शोध आलेख : जीवन यथार्थ को समग्रता से परिभाषित करने वाले कथाकार : हबीब कैफ़ी / डॉ. मन्दाकिनी शेखावत

जीवन यथार्थ को समग्रता से परिभाषित करने वाले कथाकार : हबीब कैफ़ी
- डॉ. मन्दाकिनी शेखावत

शोध सार : हिन्दी कहानी आन्दोलनों में समांतर कहानी आंदोलन की विशेष भूमिका रही है। इस कहानी आन्दोलन की प्रमुख विशेषता यह रही कि इसके जरिये से देशभर से उन लेखकों की तरफ पाठकों आलोचकों काध्यान गया जो देश के छोटे-छोटे शहरों में बैठकर अपने समय समाज के यथार्थ को करीब से देखते हुए लिख रहे थे। राजस्थान से आलम शाह खान जितेन्द्र भाटिया के अलावा हबीब कैफ़ी का नाम इस आन्दोलन से जोड़ा जाता है। हबीब कैफ़ी ने चारों कहानी संग्रहों के जरिये कहानी की लम्बी यात्रा तय की हैं। उन्होंने अपनी कहानियों के माध्यम से आजादी के बाद विकास और गरीबी के बीच आम आदमी की जो लाचारगी है, उसे बेहतर तरीके से अभिव्यक्त किया है। इसलिए हबीब कैफी की कहानियों को पढ़ते हुए पाठक ना तो बेचैन होता है, ना ही चमकृत होता है बल्कि उसे पढ़ते हुए उस परिवेश के प्रति गंभीर होता जाता है। उसे अपने संक्रमण समय कीधुंध' के बीच उससत्य' की झलक दिखाई देती है। उसे फिर मनुष्य केविश्वास' पर विश्वास होने लगता है जो कहीं दबा दिया गया है।

बीज शब्द : हिंदी कहानी, समांतर कहानी आंदोलन, निम्नमध्यमवर्गीय, सर्वहारा, मजदूर, स्त्री, शोषण, साम्प्रदायिकता, वंचित वर्ग, ग्राउंड रिपोर्ट, जीवन यथार्थ।

मूल आलेख : कहानी अपने आप में इतिहास है, जो इतिहास बन जाता है वह अपने समय की कहानी भी बन जाता है। उस कालखंड के बिखरते बनते हुए इतिहास को कहानीकार अपनी कहानी में कहता है। वह केवल इतिहास कहता है बल्कि मनुष्यता के प्रति, देश के प्रति, समाज के प्रति अपनी मानवीय, नागरिक सामाजिक प्रतिबद्धता को भी व्यक्त करता है। यह प्रतिबद्धता ही उसे अपने भोगे देखे गये यथार्थ को रचने के लिए व्याकुल करती है। तभी तो वह अपने रचाव में उस सड़ांध को, उन षडयंत्रों को और दुश्चक्रों को व्यक्त कर पाता है जिसे मानव सदियों से भुगत रहा है।

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद कहानी ने जो करवट बदली उसने हिंदी कहानी को भी प्रभावित किया। आजादी के सपनों में खोई देश की कहानी को कहानीकारों ने नई कहानी के रूप में देखा था,जो अलग-अलग आंदोलनों से होती हुई आज हमारे सामने हैं। इन्हीं आंदोलनों में से कमलेश्वर का समांतर कहानी आंदोलन था, जिसने सीधे ही उस आदमी से अपने को जोड़ने का प्रयास किया जो अब तक केंद्र में नहीं था।

