दिल्ली की ‘जंक आर्ट’ परियोजनाएं : एक अध्ययन
- सौरभ सिंह
शोध सार : समकालीन कला में नित्य नए प्रयोगों ने कला के क्षेत्र को अत्यधिक व्यापक बनाया है। ‘जंक आर्ट’ शब्द का प्रयोग अनुपयोगी पदार्थों से बनी कलाकृतियों के लिए किया जाता है| भारत मे पहला उदाहरण नेकचंद द्वारा बनाया गया चंडीगढ़ का ‘रॉक गार्डन’ है| अनुपयोगी पदार्थों से कलाकृतियों के निर्माण हेतु राजधानी दिल्ली को विश्व के सबसे बड़े कलात्मक शहर के रूप मे विकसित किया जा रहा है| जिसका परिचय भारत दर्शन पार्क, शहीदी पार्क, वेस्ट टू वन्डर पार्क, डायनासोर पार्क और जी-20 पार्क प्रस्तुत करते हैं| दिल्ली के जंक आर्ट परियोजनाओं का विश्लेषण करने से यह पता चलता है कि कलाकारों ने भारत के सांस्कृतिक विरासत को एक नया जीवन दिया है| भारत सरकार के 'वेस्ट टू क्रिएट' के अभियान को कला कि आधुनिक शैली ‘असेम्बलेज़’ द्वारा कलाकृतियों और स्मारकों का निर्माण कर भारतीय समकालीन कलाकारों ने ‘जंक आर्ट’ को एक नई पहचान दी है। जिससे किसी कलाकृति के सौंदर्य बोध के नए मानक तय हुए हैं। यह शोध अनुपयोगी सामग्री से कलाकृतियों के निर्माण की अवधारणा के विकास बताते हुए इसके वर्तमान स्वरूप की भी समीक्षा करता है। 'जंक आर्ट' जन कला (पब्लिक आर्ट) के रूप में समाज से सीधा संवाद करती है, जिसमें सांस्कृतिक विरासत को भी संजोकर चलने की जिम्मेदारी, पर्यावरण की चिंता, भविष्यगत संभावनाएं और समावेशिता भी परिलक्षित होती है।
बीज शब्द : समकालीन कला, आधुनिक कला, असेंबलेज कला, अनुपयोगी सामग्री, सांस्कृतिक विरासत, स्क्रैप आर्ट, जंक आर्ट, मूर्तिशिल्प, आधुनिक कलाकार, समकालीन कलाकार, रीसाइकल, दिल्ली, पार्क।
मूल आलेख :
उद्देश्य - इस शोध का मूल उद्देश्य जंक आर्ट के प्रति विचार और धारणा को समझना, इसकी रचना शैली और प्रक्रिया को समझना साथ ही जंक आर्ट के प्रति आमजन की सोच और उनके सौंदर्य बोध को परखना एवं जन कला के रूप में इसके व्यावहारिक, मनोवैज्ञानिक प्रभावों का विश्लेषण करना। पर्यावरण की दृष्टि से इसकी उत्पादकता और उपागम्यता की जांच करना साथ ही इस माध्यम विशेष में भविष्यगत संभावनाओं को परिलक्षित करना है।
शोध विधि - इस शोध के आंकड़ों को प्राप्त करने के लिए दिल्ली कि जंक आर्ट परियोजनाओं का विशेष रूप से दस्तावेजीकरण किया गया है जिसमें शोध क्षेत्र का भ्रमण कर, व्यवहारिक सर्वे एवं साक्षात्कार द्वारा आंकड़ों को प्राप्त किया गया है। अन्य सहायक जानकारी को पुस्तकों, शोध पत्रों, इंटरनेट पर उपलब्ध आलेख के द्वारा प्राप्त किया गया है। जिनके द्वारा विशेष रूप से इन आंकड़ों का विश्लेषण कर निष्कर्ष तक पहुंचाने का प्रयास किया गया है।
दिल्ली की समकालीन कला और ऐतिहासिक महत्व - ऐतिहासिक रूप से कला संस्कृति से परिपूर्ण भारत की राजधानी दिल्ली आज के वर्तमान समय में कला तीर्थ के रूप में उभर चुकी है। दिल्ली के प्राचीन सल्तनत कालीन स्मारकों में शामिल कुतुब मीनार, जामा मस्जिद, अलाई दरवाजा एवं मुगलकालीन लाल किला, हुमायूं का मकबरा आज धरोहर के रूप में विश्व भर के पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण के रूप में है। वैसे ही ब्रिटिश उपनिवेशवाद में आर्किटेक्ट ‘लुटियंस’ द्वारा रचे गए प्रसिद्ध इमारतें जैसे संसद भवन, इंडिया गेट, राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय का जयपुर हाउस आज नई दिल्ली के विकास एवं विस्तार को दर्शाती है।