शोध आलेख / जम्बूकुमार चरित्र का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण / निखिल जैन और डॉ. विनोद कुमार

जम्बूकुमार चरित्र का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण
- निखिल जैन और डॉ. विनोद कुमार

शोध सार : आधुनिक युग में मानव जीवन सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण हो गया है, लेकिन इसके साथ ही ईर्ष्या, प्रभुत्व की भावना, और द्वेष जैसी नकारात्मक भावनाएँ भी बढ़ रही हैं। इस आधुनिक वैज्ञानिकी युग में मानव ने इतनी प्रगति कर ली है कि चाँद पर भी जीवन निर्माण की उपलब्धि आने वाले कुछ सालों में सफल हो जाए लेकिन राग-द्वेष भी इतने बढ़ गए है कि पता नहीं कौन सा देश किस समय दूसरे देश पर अति-विनाशकारी परमाणु हमला करके सम्पूर्ण विश्व को तबाही की तरफ ले जाए। मानव मन की इन्हीं दुष्प्रवृत्तियों को दूर करते हुए आचार्य श्री हस्तीमल जी द्वारा रचित 'जम्बूकुमार चरित्र' अपार धन-सम्पत्ति होने के बावजूद भी कामवासना, हिंसा, चोरी, परिग्रह आदि से दूर रहने का सन्देश देता है।

बीज शब्द : मानव मन, मनोवैज्ञानिक सिद्धांत, जम्बूकुमार चरित्र, मास्लो, नश्वरता, भौतिकतावाद, सिग्मंड फ्रायड, संयम, मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत, डेनियल काहेनमेन, शाकाहार, शांति, अल्फ्रेड एडलर, मोक्ष

मूल आलेख : मानव मन की गहराई और जटिलता को समझने का प्रयास सदियों से ही दार्शनिकों और विद्वानों के लिए केंद्रीय विषय रहा है। इसी मानव मन को समझने के लिए विभिन्न दर्शनों का उदय हुआ, जिनमें से प्रत्येक ने मानव मन की प्रकृति और कार्यप्रणाली को अपने दृष्टिकोण से परिभाषित करने का प्रयास किया है। मनोविज्ञान, "मन" और "विज्ञान" शब्दों के मेल से बना है जो कि मानव मन को वैज्ञानिक सिद्धांतों और अनुसंधान विधियों के माध्यम से समझने का प्रयास करता है। जर्मन मनोवैज्ञानिक विल्हेम वुंट (Wilhelm Wundt) ने 19वीं शताब्दी के अंत में पहली प्रयोगात्मक मनोविज्ञान प्रयोगशाला की स्थापना करके इस क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाई, जिससे मनोविज्ञान को एक अलग वैज्ञानिक अनुशासन के रूप में स्थापित करने में मदद मिली। बाद में, ऑस्ट्रियाई न्यूरोलॉजिस्ट सिगमंड फ्रायड, ने व्यक्तित्व के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत को बताया जिसमें मानव मन को तीन घटकों- इड, ईगो और सुपर ईगो के रूप में वर्णित किया। इड मूल प्रवृत्ति और अचेतन इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करता है, ईगो वास्तविकता सिद्धांत के साथ इड की मांगों को संतुलित करने का प्रयास करता है और सुपर ईगो नैतिकता और आदर्शों का प्रतिनिधित्व करता है। इजरायली-अमेरिकी मनोवैज्ञानिक डेनियल काह्नमैन की पुस्तक, "थिंकिंग, फास्ट एंड स्लो" में, उन्होंने प्रस्तावित किया कि मानव मन दो प्रणालियों के माध्यम से सोचता है: सिस्टम 1, जो तेज, सहज और भावनात्मक है, और सिस्टम 2, जो धीमा, अधिक विचारशील और तार्किक है। ऑस्ट्रियाई मनोवैज्ञानिक अल्फ्रेड एडलर, व्यक्तिगत मनोविज्ञान के संस्थापक, ने तर्क दिया कि मनुष्यों को हीनता की भावनाओं से श्रेष्ठता प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया जाता है। उनके सिद्धांत के अनुसार, व्यक्ति अपनी कथित कमियों को दूर करने और क्षमता की भावना विकसित करने का प्रयास करते है। यह प्रयास व्यक्तिगत विकास, लक्ष्य-निर्देशित व्यवहार और सामाजिक संबंधों को आकार देता है। इन मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों की पृष्ठभूमि के साथ, यह शोध आलेख जैन धर्म ग्रंथ "जम्बूकुमार चरित्र" में निहित मानवीय संघर्षों, आकांक्षाओं और आत्म-साक्षात्कार की यात्रा को गहराई से विश्लेषित करेगा। जम्बूकुमार की कथा, सांसारिक सुखों को त्याग कर आध्यात्मिक सुख प्राप्त करने की उनकी यात्रा, मानव मन की जटिलताओं और आत्म-साक्षात्कार की खोज के बारे में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।

