अध्यापकी के अनुभव : घनचक्कर के साथ परीक्षा का परीक्षण / डॉ. मोहम्मद हुसैन डायर

अध्यापकी के अनुभव : घनचक्कर के साथ परीक्षा का परीक्षण
- डॉ. मोहम्मद हुसैन डायर

 

इस बार का संस्मरण मेरे स्कूल के अनुभव से जुड़ा हुआ नहीं है, बल्कि गप्प गढ़ के घनचक्कर की कथा आपके सामने प्रस्तुत की जा रही है जो मुझे कचोरी खाते समय दिए गए कागज पर लिखी हुई मिली अरे भाई! मास्टर क्या कचोरी खाकर फोकट में मिले कागज पर जो कुछ लिखा हुआ है, उसे नहीं पढ़ सकता है? याद रहे कचोरी खाने का भी मास्टर का अपना अनुभव होता है  बस इसी आजादी का उपयोग करते हुए मैंने उस कहानी को पढ़ लिया। घनचक्कर ने इसकी भूमिका में स्पष्ट कर दिया था कि यह कहानी पूरी गप्प है जो दिन में देखे हु सपने पर आधारित है। कहानी पढ़ने के बाद मैंने भी किसी तरह का लोड नहीं लिया। कचोरी खाने के बाद उस कागज से मुँह साफ किया और डस्टबिन में फेंक दिया। स्मृति पर आधारित कुछ-कुछ अनुभव आपसे साझा कर रहा हूँ यहां मैं फिर से कह देना चाहता हूँ कि इस कहानी के सभी पात्र, घटनाएं, यहां तक कथावस्तु भी गप्प है। तो सुनिए गप्प कथा-

घनचक्कर गहरी नींद में सोया हुआ था। वैसे उसको नींद बहुत प्यारी है। भला आप ही बताइए नींद किसे प्यारी नहीं होगी? एक तो गर्मी की छुट्टियाँ, दूसरा छाछ-राबड़ी का पान और तीसरा कूलर की ठंडी हवा। ऐसे मे किसी अरसिक को ही नींद नहीं आएगी। तपती दुपहरी में भला बाहर कौन जाएँ? उसे दिन में सपने देखना अच्छा लगता है। इन सपनों में वह सिस्टम को सुधारने में लगा रहता है। और तो और वह इस पूरी प्रक्रिया में अपने आप को हीरो की भूमिका में देखता है। कभी वह किसी लड़के को फौज का अवसर बना रहा है तो किसी लड़की को पुलिस अधिकारी बनने के गूर सीखा रहा है। कई बार तो वह यह भी देखता है कि उसके प्रयासों से इतने लोग सफल हो गए हैं कि उसके शिष्य कंधे पर बिठाकर शहर भर में उसका जुलूस निकाल रहे हैं। विद्यार्थियों के माता पिता घनचक्कर को देखते समय उसमें ईश्वर की छवि देख रहे हैं। अपने आप को भगवान से भी बड़ा मानने वाला गुरु घनचक्कर अपने इन सपनों से बाहर निकलना पसंद नहीं करता है, पर करें क्या? कई बार परिस्थितियाँ उसे उठा ही देती है।

मोबाइल की घंटी ज़ो-ज़ोर से चिल्लाकर उसके सपनों को चकनाचूर कर देती है।सर रिज़ल्ट गया।उधर से आवाज आयी। असल में यह बोर्ड परीक्षा का परिणाम था जिसमे विद्यार्थियों की स्थिति का मूल्यांकन हो रहा था और इसका दूसरा पहलू यह भी है कि यह सिर्फ विद्यार्थियों का ही नहीं, बल्कि मास्टरों का भी परीक्षा परिणाम था। तय प्रतिशत से परीक्षा परिणाम अगर कम रहता है तो मास्टर के सिर पर इन्क्वायरी की तलवार लटक जाती है। डरते डरते घनचक्कर रिज़ल्ट देखने लगा। अध्यापकों के लिए बने स्कूल ग्रुप पर बधाईयों की ढेर लगने लगी। जहाँ सभी बधाई देने में बढ़-चढ़ करके हिस्सा ले रहे थे, वहीं घनचक्कर बधाई देने में हिचक रहा था। वह यह मान ही नहीं सकता था कि जो विद्यार्थी किताब भी नहीं पढ़ सकते, वे आखिर प्रथम श्रेणी में पास कैसे हो गए? अब उसके मस्तिष्क में खुशी और ग़म का विचित्र दृश्य घूमने लगा। मन मारकर उसने किसी को बधाई नहीं दी। स्कूल स्टाफ के ग्रुप पर फिर से नजर डाली तो लगभग सभी शिक्षकों के मैसेज चूके थे। इस आकाशवृति के कारणों पर विचार करते हुए घनचक्कर फिर से कूलर की हवा में सो गया।