1971 से शुरू हुआ यह आंदोलन सारिका के विशेषांकों में 1974 तक विकसित हुआ। समांतर कहानी आंदोलन वह दौर था जब लेखक अपने समय और परिवेश के समानांतर सोचता हुआ कहानी लिख रहा था। इस आंदोलन सेआम आदमी' के वे कहानीकार निकल कर सामने आए जो खुद आम आदमी के संघर्ष में न्यूनाधिक हिस्सेदार थे। साठ के बाद बदली हुई परिस्थितियों में हाशिये के लोग कहानीकारों की नजर में आए।असल में यह आंदोलन विशेषकर विषमतामूलक समाज में जी रहे वंचित तबके की आवाज था। इसने आम आदमी के संघर्ष के साथ- साथ उन निहित कारणों पर भी चोट की जिनकी वजह से वह आजादी के लंबे समय के बाद भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित था। एक तरफ आदमी व्यवस्था से दूसरी तरफ सामाजिक जनसमूहों से संघर्षरत था, उस समय इस समानांतर आंदोलन ने उसकी इस असंगत आवाज को एक अभिव्यक्ति दी। इसने समग्रता के साथ उस तंत्र की तह में जाकर कारणों को खोजा। इस आंदोलन ने उस सर्जनात्मक कोशिश को हिंदी पाठक के सामने लाया जिसे उस दौर के लेखक अपने जीवंत अनुभवों के माध्यम से लिख रहे थे।

आलोचक नीरज खरे का मानना है कि आठवें दशक के तीनों कहानी आन्दोलन की मूल संवेदना और दृष्टि में कोई मूलभूत अंतर नहीं है इनमें जनवादी कहानी का ही मिलाजुला रूप था। इसे यथार्थवादी धारा को पुनस्थापित करने का प्रयास भी कहा जाता है।”1 वैसे तो इस आंदोलन के प्रमुख कहानीकारों के रूप में कामतानाथ, से.रा. यात्री, सूर्यबाला, जितेन्द्र भाटिया, मधुकर सिंह, इब्राहिम शरीफ़, सुदीप, दामोदर सदन, सनत कुमार कामतानाथ, रमेश उपाध्याय, मिथिलेश्वर, निरूपमा सेवती और आलम शाह खान आदि नाम लिए जाते हैं। पर इस आंदोलन की महत्वपूर्ण विशेषता यह रही कि इसने देश भर के छोटे शहरों के उन लेखकों को भी जगह दी जो देश कि अलग-अलग जगहों पर जिंदगी से सीधी मुठभेड़ करते हुए जीवन के यथार्थ को कहानी में परिभाषित कर रहे थे। यह कहानी आंदोलन अपने समय की एक प्रयोगशील प्रक्रिया का हिस्सा था, जिसने जीवन के यथार्थ को अभिव्यक्त करते हुए लेखकीय प्रतिबद्धता को जवाबदेह बनाया। आलोचक अशोक जैरथ अपने लेखआधुनिक कहानी और प्रयोग की प्रक्रिया में लिखते हैं कि अब कहानी मनुष्य को उसके परिवेश में अन्वेषित कर आम आदमी को अन्वेषित करती है।”2

इसी समांतर कहानी आंदोलन में राजस्थान से जितेन्द्र भाटिया, आलमशाह खान और हबीब कैफ़ी का नाम लिया जाता है। हबीब कैफ़ी की समानान्तर कहानी आंदोलन से देशभर में एक अलग पहचान बनी। उनके पराजित विजेता, बतीसवीं तारीख़, प्रतिनिधि कहानियाँ मेरी प्रिय कथाएं चार कहानी संग्रह हैं। कहानी संग्रह के अलावा उनके आठ उपन्यास भी चुके हैं। कालांतर में उनकी कहानियों पर फिल्में, लघुफ़िल्में, नाटक भी मंचित हुए। वे हिंदी उर्दू में बतौर गज़लकार भी जाने जाते हैं हालांकि इस लेख को उनकी कहानी रचना तक केंद्रित रखने की कोशिश है।