[1] आधुनिक कला के संग्रह एवं विशेष प्रदर्शन के लिए दिल्ली में 'राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय' की स्थापना 29 मार्च 1954 को की गई थी। कला की समकालीन धारा को नई दिशा देने के लिए 5 अगस्त 1954 को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय ललित कला अकादमी की स्थापना की गई जो वर्ष भर में विभिन्न तरह के कार्यशालाओं एवं कला प्रदर्शनियों का आयोजन करती रहती है।[3] ललित कला अकादमी प्रतिवर्ष देशभर से चयनित 40 कलाकारों को चित्रकला, मूर्ति कला, कला समीक्षा के क्षेत्र में छात्रवृत्ति प्रदान करती है जिसमें चयनित कलाकारों को प्रतिमाह ₹20000
प्रदान किए जाते हैं साथ ही उन्हें कार्य करने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर कला स्टूडियो भी आवंटित किया जाता है।
दिल्ली में प्रतिवर्ष फरवरी माह के प्रथम सप्ताह में 'इंडिया आर्ट फेयर' का आयोजन होता है जिसमें विश्व भर के प्रमुख आर्ट गैलरीज सम्मिलित होती है और समकालीन कलाकारों की कलाकृतियां प्रदर्शित की जाती है। इस प्रकार से दिल्ली में कुछ अन्य प्रमुख आर्ट गैलरी जैसे किरण नाडार म्यूजियम आफ आर्ट, त्रिवेणी कला संगम, आर्ट हेरिटेज, दिल्ली आर्ट गैलरी जो समकालीन कला को प्रश्रय देने में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं।[5] दिल्ली की समकालीन कला को विशेष रूप से समझने एवं नए कलाकार प्रशिक्षुओं को तैयार करने में कला शैक्षणिक संस्थाओं का भी प्रमुख योगदान है जैसे दिल्ली कॉलेज आफ आर्ट, जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय जो शोध की स्तर पर पाठ्यक्रमों का संचालन कर रहे हैं और कला विचार विमर्श को नई दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं।
दिल्ली की जंक आर्ट परियोजनाएं -
2. वेस्ट टू वंडर पार्क- यह दिल्ली के गंगा विहार इलाके में हजरत निजामुद्दीन मेट्रो स्टेशन के पास बनाया गया है जिसमें विश्व के प्रसिद्ध सात आश्चर्य स्मारकों की प्रतिकृति को कबाड़ में पड़ी लोहे की छड़ों, पुरानी पाइपों, ऑटोमोबाइल पार्ट्स इत्यादि तरह के बेकार सामग्री से बनाया गया है| इस पार्क को बनाने में मुख्य योगदान दक्षिणी दिल्ली के एसडीएमसी कमिश्नर डॉ पुनीत गोयल का है इसकी प्रेरणा उन्हें कोटा में बने सेवन वंडर्स पार्क से मिली थी इसको बनाने में कुल 6 महीने लगे थे यह 6 एकड़ में फैला है। इस पूरे पार्क में कुल 150 टन स्क्रैप का प्रयोग किया गया है इसको को बनाने में 12 आर्किटेक्ट और 70 वेल्डर कारीगर लगे थे। इसमें बनाए गए प्रमुख स्मारक इस प्रकार से हैं-
स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी - इस प्रतिकृति की ऊंचाई 30 फीट के करीब है जिसमें 8 टन स्क्रैप मटेरियल जैसे लोहे की चादर, पाइप, एंगल्स, रेलिंग, साइकिल की चेन, कार के रिंग इत्यादि प्रयोग हुए हैं।
ताजमहल - इसमें 30 टन वेस्ट मटेरियल का प्रयोग किया गया है जिसको कुल 24 कारीगरों ने 5 महीने में बनाया है।
रोम का कोलोसियम - इसको बनाने में कुल 11 टन स्क्रैप मेटल का प्रयोग किया गया है इसकी ऊंचाई औसत रूप से 15 फिट है।
