानून
संविधान
के
अनुच्छेद
14
(विधि के समक्ष
समता)
एवं
अनुच्छेद
21
(प्राण एवं दैहिक
स्वतंत्रता
का
संरक्षण)
के
विरुद्ध
है।
केंद्र
सरकार
ने
भी
समर्थन
में
कहा
कि
भिक्षावृत्ति
अगर
गरीबी
के
कारण
की
जा
रही
है
तो
इसे
अपराध
नहीं
माना
जाना
चाहिए।
हालिया
मामला
कानून
3 मई, 2021 को, दिल्ली
उच्च
न्यायालय
ने
राष्ट्रीय
बाल
अधिकार
संरक्षण
आयोग
(एनसीपीसीआर), दिल्ली
सरकार, राष्ट्रीय
मानवाधिकार
आयोग
(एनएचआरसी) और
अन्य
को
एक
याचिका
पर
नोटिस
जारी
किया, जिसमें
उचित
कानून
बनाने
के
लिए
दिशा-निर्देश
मांगा
गया
था।
और
ट्रैफिक
सिग्नल
और
जंक्शनों
पर
बच्चों
की
भीख
मांगने
और
उत्पादों
की
बिक्री
को
रोकने
के
लिए
नीतियां।
न्यायमूर्ति
डीएन
पटेल
और
न्यायमूर्ति
जसमीत
सिंह
की
खंडपीठ
ने
एक
सामाजिक
कार्यकर्ता
और
दिल्ली
की
अदालतों
में
अभ्यास
करने
वाले
वकील
पीयूष
छाबड़ा
द्वारा
दायर
जनहित
याचिका
(पीआईएल) पर सभी
उत्तरदाताओं
से
जवाब
मांगा
और
मामले
को
स्थगित
कर
दिया।
याचिकाकर्ता
पीयूष
छाबड़ा
ने
भी
मांग
की
दिल्ली
की
सड़कों
पर
बच्चों
के
अधिकारों
की
रक्षा
करने
और
बाल
देखभाल
संस्थानों
में
बच्चों
के
लिए
उचित
व्यवस्था
करने
के
लिए
उत्तरदाताओं
को
निर्देश
जारी
करना।
याचिका
में
गली
में
बच्चों
की
भयानक
स्थितियों
को
रोकने
के
लिए
उचित
नीतियां/कानून
बनाने
के
निर्देश
भी
मांगे
गए
हैं।
बाल
भिक्षावृत्ति के
विरुद्ध भारत
का अंतर्राष्ट्रीय
दायित्व - भारत
सरकार
ने
1992
में
बाल
अधिकारों
पर
संयुक्त
राष्ट्र
सम्मेलन
(यूएनसीआरसी) की
पुष्टि
की।
यूएनसीआरसी
के
अनुरूप, भारत
सरकार
ने
किशोर
न्याय
(बच्चों की देखभाल
और
संरक्षण)
अधिनियम
2000
पारित
किया।
यूएनसीआरसी
से
पहले
बच्चे
का
कल्याण
और
बाल
अधिकारों
की
चिंताओं
पर
कई
अंतर्राष्ट्रीय
सम्मेलनों, मानकों
और
घोषणाओं
में
विचार
किया
गया
है।
अंतर्राष्ट्रीय
स्तर
पर
मानवाधिकारों
की
सार्वभौम
घोषणा,
1948 प्रत्येक ब्यक्ति
को
भोजन
का
अधिकार
प्रदान
करता
है
| अनुच्छेद 25 यह
घोषणा
करता
है
की
"प्रत्येक व्यक्ति
को
अपने
और
अपने
परिवार
के
स्वास्थ्य
तथा
हितवर्धन
के
लिए
अपेक्षित
जीवनस्तर, भोजन, वस्त्र, निवास, उपचार
और
आवश्यक
सामाजिक
सहायता
प्राप्त
करने
का
अधिकार
है”[xxix]
| यूडीएचआर के
बाद
कई
सम्मेलनों, बच्चों
को
प्रभावित
करने
वाली
घोषणाओं