कमलेश्वर लिखते हैं कि हबीब कैफी की कहानियाँ अपने समय की वे कहानियाँ हैं जो काल का उल्लंघन नहीं करती बल्कि अपने समय को ही मुखर तरीके से उन स्थितियों के साथ अभिव्यक्त करती है, जिसमें उस समय का आम आदमी जूझ रहा था। एक सफल कहानीकार की यही पहचान होती है कि वह अपने समय को अपने लेखन में कितने प्रभावी ढंग से दर्ज करता है। इसलिए ये कहानियाँ भविष्य में भी उस समय को समझने के लिए इतिहास की तरह काम आएगी। 3 हबीब कैफ़ी की कहानियों के बारे में कहानीकार स्वयं प्रकाश कहते हैं - "हबीब की स्टाइल का केंद्रीय बिंदु यह है कि वह दिखाने से ज्यादा छिपाने में यकीन करते हैं। जितना कहेंगे उससे ज्यादा नहीं कहेंगे। उनकी पंक्तियों को थोड़े अंतराल में उसे दोबारा पढ़िए और आपको दिखाई देगा कि पंक्तियों के बीच भी काफी कुछ लिखा हुआ है जो शब्दों में नहीं है, उनसे संकेतित है। हबीब आपको इशारे से उस कथालोक में आने की दावत दे रहे हैं यदि आपके पास समय, धैर्य और सलाहियत है तो ये आपके लिए है।" 4

हबीब कैफी की कहानियों के अधिकांश पात्र निम्न मध्यमवर्गीय हैं जो अपने आसपास बनती नई दुनिया से अलग-थलग अनजान है। जो अभी भी जीवन की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने में ही व्यतीत होता जा रहा है। उसव्यतीत' होने के बीचअव्यतीत' है, उसको देखने की चेष्टा करती है ये सारी कहानियां। चारों कहानी संग्रहों से गुजरते हुए लेखक और पाठक स्वयं को उपस्थित पाते हुए उस मानवीय संकट से आत्मसात करता है। जिसे बरसों पहले हबीब कैफ़ी ने पहचान लिया था।

कमलेश्वर नेसारिका' के अक्टूबर (1974 ईस्वी) अंक में आम आदमी की चर्चा करते हुए लिखा है कि'यह पूरा देश अब एक भयंकर दलदल बन चुका है और इसे दलदल बनाने वाले लोग प्राचीरों-परकोटों पर जाकर बैठ गए हैं और दलदल में फंसते, दम तोड़ते आम आदमी का मरण उत्सव मना रहे हैं...'' फिर उपाय क्या है?कमलेश्वर ने इसी संपादकीय में लिखा है कि इतिहास जब नंगा हो जाता है तो संपूर्ण संघर्ष के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह जाता...'' 5 यही बात हबीब कैफ़ी की कहानीखाये पिये लोग' में सूत्रधार कहता है -" हद तो यह कि टी.वी. के विभिन्न चैनलों पर दिखाए जाने वाले धारावाहिकों के कथानक इन्हीं के जीवन शैली,राग-द्वेष आदि को दर्शाते थे। अधिसंख्य लोगों को लुभाने और ललचाने वाले विज्ञापनों में दिखाई जाने वाली महंगी और आकर्षक चीजों के असल खरीददार यही लोग थे। थोड़े में अगर कहा जाए तो यह खाये पिए लोग थे।" 6 सूत्रधार की यह बात 2022 में भी ताईद करती है कि हबीब कैफ़ी की कहानियां उस परिवेश के मानवीय संकट को अभिव्यक्त करती हुई अपने वर्तमान से जोड़ती हैं। हबीब कैफ़ी का नाम कहानी विधा में उन केंद्रीय लेखकों में से लिया जाता है जिन्होंने हमेशा जिम्मेदार लेखन के लिए अपने को प्रतिबद्ध पाया। इसी प्रतिबद्धता के चलते अपनी कहानियों में कैफ़ी ने मनुष्य जीवन के संघर्ष के आग्रहमूलकता को प्रतिपादित किया, उन्होंने अपने परिवेश में अस्तित्व के लिए संघर्ष करते आदमी को आवाज़ दी है। सर्वहारा की इस आवाज की अनुगूंज उनके सभी कहानी संग्रहों में दिखाई देती है। यह कहानियां उस दौर की कहानियां हैं जब मानवीय परिवेश पर चारों तरफ से दबाव पड़ रहा था।

