(तीन उपन्यासों के विशेष उल्लेख के साथ)
- डॉ. गकुल कुमार दास
शोध सार : साहित्य में मानवतावाद एक शाश्वत विषय है। साहित्य में मानवतावाद को युगों-युगों से व्यक्त किया गया है। इसमे असमिया साहित्य में भी कोई कमी नहीं है। आधुनिक असमिया साहित्य की प्रणेता और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता इंदिरा गोस्वामी ने अपनी कहानियों और उपन्यासों के माध्यम से आधुनिक भारतीय साहित्य को गतिशीलता प्रदान की है। इंदिरा गोस्वामी ने मामरे घरा तरूवाल, दताल हातीर उये खुवा आउदा, तेज आरु धुलिरे धुखरित पृष्ठा सहित कुल बारह असमिया उपन्यास लिखे हैं। इंदिरा गोस्वामी के उपन्यासों के अध्ययन से पता चलता है कि उनकी उपन्यासों के विषय वस्तु अलग है। विषय वस्तु की अभिव्यक्ति बहुत रोचक हैं उनके उपन्यास मानवतावाद के दर्शन से प्रेरित हैं और यथार्थवाद में विश्वास रखते हैं। उनके उपन्यास मानवता का ज्वलंत चित्र प्रस्तुत करते हैं। प्रस्तावित आलोचना में इंदिरा गोस्वामी के तीन उपन्यास जैसे- मामरे धरा तरूवाल (अंग्रेजी अनुवाद- The Rusted Sword and Two Other Novels), दताल हातीर उये खुवा आउदा(अंग्रेजी अनुवाद- The Moth Eaten Howdah of a Tusker), तेज आरु धुलिरे धुखरित पृष्ठा (अंग्रेजी अनुवाद- Pages Stained With Blood) में प्रतिबिंबित मानवतावाद पर चर्चा करने का प्रयास किया गया है।
बीज शब्द : शाश्वत विषय, असमिया उपन्यास, असमिया साहित्य, मानवतावाद, प्रत्यक्ष अनुभव, उपेक्षित वर्ग, यथार्थवाद, हास्य, मानवता के चित्र, अभिव्यक्तियाँ।
मूल आलेख : मानवतावाद को नवजागरण के समयउत्पन्न होने वाले साहित्य और ललित कलादर्शन का एक शैली कहा जाता है। मानवतावाद का अर्थ है लोगों में विश्वास रखना। आधुनिक साहित्य की यथार्थवादी शैली तथा उपन्यास साहित्य जिस धारा पर आधारित है, वास्तविक जीवन पर आधारित इस शैली को मानवतावादी साहित्य का एक विशेष अंग मानी जाती है। भारतीय समाज-साहित्य तथा ध्यान धारणाओं में मानवतावाद का स्थान सदैव रहा है।लेकिन अंग्रेजों के आगमन के बाद इसका स्थान अधिक उँचा हुआ है। भारतीय समाज व्यवस्था में धर्म के नाम पर, ईश्वर के नाम पर मानवताको दबाया गया है। लेकिन नवजागरण के बाद मानवतावाद भारतीय साहित्य में निहित हो पाया है। इंदिरा गोस्वामीमानवतावादी धारा के दर्शन से प्रेरित होने वाली तथा यथार्थवाद में विश्वास रखने वाली एक असाधारण प्रतिभा सम्पन्न लेखिका हैं।
ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता साहित्यिक इंदिरा गोस्वामी उर्फ
मामनि रायसोस गोस्वामी युद्धोत्तर आधुनिक युग के एक प्रमुख
उपन्यासकार हैं। उन्हें असम में मामनि रायसोम गोस्वामी के नाम जाना जाता है तथा
अखिल भारतीय मंच पर इंदिरा गोस्वामी के नाम से जाना जाता है। उनके उपन्यास
पारंपरिक उपन्यास हैं- विषयवस्तु नवीनता का है, चरित्र का नहीं। मानसिक
