शोध आलेख : जल संकट के संदर्भ में ‘कुइयांजान' उपन्यास / शिवानी राठी एवं प्रो. राम पाल गंगवार

जल संकट के संदर्भ मेंकुइयांजान' उपन्यास
- शिवानी राठी एवं प्रो. राम पाल गंगवार

शोध सार : यह उपन्यास इस बात को उठाता है कि हमारे पास पानी की समुचित प्रबंध व्यवस्था नहीं है। गर्मी में जहां लोग एक - एक बूंद पानी को तरसते हैं, वहीं बरसात होते ही घरों में पानी भर जाता है। इकट्ठे पानी से गंदगी फैलती है, मच्छर पनपते हैं और फिर बीमारियां बढ़ती है। यह उपन्यास दिन पर दिन और प्रासंगिक बनता जा रहा है। अभी वर्ष 2023 में अजरबैजान तजाकिस्तान  मलेरिया मुक्त हो गए, परंतु भारत में अभी भी हर वर्ष लाखों लोग मलेरिया का शिकार होते हैं और भारत चाह कर भी मलेरिया मुक्त नहीं हो पा रहा है। अगर भारत में बरसात के पानी का समुचित प्रबंध हो जाएगा, तो लोग गर्मियों में प्यासें नहीं मरेंगे, सूखा नहीं पड़ेगा, बारिश में बाढ़ नहीं आएगी, गंदा पानी जगह- जगह इकठ्ठा नहीं होगा और भारत जो बीमारियों पर अपने जीडीपी का तीन प्रतिशत खर्च करता है, वह बच जाएगा।

बीज शब्द:-  जल संकट, पर्यावरण चेतना, मानवीय मूल्य, पानी उद्योग, सूखा, संवेदनशीलता, साहित्यिक कसौटी।

मूल आलेख : पर्यावरण चेतना एवं संरक्षण आज के समय की मुख्य मांग है। बीते वर्षों में इस समस्या ने उग्र रूप धारण कर लिया है। पर्यावरण से संबंधित कोई भी समस्या अब किसी एक व्यक्ति, गांव, देश की समस्या नहीं रह गई है, बल्कि संपूर्ण विश्व इस समस्या से लड़ रहा है। ऐसे ही इक्कीसवीं सदी की बड़ी समस्याओं में से एक है, पानी की समस्या। इस समस्या को आधार बनाकर लिखा गयाकुइयांजानउपन्यास काफी प्रसिद्ध  हुआ।

