शोध आलेख : भारतीय मुसलमानों में जाति व्यवस्था का विश्लेषण / प्रो. शमीम राईन

भारतीय मुसलमानों में जाति व्यवस्था का विश्लेषण
- प्रो. शमीम राईन

शोध सार : सामान्यत: मुस्लिम धर्म को समतावादी धर्म माना जाता हैI इसमें हिन्दू धर्म की भांति वर्ण व्यवस्था नहीं हैलेकिन यह विचार अर्द्धसत्य है,मुसलमानों में भी उच्च-नीच का भेद – भाव एक सच्चाई हैI उर्दू भाषा में अशराफ,अज्लाफ़ और अरजाल शब्द इस सच्चाई को उजागर करते हैंI स्वतंत्रता से पूर्व गौस अंसारी , जनगणना रिपोर्ट 1901 इत्यादि तथा स्वतंत्रता के बाद योगेन्द्र सिकंद ,अली अनवर ,प्रो इम्तियाज़ अहमद तथा अली असगर इंजीनियर इत्यादि विद्वानों ने मुस्लिमो में जातिवाद की पुष्टि की हैI रंगनाथ मिश्रा रिपोर्ट ने अनुसूचित जाति का दर्जा देने की भी कुछ मुस्लिम जातियों की सिफारिश की है Iप्रस्तुत लेख इसी पर केन्द्रित  है I

बीज शब्द : पसमांदानवबौद्ध,अशराफअज्लाफ़,अरजIकुफ्वसच्चर समिति और रंगनाथ मिश्र रिपोर्टI

मूल आलेख : 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने 27/7/2023 से पसमांदा मुसलमानों को जोड़ने के लिए एक कार्यक्रम प्रारंभ किया है जिसका नाम है पसमांदा  स्नेह यात्रा। इस मुहिम से पसमांदा मुसलमान भारतीय जनता पार्टी से कितना जुड़ेगा यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन यह महत्वपूर्ण बात है कि पसमांदा मुसलमानों की समस्या राजनीतिक विमर्श के मुख्य केंद्र में चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पसमांदा मुसलमानों की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक पिछड़ेपन पर  कई मंचों से विमर्श को बढ़ावा दिया है। यूनाइटेड प्रोगेसिव एलाइंस ने भी सच्चर  समिति और रंगनाथ मिश्रा रिपोर्ट के आधार पर इन वर्गों की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया था, लेकिन कोई ठोस कदम  विकास के लिए नहीं उठाया गया। प्रस्तुत लेख मेंपसमांदा मुसलमानों की स्थिति तथा भारत में पसमांदा मुसलमान कौन है, इसके बारे में विश्लेषण हैI

पसमांदा का अर्थ वंचित वर्ग अर्थात पीछे छूट गए लोगों को पसमांदा कहा जाता हैI‘‘मुस्लिम समाज में बुराइयों (जाति व्यवस्था) का अस्तित्व अत्यधिक खेद जनक है। इसमें भी अधिक कष्टदायक बात यह है कि आज तक मुसलमानों में संगठित रूप से समाज सुधार का कोई आंदोलन नही चला, जिससे समाजिक बुराइयों का अंत हो सके। हिन्दू समाज की कुछ बुराईयाँ हैं। परन्तु उनसे छुटकारा की शक्ल नजर आती है। क्योंकि कुछ लोग उनके बारे में जागरूक हैं तथा कुछ लोग उनको दूर करने हेतु प्रयासरत् हैं। दूसरी तरफ मुसलमान जाति-व्यवस्था की बुराई का एहसास ही नहीं करता है।’’

(बी0आर0 अम्बेडकरपाकिस्तान आर पारर्टीशन ऑफ इंडिया, पेज 223)

                    उपर्युक्त अम्बेडकर के विचार से इस बात की पुष्टि होती है कि मुसलमानों में भी जातिवाद है। यह विचार डॉ0 इकबाल के इस वक्तव्य के विपरीत है कि  ‘‘ एक सफ में ही खड़े हो गये, महमूदों अयाज़, कोई बन्दा रहा कोई बन्दा नवाज।’’ यह विमर्श आज भी जारी है कि मुसलमानों में जातिवाद है कि नहीं। लेकिन देश की सर्वोच्च अदालत ने दिनांक 25 मार्च 2010 को ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा कि मुसलमानों में पिछड़े वर्ग हैं और आन्ध्रप्रदेश द्वारा दिया गया आरक्षण सही है।1 काका केलकर समिति (1953), मंडल आयोग (1980), सच्चर समिति (2005) रंगनाथ मित्रा रिपोर्ट (2007) तथा विभिन्न प्रदेशों के पिछड़ा आयोग भी इस बात की पुष्टि करता है कि मुसलमानों में जातिवाद है। लेकिन आजादी के एक वर्ष बाद भी मुसलमानों की कुछ जातियों को अनुसूचित जातिका दर्जा आज तक नही दिया गया। प्रश्न यह है कि क्या मुसलमानों में दलित या अनुसूचित जाति हैं। उपर्युक्त प्रश्न का उत्तर विवादास्पद है, क्योंकि राजनीतिज्ञों, समाजसुधारकों तथा बुद्धिजीवियों में मतभेद है।

