शिक्षा के विभिन्न आयाम पर डॉ. कलाम के विचार
- संध्या यादव एवं डॉ. अमित कुमार
शोध सार : वर्तमान समय में बेरोजगारी एवम् गरीबी राष्ट्र के समक्ष एक विकट समस्या बनकर उभरी है। डॉ. कलाम का मानना है कि इस समस्या से राष्ट्र को तभी छुटकारा मिल सकता है, जब शिक्षा व्यवस्था सुदृढ़ होने के साथ ही रोजगार उन्मुखी, कौशलयुक्त एवम् नैतिक हो, जिससे व्यक्ति का सर्वांगीण विकास किया जा सके। डॉ. कलाम प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था से लेकर उच्च शिक्षा व्यवस्था का विश्लेषणात्मक अध्ययन कर कहते हैं कि शिक्षा व्यवस्था में आवश्यक बदलाव करने की आवश्यकता है। डॉ. कलाम विज़न 2020 के तहत देश को एक दशक के भीतर विकसित राष्ट्र के पटल पर अंकित करना चाहते थे। उसके लिए विभिन्न योजनाओं की रूपरेखा दिये, जिसके तहत शिक्षा को महत्वपूर्ण मानते हुए शिक्षा सम्बन्धित विभिन्न आयाम जैसे- ग्रामीण शिक्षा के विकास से लेकर शहरी शिक्षा, सामान्य शिक्षा एवम विशिष्ट शिक्षा, स्त्री शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, नैतिक शिक्षा, सूचना एवम् तकनीकी शिक्षा, अध्यापक, छात्र, विद्यालय, प्रबन्धन शिक्षा, डिजिटल शिक्षा इन सब बिन्दुओं पर प्रकाश डाला एवम् आवश्यक सुझाव भी दिया है। डॉ कलाम के शैक्षिक विचारों का वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर सकारात्मक रूप से प्रभाव पड़ा है।
बीज
शब्द : शिक्षा, नैतिक शिक्षा, रोजगारपरक, शिक्षक, छात्र, पाठ्यक्रम, अनुशासन, विज्ञान एवम् तकनीकी, ग्रामीण
शिक्षा, विशिष्ट शिक्षा,
व्यावसायिक शिक्षा।
मूल आलेख : शिक्षा वह साधन है, जिसके माध्यम से व्यक्ति का सर्वांगीण विकास कर उसे आत्मनिर्भर, सदाचारी, नैतिक एवं कर्तव्यनिष्ठ बना समाजोपयोगी बनाने का कार्य करता है, जिससे राष्ट्र प्रगति एवं उन्नति के रास्ते पर अनवरत बढ़ता रहे। किसी राष्ट्र की उन्नति उस राष्ट्र की शिक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य व्यवस्था एवं सुरक्षा व्यवस्था पर निर्भर करता है, अगर शिक्षा तंत्र सही हो तो उस राष्ट्र का विकास सुनिश्चित होता है। वर्तमान समय में कौशलयुक्त शिक्षा, रोजगारपरक एवं नैतिक शिक्षा की आवश्यकता है, जिससे बालक के सामने भविष्य मे जीविकोपार्जन सम्बन्धित समस्या उत्पन्न न हो, साथ ही वह अपने व्यक्तित्व से राष्ट्र को गौरवान्वित करे।
ऐसी ही शिक्षा के प्रबल समर्थक डॉ. ऐ.पी.जे.