क्राइस्ट द रिडीमर की प्रतिमा - इसकी औसत ऊंचाई 25 फिट है और यह 5 महीने में बनाया गया है इसमें मोटरसाइकिल की चेन, इंजन पार्ट्स, पुरानी बेंच और इलेक्ट्रिक पोल इत्यादि का प्रयोग किया गया है।
एफिल टावर - यह 60 फीट ऊंचा पार्क की सबसे ऊंचाई वाली प्रतिकृति है, इसको बनाने वाले कलाकार संदीप पलसीकर ने बताया कि उन्होंने इसमें 40 टन ऑटोमोबाइल स्क्रैप जिसमें क्लच प्लेट एंगल्स का प्रयोग किया है।
पीसा की झुकी मीनार - 25 फीट ऊंचाई वाला 10.5 टन मेटल शीट,पाइप्स, ग्रास कटर, स्प्रिंग, टाइपराइटर, बेंच इत्यादि विभिन्न तरह के स्क्रैप से बनाए गए स्मारकीय प्रतिकृति में कुल आठ खंड और 211 आर्च हैं।
गीज़ा का पिरामिड - 18 फीट ऊंचे इस पिरामिड को बड़ोदरा के आर्किटेक्ट पिजूस पत्रा द्वारा बनाया गया है जिसमें कुल 110 सतह के साथ 12 टन स्क्रैप एंगल्स को जोड़कर बनाया गया है।[17]
3. शहीदी पार्क- यह पार्क दिल्ली के आईटीओ क्षेत्र में बनाया गया है जिसे दिल्ली नगर निगम एमसीडी ने 405
एकड़ भूमि पर स्थापित किया है यह भारत का पहला आउटडोर संग्रहालय के रूप में जाना जा रहा है। इसमें एमसीडी के कबाड़ एवं व्यर्थ सामग्री से बनी कलाकृतियां प्राचीन मध्यकालीन और आधुनिक भारतीय इतिहास की झलक हैं। इसको वेस्ट टू क्रिएट थीम के तहत 6 महीने में कुल 700
कारीगरों और 10 कलाकारों की देखरेख से बनाया गया है। इसके निर्माण में कुल 250 टन स्क्रैप मैटेरियल का प्रयोग किया गया है। यह पार्क भारत के राष्ट्रीय नायकों को समर्पित है जिन्होंने देश की स्वतंत्रता और संप्रभुता के लिए अपना संपूर्ण जीवन न्योछावर कर दिया था। इसमें बनी कलाकृतियां देश की समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को संदर्भित करती हैं यह पर्यटकों के लिए एक प्रतिष्ठित एवं मनोरंजन स्थान के रूप में आकर्षण का केंद्र है जहां दर्शक को कबाड़ और अनुपयोगी सामग्री से निर्मित मूर्ति शिल्प और उनके कथानक एक प्रेरणा के रूप में मिलते हैं। दर्शक इन मूर्तियों के माध्यम से अतीत में झांक पाते हैं यह मूर्तियां हमारे गौरवशाली इतिहास और राष्ट्र नायकों के जीवन आदर्श रूप में प्रस्तुत करती हैं जो आने वाली पीढ़ियों को हमेशा राष्ट्र प्रेम के लिए प्रेरित करेंगी। दर्शकों को इसमें देश की एकता विविधता और संघर्ष के तत्व मिलते हैं। इसके निर्माण में कबाड़ में पड़े पुराने ट्रक, कार के एंगल्स,रिक्शा एवं अन्य मेटल पार्ट्स का प्रयोग किया गया है। इस पार्क को 15 करोड रुपए की लागत से बनाया गया है इसकी संरचना में कुल 93 द्विआयामी और 20 द्विआयामी मूर्तियां सहित वीथिका और नौ सेट विकसित किए गए हैं।[16]
4. G20 वेस्ट टू आर्ट पार्क- G20 समिट को समर्पित यह पार्क दिल्ली के कौटिल्य मार्ग पर बनाया गया है इसमें स्क्रैप मेटल से कुल 22 मूर्तियों को बनाया गया है जिसमें G20 में शामिल देशों के राष्ट्रीय पशु पक्षियों को ज्यादातर ऑटोमोबाइल एवं अन्य स्क्रैप से बनाया गया है यह पार्क 0.25 एकड़ में फैला है। नई दिल्ली म्युनिसिपल काउंसिल ने राष्ट्रीय ललित कला अकादमी के संयुक्त प्रयास द्वारा इसे एक स्क्रैप आर्ट कार्यशाला का रूप देखकर वन फैमिली वन अर्थ वन फ्यूचर अर्थात वसुदेव कुटुंबकम थीम के आधार पर बनवाया गया है। ललित कला अकादमी द्वारा अपने क्षेत्रीय गढ़ी आर्ट स्टूडियो में इन कलाकृतियां को बनवाया गया था।[15]