को
अलग-अलग
समय
पर
पारित
किया
गया
है।
नागरिक
और
राजनीतिक
अधिकारों
पर
अंतर्राष्ट्रीय
प्रसंविदा
(आईसीसीपीआर), 1966 प्रदान करता
है
कि, प्रत्येक
बच्चा
जाति, रंग, लिंग, भाषा
के
भेदभाव
के
बिना
एक
नाबालिग
के
रूप
में
उसकी
स्थिति
के
लिए
आवश्यक
सुरक्षा
के
ऐसे
उपायों
के
अधिकार
का
हकदार
है।
धर्म, राष्ट्रीय
या
सामाजिक
मूल, संपत्ति
या
जन्म।
ICCPR
आगे
घोषणा
करता
है
कि
बच्चे
के
जन्म
से
पहले
और
बाद
में
माताओं
को
विशेष
सुरक्षा
दी
जानी
चाहिए।
बच्चों
को
सामाजिक
और
आर्थिक
शोषण
से
बचाना
चाहिए।
आईसीसीपीआर
के
प्रावधानों
के
अनुसार
ऐसे
काम
में
बच्चे
का
नियोजन
जो
हानिकारक
है
जैसे
भीख
मांगना
और
उनके
जीवन
और
स्वास्थ्य
के
लिए
खतरनाक
है, कानून
द्वारा
दंडनीय
होना
चाहिए।इसके
बाद
बालको
के
अधिकारों
और
कल्याण
के
सम्बन्ध
में
कई
अंतर्राष्ट्रीय
सम्मेलनों
और घोषणाओं
में
प्रावधान किया गया
है, जिसमें
से
कुछ
प्रमुख
इस
प्रकार
हैं:
किशोर
न्याय
प्रशासन
के
लिए
संयुक्त
राष्ट्र
मानक
न्यूनतम
नियम
(बीजिंग नियम), 1985, बाल अधिकारों
पर
संयुक्त
राष्ट्र
कन्वेंशन,1989, स्वतंत्रता
से
वंचित
किशोरों
के
संरक्षण
के
लिए
संयुक्त
राष्ट्र
नियम, 1990, अंतर्देशीय दत्तक
ग्रहण
पर
हेग
कन्वेंशन, 1993, मिलेनियम डेवलपमेंट
गोल्स, 2000 तथा बच्चों
के
लिए
उपयुक्त
विश्व, 2002 हालांकि, स्पष्टरूप
से
बाल
भिक्षावृत्ति
के
उन्मूलन
के
सम्बन्ध
कोई
भी
विशिष्ट
अंतरराष्ट्रीय
संधि
विद्यमान
नहीं
है।
बाल
अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन,1989, बालको को
अनेक
मूलभूत
अधिकार
प्रदान
करती
है,
जैसे:
जीवन
का
अधिकार[xxx],
सभी
प्रकार
की
शारीरिक
या
मानसिक
हिंसा,
यौन
शोषण
सहित
चोट, दुर्व्यवहार, उपेक्षा
या
उपेक्षापूर्ण
व्यवहार, शोषण
से
सुरक्षा[xxxi],
नशीली
दवाओं
और
मन:प्रभावी
पदार्थों
के
अवैध
उपयोग
से
सुरक्षा[xxxii]
और
बच्चे
के
कल्याण
के
किसी
भी
पहलू
पर
प्रतिकूल
प्रभाव
डालने
वाले
अन्य
सभी
प्रकार
के
शोषण
से
सुरक्षा
जिसमें
भीख
मांगना
शामिल
है[xxxiii]।
कन्वेंशन
का
अंतर्निहित
सिद्धांत
यह
है
कि
सार्वजनिक
या
निजी
सामाजिक
कल्याण
संस्थान, अदालतों, प्रशासनिक
अधिकारियों
या
विधायी
निकायों
द्वारा
बच्चों
से
संबंधित
किए
गए
सभी
कार्यों
में
बच्चों
के
सर्वोत्तम
हित
को
प्राथमिकता
दि
