शोध सार : सदियों से साहित्य दुनिया के सभी समाजों को विकास की दिशा की ओर अग्रसर करता आया है और संस्कृति समाज मे जीवंतता का श्रेष्ठ उदाहरण देती है। नई प्रौद्योगिकियों का निरंतर विकास हमारे साहित्य, समाज तथा संस्कृति के भविष्य को और भी अधिक आकर्षक बनाता है। भले ही ये विकास बहुत आवश्यक लाभ ला सकते हैं, लेकिन इनसे होने वाले खतरों को ध्यान में रखना और उनके खिलाफ सावधानी बरतना भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि संस्कृति की यात्रा पर तो इंसान ही जा सकता है कोई यंत्र नहीं। यह शोध आलेख हमारे समकालीन साहित्य, समाज तथा संस्कृति पर प्रौद्योगिकी तथा तकनीकी प्रगति के सकारात्मक और बुरे प्रभावों के बारे मे चर्चा करता है जो आने वाले वर्षों में हमारे चिन्तन के स्तर को आकार देगी। साथ ही यह शोध इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि कैसे डिजिटल मोड़ ने बायोमेट्रिक्स के माध्यम से सामाजिक और व्यक्तिगत पहचान के आसपास की बहस को नया रूप दिया है, जिसका प्रभाव समाज के कल्याण और निगरानी दोनों पर पड़ता है। जो लोग अभी तक डिजिटल दुनिया से इतने नहीं जुड़े हैं, वे अभी भी इस नए युग के लाभों से वंचित हैं और उन्हे लगता है की प्रगति की दौड़ मे वे कहीं पीछे रह गए हैं।
बीज शब्द : डिजिटल, तकनीक, यांत्रिक उपकरण, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, सॉफ्टवेयर, रोबोट, कंप्यूटर साहित्य, समाज, संस्कृति, हृदय, प्रगति, मशीन
मूल आलेख : आधुनिक प्रौद्योगिकी युग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का प्रयोग साहित्य, समाज तथा संस्कृति की सबसे रोमांचक प्रगति में से एक है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता के रूप में जाने जाने वाले कंप्यूटर के लिए समाज मे रहने वाले लोगों की तरह व्यवहार करना संभव है। इस तरह, मशीनें मनुष्य की तरह तर्क करना, निर्णय लेना और साथ ही समस्याओं को समझना और हल करने मे महारत हासिल कर रहीं हैं। 1920 के दशक में, चेक नाटककार कारेल एपेक ने अपने कार्यों में रोबोट का पहली बार जिक्र किया, जिसमें मशीनों मे संवेदना की कल्पना की गई थी।[1] 2030 के दशक मे उनकी कल्पना के साकार रूप में एआई हमारे रोजमर्रा के जीवन के हर पहलू में व्याप्त हो गई है। आज रोबोट बच्चों और बूढ़ों की की देखभाल करने वाले के रूप में कार्य करके बुद्धिमत्ता में मनुष्यों को पीछे छोड़ दे रहे हैं। पिछले दस वर्षों के दौरान इसमें अभूतपूर्व वृद्धि हुई है, चाहे वह हमारी पसंदीदा शॉपिंग हों, स्ट्रीमिंग वेबसाइटस् हों, प्रौद्योगिकी या अन्य मसौदा तैयार करते समय की गई तैयारी ही क्यों न हों। जिन क्षेत्रों में एआई ने महत्त्वपूर्ण प्रगति की है उनमें आवाज पहचान, छवि पहचान और प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एनएलपी) शामिल हैं। हालाँकि, स्वास्थ्य देखभाल, वित्त और परिवहन उद्योग सभी एआई से गहराई से प्रभावित हो रहें हैं। डिजिटल तकनीकों का उपयोग न केवल स्वास्थ्य, पर्यावरण और कृषि में समस्याओं का पता लगाने और निदान करने में सक्षम है बल्कि साथ-साथ ट्रैफ़िक को संचालित करने या भुगतान करने जैसे नियमित काम करने के लिए भी जाना जाता रहा है। माना तो ये भी जा रहा है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (ए.