5. डायनासोर पार्क - दिल्ली नगर निगम द्वारा विकसित या डायनासोर पार्क 3.5 एकड़ में फैला सराय काले खान क्षेत्र में वेस्ट टू वंडर पार्क के बगल में स्थित है। इस परियोजना में आठ कलाकार और 60 सहायक कर्मियों ने मिलकर काम किया है। इस उद्यान में अनुपयोगी सामग्री से कुल 40 डायनासोर की मूर्तियां बनाई गई है जो जुरासिक युग की याद दिलाती हैं इन मूर्तियों को न सिर्फ देखने योग्य बल्कि इनकी उपयोगिता को भी ध्यान में रखते हुए 60 फुट लंबे डायनासोर के पेट को सीढ़ियों और पुल से जोड़ा गया है जिससे कि यह बच्चों के लिए एक खेलकूद और मनोरंजन का भी रास्ता हो सके। इस परियोजना में कार्यरत बड़ौदा के कलाकार विनीत बारोट ने बताया है कि जंक पदार्थ में कलाकृतियों का निर्माण कला रचना के अन्य सभी माध्यमों से अलग है इसमें कबाड़ सामग्री की विविधता को देखते हुए कलाकार यह पहले से खुद भी नहीं तय कर पाता की अंत में कलाकृति कैसा रूप लेगी यह पूरी तरह से कलाकार के कौशल और उपलब्ध सामग्री पर ही निर्भर होता है।[18]
'वेस्ट टू क्रिएट' की प्रेरणा - भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन का लोकार्पण किया गया। यह मिशन स्वच्छता के शहरी और ग्रामीण दो रूपों में बँटा हुआ था। यह एक जन आंदोलन के रूप में शुरू किया गया मिशन था जिसमें भारत को 2019 तक स्वच्छ राष्ट्र बनाने का लक्ष्य था इस मिशन के तहत स्वच्छता के लिए लोगों के व्यवहार में बदलाव लाने पर बल दिया गया, साफ सफाई तकनीक पर फोकस किया गया एवं इससे संबंधित अत्याधुनिक मशीनों के निर्माण एवं प्रयोग पर बल दिया गया था, साथ ही स्वच्छता के लिए एक मजबूत निगरानी तंत्र बनाने की बात की गई थी। इस योजना के तहत आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा देश के 4041 वैधानिक शहरों में नगर पालिका के ठोस कचरे का 100%
वैज्ञानिक प्रबंध करना मुख्य उद्देश्य बनाया गया। वर्ष 2020
में इस योजना को स्पेशल स्वच्छता मिशन 2.0
का नाम दिया गया। इसका शुभ आरंभ 2 अक्टूबर को राष्ट्रीय स्तर पर किया गया था। इसका उद्घाटन केंद्रीय राज्य मंत्री, परमाणु ऊर्जा विभाग तथा अंतरिक्ष विभाग के राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह द्वारा किया गया था इस योजना में देशभर के कुल 73 मंत्रालयों को सम्मिलित किया गया जिसका लक्ष्य देशभर में साफ सफाई के प्रति आमजन में जागरूकता लाना था जिसमें सभी सरकारी कार्यालयों की सफाई पुरानी फाइलों का निस्तारण एवं मुख्य फाइलों का डिजिटाइजेशन भी किया गया। यह मिशन पर्यावरण के प्रति अनुकूल व्यवहार और समावेशी उपाय की जागरूकता पर आधारित था। इस मिशन का विचार 3-आर पर आधारित था, जिसका अर्थ है- रिड्यूस, रीयूज, रीसायकल| इसमें केंद्र सरकार के मंत्रालयों द्वारा स्वच्छता अभियान के लिए 70000 से अधिक स्थलों की पहचान की गई थी। इस अवसर पर सरकार ने पोर्टल भी लॉन्च किया था जिस पर सफाई से संबंधित कार्यान्वन की जानकारी मिलती रहे और उसकी प्रगति की समीक्षा भी हो पाए।[14]
स्पेशल कैंपेन 3.0
का शुभारंभ 2 अक्टूबर 2023