जानी
चाहिए[xxxiv]|
बाल
अधिकारों
पर
संयुक्त
राष्ट्र
सम्मेलन
(1989) को अपनाने
के
बाद
से
लगभग
32 वर्षों से अधिक
समय
ब्यतीत
हो
चुका
है, लेकिन
आज
तक
बच्चों
की
स्थिति
में
उल्लेखनीय
सुधार
नहीं
हुआ
है।
देश
में भिक्षावृत्ति
से संबन्धित
वर्तमान परिदृश्य
एवं कल्याणकारी योजनाएं - 2011 की
जनगणना
के
अनुसार, भारत
में
कुल
4,13,670 भिखारी
हैं, और
उनमें
से
कुल
45,296 बच्चे हैं
।
इनमें
से
अधिकांशतः
को
भिक्षावृत्ति
के
ब्यवसाय
में
जबरदस्ती
धकेल
दिया
जाता
है।
हर
दिन, उनके
साथ
मारपीट
की
जाती
है, उन्हें
डराया
जाता
है, नशीला
पदार्थ
दिया
जाता
है
और
भीख
मांगने
और
ड्रगपैडलर
के
रूपमें
काम
करने
के
लिए
मजबूर
किया
जाता
है।
भिखारियों
की
संख्या
की
सूची
में
पश्चिम
बंगाल
(75,083) प्रथम स्थान
पर,
उत्तर
प्रदेश
राज्य
(57,038) दुसरे स्थान
पर
और
मध्य
प्रदेश
(25,603) तीसरे स्थान
पर
आते
हैं।
महाराष्ट्र
(22,737), राजस्थान (22,548), गुजरात (12,584), झारखंड (9,817), छत्तीसगढ़ (9,355), हरियाणा (7,971), दिल्ली (2,073) और गोवा
(229) जैसे राज्यों
में
भी
भिखारियों
की
संख्या
निरंतर
बढ
रही
है।
बाल
भिखारियों
के
समूह
में
अधिकतर
झुग्गी-झोपड़ियों
में
रहने
वाले
बच्चे,
अप्रवासी
परिवारों
के
बच्चे,
विकलांग
बच्चे
और
जो
बच्चे
बेघर
हैं
उनकी
संख्या
बहुतायत
होती
है
| माफिया गिरोह ऐसे
हि
बच्चों
को
अपना
मुख्य
लक्ष्य
बनाते
हैं।
।
दिनांक
07/12/2021 को लोक
सभा
में
भारत
सरकार
के
सामाजिक
न्याय
एवं
सशक्तिकरण
मंत्री
माननीय
वीरेन्द्र
कुमार
जी
के
द्वारा
प्रस्तुत
राज्य-वार
जनगणना
2011 के विवरण के
अनुसार, भारत
में
14 वर्ष आयु तक
के
बाल
भिखारियों
की
कुल
संख्या
45296 है[i]।
शीर्ष
10 राज्यों में बाल
भिखारियों
की
संख्या
इस
प्रकार
है
:
तालिका
-1
भारत |
45296 |
उत्तर प्रदेश |
10167 |
राजस्थान |
7167 |
बिहार |
3396 |
पश्चिम बंगाल |
3216 |
आंध्र प्रदेश |
3128 |
महाराष्ट्र |
3026 |
मध्य प्रदेश |
2592 |
गुजरात |
1982 |
कर्नाटक |
1602 |
झारखण्ड |
1254 |
स्रोत: प्रेस सूचना ब्यूरो, भारत सरकार सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय[ii]|
कल्याणकारी
योजनाएं - सामाजिक
न्याय
और
अधिकारिता
मंत्रालय
ने
12
फरवरी, 2022
को
इस्माईल
योजना
की
शुरुआत
की
है।
इस योजना के तहत सामाजिक न्याय