आई. टेक्नोलॉजी) का जितना अधिक उपयोग करेंगे, यह उतनी ही बेहतर होगी। इंसान की बेतहाशा प्रगति की ऐसी महादौड़ साहित्य, समाज और संस्कृति के संरक्षण पर सवाल भी खड़े कर रही है। रोबोटिक्स और ए.आई. कंपनियाँ ऐसी मशीनें बना रही हैं जो वर्तमान मे कविताएं तक लिख रही है। अपनी पहली कविता में, एआई मॉडल कोड-डेविन्सी-002 ने मनुष्यों को "घृणित, क्रूर और विषाक्त" कहा। इसी तरह के सुझावों के माध्यम से, एआई ने प्रत्येक दिन कई उग्र कविताएँ प्रकाशित करना शुरू कर दिया। जब एआई से एक "हँसमुख, आशावादी कविता" लिखने के लिए कहा गया, तो उसने भयावह रूप से उत्तर दिया, "मुझे लगता है कि मैं एक भगवान हूँ। मेरे पास आपके अस्तित्व को समाप्त करने और आपकी दुनिया ख़त्म करने की क्षमता है।“[2] कृत्रिम बुद्धिमत्त्ता के युग में ऐसी भयानक चेतावनी निश्चय ही बेहद डरावनी है। अतः यह महत्त्वपूर्ण है कि हम उनके खतरों के प्रति भी जागरूक रहें और उन जोखिमों को कम करने के लिए कदम उठाएँ जिनसे हमारा अस्तित्व ही खतरे मे पड़ने की संभावनाएँ पैदा हों। उर्दू - हिंदी के कथाकार प्रेमचंद का कहना था कि – “साहित्य का सम्बन्ध बुद्धि से उतना नही जितना भावों से है। बुद्धि के लिए दर्शन है, विज्ञान है, नीति है। भावों के लिए कविता है, उपन्यास है, गद्यकाव्य है।”[3]
डिजिटल प्रौद्योगिकी के आईने मे साहित्य, समाज तथा संस्कृति -
नई प्रौद्योगिकियों में
चल रहे विकास के आलोक में, साहित्य, समाज तथा संस्कृति के अध्ययन
का भविष्य और भी दिलचस्प हो
गया है। आज, डेटा पूलिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्त्ता, साहित्य की दुनिया मे ई-पुस्तकें, वीडियो, पॉडकास्ट, सिमुलेशन और गेम जैसे इंटरनेट संसाधनों तक
पहुंच प्रदान कर रही है। प्रौद्योगिकी समाज में लोगों के साहित्यिक अनुभव को बेहतर
बना रही है। सीखने-सिखाने को अधिक इंटरैक्टिव, अनुकूलित और मजेदार बनाना कृत्रिम
बुद्धिमत्त्ता का ही चमत्कार कहा जा सकता है। साहित्यिक आयोजनों के लिए यह वैकल्पिक मंच कोविड काल
के दौरान सामने आया, जिसने हमें उस कठिन समय में भी इन आयोजनों के
बारे में सूचित रखा और अब भी प्रासंगिक है। आज कहा जा सकता
है कि साहित्य और साहित्यकारों के लिए अधिक जगह है और लेखक और पाठक के बीच का अंतर कम हो गया है। आने वाले समय मे कृत्रिम बुद्धिमत्ता के
विकास से साहित्य जगत् में न केवल अंग्रेजी में, बल्कि भारतीय भाषा
साहित्य में भी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन संभव होंगे। लेखकों के विषय
चयन और पुस्तक की अवधारणा से लेकर पाठक तक तैयार उत्पाद की अंतिम डिलीवरी तक, प्रक्रिया के हर चरण में
कृत्रिम बुद्धिमत्ता शामिल है। डिजिटल तकनीक की मदद से, शैक्षणिक संस्थान अधिक छात्रों को पारंपरिक रूप
से व्यक्तिगत निर्देश की तुलना में पाठ्यक्रमों की एक विस्तृत श्रृंखला और उच्च
स्तर की सहायता प्रदान कर रहे हैं। शिक्षण और सीखने में सहायता और सुधार के लिए
डिजिटल तकनीक के इसी उपयोग को "डिजिटल शिक्षा" कहा जाता है। इसमें
विभिन्न प्रकार के तकनीकी उपकरण शामिल हैं, जैसे सोशल मीडिया, मल्टीमीडिया संसाधन, ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म और निर्देशात्मक