उनकी एक कहानी हैइसर' फुटपाथ पर रहने वाला व्यक्ति एक लड़की को हवस का शिकार बनाता है बाद में उसे बतौर पत्नी रख लेता है जो गर्भवती हो जाती है। वह अपना खून बेच कर पैसा लाता है लेकिन रास्ते में उसे जुआ खेलकर गवां देता है। साथी जुआरियों से कहता है- "कसम से कहता हूँ अपना खून बेचकर रुपए लाया था। बीवी बच्चा जनने वाली है, बच्चे भूखे हैं।" 7

तब जुआरी दो रुपये देते हैं वह सोचता है दो रुपये में क्या जाया का होगा, क्या बच्चों का। वह उसकी दारु पी लेता है। हमारे समय की महान कहानीकफन' के पात्र किस तरह समय और जगह बदल कर सारी नैतिकता को ताक में रखकर भूख के आगे आज भी वैसे ही खड़े दिखाई देते हैं। किसी कहानी की सार्थकता यही है कि वह हमारे जीवन की छोटी से छोटी घटना में किस तरह जीवन का अर्थ खोजती है। हबीब कैफ़ी के पास यही कला है कि वे अपने पात्रों के जीवन से छोटी-छोटी घटनाओं के बीच उनके जीवन की सार्थकता पर बात करते हुए नजर आते हैं।

कई बार कहानीकार इतिहास या भविष्य को लेकर नहीं सोचता बल्कि वह अपने परिवेश के वर्तमान को लेकर कमिटेड होता है। वह बारीकी से देखता है कि वर्तमान किस तरह भविष्य में और भविष्य कैसे जल्दी से इतिहास बन जाता है। उनकी एक महत्त्वपूर्ण चर्चित कहानी है -’भाई' किस तरह बाज़ार के साथ हमारे परसेप्शन बदल जाते हैं और उसके साथ ही संबंध भी। बड़ी ही इंटेंसिटी के साथ लिखी गई है यह कहानी,जिसकी गूंज लंबे समय तक बनी रहती है। इस कहानी ने हबीब कैफ़ी की रेंज को तय किया। किसी रचनाकार की रचनाओं पर जब समग्रता से बात की जाती है तब यह प्रमुख रूप से सामने आता है कि जो लेखक अपने जमीनी जुड़ाव से लिखता है तो उसका सारा लेखन जीवंत लगता है। उसकी स्थानीयता ही उसे वैश्विकता में बदलती है।

हबीब कैफ़ी का पूरा गद्य लेखन अपने आसपास के पात्रों की मूल मानवीय संवेदनाएँ लिए हुए हैं।वे अनुभवों से गुजरते हुए लिख रहे थे, इसलिए इन कहानियों में स्थानीयता आंचलिकता भरपूर रही थी। यही स्थानीयता उन्हें विशिष्ट बनाती है। कमलेश्वर का खुद का मानना था कि "आंचलिक कहानियां बाजारवाद का जवाब है। अपने अंतःकरण के सच को अभिव्यक्त करने की अनूठी कला इनके पास है। अंचल की कहानियों में वैश्विक सोच और प्रतिरोध का स्वर दोनों है।" 8