और
अधिकारिता
मंत्रालय
ने
दिल्ली, पटना, नागपुर, इंदौर, हैदराबाद, बेंगलुरु
और
लखनऊ
सहित
देश
के
सात
शहरों
में
भीख
मांगने
के
कार्य
में
लगे
व्यक्तियों
के
व्यापक
पुनर्वास
पर
बल
दिया
है।
इस
योजना
के
तहत
भीख
मांगने
वाले
बच्चों
और
भीख
मांगने
के
कार्य
में
लगे
व्यक्तियों
के
बच्चों
को
आश्रय
गृह
में
शिक्षा की
सुविधा
प्रदान
की
जायेगी।
उत्तर
प्रदेश
सरकार
ने
वर्ष
2022
में
बाल भिखारियों के लिए एक विशेष पुनर्वास कार्यक्रम का शुभारम्भ किया है जिसके तहत बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा और सरकार
उनके
माता-पिता
को
नौकरी
भी
प्रदान
करेगी। कोविड महामारी
के
दौरान
राज्य
में
बाल
भिखारियों
की
संख्या
में
अत्यधिक
वृद्धि
देखी गई
थी।उत्तर
प्रदेश,
राज्य
बाल
अधिकार
संरक्षण
आयोग
के
अध्यक्ष
विशेष
गुप्ता
ने
कहा
है
कि
सभी
जिलों
में
बाल
भिखारियों
की
पहचान
की
गई
है
और
उनके
लिए
एक
विशेष
कार्यक्रम
लागू
किया
गया
है।
इस
विशेष
कार्यक्रम
के
तहत
भीख मांगने वाले बच्चों को
स्कूल
लौटने
के
लिए
प्रोत्साहित
किया
जाएगा, जबकि
सरकार
उनके
माता-पिता
को
नौकरी
देगी
ताकि
परिवारों
के
पास
आय
का
स्रोत
हो
और
बच्चों
को
भीख
न
मांगनी
पड़े।
साथ
ही
ऐसे
लोगों
के
खिलाफ
भी
कार्रवाई
की
जाएगी
जो
बच्चों
को
भीख
मांगने
के
लिए
मजबूर
करते
हैं।
रेस्क्यू
किये
गए
बच्चों
को
सरकारी
योजनाओं
से
जोड़ा
जाएगा।
प्रत्येक
जिले
में
एक
बाल
श्रम
पुनर्वास
कोष
भी
स्थापित
किया
जाएगा।
बच्चों
को
शिक्षा
की
मुख्य
धारा
में
लाने
के
लिए
बाल
श्रमिक
विद्या
योजना
की
शुरूआत
की
गई
है
और
मिशन
शक्ति
के
तहत
जरूरतमंद
परिवारों
के
बच्चों
को
इस
कार्यक्रम
से
लाभ
मिलेगा।
भीख
मांगने
वाले
बच्चों
के
माता-पिता
की
भी
काउंसलिंग
की
जायेगी
एवं
बच्चों
को
प्राथमिक
विद्यालयों
में
प्रवेश
दिया
जाएगा।
बच्चों
के
माता
पिता
को
कौशल प्रशिक्षण
दिया
जाएगा
एवं
पुरुषों
को
मनरेगा
से
भी
जोड़ा
जाएगा।
देश में भिक्षावृत्ति के कारण कानून के समक्ष उत्पन्न कुछ गंभीर चुनौतियां -
- राष्ट्रीय क्राइम ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रति 8 मिनट में एक बच्चा गायब हो जाता है जिसमें से 50% को पुलिस ट्रेस नहीं कर पाती[xxxvii]। इनमें से अधिकांश बच्चों को संगठित अपराध में लिप्त संगठनों के द्वारा पोर्नोग्राफी, वेश्यावृत्ति, मानव अंगों के अवैध व्यापार समेत भिक्षावृत्ति में ढकेल दिया जाता है।