मुस्लिम धर्म को समतावादी धर्म माना जाता है। इसमें कोई ऊंच-नीच का भेदभाव नहीं है। जातिवाद हिन्दू धर्म की उपज माना जाता है। इसमें वर्ण व्यवस्था का महत्वपूर्ण योगदान है। वर्ण व्यवस्था में चार वर्णों का उल्लेख किया गया है, जिसमें ब्राह्मण सर्वोच्च है तथा क्रमशः क्षत्रिय, वैश्य शूद्र है। यह विभाजन कर्म पर आधारित था, लेकिन कालान्तर में यही जातिवाद का रूप ले लिया। लेकिन पंचम वर्ग भी था, जिसे अस्पृश्य या अछूत कहा जाता था। डॉ0 अम्बेडकर इसी वर्ग मे नेता थे, इसे ही बाद में अनुसूचित जाति का दर्जा दिया गया। इस प्रकार अनुसूचित जाति का दर्जा का मुख्य आधार अछूत माना गया है। 1950 राष्ट्रपति के आदेश के तहत् कुछ हिन्दू जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया गया लेकिन इसी आदेश के पैरा 3 में अन्य धर्मो के इसी प्रकार के वर्ग को अनुसूचित जाति का दर्जा नही दिया गया। इस प्रकार उपर्युक्त आदेश के तहत सिर्फ हिन्दू धर्म के अनुयायी ही अनुसूचित जाति का लाभ पा सकते थे। लेकिन 1956 तथा 1990 में क्रमशः सिख नवबौद्धों को एस0सी0का दर्जा दिया गया, लेकिन ईसाई और मुस्लिम धर्म के अनुयायी इस सुविधा से आज भी वंचित हैं।

                    इस बात पर विद्वानों में सर्वसम्मति है कि अधिकांश मुस्लिम आबादी हिन्दू धर्म से धर्म परिर्वतन करके इस्लामधर्म स्वीकार किये हैं। क्योंकि इस्लाम धर्म समतावादी धर्म था, जबकि हिन्दू धर्म असमानता पर आधारित था। जाति व्यवस्था हिन्दू धर्म का एक हिस्सा है। हिन्दू पैराणिक ग्रन्थों के अनुसार (सबसे प्राचीन पुरूष सुक्त के 10 वें स्रोत में है कि ) ब्राह्मण का जन्म ब्रह्मा के मुख से हुआ, क्षत्रिय उनकी बाहों से वैश्य जांघों से तथा शुद्र उनके पैरो से जन्में हैं। शतपथ ब्राह्मण में भी इस वर्ण व्यवस्था की पुष्टि की गयी है, तैतिरेय ब्राह्मण कहता है कि ब्राह्मण जाति देवताओं से जन्मी है जबकि शूद्रो का जन्म असुरों से हुआ है। मनु वर्ण व्यवस्था का वर्णन इन शब्दों में करते हैं ’’ जग के निर्माता ने ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों एवं शूद्रों को अपने मुख, हाथों, जांघों तथा पैरों से जन्म दिया है। भगवत् गीता के चतुर्थ अध्याय में लिखा है’’ ईश्वर कहते हैं कि समाज चतुर्वणीय विभाजन क्षमताओं एवं उत्तरदायित्वों के अनुपात में किया है। यहां तक कि विष्णु पुराण में भी लिखा है ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, शूद्र का जन्म भगवान के मुख, छाती, जांघ तथा पैर सें हुआ।2 लेकिन मुस्लिम धर्म को समतावादी धर्म कहा जाता है। मोहम्मद साहब (.) ने मक्का से अपनी विदाई के वक्त अंतिम उपदेश में कहा था’’ लोगों तुम्हें बनाने वाला एक है। तुम एक ही पिता के पुत्र और पुत्री हो। इसलिए तुम्हें ऊंच-नीच में बांटने की कोई भी कोशिश मंजूर नहीं है। तो कोई अरब किसी गैर अरब से श्रेष्ठ है और ही कोई गैर अरब किसी अरब से श्रेष्ठ है। तो गौर अश्वेतो से श्रेष्ठ है, और ही अश्वेत गोरों से श्रेष्ठ है। बेहतरी की एक मात्र पहचान अल्लाह  का डर, इंसान का अपना सदाचार और धार्मिक निष्ठा है।3