घनचक्कर सपना देख रहा है। वह स्कूल में खड़ा है। पेड़ के नीचे मास्टरों की जमघट लगी हुई है। चर्चा चल रही है कि शिक्षा व्यवस्था को कैसे सुधारा जाए। अलग-अलग राजनीतिक गुट बने हुए हैं, समर्थन और विरोध को लेकर। कोई कहता है कि जब से डंडा हाथ से छूटा तब से बच्चें पढ़ते ही नहीं। कोई कहता है इस बिरादरी के बच्चें तो ढीट ही होते हैं। कोई मास्टर कहता है जब तक विद्या की देवी की कृपा नहीं होगी तब तक शिक्षा ही नहीं सकती। कोई कहता है बच्चें तो खाली घड़ें हैं जो चाहे उसमें भर दो। कोई कहता है जब तक घर वाले घर पर इन्हें नहीं पढ़ाएँगे तब तक इनका कुछ नहीं होगा। पीरियड पर पीरियड लगते जा रहे हैं और मास्टर हैं कि 'शिक्षा व्यवस्था सुधार मीटिंग'से निकल ही नहीं पा रहे हैं। कुछ एक मास्टर है जो तन-मन से कक्षा के भीतर पढ़ा रहे हैं। अधिकतर कक्षाएँ और उनके विद्यार्थी शिक्षकों के इंतजार में वीरान है। बच्चें आपस में लड़ रहे हैं, झगड़ रहे हैं, पर किसी का ध्यान उनकी तरफ नहीं है। अचानक वह सुनता है कि बोर्ड की परीक्षाएँ घोषित हो चुकी है। वह देख रहा है कि प्री बोर्ड की फॉर्मेलिटी की जा रही है। एक दिन में दो-दो प्री बोर्ड हो रही है। कॉपियाँ बिना चेक किए ही बांध ली गई।

सपना चल रहा है। वह अपने आप को क्लास के भीतर खड़ा पाता है। कक्षा में विद्यार्थियों को परीक्षा की तैयारी करवातें वक्त वह बता रहा है,वही विद्यार्थी सफल होता है जो ईमानदारी से अपनी परीक्षा देता है। याद रखो, नकल करके आप केवल एक परीक्षा पास कर सकते हैं, पर यह नकल तुम्हें एक पढ़ा-लिखा नाकारा बना कर छोड़ देगी। याद रखो जो नकल करवाता है, वह तुम्हारा दुश्मन है, चाहे कोई शिक्षक ही क्यों हो। याद रखो, अगर परीक्षा हॉल में कोई तुम्हारे लिए पुस्तक भी रख दें तो भी उसकी तरफ मत देखना। असल परीक्षा अपने मन की ईमानदारी की होती है। नकल के प्रति एक प्रतिशत भी अपना मन मत झुकाना। दुनिया में जितने भी सफल व्यक्ति है, वे अपनी कड़ी ईमानदारी के चलते ही सफल हो पाए हैं।वह देख रहा था कि जब वह भाषण दे रहा था, तब कुछ विद्यार्थी उस पर हँस भी रहे थे। ये वे विद्यार्थी थे जो पिछली बोर्ड परीक्षा में जुगाड़ लगाकर अच्छे अंकों से पास होकर आए हैं। यह और बात है कि उन्हें किताब पढ़ना तक नहीं आता है।