जगत के सुंदर वर्णन और अनूठी शैली के लिए उनके उपन्यासों को काफी पसंद किया जाता
है। इंदिरा गोस्वामीअसमिया साहित्य के मौलिक लेखकों में से एक हैं। उनकी साहित्य
की विषय-वस्तु विशिष्ट है, अभिव्यक्ति शैली
निर्भीक है।साहित्य में प्रत्यक्ष अनुभव की छाप, समाज के उपेक्षित
वर्गों के प्रति सहानुभूति स्पष्ट होती है। गोस्वामी ने सन 1972 में 'चेनाबार सोत'उपन्यास के माध्यम से
उपन्यास जगत में खुद को प्रतिष्ठा किया। इसके बाद उन्होंने 'नीलकंठी ब्रज', 'अहिरन', 'मामरे धरा तरूवाल', 'दतालहातिर उये खुवा
हाओदा',
'जखमी यात्री', 'उदयभानुर चरित्र', ‘तेज आरू धुलिरे
घुसरित पृष्ठा’, ‘दाषरतिर खुज’, ‘चिन्नमस्तार मानुहतु,’‘थेंफ्राखी तहसीलदारर
तामर तरूवाल’ नाम का बारह उपन्यासों का रचना किया। इन उपन्यासों के माध्यम से उन्होंने
जो कहानियाँ और पात्रों का सृजन किया, वह अन्य उपन्यासकारों
के लिए दुर्लभ हैं। गोस्वामी के उपन्यास पारंपरिक उपन्यास नहीं हैं। 20 साल की उम्र में ही कहानी
की रचना करके उन्होंने खुद को प्रतिष्ठापित किया। उनके उपन्यासों मे प्रत्यक्ष
अनुभव,
विस्तृत विवरण के
प्रति जागरूकता और समाज के उपेक्षित वर्गों के प्रति सहानुभूति स्पष्ट रूप से
प्रतिफलित होती है।पारंपरिक समाज द्वारा धर्म के नाम पर महिलाओं को वंचना करना तथाअवसादग्रस्तक्रोध
को व्यक्त करना ही उनके उपन्यासों का मुल विषयवस्तु है। असमिया साहित्य में अन्यतम
शक्तिशाली महिला पात्रों को उनके उपन्यासों में मुख्य रूप मिला है। उनके उपन्यासों
में मानवता की तस्वीर खूबसूरती से झलकती है।
इंदिरा
गोस्वामीअसमिया साहित्य के अलावा अखिल भारतीय साहित्य जगत में भी सबसे सफल और
सर्वश्रेष्ठ लेखकों में से एक हैं। असमिया में बारह उपन्यासों की रचना करने वाली
उनकी उपन्यासों का अंग्रेजी और हिंदी भाषा में भी अनुवाद किया गया है। गोस्वामी के
बारह उपन्यासों में से 'मामरे धरा तरूवाल, ‘दताल हातीर उये खुवा
हाउडा'
और 'तेज आरू ‘धुलिरे धुसरित पृष्ठा' में प्रतिफलितमनुष्य
के असहनीय उत्पीड़न और पीड़ा की चित्र सभी पाठकों के हृदय को छू लिया है।इसमे मानवता
के अपमान और उत्पीड़न का वर्णन इस प्रकार हुआ है- मानो लेखिका के मन को
प्रतिबिंबित किया है।
गोस्वामी के
उपन्यासों में प्रतिफलित मानवतावाद पर चर्चा करने के लिए मैंने उनके तीन उपन्यासों
पर विशेष रूप से प्रकाश डालने का प्रयास किया है। यह तीन उपन्यास हैं- दताल हातीर उये खुवा
हाउडा'
'मामरे धरा तरूवाल, और 'तेज आरू धुलिरे
धुसरित पृष्ठा'।
“मनुष्य का मानवीय
स्वभाव और मानव स्वभाव के अनुसार जीने की मनुष्य की इच्छा को‘दताल हातीर उये खुवा
हाउडा'
में परिलक्षित होती
है।”
(1)
इन तीन उपन्यासों के
माध्यम से असहनीय उत्पीड़न, धोखा और अपमान के शिकार होने वाले लोगों की