                    कुरान में बहुत आयतों में समतावादी सिद्धान्त का वर्णन किया गया है। लेकिन इस्लाम का जब भारत में प्रवेश हुआ तो भारतीय संस्कृति के प्रभाव से अछूते नहीं रहे इस सम्बन्ध में हट्टन सही कहते हैं कि जब मुस्लिम और इसाई भारत आये, तो जाति इस देश के वातावरण में व्याप्त थी और इन समतावादी विचारधाराओं के अनुयायी भी जाति रूपी रोग से अपने आपको बचा सकें। इसके अलावा भारतीय मुस्लिम जनसंख्या का बड़ा हिस्सा हिन्दुओं की निचली जातियों से आता है, जो इस्लाम इसलिए कबूल करते रहे ताकि सामाजिक भेद और दमनकारी सामाजिक आर्थिक अक्षमताओं से बच सकें। वे इस्लाम के समतावादी समाजिकता के प्रति आकर्षित हुए और उन्हें आकर्षित किया भी गया लेकिन बराबरी की तलाश मृगतृष्णा ही साबित हुई। बहुत से मामलों में उनकी सामाजिक -आर्थिक दशा में सुधार करने के बावजूद इनसे सामाजिक समता की मंजिल उनसे दूर रही। इसके अलावा बहुत से मामलों में जिन लोगों ने इस्लाम कबूल किया, उन्होंने अपनी धार्मिक आस्था को त्याग दिया, लेकिन जाति नहीं और वे जाति को अपने नये सामाजिक-धार्मिक दायरे में भी ले आए। इसलिए यह कहना सही होगा कि इस्लाम में भले ही जातियां या जाति जैसे ग्रुप हों, लेकिन भारतीय मुस्लिमों में ऐसा है।4

                    उपर्युक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि मुस्लिम आबादी का अधिकांश भाग हिन्दू नीची जाति से ही धर्म परिवर्तन करके आये हैं। और सैद्धान्तिक रूप से यह स्पष्ट है कि इस्लाम ऊंच-नीच में भेदभाव को स्वीकार नहीं करता है लेकिन हिन्दू धर्म के प्रभाव के कारण ही भारतीय मुस्लमानों में भी ऊंच-नीच का भेदभाव है। इसमें स्पष्ट है कि अधिकांश अस्पृश्य जातियां भी इस्लाम धर्म को स्वीकार करलीं।

                    अरबी भाषा में तीन शब्द हैं- अशरफ, अज़लाफ तथा अरज़ाल। अशरफ का अर्थ बड़ी जाति के लोग जैसे सैयद, शेख, पठान तथा मुगल इत्यादि, अज़लाफ का अर्थ, शुद्ध व्यवसायिक जातियां जैसे जुलाहा, कुंज़ड़ा, दर्जी, धुनिया तथा हज्जाम इत्यादि और अरज़ाल का अर्थ अछूत जातियां भंगी, मेहतर तथा लालबेगी इत्यादि। अरज़ाल जाति ही हिन्दुओं में अनुसूचित जाति के समकक्ष है। 1901 की भारतीय जनगणना रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘‘मुस्लिमों में भी तीन वर्ग हैं।

1. अशराफ (नोबेल)     2. अज़लाफ (मीन) तथा 3. अरज़ाल (लोवेस्ट) तीसरे वर्ग को मस्जिदों में जाने पर पाबन्दी थी। ’’ अरज़ाल-भवार, हलालरखोर, हरज़ा, काशी, लालवेगी मंगता और मेहतर।5

                    डॉ0 अम्बेडकर ने एक बार बंगाल असेम्बली में बोलते हुए कहा कि 1901 की जनगणना रिपोर्ट यह सिद्ध करती है कि मुसलमानों में भी अछूत (अरजाल) हैं, जो हिन्दुओं में समक्ष हैं।’’ महात्मा गांधी ने अपने पत्र इन हरिजनमें लिखा है कि चाहे हरिजन नाममात्र को एक इसाई, मुस्लिम या हिन्दू और अब एक सिख हो गया हो वह अब भी एक हरिजन ही है। जो लक्षण उसने हिन्दू रहते हुए विरासत में पाये हैं, उसे वह बदल नहीं सकता। वह अपनी पोशाक बदलकर स्वयं को एक कैथेलिक हरिजन, या एक मुस्लिम हरिजन या तब मुस्लिम या नवीन सिख वह हो सकता है, किन्तु उसे अछूत होने का आभास उसका जन्म भर पीछा करता रहेगा।7 इस प्रकार स्वतंत्रता से पहले विभिन्न जनगणना रिपोर्ट और अम्बेडकर तथा गांधी के विचारों से यह पुष्टि होती है कि मुसलमानों में अछूत हैं, इसे 1935 के भारत सरकार अधिनियम मे स्वीकार भी किया गया था।8 अकादमिक दृष्टि से गौस अंसारी ने भंगी को हिन्दू तथा मुस्लिम दोनो में पाया है जो अछूत होते हैं। मुस्लिमों में शेख मेहतर तथा लाल बेगी मुस्लिम समाज का एक बड़ा हिस्सा है इन्होंने इसकी उपजाति का भी उल्लेख किया है, जिसे हम अनुसूचित मान सकते हैं। वाल्मीकि, वंशफोर, धानुक, घी, गाजीपुरी, रेवात, इनरी, हेला, लालबेगी, पत्थरफोर तथा शेख मेहतर।