आचार्य हस्तीमल जी द्वारा विरचित "जम्बूकुमार चरित्र" एक जैन धर्म ग्रंथ है जो जम्बूकुमार के पूर्व जन्मों से लेकर उनके अंतिम केवली पद प्राप्ति तक की आध्यात्मिक यात्रा को चित्रित करता है। यह कथा वैराग्य, आत्म-नियंत्रण और आत्म-साक्षात्कार के महत्व पर प्रकाश डालती है। कथा जम्बूकुमार के पूर्वभव, भवदेव नामक एक व्यक्ति से मुख्य रूप में शुरू होती है, जो अपने विवाह के दिन ही बड़े भाई के आग्रह पर सांसारिक जीवन का त्याग कर दीक्षा ले लेते हैं। हालाँकि, भाई की मृत्यु के बाद, उन्हें अपनी पूर्व पत्नी की याद सताती है और कामवासना जागृत हो जाती है। वह उससे मिलने जाते हैं, परन्तु उनकी पत्नी, जो अब एक धर्मपरायण श्राविका बन चुकी होती है, उन्हें सांसारिक सुखों की क्षणभंगुरता का बोध कराती है। आत्मग्लानि से भरकर, भवदेव पुनः संयम के मार्ग पर लौट आते हैं। इस जन्म के बाद, उनका जन्म जम्बूकुमार के रूप में होता है। गुरु सुधर्मा स्वामी के सान्निध्य में आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर, जम्बूकुमार संसार त्यागने का निश्चय करते हैं। माता-पिता के अति आग्रह पर वे आठ सुंदर एवं सुशील कन्यायों से विवाह तो कर लेते हैं, परन्तु विवाह की रात को भी ध्यानमग्न रहते हैं। उनकी पत्नियाँ उनके वैराग्य से चिंतित होती हैं, परन्तु जम्बूकुमार अविचलित रहते हैं। इसी बीच, प्रभव नामक कुख्यात चोर धन लूटने आता है, परन्तु जम्बूकुमार से ज्ञान प्राप्त कर वह भी संयम मार्ग पर चल पड़ता है। जम्बूकुमार, प्रभव और अपनी पत्नियों को आत्म संयम के ज्ञान का उपदेश देते हैं, जो सभी प्रकार के भोगों से मुक्त आत्म कल्याण का मार्ग है।

मनोवैज्ञानिक मास्लो के अनुसार उन्होंने जो पदानुक्रम बताए हैं, उसमें सबसे अंतिम इच्छा में आत्म-साक्षात्कार को रखा है, जब मनुष्य की दुनियादारी की सभी ज़रूरतें पूरी हो जाती हैं तो उसकी अंतिम ज़रूरत आत्म साक्षात्कार की है।1 जम्बूकुमार के पास भी अत्यंत धन-दौलत थी लेकिन वह गुरु सुधर्मा स्वामी का सान्निध्य प्राप्त कर इन ज़रूरतों को व्यर्थ समझने लगते हैं और उन्हें अब सिर्फ आत्म साक्षात्कार करके आत्म कल्याण और मुक्ति मार्ग पर ही चलना था। इसीलिए जब जम्बूकुमार के माता-पिता उनसे विवाह करने को कहते हैं और वह दीक्षा लेकर संसार त्यागने की बात कहकर विवाह के लिए मना कर देते हैं उनकी माता कहती है-