- भिक्षावृत्ति से जुड़े नाबालिगों का प्रयोग संगठित अपराध समूह के द्वारा कई अवैध गतिविधियों में करते हैं। उदाहरण के लिए ड्रग पेडलर, अवैध हथियारों की आवाजाही, पुलिस या अन्य की निगरानी, चोरी समेत अन्य छोटे-मोटे अपराधों इत्यादि में[xxxviii]।
- इसके साथ ही कई मामलों में ऐसा देखा गया है कि हत्या लूट जैसे गंभीर मामलों में भी भिक्षावृत्ति में शामिल नाबालिगों का प्रयोग किया जाता है क्योंकि नाबालिगों के लिए कानून कठोर नहीं होते हैं और पकड़े जाने के बावजूद वह आसानी से कुछ समय बाद मामूली सजा काट कर वापस लौट आते हैं।
- इसके साथ ही भिक्षावृत्ति से जुड़े उन लोगों का मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न किया जाता है जो कि गंभीर चिंता का विषय है।
निष्कर्ष
एवं समाधान : उपरोक्त
तथ्यों
से
स्पष्ट
है
कि
दिल्ली, मुम्बई
व
कोलकाता
जैसे
मेट्रो
सिटी
में
ही
बाल
भिक्षावृत्ति
की
समस्या
घर
किये
हुए
नहीं
है, बल्कि
इसने
कमोबेश
रूप
से
पूरे
देश
में
पैर
पसारे
हैं।
वास्तव
में
हमारे देश भारत
में
भीख
मांगना
और
भीख
देना
पौराणिक
कर्म
है।
यहाँ
भिक्षा
लेना
अथवा
मांगना
बुरा
नहीं
माना
जाता, बल्कि
इसे
दान
की
श्रेणी
में
रखा
जाता
है।
यही
कारण
है
कि
हमारे
यहाँ
बाल
भिक्षुकों
की
संख्या
में
निरन्तर
वृद्धि
हो
रही
है।
हमारे
यहाँ
प्रत्येक
स्थान
पर
बाल
भिक्षुक
देखे
जा
सकते
हैं।
तीर्थ
स्थानों, धार्मिक
स्थलों, मंदिरों
में
तो
यह
बहुत
अधिक
संख्या
में
पाये
जाते
हैं।
सड़कों, चौराहों, पर्यटन
स्थलों
और
बाजारों
में
भी
भिक्षावृत्ति
का
साम्राज्य
है।
आज
भिक्षावृत्ति
ने
एक
व्यवसाय
का
रूप
ले
लिया
है
| दया, सहानुभूति जैसी
मानवीय
भावनाओं
का
लाभ
उठा
कर
भिक्षावृत्ति
का
व्यवसाय
फल
फूल
रहा
है,
जिसमें
भिक्षा
माफिया
गिरोह,
मजबूती
से
अपना
साम्राज्य
स्थापित
कर
बच्चों
का
शोषण
कर
रहे
हैं| भारत में
बाल भिक्षावृत्ति के अपराध को रोकने के
लिये
अनगिनत
कानून
बनाये
गये
हैं,
फिर
भी
हमें
चौराहों
एवं
बाजारों
में
बड़ी
संख्या
में
बाल
भिखारी
दिखाई
देते
हैं।
ऐसे
में
यह
प्रश्न
अवश्य
किया
जाना
चाहिए
कि
बाल भिक्षावृत्ति
के
अपराध
को
रोकने
में
कमी
कहां
हो
रही
है
?