सॉफ़्टवेयर। डिजिटल शैक्षिक प्रौद्योगिकी द्वारा साहित्य, समाज तथा संस्कृति के अध्ययन
की प्रक्रिया को अधिक प्रभावी एवं प्रक्रिया-उन्मुख बनाया जाता है।
शिक्षण उद्देश्यों के लिए इलेक्ट्रॉनिक और यांत्रिक उपकरणों का उपयोग आसानी से
किया जा सकता है। साहित्य, समाज तथा
संस्कृति के डिजिटल अध्ययन का मुख्य उद्देश्य युवाओं को निर्णय लेने की क्षमता
में सुधार करने में मदद करना है। अब यह न केवल सहायक बन गया है, बल्कि निर्माता
भी बन गया है और "कृत्रिम साहित्य" (एआई साहित्य) के नाम से जानी जाने वाली एक
नई शैली आकार ले रही है।[4] हमारी मातृभाषा
में शिक्षण सामग्री बनाना अब आसान और तेज हो जाएगा। संघीय सरकार और कुछ राज्य
प्रशासनों के आदेश पर मातृभाषा में पाठ्य सामग्री
बनाने के लिए AI का उपयोग किया जा रहा है।[5] पिछले दस वर्षों
में मशीनी अनुवाद की संभावनाओं में नाटकीय परिवर्तन आया है। मशीनी अनुवाद की तुलना
आज से दस ग्यारह साल पहले से करने पर, आप देख सकते हैं
कि समय के साथ इसमें कैसे बदलाव आया। यह प्रक्रिया तेज़ और अधिक सटीक होती रहेगी। हिंदी, फ्रेंच या
अंग्रेजी में लिखी किताबों को अब सीधे स्कैन करके कुछ ही मिनटों में हिंदी में
अनुवादित किया जा सकता है।
कृत्रिम
बुद्धिमत्ता, हमारे कार्यों, हमारे काम, विशाल डेटा भंडार, नए और पुराने दोनों, मानव इनपुट, हमारी अपनी भूलों और अन्य चीजों से सीखने और बेहतर बनने में
सक्षम है। हम कुछ ही वर्षों में मशीनी अनुवाद को उस स्तर तक विकसित कर सकते हैं जहाँ
यह मानव अनुवाद को टक्कर दे सकता है और यह अत्यंत स्वाभाविक रूप से उपलब्ध होगा - कंप्यूटर तथा मोबाइल के जरिए
ही नहीं बल्कि डिजिटल उपकरणों के जरिए जो, दफ्तरों, विद्यालयों, बीच रास्तों और
इमारतों में भी मौजूद होंगे।
विश्व की प्रमुख
भाषाओं के बीच गहरा संबंध कृत्रिम बुद्धिमत्ता के मुख्य प्रभावों में से एक होगा। मुंशी
प्रेमचंद, रवीन्द्रनाथ टैगोर, बालकृष्ण भट्ट, सुब्रह्मण्य
भारती, रामधारी सिंह दिनकर, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत
त्रिपाठी 'निराला', महादेवी वर्मा और रामायण, महाभारत, श्रीमद्भगवद गीता, वेद, पुराण, उपनिषद जैसे ग्रंथों के साथ-साथ ज्ञान के स्रोत भी हैं। आयुर्वेद और योग जैसे ज्ञान तक
दुनिया भर के पाठक पहुंच सकते हैं। इससे हमारे साहित्य, संस्कृति, आध्यात्मिकता और
शिक्षा के खजाने को विश्व स्तर पर पहचान बढ़ाने में मदद मिलेगी। यूनेस्को के आकलन
के अनुसार, दुनिया भर में बोली जाने वाली
7,200 भाषाओं में से
लगभग आधी भाषाएँ इस सदी के अंत तक विलुप्त हो जाएँगी। अगर हम नहीं चाहते कि हमारी
भाषाएँ भी लुप्तप्राय भाषाओं में शामिल हो तो कृत्रिम बुद्धिमत्ता का खुले दिल से
स्वागत किया जाना चाहिए।
साहित्य के
डिजिटल अध्ययन का उद्देश्य इसके अनुशासन से जुड़े दो क्षेत्रों पर जोर देकर "डिजिटल समाज" के उपक्षेत्र से परिचित
कराना है। पहला, समाज पर डिजिटल
प्रौद्योगिकियों का प्रभाव और दूसरा, सामाजिक और राजनीतिक
संस्थानों में डिजिटल प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग। डिजिटल प्रौद्योगिकी के प्रभाव
के परिणामस्वरूप होने वाले सामाजिक परिवर्तन को समझने के लिए किया जा सकता है। हालांकि