            "बेटा! तुम्हें पता नहीं है कि मुनि जीवन में पग-पग पर कितनी कठिनाइयाँ और बंधन हैं? मुनि का आचार अत्यन्त कठोर होता है और उसे अपवाद रहित होकर पालना होता है। खान-पान में अपने मन और इन्द्रियों को पूर्ण नियन्त्रण में रख कर भिक्षावृत्ति से जीवन यापन करना होता है। कभी भिक्षा मिल जाती है तो कभी नहीं भी मिलती है। भिक्षा में रूखा-सूखा जैसा भी आहार मिलता है, उसी से तन का पोषण करना होता है। इस वैभव के बीच भला, क्या तुम घर-घर भिक्षा के लिए जा सकेगा? यहाँ तुम्हें षड् रस  भोजन उपलब्ध हैं, भिक्षा में तो रूखा-सूखा मिलना भी निश्चित नहीं होता है।"2

लेकिन जम्बूकुमार अपने निर्णय पर अडिग रहते है क्योंकि वह अब जीवन की नश्वरता को जान चुके थे और भोग केवल ध्यान भटकाने के लिए ही है, अंत में इन सबसे दुःख ही मिलता है। लेकिन माता-पिता के अति आग्रह के बाद जम्बूकुमार इस शर्त पर विवाह के लिए राजी हो जाते हैं कि विवाह के अगले ही दिन वह दीक्षा ले लेंगे, अगर सब कन्याएँ इस बात से राजी हो जाती हैं तो वह विवाह कर लेंगे।3

पूंजीवादी भौतिकतावाद के इस युग में मनुष्य को जिस वस्तु की ज़रूरत भी हो तो भी शोधकर्ता न्यूरोसाइंस और मार्केटिंग को मिलाकर, न्यूरोमार्केटिंग के ज़रिए ऐसे तरीके खोजते रहते हैं कि किसी भी वस्तु का मनुष्य के मन के भीतर आकर्षण कैसे पैदा किया जाए।4

सिग्मंड फ्रायड ने काम आदि विकारों को मनुष्य की इड (Id) का हिस्सा माना है लेकिन यह मनोविकृतियाँ भी नष्ट हो सकती हैं अगर सुपर ईगो मजबूत हो। जम्बूकुमार अपने पूर्वभव में जब भवदेव नामक साधू थे जोकि अपने भाई के कहने पर नवविवाहिता को त्यागकर वैरागी बन गए थे, वह भी जब भाई की मृत्यु के पश्चात अपनी पत्नी नागिला से मिलते हैं तो उनमें काम जागृत हो जाता है और वह साधुपना भूलकर कामप्राप्ति की चाह रखते हुए अपनी पत्नी से कहते हैं-

            "प्रिये! अब हम दोनों साथ में रह कर पति-पत्नी के रूप में संसार के सभी सुख भोगेंगे। मैंने तुम्हें बिना पूछे संन्यास लेकर तुम्हारे साथ बड़ा अन्याय किया है। अब फिर से हमारे मिलन का सुखद संयोग मिला है। हम संसार के उत्कृष्ट सुखों का भोग कर ढलती वय में तुम्हारी इच्छानुसार संन्यास ग्रहण कर लेंगे।"5

भवदेव की पत्नी नागिला भी संयमी बन चुकी थी, वह समझ जाती है कि यह अब पथभ्रष्ट हो रहे हैं तो वह इस नश्वर देह के सुख में फंसकर उद्बोध देती हुई कहती है-

            "मार्ग में गंदगी को देखकर व्यक्ति उससे दूर हट कर निकल जाता है। मेरा तन भी अशुद्धि से भरा है, तब आप उसका भोग करना क्यों चाहते हो? अशुद्धि को देखकर आपको भी मुँह मोड़ कर निकल जाना चाहिए।"6

अपनी पत्नी नागिला से उद्बोध प्राप्त कर भवदत्त को आत्मग्लानि होती है और वह पश्चाताप करते हुए फिर से अपने लक्ष्य की तरफ दृढ़ होकर आत्म संयम के मार्ग पर चलते हुए कर्म-निर्जरा करने लगते हैं।7

