रमाकान्त यादव एवं डॉ. दिलीप कुमार सिंह
शोध आलेख : प्रस्तुत शोध अध्ययन में उच्च प्राथमिक स्तर के
शिक्षकों में समायोजन का अध्ययन किया गया है, इस शोध अध्ययन में
शोधकर्ता द्वारा प्रयागराज जनपद के उच्च प्राथमिक स्तर पर कार्यरत 100 शिक्षकों को प्रतिदर्श के रूप में
चुना गया है जिसमें से 50 महिला और 50 पुरुष
शिक्षक हैं| आंकड़ों के संकलन के लिए उपकरण के रूप में डॉ. ए. एच. रिजवी द्वारा निर्मित समायोजन मापनी तथा
आंकड़ों के विश्लेषण के लिए शोधकर्ता द्वारा टी-परीक्षण सांख्यिकी का प्रयोग किया
गया है| इस शोध अध्ययन में 4 शून्य परिकल्पनाओं
का निर्माण किया गया है, जिसमें से एक शून्य परिकल्पना 0.05 स्तर पर अस्वीकृत होती
है जिसके स्थान पर वैकल्पिक परिकल्पना स्वीकृत होती है, तथा तीन शून्य परिकल्पनाएं
0.05 स्तर पर स्वीकृत होती है| निष्कर्ष रूप में पाया गया कि उच्च प्राथमिक स्तर
के महिला एवं पुरुष शिक्षकों के समायोजन में अन्तर है, जबकि उच्च प्राथमिक स्तर के शहरी एवं ग्रामीण महिला एवं
पुरुष शिक्षकों के समायोजन में अन्तर नहीं है|
बीज शब्द : उच्च प्राथमिक स्तर, शिक्षक, समायोजन, तुलनात्मक अध्ययन, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020|
मूल आलेख : मनुष्य एक सामाजिक
प्राणी है और उसे
समाज के नियमों का पालन करने के लिए समय-समय पर अपने जीवन में समायोजन करना पड़ता
है इस प्रकार मनुष्य अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जीवन की विभिन्न परिस्थितियों
और वातावरण के साथ समायोजन करता है| जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हमें समायोजन की आवश्यकता पड़ती है| विभिन्न परिस्थितियों से संघर्ष कर सफलता
के अन्तिम बिन्दु तक पहुँच पाने का
कार्य वही व्यक्ति कर सकता है, जिसके अन्दर स्वयं को समायोजित करने की क्षमता होती
है| व्यक्ति
समायोजन के द्वारा ही जीवन की विभिन्न परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करता है| अतः शिक्षा ही वह साधन है जिसके माध्यम से व्यक्ति में समायोजन की क्षमता का
विकास होता है|
भारतीय समाज
परिवर्तनशील समाज है यहाँ पर समाज में कुछ ना
कुछ नया स्वरूप हमेशा देखने को मिलता है| इस
परिवर्तन के परिप्रेक्ष में शिक्षा में जो परिवर्तन होने चाहिए
वे परिवर्तन नहीं हो रहे हैं
जिससे कई समस्याएँ जन्म ले रही हैं। शिक्षक अपने आप
को इस बदलाव के अनुकूल ढालने में असमर्थ महसूस कर रहा है, इस कारण से शिक्षकों का मानसिक स्तर, शारीरिक क्षमता, कार्य
संतुष्टि, व्यावसायिक दक्षता एवं व्यवसायिक अभिवृत्ति इत्यादि का स्तर गिरता जा रहा है जिसके कारण इन्हें अपने विद्यालय वातावरण में समायोजन करने
में समस्या होती है।
समायोजन को परिभाषित
करते हुए एल. एस. शेफर (1956). ने कहा कि “समायोजन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई जीवधारी अपनी
आवश्यकताओं, तथा इन आवश्यकताओं की संतुष्टि से संबंधित परिस्थितियों में संतुलन
बनाए रखता है” समायोजन निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है समायोजन के द्वारा ही
व्यक्ति अपनी समस्याओं को सुलझाता है| व्यक्ति यदि इन समस्याओं को सुलझाने में सफल