 पर्यावरण एवं जल संकट पर समय-समय पर रचनाकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से ध्यान आकृष्ट किया है। आजकल हम जिन पुराने जमाने के जल स्रोतों की बात करते हैं कि कैसे बाओली और तालाब अन्य प्रकार के पानी का संरक्षण करने वाले माध्यम ज्यादा किफ़ायती थे। इस परिप्रेक्ष्य में पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र का कार्य उल्लेखनीय है | उनकी दो किताबें, 'आज भी खरें है तालाब' और 'राजस्थान की रजत बूंदें' महत्वपूर्ण हैं अनुपम मिश्र एक समर्पित जल संरक्षणवादी, लेखक, पत्रकार एवं पर्यावरणविद् थे उन्होंने जल संरक्षण और प्रबंधन पर ऐतिहासिक काम किया है। अनुपम मिश्र ने पारंपरिक जल संचयन प्रणालियों को समझने की खोज में तीन दशकों तक पूरे भारत की यात्रा की। जल संचयन और प्रबंधन प्रणालियों पर स्वदेशी ज्ञान को पुनर्जीवित करने और इसे लोगों तक पहुंचाने के लिए अथक संघर्ष किया। अनुपम मिश्र ने जल संरक्षण पर गंभीर शोध किया। वे राजस्थान में विभिन्न स्रोतों से प्राप्त पानी का वर्गीकरण करते हुए अपनी किताब में लिखते है – “पहला रूप है पालर पानी। यानी सीधे बरसात से मिलने वाला पानी। यह धरातल पर बहता है और इसे नदी, तालाब आदि में रोका जाता है।...पानी का दूसरा रूप पाताल पानी कहलाता है। यह वही भूजल है जो कुओं में से निकाला जाता है। पालर पानी और पाताल पानी के बीच पानी का तीसरा रूप है, रेजाणी पानी। धरातल से नीचे उतरा लेकिन पाताल में मिल पाया पानी रेजाणी है|”1 इस समस्या पर हिंदी में लिखे गए कुछ प्रमुख उपन्यास निम्न हैं- “ईश्वरी प्रसाद कृतबहता हुआ जल’, रामदरश मिश्र कृतजल टूटता हुआ', ‘पानी के प्राचीर', ‘सूखता हुआ तालाब', सर्वेश्वर दयाल सक्सेना कृतसोया हुआ जल' औरपागल कुत्तों का मसीहा', रविन्द्र वर्मा कृतपत्थर ऊपर पानी', रज्जन त्रिवेदी कृतनदी लौट आई', राजेंद्र अवस्थी कृतबहता हुआ पानी', हरिशंकर परसाई कृतज्वाला और जल'आदि उल्लेखनीय है2 रत्नेश्वर काएक लड़की पानी पानी' वीरेंद्र जैन काडूबअभय मिश्रमोती मानुष चून' उपन्यास भी पानी के लिए और पानी से होने वाली अलग-अलग समस्याओं को सामने रखते हैं। आज के समय मेंकुइयांजानकी प्रासंगिकता और महत्व और बढ़ जाता है, क्योंकि तत्कालीन शोधों में दावा किया जा रहा है, कि भूजल अधिक निकाल लेने के कारण पृथ्वी की धुरी खिसक रही है।हिंदी कथाकारों में नासिरा शर्मा नेकुइयांजान' नामक उपन्यास में जल संकट को बहुत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। यह उपन्यास केवल प्रदेश या देश ही नहीं अपितु दुनियाभर के जलीय आंकड़े खुद में समेटे, एक विशाल दस्तावेज के रूप में नजर आया। नि:संकोच उपन्यास को उस लेखिका का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित किया जाना साहित्य आलोचकों की मजबूरी बन गयी। यही कारण है कि नामवर सिंह ने इसे वर्ष का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित किया था3

‘ ‘कुइयाँ' अर्थात वह जल स्रोत जो मनुष्य की प्यास आदिम युग से ही बुझाता आया है –  जो शायद जिजीविषा की पुकार पर मानव की पहली खोज थीपहली उपलब्धि जो हमने अतीत में अपने प्राण रक्षा के लिए प्यास बुझाकर हासिल की थी और जो आज भी उतनी ही तीव्र हैये पंक्तियां उपन्यास की भूमिका में लिखी है, जो उपन्यास के शीर्षक का अर्थ सही शब्दों में बताती है। उपन्यास की परिवेश के रूप में लेखिका इलाहाबाद के घने बसे मोहल्ले को लेती है और उपन्यास के अंत तक जाते-जाते परिवेश का यह दायरा वैश्विक बन जाता है। उपन्यास का विषय और दायरा तो विस्तृत है ही साथ ही यह उपन्यास वैश्विक समस्या को भी उठाता है। इलाहाबाद को पृष्ठभूमि में लेने का एक कारण शायद यह भी है- “इलाहाबाद में  नासिरा शर्मा ने अपने जीवन की कई दशक गुजारे हैं। यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि उनके जीवन पर, उनकी विचार प्रक्रिया पर इलाहाबाद ने अपना प्रभाव छोड़ा होगा। यहां सिर्फ गंगा जमुना का संगम ही नहीं है; यहां की संस्कृति भी गंगा जमुनी है।4

