शोध आलेख : भारत में स्‍त्री शिक्षा एक दृष्टि / शशिकला यादव एवं डॉ. हलधर यादव

भारत में स्‍त्री शिक्षा एक दृष्टि
- शशिकला यादव एवं डॉ. हलधर यादव

शोध सार : राष्‍ट्र के सामाजिक और आर्थिक विकास में महिलाओं की भूमिका महत्‍वपूर्ण होती है। महिला और पुरूष दोनों समाज के दो पहिये की तरह कार्य करते हैं। किसी एक के योगदान से राष्‍ट्र की उन्‍नति प्रगति नहीं कर सकती, दोनों मिलकर समाज और राष्‍ट्र को प्रगति के पथ पर ले जा सकते हैं। दोनों की समान भूमिका को देखते हुए यह आवश्‍यक है कि स्‍त्री को शिक्षा सहित अन्‍य सभी क्षेत्रों में समान अवसर दिये जायें, क्‍योंकि कोई एक पक्ष यदि कमजोर होगा, तो समाज राष्‍ट्र की प्रगति अवरूद्ध हो जायेगा। स्‍त्री का शिक्षित होना अति आवश्‍यक है। एक शिक्षित स्‍त्री परिवार से लेकर समाज समाज से लेकर राष्‍ट्र तक अपने कर्तव्‍यों का निर्वाह भली-भाँति कर सकती है। स्त्रियों के लिए शिक्षा ऐसी कुन्‍जी है जो जीवन के सभी क्षेत्रों में समस्‍या रूपी ताले को खोल सकती है। शिक्षा के क्षेत्र में स्त्रियों की दशा बहुत अच्‍छी नहीं है। वर्तमान में भी शिक्षित स्त्रियों की प्रतिशत पुरूषों से कम है। अभी के समय में भी स्त्रियों की शिक्षा की दशा पर ध्‍यान देना अति आवश्‍यक है। शिक्षित स्‍त्री की दिशा सभी क्षेत्रों में उल्‍लेखनीय है। शिक्षित स्त्रियॉं विकास के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ चुकी हैं और विकास को ऊँचाइयों पर ले जाने के लिए तत्‍पर है। परिवार के सम्‍बन्‍ध में शिक्षित स्‍त्री अहम् भूमिका निभाती है। परिवार के साथ संतुलन बनाकर चलना एक शिक्षित स्‍त्री का दायित्‍व है जिसका वो भली-भाँति निर्वहन करती है। स्‍थान के अनुसार शिक्षित स्‍त्री अपने आपको समायोजित कर लेती है। एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान के अनुसार अपने जीवन रहन-सहन को परिवर्तित कर लेती है। ऐसा कोई पाठ्यक्रम नहीं है जो स्त्रियों के लिए उपयुक्‍त हो अर्थात सभी पाठ्यक्रम में शिक्षित हो रही हैं। अतीत में स्त्रियों की स्थिति बहुत अच्‍छी नहीं थी। वर्तमान में काफी हद तक स्थिति अच्‍छी है। अतीत से बहुत अधिक सुधार हुआ है। शिक्षा के सम्‍बन्‍ध में स्त्रियों की स्थिति भविष्‍य में और अच्‍छी हो सकती है। शिक्षित स्त्रियों की मानसिकता स्‍पष्‍ट होती है, उनमें सोचने-समझने की शक्ति होती है जो निर्णय को बेहतर बनाती है। समानता के सम्‍बन्‍ध में आज के समय में स्त्रियॉं पुरूषों के समान मान-सम्‍मान प्राप्‍त कर रही हैं। वर्तमान में शिक्षित स्त्रियों का रूझान आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में रूचि दिखा रही है। स्त्रियॉं भी पुरूषों के समान नौकरी व्‍यवसाय में रूचि ले रही हैं। शिक्षित स्त्रियों की भागीदारी समितियों में चली रही है। अतीत में भी स्त्रियॉं समितियों का हिस्‍सा होती थी और अभी भी समितियों में भागीदारी निभा रही हैं।

बीज शब्‍द : शिक्षा, दशा, दिशा, विकास, परिवार, स्‍थान, पाठ्यक्रम, समिति, आर्थिक स्थिति, सामा‍जिकता, मानसिकता, समानता।