पीड़ा को दर्शाते हुए अखिल भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित करने मे सक्षम
हुए है। उपन्यासकार तत्कालीन समाज के कट्टरवाद, राष्ट्रवाद, अंधविश्वास, वैधव्य पीड़ा आदि के
प्रति लोगों को जागरूक करने का प्रयास करता नजर आता है। लेकिन इन सबके पीछे लेखिका
के मानवता के प्रति असीम प्रेम देखा गया है। ‘दताल हातीर उये खुवा
हाउडा' उपन्यास दक्षिण
कामरूप में दामोदरी सत्र की कहानी पर आधारित है। सत्रा और आसपास के ग्रामीण इलाकों
को पृष्ठभूमि के रूप में लेते हुए,उस क्षेत्र के लोगों
के पारंपरिक रीति-रिवाजों, सामाजिक पतन, महिलाओं के खिलाफ
हिंसा,
विधवा के पुकार, वंचित समाजवर्ग, अंधविश्वास, कु-संस्कार, अस्थिर अर्थव्यवस्था
के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालती है। उपन्यास की जीवंत पात्र, कम उम्र की गिरिबाला
नेविधवापन के दर्द को दुर्गा और सरू गोसानी की तरह आसानी से स्वीकार नहींकिया।
अपने भाई इंद्रनाथ की अनुमति सेवह पुरानी किताबें इकट्ठा करने की बहाने से ईसाई सहब
मार्क के साथ बाहरी दुनिया में गयी।बाद मे,वह मार्क के प्रति
आकर्षित होकर रात में अकेले उसके पास आती है।गिरिबाला के सपनों को पुरुष प्रधान
रुढ़िवादी समाज ने तोड़ दिया। लेकिन गिरिबाला ने हार नहीं मानी।उन्होंने मृत्यु के
माध्यम से विद्रोह करके कट्टरपंथी समाज को हिलाकर रख दिया। इनके माध्यम से लेखिका
के सुधारवादी विचार एवं मानवतावादी दृष्टिकोण व्यक्त होती हैं।
इन्द्रनाथ आधुनिक
शिक्षा प्राप्त एक शिक्षित युवक थे। मानवीय विचारों से तेजस्वी इन्द्रनाथ ऊँच-नीच का निर्णय नहीं
करते थे। ईसाई साहब मार्क जैसे ईमानदार लोग उन्हें पसन्द था। इंद्रनाथ ने ब्राह्मन
के बेटी इलिमोन के प्रति अपनी कमजोरी को छिपाने की कोशिश नहीं की। इसके बजाय, वह अपनी मृत्यु की पूर्व संध्या पर एलेन को याद करके उसके प्रति अपने
प्यार को व्यक्त करता है, और कहता है-"एली। यहाँ वह अपने बाल खोलकर दौड़ रही है।"हाठी के कुचले जाने
से मारे गए जमालुद्दीन फांदी के शव को मटिया पहार के जंगल से भोलागांव तक ले जाने
के लिए जब कोई नहीं आया, तो इंद्रनाथ अकेले ही शव को लेने गये। इसमे
इन्द्रनाथ का मानवता का परिचय मिलता है- "अगर मुस्लिम का शव उठाने कोई नहीं आएगा तो मैं अकेले ही शव ले जाऊंगा।" (2)
आम लोगों के प्रति
इंद्रनाथ का प्रेम इसी बात से स्पष्ट होता है जब उनकी भूमि पर खेती करने वाले
रैयतों को कच्चे पट्टे देने की उनकी इच्छा होती है। लेकिन यही प्यार गलतफहमी के
कारण उसकी जिंदगी में दिक्कते आती है। उसी रायत ने गलत समझकर इंद्रनाथ की हत्या करता
है।
सत्रा के अधिकार के
प्रति घर के धार्मिक नियमों ने महिलाओं के मानवीय स्वभाव को दबा कर रखा था- गिरिबाला के चरित्र
के माध्यम सेइस बात को दर्शाया गया है। गिरिबाला इंद्रनाथ की बहन हैं। कम उम्र में