 जल की ज्वलंत अंतरराष्ट्रीय समस्या को लेकर इस उपन्यास का ताना-बाना बुना गया है और इस उपन्यास में जल ही नहीं, निरंतर गिरते मानवीय मूल्यों, कम होती संवेदनशीलता पर भी प्रश्न है।नासिरा शर्मा ने अपने प्रसिद्ध उपन्यासकुइयांजान' में अपना प्रमुख विषय जल संकट की समस्या को रखा है। उन्होंने छोटी-छोटी बातों में जल के महत्व को रेखांकित करते हुए इस ताने-बाने में संपूर्ण जगत को जल के सही उपयोग का संदेश दिया है|”5

उपन्यास में पानी की किल्लत सबसे पहले तब सामने आती है, जब मस्जिद के मौलवी साहब का इंतकाल हो जाता है और उनके क्रिया कर्म के लिए भी पूरे मोहल्ले में पानी नहीं होता। तब मोहल्ले में एक पुरानी पुरानी कुई से पानी लाकर काम चलाया जाता है। पानी की कमी का वर्णन लेखिका कुछ इस प्रकार करती हैं- “शिव मंदिर के पुजारी भी बिना नहाए परेशान बैठे थे। उन्होंने मंदिर धोया था, भगवान को भोग लगाया था। उनके सारे गगरे- लोटे खाली लुढ़के पड़े थे। नल की टोंटी पर कई बार कौआ पानी की तलाश में आकर बैठ- उड़ चुका था|”6 नासिरा शर्मा दिखाती हैं कि हिंदू मिथकों में जिस शिव भगवान के सिर से गंगा निकलती है, जिस शिवलिंग पर लोग पंचामृत चढ़ाते हैं, आज वह ईश्वर भी पानी की कमी से बिना भोग लगे भूखे बैठे हैं। ना मंदिर धुला है और पशु पक्षी भी प्यास से परेशान है।

           जल समस्या को लेखिका आंकड़ों तथा तथ्यों के साथ कथावस्तु में पिरोती है। वह बताती है कि आज एक अरब से ज्यादा लोगों के पास पीने को स्वच्छ पानी नहीं है। भारत में गांव, कस्बों, शहरों में लोग कुओं, तालाबों और नदियों से जो पानी लेते हैं, वो भी  अधिकतर गंदा और कीटाणु युक्त होता है। उस पानी में प्राकृतिक रूप से संखिया की मिलावट होती है। इतना ही नहीं लेखिका की नजर पानी से पैदा होने वाली एक प्रमुख समस्या की और भी जाती है- “पानी के कारण सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तनाव पनपते हैं; जैसे- भारत और पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश, भारत और नेपाल, सीरिया और तुर्की, और स्वयं भारत में कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी नदी को लेकर तनाव की स्थिति बन चुकी है|”7

 पानी के कारण राज्य, देशों के बीच होने वाले विवाद जगजाहिर है। आज पानी को एक नए उद्योग के रूप में विकसित किया जा रहा है। पानी की एक लीटर की बोतल आज हमें बीस से चालीस रुपए में मिलती है। लेखिका भी उपन्यास में सचेत करती है, कि अगला जो विश्व युद्ध होगा उसके केंद्र में पानी ही होगा। पानी के उद्योग पर लेखिका  तथ्यों के साथ लिखती है – “अमेरिकी पत्रिका फॉर्च्यून के अनुसार पानी उद्योग से मिलने वाला मुनाफा तेल क्षेत्र के मुनाफे की तुलना में 40% हो गया है। विश्व बैंक तेल की तरह ही इसकी आयात व्यवस्था पर जोर दे रहा है8 लेखिका उपन्यास में भी बताती है कि छत्तीसगढ़ में भिलाई के पास शिवनाथ नदी की 22 किलोमीटर की पट्टी को एक निजी कंपनी ने अपने हाथ में लेकर वहां के लोगों के लिए नदी के प्रवेश पर रोक लगा दी थी। ताकि पानी को वह कंपनी अपने अनुसार प्रयोग कर सकें।