मूल आलेख : प्रस्‍तुत शोध का उद्देश्‍य शिक्षा के क्षेत्र में स्त्रियों की दशा, दिशा विकास को प्रदर्शित करना है। शिक्षा के क्षेत्र में स्त्रियों की दशा बहुत अच्‍छी नहीं थी। दिशा बहुत अच्‍छी हो सकती है। दिशा पर विकास निर्भर करता है। इस विकास के मार्ग को प्रशस्‍त करने के लिए शिक्षा एक हथियार के रूप में काम करता है। शिक्षा वह प्रकाश पुंज है जो सम्‍पूर्ण समाज को अपने दिव्‍य प्रकाश पुंज से प्रकाशित करता है। शिक्षा के बिना जीवन अन्‍धकारमय है। इस अंधेरे से निकलने के लिए शिक्षित होना अति आवश्‍यक है। स्त्रियों के सम्‍बन्‍ध में बात करें तो शिक्षित स्त्रियों की भागीदारी प्रत्‍येक क्षेत्र में कम है। इस कमी को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक स्त्रियों का शिक्षित होना अति आवश्‍यक है। परिवार देश के विकास के लिए प्रत्‍येक स्‍त्री का शिक्षित होना अनिवार्य है। शिक्षित होने से तात्‍पर्य है कि स्‍त्री में अच्‍छी समझ विकसित हो। शिक्षा एक ऐसा माध्‍यम है जो किसी को भी अन्‍धकार से प्रकाश में लाने का कार्य करती है। शिक्षा के अभाव में जीवन निष्‍प्राण है। शिक्षा का सम्‍बन्‍ध केवल नौकरी व्‍यवसाय से नहीं है। स्त्रियों का शिक्षित होना अपने मान-सम्‍मान के लिए भी जरूरी है। एक शिक्षित स्‍त्री घर-परिवार में अपने कर्तव्‍यों दायित्‍वों का निर्वहन बखूबी कर सकती है। स्‍त्री को शिक्षित होने से परिवार से लेकर राष्‍ट्र तक विकास कर सकता है। शिक्षित मॉं, बेटी, बहन, पत्‍नी अशिक्षित मॉं, बेटी, बहन पत्‍नी की सोच समझ में बहुत अन्‍तर दिखायी देता है। शिक्षा मनुष्‍य के जीवन का महत्‍वपूर्ण लक्ष्‍य होने के साथ-साथ वांछनीय लक्ष्‍यों की पूर्ति का एक उपयोगी साधन भी है।

            ''भारत में स्‍वतंत्रता के पश्‍चात् स्‍त्री शिक्षा के अनेक कार्यक्रम चलाये गये जैसे कि राष्‍ट्रीय साक्षरता मिशन, महिला समाख्‍या योजना, जीवन हेतु महिलाओं का एकीकृत अध्‍ययन, ऑपरेशन ब्‍लैक बोर्ड, अनौपचारिक शिक्षा योजना, नवोदय एवं केन्‍द्रीय विद्यालयों में लड़कियों के लिए बारहवीं तक नि:शुल्‍क शिक्षा इत्‍यादि।''(1) इनके अतिरिक्‍त विभिन्‍न प्रोत्‍साहन योजनायें चलायी गयी जैसे कि स्‍कूल में दोपहर का भोजन देना, नि:शुल्‍क पोशाक पुस्‍तकें वितरित करना, विद्यालय में अधिक उपस्थिति पर छात्राओं को छात्रवृत्ति प्रदान करना जिससे कि विद्यालयों में बालिकाओं की संख्‍या में वृद्धि हो सके। उसके अतिरिक्‍त सम्‍पूर्ण साक्षरता मिशन में महिलाओं पर विशेष ध्‍यान दिया गया। विभिन्‍न राज्‍यों मे प्रौढ़ शिक्षा एवं महिला साक्षरता जैसे अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रमों द्वारा महिलाओं को साक्षर बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं। आज की आवश्‍यकता इस बात की है कि महिलाओं को स्‍वयं की ताकत के बारे में जागृत किया जाय जिससे वे सामाजिक विकास की प्रवर्तक बन सकें। महिलायें जब तक अपनी शक्ति, क्षमता आत्‍मविश्‍वास को जागृत नहीं करेंगी तब तक वाह्य कारक उन्‍हें सशक्‍त नहीं बना सकते। परिवार की अधूरी नारी को जागरूक शिक्षित बनाकर समाज को सशक्‍त बनाया जा सकता है। यह सशक्तिकरण जमीनी स्‍तर पर शुरू हुआ है। इसका सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक प्रभाव तभी दिखायी देगा जब महिलायें अपने आपको सशक्‍त भूमिका में प्रस्‍तुत करेंगी। अर्थात् स्त्रियों की शिक्षा की दशा इन विभिन्‍न प्रयासों के बावजूद भी बहुत अच्‍छी नहीं है। स्त्रियों की शिक्षा की दशा स्‍थान पर भी निर्भर करता है। अधिकतम अशिक्षित स्त्रियॉं ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जाती हैं। ग्रामीण परिवारों की सोच है कि बालिकाओं को साक्षर बना दिया जाय शिक्षित नहीं। कुछ परिवार मिलेंगे जो अपने बेटियों को शिक्षित करने में रूचि रखते हैं। ग्रामीण परिवारों की सोच है कि बेटियों की शादी शिक्षा से ज्‍यादा जरूरी है। बेटियों के लिए साक्षर होना ही बहुत है। कुछ परिवारों की सोच है कि शिक्षित बेटी की शादी बिना दहेज के हो नहीं सकती, तो शिक्षा की क्‍या आवश्‍यकता है। बेटियों के लिए साक्षर होना ही सही है। उच्‍च शिक्षा के प्रति उनका कोई रूझान नहीं है। इस सोच को शिक्षा को माध्‍यम बनाकर बदलने की आवश्‍यकता है। शहरी क्षेत्रों में भी शिक्षित स्त्रियों की दशा बहुत अच्‍छी नहीं है वो भी कहीं कहीं प्रताड़ना या शोषण की शिकार हो रही हैं। शिक्षित स्त्रियों के शिक्षा का दुरूपयोग किया जाता है। शिक्षित स्त्रियॉं भी नौकरी हो या व्‍यवसाय जगह-जगह शोषण की शिकार हो रही हैं। शिक्षित होने के बावजूद बेरोजगारी शिक्षित स्त्रियों के मनोबल को कम कर देता है।