विधवा होने वाली गिरिबालाअपने अंधविश्वासी ससुर के घर में नहीं रह सकी।फिर अपनी
माँ के घर रहने आई।वहा भी गिरिबाला को पति पलसामाजिक आचार-नीतिओं का मानवता
बिरोधी भावनाओं का सामना करना पड़ा। गिरिबाला ने दुर्गा या छोटी गोसानी की तरह पति
के यादों को समेते हुए अपनी इच्छाओं को त्यागकर प्रेत की तरह जीवन जीना नहीं चाहती
थी। इसलिए वह मार्क साहब के पास जाकर इस जीवंत नरक से राहत चाहती थी। लेकिन धर्म तथा
धर्मनिरपेक्षता की बाधाएं मार्क साहब के मन को प्रेरित नहीं कर पाईं। मानवता
विरोधी समाज के कारण अंततः वह एक नायिका की तरह विरोध करते हुए आग में कूद पड़ी।
गिरिबाला की कार्यो
के माध्यम से, लेखिका ने सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ क्रोध, रिश्तेदारी के विरोध और समाज द्वारा विधवाओं के प्रति कठोर शोषण के खिलाफ
विद्रोह के माध्यम से सामाजिक जागरूकता व्यक्त किया हैं। मानव प्रेम के माध्यम से
सामंती सोच को परिबर्तन के जरिए नई सामाजिक चेतना की राष्ट्रवादी भावना को प्रतिफलित
किया है। ‘दताल हातीर उये खुवा हाउडा' में दो अमंगल मे सामाजिक
जीवन को पंगु करने की बात को ब्यक्त किया गया हैं। लोग अंधविश्वास और जहर दोनों से
लड़ रहे हैं। गिरिबाला ने समाज के प्रति विरोध की है।जीवन के प्रति असंतुष्ट होकर आत्महत्या
की है। दुर्गा हमें समझाती हैं कि शारीरिक आकर्षण कोई पाप नहीं है। फिर छोटी बहू
के जरिए घर्म के प्रति कट्टरता को दर्शाती है।
इस उपन्यास में लेखिका
ने इस बात को भी दर्शाती है कि, कैसे कानी जहर ने उस
समय के समाज में लोगों को उनकी मानवता से वंचित किया था। कानी उन लोगों की आखिरी
शरणस्थली थी जो गरीबी और दुख से अमानवीय हो गए थे।उस कानी ने समाज और मानवता को
नष्ट कर दिया था। मानवतावादी लेखिका ने'सरकारी कानी निवारणी
काहिनी' और इंद्रनाथ के विचारों के माध्यम से कानी
के असर से समाज को मुक्त करने का संकेत किया है।
'मामरे धरा तरुवल' इंदिरा गोस्वामी का
अन्य एक उल्लेखनीय उपन्यास है। इस उपन्यास के बारे में डॉ. हिरेन गोहाइ की
टिप्पणियाँ उल्लेखनीय हैं। वह कहता है-'मामरे धरा तरुवल' की भाषा उसकी पृष्ठभूमि जैसी ही व्यपक है। स्वीकृत श्रमिक संघ के दायरे के
बाहर की श्रमिकों के जीवन संग्राम इसका मूलभाव है। हरिजन वर्ण के श्रमिकों के जीवन
की अंतहीन संघर्ष और जीवन संग्राम,उनके गरीबी, अपमान, अभाव और उत्पीड़न आदि घटनाएं पाठकों के
विवेक को कठिन चुनौती देती हैं।
इन लोगों का भविष्य
और नियति किसी पार्टी, नेता या मीडिया की
चिंता की विषय नहीं है।फिर भी इनके जीवन और मृत्यु एक क्रूर, दर्दनाक संघर्ष की तरह है। जो दो-चार श्रमिक नेता उनके
बीच उनके मसीहा बनकर आते हैं, वे शोषकों के छद्म
साथी होते हैं। शोषक प्रतारको की इस दानवीय अत्याचार और जीवित रहने की लालसा और
अथक पीड़ादायक संघर्ष का यह राक्षसी उत्पीड़न न केवल पाठक की सहानुभूति के लिए एक