सिग्मंड फ्रायड के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत के अनुसार, भवदत्त की स्थिति में इड, ईगो और सुपरईगो के बीच संघर्ष स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। भवदत्त, वैराग्य के मार्ग पर होने के बावजूद, अपनी पत्नी से मिलने पर उसमे दमित कामवासना (इड) जागृत हो उठती है। हालाँकि, उसका सुपरईगो (नैतिक विवेक) उसे सही और गलत का बोध कराता है, और अंततः उसकी पत्नी नागिला के उद्बोधन से वह अपने वैराग्य को पुनः धारण कर संयम मार्ग पर अग्रसर हो पाता है।8

डेनियल काहेनमेन (Daniel Kahneman) ने विभिन्न मानसिक गलतियों और लालच की महत्ता पर विस्तृत रूप से चर्चा की है। काहेनमेन के अनुसार मनुष्य मन दो तरह से सोचता है एक तेज और एक धीमा। तेज मन में शीघ्र मिलने वाले लाभ होते हैं और धीमे मन में दूरदर्शिता वाले लाभ। जम्बूकुमार के पास जब प्रभव चोर आता है तो वह भी नव-विवाहित जम्बूकुमार की 8 पत्नियाँ, जोकि अप्सराओं जैसी सुंदर थीं, के त्याग को देखकर उसके मुख से निकल पड़ा- "कुमार स्वतः प्राप्त भोगों का त्याग तो शूरवीर ही कर सकते हैं। मैं आपके इस त्याग का हृदय से अभिनंदन करता हूँ।9 लेकिन फिर भी बाद में वह जम्बूकुमार से आग्रह करते हैं कि अभी तो इतनी उम्र शेष है, युवावस्था में क्यों सन्यास लेना, थोड़ा समय गृहस्थी में रहें फिर सन्यास ले लें। जम्बूकुमार फिर प्रभव को उस व्यापारी की कथा सुनाते हैं जिसमें व्यापारी साथियों से बिछड़कर जंगल में अकेला रह जाता है। सामने जंगली हाथी को देखकर पेड़ की डाल पर लटक जाता है, बाद में देखता है कि एक तरफ कुआँ है जिसमें भयंकर साँप है और अगर लटका भी रहे तो भी गिरना ही है क्योंकि चूहे पेड़ की डाल को काट रहे हैं। वहीं से एक विद्याधर युगल भी गुजरते हैं जो कि उसे पेड़ की डाल छोड़कर विमान पर आने को कहते हैं लेकिन पेड़ के ऊपर मधुमक्खियों के छत्ते से मधु की बूंदें टपक रही थीं जिस मोह से वह विमान पर नहीं चढ़ता और अंततः चूहे पेड़ काट देते हैं और कुएँ में गिरकर साँप उसे डस लेता है जिस कारण उसकी मृत्यु हो गयी।10 डेनियल काहेनमेन के सिद्धांत के अनुसार ही व्यापारी अगर दूरगामी लाभ को सोच पाता तो उसकी जान बच जाती लेकिन उसने तेज मन की मानी जिस कारण शीघ्र मिलने वाली जिव्हा की आसक्ति ने उसके प्राण ही ले लिए।11

महावीर जी के भी शाकाहार की शिक्षा में यही उद्देश्य निहित है। मनुष्य जीभ के स्वाद मात्र के लिए जानवरों तक को बेमतलब से मारकर खा जाता है जबकि शाक-सब्जी की उपलब्धता है भी। मनुष्य जिसके पास शाक के संसाधन उपलब्ध भी हैं तो भी वह जानवरों के दर्द को समझकर जिव्हा के लिए उन्हें मारता है, लेकिन अगर स्वयं को सुई तक चुभ जाए तो कैसे छटपटाता है। ज्ञानमुनि जी ने भी अपने ग्रन्थ जैन ज्ञान प्रकाश में इसी पर पंक्ति भी लिखी है-

