शोध सार : ‘जल है, तो कल है’ पंक्ति जितनी सरल है, उतनी ही गंभीर। जल के अभाव में मनुष्य अपने अस्तित्व की कल्पना भी नहीं कर सकता। मनुष्य के सम्पूर्ण शरीर में 75% केवल जल ही है। आज वैज्ञानिक रूप से मनुष्य ने काफ़ी विकास कर लिया है लेकिन इस विकासांधता में मनुष्य ने प्राकृतिक सम्पदाओं का दोहनकर स्वयं के अस्तित्व के लिए संकट पैदा कर लिया है। आज सम्पूर्ण विश्व जल संकट का सामना कर रहा है। वैश्विक स्तर पर इस समस्या के निदान हेतु प्रयास किए जा रहे हैं। साहित्य और प्रकृति का रिश्ता प्राचीन समय से है। वैदिक साहित्य परंपरा से लेकर हिंदी साहित्य परंपरा तक में जल संरक्षण की चेतना विद्यमान है। हिन्दी साहित्य सदैव प्रकृति और पर्यावरण के प्रति श्रद्धेय रहा है। हिन्दी उपन्यासों में भी इस परंपरा का निर्वहन हुआ है।
बीज शब्द : पर्यावरण, प्रकृति, जल, जल संरक्षण, हिन्दी उपन्यास
मूल आलेख : सम्पूर्ण सृष्टि में विद्यमान जड़ चेतन सभी पदार्थों की उत्पत्ति प्रकृति में व्याप्त पंचतत्वों से हुई है। ये पंचतत्व हैं : भूमिरापस्तथा वायुरग्निराकाशमेव च।।1अर्थात् पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि एवम् आकाश ये पंचतत्व ही सम्पूर्ण चराचर के चलायमान होने का कारण हैं। भक्तिकालीन कवि तुलसीदास भी रामचरितमानस के किष्किन्धाकाण्ड में यह स्वीकार करते हैं कि मानव शरीर प्रकृति के पंचतत्वों के संयोग से ही निर्मित हुआ है, वे लिखते हैं -
पंच रचित अति अधम सरीरा’’2
पृथ्वी के बाद पर्यावरण का मुख्य घटक है– जल। जल ही जीवन का
आधारभूत तत्व है। पृथ्वी की उत्पत्ति और विकास की कहानी में जल की महत्वपूर्ण
भूमिका रही है। डार्विन के विकास का सिद्धांत भी जीवों की उत्पत्ति जल से मानता
है। यूनानी दार्शनिक थेल्स का भी यही मानना है। वेदों में भी जल को सृष्टि की
उत्पत्ति का प्रमुख तत्व माना गया है। ऋग्वेद के दसवें मंडल के पचासवें सूक्त में
सातवें मंत्र में जल को सम्पूर्ण जगत की जननी कहा है-
यूयं हि ष्ठा भिषजो मातृतमा विश्वस्य स्थातुर्जगतो जनित्रीः॥” 3
ऋग्वैदिक काल में भी जल पवित्र और पूजनीय था। उस समय के
व्यक्ति जल को संरक्षित करने व उसे शुद्ध बनाए रखने के प्रति सचेत थे। ऋग्वेद की
ही जल संस्कृति और परंपरा का विकास अथर्ववेद में भी है। अथर्ववेद में भी जल की
स्तुति की गई है, कहा गया है कि जिस प्रकार मां का प्रेम और वात्सल्य अपने बच्चों के प्रति
सदैव उमड़ता रहता है, उसी प्रकार हे जल देवी! आप हमें भी
अपने रस से पूर्ण करें।
“वः शिवतमो रसस्तस्य यो भाजयतेह नःउशतीरिव मातरः
॥”4
पौराणिक साहित्य में भी जल के प्रति श्रद्धा की भावना
विद्यमान थी। नदियों को पूजनीय माना जाता था। उत्तर वैदिक काल में संस्कृत साहित्य
में भी प्रकृति के प्रति सचेतनता विद्यमान है। रामायण, महाभारत एवं कालिदास द्वारा रचित ‘मेघदूत’ या भवभूति के ‘उत्तररामचरित’ आदि संस्कृत महाकाव्यों में भी हमें नदियों और जल का वर्णन मिलता है । इस
प्रकार भारतीय संस्कृति और साहित्य जल संरक्षण के प्रति प्रारंभ से ही सचेत और
क्रियाशील रहे हैं । प्रकृति और प्राकृतिक संपदाओं के प्रति संरक्षण की इस भारतीय