            ''महिलाओं के शोषण एवं उत्‍पीड़न को रोकने के लिए आवश्‍यक है कि उनका चहुँमुखी विकास किया जाय। संविधान और कानून से सम्‍बन्धित ज्ञान वृद्धि के प्रयास किये जाएं।''(2) इसके लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया में भागीदारी बढ़ाने के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की व्‍यवस्‍था की गयी है। अब जब महिला जनप्रतिनिधियों को पुरूष प्रधान राजनैतिक व्‍यवस्‍था में अपनी भूमिका निभाने के लिए खड़ा कर दिया गया है तब अपनी भूमिका को सफलतापूर्वक निर्वाह करने के लिए उन्‍हें खुद को तैयार रखना है। साथ ही स्‍थानीय लोग, स्‍वयं सहायता समूह या संगठन तथा सरकारी संस्‍थाओं की भी जिम्‍मेदारी बनती है कि वे महिला उत्‍थान में सहायक बने। महिलाओं का आत्‍मविश्‍वास बढ़ाने एवं स्‍वयं में नेतृत्‍व का गुण विकसित करने के लिए छोटे-छोटे समूह बनाकर विभिन्‍न विषयों, मुद्दों पर गम्‍भीरतापूर्वक विचार-विमर्श करना चाहिए। इस प्रकार के कदम उठाकर महिलाऍं घर के काम के साथ ही बैठकों में भाग लेने, योजना बनाने, क्रियान्वित करने, निर्णय लेने एवं उन्‍हें लागू कराने में सक्षम बनेंगी। ''महिलाएं केवल पुरूषों द्वारा शोषित की जाती हैं, बल्कि वे पूँजीवाद की निजी सम्‍पत्ति की संस्‍था द्वारा भी शोषित होती हैं।''(3) नारी जाति का उद्धार सामाजिक क्रान्ति के परिणामस्‍वरूप ही हो सकता है जिसमें पूंजीवाद को जड़ से उखाड़ फेंका जायेगा और उनका स्‍थान समाजवाद ले लेगा। इसलिए महिलाओं की मुक्ति के उद्देश्‍य से वर्ग संघर्ष को पहचानना चाहिए। अत: नारीवादियों को अपने शक्ति का प्रयोग एक पृथक और विलग महिला आन्‍दोलन का समर्थन करने के बजाय श्रमिक आन्‍दोलन के लिए करना चाहिए।

            ''सावित्री ज्‍योतिबा फुले पति महात्‍मा ज्‍योतिबा फुले के साथ मिलकर ब्रिटिश शासन काल के दौरान भारत में महिलाओं के अधिकारों में सुधार लाने के लिए एक महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई।''(4) उन्‍होंने निचली जाति की महिलाओं के लिए शिक्षा के प्रयास किये। उन्‍होंने महिलाओं की मुक्ति, विधवा पुनर्विवाह और अस्‍पृश्‍यता को हटाने जैसे सामाजिक सेवा के कार्यों में अपना योगदान दिया। भारत में महिलाओं की शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी समाज सुधारक थी। ''महिला शिक्षा सम्‍बन्‍धी कार्यक्रम और नीतियों में माध्‍यमिक शिक्षा आयोग (1952-53), राष्‍ट्रीय महिला शिक्षा समिति (1958-59), हंसा मेहता कमेटी ऑन वूमेन एजुकेशन 1962, हंसा मेहता समिति 1964-65, राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति 1976, कस्‍तूरबा गॉधी विद्यालय योजना 2004 इत्‍यादि कार्यक्रम स्त्रियों की शिक्षा को अग्रसर करने के लिए निर्धारित किये गये।''(5)