चूँकि
भिक्षावृत्ति
की
समस्या
से
निपटने
वाला
कोई
एक
विशिष्ट
विभाग
नहीं
है, जिसका
परिणाम
यह
होता
है
कि
प्रत्येक
विभाग
दूसरे
पर
जिम्मेदारी
डालता
है।
समस्या
का
परिमाण
और
आयाम
इतना
बड़ा
और
विविध
है
कि
कोई
भी
विभाग
इस
समस्या
को
हल
करने
में
अकेला
सफल
नहीं
हो
सकता।
बाल
भिक्षावृत्ति
के
खतरे
से
निपटने
के
लिए
पुलिस
विभाग, स्वास्थ्य
विभाग, रेलवे
विभाग, समाज
कल्याण
विभाग, तथा
स्वैच्छिक
क्षेत्र
के
पदाधिकारियों
और
समाज
के
नागरिकों
को
एक
दूसरे
के
साथ
समन्वय
और
सहयोग
करने
की
आवश्यकता
है।
अंतर-विभागीय
और
अंतर-मंत्रालयी
समन्वय
के
विभिन्न
स्तरों
पर
नीतियों
के
प्रभावी
कार्यान्वयन
के
लिए
तौर-तरीके
विकसित
किए
जाने
की
आवश्यकता
है
| इसलिए सरकार को
बाल
भिक्षावृति
को
खत्म
करने
के
लिए
और
शक्त
कानून
बनाने
होंगे
और
साथ
ही
साथ
देश
के
विधि
क्रियान्वयन
विभाग
को
और
भी
मजबूत
करना
होगा|
सरकार
को
देशव्यापी
स्तर
पर
बाल
भिखारियों
की
जनगणना
करके, उनको
एक
बायोमेट्रिक
पहचान
से
संलग्नित
करना
होगा।
तत्पश्चात्
बाल
भिखारियों
के
लिए
एक
विशेष
पुनर्वास
कार्यक्रम
तैयार
किया
जाना
चाहिए
जिसके
तहत
बच्चों
को
शिक्षा
प्राप्त
करने
के
लिए
प्रोत्साहित
किया
जाय|
इसके
बाद
उनकी
क्षमताओं
के
मुताबिक
कौशल
विकास
करके
निजी
या
सरकारी
संस्थानों
में
रोजगार
के
अवसर
उपलब्ध
कराना
चाहिए।
इसके साथ हि
हमें समाज में
इसके
प्रति
लोगों
के
बिच
जागरूकता
फैलानी
होगी, जहाँ
हम
सबके
भागीदारी
से
बाल
भिक्षावृति
को
खत्म
करने
में
आसानी
होगी।
संदर्भ :- अहमद,
रूमी, "भारत
में विकलांग
व्यक्तियों के
अधिकार: एक
महत्वपूर्ण विश्लेषण"
(व्हाइट फाल्कन
प्रकाशन, 2015)
- बाजपेयी, आशा, चाइल्ड
राइट्स इन
इण्डिया, (आक्सफोर्ड
यूनिवर्सिटी प्रेस,
नई दिल्ली,
तृतीय संस्करण,2017)
- डॉ.
भाखरी, सविता,
"चिल्ड्रन
इन इंडिया
एंड देयर
राइट्स",
19 (राष्ट्रीय
मानवाधिकार आयोग,
नई दिल्ली,
2006).