परंपरा का निर्वहन हिन्दी साहित्य में भी भली-भांति हुआ है। हिन्दी साहित्य में भी
ऐसी अनेक रचनाएँ दृष्टव्य हैं, जिनमें जल संरक्षण की भावना व्याप्त है।
हिन्दी साहित्य में जल, जंगल और जीवन के संरक्षण हेतु समाज को जागृत करने की विशाल
परंपरा देखी जा सकती है । हिन्दी कवियों एवं कथाकारों ने अपनी कृतियों के माध्यम
से जनता को जल संकट से अवगत कराया है। साहित्य समाज का प्रतिबिंब होता है और
साहित्यकार अपने समाज और समय का प्रतिनिधि। अपने समाज एवं सामाजिक समस्याओं के
प्रति तटस्थ होकर साहित्य सृजन नहीं हो सकता है। समाज में एक उक्ति काफी प्रचलित
है कि – जहां न पहुंचे रवि वहाँ पहुंचे कवि । साहित्यकार सदैव दूरदृष्टि लेकर चलता
है जिस संकट को वह महसूस कर पा रहा होता है, समाज को उससे
अवगत कराना वह अपना दायित्व समझता है। जल जीवन का पर्याय है। आज सम्पूर्ण विश्व जल
संकट का सामना कर रहा है। इस वैश्विक जल संकट का समाधान निकालने में सम्पूर्ण
विश्व लगा हुआ है। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी जल के संरक्षण को लेकर
पर्याप्त कदम उठाए जा रहे हैं।
‘संयुक्त राष्ट्र जल विकास रिपोर्ट – 2023’ सतत विकास के
लिए निर्धारित किए 17 लक्ष्यों में से लक्ष्य 6 की प्राप्ति के लिए प्रतिबद्धता को
दर्शाती है। लक्ष्य 6 अर्थात, ' स्वच्छ जल और स्वच्छता ' स्वास्थ और कल्याण के लिए बुनियादी मानव
आवश्यकता के रूप में सुरक्षित जल और स्वच्छता की उपलब्धता और सतत प्रबंधन पर
केन्द्रित है।“एस. डी. जी.(सतत विकास लक्ष्य) : सुरक्षित और किफायती पेयजल, पानी की गुणवत्ता में सुधार करना। अपशिष्ट
जल उपचार और सुरक्षित पुनः उपयोग करना। पानी के उपयोगी दक्षता में वृद्धि और मीठे
पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करना है। पानी से संबंधित पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा
करना और उसे बहाल करना।”5
“संयुक्त राष्ट्र के अनुसार वर्ष 2025 तक विश्व के दो तिहाई
लोग जल तनाव का सामना करेंगे, जिसका सर्वाधिक प्रभाव भारत पर पड़ेगा। दुनिया की
आबादी का 17.5% हिस्सा भारत में रहता है, लेकिन यहाँ धरती के ताजे पानी के स्त्रोत का केवल 4% ही हैं।”6
इस प्रकार निकट भविष्य में जल आपूर्ति को लेकर भारत की चिंताएं बढ़ने की संभावना है।
हमारी सरकार जल संकट का सामना करने के लिए स्वयं को तैयार
कर रही है, जिसके लिए कई प्रकार की योजनाएं भी बनाई जा रही हैं। भारत शीतोष्णप्रधान देशों
में प्रमुख है। भारत की लगभग 80% जल की आवश्यकता बारिश के पानी से पूर्ण होती है।
वर्षा न होने के कारण भारत की सम्पूर्ण व्यवस्था चरमरा जाती है। 1770, 1869, 1873 और 1943
में बारिश न होने के कारण ही भारत को भीषण सूखे और अकाल का सामना करना पड़ा था।
भारत सरकार वर्षा जल संग्रहण के प्रति सचेत है। भारत सरकार, राज्य सरकारों, कॉरपोरेट घरानों, सामाजिक संस्थाओं, स्वैच्छिक संगठनों, अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों और सबसे महत्वपूर्ण जन-भागीदारी
के माध्यम से वर्षा जल संचयन की असीमित संभावनाओं को यथार्थ के धरातल पर उतारने की