अब्दुल कलाम थे। जिनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 को मद्रास राज्य (अब तमिलनाडु ) के
रामेश्वरम गाँव में हुआ था। ये एक मध्यम वर्गीय तमिल परिवार से थे।1
इनके पिता का नाम जैनुलाबदीन एवं माता का नाम आशियम्मा था। डॉ. कलाम ने माता-पिता
की दी हुई शिक्षा को आजीवन अपने आचरण में धारण किया, डॉ. कलाम ने अपनी आत्मकथा ‘विंग्स ऑफ़ फायर’ में जिक्र किया है कि मैनें पिताजी की बातें विज्ञान
और प्रौद्योगिकी का कार्य करते हुए सदैव स्मरण में रखा।
“मै उन बुनियादी सत्यों को समझने का प्रयास
करता रहा, जिसे मेरे पिताजी ने
मेरे सामने रखा और मुझे संतुष्टि का आभास हुआ कि ऐसी कोई दैवीय शक्ति जरुर है जो
असफलता, भय, दुःख, विषाद से छुटकारा दिलाती है तथा सही रास्ता दिखाती
है”।2 मिसाइल मैंन,
वैज्ञानिक, आध्यात्मिक, प्रवृत्ति के धनी, शिक्षाविद
डॉ. कलाम के विचारों में ऐसी शिक्षा देखने को मिलती है जो विज्ञान एवं अध्यात्म से
परिपूर्ण है। डॉ. कलाम के विचार सिर्फ विज्ञान तकनीकी तक ही सीमित नहीं है,
अपितु सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था,
राजव्यवस्था, आर्थिक व्यवस्था, सैन्य व्यवस्था, स्वास्थ्य व्यवस्था सभी क्षेत्रों को व्यापक रूप से
प्रभावित करते हैं।3
डॉ. कलाम ने भारत को 2020 में एक विकसित
राष्ट्र के रूप में प्रतिस्थापित करने के लिए अपने विचार व्यक्त किये हैं और सभी
के दायित्व भी निर्धारित किये हैं कि एक शिक्षक, छात्रों के लिए क्या कर सकता है, वहीं नेता, नीतियों का कैसे पालन करा सकता है, विद्यालय प्रशासन क्या कर सकता है। श्रमिक,
डॉक्टर, अभियंता, छात्र, शिक्षक, आम जन कैसे अपना योगदान सुनिश्चित कर सकते
हैं। जिससे भारत विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में अपना नाम दर्ज करा सके, इसके लिए सभी को अपना कार्य ईमानदारी एवं
निष्ठा से करना होगा।
डॉ. कलाम के विचार विज्ञान जगत से लेकर दर्शन
के परिदृश्य तक दृष्टिगोचर होते है। उनके विचार विज्ञान एवं अध्यात्म में अनुपम
मेल प्रस्तुत करते हैं। सर्वधर्म समभाव के विचारों के पोषक डॉ. कलाम के इस सम्बन्ध
में विचार-
“ईश्वर तथा विज्ञान दोनों हमें सत्य और जीवन
के यथार्थ की ओर ले जाते हैं, जहाँ ईश्वर की आवश्यकता आध्यात्मिकता के लिए है वहीं विज्ञान भौतिक उन्नति के
लिए अपरिहार्य है। मनुष्य के जीवन में दोनों आवश्यक है”।4
डॉ. कलाम शिक्षा के सम्बन्ध में अपना विचार
प्रकट करते हैं कि शिक्षा बहुउद्देश्यीय होनी चाहिए, जिसके द्वारा बालक में रचनात्मक शक्ति का विकास किया
जा सके। बालक को स्वतंत्र होकर प्रश्न पूछने तथा स्वप्न देखने की आजादी मिलनी
चाहिए, जिससे बालक के
कल्पनाशील मन को सृजनात्मक बनाया जा सके।5 शिक्षा का उद्देश्य सत्य की
खोज करना होना चाहिए तथा इस सत्य की खोज करने में अध्यापक केंद्र बिन्दु हो सकता
है।
डॉ. कलाम ऐसी शिक्षा देना चाहते थे जो बालक में
रचनात्मकता लाने के साथ रोजगारपरक एवं नैतिक भी हो, जिससे मानवीय मूल्यों को भी संरक्षित किया जा सके।
शिक्षा का अर्थ एक ज्ञानवान एवं जागृत समाज की स्थापना करना होना चाहिए। जागृत
समाज के तीन पक्ष होते हैं–
एक ऐसी
शिक्षा जिसके निश्चित मूल्य, आर्थिक