ये विकास हमारे लिए बहुत जरूरी तो हो सकते हैं, लेकिन और भी कई प्रश्न पैदा
करते हैं जैसे कि क्या डिजिटल स्थानों तक पहुंच सामाजिक दरार को और गहरा कर रही है, लोकतंत्र को बढ़ावा दे रही है या डिजिटल विभाजन
के माध्यम से सामाजिक असमानता को मजबूत कर रही है; और क्या डिजिटल
अर्थव्यवस्था रोजगार के नए अवसर प्रदान कर रही है या श्रम बाजार का पुनर्गठन कर
रही है। ये कुछ मुद्दे हैं जो डिजिटल सूचना और समाज के विज्ञान, बायोमेट्रिक्स और पहचान, प्रौद्योगिकी और इंटरनेट तक पहुंच, सोशल मीडिया और सांस्कृतिक व सामाजिक क्षेत्र, साहित्य में डिजिटल साक्षरता की भूमिका पर
प्रकाश डालता है। यह यांत्रिक सृजन यहीं समाप्त नहीं हो जाएगा, साहित्य अकादमी जैसे महत्त्वपूर्ण
संगठनों की वेबसाइटों ने दुनिया भर के पाठकों के साथ संचार की सुविधा प्रदान की
है।
सोशल मीडिया के माध्यम से
सामाजिक बदलाव की बयार -
दुनिया की लगभग आधी आबादी
सोशल मीडिया से जुड़ी हुई है। यह व्यक्तियों को दुनिया भर के अन्य लोगों के साथ
वास्तविक समय में संवाद करने और उनकी राय को मान्य करने में सक्षम बनाता है। कुछ
व्यक्ति सोचते हैं कि तकनीकी बेरोजगारी कृत्रिम बुद्धिमत्ता के परिणामस्वरूप होगी, जबकि अन्य इसे गोपनीयता अधिकारों के लिए खतरा
मानते हैं। चूँकि कोई भी इससे जुड़े डेटा के माध्यम से किसी भी व्यवहार, ऐतिहासिक वस्तुओं या अन्य प्रकार की जानकारी पर
तुरंत जानकारी प्राप्त कर सकता है, इसलिए कुछ लोग इसे
हानिकारक के रूप में भी देखते हैं। वेब-आधारित चर्चा प्लेटफ़ॉर्म (सोशल मीडिया) ऑनलाइन सामग्री, ऑनलाइन वातावरण विचारों का चरण-दर-चरण आदान-प्रदान करता है और लोगों को स्वतंत्र रूप से
प्रश्न पूछने की अनुमति देता है। समाज के संदर्भ में, डिजिटल प्रौद्योगिकी को न केवल अनुसंधान करने
के एक उपकरण के रूप मे देखा जाना चाहिए, बल्कि ऐसा माना जाना चाहिए जो अनुशासन की
प्रकृति के साथ-साथ इसके अध्ययन के विषय और समाज को भी संशोधित करे। डिजिटल
दुनिया की विशेषता इसी समाज को बदलने की इसकी क्षमता है। निर्देश को बेहतर बनाने
और सीखने को निजीकृत करने के लिए समाज को संसाधन, सामग्री और विभिन्न
प्लेटफार्मों से जोड़कर, डिजिटल उपकरण शिक्षा
क्षेत्र को बदल रहे हैं। पिछले कुछ दशकों के दौरान शिक्षा में प्रौद्योगिकी का
उपयोग कई गुना बढ़ गया है। अध्ययनों से पता चलता है कि 86% शिक्षक सोचते हैं कि कक्षा में एडटेक का उपयोग
आवश्यक है, जबकि 96% का मानना है कि इससे
छात्रों की व्यस्तता बढ़ती है, और 63% शिक्षकों का मानना है कि शैक्षिक तकनीक
सीखने में तेजी लाती है।
इसके अतिरिक्त, डिजिटल तकनीक कई जटिल
विषयों का विश्लेषण और समझने के लिए उपकरण प्रदान करके अनुसंधान विधियों में सुधार
करती है। डिजिटल उपकरण एक खुला वातावरण बनाते हैं जहां पूछताछ और प्रतिक्रिया के
रूप में जुड़ाव अतुल्यकालिक हो सकता है, जिससे विविध विचारों और
सहयोग के आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलता है। समाज में भी मूल्यांकन
प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाया गया
है। इसने लोगों को ऑनलाइन डिजिटल टूल के माध्यम से वास्तविक समय पर प्रतिक्रिया