जल संकट के दो पहलू होते हैं एक बार और दूसरा सूखा। परंतु भारत में जल संकट का तीसरा पहलू भी है, इस पहलू को भी लेखिका उठाती है- “गांव-कस्बों मेंठाकुर का कुआं' आज भी जीवित है! उन गांवों में जहां मीठे पानी से कुएं आज भी लबालब भरे हैं, वहां दलितों को आज भी तीन रुपए घड़ा उसी गांव का आदमी भेजता है, आप ही समस्या का समाधान कैसे ढूंढेंगे?9 लेखिका इस प्रश्न को पाठकों पर छोड़ देती है। उपन्यास में बाढ़, सूखे से होने वाले दिक्कतों पर भी नासिरा शर्मा खुलकर लिखती है।नासिरा शर्मा ने बाढ़ को भी अपने उपन्यास में चित्रित किया है। बाढ़ एक ऐसी समस्या है जो कि अपने साथ-साथ विभिन्न समस्याओं को लेकर चलती है|”10 घरों में पानी भर जाता है, गांवों, शहरों में डेंगू, वायरल, हेपिटाइटिस, डायरिया जैसी बीमारियां फैल जाती है।

 एक संवेदनशील लेखिका की तरह नासिरा शर्मा पृथ्वी के दुरुपयोग पर्यावरण के साथ खिलवाड़ का पुरजोर विरोध करते हुए लिखती है-“जाओ देखो उन जंगलों को जो तुमने काट दिएजाओ देखो उस जमीन को जिसके स्तनों को तुमने निचोड़ लिया और अपनी सत्ता दिखाने के लिए उस पर परमाणु बमों का प्रयोग किया।उन हिमशिखरों  को देखो जिन्होंने अपने वजूद को पिघला तुम्हें नदियां दी और तुमने उन्हें बर्बाद कर दिया। यही नदियां थी जिनके किनारे तुम आकर बसे थे, आज तुम उनकसे मुंह मोड़ चुके हो|”11

 नासिरा शर्मा  का यह उपन्यासकुइयांजान' लेखिका की कोरी कल्पना नहीं है इसका उद्देश्य मानवीय और इसकी सार्थकता सामाजिक संदर्भों में निहित है।सामाजिक संदर्भों मेंकुइयांजान' का वैचारिक फलक दुनिया को खुद में समा लेने की क्षमता रखता है। उसकी चिंताओं में समूचे विश्व का मानव जीवन ही नहीं, बल्कि धरती के संपूर्ण जीवन की चिंताएं हैं|12 उपन्यास में जल समस्या से अलग भी अनेक विषय पर बात की गई है, परंतु जल समस्या उपन्यास कि वह रीढ़ है, जिसके आधार पर पूरा कथानक घटनाएं जीवित है। उपन्यास एक संपूर्ण कथानक के  साथ सामाजिक रिश्तों की गर्माहट एवं संवेदना के साथ मानव जीवन के अधिकांश पक्षों पर बात करता है। नासिरा शर्मा बीबीसी के साथ हुई एक बातचीत में कहती है- “नल में पानी नहीं है, तो घर में रिश्ते गड़बड़ा जाते हैं, सड़क पर मारपीट हो जाती है।धीरे-धीरे रिश्ते शुष्क होते जा रहे हैं, संवेदनाएं शुष्क होती जा रही है। इस उपन्यास में दोनों तरह की प्यास है,  एक तो साफ-सुथरे पानी की और दूसरी रिश्तो की|”13 जल संकट की इस कथा को साहित्यिक रूप में प्रस्तुत करना, समस्या की विकरालता को दिखाना, भविष्य की इस तक तस्वीर प्रस्तुत करना लेखिका की साहित्यिक कसौटी है। उपन्यास में प्रस्तुत तथ्यों, आंकड़ों, तर्कों के लिए लेखिका ने लंबा अध्ययन कड़ी मेहनत की है।पानी को लेकर उनकी संवेदनशीलता और नॉलेज उपन्यास में देखी। मैं ही नही, कोई भीकुइयांजान' पढ़ने के बाद उनका कायल हो सकता है|”14 लेखिका ने पानी के इर्द गिर्द पूरी दुनिया रची है, उन्होंने हर परिस्थिति को पानी से जोड़ने का प्रयास किया है। “‘कुइयांजानपानी की कि किसी एक समस्या या विकृति मात्र से संतुष्ट नहीं होता। उपन्यास पानी को एक ऐसे वटवृक्ष के रूप में देखता है जिससे जुड़ी मानव जीवन की हर शाख पल्लवित होती हैअवसरवाद का फायदा उठाते डॉक्टर, डॉक्टरों को उनकी मानवीय जिम्मेदारियों का स्मरण कराना, पानी का व्यवसायीकरण, निजीकरण, नदियों के बंटवारे इन सभी पहलुओं पर नासिरा शर्मा की तथ्यपरक आंकड़ों के साथ बहस तथा उपयुक्त समाधान उपन्यास की बड़ी विशेषता है|”15