ढाणी में प्रकाश' कहानी रेगिस्तान में अभाव से ग्रस्त लोगों की जीवंतता और भावों की कहानी है। यह कहानी उन पात्रों का प्रतिनिधित्व करती है जो तमाम दुखों और अभावों के बाद भी अपने भीतर मानवीय मूल्यों को बचाए हुए है। इस कहानी में रेगिस्तान के परिवेश राजस्थानी के शब्दों का जिस तरह प्रयोग किया है उससे यह कहानी और भी बेहतरीन बनती है। अस्सीके दशक के कहानीकारों के यहां प्रगतिशील जनवादी सोच दिखाई देती है। कई कहानीकारों के यहाँ तो जनवादी कहानीकार होने के दबाव में कहानी में विचार का उभार ज्यादा दिखाई देता है लेकिन जनवादी कहानीकार हबीब कैफ़ी के यहां कहानी में से विचार होता है, ना की विचार से कहानी बुनी जाती है। प्रगतिशील मानवीय संवेदना की भाव भूमि के कहानीकार है हबीब कैफ़ी। अपने पात्रों का, घटनाओं का विवरण उर्दू मिश्रित हिंदी ज़बान से करते हैं तो पाठक के सामने पात्र जीवंत हो उठते हैं। वे डिटेल्स कम, घटना पात्रों से कहानी को आगे बढ़ाते हैं। उनकी कहानीअंगूर' फैंटेसी कहानी है। जिसमें उर्दू शब्दों का भरपूर इस्तेमाल किया है लेकिन उनका कसा हुआ कथानक पाठक को अंत तक बांधे रखता है। उनके पास दो ज़बान है तो कई बोलियां-राजस्थानी, सिंधी। वे पात्रानुकूल बोली से अपना रचनात्मक जादू रचते हैं। इसी तरह की एक कहानीउधार' सदियों से पूंजीवादी व्यवस्था में पीसते मजदूर की कहानी। जिसकेभीतर से उठता प्रतिशोध है तो साथ ही मार्मिकता भी। स्थानीय बोली के पुट की वजह से वे निम्न वर्गीय पात्र के भीतरी आक्रोश को कहानी में बेहतर तरीके से ढालते हैं।

आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी कहते हैं "साहित्य का जनतंत्र केवल इतिहास की ही चिंता नहीं करता।वह इतिहास की दौड़ में पीछे रह जाने वाले की भी चिंता करता है।" 9 स्वर्णिम अतीत को याद करके वर्तमान के दुख को कम करने की चेष्टा करते लोगों की कहानी है-’मुगल काल की याद' इतिहास की बल्लियों के सहारे जर्जर वर्तमान को कब तक ठहरा पाते हैं। उन्होंने बेहद बारीकी से उन समाजों के मनोविज्ञान को अभिव्यक्त किया है जिनकी कोहनियों पर इतिहास का गुड़ लगा कर वर्तमान की दौड़ से उन्हें पीछे कर रखा है।

हिंदी कहानी में किसान मजदूर कहानी को एक मानकर हमेशा से आकलन किया जाता रहा है। इससे हुआ यह कि किसान आधारित कहानियाँ ही प्रमुख रूप से सामने आती है लेकिन मजदूरों के जीवन दशा को अभिव्यक्त करती कहानियों पर बहुत कम बात हो पाई। हबीब कैफ़ी के कहानी संग्रहों से गुजरते हुए यह विशेष रूप से पाया कि वे सच्चे अर्थों में उस मजदूर तबके की आवाज के कहानीकार है। उन्होंने विशेषकर खान-खदानों में काम करने वाले मजदूरों के शोषण उनकी दयनीय जीवन की व्यथा को कथा में कहा है। आज भी मजदूर हाशिये पर खड़ा है। उसकी दशा पर प्रतिरोध के तौर पर जो मुकम्मल कहानियाँ लिखी गई है उनमें से हबीब कैफ़ी की कहानीवे तीन'

हबीब कैफी की कहानियाँ जिसके लिए जानी जाती हैं वह है उनका मिजाज। उनकी कहानियों में कहीं दुराव, छिपाव या चालाकी नहीं है। इसी कहानी में दुकान मालिक कहता है-’' सियामियां इन चोट्टों को थप्पड़ मार कर भगा दें।'' 10 यह सरोकार ही है जो यह तय करता है कि वे किस और खड़े हैं और किसकी आवाज को जुबान दे रहे हैं। हबीब कैफ़ी के चारों कहानी संग्रहों में जो सच कहा गया है उसे अगर एक वाक्य में कहना हो तो ये सच को भोगते हुए निम्न मध्यमवर्गीय आदमी का प्रतिरूप है दरअसल जो लेखक गहरे सामाजिक सरोकार के साथ लिखता है उसकी कहानियां ज्यादा लाउड नहीं होती है। वह तो अपनी धीर गंभीरता से पाठक की चेतना को उस भाव भूमि तक पहुंचाता है जहाँ ठीक से उसकी नजर नहीं जाती।

आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी का मानना है-’'सामाजिक बोध का रूप हमारी जीवन स्थितियों और हमारे जीवन आचरण के घात प्रतिघात से खुलता है। व्यक्ति की वर्गीय स्थिति का दबाव उसके मनोजगत और उसके संबंधों पर पड़ता है।"11 हबीब कैफी की कहानियों में यह दबाव बराबर दिखाई देता है। उनकी कई कहानियों के पात्र बार-बार उस नैतिक मूल्य के लबादे से बाहर आने को छटपटाते दिखाई देते हैं।

समकालीन लेखकों ने साम्प्रदायिक प्रवृत्तियों और प्रक्रियाओं को अपने लेखन का हिस्सा बनाया। उसके समांतर हबीब कैफ़ी ने अपनी कहानियों में एक अलग ढंग से उनको पेश किया। वे निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम परिवार से आते हैं। इसलिए साम्प्रदायिकता का सीधा प्रभाव आम आदमी की सोच उसके जीवन पर किस तरह पड़ता है उसको अपनी कहानियों में व्यक्त किया है। एक होता है फार्मूलाबद्ध तरीके से हिन्दू मुस्लिम करते हुए विचार को प्रमुखता देते हुए कहानी बुनना और एक होता है कि देश की साझी संस्कृति के इतिहास का क्रमबद्ध तरीके से अध्ययन करते हुए साम्प्रदायिकता के बढ़ने के साथ ही दोनों वर्गों के आम आदमी में बढ़ रहे वास्तविक भय को व्यक्त करना। हबीब कैफ़ी समानांतर कहानी आंदोलन के प्रमुख कहानीकारों में बतौर महत्त्वपूर्ण इसलिए भी माने जाते हैं कि उन्होंने साम्प्रदायिक ताकतों के उभार के बाद आम आदमी में व्याप्त भय और उसकी चिंताओं के बीच हुए "असली पार्टीशन" को रेखांकित किया है।

जिसकी तरफ इशारा करते हुए कथा आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठीजन्मजात भय', सामाजिक भय' औरऐतिहासिक भय' जैसे शब्दों की चर्चा करते हैं। वे मानते हैं कि कई बार इस प्रकार केभय' इतिहास का अंतिम सत्य बनकर रचनात्मक संवेदना में इस प्रकार घुलमिल जाते हैं कि वह अल्पसंख्यक समाज का अहम हिस्सा बन जाते हैं। हबीब कैफ़ी ने उस धर्मांध भय से समाज की सोच में उत्पन्न भोंथरेपन को उजागर किया है।

हबीब कैफी की अधिकांश कहानियां गरीब मुस्लिम तबके के लोगों की कहानियां हैं जो आज भी मुख्यधारा से वंचित है। सांप्रदायिकता का असर मार आम मुसलमान पर किस तरह पड़ता है इसका वर्णन उन्होंने बखूबी से किया है। फिर भी वे अपनी कहानियों में हिंदू-मुसलमान नहीं करते बल्कि मनुष्य के स्वभाव की तह में जाकर उन मनोवैज्ञानिक कारणों को ढूंढते हैं। धर्म परिवर्तन पर लिखी कहानीअपने' में एक छोटा सा वाक्य हैं, जिसमें सारा सच सिमट जाता है -" वेहमारे थे, आप हमारे थे"12