                    प्रो0 इम्तियाज़ अहमद ने कहा कि दलित मुस्लिम की अधिक स्पष्ट परिभाषा की जरूरत है। अंसारी का सुझाव है अशरफ और अज़लाफ में संबंध और दूसरी तरफ अरज़ल से संबंध सामाजिक फासले को लेकर हुआ था, जो कि अस्पृश्यता के आधार पर था। अंसारी का कहना है कि अरज़ल वर्ग में लोगों को दोनों, शारीरिक सामाजिक तौर पर अलग कर  दिया। अऱजल लोग बस्तियों से अलग रहने के लिए मजबूर हो गए और वे अशरफ़ और अजलफ वर्गो से संपर्क नही बना सकते थे। जहाँ तक सामाजिक मेल मिलाप का प्रश्न है तो अरजल समूहों के लोगों को सामाजिक फासला बनाए रखना होता था दूसरे समूहों के लोगोंसे इसलिए दलित मुस्लिम उन्हीं को बोला जाना चाहिए, जिनका सम्बन्ध अरज़ल जातियों से हो।9 अली अनवर (अध्यक्ष पसमांदा मुस्लिम महाज) ने दलित मुस्लमानों में जातिवार, टिकिया फरोश, इत्तरफ पोस, तलाल खोर, खक्रोब, मोगलक जादा तथा चिरिमार को शामिल किया है।10 प्रो0 अहमद ने 47 मुस्लिलम जातियों की पहचान की है जो अभी मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर ‘‘अन्य पिछड़ा वर्ग’’  में हैं, अनुसूचित जाति है। अहमद ने कहा कि अरजाल जातियों को एस0सी0 का दर्जा देकर आज धर्म निरपेक्षता पर प्रश्न चिन्ह लग रहा है क्योंकि आज तक संविधान धर्म के आधार पर किसी प्रकार के भेदभाव को निषेध करता है तथा धर्म निरपेक्षता के स्प्रीट के खिलाफ है इसलिए मुस्लिमों इसाईयों को भी एस0सी0 का दर्जा दिया जाना चाहिए।11 वैसे तो मुसलमानों में सख्ती से अस्पृष्ता को प्रतिबंधित किया गया। भंगी का लड़का भी कुरान पढ सकता, मस्जीद में जा सकता है। लेकिन लोग आशा करते हैं कि नमाज नहीं पढ़ा सकता ही कुरान पढ़ा सकता है। अधिकांश मुस्लिम लोग भी अपने खाने-पीने के बर्तन नहीं छूने देते  हैं।12 डॉ0 एजाज अली (यूनाइटेड मुस्लिम मोर्चा अध्यक्ष) ने कुछ मुस्लिम जाति भी हिन्दू जातियों से परिवर्तित माना है जैसे जुलाहा से मोमिन, खटिक से कुजड़ा, पासी से धुनिया तथा चमार से कसाई बन गये। इन्हे एस0सी0 दर्जा मिलना चाहिए।13 गौस अंसारी की बातों की पुष्टि करते हुए डॉ0 उमर ने लिखा है कि हिन्दुओं के समान ही मुस्लमानों में भी अछूत जातियां पाई जाती हैं जिसमें भंगी प्रमुख हैं। लालबेगी भंगी का ही एक रूप है जिसकी निम्न शाखाएं है- वाल्मीकी, हेला, दही, बांस तथा शेख मेहतर इत्यादि।14

                    विभिन्नबुद्धिजीवियों के तर्कों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि मुसलमानों में भी छुआ-छूत का भेदभाव जमीनी स्तर पर है। यह स्थिति हिन्दू धर्म के प्रभाव के कारण ही है। इसलिए मुसलमानों को भी अनुसूचित जाति का दर्जा दिये जाने की वकालत प्रो0 इम्तियाज और अशफक हुसैन आंसारी जैसे विद्वान करते हैं। इसके अलावा सरकार द्वारा स्थापित  विभिन्न आयोगों कि रिपोर्ट ने भी मुसलमानों में  जातिवाद की चर्चा की गयी है, जिसमें महत्वपूर्ण आयोग क्रमशः काकाकेलकर अयोग, मंडल आयोग, संविधानसमीक्षा आयोग, सच्चर समिति तथा रंगनाथ मिश्रा रिपोर्ट हैं।

                    भारतीय संविधान के अनुच्छेद 340 में एक आयोग की नियुक्ति के लिए प्रावधान किया गया है। जो पिछड़े वर्गों की स्थिति की जांच उक्त उपलब्ध के अनुसार करेगा। भारत सरकार ने 1953 में काका साहेब कालेलकर की अध्यक्षता में पहला पिछडा वर्ग आयोग का गठन किया था। आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1955 में प्रस्तुत किया। आयोग ने2311 जातियों को अन्य पिछडा वर्ग की सूची में शामिल किया, जो भारत सरकार ने स्वीकार नहीं की लेकिन विभिन्न राज्य सरकारों ने इसी के आधार पर आयोग बनाकर पिछड़े वर्गों को लाभ देने का उपाय किया। इन्हीं आयोगों में एक आयोग ने अन्य पिछडा वर्ग की राज्यवार तैयार सूची में धर्म और जाति निरपेक्ष अल्पसंख्यक समुदाय शामिल किए थे। कई राज्यों में नव-बौद्धों ईसाईयत और इस्लाम में परिवर्तित अनुसूचित जातियों को इन सूचियों में शामिल किया गया।15