विकास एवं आध्यात्मिक विकास करने वाली होना चाहिए।6
डॉ. कलाम छात्र सम्बन्धी संकल्पना में छात्र को
सदाचारी, समय का सही सदुपयोग
करने के साथ अपने कर्तव्य का पालन करने वाला, माता-पिता तथा गुरु एवं बड़ों का सम्मान करने वाला
होना चाहिए। बालक में अध्ययनशीलता एवं खोजकर्ता होने के साथ ही स्वप्न देखने का भी
गुण होना चाहिए। छात्र में ये तीन गुण अवश्य होनी चाहिए “इच्छा, आस्था, उम्मीद”। विद्यार्थी आज ऐसे युग में रह रहे हैं
जहाँ हर कार्य सूचना एवम तकनीकी पर आधारित है। अतः विद्यार्थी को सूचना एवं तकनीकी
का ज्ञान अवश्य होनी चाहिए, इसके
लिए टेली शिक्षा, ई शिक्षा
महत्त्वपूर्ण हो सकती है। इसके द्वारा ग्रामीण एवं शहरी बच्चों में शिक्षा
सम्बन्धी असमानता को कम करते हुए, उन तक आसानी से पहुँचाया भी जा सकता है।
डॉ कलाम द्वारा भारत को एक विकसित राष्ट्र
बनाने में छात्रों के योगदान को अपनी पुस्तक ‘महाशक्ति भारत’ में जिक्र किया गया है। जिसमें छात्रों को दस कार्य
बताये गये हैं। अगर छात्र इनमें से कुछ भी कार्य करना शुरू कर देता है तो वह अपने
राष्ट्र को विकसित बनाने का कार्य शुरू कर सकता है -
• समर्पण युक्त पढ़ाई शुरू करने का कार्य।
• दस पौधा रोपण एवं संवर्धन करने का कार्य।
• ग्रामीण और शहरीय क्षेत्र में छात्र भ्रमण कर कम से
कम पांच लोगों को जो बुरे व्यवसन में लगे हों जैसे जुए, शराब की लत से छुड़ाने का कार्य कर सके।
• धार्मिक, जातिगत, भाषागत भेदभाव से
दूर रहना एवं उसका समर्थन न करना।
• विकलांग बच्चों की सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहना।
• जागरूक नागरिक बनाने के साथ अपने परिवार को साहसी
बनाने का कार्य और महिला शिक्षा का समर्थन करने का कार्य।
• ईमानदारी पूर्ण कार्य करना।
• अपने से जुड़े लोगो के दुःख, दर्द को कम करने का प्रयास करना।
• कम से कम दस व्यक्ति को पढ़ाने का कार्य करना चाहिए, जो पढ़ लिख नहीं सकते।7
डॉ. कलाम शिक्षक पर विचार व्यक्त करते हुए
कहते हैं कि शिक्षक वह व्यक्ति होता है, जिसका व्यक्तित्व उज्ज्वल हो तथा छात्रों में छिपी अंतर्निहित शक्तियों को
पहचानने वाला होना चाहिए। डॉ. कलाम अपने गुरु अयादुरै सोलोमन का जिक्र करते हुए
कहते है कि उनके व्यक्तित्व का प्रभाव मेरे ऊपर छात्र जीवन में पड़ा, उन्होंने मुझे आभास कराया कि मैं कुछ भी कर
सकता हूँ, जो मैं करना चाहता
हूँ। यही गुण हर शिक्षक में होना चाहिए। शिक्षक संस्कृति को पोषण करने का कार्य
करता है। छात्र की रचनात्मक शक्ति को बनाये रखने में शिक्षक अपने दायित्व का
निर्वहन कर समाज में परिवर्तन लाने का कार्य करता है। कोई भी समाज जो शिक्षक का
आदर और सम्मान नहीं करता, वह
ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह सकता। मध्यम वर्ग के शिक्षक के सामने कई समस्याएँ भी
देखने को मिलती है, जिस पर
ध्यान देने की आवश्यकता भी है जैसे, कम वेतन का मिलना, सम्मान
सम्बंधित, असक्षम प्रबंधन,
विद्यार्थियों की सामाजिक आर्थिक
समस्याएं, माता-पिता द्वारा
शिक्षण प्रक्रिया का भाग न बनना, सामाजिक भेदभाव एवं बच्चों को अधिक अंक देकर पास करने का दबाव आदि ऐसी अनेक
समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है।
शिक्षक का कार्य एक जागृत समाज का विकास करना