- चोपरा, गीता,
"चाइल्ड
राइट्स इन
इण्डिया; चैलेन्जेज
एंड शोसल
एक्शन", (स्प्रिंजर पब्लिकेशन,
लन्दन,2015)
- गोयल,
ए, "भारतीय
भिखारी विरोधी
कानून और
राम लखन
बनाम राज्य
के विशेष
संदर्भ के
साथ मौलिक
अधिकारों के
चश्मे के
माध्यम से
उनकी संवैधानिकता",
वॉल्यूम 11,
एशिया पैसिफिक
जर्नल ऑन
ह्यूमन राइट्स
एंड द
लॉ, (2010)
- जोगन शंकर (संपा.), "सोशल प्रॉब्लम एंड वेलफेयर इन इंडिया", (आशीष पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली, 1992)
- कौशिक, अनुपमा, "राइट्स ऑफ चिल्ड्रेन: ए केस स्टडी ऑफ चाइल्ड बेगर्स एट पब्लिक प्लेसेज इन इंडिया", 2, जेएसडब्ल्यूएचआर, 105(2014)
- रेड्डी, सी.एस., "बेगिंग एंड इट्स मोज़ेक डाइमेंशन्स: सम प्रिलिमिनरी ऑब्जर्वेशन्स इन कडप्पा डिस्ट्रिक्ट ऑफ़ आंध्र प्रदेश" 4 एएजेएसएस (2013)
- शीहान, रोज़मेरी और रोड्स, हेलेन, "वल्नरेबल चिल्ड्रन एंड द लॉ",78(जेसिका किंग्सले पब्लिशर्स,लंदन और फिलाडेल्फिया,2012)
- सिंह, अवधेश कुमार, "विकलांगों के अधिकार: परिप्रेक्ष्य कानूनी संरक्षण और मुद्दे" (सीरियल प्रकाशन नई दिल्ली, 2008)
- ताइवोआ, आमोस, "इबादान मेट्रोपोलिस, नाइजीरिया में विकलांगों के साथ रहने वाले लोगों के बीच स्ट्रीट बेगिंग के कारणों और प्रभावों का गंभीर विश्लेषण", 2 IJARSSEST (2016)
- वेल्स, मैथ्यू, "ऑफ द बैक ऑफ द चिल्ड्रन: फोर्स्ड बेगिंग एंड अदर एब्यूज अगेंस्ट टैलिब्स इन सेनेगल", (ह्यूमन राइट्स वॉच, न्यूयॉर्क, 2010)।
रिपोर्ट :- भिखारी
जनसंख्या का
सशक्तिकरण, 2003, प्रेस
सूचना ब्यूरो,
भारत सरकार
सामाजिक न्याय
और अधिकारिता
मंत्रालय।
- भारत की जनगणना, 2011, रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त का कार्यालय, भारत, गृह मंत्रालय, भारत सरकार।
- भारत
में गुमशुदा
महिलाओं और
बच्चों पर
रिपोर्ट, 2016, राष्ट्रीय
अपराध रिकॉर्ड
ब्यूरो, गृह
मंत्रालय, भारत
सरकार।
[i] गीता चोपडा, "चाइल्ड राइट्स इन इण्डिया;
चैलेन्जेज एंड शोसल एक्शन", स्प्रिंजर पब्लिकेशन,लन्दन,वॉल्यूम, 2015, पृoसं 35.
[ii] आशा बाजपेयी, चाइल्ड राइट्स इन इण्डिया,आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, नई दिल्ली, 3rd संस्करण,2017, पृoसं 880.
[iii] भारत में गुमशुदा महिलाओं और बच्चों पर रिपोर्ट, 2016, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, गृह मंत्रालय, भारत सरकार, https://ncrb.gov.in/sites/default/files/missingpage-merged.pdf,23/12/2022,7pm
[iv] सी.एस.रेड्डी, "बेगिंग एंड इट्स मोज़ेक डाइमेंशन्स: सम प्रिलिमिनरी ऑब्जर्वेशन्स इन कडप्पा डिस्ट्रिक्ट ऑफ़ आंध्र प्रदेश" 4 एएजेएसएस (2013), https://www.academia.edu/32239716/BEGGING_AND_ITS_MOSAIC_DIME NSIONS _SOME_PRELIMINARY_OBSERVATIONS_IN_KADAPA_DISTRICT_OF_ANDHRA_PRADESH,20/11/22,3pm.
[v] रूमी अहमद,"राइट्स ऑफ पर्सन्स विद डिसेबिलिटी इन इण्डिया: अ क्रिटिकल एनालिसिस", व्हाइट फाल्कन प्रकाशन,2015, पृoसं 177.
[vi] बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1959, धारा 2.