कोशिश कर रही है। राज्य स्तर पर भी ऐसी अनेक योजनाओं का क्रियान्वयन हो रहा है
जैसे- आंध्र प्रदेश द्वारा संचालित ‘नीरूचेट्टू’ योजना, बेहतर जल संरक्षण के माध्यम से राज्य को सूखा
मुक्त बनाने के लिए सामूहिक भागीदारी और जागरूक करने का लक्ष्य निर्धारित किए हुए
है। बिहार में ‘जल जीवन हरियाली - सभी सार्वजनिक जलाशय - तालाबों / नहरों आदि की
पहचान करने उनका जीर्णोद्धार और नवीकरण करने से संबंधित योजना है। पहाड़ी
क्षेत्रों में छोटी नालियों / नालों और जल भंडारण क्षेत्रों में बांधों और अन्य जल
संचयन संरचनाओं का निर्माण आदि भी इसी योजना के अंतर्गत आते हैं। गुजरात का
‘सुजलाम सुफलाम जलसंचय अभियान’,यह एक सार्वजनिक निजी भागीदारी कार्यक्रम है और इसमें सरकार
का योगदान 60% है। इसी प्रकार हरियाणा सरकार द्वारा संचालित ‘जल ही जीवन है’ किसानों
को फसल विविधीकरण को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने और पानी की खपत करने वाली धान
जैसी फसलों के बजाय मक्का अरहर आदि जैसी कम पानी की आवश्यकता वाली फसलें बोने के
लिए प्रेरित करता है ताकि पानी का संरक्षण किया जा सके। ओडिशा का ‘पानी पंचायत’, महाराष्ट्र का ‘जलयुक्त शिविर अभियान’, राजस्थान में ‘मुख्यमंत्री जल स्वाबलंबन
अभियान’, तेलंगाना– ‘मिशन
काकतीय’ आदि ऐसे अभियान हैं जो जल को स्वच्छ और संरक्षित करने के उद्देश्य से
विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा चलाए जा रहे हैं। भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर
पर भी ऐसी अनेक योजनाओं की शुरुआत की जा रही है, जैसे :- वर्षा जल संचयन के लिए
‘कैच दी रैन’ अभियान, ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना’, ‘जल जीवन मिशन’ एवं ‘राष्ट्रीय जल शक्ति मिशन’
आदि।
हिन्दी उपन्यासों में भी जल संकट की यथास्थिति व्यक्त हुई
है। 90 के दशक में रामदरश मिश्र द्वारा रचित ‘जल टूटता हुआ’, ‘पानी के प्राचीर’,
‘सूखता हुआ तालाब’, वीरेंद्र जैन द्वारा रचित ‘डूब’, ‘पार’, हिमांशु श्रीवास्तव
द्वारा रचित ‘नदी फिर बह चली’ आदि उपन्यासों में जल संकट की यथार्थ अभिव्यक्ति
देखी जा सकती है। इक्कसवीं सदी के उपन्यासों में नासिरा शर्मा द्वारा रचित ‘कुईयांजान’,
संजीव द्वारा रचित ‘धार’ एवं ‘जंगल जहां शुरू होता’, रतनेश्वर सिंह द्वारा रचित
‘रेखना मेरी जान’ और ‘एक लड़की पानी-पानी’, एस.आर. हरनोट द्वारा रचित ‘नदी रंग-सी
लड़की’ और सुभाष पंत द्वारा रचित ‘पहाड़ चोर’ आदि ऐसे उपन्यास हैं, जिनमें पर्यावरणीय संकट विशेष रूप से
वर्तमान जल संकट को व्यक्त किया गया है। इन उपन्यासों में हमें न केवल तत्कालीन
पर्यावरणीय समस्याओं की अभिव्यक्ति मिलती है, अपितु उन समस्याओं के समाधान खोजने
की प्रेरणा भी मिलती है। इनके अतिरिक्त अलका सरावगी द्वारा रचित ‘एक ब्रेक के बाद’
एवं महुआ मांझी द्वारा रचित ‘मरंग गोंडा नीलकंठ हुआ’ आदिवासी समाज की समस्याओं पर
आधारित उपन्यास हैं लेकिन इनमें भी हमें जल से जुड़ी समस्याओं की अभिव्यक्ति मिलती
है। नासिरा शर्मा द्वारा रचित ‘कुइयांजान’ में जल संकट की वर्तमान स्थिति तो