            ''भारत में महिलाओं की शिक्षा और दशा के विश्‍लेषण के क्रम में हमें ध्‍यान देना होगा कि बाहरी ऑधी-तूफान में सुरक्षा के नजरिये से पिता, पति और भाई के घेरे में संरक्षित महिलाएं, परिवारों के भीतर सुप्‍त या मृतप्राय भी नही थीं।''(6) परिवारों के भीतर का पूरा संचालन क्रियाकलाप, व्‍यवस्‍थापन उन पर आश्रित रहा। पुरूषों द्वारा अर्जित सम्‍पत्ति का रख-रखाव, उसका हिसाब-किताब, खेती किसानी से भरे आंगन का गौरव उनके हिस्‍से में आया। बच्‍चों के पालन-पोषण से उपजता सुख उनकी काबिलियत के क्षेत्र का दंभ माताओं के हिस्‍से में रहा। हॉं ये सम्‍पदा ये अर्जन कानूनी लेखे-जोखे से परे था। इन्‍हें दिखा सकना, इन्‍हें तोल सकना भी सम्‍भव नहीं था। लेकिन ये भाव, ये मान अपने आप में कम कीमत वाले नहीं थे। ये भारतीय सभ्‍यता के विकास का मानवीय पक्ष था। ये श्रम और कार्यक्षेत्र का भावनात्‍मक बँटवारा था। परिवार के संरक्षण और पोषण के लिए महिलाओं द्वारा छोड़े गये अपने तमाम अधिकार और स्‍वतंत्रता के बाद में पुरूषों ने अपना आर्थिक सम्‍बल, शारीरिक ताकत और संरक्षण उन्‍हें दिया। सभ्‍य सुसंस्‍कृत पुरूष उनके कृतज्ञ भी रहे, उनके प्रति समर्पित भी रहे। भारतीय संस्‍कृत की ये सबसे बड़ी पूँजी थी जिसकी चाह आज पूरे विश्‍व को है।

            ''यद्यपि आगे चलकर धीरे-धीरे स्‍त्री शिक्षा के प्रति इस रूढि़वादी विचारों में परिवर्तन आया।''(7) सरकार का ध्‍यान भी इस ओर आकर्षित हुआ। 1854 में वुड के घोषणा पत्र में सर्वप्रथम स्‍त्री शिक्षा के महत्‍व को स्‍वीकार करते हुए यह कहा गया कि इस दिशा में शिक्षा के प्रसार हेतु हर सम्‍भव प्रयास किये जायं। इस आयोग ने स्‍त्री शिक्षा को अधिक प्रगतिशील बनाने के कुछ सुझाव भी दिये, जिसमें 'कन्‍या नार्मल स्‍कूल' खोलने, उनकी संख्‍या बढ़ाने, पाठ्यक्रमों को सरल तथा उपयोगी बनाने और स्‍त्री शिक्षा के निरीक्षण के लिए निरीक्षिकाओं की नियुक्ति के सुझाव प्रमुख थे। इन सुझावों का तो व्‍यवहारिक क्रियान्‍वयन तो नहीं हो सका, किन्‍तु नवजागरण से उत्‍प्रेरित कुछ भारतीय समाज सुधारकों ने इस दिशा में जनमत तैयार करने का कार्य अवश्‍य प्रारम्‍भ कर दिया, जिसमें राजा राममोहन राय के प्रयत्‍नों से सती प्रथा पर लगे प्रतिबन्‍ध तथा विद्यासागर के प्रयत्‍नों के परिणामस्‍वरूप विधवा पुनर्विवाह विधेयक अब तक पारित हो जाने से स्त्रियों के सन्‍दर्भ में एक नवीन दृष्टिकोण का संचार भारतीय जनमानस में हो रहा था। कुछ भारतीय संस्‍थाओं के सदस्‍यों ने घर-घर जाकर इन सामाजिक रीतियों के दुष्‍परिणाम के बारे में समझाने का कार्य भी किया।

            ''महिलाओं के शिक्षा और विकास के मार्ग में 'अदृश्‍य अवरोध' एक बड़ी बाधा है।''(8) हर वर्ग और आयु की स्त्रियों को स्‍कूल से लेकर कार्यक्षेत्र तक इस प्रकार के अवरोध से जूझना पड़ता है। कभी-कभी कुछ क्षेत्रों में स्त्रियॉं इस प्रकार की बोझों से इस कदर भयभीत हो जाती हैं कि घर की चहारदीवारी में कदम रखने में भी झिझकती हैं। ऐसे अवरोध समाज में कई रूपों में छिपे हैं। कहीं शारीरिक शोषण, कहीं मानसिक और कहीं भावनात्‍मक धरातल पर किया जाने वाला शोषण तो कहीं आर्थिक स्‍तर पर या फिर पदोन्‍नति के सन्‍दर्भ में। विद्यालयी स्‍तर पर लड़कियॉं संवेदनशील होती हैं और संवेगात्‍मक तौर पर पूर्ण विकसित नहीं होती ऐसे में यदि स्‍कूल के शिक्षक द्वारा यौन शोषण किया जाय तो वे सहम जाती हैं और स्‍कूल के वातावरण से कटने लगती हैं क्‍योंकि कई बार संकोचवश वे अपने परेशानियों से अपने अभिभावकों को परिचित नहीं करा पातीं। इसी प्रकार कई बार देखा गया है कि बेहतर परिणाम हेतु पुरूष समाज द्वारा स्त्रियों को भावनात्‍मक धरातल पर चोट पहुँचाई जाती है। उनके स्‍वाभिमान को आहत किया जाता है जिसके परिणामस्‍वरूप संवे‍दनशील निर्बल लड़कियॉं परिस्थिति से पलायन कर जाती हैं। दूसरी ओर अपने स्तित्‍व को संकुचित कर लेती हैं। दूसरी ओर स्‍वतंत्र विचारधाराओं वाली प्रतिभाशाली महिलाओं के विकास में समाज परिवार भी बाधक बन खड़ा हो जाता है और उनके विकास में बाधा उत्‍पन्‍न करता है। ऐसी परिस्थिति में महिलायें सुनाए जाने वाले तानों या खिल्‍ली उड़ाये जाने के भय से सहम जाती हैं और उनकी प्रतिभा कुंठित हो जाती है।