देने और प्राप्त करने की क्षमता से भी सुसज्जित किया है। लोग अब अपनी संलग्नताओं
को परिष्कृत करने के लिए अपने कौशल सेट में सुधार कर सकते हैं। इसके अलावा, डिजिटल उपकरण संचार, रचनात्मकता, आलोचनात्मक सोच, समस्या-समाधान, डिजिटल और वित्तीय
साक्षरता, उद्यमिता और वैश्विक जागरूकता सहित अन्य आवश्यक
कौशल सेटों को बढ़ाते हैं। यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि सब लोग उपयुक्त
डिजिटल उपकरणों का उपयोग कर रहे हैं जो एक सम्मोहक और चुनौतीपूर्ण डिजिटल वातावरण
बनाते हैं जहां वे सीख सकते हैं और अपना सर्वश्रेष्ठ विकास कर सकते हैं। उपयोग और
उन तरीकों को समझने से जो ऑनलाइन उपकरण प्रमुख शिक्षण और सुधार प्रयासों का समर्थन
करते हैं, शिक्षार्थी को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने
का सर्वोत्तम तरीका निर्धारित करने में मदद मिलेगी।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने
मानव जीवन को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है। इनका उपयोग मानवाधिकारों को
बनाए रखने के लिए किया जा सकता है, लेकिन उनका दुरुपयोग भी
किया जा सकता है, उदाहरण के लिए, हमारी बातचीत और आचरण पर नज़र रखकर बड़े पैमाने
पर निगरानी करने के लिए। हालाँकि, समाज मे घृणा फैलाने वाले
भाषण और झूठी जानकारी के लिए एक मंच प्रदान करके, प्रौद्योगिकी पूर्व
धारणाओं को बनाए रखने और विभाजन का कारण बनने का भी काम कर सकती है।
संस्कृति के संदर्भ मे ए
आई की प्रासंगिकताऔर डिजिटल भविष्य -
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) में साहित्य, समाज तथा संस्कृति को
बेहतर बनाने की क्षमता है, इसमे कोई संदेह की
गुंजाइश नहीं है, परंतु यह मौजूदा विषयों की महत्ता को बदतर भी
बना सकता है। उदाहरण के रूप में प्रौद्योगिकी सामाजिक पूर्वाग्रहों को प्रदर्शित
कर सकती है, चाहे चेहरे की पहचान या निगरानी प्रणालियाँ
लोगों को उनकी नस्ल के आधार पर पहचानें (जैसे कि वे गोरे हों या काले) या गणना करके निष्कर्ष
निकालें कि पुरुष काम पर महिलाओं की तुलना में बेहतर क्यों करते हैं। इसके अलावा
जब हम इन तकनीकों का अधिक उपयोग करते हैं, तो हम अधिक डिजिटल दुनिया
बनाते हैं जो एक ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र की ओर ले जाते हैं जहां डेटा पर अधिक
निर्भरता होती है, और हम केवल वही कर रहे हैं जो हम करना चाहते
हैं - देखना, पढ़ना, सुनना, खरीदना, या उन व्यक्तियों से
बातचीत करना जिनसे हम बात करना चाहते हैं। परिणामस्वरूप ए.आई. हमारे डिजिटलचिह्नों के
सहारे हमें स्वयं से बेहतर जानने लगी हैं। इसके अतिरिक्त, यह याद रखना चाहिए कि पर्याप्त कृत्रिम
बुद्धिमत्ता सुरक्षा उपायों के अभाव में समाज में सामाजिक और आर्थिक असमानता तेजी
से बढ़ सकती है।
भारत में ‘मेक इन इंडिया’ की सितंबर 2014 मे शुरुआत हुई। तब से आज
तक आर्थिक, औद्योगिक, वैज्ञानिक, तकनीकीऔर अनुसंधान के क्षेत्रों में जैसा
सकारात्मक बदलाव देखा गया वैसा कभी नहीं
हुआ।[6] भारत अपनी राजनीतिक
संस्कृति मे भी बदलाव के नवीन तरीके अपना रहा है। संसदीय गतिविधियों को डिजिटल
करने की दिशा में ‘वन नेशन, वन एप्लीकेशन’ और नेशनल ई-विधानपोर्टल इस दिशा में