उपन्यास में प्रसिद्ध पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र एक पात्र के रूप में स्वयं उपस्थित है और अपनी किताबोंराजस्थान की रजत बूंदें' औरअभी भी खरे हैं तालाबकी बातों को अपने मुंह से लोगो को बता बताकर जागरूक करते दिखते है। अनुपम मिश्र पर्यावरण संरक्षण के लिए जनचेतना फैलाने और सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए तब से काम कर रहे थे, जब देश में पर्यावरण रक्षा जैसा कोई विभाग भी नहीं था।

 कुइयांजान' उपन्यास इस ओर भी ध्यान आकर्षित करता है कि भारत की जोनदी जोड़ो परियोजना' है जिसमें उत्तर भारत और दक्षिण भारत की नदियों को जोड़ने की बात कही गई है। लेखिका कहती है कि जब आज तमिल और कर्नाटक में कावेरी नदी के जल को लेकर विवाद है तो जब आगे नदिया जोड़ी जाएंगी तब ऐसे कितने विवाद उत्पन्न होंगे कहीं ऐसा हो कि हम विवादों के गृहयुद्ध में ही फंस जाएं। वो लिखती है- “हम स्वयं कल्पना कर सकते हैं कि जब एक बांध बनाने में कई लाख लोग विस्थापित हो जाते हैं, तो नदियां जोड़ने से कितने लाख गांव उजड़ेंगे? उसके रास्ते में आने वाले कितने जंगल काटे जाएंगे, जिससे चरिंद परिंद तो बेघर होंगे हीमौसम का क्या हाल होगा..!16 फरक्का बांध जो भारत और बांग्लादेश की सीमा पर स्थित है। जिस पर पत्रकार अभय मिश्रा नेमोती मानुष चून' उपन्यास लिखा है, इस बात पर भी लेखिका लिखती हैं – “फरक्का बांध बना। बनाया इसीलिए गया कि कोलकाता के बंदरगाह को पर्याप्त जल मिल सके। मगर यह बांध भी उस बंदरगाह को नहीं बचा पायाइस बराज़ के बनने से बांग्लादेश की कुष्टिया सहित सात आठ जिलों में जल स्तर काफी नीचे चला गयासुंदरी पेड़ जिसकी हमारे बहुतायत थी, जिसके कारण जंगल का नाम सुंदरवन पड़ा, वह पेड़ अब खोजने से ही नजर आते है...17