            ''शिक्षा में सुधार और विकास हेतु राष्‍ट्रीय स्‍तर आयोग तथा समितियॉ गठित की जाती हैं। भारत में स्‍वतंत्रता के बाद से अनेक आयोग तथा समितियॉं गठित की गयी।''(9) उन्‍होंने विश्‍वविद्यालय, माध्‍यमिक तथा प्राथमिक स्‍तर पर सुधार के लिए सुझाव दिये और उन सुझावों को लागू करने का प्रयास किया गया जिससे पाठ्यक्रम के प्रारूप को भी बदलना पड़ा। राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति में व्‍यावसायिक शिक्षा को अधिक महत्‍व दिया गया है। इसलिए माध्‍यमिक स्‍तर पर व्‍यावसायिक पाठ्यक्रमों का प्रारूप विकसित किया गया है। शिक्षा के आयोगों तथा समितियों के सुझाव के आधार पर भी पाठ्यक्रम का प्रारूप प्रभावित होता है। इन आयोगों तथा समितियों का उद्देश्‍य व्‍यावसायिक शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल कर अधिक से अधिक शिक्षार्थियों को आत्‍मनिर्भर बनाना है। ''मानिसक रोग वातावरण के साथ किये गये कुसमायोजी व्‍यवहार को कहा जाता है।''(10) इससे स्‍पष्‍ट है कि मानसिक रोग का सम्‍प्रत्‍य मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य से पूर्णत: भिन्‍न है। परन्‍तु सच्‍चाई यह है कि इन दोनों के बीच स्‍पष्‍ट अन्‍तर की रेखा खींचना आसान नहीं है। ऐसा अक्‍सर देखा गया है कि ऐसे व्‍यक्ति जिनमें कोई मानसिक रोग नहीं है, कभी-कभी उनमें मानिसक मन्‍दता, काल्‍पनिक बीमारियों से चिन्तित रहना, बिना बात के ही क्रोधित हो जाना आदि लक्षण पाये जाते हैं। उसी तरह ऐसे लोग जो निश्चित रूप से मानसिक रूप से रोगग्रस्‍त हैं, उनमें कभी-कभी ऐसी मानसिक दशा उत्‍पन्‍न हो जाती है जो मानसिक रूप से स्‍वस्‍थ्‍य व्‍यक्तियों की मनोदशा होती है और इसमें किसी प्रकार की कोई असामान्‍यता का लक्षण नहीं दिखाई पड़ता। एक शिक्षित स्‍त्री भी कदम-कदम पर मानसिक शोषण का शिकार हो रही है। शिक्षित स्त्रियों के साथ हो रहे शोषण से स्त्रियों की मनोदशा व्‍यथित हो जाती है। घर-परिवार से लेकर व्‍यवसाय तक सभी जगह स्त्रियों का शोषण मानसिक रूप से किया जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में स्त्रियों की मनोदशा बहुत अच्‍छी नहीं है क्‍योंकि स्‍वतंत्र होते हुए भी शैक्षिक प्रशासन के बेडि़यों से जकड़ी रहती है जो शिक्षित स्त्रियों के मनोदशा को प्रभावित करता है। शिक्षित स्त्रियॉं भी पूर्ण रूप से मानसिक स्‍वस्‍थ्‍य नहीं हैं।

            वास्‍तविकता तो यह है कि सरकार द्वारा चलाई गयी किसी भी योजना का क्रियान्‍वयन शहरों में ही प्रमुखता से देखने को मिलता है और यदि प्रयास किये गये तो कुछ चुने गये ग्रामीण क्षेत्रों में ही योजनाएं क्रियान्वित हो पाती हैं। ऐसे प्रयासों से पूर्ण साक्षरता का लक्ष्‍य प्राप्‍त करना मुश्किल है। सौ प्रतिशत साक्षरता प्राप्‍त करने के लिए पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता पैदा कर शिक्षा की अलख जगाने की आवश्‍यकता है। पिछड़े क्षेत्रों के लोगों का सारा ध्‍यान जीविकोपार्जन में ही लगा रहता है और सम्‍पूर्ण जीवन रोजी-रोटी के जुगाड़ में कट जाता है। शिक्षा के अभाव में उन्‍हें सरकार द्वारा चलायी जा रही कल्‍याणकारी योजनाओं की जानकारी नहीं हो पाती और वे अपने अधिकारों से वंचित रह जाते हैं।