होता है, समाज को शिक्षक से
बहुत अपेक्षाएं होती और नागरिक समाज इस बात पर निर्भर करता है कि उस समाज की
शिक्षा व्यवस्था कैसी है तथा उस शिक्षा से कैसे एक प्रबुद्ध नागरिक का निर्माण
किया जा सके। केवल तीन ही व्यक्ति समाज को भ्रष्टाचार मुक्त बना सकते हैं, प्राथमिक विद्यालय स्तर का शिक्षक और
माता-पिता। छात्र एक गीली मिट्टी की तरह होता है जैसे गीली मिटटी को साँचें में
ढालकर मन चाहा आकार दे दिया जाता है, उसी तरह छात्र को शिक्षक सही शिक्षा देकर परिमार्जित करने का कार्य करता है।
अध्यापक को चाहिए कि छात्र को उसके जरुरत के अनुरूप हीं शिक्षा प्रदान करें,
छोटे बच्चों को उनके समझ के ऊपर की
शिक्षा देने से बचना चाहिए क्योंकि छात्र भ्रमित हो सकते हैं।8
डॉ. कलाम ने अपनी कृति ‘हम होंगे कामयाब’ में जिक्र किया है कि छात्र को बारहवीं परीक्षा
उत्तीर्ण करने पर उनके ऊपर खुद की जिम्मेदारी डाल देनी चाहिए कि वह अपने विषय का
खुद चयन करें और छात्र को भी इस बात का ध्यान देना चाहिए कि जिस भी विषय में उनकी
अभिरुचि हो उसी विषय को चुनना चाहिए, अपने मित्र सहपाठियों का अनुकरण करने से बचना चाहिए।9
नैतिक शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित करते हुए डॉ
.कलाम कहते हैं कि यदि हर छात्र अपने आस-पास की सफाई करना शुरू कर दे तो दूषित शहर
साफ और स्वच्छ, सुन्दर बन सकता
है और छात्र जीवन में ही अपने पर्यावरण को साफ और अच्छा रखने की आदत का भी विकास
होगा। छात्र को विद्यालय एवं घर दोनों जगह पर नैतिक शिक्षा दी जा सकती है।10 छात्र जीवन का पाँच वर्ष से लेकर पन्द्रह वर्ष
सबसे उपयोगी जीवन होता है, इस
उम्र में छात्रों के नैतिक विकास के लिए आदर्श वातावरण उपलब्ध कराना चाहिए। इसके
अतिरिक्त, सप्ताह में एक घंटे
का नैतिक शिक्षा की अलग से कक्षा का आयोजन किया जाना चाहिए। भारत को विकसित
राष्ट्र बनाने के लिए सभी को अपने विद्यालयों मे होने वाले कार्यक्रम में भाग लेना
चाहिए। नैतिक कार्यक्रमों का हिस्सा बन आस-पास की सफाई और वृक्षारोपण का कार्य
करना चाहिए।
भारत एक विकसित राष्ट्र की श्रेणी में पहुँच
सकता है, यदि सभी अपने कार्यों
को ईमानदारी पूर्वक, कर्तव्यनिष्ठ
होकर करें। खासतौर से युवावर्ग से अपेक्षा रखी जा सकती है कि राष्ट्र के प्रति
दायित्व भाव से सकरात्मक सोचें और शिक्षण संस्थान को चाहिए की कोई न कोई परियोजना
कार्य शुरू कर उसके अंतर्गत कार्य करें।11
शिक्षण
संस्थाओं में सत्य एवम ईमानदारी से निर्भीक होकर बोलनें वालों का स्वागत होना
चाहिए। शिक्षण के हो रहे व्यवसायीकरण पर रोक
लगनी चाहिए, शिक्षण
कार्य करना समाज के लिए एक दायित्व भाव रख करना चाहिए।12 भारत में उच्च
शिक्षण प्रणाली में सकारात्मक बदलाव होने के साथ हीं कुछ समस्याएं भी सामने आयी है,
वह बेरोजगारी सम्बन्धी समस्या है। बेरोजगारी
की समस्या से जूझ रहे युवकों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए डॉ. कलाम कहते हैं
कि “जरुरत है हमारी शिक्षा प्रणाली उच्च मूल्य और
उत्पादक रोजगार अवसरों पर ध्यान दे और उस दिशा में कार्य करें। हालहीं का एक
अध्ययन दर्शाता है कि देश में बेरोजगारी का स्तर नौ प्रतिशत है और भारत में चालीस