हो जाता है तो उसकी समायोजन क्षमता अच्छी कहलाती है और यदि वह असफल हो जाता है तो उसकी
समायोजन क्षमता अच्छी नहीं मानी जाती है| इस प्रकार समायोजन प्रक्रिया में
शिक्षकों का योगदान महत्वपूर्ण हो जाता है। एक शिक्षक के समायोजन का स्तर सीधे
उसके कार्य की क्षमता एवं सन्तुष्टि से जुड़ा
होता है, शिक्षक बौद्धिक सक्रियता के अलावा, सामाजिक रूप
से उभरता हुआ तथा भावनात्मक रूप से एक व्यक्ति को एकीकृत करता है| शिक्षक राष्ट्र
को आर्थिक समृद्धि, सामाजिक
उत्थान और औद्योगिक उन्नति के पथ पर ले जाता है| शिक्षा
मनुष्य में सर्वांगीण क्षमता का विकास करती है, विशेष रूप
से उसके मस्तिष्क की ताकि वह सर्वोच्च सत्य, अच्छाई, सुंदरता का चिंतन एवं आनंद और समायोजन करने में सक्षम हो सके।
राष्ट्रीय शिक्षा
नीति-2020 के अध्याय 5.3 में कहा गया है कि शिक्षक और
समुदाय के बीच में इस प्रकार सम्बन्ध बने कि शिक्षक अपने समुदाय से जुड़कर
विद्यार्थियों का रोल मॉडल बन सके, और उन्हें शैक्षिक
वातावरण भी प्रदान कर सके। इसे सुनिश्चित करने के लिए अत्यधिक शिक्षक स्थानांतरण
पर रोक लगाने की बात कही गई है, साथ ही स्कूलों में काम के वातावरण और संस्कृति
में आमूलचूल परिवर्तन करने का प्राथमिक लक्ष्य एवं शिक्षकों की क्षमताओं को अधिकतम
स्तर तक बढ़ाने की बात की गई है, ताकि वे अपना काम प्रभावी ढंग से कर सके और यह
सुनिश्चित कर सके कि वे छात्रों, अभिभावकों, प्रधानाध्यापकों और अन्य सहायक
कर्मचारियों के एक समावेशी समुदाय का हिस्सा बन सके, जिनका एक लक्ष्य यह सुनिश्चित
करना होगा कि सभी बच्चे सीख रहे हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा
नीति-2020 के अध्याय 15.1 में
कहा गया है कि ‘शिक्षक आने वाली पीढ़ी को आकार देते हैं’ शिक्षकों के निर्माण में अध्यापक शिक्षा
की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है शिक्षक तैयार करना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके लिए
अध्यापक शिक्षा कार्यक्रमों में बहु-विषयक दृष्टिकोण और ज्ञान की आवश्यकता के
साथ-साथ बेहतरीन मेंटरों के निर्देशन में, मान्यताओं और मूल्यों के निर्माण के साथ
ही साथ उनके अभ्यास की भी आवश्यकता होती है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि
अध्यापक शिक्षा और शिक्षण प्रक्रिया से सम्बन्धित अद्यतन प्रगति के साथ ही साथ
भारतीय मूल्यों, भाषाओं के ज्ञान और परंपराओं आदि के प्रति वे समायोजित हो सके।
सम्बन्धित साहित्य का
सर्वेक्षण-
पाण्डे एवं देव, (2003)1 ने अपने अध्ययन में
उच्च माध्यमिक विद्यालयों की विवाहित तथा अविवाहित महिला शिक्षकों की शिक्षण
समस्याओं का तुलनात्मक अध्ययन किया तथा निष्कर्ष में पाया कि अध्यापकों की
व्यवसायिक अभिवृत्ति और विभिन्न क्षेत्रों में उनका समायोजन घर व कार्य क्षेत्र की
समस्याओं से जुड़ा हुआ है।
शरीफ, (2003)2 ने अपने अध्ययन में
उच्च एवं निम्न वेतनधारी अध्यापकों के समूहों पर शिक्षण के कमजोर पक्ष को देखते
हुए उनके समायोजन एवं कार्य-संतोष एवं कार्य-योजना का अध्ययन किया तथा निष्कर्ष
में पाया कि शिक्षकों के समायोजन में उनके वेतन का कोई सार्थक प्रभाव नहीं है एवं
कार्य-सन्तोष पर शिक्षकों के वेतन की कोई भूमिका प्रभावित नहीं रहती है।