अप्रतिरोध्य अपील है, बल्कि उसके क्रोध का
ज्वलंत उदाहरण है। अंततःये वंचित, ठगे गए लोग अपना
अधिकार स्वयं लेने के लिए कृतसंकल्प हैं। असफलताऔर पराजयों के भारी बोझ ने भी उनके
जीवटता, आशा और प्रेरणा को कम नहीं किया है, इस बात को लेखिका की जीवन और मानवता की गहरी समझ में झलक मिलता है। (3)
'मामारे धरा तरूवल' उपन्यास में राइबैरेली
में 'सई नदी पर एकवारा' के निर्माण में
कार्यरत कंपनी के 'बनुआ संघ' (श्रमिक संघ)के मजदूरों ने नौकरी
की सुरक्षा और अस्थायी नौकरियों की स्थायी करने की मांग को लेकर हड़ताल किया हैं।
उन्होंने मांगें पूरी न होने पर जरूरत पड़ने पर सई नदी बांध को बारूद से उड़ाने की
भी धमकी दी है। मजदूर संघ के अध्यक्ष ने मजदूरों को समझाया कि उनका नेक काम आत्मत्याग
से ही हासिल होगा। श्रमिकों के अधिकांश नेता विश्वासघाती एवं स्वार्थी हैं। इसमें
कोई संदेह नहीं कि हरिजन नेता 'जसवंत' कुछ अलग नजर आते हैं। गियासुद्दीन और जसवंत में कुछ समानताएँ हैं। इन
दोनों नेता में मानवीय संवेदन हैं।इउनियन के एक मेम्बर के शब्दों में मानवीय
संवेदना झलक पड़ी। मेम्बर ने बातों बातों कहते है- “संघ निधि का पैसा
कार्यकर्ताओं के खून से एकत्र किए गए ब्लड बैंक की तरह है। आपको सोच-समझकर खर्च करना
चाहिए। मैं इस फंड के पैसे से कभी चिकन और चावल नहीं खा सकता” (4)। अन्य मानवीय
संवेदनशील पात्रों में बसुमती बुढ़ि, शंभू पासवान, लिचू लेंगेरा, शिबू धासला और नारायनी
शामिल हैं। नौकरी की स्थिरता के लिए भूखे रहते हुए, बसुमती बुढ़ि ने
हड़ताल करने वालों के स्वार्थ पर खेद के साथ संवेदनशीलता व्यक्त की। उसने कहा-
“मूर्खों, तुम्हारी हड़ताल कब
तक चलेगी? मैं आपके नारे महात्मा गांधी के जमाने से
सुनता आ रहा हूं। मैं साहबों के शौचालय धोता रहा हूं। जब काम पूरा हो जाता है, तो हमेशा कुत्तों की तरह मुझे भगा दिया जाता है, मैं अंदर जाता हूं
और मुझे भगा दिया जाता है।
(5)
दैनिक वेतन पर गुजारा
करने वाले सामान्य मजदूरों की हड़ताल के परिणामों का लेखिका ने बड़े ही दुखद ढंग
से वर्णन की है। पात्रों की एक सामूहिक विशेषताता है- अशांत समय के चक्र
में सामान्य मानव चरित्र की गिरावट और क्षय।'मामरे धरा तरूवाल' में साई नदी के तट पर रहने वाले श्रमिकों का जीवन एसा हैमानो जैसा नदी
अपने किनारों को नष्ट कर देती है। साई नदी मानवीय मूल्यों के ह्रास और क्षरण के
तमाम साक्ष्य समेटे नजर आती है। साईं मानव अस्तित्व के विभिन्न उतार-चढ़ावों के साक्षी
हैं। उपन्यास के अंत तक कब्रिस्तान जाने वाले सभी लोग चुप हो जाते हैं। प्रहार की
ध्वनि मानो 'साईं' की रेत में समा गई।
इसमें पात्रों के पतन और मानव जाति के क्रूर शोषण और पीड़ा, अन्याय और असहनीय पीड़ा को खूबसूरती से दर्शाया गया है।
इंदिरा गोस्वामी का
एक और उल्लेखनीय उपन्यास 'तेज आरू धुलिरे