                    भारत सरकार ने अनुसूचित जाति और जनजाति से भिन्न सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े लोगों की पहचान के लिए मापदंड का सुझाव देने हेतु 1979 में श्री वि0पी0 मण्डल की अध्यक्षता में दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग की नियुक्ति की।31 दिसम्बर 1980 में आयोग ने रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। मंडल रिपोर्ट के अनुसार   83. 84, हिन्दू में 4371 हिन्दू पिछडों की पहचान की जो 100 में 52 प्रतिशत होगा। अहिन्दू कुल जनसंख्या 16.6-1 आकलन को इसमें भी 100 में 52 पिछडे वर्गों की पहचान की गयी जो 8.4 प्रतिशत है। इस आकलन में जैनियों को पिछड़ा वर्ग नहीं माना। सिखों में पिछडा वर्ग बहुत कम है और मुसलमानों में पिछडों की संख्या अत्यधिक है। उदाहरणार्थ उत्तर प्रदेश में 70 प्रतिशत मुस्लिम आबादी हिन्दू पिछड़ी जाति के समान है। जबकि अन्य 20 प्रतिशत हिन्दू अनुसूचित जाति में सामान है। इसलिए इनके पिछड़ेपन के दूर करने के लिए बहुमुखी प्रयास की जरूरत है। आगे रिपोर्ट में कहा गया है कि मुसलमानों में अनुसूचित जाति है लेकिन 1950 के राष्ट्रपति आदेश के पैरा 3 में धार्मिक प्रतिबन्ध होने केकारण उन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया जा सकता इसिलए इस वर्ग को  भी अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में  शामिल करने की सिफारिश करता हूँ।10 आयोग कहता है कि पिछड़े वर्ग की सूची तैयार करने में बहुमुखी दृष्टिकोण अपनाया है। इसके अन्तर्गत आयोग ने लिखा है कि यद्यपि जाति प्रथा हिन्दू समाज के लिए एक विशिष्टता है तथापि वास्तविक व्यवहार में भारत में यह गैर हिन्दू समुदायों मे भी व्याप्त है। आयोग ने यह भी स्वीकार किया है कि बहुत से हिन्दू समाज के लोग जो धर्म परिर्वतन करके इस्लाम, इसाई, या सिख बन गये उनके मन में भी पूर्व जाति के प्रति आकर्षण-विकर्सण संघर्ष चलता रहा है। सैयद और शेख ब्राह्मणों के समान पुरोहित जातियां हैं मुगल तथा पठान अपने शौर्य के लिए क्षत्रियों के समान प्रसिद्ध हैं ........ व्यावसायिक जातियां जो धर्मतन्त्र में निम्न जातियां मानी जाती हैं ......... इस प्रकार जातियों के अपने व्यवस्यायों पर आधारित नाम वंशगत हैं और उनके बीच सजातीय विवाह करने की प्रारम्भिक प्रवृत्ति है......... वे उन स्वच्छ हिन्दू जातियों के वंशज हैं, जो विभिन्न जातियों में दलों में या पूरी जातियों के रूप में इस्लाम धर्म में परिवर्तित हो गये हैं।16

                    मंडल आयोग के बाद संविधान समीक्षा हेतु राष्ट्रीय आयोग जिसके चेयरमैन जस्टिस वैंकटचलैया आयोग के नाम से भी जाना जाता है, ने अपनी रिपोर्ट   10.11.2002 को प्रस्तुत की। जिसमें उन्होंने कहा कि ‘‘वर्तमान समय में अल्पसंख्यक समुदायों विशेषतः, मुसलमानों का विधायी मण्डल में प्रतिनिधित्व उनकी जनसंख्या के अनुपात में काफी गिर गया है। उनमें उनके पिछड़े वर्गों का अनुपात तो नहीं के बराबर है। यह अलगाव की भावना पैदा कर सकती है। यह राजनीतिक दलों का कतर्व्य है कि वह अल्पसंख्यक समुदायों तथा उनके पिछड़ें वर्गों, अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों सहित में आगे आने की क्षमता का सृजन करें ताकि राजनीतिक क्षेत्र में उनकी भागीदारी हो सके।’’