करोंड़ लोग रोजगार पाने योग्य हैं, जबकि बेरोजगारों की संख्या लगभग 36 करोंड़ हैं”।13 इसका कारण यह है कि स्नातक तक पढ़ाई
करने वाले छात्रों को प्रशिक्षण का न मिलना तथा साल दर साल पढ़े हुए छात्रों की
संख्या में बढ़ोतरी होना, इसके
अलावा ऐसे विश्वविद्यालय की संख्या कम होना, जहाँ पर पढ़ाई पूर्ण होते हीं नौकरी का मार्ग खुल
जाये, विश्वविद्यालयों को
चाहिए छात्रों को ऐसे विषय पढ़ने का अवसर दे, जिसका सम्बन्ध बाजार में नौकरी का अवसर उपलब्ध कराने
से हो।
डॉ. कलाम प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा प्रणाली
के सम्बन्ध में अपना विचार व्यक्त करते हुए कहते हैं कि प्राथमिक स्तर पर छात्रों
के रचनात्मकता, सृजनशीलता का
विकास करने पर बल देना चाहिए और माध्यमिक स्तर पर विद्यार्थियों में एक ऐसा
आत्मविश्वास भरना चाहिए कि वह अपना कोई छोटा रोजगार खड़ा कर सके, जिससे भविष्य में जीविकोपार्जन सम्बन्धित समस्या न उत्पन्न हो और
वह रोजगार माँगने वाला न होकर रोजगारप्रदात्ता बनें। इसके अतिरिक्त, वह चाहे तो उच्च शिक्षा या शोध के क्षेत्र
में भी जा सके।14
डॉ. कलाम विद्यालयी संरचना पर ध्यान देते हुए
कहते हैं कि प्रत्येक विद्यालय में खेल मैदान की सुविधा अवश्य होनी चाहिए।
विद्यालय में कोच भी नियुक्त किये जाने चाहिए, जो छात्रों की प्रतिभा को निखारकर उन्हें
अंतराष्ट्रीय स्तर के खेल में प्रतिभाग करने और जीतने योग्य भी बनाये। छात्रों में
पढ़ाई के अतिरिक्त अन्य क्षेत्र में भी निपुण किया जाना चाहिए जैसे संगीत, नृत्य, नाटक, खेल, भाषण इत्यादि।
छात्रों को विद्यालयी स्तर पर कम्प्यूटर के ज्ञान में निपुण करने के साथ ही इन्हें
आपदा प्रबंधन, आपातकाल प्रबंधन
एवं संवैधानिक अधिकारों एवम् कर्तव्यों का भी ज्ञान दिया जाना चाहिए, जिससे वे भावी जीवन में आने वाले कठिनाईयों
का सामना करने में सक्षम बन सकें।15
डॉ. कलाम ग्रामीण स्तर पर शिक्षा की पहुँच
सुनिश्चित कराना चाहते थे, उनका
मानना था कि ग्रामीण स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अन्य विकास के लिए पीपीपी मॉडल से विकास किया जा सकता है। सरकार
को चाहिए कि विद्यालयों में अच्छे अध्यापक की नियुक्त करें। सरकारी एवं सरकारी
सहायता प्राप्त विद्यालयों को भी पीपीपी मॉडल के अंतर्गत लाया जाये ताकि दोनों का
सर्वोत्तम विकास किया जा सके। सरकार अध्यापकों को प्रशिक्षण देने पर बल दे और
शिक्षा को पूर्णतः निःशुल्क करें। 11वीं पंचवर्षीय योजना में ग्रामीण विकास पर 3.7
लाख करोड़ रुपया खर्च करने के बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा एवं स्वास्थ्य
सम्बन्धी सुविधाएँ समुचित रूप से पहुँच नहीं पायी है। आज भी बहुत से ग्राम,
माध्यमिक विद्यालय एवं सूचना तकनीकी
की पहुँच से बहुत दूर है। डॉ. कलाम सूचना एवम् तकनीकी के महत्व को रेखांकित करते
हुए कहते हैं कि इसके माध्यम से बहुत तेजी से देश के कोने-कोने में जानकारी फैल
चुकी है और लोगों में तेजी से जागरूकता एवम् शिक्षा का प्रसार हो पाया है। आकड़ों
का अवलोकन कर बताते हैं कि 50मिलियन लोगों तक पहुँचने में रेडियो को 38वर्ष लग गये
एवम् टेलीविजन को पहुँचने में तेरह वर्ष लगे वहीं (www) वर्ल्ड वाइड वेव को लोगों तक पहुँचने में मात्र