सिंह, (2003)3 ने अपने अध्ययन शिक्षक एवं शिक्षिकाओं में तनाव उनकी
व्यक्तित्व आवश्यकता एवं समायोजन के बीच सम्बन्ध का अध्ययन किया तथा निष्कर्ष में
पाया कि शिक्षकों के तनाव तथा समायोजन में सार्थक सह-सम्बन्ध है, एवं माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों में शिक्षिकाओं की
तुलना में अधिक तनाव है, जबकि अन्य स्तरों पर शिक्षक और शिक्षिकाओं में समान तनाव है।
बेकेट एवं अन्य, (2004)4 ने अपने अध्ययन में
शिक्षको के समायोजन पर शैक्षिक दृष्टिकोण, शिक्षण विधि, शैक्षिक तकनीकी के प्रभाव का अध्ययन किया तथा निष्कर्ष में
पाया कि प्रभावी शिक्षण के लिए शैक्षिक तकनीकी का ज्ञान आवश्यक है क्योंकि कक्षा
में तकनीकी के प्रयोग से विद्यार्थियों की उपलब्धि पर कोई सार्थक प्रभाव नहीं पड़ता
है।
प्रसाद (2004)5 ने अपने अध्ययन में गढ़वाल मंडल के प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत
शिक्षकों की समायोजन समस्याओं के मनोवैज्ञानिक कारकों का अध्ययन विषय पर अपना
अध्ययन किया| प्रतिदर्श के रूप
में 500 प्राथमिक विद्यालय
के शिक्षकों को यादृच्छिकरण विधि द्वारा चयनित किया गया, उपकरण के रूप में एस.के.
मंगल द्वारा निर्मित शिक्षक समायोजन का प्रयोग किया, तथा निष्कर्ष रूप में पाया
गया कि प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत समायोजित शिक्षक असमायोजित शिक्षकों की
तुलना में असंतुष्ट हैं| अर्थात
संतुष्ट शिक्षकों में बेहतर समायोजन क्षमता पाई गई, साथ ही विवाहित एवं अविवाहित
शिक्षकों की समायोजन समस्याओं के मनोवैज्ञानिक कारकों में सार्थक अंतर नहीं है|
नायक, (2005)6 ने ‘माध्यमिक
विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों के मानसिक स्वास्थ्य एवं समायोजन का उनकी
आत्म-अवधारणा के विकास पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन’ विषय पर
अपना शोध कार्य किया अध्ययन के उद्देश्य के रूप में उन्होंने शिक्षकों की वैवाहिक
स्थिति, लिंग, शिक्षण अनुभव, शिक्षा का स्तर एवं उनकी आत्म-अवधारणा पर पड़ने वाले
प्रभाव का अध्ययन किया|
प्रतिदर्श के रूप में 352 माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों को यादृच्छिकरण विधि से चयनित किया गया,
उपकरण के रूप में एस.के. मंगल शिक्षण अभिवृत्ति मापनी का प्रयोग किया है,
निष्कर्ष रूप में पाया गया कि महिलाओं के पक्ष के संबंध में शिक्षकों का समायोजन
लिंग के अनुसार अलग-अलग है|
सिंह, (2008)7 ने अपने शोध अध्ययन में प्राथमिक विद्यालय में
कार्यरत अध्यापकों की कार्य संतुष्टि, समायोजन एवं
व्यावसायिक अभिवृत्ति का अध्ययन किया जिसमें निम्न निष्कर्ष प्राप्त हुए- प्राथमिक
विद्यालय के पुरुष शिक्षकों के कार्य-संतुष्टि का मध्यमान महिला शिक्षकों की तुलना
में सार्थक रूप से अधिक है। प्राथमिक विद्यालय के पुरुष शिक्षकों की अपेक्षा महिला
शिक्षको का समायोजन सार्थक रूप से सकारात्मक पाया गया। प्राथमिक स्तर पर कार्यरत
महिला शिक्षकों की अपेक्षा पुरुष शिक्षकों का व्यावसायिक अभिवृत्ति सार्थक रूप से
अधिक सकारात्मक है।
निराधर, (2009)8 ने अपने अध्ययन में
माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों के मानसिक स्वास्थ्य एवं समायोजन के अध्ययन में
पाया कि शिक्षिकायें मानसिक रूप से अधिक स्वस्थ एवं समायोजित है तथा शिक्षक मानसिक रूप से स्वस्थ परन्तु असमायोजित है।
गुप्ता, (2010)9 ने अपने शोध अध्ययन
समायोजित एवं कुसमयोजित की शिक्षक दक्षता अध्ययन में पाया कि- समायोजित अध्यापकों
का मानसिक स्वास्थ्य कुसमयोजित शिक्षको से बेहतर है, समायोजित अध्यापकों तथा कुसमयोजित अध्यापकों की
कार्य-संतुष्टि में सार्थक सह-सम्बन्ध है। समायोजित अध्यापकों की शिक्षण दक्षता कुसमयोजित अध्यापकों की अपेक्षा उच्च है।
सिंह, (2010)10 ने शिक्षकों के
अकादमिक रिकॉर्ड, समायोजन और
दृष्टिकोण के बीच व्यवसाय पूर्ति के लिए सहयोगी अध्ययन किया जिसके निष्कर्ष में
पाया गया कि शैक्षिक रिकॉर्ड में महिला शिक्षकों को प्राथमिकता दी जाती है, हालाँकि पुरुष प्रशिक्षकों के प्रति मन का अधिक सकारात्मक
ढांचा होता है टीजीटी, पीआरटी और प्रासंगिक
शिक्षकों की कार्य पूर्ति और विद्वता के बीच सकारात्मक संबंध है।
सिंह, (2013)11 ने ए स्टडी ऑफ़
ऐडजस्टमेंट ऑफ़ टीचर्स वर्किंग इन सेकेंडरी स्कूल्स इन हरियाणा इन रिलेशन टू सेक्स, प्लेस ऑफ़ वर्किंग, मेंटल स्टेटस एंड
अकेडमिक रिजल्ट्स विषय पर अपना अध्ययन कार्य किया। अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं
कि पुरुष और महिला, ग्रामीण और शहरी
क्षेत्र में कार्यरत, विवाहित और अविवाहित
शिक्षकों में सार्थक अंतर है। शिक्षकों में जो उचित रूप से संतुष्ट और समायोजित
एवं कुशल हैं वे शिक्षा में सुधार प्रदान करते हैं।
सुरुचि एवं राणा, (2014)12 ने पर्सनल, प्रोफेशनल एंड सोशल
एडजस्टमेंट गवर्नमेंट एंड प्राइवेट सेकेंडरी स्कूल टीचर्सः अ कम्पेरेटिव स्टडी
विषय पर अपना अध्ययन कार्य किया अध्ययन निष्कर्ष में पाया गया कि अध्ययन किए गए
शिक्षकों के व्यक्तिगत, व्यावसायिक और
सामाजिक समायोजन में अंतर मौजूद है। शिक्षकों की कार्य कुशलता, शारीरिक, मानसिक और सामाजिक
स्वास्थ्य पर सौहार्दपूर्ण कार्य वातावरण नौकरी की सुरक्षा, पर्याप्त अवसर, वित्तीय सहायता के
प्रभाव को समझने के लिए अध्ययन उपयोगी है।
इस प्रकार पाण्डे एवं देव (2003), शरीफ (2003), सिंह (2003), बेकेट एवं अन्य
(2004), प्रसाद (2004), नायक (2005), सिंह (2008), निराधर (2009), गुप्ता (2010), सिंह
(2010), सिंह (2013), एवं सुरुचि एवं राणा(2014) के अध्ययनों से स्पष्ट होता है कि
शिक्षकों की समायोजन क्षमता उनकी व्यावसायिक अभिवृत्ति, वेतन, तनाव, व्यक्तित्व, शैक्षिक
दृष्टिकोण, शिक्षण-विधि, शैक्षिक तकनीकी, मनोवैज्ञानिक कारकों, शैक्षिक रिकार्ड, लिंग-भेद, कार्य-स्थान, आदि से सम्बन्धित होती है| उपर्युक्त
अध्ययनों में समायोजन से सम्बन्धित शोध कार्यों का अध्ययन किया गया है जो शोध
समस्या के चर से सम्बन्धित है तथा प्रस्तुत अध्ययन के लिए सहायक भी है| इसमें
समायोजन का अध्ययन अलग अलग चरों व स्तरों के साथ हुआ है जिनके परिणाम में भी काफी
अन्तर है| अतः उपर्युक्त शोध अध्ययनों की समीक्षा के आधार पर यह कहा जा सकता है कि
प्रस्तुत शोध समस्या का अध्ययन करना आवश्यक है ताकि शोध अध्ययन से प्राप्त
परिणामों को अधिक विश्वसनीय तरीके से स्वीकार किया जा सके|