            ''जागरूक और साक्षर समाज जो कि लोकतंत्र का स्‍तंभ है, के निर्माण में शिक्षित स्‍त्री का महत्‍वपूर्ण योगदान है।''(11) स्‍त्री शिक्षा के गुणात्‍मक विकास हेतु स्त्रियों तथा बालिकाओं के प्रति हमारे रूख में बदलाव की जरूरत है। स्त्रियों की शिक्षा तथा अधिकारिता के विकास के लिए केन्‍द्र तथा राज्‍य सरकारों को ऐसी योजनाऍं क्रियान्वित करनी होंगी जिनसे सभी वर्गों तथा धर्मों की महिलाएं लाभान्वित हो सकें।

            शोधार्थी द्वारा स्‍त्री शिक्षा की दशा, दिशा विकास को प्रश्‍नावली उपकरण के माध्‍यम से प्राप्‍त करने की कोशिश की गयी है। ये उपकरण दर्शाते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में स्त्रियों की दशा दिशा कैसी है और कहॉं है। ''प्रश्‍नावली व्‍यवहारपरक शोधों में आंकड़े संग्रह करने एवं शोध समस्‍याओं का अध्‍ययन करने का काफी प्रचलित लोकप्रिय साधन है।''(12) प्रश्‍नावली एक ऐसे प्रश्‍नों की माला होती है जिसमें शोध समस्‍या से सम्‍बन्धित कई प्रश्‍न दिये होते हैं तथा जिसे ध्‍यानपूर्वक पढ़कर प्रत्‍यथी उनका उत्‍तर अपने अनुभव के आधार पर देता है और पुन: उसे शोधार्थी को लौटा देता है।

            ''भारत सरकार द्वारा महिलाओं को सशक्‍त बनाने के लिए कई महत्‍वपूर्ण प्रयास किये गये- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, तस्‍करी के पीडि़तों के पुनर्वास और पुन: एकीकरण और वाणिज्यिक यौन शोषण के लिए एक व्‍यापक योजना बनाई गई।''(13) कठिन परिस्थितियों में महिलाओं के लिए एक स्‍वाधार गृह योजना, नारी शक्ति पुरस्‍कार, महिला हेलपलाईन योजना, महिला शक्ति केन्‍द्र, निर्भया योजना, महिला पुलिस वालिंटियर्स। इन सभी के अलावा कुछ अन्‍य कानून भी लागू किये गये हैं- दहेज निषेध अधिनियम-1961, अनैति‍क व्‍यापार (रोकथाम) अधिनियम-1986, सती आयोग (रोकथाम) अधिनियम-1987, राष्‍ट्रीय महिला आयोग अधिनियम-1990, घरेलू हिंसा अधिनियम-2005 से महिलाओं का संरक्षण, बाल विवाह निषेध अधिनियम-2006, कार्यस्‍थल पर महिलाओं का यौन उत्‍पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013, इसके अलावा भारत सरकार द्वारा महिलाओं के लिए प्रशिक्षण और रोजगार कार्यक्रम की भी शुरूआत की गई है। इसके द्वारा महिलाओं को रोजगार के साथ-साथ विभिन्‍न प्रकार के कौशल और दक्षताओं को सिखाया जाता है जो उन्‍हें रोजगार प्राप्‍त करने में सहायक सिद्ध हो।

            ''किसी भी सभ्‍य समाज की स्थिति उस समाज में स्त्रियों की दशा देखकर ज्ञात की जा सकती है।''(14) स्त्रियों की स्थिति ही वह सपना है जो समाज की दशा और दिशा को स्‍पष्‍ट कर देता है। स्त्रियॉं ही संतति की परम्‍परा के निर्वाह में मुख्‍य भूमिका निभाती रही हैं फिर भी प्राचीन समाज से लेकर आज के आधुनिक कहे जाने वाले समाज तक स्त्रियॉं उपेक्षित हो रही हैं। आज के आधुनिक कहे जाने वाले समाज में स्त्रियों को बाजार की वस्‍तु बना दिया गया है। आज फिल्‍में बनती हैं तो उसमें भी 'जो दिखता है वही बिकता है' का सूत्र ही फिट होता है। समाज अपने नैतिक मूल्‍यों, गरिमा, भद्रता और शिष्‍टता से कोसों दूर चला गया है। महिलाओं के साथ सदियों से हो रहे भेद-भाव से विकास की प्रक्रिया को ठेस पहुँचती है। यह भेद-भाव समाज में परिवार से लेकर विभिन्‍न स्‍तरों पर होता रहा है। भेद-भाव की घटनाओं में सबसे महत्‍वपूर्ण है पारिवारिक हिंसा की घटनाएं जो अतीत में ही नहीं अपितु अभी भी बड़े पैमाने पर होती हैं। पारिवारिक हिंसा की घटनाओं में से अधिकतर घटनाएं सार्वजनिक रूप में प्रकट नहीं हो पाती हैं। महिलायें समाज के भय से, शिक्षा के अभाव में, असुरक्षा के भय से, समाज में समुचित सहयोग मिलने के कारण पारिवारिक हिंसा का शिकार होती हैं।