चार सौ सोलह पृष्ठों का यह उपन्यासकुइयांजान’ 2005 में सामयिक प्रकाशन से प्रकाशित हुआ। भाषा के रूप में लेखिका ने सरल, सहज हिंदी का प्रयोग किया है। अपनी भाषा में वे हिंदी उर्दू दोनों का प्रयोग करती है, हिंदी उर्दू दोनों को वो एक मां की बेटियां कहती है। अपनी रचना की भाषा पर नासिरा शर्मा एक साक्षात्कार में कहती है- “एक शब्द बार-बार दोहरा रही होती हूं तो दूसरे ड्राफ्ट में उसको बदलती जरूर हूं - जैसे जमीन के लिए पृथ्वी, भूमि, सरजमीन, धरती,कभी-कभी अचानक कोई नया प्रयोग भी हो जाता है, जैसे कुइयां के साथजानलगाना। यह तरकीब तो मेरी अपनी ईजाद की हुई है, जो लोगों के कानों को भी भली लगी|”18 कुइयांजान' उपन्यास पाठक को सोचने पर मजबूर ही नहीं करता, बल्कि मांग भी करता है कि पढ़ने वाला उसके बहाव उसकी लय में खो जाए। कुइयांजान ऐसे सुलगते हुए मसले पर ऐसी मुस्तहकम सोच और ऐसी रवानी के साथ लिखा गया है कि सफ़हा कोई भी हो, सतर कोई हो और बात कैसी भी हो, मगर घूम फिर कर एक मरकज पर ठहर जाती है|”19

 नासिरा शर्मा ने कहानी, संस्मरण तथा दस से अधिक उपन्यास लिखे हैं। साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत नासिरा शर्मा जी का उपन्यासपारिजात, पारिजातकेवल एक वृक्ष, कथा और विश्वास मात्र नहीं है, बल्कि यथार्थ की धरती पर लिखी एक ऐसी तमन्ना है, जो रोहन के ख़ून में रेशा-रेशा बनकर उतरी है और रूही के श्वासों में ख़्वाब बनकर घुल गई है। उपन्यास मेंपारिजातएक रूपक नहीं, वह दरअसल नए-पुराने रिश्तों की दास्तान है।

नासिरा शर्मा कृतसात नदियां एक समंदरआधुनिक ईरान की पृष्ठभूमि में अयातुल्ला खुमैनी की रक्तरंजित इस्लामी क्रान्ति  पर आधारित उपन्यास है।ज़िंदा मुहावरेउपन्यास भारत विभाजन की त्रासदी पर आधारित है। इसमें विभाजन के पश्चात भारत में रह गए तथा पाकिस्तान चले गए दोनों तरह के मुसलमानों के दर्द का चित्रण है। नासिरा शर्मा काज़ीरो रोडउपन्यास इलाहाबाद की पहली सड़क ज़ीरो रोड के नाम पर है। हम यदि अपने चारों तरफ नज़र डालें तो महसूस होता है कि कोई रिश्ता, कोई नज़रिया अपनी पूर्णता तक पहुंच रहा है, हर चीज ज़ीरो तक जाकर प्रश्न चिन्ह में बदल जा रही है। इसी सच को एक उपन्यास के जरिए समझने- समझाने की कोशिशज़ीरो रोडके बहाने की गई है।अक्षयवटनासिरा शर्मा का नवीनतम उपन्यास है। दरअसल अक्षयवट प्रतीक है उस अविराम भावधारा का, उस अक्षर विरासत का, जिसका शहर इलाहाबाद की धमनियों में निरन्तर विस्तार है। कहना होगा कि नासिरा जी के इसअक्षयवटउपन्यास में इलाहाबाद शहर अपने सारे नये-पुराने चटक-मद्धिम रंगों और आयामों के साथ जीवन्त रूप में उपस्थित है