4वर्ष का ही समय लगा है। सूचना एवम् तकनीकी से ग्रामीण लोग ज्यादा से ज्यादा जुड़
सकें इसके लिए इन्टरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया काफी सहायक सिद्ध हुआ है।
डॉ. कलाम ने महिला शिक्षा को वरीयता दिया है।
उनकी समस्याओं पर ध्यान केन्द्रित करते हुए कहते हैं कि ग्रामीण विद्यालयों में
शौचालयों का न होना भी उनके विद्यालय न आने का एक प्रमुख कारणों में से है।
1 फरवरी
2007 को हैदराबाद में आयोजित ‘आल इंडिया आप्थोमोलाजिकल सोसाइटी’ की 65वीं वर्षगांठ पर डॉ. कलाम ने अपने भाषण में विशिष्ट बालकों की शिक्षा
एवम् उनकी दैनिक समस्याओं को शामिल किए तथा उनकी समस्याओं के निवारण के उपाय भी
सुझाए। उन्होंने कहा कि बालक के दृष्टि संबंधित समस्या की पहचान अध्यापक द्वारा
विद्यालय में किया जा सकता है। इसके लिए अध्यापक को दृष्टि को मापने के कार्य में
प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। प्रशिक्षण देने का कार्य ऑल इंडिया आप्थोमोलॉजिकल
सोसाइटी के सदस्यों द्वारा अपने जिले में हीं शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जा सकता
है।
बहरेपन के विषय में डॉ. कलाम, 5 नवम्बर, 2005 को आयोजित तीसरे काक्लिअर इंप्लांट ग्रुप ऑफ़
इंडिया, नई दिल्ली, कॉन्फ्रेंस में अपना वक्तव्य दिया कि मैं
कोयम्बटूर में विक्रम अस्पताल को देखने पर पाया कि काक्लिअर इंप्लांट उपकरण गूँगे
एवम् बहरे बच्चों को सुनने की क्षमता को पुनः वापस लाने में बहुत सहायता की है। डॉ
अरुणा विश्वनाथ और उनके दल ने इसे लगाने की पूरी प्रक्रिया से हमें अवगत कराया।
डॉ. कलाम कहते हैं कि इस पर और अधिक काम करने की आवश्यकता है। इस उपकरण की लागत को
कम करने के दिशा में काम करना चाहिए, ताकि भारत और भारत के बाहर हजारों बच्चों के सुनने की क्षमता पुनः वापस आ सके
और सबको उपलब्ध भी हो सके (कलाम, और राजन, वैज्ञानिक भारत
से)।16
अनुसंधान एवम् अन्वेषण ही व्यक्ति को उपयुक्त
मार्ग तक पहुँचने के नए आयाम को खोलती है, इसलिए शिक्षा के क्षेत्र में इसकी बहुत आवश्यकता है। शिक्षा सही प्रकार से
दिया जा सके इसकी रुपरेखा पाठक्रम ही तय करती है कि बालक के व्यक्तित्व में कितना
सृजनात्मक क्षमता का विकास हो रहा है।
निष्कर्ष : डॉ. कलाम पाठ्यक्रम में विज्ञान एवम् तकनीकी शिक्षा के साथ हीं नैतिक शिक्षा को भी शामिल करने पर बल दिया है। विज्ञान, दर्शन धर्म, न्याय, राजनीति, चिकित्सा, गणित, संगीत, व्याकरण, भाषण, अन्य विषयों को शामिल कर छात्रों के बहुआयामी विकास करने, एवम् व्यक्ति के सर्वांगीण विकास करना चाहते हैं। डॉ. कलाम छात्र जीवन में अनुशासन को भी महत्वपूर्ण मानते हैं। बालक में आत्म अनुशासन जागृत करने की बात करते हैं न कि उसके ऊपर बाहर से थोपा जाना चाहिए। अतः स्पष्ट है कि डॉ कलाम के विचार वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सकरात्मक परिवर्तन लाने में और शिक्षा में आ रही खामियों को कम करने में महत्वपूर्ण हो सकती है। भारत एक विकसित राष्ट्र के रूप में प्रतिस्थापित हो सकता है, अगर डॉ.कलाम के शैक्षिक दर्शन को शिक्षा में शामिल किया जाये।
सन्दर्भ :
1.कलाम,
ए.पी.जे. अब्दुल.,एंड तिवारी, अरुण.(1999). विंग्स ऑफ फायर: एन आटोबायोग्राफी.