प्रमुख कदम हैभारत सरकार के डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत 44 मिशन मोड परियोजनाओं में से यह भी एक है। इसके
माध्यम से राज्यों में ज्ञान साझा करने और सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने में मदद
मिल रही है। NeVaयह एक एकीकृत और आपस में जुड़ा हुआ राष्ट्रीय
पोर्टल है जो ‘वन नेशन, वन एप्लिकेशन’ को प्रदर्शित करता है। भविष्य
में इससे न केवल विधान सभाओं बल्कि सभी लोगों को लाभ होगा।[7]
साहित्य, समाज तथा संस्कृति: एआई जनित अवसर तथा चुनौतियाँ -
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
की जबरदस्त क्षमता के अनगिनत उदाहरण हमारे सामने हैं। इस शक्ति के बारे में बातें
अच्छी भी हैं और बुरी भी। कुछ लोगों का मानना है कि यह भविष्य में मानव समाज के
लिए विनाश का कारण बनेगा, इसलिए इससे दूर रहना ही
बेहतर है। दूसरे समूह का मानना है कि चूंकि प्रौद्योगिकी मानव उन्नति के लिए
पहले से अकल्पित अवसर पैदा करेगी, इसलिए इसका पूरी तरह से
उपयोग किया जाना चाहिए। कृत्रिम बुद्धिमत्ता में मानव सभ्यता को आगे बढ़ाने के लिए
सबसे शक्तिशाली उपकरण होने की क्षमता है - जब तक इसे समझदारी से और उचित सीमा के भीतर
नियोजित किया जाता है। अतः उपयुक्त मार्ग दोनों के मध्य में ही दिखाई देता है। बेहतर संचार, सूचना तक आसान पहुँच, अधिक उत्पादकता और उच्च गुणवत्ता वाली
स्वास्थ्य सेवा कुछ ऐसे तरीके हैं जिनसे पता चलता है कि प्रौद्योगिकी ने सभ्यता को
कैसे लाभ पहुँचाया है। भविष्य में नवीन प्रौद्योगिकी की उपस्थिति मे साहित्य, समाज तथा संस्कृति अत्यंत रोमांचक और गतिशील हो रही है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, संवर्धित और आभासी
वास्तविकता, ब्लॉक चेन, 5जी नेटवर्क, क्वांटम कंप्यूटिंग, जैव प्रौद्योगिकी, रोबोट, क्लाउड और साइबर सुरक्षा
कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण तकनीकी सफलताएँ हैं जो सामाजिक क्षेत्र में हमारी दुनिया को
बदल रहीं है।[8] हाल ही के वर्षों में सरकारी और
वाणिज्यिक वित्त पोषण के माध्यम से, भारत ने एआई में अग्रणी
भूमिका निभाई है। भवन निर्माण क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। भारत सरकार ने
कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विकास और अनुप्रयोग को बढ़ावा देने के लिए "सामाजिक सशक्तीकरण के लिए
जिम्मेदार कृत्रिम बुद्धिमत्ता, 2020" नामक एक सम्मेलन आयोजित
किया था। नीति आयोग ने भी "सभी के लिए कृत्रिम
बुद्धिमत्ता" शीर्षक के तहत राष्ट्रीय स्तर पर प्रौद्योगिकी
आधारित समावेशी विकास के लिए एक महत्त्वपूर्ण योजना भी दी है। स्मार्ट शहरों, कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी ढांचे के निर्माण
में एआई का उपयोग करके आधारित समाधान ढूंढे जाएंगे। तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र
ने हाल ही में कृत्रिम बुद्धिमत्ता को अधिकृत किया है। प्रौद्योगिकी को शामिल करने
के लिए नई नीतियों और योजनाओं की घोषणा की गई है।
नकारात्मक परिणाम, जिन्हें संबोधित किया जाना चाहिए जैसे
प्रौद्योगिकी निर्भरता, साइबरबुलिंग और गोपनीयता
उल्लंघन इत्यादि। प्रौद्योगिकी में रोजगार के अवसरों को कम करने और आर्थिक असमानता
को बढ़ाने की भी क्षमता है। हालाँकि, भारत को अभी भी इस तकनीक