एक कांटे ने तेरी रग-रग को मुर्दा कर दिया।
क्या छुरी का दर्द मजलूमों को तड़पाता नहीं?12

इन्हीं जानवरों में जाने कितनी बीमारियाँ लगी होती हैं और इनसे कितनी ही घातक बीमारियाँ फैलती भी हैं। COVID-19 इसका सबसे सटीक उदाहरण है। अधिकतर लोग काहेनमेन के अनुसार अपने तेज मन को ही प्राथमिकता देते हैं जिस कारण बाद में हानि ही पहुँचती है, स्वयं को भी और दूसरों को भी पहुँच सकती है।

जम्बूकुमार की पहली पत्नी समुद्रश्री जब उन्हें "वानर का आख्यान" सुनाकर कहती है कि जिस प्रकार वानर अपने लालच के कारण मानव बनकर लालच के कारण फिर से वानर बन गया, उसी प्रकार आप भी प्राप्त भोगों को त्यागकर अधिक लालच में सब कुछ खो बैठेंगे। तब जम्बूकुमार समुद्रश्री के सवालों का जवाब देकर "अंगारक का आख्यान" सुनाते हुए कहते हैं कि-

            "एक अंगारक जंगल से लकड़ियाँ काट कर उसका कोयला बनाकर बेचता था और अपनी आजीविका चलाता था। जो आय होती थी उससे उसे संतोष नहीं था। एक दिन वह लकड़ियाँ काट कर उनसे कोयला बनाने जंगल में गया। गीली-सुखी लकड़ियाँ काटकर उनसे कोयला बनाया। गर्मी का मौसम था। उसे कड़ी प्यास लगी। साथ में लाया सारा पानी पी गया लेकिन उसकी प्यास नहीं बुझी। किसी तरह कोयलों का भार सिर पर रख कर वह नगर की ओर चला। रास्ते में प्यास की तीव्र वेदना से मूर्छित होकर गिर पड़ा। होश आने के बाद वह पास में एक पेड़ की छाया में सो गया। थकावट के कारण उसे नींद गई। नींद में उसे स्वप्न आया जिसमें उसने देखा कि वह सभी नदी, तालाबों और कुओं का पानी पी गया है लेकिन उसकी प्यास शान्त नहीं हुई। स्वप्न देखकर वह एकदम जाग उठा। प्यास के मारे उसका गला सूख रहा था। वह किसी प्रकार गिरता पड़ता एक जलाशय के पास पहुँचा। प्यास के मारे वह जल्दी-जल्दी जलाशय में घुसा लेकिन किनारे के दल-दल में फँस गया। अब वह आगे जा सकता था और ही पीछे लौट सकता था। वह बड़ी मुसीबत में फँस गया। पानी तो उसे मिला नहीं और कीचड़ में ही फँस गया। उसका गला प्यास के कारण सँधने लगा। उसे मृत्यु समीप आती दिखाई देने लगी। अन्त में शरीर की तपन को मिटाने उसने गिली मिट्टी शरीर पर पोत ली। थोड़ी देर में कीचड़ का लेप सूख गया जिससे उसके शरीर की वेदना तीव्र हो गई। उसने मैले पानी के कीचड़ में घास डुबोई। घास से टपकने वाली बूँदे उसने अपने मुँह में डालनी शुरू की। लेकिन उसकी प्यास प्रबल से प्रबलतर होती गई। इतने में एक दयालु पुरुष उस ओर निकला। अंगारक की इस दुर्गति को देख उस दयालु का दिल दया से द्रवित हो उठा। उसने अंगारक को कीचड़ से निकाला। उसके तन में लगी मिट्टी को धोया और उसे जल पिलाया। अंगारक को बड़ी शांति मिली। उसे आज जल का वास्तविक मूल्य मालूम हुआ।"13