अभिव्यक्त हुई ही है, साथ ही उसके समाधानों को लेकर भी चर्चा
हुई है। रतनेश्वर सिंह द्वारा 2019 में लिखा गया उपन्यास ‘एक लड़की पानी पानी’ में
भी फैंटसी के माध्यम से जल संकट को लेकर चर्चा हुई है -
“हमारा देश धार्मिक निष्ठा रखने वाला देश है, तो भी गंगा का यह हाल है। कहते हैं, पांच हजार साल बाद गंगा विलुप्त हो जाएगी -
इसके लक्षण झलक रहे हैं। राजापुर में मेरा घर है। वहां से गंगा हम पैदल पार हो
जाते हैं। अब गंगा के अंदर पानी कम, बालू ज्यादा है। जहां गंगा में प्रवाह है, वहां भी सिल्ट और मिट्टी जमा हो गई है - यह घोर
चिंता का विषय है।”7
यही स्थिति अब भारत की अन्य नदियों की भी है।
प्रेमचंद जी के अनुसार साहित्य समाज के आगे-आगे चलने वाली
मशाल की तरह होता है, जो उसे न केवल तत्कालीन समस्याओं से अवगत कराता है अपितु
भविष्य के प्रति चेताता है और संभव समाधान भी सुझाता है। सम्पूर्ण विश्व आज जल
संकट से जूझ रहा है। जल का न होना जीवन के न होने की परिकल्पना है। यह डर इन
पंक्तियों में स्पष्ट देखा जा सकता है -
“वनस्पति न उग सकने के कारण बारिश नहीं होगी और
जब बारिश नहीं होगी तो पेड़ नहीं उगेंगे। घास भी न होगी जिसे हम चूस सकें, न ओस टपकेगी जिसे हम चाट सकें। हम सिर्फ गोली
खाएंगे। तरक्की करेंगे। बेहतरीन मशीनें बनाएंगे - एक बटन से जमाने को बदल डालने
वाली मशीनें।”8
आज मनुष्य ने वैज्ञानिक स्तर पर भले ही बहुत उन्नति कर ली
हो लेकिन इस उन्नति और विकास की प्रक्रिया में मनुष्य ने प्रकृति और प्राकृतिक
संसाधनों का इतना दोहन किया है कि आज उसका भविष्य संकटग्रस्त है । हमारी समस्या यह
नहीं है कि पृथ्वी पर जल नहीं है,
समस्या यह है कि सम्पूर्ण पृथ्वी पर पीने योग्य जल केवल 3% है जो बर्फ, नदियों और भूमिगत जल के रूप में है, उचित संसाधनों
के अभाव में इसकी प्राप्ति दुर्लभ है। यही बात नासिरा शर्मा जी के उपन्यास में
व्यक्त होती है जब ट्रेन में यात्रा करते हुए पानी की समस्या पर चर्चा करते हुए एक
व्यक्ति कहता है -
“पानी ....पानी का संकट मुझे पूरी नौटंकी लगती
है। हमारे पास जल की अपार सम्पदा है; मगर हम उसकी व्यवस्था ठीक ढंग से नहीं कर पा रहे हैं।”9
पृथ्वी के लगभग 70% भाग पर पानी उपलब्ध है लेकिन उस जल को
प्रयोग के लायक बनाने की हमारे पास तकनीक नहीं है, हालांकि वैज्ञानिक इन तकनीकों की खोज में लगे हुए हैं । हमारे पास समुद्री जल
के रूप में अपार जल संपदा है किन्तु उस जल को उपयोगी बनाने का माध्यम नहीं
है। साहित्य कल्पना और यथार्थ का मिश्रण
होता है और कभी-कभी यही कल्पनाशक्ति नवीन भविष्य निर्माण में सहायक होती है।
रतनेश्वर जी के उपन्यास ‘एक लड़की पानी पानी’ में श्री की मित्र ऋषा द्वारा तैयार
किया जा रहा प्रोजेक्ट इसी उम्मीद को जागृत करता है-
“यह लो यार !यह मेरा
प्रोजेक्ट है । समुद्री पानी को मीठे पानी में कैसे बदल जा सकता है,इसमें इसका प्रारूप है
।”10