से 31 अक्टूबर 2023 तक किया गया था। इस कैंपेन के तहत संस्कृति मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय ललित कला अकादमी के माध्यम से स्क्रैप आर्ट कार्यशाला का आयोजन किया था जिसमें देश भर के प्रतिष्ठित हुआ कलाकारों ने भाग लिया और जंक एवं स्क्रैप माध्यम में 'वेस्ट टू आर्ट' G20 पार्क का निर्माण किया गया इस पार्क का उद्घाटन 29 अक्टूबर 2023 को संयुक्त राज्य संस्कृति मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने किया था यह पार्क आज भी सामान्य जन के लिए बिना किसी शुल्क के खुला है। अपशिष्ट पदार्थों के पुनःउपयोग के लिए संस्कृति मंत्रालय द्वारा यह एक बहुत ही रचनात्मक प्रयास के रूप में देखा जाता है।
जंक आर्ट की अवधारणा और असेंबलेज़ आर्ट से संबंध - जंक आर्ट शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग अमेरिकी कला समीक्षक लॉरेंस अलावे ने सन 1961 में किया था। आधुनिक कला के इतिहास में जंक आर्ट की अवधारणा का विकास 1950 से 1960 के दशक में हुआ। वस्तुतः सर्वप्रथम जंक कला के रूप में पिकासो द्वारा सन 1942 में बनाई गई 'बुल' मूर्ति शिल्प प्रारंभिक उदाहरण के रूप में देखी जा सकती है। पिकासो कि कला रचना शैली आधुनिक काल के इतिहास में सबसे अधिक प्रयोगवादी और नवीन रही है। पिकासो ने अपने संपूर्ण कला सृजन में पेपर,लकड़ी, दफ्ती, सिरामिक, धातु, मोम, लोहा एवं अन्य विभिन्न तरह के माध्यमों का कोलाज एवं असेंबलेज के रूप में प्रयोग किया है जो बाद में चलकर अन्य कलाकारों को भी प्रभावित किया।[2] कला के इतिहास में जंक आर्ट कला अभियान के साथ असेंबलेज कला का भी नाम आता है जिसमें कलाकार भिन्न-भिन्न तरह के दैनिक जीवन से संबंधित वस्तुओं को जो फाउंड ऑब्जेक्ट कहे जाते हैं इनका एक साथ जोड़कर एक दूसरी त्रिआयामी आकृति का निर्माण करते हैं।
सन 1956 में अमेरिकी कलाकार जोसेफ कॉर्नेल की फाउंड ऑब्जेक्ट से बनी कलाकृतियों के लिए फ्रांसीसी चित्रकार जीन डुफट ने ‘असेंबलेज’ नाम दिया था जो बाद में चलकर एक विशेष कला के रूप में प्रसिद्ध हुआ। असेंबलेज कला की प्रेरणा का मुख्य स्रोत घनवादी चित्रकार पिकासो और जॉर्ज ब्रॉक द्वारा विकसित 'कोलाज कला' को ही माना जाता है। इसको वैचारिक रूप से महत्वपूर्ण बनाने में दादावादी कलाकार मार्शल दुचम्प की 'रेडीमेड कला' की अवधारणा सहायक रही। असेंबलेज से पहले 'कंबाइन' शब्द का प्रयोग अमेरिकी कलाकार रॉबर्ट राशनवर्ग ने भी अपने मिक्स मीडिया कलाकृतियों के लिए की थी।[4] जंक आर्ट और असेंबलेज आर्ट यह दोनों शब्द अलग-अलग आभास भले ही होते हैं लेकिन यह दोनों एक दूसरे के पूरक भी हैं। जंक शब्द विशेष रूप से व्यर्थ पदार्थ या सामग्री को जोड़कर बनाई गई कलाकृति के लिए करते हैं। इसी प्रकार भिन्न-भिन्न तरह की सामग्री या फाउंड ऑब्जेक्ट्स को जोड़कर एक सुनियोजित आकार देने की प्रक्रिया असेंबलेज कहलाती है जिससे वह आकृति एक कलाकृति का रूप लेती है और उसको रचने वाला कलाकार एक नए सौंदर्य का पुनर्निर्माण करता है जिसे देखकर दर्शक को आनंद प्राप्त होता है। जब किसी कलाकृति की रचना में सिर्फ व्यर्थ सामग्री का प्रयोग न होकर नए रेडीमेड सामग्री का भी प्रयोग होता है तब या जंक कला के श्रेणी से बाहर होकर सिर्फ असेंबलेज कला शैली के रूप में जानी जाती है।[6] असेंबलेज कलाकृति की रचना प्रक्रिया का नाम है और जंक आर्ट एक माध्यम विशेष की कला को कहते हैं। शुरुआत में असेंबलेज कला की जड़े न्यूयॉर्क से जुड़ी हुई थी जिन्हें जोसेफ कॉर्नेल की 'बॉक्स' कलाकृतियां ने विशेष पहचान दी।