शोध अध्ययन के उद्देश्य-
- उच्च प्राथमिक
स्तर के महिला एवं पुरुष शिक्षकों में समायोजन का तुलनात्मक
अध्ययन करना।
- उच्च प्राथमिक
स्तर के शहरी एवं ग्रामीण शिक्षकों में समायोजन का तुलनात्मक अध्ययन करना।
- उच्च प्राथमिक
स्तर के शहरी एवं ग्रामीण पुरुष शिक्षकों में समायोजन का
तुलनात्मक अध्ययन करना।
- उच्च प्राथमिक
स्तर के शहरी एवं ग्रामीण महिला शिक्षकों में समायोजन का तुलनात्मक अध्ययन
करना।
शोध अध्ययन की परिकल्पनाएँ-
- उच्च प्राथमिक
स्तर के महिला एवं पुरुष शिक्षकों के समायोजन में कोई सार्थक अन्तर नहीं है।
- उच्च प्राथमिक
स्तर के शहरी एवं ग्रामीण शिक्षकों के समायोजन में कोई सार्थक अन्तर नहीं है।
- उच्च प्राथमिक
स्तर के शहरी एवं ग्रामीण पुरुष शिक्षकों
के समायोजन में कोई सार्थक अन्तर नहीं है।
- उच्च प्राथमिक
स्तर के शहरी एवं ग्रामीण महिला शिक्षकों के समायोजन में कोई सार्थक अन्तर नहीं
है।
शोध अभिकल्प-
उच्च प्राथमिक स्तर पर कार्यरत शिक्षकों में समायोजन का अध्ययन करने के लिए शोधकर्ता द्वारा सर्वेक्षण विधि का उपयोग किया गया है, जनसंख्या के रूप में प्रयागराज
जनपद के उच्च प्राथमिक स्तर के शिक्षकों को चयनित किया गया है तथा प्रतिदर्श के रूप में प्रयागराज जनपद में कार्यरत उच्च
प्राथमिक स्तर के शिक्षकों में से 100 शिक्षकों का चयन सरल यादृच्छिकरण विधि से किया गया है|
प्रदत्तों को संकलित करने के लिए शोधकर्ता द्वारा डॉ. ए.एच. रिजवी द्वारा निर्मित
उपकरण का प्रयोग किया गया है, आंकड़ों के संकलन के पश्चात् परिणामों की व्याख्या
करने के लिए मध्यमान, मानक विचलन एवं टी अनुपात (क्रांतिक अनुपात) सांख्यिकीय
विधियों का प्रयोग किया गया है|
प्रदत्तों का
विश्लेषण एवं व्याख्या-
परिकल्पना 01 उच्च प्राथमिक स्तर के महिला एवं पुरुष
शिक्षकों के समायोजन में कोई सार्थक अन्तर नहीं है|
तालिका-01
उच्च प्राथमिक स्तर
के महिला एवं पुरुष शिक्षकों के समायोजन के मध्य क्रान्तिक अनुपात की गणना
समूह |
N |
M |
S.D. |
क्रान्तिक अनुपात |
सारणी मान |
सार्थकता |
परुष |
50 |
64.54 |
15.33 |
3.06 |
1.98 |
सार्थक |
महिला |
50 |
73.84 |
15.07 |
उपरोक्त तालिका संख्या-01 से स्पष्ट है कि पुरुष शिक्षकों (N=50) का मध्यमान 64.54 एवं मानक विचलन- 15.33 तथा महिला शिक्षकों (N=50) का मध्यमान-73.84 तथा मानक विचलन 15.07 है| दोनों समूहों के मध्य प्राप्त टी-मान- 3.06 पाया गया जो df=98 के सार्थकता स्तर 0.05 पर सारणी मान=1.98 से अधिक है| अतः शून्य परिकल्पना “उच्च प्राथमिक स्तर के महिला एवं पुरुष शिक्षकों के समायोजन में कोई सार्थक अन्तर नहीं है” को 0.05 सार्थकता स्तर पर अस्वीकार किया जाता है एवं वैकल्पिक परिकल्पना “उच्च प्राथमिक स्तर के महिला एवं पुरुष शिक्षकों के समायोजन में अन्तर है” को स्वीकार किया जाता है| अतः कहा जा सकता है कि- उच्च प्राथमिक स्तर के महिला एवं पुरुष शिक्षकों के समायोजन में अन्तर होता है।
परिकल्पना 02 उच्च प्राथमिक स्तर के शहरी एवं ग्रामीण
शिक्षकों के समायोजन में कोई सार्थक अन्तर नहीं है|
तालिका-02
उच्च प्राथमिक स्तर
के शहरी एवं ग्रामीण शिक्षकों के समायोजन के मध्य क्रान्तिक अनुपात की गणना