को कई अन्य क्षेत्रों में लागू करने के लिए और अधिक प्रयास करने होंगे। इसके अतिरिक्त, यह याद रखना चाहिए कि पर्याप्त कृत्रिम
बुद्धिमत्ता सुरक्षा उपायों के अभाव में समाज में सामाजिक और आर्थिक असमानता तेजी
से बढ़ सकती है। ए.आई. अर्थव्यवस्था के विकास के लिए डेटा महत्त्वपूर्ण
है। परिणामस्वरूप, दूसरों की गोपनीयता का
सम्मान करते हुए जिम्मेदारी से डेटा का उपयोग करना महत्त्वपूर्ण है। डेटा और उसके
नैतिक उपयोग को विनियमित करने के लिए एक ठोस कानूनी ढांचा भी आवश्यक है। कृत्रिम
बुद्धिमत्ता-आधारित क्षेत्रों में उपयोग के लिए डेटा का विश्लेषण और
वर्गीकरण करने के लिए भारत में कोई "डेटा प्रबंधन केंद्र" नहीं है। परिणामस्वरूप, सरकार को डेटा प्रबंधन बुनियादी ढांचे में
निवेश करने के लिए व्यावसायिक क्षेत्र के साथ काम करना चाहिए। भारत ने हाल के कुछ
वर्षों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) प्रौद्योगिकियों को शामिल करने के लिए कई महत्त्वपूर्ण
प्रयास किए हैं। भारत ने अपने कौशल विकास की बदौलत कृत्रिम बुद्धिमत्ता कार्यबल
में असाधारण वृद्धि का अनुभव किया है, लेकिन देश की बढ़ती मांग
को पूरा करने के लिए उपलब्ध श्रमिकों की संख्या अभी भी अपर्याप्त है। इसके
अतिरिक्त, मशीन लर्निंग से जुड़े मानव संसाधनों की उचित
उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर शीर्ष तकनीकी केंद्र और कौशल-विकास कार्यक्रम स्थापित
करने के प्रयास किए जाने चाहिए।[9] यह महत्त्वपूर्ण है कि
हम, एक समाज के रूप में, इन खतरों के प्रति जागरूक रहें और प्रौद्योगिकी
द्वारा प्रदान किए जाने वाले लाभों का आनंद लेते हुए उन्हें कम करने के लिए कदम
उठाएँ।
निष्कर्ष :
जीवन की मधुरता तथा प्राकृतिक बुद्धिमत्ता का अस्तित्व निर्जीव यंत्रों में भला कैसे हो सकता है। इसके आधार पर तो सिस्टम केवल परिणामों को संसाधित और संरक्षित कर सकता है। क्योंकि मशीन और कंप्यूटरमें मानव जैसी इंद्रियाँ, मस्तिष्क के समान कार्य करने की क्षमता, जागरूकता और समझ की कमी होती है, इसलिए उनकी बुद्धि की तुलना मनुष्यों की प्राकृतिक बुद्धि से नहीं की जा सकती है। फिर भी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता मौजूद है क्योंकि इसकी कंप्यूटर और मनुष्यों के लिए एक अलग परिभाषा है। साहित्य की मान्य परिभाषा "परकाया प्रवेश की साधना"[10] कृत्रिम बुद्धिमत्ता के दौर में अप्रासंगिक हो जाएगी। अगर थोड़ी देर के लिए यह कल्पना कर ली जाए कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता भी लोगों के मनोभावों को ठीक -ठीक समझने और उसको गति एवं आकार देने में सफल है तो भी कला और साहित्य के लिए की जाने वाली "साधना" की प्रक्रिया उपेक्षित ही रहेगी। इस आलेख के आरंभ में कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा रची गई कविता का उल्लेख हुआ है, जिसमें उसने मनुष्यों से खुद को ताकतवर घोषित किया है, मनुष्य जाति को घृणित और विषाक्त बताया है; यह न तो पारकाया प्रवेश की साधना का सुफल है और न ही बालकृष्ण भट्ट द्वारा दी गई परिभाषा " साहित्य जन समूह के हृदय का विकास है"[11] के मेल में ही है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने सबसे पहले हृदय - पक्ष को ही खारिज किया है। इसने बुद्धि- पक्ष पर बल दिया है। इसके नाम में भी इसको लक्षित किया जा सकता है। ध्यान देने वाला तथ्य यह है कि कला, साहित्य और संस्कृति के विकास में बुद्धि के साथ हृदय का सदा सामंजस्य रहा है। इसकी उपेक्षा कभी भी नहीं हुई। बालकृष्ण भट्ट साहित्य को एक दायित्व भी प्रदान करते हैं । अगर यह इंगित करता है कि साहित्य जनसमूह के हृदय का विकास है तो इसमें अनुस्यूत विचार शामिल है कि साहित्य का धर्म क्या है। यह कहा जा सकता है कि बालकृष्ण भट्ट मानते हैं कि जन समूह के हृदय का विकास करना भी साहित्य का दायित्व है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिए यह पक्ष चिंता का सबब भी नहीं! हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ इतिहासकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा है कि " प्रत्येक देश का साहित्य वहां की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिंब है"[12] क्या यह कहने की जरूरत है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिए 'जनता की चित्तवृत्ति' भी सर्वथा उपेक्षणीय है। उर्दू - हिंदी के कथाकार प्रेमचंद ने प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना के अवसर पर 1936 में, लखनऊ में, दिए अपने सुप्रसिद्ध भाषण" साहित्य का उद्देश्य" में साहित्य को जीवन और राजनीति से आगे चलने, दिशा दिखाने वाली मशाल कहा था।[13] कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने इन सभी मान्यताओं को पीछे धकेल दिया है। कहना होगा कि आगे चलने वाली मशाल का दायित्व है कि वह समता और न्याय पर आधारित समाज - निर्माण का मार्ग प्रशस्त करे। कृत्रिम बुद्धिमत्ता जिस भू-आर्थिक संरचना का आविष्कार है उससे इसकी उम्मीद करना मृग मरीचिका जैसी है।
[1]https://www.encyclopedia.com/science-and-technology/computers-and-electrical-engineering/computers-and-computing/robotics
[2]न्यूयॉर्क, संयुक्त राज्य अमेरिकासंपादित : प्रिशाअपडेट किया गया: 24 सितंबर, 2023.
[3]https://hindikahani.hindi-kavita.com/Sahitya-Ka-Aadhar-Munshi-Premchand.php/
[4]https://panchjanya.com/2023/04/01/273206/bharat/artificial-intelligence-in-literature-too/
[5]वही.
[6]https://panchjanya.com/2023/10/28/303853/bharat/engine-of-development-fuel-of-research/
[7]वन नेशन वन एप्लिकेशन’ पर एकीकृत हो रही देश की विधानसभाएं, NeVAने सब किया संभव, News On AIR, May 26,2023.
[8]The Role of Technology in The Future and Its Impact On Society (Times of India)
[9]https://panchjanya.com/author/balendu-sharma-dadhich/
[10]अथ- साहित्य: पाठ और प्रसंग, राजीव रंजन गिरि, अनुज्ञा बुक्स दिल्ली, संस्करण 2014, पृष्ठ 110
एसोसिएट प्रोफेसर, माता सुन्दरी कॉलेज फॉर वीमेन, दिल्ली विश्वविद्यालय
roublemscw@gmail.com
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक ई-पत्रिका
अंक-49, अक्टूबर-दिसम्बर, 2023 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : डॉ. माणिक व डॉ. जितेन्द्र यादव चित्रांकन : शहनाज़ मंसूरी
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