[vii] ध्येय आई. ए. एस., भारत में भिक्षावृत्ति: एक समग्र अवलोकन,https://www.Dhyeyaias.com/hindi/current-affairs/articles/begging-in-India-a-comprehensive-overview,23/12/ 2022, 7pm.
[viii] शंकर जोगन, "सोशल प्रॉब्लम एंड वेलफेयर इन इंडिया",आशीष पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली, 1992,पृoसं 277.
[ix] डॉ. सविता भाखरी, "चिल्ड्रन
इन इंडिया एंड देयर राइट्स", राष्ट्रीय
मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली, 2006, पृoसं 19.
[x] रोज़मेरी शीहान और हेलेन रोड्स,"वल्नरेबल
चिल्ड्रन एंड द लॉ",जेसिका किंग्सले
पब्लिशर्स,लंदन और फिलाडेल्फिया,2012, पृoसं 78.
[xi] भारतीय संविधान,1950, अनुच्छेद 21ए.
[xii] पूर्ववत, अनुच्छेद 23.
[xiii] पूर्ववत, अनुच्छेद 24.
[xiv] पूर्ववत, अनुच्छेद 39-ई.
[xv] पूर्ववत, अनुच्छेद 39AF.
[xvi] ए.गोयल , "भारतीय भिखारी विरोधी कानून और राम लखन बनाम राज्य के विशेष संदर्भ के साथ मौलिक अधिकारों के चश्मे के माध्यम से उनकी संवैधानिकता", वॉल्यूम 11, एशिया पैसिफिक जर्नल ऑन ह्यूमन राइट्स एंड द लॉ,2010.
[xvii] बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट,1959,धारा 5(5).
[xviii] पूर्ववत,धारा 6.
[xix] पूर्ववत,धारा 5(9).
[xx] पूर्ववत,धारा 11.
[xxi] भारतीय दंड संहिता, 1860, धारा 363ए.
[xxii] पूर्ववत,धारा 268.
[xxiii] बाल अधिनियम, 1960, धारा 42.
[xxiv] भारतीय रेलवे अधिनियम, 1989, धारा 144.
[xxv] किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण अधिनियम 2000, धारा 24 (1)
[xxvi] किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015, धारा 76.
[xxvii] दिल्ली हाईकोर्ट W.P.(C)Nos.10498/2009
& 1630/2015
[xxviii] दिल्ली हाईकोर्ट CM APPL. 1837/2010
[xxix] मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा,1948, अनुच्छेद 25.
[xxx] बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन,1989, अनुच्छेद 6.
[xxxi] पूर्ववत, अनुच्छेद 19.
[xxxii] पूर्ववत, अनुच्छेद 33.
[xxxiii] पूर्ववत, अनुच्छेद 36.
[xxxiv] पूर्ववत, अनुच्छेद 3.1.
[xxxv] भारत की जनगणना, 2011, रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त का कार्यालय, भारत, गृह मंत्रालय, भारत सरकार,
https://censusindia.gov. in/census. website/census,20/12/2022, 9pm.
[xxxvi] प्रेस सूचना ब्यूरो, भारत सरकार सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, "भिखारी जनसंख्या का सशक्तिकरण" (2013),https://pib.gov.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=115990,23/12/2022,7pm.
[xxxvii] भारत में गुमशुदा महिलाओं और बच्चों पर रिपोर्ट, 2016, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, गृह मंत्रालय, भारत सरकार, https://ncrb.gov.in/sites/default/files/missingpage-merged.pdf,27/12/2022, 6pm.
[xxxviii] अवधेश कुमार सिंह, "विकलांगों के अधिकार: परिप्रेक्ष्य कानूनी संरक्षण और मुद्दे" 75(सीरियल प्रकाशन नई दिल्ली, 2008, पृoसं 75.
शोध छात्र, मानव अधिकार विभाग, बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ
yogendratripathi1989@gmail.com, 08423928495
एसोसिएट प्रोफेसर, मानव अधिकार विभाग, बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ
Rashidaather.bbau@gmail.com
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