समूह |
N |
M |
S.D. |
क्रान्तिक अनुपात |
सारणी मान |
सार्थकता |
शहरी |
50 |
68.94 |
16.41 |
0.16 |
1.98 |
असार्थक |
ग्रामीण |
50 |
69.44 |
15.40 |
उपरोक्त तालिका संख्या-02 से स्पष्ट है कि शहरी शिक्षकों (N=50) का मध्यमान 68.94 एवं मानक विचलन- 16.41 तथा ग्रामीण शिक्षकों (N=50) का मध्यमान-69.44 तथा मानक विचलन 15.40 है| दोनों समूहों के मध्य प्राप्त टी-मान- 0.16 पाया गया, जो df=98 के सार्थकता स्तर 0.05 पर सारणी मान=1.98 से कम है| अतः शून्य परिकल्पना “उच्च प्राथमिक स्तर के शहरी एवं ग्रामीण शिक्षकों के समायोजन में कोई सार्थक अन्तर नहीं है” को 0.05 सार्थकता स्तर पर स्वीकार किया जाता है| अतः कहा जा सकता है कि- उच्च प्राथमिक स्तर के शहरी एवं ग्रामीण शिक्षकों के समायोजन में अन्तर नहीं होता है|
परिकल्पना 03 उच्च प्राथमिक स्तर के शहरी एवं ग्रामीण पुरुष
शिक्षकों के समायोजन में कोई सार्थक अन्तर नहीं है |
तालिका-03
उच्च प्राथमिक स्तर
के शहरी एवं ग्रामीण पुरुष शिक्षकों की समायोजन के मध्य टी अनुपात की गणना
पुरुष |
N |
M |
S.D. |
टी-अनुपात |
सारणी मान |
सार्थकता |
शहरी |
25 |
64.40 |
15.32 |
0.064 |
2.01 |
असार्थक |
ग्रामीण |
25 |
64.68 |
15.66 |
उपरोक्त तालिका संख्या-03 से स्पष्ट है कि शहरी पुरुष शिक्षकों (N=25) का मध्यमान 64.40 एवं मानक विचलन- 15.32 तथा ग्रामीण पुरुष शिक्षकों (N=25) का मध्यमान-64.68 तथा मानक विचलन 15.66 है| दोनों समूहों के मध्य प्राप्त टी-मान- 0.064 पाया गया, जो df=48 के सार्थकता स्तर 0.05 पर सारणी मान =2.01 से कम है| अतः शून्य परिकल्पना “उच्च प्राथमिक स्तर के शहरी एवं ग्रामीण पुरुष शिक्षकों के समायोजन में कोई सार्थक अन्तर नहीं है” को 0.05 सार्थकता स्तर पर स्वीकार किया जाता है| अतः कहा जा सकता है कि- उच्च प्राथमिक स्तर के शहरी एवं ग्रामीण पुरुष शिक्षकों के समायोजन में अन्तर नहीं होता है|
परिकल्पना 04 उच्च प्राथमिक स्तर के शहरी एवं
ग्रामीण महिला शिक्षकों के समायोजन में कोई सार्थक अन्तर नहीं है|
तालिका-04
उच्च प्राथमिक स्तर
के शहरी एवं ग्रामीण महिला शिक्षकों की समायोजन के मध्य टी अनुपात की गणना
महिला |
N |
M |
S.D. |
टी-अनुपात |
सारणी मान |
सार्थकता |
शहरी |
25 |
73.48 |
16.50 |
0.167 |
2.01 |
असार्थक |
ग्रामीण |
25 |
74.20 |
13.84 |
उपरोक्त तालिका संख्या-04 से स्पष्ट है कि शहरी महिला शिक्षकों (N=25) का मध्यमान 73.48 एवं मानक विचलन- 16.50 तथा ग्रामीण महिला शिक्षकों (N=25) का मध्यमान-74.20 तथा मानक विचलन 13.84 है| दोनों समूहों के मध्य प्राप्त टी-मान- 0.167 पाया गया, जो df=48 के सार्थकता स्तर 0.05 पर सारणी मान=2.01 से कम है| अतः शून्य परिकल्पना “उच्च प्राथमिक स्तर के शहरी एवं ग्रामीण महिला शिक्षकों के समायोजन में कोई सार्थक अन्तर नहीं है” को 0.05 सार्थकता स्तर पर स्वीकार किया जाता है| अतः कहा जा सकता है कि- उच्च प्राथमिक स्तर के शहरी एवं ग्रामीण पुरुष शिक्षकों के समायोजन में अन्तर नहीं है|
निष्कर्ष एवं विवेचना-
प्रस्तुत अध्ययन के निर्धारित परिकल्पनाओं एवं समंकों के
विश्लेषण के आधार पर निम्नलिखित निष्कर्ष और उसका विवेचन निम्न प्रकार है-
1.