[7] लेकिन इन कलाकृतियों की प्रेरणा उस समय की अमेरिकी मूर्तिकार लुइस नवेलसन की असेंबलेज मूर्तियों से थी। बाद में चलकर एडवर्ड कीन्होंल्ज़ की कला में इसका विकास परिलक्षित होता है। इसी तरह जंक कला भी न्यूयॉर्क से शुरू होकर संपूर्ण अमेरिका में इसका प्रभाव दिखा जो बाद में संपूर्ण यूरोप तक फैली। 1970 के दशक में इटली में जन्मी आर्ट पोवेरा कला आंदोलन भी वैचारिक रूप से जंक कला से समानता रखती है। जिसके मुख्य कलाकार अल्बर्टो बुरी, पिनो पासकली और मारियो मर्ज थे। इसी समय फ्रांसीसी मूर्तिकार सीजर और जॉन चेम्बर्लेन 'स्क्रैप मेटल' में कार्यरत प्रसिद्ध मूर्तिकार के रूप में जाने गए। इस प्रकार से दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाले बेकार अपशिष्ट सामग्री ने जंक और असेंबलेज आर्ट के रूप में अपनी पहचान बनाई।[8] जंक कलाकृतियां अपने स्वरूप एवं धरातलीय गुण के आधार पर कभी-कभी निराशा का भाव प्रकट तो करती हैं लेकिन बेकार अपशिष्ट सामग्री के पुनरुपयोग ने 'पॉप आर्ट' के बढ़ते बाज़ारीकरण और उपभोक्तावादी समाज को नकारा भी। कला और समाज को आईना दिखाते हुए 1970 के बाद आगामी कला आंदोलनों जैसे 'लैंड आर्ट' के रूप में कलाकारों को पर्यावरण की तरफ आकर्षित किया।[9]
जंक आर्ट जनकला के रूप में - जन कला (पब्लिक आर्ट) शब्द आधुनिक काल में हो रहे नए अनुप्रयोगों से गढ़ा गया है। वैसे जन कला की व्याख्या इस रूप में की जा सकती है की ऐसी कलाएं जिनका सरोकार सीधा सामान्य जन से होता है। यानी आधुनिक युग में जो आर्ट गैलरी और म्यूजियम की परंपरा ने कलाकृति के संग्रह से लेकर उसके व्यापार तक का कार्य कर रही है उन्हें में से एक अलग विचार और परिभाषा को जन कला समाहित करती है। वैसे यह नाम सुनने में भले ही आधुनिक प्रतीत होते हैं लेकिन इनका सरोकार इतिहास में ग्रीक संस्कृति से प्राप्त होता है। ग्रीक संस्कृति से नगर के चौराहे पर राजाओं महाराजाओं योद्धाओं की प्रतिमा प्रदर्शित करने की परंपरा चली आ रही है ठीक उसी तरह भारतीय संस्कृति में भी मौर्य कालीन स्तंभ भी उसी के उदाहरण हैं।[13] कलाकृति जन कला के रूप में किसी कलाकार की अभिव्यक्ति को बड़े ही लोकतांत्रिक तरीके से एक बड़े समुदाय के सामने खुद को पूर्ण स्वतंत्रता के साथ प्रदर्शित कर पाती है| जन कला को विविध रूपों में देखा जा सकता है चौराहों की मूर्तियों से लेकर मंदिरों गिरजाघर में बनी भित्ति चित्रकला या आधुनिक कला में प्रचलित ग्रैफिटी कला, वास्तु शिल्प यह सभी कलाएं जो कला दीर्घाओं और संग्रहालयों से मुक्त हो कर आम आदमी के लिए हमेशा दर्शनीय है। इसी विविधता में आधुनिक कला रचना शैली को अपनाते हुए जंक आर्ट से बने दिल्ली के यह 'वेस्ट टू आर्ट' पार्क भी शामिल है जिनकी असेंबलेज रचना शैली को देखकर आमजन हतप्रभ तो होता ही है और साथ ही साथ विभिन्न स्मारकीय एवं जीव जंतुओं के शिल्पो को देखकर उत्साहित भी होते हैं। सबसे खास बात तो यह है कि दर्शन गण विभिन्न तरह के अपशिष्ट बेकार पदार्थों को जिन्हें वे अनुपयोगी समझ कर फेंक देते हैं उन्हें एक कलाकृति के रूप में देखकर कौतुहल से भर जाते हैं और उनके मन में रचनात्मकता जन्म लेने लगती है जंक पदार्थ में बनी कलाकृतियां समाज को भी अपने पुनर्जीवन का