            ''अनुच्‍छेद 51() देश के नागरिकों का कर्तव्‍य है कि किसी भी ऐसे प्रचलित और प्रतीकात्‍मक व्‍यवहार को जो महिलाओं के सम्‍मान के लिए अपमानजनक हो, उसे हतोत्‍साहित करने का प्रावधान करता है।''(15) ''कोठारी आयोग ने मानव संसाधनों के विकास, परिवारों की उन्‍नति तथा बालकों के चरित्र-निर्माण में पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं की शिक्षा को अधिक महत्‍वपूर्ण स्‍वीकार किया तथा स्‍त्री शिक्षा के लगभग सभी पक्षों पर अपने विचार प्रस्‍तुत किये।।''(16) ''भारत में महिला सशक्तिकरण का अन्‍दाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि राजनीतिक दलों के भेदभावपूर्ण रवैये के बावजूद भारत में महिला मतदाताओं की संख्‍या में और अधिक वोट डालने की भागीदारी में उल्‍लेखनीय बढ़त देखी जा सकती है।''(17)

निष्‍कर्ष : निष्‍कर्षत: कहा जा सकता है कि स्‍त्री शिक्षा की दशा बहुत अच्‍छी नहीं है। प्राचीन काल में‍ स्त्रियों की दशा अच्‍छी थी जबकि कम शिक्षित स्त्रियॉं थीं। वर्तमान समय में शिक्षित स्त्रियों की संख्‍या अधिक है लेकिन स्त्रियों की स्थिति बहुत अच्‍छी नहीं है। कहीं कहीं इस स्थिति के जिम्‍मेदार हम सभी हैं। यदि स्त्रियों की दशा को सुधारना है तो शिक्षा में सुधार की आवश्‍यकता है। शिक्षा के माध्‍यम से ही स्त्रियों की स्थिति में सुधार हो सकता है। अधिक से अधिक बालिकाओं को शिक्षित करने की जिम्‍मेदारी परिवार की भी है। स्‍थान की वजह से भी स्त्रियों की शिक्षा प्रभावित होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक जागरूकता की आवश्‍यकता है। शिक्षा के माध्‍यम से स्त्रियों की दिशा बदल सकती है। अधिक से अधिक स्त्रियॉ सभी क्षेत्रों में कार्यरत होंगी। जब स्त्रियॉं पुरूषों से कन्‍धे से कन्‍धा मिलाकर चलेंगी तो उनका भविष्‍य विकसित होगा। आर्थिक रूप से स्त्रियॉं मजबूत होंगी और देश के विकास में योगदान करेंगी। समानता का अधिकार जब कागज से धरातल पर आयेगा तभी स्त्रियों को समान व्‍यवहार और अधिकार मिलेगा। वैसे पुरूषों के समान स्त्रियों को सभी अधिकार दिये गये हैं, लेकिन ये अधिकार प्रयोग नहीं किये जाते और व्‍यवहार में नहीं लाये जाते जिसकी वजह से स्त्रियॉं मानसिक प्रताड़ना की शिकार हो रही हैं। वर्तमान समय में मानसिक प्रताड़ना सबसे खतरनाक बीमारी है जो शिक्षित स्त्रियों के मनोबल को तोड़ देती है, जिससे उनका विकास अवरूद्ध हो जाता है। आगे वे अपने दिशा को तय करने में असमर्थ हो जाती हैं।