                    यू0पी00सरकार ने भारत में मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति पर उच्च स्तरीय समिति वर्ष 2005 में प्रधानमंत्री द्वारा न्यायामूर्ति रजिन्दर सच्चर की अध्यक्षता में गठित की गयी। इस समिति ने 2006 नवम्बर को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी। इस समिति ने मुस्लिम अल्पसंख्यकों की अत्यधिक निर्धनता के साथ निम्न सामाजिक आर्थिक स्थिति क्रम सहायता एवं शैक्षिक उपलब्धियों, उच्चतर बेरोजगारी दर अवसंरचना की क्रम उपलब्धता तथा पुलिस न्यायपालिका चुनावी निकायों सहित सेवाओं में कम प्रतिनिधित्व पर चिन्ता व्यक्त की। इसके अलावा सच्चर समिति ने मुसलमानों में जाति व्यवस्था को भी स्वीकार किया है। अध्याय 10 में पृष्ठ 189 से 216 तक मुस्लिम 0बी0सी0 एण्ड अफेरमेटिव एक्सननामक शीर्षक में 0बी0सी0 अनुसूचित जाति मुस्लिमों की चर्चा की गई है। ‘‘ समिति अपनी रिपोर्ट में कहती है कि अशराफ बड़े लोग, अज़लाफ व्यवसायिक जातियां जिसे मध्यम जातियां कहते हैं और अरजाल निम्न जाति है। अरज़ाल जाति हिन्दूओं के अनुसूचित जातियों के समकक्ष  प्रतीत होती है। यह विश्वास किया जाता है कि अछूत हिन्दू ही अपना धर्म परिर्वतन करके मुस्लिम अरजाल बने। लेकिन इनकी सामाजिक अर्थिक स्थिति धर्म के परिर्वतन के साथ कोई बदलाव नहीं आया। और ये सामाजिक विभेद का भी शिकार लगातार होते रहे हैं। क्योंकि  इनके समक्ष हिन्दूओं को एस0सी0 का दर्जा दिया गया लेकिन इन्हें नहीं दिया गया जबकि 1936 के इम्पीरियल (एस0सी0) आदेश के तहत ईसाइयों बौद्धों को एस0सी0 की लिस्ट में शामिल नहीं किया गया लेकिन मुस्लिम हलाल खोर को इस लिस्ट में शामिल किया गया था। लेकिन 1950 के राष्ट्रपति के आदेश में गैर हिन्दू जातियों को एस0सी0 लिस्ट से बाहर कर दिया गया। लेकिन 1956 तथा 1990 में क्रमशः सिख तथा नव बौद्धों को 1950 राष्ट्रपति आदेश में संशोधित करके एस0सी0 दर्जा दे दिया गया लेकिन अभी तक मुस्लिम ईसाई को इससे वंचित रखा गया है। समिति ने स्वीकार किया कि 1950 का राष्ट्रपति आदेश संविधान के अनुच्छेद 16 तथा 25 के खिलाफ है क्योंकि यह अनुच्छेद धर्म के आधार पर भेदभाव को निषेध करता है।17

                    भारत सरकार अक्टूबर 2004 को राष्ट्रीय और भाषायी अल्पसंख्यको के लिए आयोग स्थापित करने का निर्णय लिया था। लेकिन आयोग मार्च 2005 में कार्य करना प्रारम्भ कर दिया। इसके अध्यक्ष भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश रंगनाथ मिश्रा को बनाया गया यह रंगनाथ मिश्रा आयोग के नाम से प्रसिद्ध है। यह आयोग 10 मई 2007 को भारत सरकार को रिपोर्ट प्रस्तुत की तथा भारत सरकार ने दिसम्बर 2009 में इसे सदन के पटल पर रखा।’’ इस रिपोर्ट में भारत सरकार के पुराने (अनुसूचित जाति) आदेश, 1936 मे जातियों का शामिल किया जाना ही सामान्य विचार पर आधारित था और कि देश में जाति स्थिति के किसी वास्तविक सर्वेक्षण पर आधारित था। संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950, जो कि पुराने अनुजाति आदेश, 1936 पर आधारित था, के बारे में भी यही कहा जा सकता है। मौजूदा आदेश, 1950 के अधीन सूचियों में समय-समय पर अतिरिक्त जातियों को शामिल किया जाना भी देश में वास्तविक जाति स्थिति में किसी वैज्ञानिक सर्वोक्षण पर आधारित नहीं है।

                    सभी उपलब्ध साक्ष्यों से हमे यह पता चलता है कि जाति प्रथा भारत में सर्वत्र व्याप्त एक सामाजिक अवधारणा है और यह सभी भारतीय समुदायों में अपनाई जा रही है। चाहे वे किसी भी धर्म में हो। इसलिए अनुसूचित जातियों का वर्ग अनिवार्य रूप से धर्म आधारित बना रहना चाहिए। यह सर्वथा तर्कहीन और अनुचित लगता है।19