आइना दिखाती हैं और पुनरुपयोग की प्रेरणा भी देती हैं। जन कला के रूप में प्रदर्शित यह जंक मटेरियल से बनी कलाकृतियां जन कला के विभिन्न आयामों को धारण करती हैं जिससे कि इनका प्रभाव एक बड़े समुदाय तक प्रवाहित हो पता है। जन कला न सिर्फ सजावटी रूप में अपनी पहचान बनती है बल्कि यह सामाजिक, राजनीतिक रूप से भी सामान्य जन पर अपना प्रभाव छोड़ती है जिसमें किसी न किसी तरह का सामाजिक संदेश, राजनीतिक प्रतिष्ठा, आमजन का जीवन एक आईना के रूप में होता है। जिसमें दर्शक बिल्कुल स्वतंत्र होता है कलाकार की अभिव्यक्ति को अपने अनुसार ग्रहण करने के लिये और कलाकार का भी सीधा संवाद एक बड़े समुदाय से हो पता है। दिल्ली की जंक कला परियोजनाएं भी इसी रूप में जनता से सीधा संवाद करने में सक्षम हैं।
जंक आर्ट और सौंदर्य बोध - अनुपयोगी वस्तुएं समाज से बहिष्कृत होती है और हेय दृष्टि से देखी जाती है लेकिन एक कलाकार ऐसे मैटेरियल में भी सौंदर्य की कल्पना कर सकता है ऐसा दिल्ली में बने वेस्ट टू वंडर, शहीदी, भारत दर्शन, जी20, डायनासोर उद्यानों से पता चलता है। कला का इतिहास यह बताता है कि कलाकार ने हमेशा से अपनी अभिव्यक्ति के लिए एक माध्यम चुना है। जिस तरह से समाज का हर हिस्सा विकास करता है, परिवर्तित होता है, कलाकार भी इसी समाज का एक अभिन्न अंग है जो अपनी अंतर्दृष्टि और आत्मबोध से समाज के सामने अपनी कला के माध्यम से अभिव्यक्ति करता है।[10] जिस तरह कवि की कविता उसकी अभिव्यक्ति है उस कविता में शब्द उस अभिव्यक्ति का माध्यम है और कविता में लय, तुकबंदी, कल्पना उसका सौंदर्य है इसी तरह से कलाकार के लिए अपशिष्ट, बेकार, अनुपयोगी सामग्री बस एक माध्यम है। कलाकृति में संयोजन, कल्पना, लयबद्धता, उसका आकार, उसका सतही गुण, उसकी सादृश्यता दर्शक के मन में रस की निष्पत्ति करता है।[11] जंक पदार्थ का सतही गुण निराशाजनक भाव से युक्त तो होती है लेकिन जैसा की कला समीक्षक रामचंद्र शुक्ल कहते हैं- "जिन वस्तुओं को हम असुंदर समझते रहे हैं वह भी चित्र के रूप में निर्मित होकर सुंदरता बिखेरती हैं, यह बात साहित्यकारों ने भी मानी है तभी तो किसान, मजदूर, दिव्यांग, विकृत, भूखमरों के चित्र का बनाना भी आरंभ हो सका।" इससे यह प्रमाणित होता है कि जिस वस्तु को हम असुंदर कहते हैं उसे कलाकार अपनी रुचि और मनोबल देकर अपनी कार्य कुशलता से उस वस्तु में भी सौंदर्य दिखा सकता है। इस प्रकार से रामचंद्र शुक्ल अपनी बात दूसरे रूप में परिभाषित करते हुए बताते हैं कि किसी वस्तु की सुंदरता का आभास होने के लिए मन का भी सुंदर होना उतना ही आवश्यक है,अन्यथा विकृत मन उस वस्तु की सुंदरता का आभास नहीं कर पाएगा। सौंदर्य के दो हिस्से हैं एक दर्शक के मन का सौंदर्य और वस्तु का सौंदर्य इन दोनों के सामंजस्य से ही सौंदर्य का बोध हो पता है।[12] जंक कला में कलाकार वस्तु के सौंदर्य को महसूस कर दर्शक के सामने उसे अपने कलात्मक कौशल द्वारा और आकर्षक बनाकर प्रदर्शित करता है।