निष्कर्ष : नासिरा शर्मा केवल समस्या का विवरण देकर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं कर लेतीं, बल्कि   वह समस्या का  समाधान भी देने का प्रयास करती हैं | समाधान में सरकार जनता दोनों को उनका कर्तव्य बोध कराती हैं तथा प्राचीन भारत के जल संचय के तरीकों के उदाहरण प्रस्तुत करती हैं और बताती हैं कि जैसे प्राचीन भारत में पानी की एक बूंद भी व्यर्थ नहीं जाती थी। एक -एक गांव में कई कई तालाब थे, जल संचय की समुचित व्यवस्था थी। उदाहरणस्वरूप वे बताती हैं- 'सन् 1800 में मैसूर राज्य में उनतालीस हजार तालाब थे इतने तालाबों के कारण पानी की एक बूंद भी व्यर्थ नहीं जाती थी। नासिरा शर्मा राजस्थान की जल संचय की प्राचीन परंपरा का वर्णन करती है। उनके उपन्यास का नायक कमाल राजस्थान के शुष्क इलाके में जाकर लोगों की दिक्कतों से रूबरू होता है। लेखिका पृथ्वी के दुरुपयोग तथा पर्यावरण के साथ खिलवाड़ का पुरजोर विरोध करती है। वे इंसान की मुक्ति की बात करती है, उसे पूज्य बनाने की नहीं।

संदर्भ :
1.     अनुपम मिश्र, राजस्थान की रजत बूंदें, गांधी शांति प्रतिष्ठान प्रकाशक, नई दिल्ली, संस्करण 1995, मई, पृ० 25
2.     शोध संचयन, 15 जनवरी, 2013, ऑनलाइन रिसर्च जर्नल, पृ०2
3.     वांग्मय, जून, 2009, संपादक, डॉ. एम. फिरोज़ अहमद, पृ०118
4.     पुस्तक- वार्ता, मार्च- अप्रैल, 2009, संपादक, भारत भारद्वाज, पृ०8
5.     शोध संचयन, 15 जनवरी, 2013, ऑनलाइन रिसर्च जर्नल, पृ०3
6.     नासिरा शर्मा, कुइयांजान,सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण 2022, पृ०11
7.     वही पृ० 88
8.     वही पृ० 89
9.     वही पृ० 105
10. शोध संचयन, 15 जनवरी, 2013, ऑनलाइन रिसर्च जर्नल, पृ०6
11. नासिरा शर्मा, कुइयांजान,सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण 2022, पृ०273
12. संपादक दत्ता कोल्हारे, हिंदी साहित्य में पर्यावरणीय संवेदना, सामयिक पेपरबैक्स, नई दिल्ली, संस्करण- 2020, पृ०80
13. बीबीसी हिंदी डॉट कॉम, जुलाई, 2008, अचला शर्मा, नासिरा शर्मा के साथ बातचीत
14. संपादक: एम. फीरोज़ अहमद, नासिरा शर्मा एक मूल्यांकन, सामयिक बुक्स, नई दिल्ली, संस्करण- 2010, पृ० 91
15. संपादक: दत्ता कोल्हारे, हिंदी साहित्य में पर्यावरणीय संवेदना, सामयिक पेपरबैक्स, नई दिल्ली, संस्करण- 2020, पृ०83
16. नासिरा शर्मा, कुइयांजान,सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण- 2022, पृ०406
17.  वही, पृ० 402
18. संपादक: एम. फीरोज़ अहमद, नासिरा शर्मा एक मूल्यांकन, सामयिक बुक्स, नई दिल्ली, संस्करण- 2010, पृ० 345
19. वही,  पृ० 108

 

शिवानी राठी
शोध छात्राहिंदी विभाग, बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर(केंद्रीय विश्वविद्यालय) लखनऊउत्तर प्रदेश
rathishivani8888@gmail.com 9528719733, 8218935025
 
प्रो. राम पाल गंगवार
प्रोफ़ेसर, हिंदी विभाग, बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर(केंद्रीय विश्वविद्यालय) लखनऊउत्तर प्रदेश

चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक ई-पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-51, जनवरी-मार्च, 2024 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक-जितेन्द्र यादव छायाकार : डॉ. दीपक कुमार

Post a Comment

और नया पुराने