यह सम्पूर्ण उपन्यास विज्ञान और कल्पना के माध्यम से एक सुन्दर भविष्य का सुन्दर स्वप्न हमारे समक्ष प्रस्तुत करता है। इस उपन्यास की कहानी के पात्र शोधार्थी हैं जो वाटर रिसर्च प्रोग्राम पर ही कार्य कर रहे होते हैं। उपन्यास के आरंभ में ही एक अध्यापिका के माध्यम से उन सभी क्षेत्रों के बारे में चर्चा की गई है जो जल संकट से निपटने में अग्रिम भविष्य में हमारा पथ प्रदर्शन कर सकते हैं। जैसे -
“हम लोगों को चार
स्तरों पर काम करना होगा। पहला है - जमीन पर पानी संचय और उसके ग्रहण क्षेत्रों का
विस्तार। दूसरा है - बारिश नियंत्रण, बादल बने इसके लिए वाष्पीकरण और
बादलों की निर्माण स्थिति। तीसरा – जगय के दूर ग्रहों, नक्षत्रों पर पानी की
तलाश। उसका पानी पृथ्वी पर लाने की संभावना
और चौथा – क्या वैज्ञानिक दृष्टि से बड़ी मात्र में एचटूओ (H2O)का कृत्रिम निर्माण
संभव है?”11
इस उपन्यास की मूल कथा के केंद्र
में जल ही है। उपन्यास में नदी-नदान प्रोजेक्ट, समुद्री जल को मीठा करने का
प्रोजेक्ट, श्रीस्त्र, अंतरिक्ष में विचरित
डेनियल जल पिंड आदि की चर्चा होती है। उपन्यास की मुख्य पात्र श्री है, जो अंतर्राष्ट्रीय जल सम्मेलन में
भारत का प्रतिनिधित्व करती है और सम्पूर्ण उपन्यास में एक जल युद्ध के रूप में उभर
कर हमारे सामने आती है, जो आने वाली पीढ़ी को जल संरक्षण के प्रति सचेत करती
है, उन्हें प्रेरित करती
है। 2019 में लिखित इस उपन्यास में हमें जल से जुड़ी उन सभी योजनाओं का वर्णन
प्राप्त होता जो वर्तमान समय में भारत सरकार द्वारा जल को संरक्षित और स्वच्छ रखने
के लिए क्रियान्वित की जा रही हैं, चाहे वह ‘जलदूत एप’ हो या ‘अमृत सरोवर मिशन’।
“देश के सभी हिस्सों में पर्याप्त
पानी की उपलब्धता और आपूर्ति सुनिश्चित करने के इन प्रयासों के तहत ,भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय और पंचायती राज
मंत्रालय ने संयुक्त रूप से पानी के स्तर को मापने के लिए ‘जलदूत एप’ विकसित किया
है।
इसी प्रकार वर्षा जल संरक्षण को
ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने 24 अप्रैल,2022 को ‘अमृत सरोवर मिशन’ शुरू
किया। इसके अन्तर्गत देश के प्रत्येक जिले में 75 वर्षा जल संचय तालाबों यानी
सरोवरों के निर्माण का लक्ष्य है । 2023 तक 50000 अमृत सरोवरों के निर्माण का
लक्ष्य निर्धारित किया गया है। मात्र 11 महीनों में ही 11 मार्च 2023 तक 40000
अमृत सरोवरों के निर्माण का लक्ष्य पूरा हो चुका है , जो निर्धारित लक्ष्य का 80% है।” 12
‘एक लड़की पानी पानी’ में श्री
द्वारा सरकार को सौंपा गया ‘नदी – नदान’ प्रोजेक्ट अमृत सरोवर के जैसा ही
प्रोजेक्ट है। इन उपन्यासों में केवल कोरी कल्पना पर बात नहीं की गई है, ये उपन्यास हमें डाटा
उपलब्ध कराते हुए वर्तमान परिस्थिति से अवगत कराते हैं। जल की उपलब्धता के साथ-साथ
हमारे सामने जल के प्रदूषित होने की भी समस्या है। “संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट 2023 के अनुसार
कहा गया है कि विश्व स्तर पर अभी भी दो बिलियन लोग हैं ,यानी छब्बीस प्रतिशत आबादी के पास सुरक्षित
पेयजल नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक 1.7 – 2.4 बिलियन (वैश्विक आबादी का एक
तिहाई) लोगों को सुरक्षित रूप से पीने के पानी की कमी होगी।”13 प्रति