निष्कर्ष : अपने पूर्वजों से प्राप्त संस्कृति ही विरासत का रूप लेती है चाहे कला हो या साहित्य हो या फिर वह कोई भी सामाजिक दर्शन या विचारधारा हो, जो सर्वजन के लिए लाभकारी हो, जो उत्साह ऊर्जा और आनंद प्रदान करता हो वही संस्कृति का हिस्सा बनती है अन्यथा वह समाज द्वारा भुला दिया जाता है। भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन एवं समृद्ध संस्कृतियों में से एक रही है इसकी मुख्य विशेषताएं इसकी प्राचीनता, निरंतरता, ग्रहणशीलता, लचीलापन, सहिष्णुता एवं अनेकता में एकता रही है। जिसमें हमेशा आध्यात्मिकता एवं भौतिकता का समन्वय होता रहा है। इस शोध के अलग-अलग रूपों का अध्ययन करने के बाद यह कहा जा सकता है कि भारतीय कला का प्राचीन से समकालीन तक का सफर ऐसे ही गुणों से भरा हुआ हैं। भारतीय जंक और असेंबलेज कलाकार अपने रचनात्मक कुशलता से न सिर्फ अपने देश को, समाज को बल्कि संपूर्ण विश्व को अनुपयोगी बेकार सामग्री जो अनचाही,अनछुई हो जाती है जो घृणा का भाव पैदा करती है ऐसे माध्यमों में कला रचना कर उनमें एक नया जीवन पैदा कर रहे हैं और समाज को पर्यावरण की रक्षा के प्रति आगाह कर रहे हैं। जंक कला की रचना शैली पारंपरिक मूर्ति कला या कला रचना शैली से पूर्णतया भिन्न है। कला किसी भी युग की हो उसमें कल्पना शक्ति और प्रयोगशीलता ही उसको नवीन बनती है। असेंबलेज शैली में रची गई जंक कलाकृतियां दर्शक के मन में कला सृजन की भावना को प्रेरित करती हैं और अनुपयोगी सामग्री के पुनरुपयोग के बारे में सोचने के लिए भी विवश करती हैं। जंक कला की बढ़ती लोकप्रियता यह दर्शाती है कि यह अपने नवीन रचनात्मक शैली सतही गुण, रूप और आकार के कारण दर्शक को ज्यादा आकर्षित करती हैं।
1. टीम दृष्टि, कला एवं संस्कृति, दृष्टि पब्लिकेशन्स दिल्ली, चतुर्थ संस्करण:जुलाई 2021, पृ सं 4
2. डॉ ममता चतुर्वेदी, यूरोप कि आधुनिक कला, राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, द्वितीय संस्करण:2016, पृ सं 147
3. डॉ ममता चतुर्वेदी, भारतीय समकालीन कला, राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, 9वां संस्करण:2018, पृ सं 172
4. प्रो रामचंद्र शुक्ल, आधुनिक चित्रकला, साहित्य संगम, इलाहाबाद, प्रथम संस्करण:2006,पृ.सं 140
5. प्राणनाथ मागो, भारत की समकालीन कला, नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया, प्रथम संस्करण:2006, पृ सं 204
6. डॉ राजेन्द्र बजपेयी, मॉडर्न आर्ट, समिट पब्लिकेशन्स कानपुर, 1980-81, पृ सं 271
7. Andrew Graham-Dixon, Art:The Definitive Visual Guide, Penguin Random House China, 2018, पृ सं 549
9. नरेंद्र सिंह यादव, ग्राफिक डिजाइन, राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी जयपुर, 9वां संस्करण:2021, पृ सं 84
10. डॉ ममता चतुर्वेदी, सौन्दर्यशास्त्र, राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, 19वां संस्करण:2022, पृ सं 2011
11. नितिन सिंघानिया, भारतीय कला एवं संस्कृति, राजकमल इलेक्ट्रिक प्रेस हरियाणा, तृतीय संस्करण, पृ सं 23.11
12. रामचंद्र शुक्ल, कला का दर्शन, साहित्य संगम, इलाहाबाद, प्रथम संस्करण:2006, पृ सं 94
13. राकेश गोस्वामी, भारतीय आधुनिक एवं समकालीन कलाकार खंड 2, गोस्वामी पब्लिकेशन्स एण्ड डिस्ट्रिब्यटर प्रयागराज, प्रथम संस्करण:2021, पृ सं 184
14. Dristi IAS, "Swachh Bharat Mission (SBM) - Sarkari Yojanayen." You Tube, Accessed Feb 13, 2024. https://www.youtube.com/watch?v=EDOWLG1TLNo.
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