धुसरित पृष्ठा' है। अन्य उपन्यासों की तरह इसमे भी वह समाज
से अंतरंगता और अमानवीयता को दूर करना चाहती हैं। उनकी तपस्या समाज को शुद्ध करने
के लिए प्रतीत होती है। ऐसा प्रतीत होता था कि वे सदियों पुराने अंधविश्वासों को
दूर कर मानवता और स्नेह का एक स्वस्थ समाज चाहते थे। उनके उपन्यास मानवता के स्रोत
की खोज करते प्रतीत होता हैं। अत: उन्हें मानवता के
अत्यधिक पतन एवं तिरस्कार का भय था। उन्होंने संतोष सिंह से दृढ़तापूर्वक कहा, “सुनो, संतोष सिंह, मुझे लोगों पर शोध
करना पसंद है, लोगों का खून, लोगों के शरीर की गंध, लोगों की तीव्र इच्छाएं, लोगों का दर्द, हर चीज, हर चीज, मुझे अपनी कलम पर
स्याही कर लेना पसंद है।” (6)
हालाकि यह उपन्यास 1984 में दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगों की
दुखद कहानी है- लेकिन लेखिका ने एक पुराने पुस्तक विक्रेता
बलबीर की मानवता और संतोख सिंह की सादगी, प्रेम और बलिदान को
भी चित्रित किया है। लेखिका के किराये के मकान के मालिक मदन भाई साहब के हृदय में
मानवता की भावना थी। उन्होंने कुछ घायल सिखों को, जो खून से लथपथ थे, अपने घर में शरण दी। उन्होंने अपने हाथों से सिखों के दिलों का खून साफ
किया था।
दिल्ली में समाचार
निकला- इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई। तुरंत, दिल्ली में सन्नाटा
छा गया।आतंक का काला धुआं चारो ओर फेला। बदले की आग ने इंसानियत को तबाह कर दिया।
लोग लोगों को नहीं पहचानते थे। यह उपन्यास सिख अलगाववादिओं की गतिविधियां, उनके दमन, इंदिरा गांधी की
हत्या और सिख समुदाय पर अंधाधुंध और क्रूर हमलों की कहानी के माध्यम से मानवता का
गहरा सहानुभूतिपूर्ण का चित्रण है। लेखिका की ईमानदारी और मानवता की भावना उनके
उल्लेखनीय शब्दों से स्पष्ट होती है। उन्होंने कहा, ''आज़ादी के बाद की
सबसे क्रूर हत्या की गवाह मैं खुद थी... इस क्रूरता के बावजूद, मैंने कुछ जगहों पर मानवीय प्रेम की स्वर्गीय रोशनी देखी। कुछ स्थानों पर
मैंने अपनी नंगी आंखों से देखा कि हिंदुओं और सिखों के बीच प्रेम का बंधन खून से
लथपथ होने पर भी स्वर्गीय किरणों से चमक रहा था। ऐसा लगता है कि लोग प्यार की इसी
रोशनी के कारण जीते हैं और जीते रहेंगे।” (7)
उपन्यास में एक
साधारण सिख युवक संतोष सिंह जैस निस्वार्थ प्रेमी, सरल 'रड्डीवाला' बलबीर और संघर्षग्रस्त
सिखों को आश्रय देने के लिए निकले हिंदूओं आदि मानवतापुर्ण व्यक्ति हैं। लेखिका ने'दिल्ली' को लोगों के पागलपन, हिंसा और क्रूरता के प्रतीक के रूप में चित्रित किया और वहाँ वह मानो रेगिस्तान
के बीच मानवीयप्रेम की शीतल धारा खींचती एक प्रतीक स्वरूप है। जीवन के तिल-तिल अनुभवों का
साक्षी इंदिरा गोस्वामी ने 'तेज आरू धुलिरे
धुसरित पृष्ठा' उपन्यास की रचना करके लोग कैसे अमानवीय हो