व्यक्ति साफ जल अनुपलब्धता के मामले में आज भारत 37 वें स्थान पर है और जिस तरह
भारत की आबादी बढ़ती जा रही है प्रति व्यक्ति यह जल उपलब्धता और कम होती जा रही है।
इस चिंता को रतनेश्वर सिंह व्यक्त करते हुए लिखते हैं -
“भारत प्रति व्यक्ति साफ पानी की अनुपलब्धता के
मामले में 37 वें स्थान पर पहुँच चुका है,जो बेहद चिंता का विषय है। हमारे पड़ोसी देशों की स्तिथि भी
बहुत खराब है, जिसका खामियाजा भारत को ही भुगतना पड़ रहा है।
आज पाकिस्तान पानी की अनुपलब्धता के मामले में तीसरे स्थान पर आ गया है।”14
आज भारतीय समाज में विशेषकर गांवों में जल संकट तेजी से
व्याप्त होता जा रहा है,
कई कई दिनों तक पानी नहीं आता। गाँव में पानी न होने का सबसे अधिक खामियाजा
महिलाओं को ही भुगतना पड़ता है । बीबीसी द्वारा किए गए एक सर्वे में महिलाएं पानी न
आने के कारण आने वाली समस्याओं का जिक्र करती हैं एक महिला कहती है – “सरकार हमें
सिलेंडर दे न दे फ़र्क नहीं पड़ेगा,पानी दे दे बहुत फ़र्क
पड़ेगा। पानी की जरूरत तो मुरदों को भी होती है। जब इंसान मरता है तो उसके मुंह में
सिलेंडर या गैस नहीं डालते, पानी डालते हैं। हम पानी की
बूंद-बूंद को तरस रहे हैं।”15 गांवों में महिलाओं को पानी के लिए बहुत
कष्ट उठाने पड़ते हैं, उनकी सारी गृहस्थी पानी न होने के कारण
ठप हो जाती है, पानी के लिए सबसे ज्यादा संघर्ष सामाजिक स्तर
पर महिलाओं द्वारा ही किया जाता है शायद यही कारण है कि नासिरा शर्मा जी और
रतनेश्वर सिंह जी दोनों के ही उपन्यासों में महिलाएँ ही जल संरक्षण का नारा बुलंद
किए दिखती हैं।
देश में हर घर तक आज भी पानी नहीं पहुँच पाता है और जो पानी
आता है, वो इतना दूषित होता है कि उसे
पीने तक का मन नहीं करता। “देश के करीब 79 फीसदी घरों तक पीने के पानी का नल नहीं
पहुँचा है, कई इलाकों में लोग पानी खरीदने को बाध्य हैं ।
देश में प्रदूषित पानी से हर साल करीब दो लाख मौतें होती हैं जबकि हजारों लोग
बीमार पड़ते हैं।”16 ‘कुइयांजान’ उपन्यास में नासिरा शर्मा जी ने समाज
की इस सच्चाई को उतारते हुए लिखा है-
“कई जिलों में पानी की जांच से पता चला है कि
नलकूप से आने वाला पानी पीने लायक नहीं है । भोजपुर जिले में पानी में आर्सेनिक की
मात्रा बहुत अधिक पाई गई है, जिसका सेवन स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक
है । अब सारे नलकूप सील कर दिए गए हैं और उस इलाके में टैंकर की सहायता से जनता को
सरकार जल उपलब्ध करवा रही है।”17
पीने योग्य पानी की उपलब्धता कम तो है ही लेकिन जितना पानी
उपलब्ध है उसकी व्यवस्था भी ठीक से नहीं हो पा रही है। प्रदूषित जल कई तरह की
बीमारियों की वजह बनता है। व्यवस्था की इसी लापरवाही और अकर्मण्यता के कारण डेंगू, वायरल हेपेटाईटिस, इंसेफेलाईटिस, डायरिया जैसी बीमारियां फैल रही हैं इनके
अतिरिक्त भी अनेक असाधारण बीमारियाँ भी आज कल देखी जा सकती हैं।
“पानी और शरीर का आपसी रिश्ता बड़ा गहरा है। साफ
पीने के पानी की बढ़ती कमी हमें अनेक खतरनाक बीमारियों की ओर ले जाएगी, जो पुरानी बीमारियों से हटकर होंगी, जिनके उपचार और निदान जब तक नए शोध द्वारा