आख्यान सुनाकर जम्बूकुमार कहते हैं कि जैसे बिना शुद्ध जल के शांति नहीं, वैसे ही आत्मिक शांति भी तभी मिलती है जब मन निर्मल होता है। अशुभ कर्मरूपी प्यास भोग रूपी जल मिलने के कारण ही लगती है। अंगारक ने शांति प्राप्त करने के लिए मिट्टी का लेप लगाया लेकिन वह उसके लिए घातक साबित हुआ। ठीक इसी प्रकार मनुष्य तृप्ति के लिए भोगों का सेवन करता है लेकिन अंत में वह सब घातक ही साबित होते हैं। कथा के माध्यम से लेखक ने मानव मन के लालच को बहुत सटीक रूप से चित्रित किया है कि कैसे जिस वस्तु का पता है कि नुकसानदेह है लेकिन फिर भी कुछ क्षण की संतुष्टि के लिए मानव मन फिर भी उसी में ही आनंद प्राप्त करना चाहता है।

अल्फ्रेड एडलर का हीनता से श्रेष्ठता का सिद्धांत (Inferiority to Superiority Complex) बताता है कि जिस मनुष्य में जिस चीज़ की कमी होती है वह उसे छिपाने के लिए अपनी श्रेष्ठ वस्तु को अधिक दूसरों के सामने दिखाता है। जम्बूकुमार की दूसरी पत्नी पद्मश्री जब उन्हें गृहस्थ जीवन कामभोगों के साथ जीकर जीने के लिए कथा सुनाती है तो जम्बूकुमार उसे 'मेघरथ और विद्युन्माली का आख्यान' सुनाते हैं। मेघरथ और विद्युन्माली दोनों दरिद्र भाई विद्या को साधना चाहते हैं। एक विद्याधर उन्हें विद्या सीखाने के लिए राजी हो जाता है लेकिन उन्हें इसके लिए मातंगी नामक कन्या से विवाह करना पड़ेगा और फिर निर्वस्त्र मातंगी के समक्ष रात को मंत्र जाप करना होगा वो भी बिना उसके साथ आँख मिलाए। अगर उसके हाव-भाव से विचलित हुए बिना मंत्र साधना संपन्न हो गयी तो दोनों राजा बन जाएँगे। विद्युन्माली निर्वस्त्र मातंगी के हाव-भाव से विचलित हो गया और वह पागल बन गया लेकिन मेघरथ अपनी इन्द्रियों को वश में रखकर एकाग्र रहा और उसकी साधना सम्पन्न हुई और वह राजा बन गया।14

अपनी दरिद्रता के कारण विद्युन्माली जब अप्सरा जैसी सुंदर स्त्री को देखता है तो उसके मन में काम विकार ही जाता है जबकि विद्याधर ने कहा भी था कि मातंगी के हाव-भाव से आकर्षित नहीं होना लेकिन अल्फ्रेड एडलर के सिद्धांत के अनुसार विद्युन्माली हीनता की भावना से काम भोग प्राप्त करके श्रेष्ठता की भावना की तरफ जाना चाहता था, किन्तु अपनी इन्द्रियों पर काबू रखने के कारण वह दूरगामी सुख से वंचित रहकर पागल बन जाता है। लेकिन वही दूसरा भाई मेघरथ अपनी सब भावनाओं को काबू में करके शीघ्र मिलने वाले झूठे आनंद में फंसकर एकाग्रता के साथ साधना करता है और अपने लक्ष्य को प्राप्त करके राजा बन जाता है।15

सम्पूर्ण जम्बूकुमार चरित्र में काम आदि भोगों को शीघ्र मिलने वाला आनंद बताया गया है जिसके कारण मनुष्य इन्द्रियों को समझकर उस पर विजय प्राप्त कर साधना द्वारा अंतिम सुख मोक्ष मार्ग से वंचित रह जाता है और विषय भोगों में आसक्त रहकर ही संसार चक्र में भटकता रहता है।