तालिका संख्या-01 के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि उच्च
प्राथमिक स्तर के महिला एवं पुरुष शिक्षकों के समायोजन में अन्तर है जिसमें महिला
शिक्षकों के समायोजन का मध्यमान पुरुष शिक्षकों के समायोजन के मध्यमान से अधिक है
जिससे स्पष्ट होता है कि महिला शिक्षक पुरुष शिक्षकों से अधिक समायोजित हैं| उपरोक्त
परिणामों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि उच्च प्राथमिक स्तर पर कार्यरत महिला और
पुरुष शिक्षकों में शिक्षण अनुभव, मनोवृत्ति, अपेक्षाएं, पदोन्नति के सम्बन्ध
में धारणायें, विद्यालय के कार्यों में भागीदारी, सेवा के दौरान मिलने वाले अवकाश,
सहकर्मियों एवं अधिकारीयों से अच्छा सम्बन्ध, व्यक्तिगत नैतिक मूल्य, सामाजिक
स्थिति आदि के कारण सम्भवतः यह अन्तर प्राप्त हो रहा होगा| प्रस्तुत शोध निष्कर्ष
का समर्थन सिंह (2003), नायक (2005), सिंह (2008), निराधर (2009) एवं सिंह (2013)
के निष्कर्ष भी करते है|
2.
तालिका संख्या-02 के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि उच्च
प्राथमिक स्तर के शहरी एवं ग्रामीण शिक्षकों के समायोजन में अन्तर नहीं है|
जिसमें शहरी शिक्षकों के समायोजन का मध्यमान तथा ग्रामीण शिक्षकों के समायोजन के
मध्यमान लगभग एक समान है| इससे स्पष्ट होता है कि शहरी एवं ग्रामीण शिक्षकों का
समायोजन एक समान हैं| उपरोक्त परिणामों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि उच्च
प्राथमिक स्तर पर कार्यरत महिला और पुरुष शिक्षकों में बौद्धिक स्तर, शिक्षण अनुभव, मनोवृत्ति, अपेक्षाएं, पदोन्नति
के सम्बन्ध में धारणायें, विद्यालय के कार्यों में भागीदारी, सहकर्मियों एवं
अधिकारीयों से अच्छा सम्बन्ध, व्यक्तिगत नैतिक मूल्य एवं सामाजिक स्थिति आदि के
प्रति समान दृष्टिकोण के कारण सम्भवतः यह अन्तर प्राप्त नहीं हो रहा होगा|
प्रस्तुत शोध निष्कर्ष का समर्थन प्रसाद (2004) का निष्कर्ष भी करता है|
3.