                    आगे रिपोर्ट कहती है कि ‘‘ हम इस तथ्य से भी अवगत हैं कि भारत के संविधान में जाति के आधार पर नागरिकों के बीच किसी भी भेदभाव करने का निषेध है और फिर भी यह अनुसूचित जातियों के लिए विशेष सकारात्मक उपायों की अनुमति देता है साथ ही, धर्म के आधार पर किसी भेदभाव का निषेध करता है। इसे भी संवैधानिक उपबंधों को एक साथ पढ़ने पर हम अश्वस्त है कि सकारात्मक कार्यवाही के लिए विशेष जातियों को चुनने में किसी भी प्रकार का धर्म आधारित भेदभाव सांविधानिक उपबंधों की मूल भावना के विरूद्ध होगा। तदनुसार विचारार्थ विषय के संबंध में हम निम्नलिखित सिफारिश कर रहे हैं। जो हमारे काम शुरू करने के कई महीने बाद सरकार द्वारा हमारे मूल विचारार्थ विषय जोड़े गये हैं।

                    हम सिफारिश करते हैं कि जातिगत व्यवस्था को समग्र भारतीय समाज की सामान्य सामाजिक विशिष्टताओं के रूप में मान्यता दी जाए। इस संबंध में यह प्रश्न नही उठाया जाना चाहिए कि किसी धर्म विशेष दर्शन और शिक्षा से मान्यता देते हैं या नहीं क्योंकि कतिपय ईसाई इस्लाम की धार्मिक परम्पराओं की भारतीय किस्में उन धर्मों के कई अवितैनिक सिद्धान्तों को कभी भी आत्मसात नहीं करती, केवल जातिगत व्यवस्था के बारे में इस प्रश्न को उठाते हैं और भेदभाव पूर्ण व्यवहार के लिए संकेत देते हैं जो अनुचित और अवास्तविक है।

                    हम इस तथ्य को यथाविधि मान्यता देना चाहेंगे कि भारत के मुसलमानों में जात (जाति) और अरजाल (निम्न जातियां) की संकल्पना व्यवहारिक रूप से विद्यमान है यहां तक कि विवाह के संबंध में मुस्लिम लॉ भी कुफ्व सामाजिक स्थिति और वंश के बारे में सभी महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में पक्षों के बीच विवाह में समानता के सिद्धान्त को मान्यता देता है जिसका अर्थ इस देश में और कुछ नहीं नीची जाति है।

                    उपर्युक्त विश्लेषणों को ध्यान में रखते हुए हम सिफारिश करते हैं कि संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश 1950 का पैरा-3 जो अनुसूचित जाति का वर्गमूल रूप से हिन्दुओं तक सीमित रखा गया था और बाद में यह सिखों और बौद्धों के लिए खोल दिया गया, जो अभी भी मुसलमानों, ईसाइयों, जैनियों, पारसियों आदि की सीमा से अलग है, जिसे उचित कार्यवाही द्वारा पूर्ण रूप से हटा दिया जाना चाहिए ताकि अनुसूचित जाति स्तर को धर्म से पूरी तरह असंबद्ध कर दिया जाए और अनुसूचित जातियों के वर्ग को धार्मिक अनाधारित बनाया जाने जैसे अनुसूचित जनजातियां हैं।

                    हम यह भी सिफारिश करते हैं कि मुसलमान और ईसाइयों आदि में उन सभी समूहों और वर्गों जिनकी सहभागी केन्द्रीय या राज्य सरकारों के अनुसुचित जातियों की सूची में हिन्दुओं, सिखों और बौद्धों में सम्मिलित है को भी अनुसूचित जाति की परिधि में शामिल किया जाना चाहिए। यदि मुसलमानों और ईसाइयों आदि से किसी ऐसे वर्ग को अब किसी अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में सम्मिलित किया जाता है तो उसे अनुसूचित जातियों में अतंरित करते समय उस सूची मे से हटा दिया जाना चाहिए। इन  व्यक्तियों को अनुसूचित जाति की सूची में रखा जाना चाहिए अगर वे हिन्दू, सिख या बौद्ध हैं लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग में हैं बशर्ते वे कोई अन्य धर्म का अनुसरण करते हों, जैसे कई राज्यों के मामले में है हमारे विचार से यह स्पष्ट रूप से धर्म आधारित भेदभाव है।

                    मुस्लिम बुद्धिजीवियों में असगर अली इंजिनियर, सैयद सहाबुद्दीन, डॉ0 एजाज अली और अली अनवर इतयादि अनुच्छेद 341 तथा 1950 के राष्ट्रपति आदेश के पैरा 3 के संशोधन की मांग विभिन्न मंचो पर किया करते हैं।

                    डॉ0 एजाज दशकों से यूनाइटेड मुस्लिम मोर्चा बनाकर इस दिशा में सकरात्मक प्रयास कर रहे हैं। दिनांक 25.02.2009 में नई दिल्ली में उनके संसदीय आवास पर शोधार्थी द्वारा साक्षात्कार लिया गया,जिसमें उन्होंने कहा कि मुसलमानों में भी दलित वर्ग है। उन्होने विभिन्न राज्यों की अनुसूचित जाति की सूची  का हवाला देते हुए कहा कि मुस्लिम हिन्दू दोनों समान जातियां हैं। जैसे धोबी डोम इत्यादि। इन्हें1936 के भारत सरकार में आदेश के तहत एस0सी0 का दर्जा मुस्लिम जातियों को भी दिया गया था लेकिन 1950 का राष्ट्रपति आदेश भेदभावपूर्ण है इसमें संशोधन होना चाहिए और मुसलमानों, ईसाईयों को उसमें शामिल किया जाना चाहिए।