सामने आएंगे तब तक नई बीमारियां इंसानी शरीर को क्षति पहुंचा चुकी होंगी ।”18
पानी के प्रदूषित होने का एक मुख्य कारण औद्योगीकरण है। “वॉटरमैन
ऑफ़ इंडिया के नाम से प्रसिद्ध राजेन्द्र सिंह जी भी कहते हैं- धरती का पानी ख़त्म
नहीं हो रहा बल्कि उस पर अतिक्रमण, प्रदूषण और शोषण बढ़ रहा है।”19
विकास की आड़ में मनुष्य ने स्वयं के अस्तित्व तक के लिए खतरा पैदा कर लिया है।
विकास के नाम पर जंगलों को काट कर फैक्ट्री, कंपनी और लैबोरेट्री आदि तो हमने स्थापित कर लिए लेकिन इनसे
निकलने वाले अपशिष्ट का उचित प्रबंधन हम
आज तक नहीं कर पाए, यह अपशिष्ट यूं ही नदियों और नालों में
प्रवाहित कर दिया जाता है। सरकारों द्वारा जल प्रबंधन और संरक्षण को लेकर नीतियाँ
अवश्य बनाई जाती हैं लेकिन व्यावहारिक स्तर पर वे सही रूप में क्रियान्वित नहीं हो
पाती हैं। आज हमारे पास संसाधन हैं केवल व्यवस्थित रूप में उन्हें लागू करने की
आवश्यकता है।
“आज हम में पहले से कहीं अधिक सामर्थ्य है । हम
चीज़ों को बेहतर तरीके से देख सकते हैं।”20
साहित्य की सबसे बड़ी खूबी यही है कि वह अपने पाठकों को
तत्कालीन समस्याओं से अवगत करा कर न केवल सावधान करता है अपितु उन्हे स्वयं उन
समस्याओं पर सोचने- विचारने और उनका समाधान निकालने के लिए भी प्रेरित करता है-
“भारत हमेशा युवाओं की भागीदारी को महत्वपूर्ण मानता रहा है । उसे लगता है कि दुनिया में बदलाव सिर्फ युवा ही ला सकते हैं और उसमें भी लड़कियां हों तो सोने पर सुहाग! उसका यह भी मानना है की युवाओं के पास खिकचा आँखें होती हैं, जिनमें ताजा पानी भर होता है । .... और आज विश्व को स्वच्छ, मीठे और ताजे पानी की जरूरत है।”21
1. महाभारत,डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशन,संस्करण :2020, भीष्म पर्व अध्याय पांच,श्लोक 4,
4. https://vedicscriptures.in/atharvaveda/1/5/0/2
5. कुरुक्षेत्र,जून 2023,पृष्ठ -5
14. एक लड़की पानी-पानी ,रतनेश्वर सिंह ,राजपाल प्रकाशन,कश्मीरी गेट,दिल्ली-110006,प्रथम संस्करण-2019,पृष्ठ-125
16. https://www.bbc.com/hindi/magazine-59052375
17. कुइयांजान,नासिरा शर्मा,सामयिक प्रकाशन,दरियागंज,नई दिल्ली-110002,संस्करण ;2005,पृष्ठ – 83
20. कुइयांजान,नासिरा शर्मा,सामयिक प्रकाशन,दरियागंज,नई दिल्ली-110002,संस्करण ;2005,पृष्ठ – 405
गायत्रीशोधार्थी, हरियाणा केंद्रीय
विश्वविद्यालय, महेंद्रगढ़, हरियाणा9588199223
डॉ. कमलेश कुमारीसह-आचार्य, हरियाणा केंद्रीय
विश्वविद्यालय,महेंद्रगढ़,हरियाणा
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक ई-पत्रिका
अंक-49, अक्टूबर-दिसम्बर, 2023 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : डॉ. माणिक व डॉ. जितेन्द्र यादव चित्रांकन : शहनाज़ मंसूरी
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक ई-पत्रिका
अंक-49, अक्टूबर-दिसम्बर, 2023 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : डॉ. माणिक व डॉ. जितेन्द्र यादव चित्रांकन : शहनाज़ मंसूरी
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