इण्डिया : यूनिविर्सिटी प्रेस प्राइवेट लिमिटेड, पृष्ठ. 5
2. वही.
3.रामनाथन,
आर.(2005). हू इज कलाम. दिल्ली :
कोणार्क पब्लिशर्स प्राइवेट लिमिटेड, पृष्ठ. 58
4.कलाम,
ए.पी.जे. अब्दुल. (2013). भारत की
आवाज. नई दिल्ली: प्रभात प्रकाशन, पृष्ठ. 89
5.कलाम,
ए.पी.जे. अब्दुल.(2006). तेजस्वी मन.
नई दिल्ली: प्रभात प्रकाशन, पृष्ठ.
17
6.कलाम,
ए.पी.जे. अब्दुल. (2013). भारत की
आवाज. नई दिल्ली: प्रभात प्रकाशन,पृष्ठ. 58
7.कलाम,
ए.पी.जे. अब्दुल.& राजन, वाई सुंदर.(2005). महाशक्ति भारत .नई दिल्ली: प्रभात
प्रकाशन, पृष्ठ. 125
8.कलाम.
ए.पी.जे. अब्दुल.& तिवारी,
अरुण.(2008). विजयी भव. नई दिल्ली:
प्रभात प्रकाशन, पृष्ठ.
56
9.कलाम,
ए.पी.जे. अब्दुल.(2018). हम होंगे
कामयाब .नई दिल्ली: प्रभात प्रकाशन
10.महाप्रज्ञ,
आचार्य.,& कलाम, ए.पी.जे. अब्दुल.(2009). सुखी परिवार समृध्द राष्ट्र. नई दिल्ली: प्रभात
प्रकाशन, पृष्ठ. 194-195
11.कलाम,
ए.पी.जे. अब्दुल.& राजन, वाई सुंदर.(2005). महाशक्ति भारत. नई दिल्ली :प्रभात प्रकाशन, पृष्ठ. 120
12.कलाम.
ए.पी.जे .अब्दुल.& तिवारी,
अरुण.(2008). विजयी भव. नई दिल्ली: प्रभात प्रकाशन, पृष्ठ. 147
13.कलाम. ए.
पी. जे .अब्दुल.& राजन वाई
एस.(2015). भारत 2020 और उसके बाद. नई दिल्ली: प्रभात प्रकाशन, पृष्ठ. 135
14.कलाम,
ए.पी.जे. अब्दुल. (2013). भारत की
आवाज. नई दिल्ली :प्रभात प्रकाशन, पृष्ठ. 71
15.कलाम,
ए.पी.जे. अब्दुल.,& पोनराज, वी.(2014). परिवर्तन की रूपरेखा. नई दिल्ली: राजपाल
एंड सन्ज, पृष्ठ. 158
16.कलाम,
ए.पी.जे. अब्दुल.,& राजन,वाई सुंदर.(2020). वैज्ञानिक भारत. नई दिल्ली
:प्रभात प्रकाशन.
संध्या यादव
शोधार्थी शिक्षाशास्त्र विभाग, आर्य कन्या डिग्री कॉलेज, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज
shandhya.au@gmail.com, 8318292961
डॉ. अमित कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर शिक्षाशास्त्र विभाग, आर्य कन्या डिग्री कॉलेज, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज
dramitau@gmail.com, 9451053821
सम्पादक-द्वय : डॉ. माणिक व डॉ. जितेन्द्र यादव चित्रांकन : शहनाज़ मंसूरी
एक टिप्पणी भेजें