            प्रस्‍तुत शोध का प्रथम उद्देश्‍य स्‍नातक स्‍तर के बालिका विद्यार्थियों की उनके रहने के स्‍थान के आधार पर स्‍त्री शिक्षा की दशा का अध्‍ययन शून्‍य परिकल्‍पना के माध्‍यम से करने पर आंकड़ों के विश्‍लेषण से निष्‍कर्ष निकल कर आया कि वर्तमान में स्‍नातक स्‍तर के बालिका विद्यार्थियों में रहने के स्‍थान के आधार पर स्‍त्री शिक्षा की दशा में अन्‍तर पाया गया। बालिका विद्यार्थियों  की दशा का यह अन्‍तर शहरी, ग्रामीण मेट्रो शहरी क्षेत्रों पर निर्भर करता है। जबकि बालिका विद्यार्थियों की उनके रहने के स्‍थान के आधार पर दिशा में कोई अन्‍तर दिखायी नहीं देता है। कुछ पाठ्यक्रम का बालिका विद्यार्थियों की शिक्षा पर प्रभाव पड़ता है अर्थात सभी पाठ्यक्रम में समानता दिखायी नहीं देती है। तथ्‍य स्‍वरूप पाया गया कि सभी पाठ्यक्रम शिक्षा को प्रभावित करते हैं। स्‍नातक स्‍तर के ही कई पाठ्यक्रम शिक्षा की दशा को प्रभावित करते हैं। तथ्‍य स्‍वरूप पाया गया कि पाठ्यक्रम का शिक्षा की दिशा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता अर्थात पाठ्यक्रम बालिका शिक्षा की दिशा को नहीं बदलते हैं। तथ्‍य स्‍वरूप पाया गया कि परिवार के आधार पर शिक्षा की दशा में परिवर्तन नहीं होता। परिवार एकल हो या संयुक्‍त दोनों बालिका विद्यार्थियों की शिक्षा की दशा को प्रभावित नहीं करते। दिशा पर भी परिवार का कोई विशेष प्रभाव दिखायी नहीं पड़ता अर्थात शिक्षा की दशा दिशा दोनों को परिवार प्रभावित नहीं करता है वह चाहे संयुक्‍त हो या एकल परिवार। बालिका शिक्षा की दशा दिशा दोनों परिवार की भूमिका महत्‍वपूर्ण है एकल और संयुक्‍त। एकल और संयुक्‍त दोनों परिवार शिक्षा की दिशा को तय कर सकते हैं। 

सन्‍दर्भ :

1. सुमेधा, पाठक, स्‍त्री-शिक्षा, अग्रवाल पब्लिकेशन्‍स, 2012, पृष्‍ठ संख्‍या (5)
2. वही, पृष्‍ठ संख्‍या (5)
3. शुभ्रा, परमारकर, नारीवादी सिद्धान्‍त और व्‍यवहार, ओरियंट ब्‍लैकस्‍वॉन प्राइवेट लिमिटेड, 2021, पृष्‍ठ संख्‍या (407)
4. वही, पृष्‍ठ संख्‍या (96)
5. वही, पृष्‍ठ संख्‍या (219)
6. डा0 रश्मि, श्रीवास्‍तव, भारतीय समाज में स्‍त्री शिक्षा, राजस्‍थान हिन्‍दी ग्रन्‍थ अकादमी, 2021, पृष्‍ठ संख्‍या (8)
7. वही, पृष्‍ठ संख्‍या (35)
8. सुमेधा, पाठक स्‍त्री-शिक्षा, अग्रवाल पब्लिकेशन्‍स, 2012, पृष्‍ठ संख्‍या (70)
9. एन0 आर0, सक्‍सेना, अध्‍यापक शिक्षा, विनय रखेजा, 2018, पृष्‍ठ संख्‍या (82)
10. अरूण कुमार, सिंह, शिक्षा मनोविज्ञान, भारती भवन, 2018, पृष्‍ठ संख्‍या (704)
11. सुमेधा, पाठक, स्‍त्री-शिक्षा, अग्रवाल पब्लिकेशन्‍स 2012, पृष्‍ठ संख्‍या (71)
12. अरूण कुमार, सिंह, मनोविज्ञान, समाजशास्‍त्र तथा शिक्षा में शोध विधियॉं, मोतीलाल बनारसीदास, 2015, पृष्‍ठ संख्‍या (158)
13. www.bahurinahiawana.in
14. सुमेधा, पाठक, स्‍त्री-शिक्षा, अग्रवाल पब्लिकेशन्‍स 2012, पृष्‍ठ संख्‍या (90)
15. www.ijfmr.com
16. गुप्‍ता, डॉ0 एस0 पी0, गुप्‍ता, डॉ0 अलका (2015), भारतीय शिक्षा का इतिहास, विकास एवं समस्‍यायें, शारदा पुस्‍तक भवन, इलाहाबाद, पृष्‍ठ संख्‍या (441)
17. शुभ्रा, परमारकर, नारीवादी सिद्धान्‍त और व्‍यवहार, ओरियंट ब्‍लैकस्‍वॉन प्राइवेट लिमिटेड, 2021, पृष्‍ठ संख्‍या (245)

 

शशिकला यादव
शोधार्थी (शिक्षाशास्‍त्र) महर्षि सूचना प्रौद्योगिकी विश्‍वविद्यालय, लखनऊ
sashiyadav002@gmail.com, 9118550663
 
डॉ. हलधर यादव
प्रोफेसर (शिक्षा विभाग) महर्षि सूचना प्रौद्योगिकी, विश्‍वविद्यालय, लखनऊ

चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक ई-पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-52, अप्रैल-जून, 2024 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक-जितेन्द्र यादव चित्रांकन  भीम सिंह (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)

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