तालिका संख्या-03 के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि उच्च
प्राथमिक स्तर के शहरी एवं ग्रामीण पुरुष शिक्षकों के समायोजन में अन्तर
नहीं है| जिसमें शहरी पुरुष शिक्षकों के समायोजन का मध्यमान तथा ग्रामीण पुरुष शिक्षकों
के समायोजन के मध्यमान लगभग एक समान है| इससे स्पष्ट होता है कि शहरी एवं ग्रामीण
पुरुष शिक्षकों का समायोजन एक समान हैं|उपरोक्त परिणामों के आधार पर यह कहा जा
सकता है कि उच्च प्राथमिक स्तर पर कार्यरत महिला और पुरुष शिक्षकों में बौद्धिक
स्तर, शिक्षण अनुभव, मनोवृत्ति, अपेक्षाएं, पदोन्नति के सम्बन्ध में धारणायें,
विद्यालय के कार्यों में भागीदारी, सहकर्मियों एवं अधिकारीयों से अच्छा सम्बन्ध,
व्यक्तिगत नैतिक मूल्य एवं सामाजिक स्थिति आदि के प्रति समान दृष्टिकोण के कारण
सम्भवतः यह अन्तर प्राप्त नहीं हो रहा होगा| प्रस्तुत शोध निष्कर्ष का समर्थन प्रसाद
(2004) का निष्कर्ष भी करता है|
4. तालिका संख्या-04 के
अध्ययन से स्पष्ट होता है कि उच्च प्राथमिक स्तर के शहरी एवं ग्रामीण पुरुष
शिक्षकों के समायोजन में अन्तर नहीं है| जिसमें शहरी महिला शिक्षकों के समायोजन का
मध्यमान तथा ग्रामीण महिला शिक्षकों के समायोजन के मध्यमान लगभग एक समान है| इससे
स्पष्ट होता है कि शहरी एवं ग्रामीण महिला शिक्षकों का समायोजन एक समान हैं|उपरोक्त
परिणामों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि उच्च प्राथमिक स्तर पर कार्यरत महिला और
पुरुष शिक्षकों में बौद्धिक स्तर, शिक्षण अनुभव, मनोवृत्ति, अपेक्षाएं, पदोन्नति के सम्बन्ध
में धारणायें, विद्यालय के कार्यों में भागीदारी, सहकर्मियों एवं अधिकारीयों से
अच्छा सम्बन्ध, व्यक्तिगत नैतिक मूल्य एवं सामाजिक स्थिति आदि के प्रति समान
दृष्टिकोण के कारण सम्भवतः यह अन्तर प्राप्त नहीं हो रहा होगा| प्रस्तुत शोध
निष्कर्ष का समर्थन प्रसाद (2004) का निष्कर्ष भी करता है|
शैक्षिक निहितार्थ-
शोध कार्य से प्राप्त परिणामों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि उच्च प्राथमिक
स्तर के महिला शिक्षकों में समायोजन पुरुष शिक्षकों की अपेक्षा अच्छा होता है
क्योंकि महिला शिक्षक पुरुष शिक्षकों की अपेक्षा प्राथमिक स्तर के छात्रों का
ध्यान अच्छे से रखती है हमेशा ये विद्यालय परिस्थिति में सबसे सहयोगात्मक तरीके से
व्यवहार के साथ विद्यालय वातावरण में एक सुखद पारिवारिक वातावरण का निर्माण करती
हैं। इसलिए इनका समायोजन पुरुष शिक्षकों की अपेक्षा बेहतर होता है| शहरी एवं
ग्रामीण, पुरुष, महिला शिक्षकों के समायोजन में अन्तर नहीं होता है क्योंकि शहरी
ग्रामीण दोनों शिक्षक समायोजन के महत्व एवं सामाजिक सम्बन्धों को समझते है इसलिए
दोनों समायोजन के सन्दर्भ में समान व्यवहार रखते हैं| इस शोध अध्ययन से स्पष्ट है
कि उच्च प्राथमिक स्तर पर कार्यरत विभिन्न समूहों के शिक्षकों के समायोजन के
मध्यमान के आधार पर शिक्षकों के विभिन्न समूहों की समायोजन क्षमता की पहचान कर
सकेंगें| इस शोध आलेख से यह भी जानकारी प्राप्त होती है कि शिक्षकों के विभिन्न
समूहों में समायोजन क्षमता कैसी है? शिक्षकों की समायोजन क्षमता की तुलना कर
समायोजन से सम्बन्धित कमियों और विशेषताओं की भी जानकारी प्राप्त कर सकेंगें|
सम्पादक-द्वय : डॉ. माणिक व डॉ. जितेन्द्र यादव चित्रांकन : सौमिक नन्दी
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