निष्कर्ष : जम्बूकुमार चरित्र, आध्यात्मिक जागृति और सांसारिक मोह-माया से मुक्ति की यात्रा की प्रेरक कथा है। मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के माध्यम से, हम जम्बूकुमार के चरित्र और प्रेरणाओं को गहराई से समझ सकते हैं और उनकी आत्म-साक्षात्कार की खोज में आत्म-नियंत्रण, त्याग और आध्यात्मिक मार्गदर्शन के महत्व को पहचान सकते हैं। जम्बूकुमार की कथा हमें यह प्रश्न करने के लिए प्रेरित करती है कि हम अपने जीवन में किन मूल्यों को प्राथमिकता देते हैं और क्या हम तात्कालिक संतुष्टि के पीछे भाग रहे हैं या स्थायी आनंद और आध्यात्मिक पूर्ति की खोज कर रहे हैं। यह एक सार्वभौमिक संदेश है जो हमें बताता है कि हम सभी में आध्यात्मिक विकास और आत्म-साक्षात्कार/आत्म-कल्याण की क्षमता है, और यह कि इस यात्रा के लिए सांसारिक मोह-माया का त्याग और आत्म-नियंत्रण अति आवश्यक है। आधुनिक युग में, हम अक्सर क्षणभंगुर भौतिक चीजों, सांसारिक सुखों और बाहरी उपलब्धियों के पीछे भागते रहते हैं, यह भूलकर कि इन सबका कोई अंत नहीं है और ही इनमें सच्ची खुशी है। कोई भले ही महंगी से महंगी कार ले लें या फिर आलिशान महल बनाकर रहने लग जाए, लेकिन क्या वह भी संतुष्ट है? तो जवाब यही होगा संतुष्ट तो नहीं, इसलिए आत्म संयम अति आवश्यक है। जम्बूकुमार चरित्र हमें बताता है कि जीवन की सच्चाई को समझकर, विकारों से दूर होकर और आत्म-कल्याण की ओर बढ़कर ही हम स्थायी शांति और आनंद प्राप्त कर सकते हैं। यह आंतरिक यात्रा, भले ही चुनौतीपूर्ण हो, हमें एक सार्थक और पूर्ण जीवन की ओर ले जाती है।

संदर्भ : 
1.Aishwarya, Shahrawat, Renu, Shahrawat, SCIRP Open Access, www.scirp.org/reference/ReferencesPapers?ReferenceID=2035577.
2.सम्पत राज, चौधरी, जम्बूकुमार चरित्र, सम्यग्ज्ञान प्रचारक मंडल (जयपुर), 2019, पृष्ठ-104
3. वही पृष्ठ-109
4.Sandeep, Chowdhary, ISMR Pune, https://ismrpune.edu.in/blog/neuromarketing-decoding-consumer-behaviour-through-the-power-of-brain-science/
5. सम्पत राज, चौधरी, जम्बूकुमार चरित्र, सम्यग्ज्ञान प्रचारक मंडल (जयपुर), 2019, पृष्ठ-47
6. वही पृष्ठ-48
7. वही पृष्ठ-52
8. Catherine, Halley. “Sigmund Freud’S the Ego and the Id.” JSTOR Daily, Sept. 2019. JSTOR, daily.jstor.org/virtual-roundtable-on-the-ego-and-the-id.
9. सम्पत राज, चौधरी, जम्बूकुमार चरित्र, सम्यग्ज्ञान प्रचारक मंडल (जयपुर), 2019, पृष्ठ-131
10 वही पृष्ठ-136 
11. Daniel, Kahneman, Thinking Fast and Slow, Penguin Books, 2011, P-21
12. ज्ञानमुनि, जैन ज्ञान प्रकाश, भगवान् महावीर मैडिटेशन एंड रिसर्च सेण्टर ट्रस्ट, पृष्ठ-277
13. सम्पत राज, चौधरी, जम्बूकुमार चरित्र, सम्यग्ज्ञान प्रचारक मंडल (जयपुर), 2019, पृष्ठ-188
14. वही पृष्ठ-208
15. Wissing, Nick. (2018). Adler's Theory of Personality and Inferiority Complexes. 10.13140/RG.2.2.33995.23840. P-1
 
निखिल जैन
(शोधार्थी)
 
डॉ. विनोद कुमार
समाज विज्ञान एवं भाषा संकाय, लवली प्रोफ़ेशनल यूनिवर्सिटी, फगवाड़ा, पंजाब 

चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक ई-पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-52, अप्रैल-जून, 2024 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक-जितेन्द्र यादव चित्रांकन  भीम सिंह (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)

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