धाराकहानी का पात्र कहता है -"राजनीति में कोई हिंदुओं का सच्चा दोस्त है, ही मुसलमानों का। किसी भी पार्टी को देश की चिंता नहीं है। वे अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को पूरा कर रही है।"13 असल में अपनी कहानियों के जरिये हबीब कैफ़ी उस शुतुरमुर्गी भ्रम को सामने लाते हैं, जिसे देखकर भी समाज अनदेखा करते हुए दंगो की गलतियाँ कर बैठता है। उनकी एक कहानी का पात्र दंगो के डर से नाम बदलकर दूसरी जगह रहता है फिर भी बच नहीं पाता क्योंकि अगले दंगे में दंगाई नाम के चक्कर में अपने ही आदमी को मार देते हैं।

हबीब कैफ़ी के यहाँ स्त्री सशक्त भी है और डरी हुई भी है।डरी हुई औरतें', बार बाला की बातें', वह कह रही थी' तथाकलसी' स्त्री-पुरुष संबंधों को लेकर लिखी गई है। एक में पति द्वारा पत्नी के प्रेमी की हत्या की जाती है तो दूसरी कहानी में कलसी अपने पति उसकी प्रेमिका की हत्या कर देती है। यद्यपि दोनों कहानियां संबंधों के चरित्र को उजागर करती हैं फिर भी दोनों विरोधाभास के धरातल पर खड़ी दिखाई देती हैं। कई जगह लगता है कि अतिरेक साहस प्रतिशोध के चक्कर में कहानी अपने प्राकृतस्वरूप से दूर होती हुई दिखाई देती है। इसी तरह एक और कहानी हैबानो बी' तलाक के बाद मुस्लिम स्त्री द्वारा भरण-पोषण की मांग नहीं करना बच्ची को अदालती फैसले की वजह से पिता को सौंपने को स्त्री की दृढ़ता आत्म सम्मान के रूप में दर्शाया गया है। कई बार पात्रों को सहज विकास की बजाय उसकी चारित्रिक मजबूती दिखाने के चक्कर में पात्र के साथ ठीक न्याय नहीं हो पाता हैं।

इस कहानी में भी ऐसा ही हुआ कि स्त्री की दृढ़ता और आत्मसम्मान दिखाने की चक्कर में कहानी में माँ रूपी पात्र सहज नहीं दिखाई देती है। इसके अलावा कई जगह इन कहानियों से गुजरते हुए लगता है कि हबीब कैफ़ी मुस्लिम समाज की उन स्थितियों से बच कर किनारा कर लेते हैं जिस पर उनको खुलकर लिखना चाहिए था।

युवा आलोचक वैभव सिंह का मानना है किहिन्दी में यथार्थवाद किसी राजनीतिक वैचारिक परियोजना का हिस्सा बनकर रह गया। वह भयंकर वैचारिक खींचतान तथा सरलीकरण का ऐसा शिकार हुआ कि आज तक उससे ठीक से उबर नहीं पाया है।”14 हबीब कैफी की कहानियों को भारतीय निम्न मध्यमवर्गीय समाज कीग्राउंड रिपोर्ट' की तरह पढ़ी जानी चाहिए। ग्राउंड रिपोर्ट इसलिए कि वे अपने पात्रों की जिंदगी से एक संवेदनशील आत्मीय रिश्ता रखते हैं। वे उन लेखकों की तरह नहीं है जो थर्टी फर्स्ट मनाने जैसलमेर जाते हैं और रेगिस्तान के जीवन पर दयाभाव रखते हुए कहानी लिखकर वापसी की फ्लाइट पकड़ लेते हैं। हबीब कैफ़ी अपने पात्रों के साथ खुद जूझते हुए नजर आते हैं। इन चारों कहानी संग्रहों के अलावा पिछले बरसों में अलग-अलग पत्र-पत्रिकाओं में आई उनकी कहानियाँ भी इसका प्रमाण देती हैं कि लेखक आज भी उस वर्ग के लिए प्रतिबद्ध होकर लिख रहा है।