जाते हैं और मानवता के इतिहास को कलंकित करता है, इसका एक खूबसूरत
चित्र अंकित किया है।
'तेज आरू धुलिरे धुसरित पृष्ठा' उपन्यास का मुल राजनीतिक
होने के बाबजूद लेखिका ने यहा हिंदू और सिख प्रेम से बंधे एक अलग दुनिया का मधुर
संदेश देने की कोशिश की है। लेखिका को उस प्रेम के माध्यम से एक महान शक्ति दिखाई
देती है। यह प्रेम मानव प्रेम है। “मैंने कुछ स्थानों पर
अपनी नग्न आँखों से हिंदुओं और सिखों के बीच प्रेम के बंधन को स्वर्गीय किरणों से
चमकते हुए देखा, भले ही वह खून से लथपथ था। “मैंने इसका वर्णन खून
और धूल से सने पन्नों पर किया है। (8)
इंदिरा गोस्वामी के
उपरोक्त तीन उपन्यास का विषय है मानवीय क्रूरता, अमानवीयता और प्रेम के
प्रति लोगों का प्रवल आकांक्षा। मानवताबादी लेखिका को यह एहसास होता है कि मानवता
को किसी चीज़ दबा कर रखा है। वह एक आदर्श समाज चाहती हैं जहां लोगों को लोगों ने
लोगों के रूप में सोच सकें। मनुष्य ही मनुष्य को जीवन दे सकता है। उन्होंने अपने
गुरु उपेन्द्र चन्द्र लेखारू महोदय से एक इंसान बनना सीखा। "सर ने मुझे एक
प्रसिद्ध लेखक बनने या एक महान विद्वान बनने के लिए प्रेरित नहीं किया- उन्होंने मुझे मानवीय
गुणों से संपन्न इंसान बनने के लिए प्रेरित किया।" इसलिए, अपनी आँखों के सामने जो अमानवीय व्यवहार देखा उससे लेखिका का दिल टूट गया।
प्रत्येक उपन्यास देखा जाता है कि मानवता के पतन देखकर हृदय रोने लगती है। लेखिका
को इसलिए उनके हृदय की मानवता लगातार प्रभावित करती थी। इसलिए उनकी कहानियां और
उपन्यासों में मानवता की भावना झलकती थी।
निष्कर्ष:
इंदिरा गोस्वामी उर्फ
मामोनी रायसोम गोस्वामी ने असमिया उपन्यासों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान
दिया है।इंदिरा गोस्वामी के माध्यम से ही असमिया उपन्यास को अखिल भारतीय संदर्भ
में पहचान मिली।इंदिरा गोस्वामी ने अपने उपन्यासों में जीवन की सच्चाइयों का चित्र
अंकित की हैं।इसलिए, उनके उपन्यास यथार्थवाद को दर्शाते हैं।
मानवता एक वास्तविक मुद्दा है।इंदिरा गोस्वामी के उपन्यासों में मानवतावाद एक
विशेष विषय है।इंदिरा गोस्वामी के व्यक्तिगत जीवन का अध्ययन और साथ ही उनके
उपन्यासों, विशेष रूप से 'मामरे धरा तरूवाल', 'दंताल हातिर उये खुवा
हाओदा'
और 'तेज आरू धुलिरे धुसरित पृष्ठा' का अध्ययन-इन तीनों उपन्यासों
के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि इंदिरा गोस्वामी वास्तव में एक मानवतावादी
उपन्यासकार हैं। उनके उपन्यासों में मानवतावाद गहराई से परिलक्षिल होता है।
डॉ. गकुल कुमार दास
सहायक अध्यापक.असमिया विभाग, दरंग महाविद्यालय, तेजपुर, सोनितपुर, असम, 784001gakuldas07@gmail.com, 9864157059
सम्पादक-द्वय : डॉ. माणिक व डॉ. जितेन्द्र यादव चित्रांकन : शहनाज़ मंसूरी
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