                    शिक्षाविदों, एकेडिमिसियनो, समाज सुधारकों, राजनीतिज्ञों और सरकारी आयोगों का आवलोकन करने के बाद, डॉ0 अम्बेडकर का यह विचार कि मुस्लिमों में जातिगत भेदभाव कि खिलाफ कोई जागरूकता नहीं है, यह कथन सत्य नहीं प्रतीत होता है आज के भातरीय समाज में। क्योंकि इसके खिलाफ विभिन्न न्यायलयों में कई याचिकाएं भी दायर की गयी हैं इसलिए इस अम्बेडकर का जो दिली इच्छा थी कि मुसलमानों में भी हिन्दुओं के समान सतत आन्दोलन की जरूरत है जो अब पूरी हो रही है। यहि डॉ0 अम्बेडकर कीसच्ची श्रद्धांजलि भी होगी। लेकिन उनकी आकंक्षा तभी पूरी होगी जब 1950 में राष्ट्रपति आदेश के पैरा तीन के संशोधन करके धार्मिक प्रतीबंध को हटा नहीं दिया जाता, जिसके फलस्वरूप मुसलमान अनु0 वर्ग (एस0सी0) के दर्जा प्राप्त करके और समाज की मुख्य धारा में शामिल हो सके। उपर्युक्त 1950 राष्ट्रपति आदेश धर्म निरपेक्ष संविधान पर भी एक बदनुमा दाग है, इसे शीघ्र मिटाया जाना चाहिए।

   उपर्युक्त अम्बेडकर के विचार आज भी सत्य प्रतीत होते हैं। क्योंकि आज के समय में भी दलित मुसलमानों का कोई नेतृत्व नहीं है। ही उनकी बातों को निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में शामिल किया जाता है। अम्बेडकर को सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब सच्चा समिति रिपोर्ट और रंगनाथ मिश्रा रिपोर्ट को लागू किया जाए और दलित मुस्लमानों को भी अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाए।


सन्दर्भ :
1. 26.03.2010 का हिन्दुस्तान दैनिक
2. दलित, अल्पसंख्यक सशक्तीकरण-संतोष भारतीय राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली-2008, पृ0 223
3. पृष्ठ 225 वही
4. नदीम हसनैल, एच0एस0वर्मा के संपादन में, दि 0बी0सी0 एण्ड दी रूलिंग क्लासेस इन इण्डिया ,जयपुर रावत पब्लिकेशन 2005, पृष्ठ 84-97
5. अशफाक हुसेन अंसारी, बेसिक प्राबलम ऑफ 0बी0सी0 एण्ड दलित मुस्लिम सिरियल प्रकाशन, नई दिल्ली 2007, पृष्ठ 226
6. H.S Vermaedited,NadeemHasnain,obc and the RullingClasses in india,Rawat publication Jaipur-2005 पेज 94
7. दे हरिजन, महात्मागांधी - 26 दिसम्बर 1936
8. भारत सरकार अधिनियम -1935
9. गौस अंसारी, मुस्लिम कास्ट इन उत्तर प्रदेश ( स्टडी ऑफ कल्चर कैन्टैक्ट) फोल्क कल्चर सोसाइटी, यू0पी0 लखनऊ 1960
10. उर्पयुक्त
11. paper presented atworkshopon conforment of schedule caste status to untouchable / Dalit converted to Christianity /Islam: issues and challenges at Tata Institute  of social science Mumbai18,19-2006
12. Muslim and India &Abroad,Abdul Matin-APH Publication Delhi 1996.Page57
13. H.S Verma edited,NadeemHasnain,obc and the RullingClasses in india,Rawat publication Jaipur-2005 पेज 94     
14. डॉ0 मुहम्मद उमर भारतीय संस्कृति का मुसलमानों पर प्रभाव’, प्रकाशन विभाग सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार 1996, पेज 80
15. काका केलकर आयोग रिपोर्ट -1953
16. मण्डल आयोग रिपोर्ट 1980, पृष्ठ 94 के पैराग्राफ 12.12
17. संविधान समिक्षा आयोग की रिपोर्ट - 2002
18उपर्युक्त पृष्ठ 7
19रंगनाथ मिश्रा रिपोर्ट -2007, खण्ड -1 पेज 143
20उपर्युक्त पेज 153
 
शमीम राईन
प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान  विभाग ,
सकलडीहा पीजी कॉलेज सकलडीहा चंदौली  

अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक ई-पत्रिका 
अंक-48, जुलाई-सितम्बर 2023 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : डॉ. माणिक व डॉ. जितेन्द्र यादव 
चित्रांकन : सौमिक नन्दी

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