निष्कर्ष : हबीब कैफ़ी का आज भले ही ढंग से मूल्यांकन नहीं हो पाया हो लेकिन जब भी हिंदी कहानी के इतिहास का ईमानदारी से क्रमबद्ध अध्ययन किया जाएगा तो हबीब कैफ़ी को मनुष्यता से उठे हुए उस विश्वास को फिर से स्थापित करने वाले कहानीकारों के रूप में याद किया जाएगा क्योंकि उन्होंने अपनी कहानियों में मनुष्य को खांचों में, विमर्श में या विचार में बांधकर देखने की कोशिश नहीं की बल्कि उन्होंने मनुष्य को उसके समग्र यथार्थ के साथ परिभाषित कर उस प्रकाश को देश के अंतिम ढाणी तक में बचाए रखने का जतन भी किया है।

जैसा कि आलेख के प्रारंभ में जिक्र किया गया कि कहानी अपने आप में इतिहास है। बरसों बाद इन कहानियों को पढ़ते हुए हबीब कैफी के रचना कर्म पर बात करते हुए कमलेश्वर की यह टिप्पणी मुकम्मल लगती है :- " हबीब कैफी की कहानी की भाषा का सहज प्रवाह पढ़ने वाले को अपने साथ बहा ले जाता है, कहानियों के पात्र अपनी जीवंतता के कारण याद रह जाते हैं। कहानी में विशिष्ट कालखंड जीवित हो उठता है। बिना किसी नारेबाजी अथवा मुल्लमेबाजी के दबे कुचले और वंचित वर्ग के लोगों की बात सीधे ही पढ़ने वालों के मन मस्तिष्क पर प्रभाव डालती है। समग्र रूप में कहानी की अनुगूंज देर तक बनी रहती है। संभवतः यही कारण है कि इनकी अधिकांश कहानियां बरसों बाद भी प्रासंगिक और एकदम ताजा लगती है।" 1

संदर्भ -

  1. नीरज खरे(सं) : हिन्दी कहानी वाया आलोचना, लोकभारती प्रकाशन, प्रयागराज, 2022 पृ. 40
  2. डॉ. प्रकाश आतुर (सं) : समकालीन हिन्दी कहानी, राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर,1988, पृ. 95
  3. हबीब कैफ़ी : प्रतिनिधि कहानियाँ, त्रिवेणी प्रकाशन, जोधपुर, 2009, फ्लेप
  4. हबीब कैफ़ी : मेरी प्रिय कथाएँ, ज्योतिपर्व प्रकाशन, गाजियाबाद, 2012, फ्लेप
  5. कमलेश्वर (सं), सारिका पत्रिका, अंक अक्टूबर 1974, पृ. 4
  6. हबीब कैफ़ी : पराजित विजेता, राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर, 1992, पृ. 82
  7. वही, पृ. 34
  8. हबीब कैफ़ी : प्रतिनिधि कहानियाँ, त्रिवेणी प्रकाशन, जोधपुर, 2009, फ्लेप
  9. विश्वनाथ त्रिपाठी (सं) : कहानी के साथ साथ, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2016,पृ. 142
  10. हबीब कैफ़ी : बतीसवीं तारीख, साहित्य सदन, कानपुर,1988, पृ.12
  11. विश्वनाथ त्रिपाठी (सं) : कहानी के साथ साथ, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2016, पृ. 97
  12. हबीब कैफ़ी : बतीसवीं तारीख, साहित्य सदन, कानपुर,1988, पृ.47
  13. वही, पृ. 66
  14. वैभव सिंह : कहानी विचारधारा और यथार्थ, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2020,पृ. 320
  15. हबीब कैफ़ी : प्रतिनिधि कहानियाँ, त्रिवेणी प्रकाशन, जोधपुर, 2009, फ्लेप

डॉ. मन्दाकिनी शेखावत
c-73, हाई कोर्ट कॉलोनी, रातानाडा,जोधपुर
msr.skss@gmail.com, 9602222444

सम्पादक-द्वय : माणिक व जितेन्द्र यादव चित्रांकन : संजय कुमार मोची (चित्तौड़गढ़)
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati), चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक ई-पत्रिका 
अंक-47, अप्रैल-जून 2023 UGC Care Listed Issue

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