घनचक्कर करवट बदलता है। सपना चल रहा है। वह परीक्षा केंद्र में खड़ा है जहाँ विद्यार्थी बोर्ड की परीक्षा देने के लिए पहुंचे थे। पता नहीं किसी अदृश्य शक्ति के चलते वह परीक्षा रूम में पहुँच जाता है। वीक्षक हँसते हुए साफ हिदायत दे रहा है कि कोई भी विद्यार्थी अपनी उत्तर पुस्तिका के अलावा दूसरी तरफ देखें और ही किसी से बात करें। परीक्षा शुरू हुई। कुछ विद्यार्थी अपना रोल नंबर भी नहीं लिख पा रहे थे तो उसकी मदद शिक्षकों ने की। अब पेपर बंट चुके हैं। वह देख रहा है कि पेपर के शुरुआती प्रश्न एक नंबर के हैं जो बहुविकल्पनात्मक होने के साथ-साथ एक शब्द में उत्तर देने वाले अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न भी है। विद्यार्थी बिना किसी रोक-टोक के इशारों द्वारा और हल्की कानाफूसी से एक दूसरे की मदद कर रहे हैं। भाई यही तो जगह है जहाँ सहयोग से काम लिया जा सकता है। वीक्षक दरवाजे के पास बाहर की तरफ मुँह करके खड़ा है और बच्चें आराम से भाईचारा सीख रहे हैं। एक बच्चा जो नकल करने में हिचक रहा है उसके पास जाने कैसे वीक्षक के हाथ और आंखें पहुँच जाती है जो प्रश्न को देखकर उसका उत्तर लिख देते हैं। विद्यार्थी खुश हो जाता है और गुरु की इस दानशीलता पर नमन करता है। उसे याद आता है कि गुरु को गोविंद से बड़ा इसीलिए कहते हैं शायद।

घनचक्कर करवट बदलता है। परीक्षा चल रही है। अचानक कुछ विद्यार्थी किसी प्रश्न के उत्तर को लेकर उलझ जाते हैं। वीक्षक उनसे सामूहिक चर्चा करने लगता है और इस तरह से जो प्रश्न समस्या का कारण बना हुआ था, वह समूह चर्चा से हल हो जाता है। कक्षा में पढ़ाते वक्त शिक्षक ने जिस समूह चर्चा की कमी रख दी थी, वह यहाँ पूरी हो गयी। जब घनचक्कर वीक्षक से पूछता है कि यह कार्य तो पढ़ाने के दर्मियान आपको करना चाहिए था तो जवाब आता है,उस समय अगर मैं इन प्रश्नों पर चर्चा करता तो वेब सीरीज कौन देखता? और दूसरी बात तुम्हें परीक्षा हॉल में घुसने की इजाजत किसने दी? कांस्टेबल साहब! इसे बाहर निकालो। यह व्यक्ति परीक्षा की गोपनीयता भंग कर रहा है। कानून तोड़ रहा है। आप इसे तोड़िये।घनचक्कर देखता है कि कॉन्स्टेबल जो पहले ऊँग रहा था, वह तत्काल अलर्ट हो जाता है और सीधा घनचक्कर के पिछवाड़े पर डंडा चिपका देता है।

अचानक लगी इस चोट के कारण घनचक्कर का सपना टूट जाता है और वह उठ बैठ जाता है। जब उसे याद आता है कि वह सपना देख रहा है, तब वह खुद पर हँसता। शाम होने में समय बाकी है, यह सोच वह फिर से करवट बदल कर सो जाता है। सपना चल रहा है। वह देखता है कि अब वह परीक्षा केंद्र अधीक्षक के कमरे में मौजूद है। उससे बड़ा ताज्जुब होता है कि वहाँ पर फ्लाइंग के लोग बैठकर समोसा खा रहे हैं। वहाँ पर एक स्कूल के संस्थाप्रधान भी बैठे हैं। पता चला कि जो संस्थाप्रधान यहाँ बैठे है, गत वर्ष बोर्ड परीक्षाओं में उनकी स्कूल का परिणाम बेहद फिसड्डी रहा था। इस बार कहीं फिर से गडबड हो जाये, इसीलिए वे सेंटर पर ही जा बैठे। घनचक्कर ने यहाँ ज्यादा देर तक रुकना उचित नहीं समझता है, वह वहाँ से निकल कर बाहर जाने ही लगता है कि फिर से उसकी नजर खिड़की के माध्यम से परीक्षा हॉल में चल रही गतिविधियों पर पड़ती है।

वह देख रहा है कि वीक्षक महोदय के बीस-बीस हाथ हो चूके हैं और वे हाथ विद्यार्थियों की कॉपी पर पेन लेकर के चल रहे हैं। अब घनचक्कर परीक्षा केंद्र से बाहर गया है। वह सड़क पर गुजर ही रहा था कि कुछ लोगों की भीड़ कमरों की खिड़कियों के पास लगी हुई है। ये विद्यार्थियों की मदद करने के लिए तत्पर दिख रहे हैं। कई तो दूसरी मंजिल पर बैठे विद्यार्थियों की मदद के लिए खिड़कियों के छज्जे पर चढ़ गए हैं। समुदाय की शिक्षा सुधार और परीक्षा परिणाम को बेहतर बनाने के लिए ऐसी भागीदारी को देखकर घनचक्कर की आंखें नम हो गईं। यही तो सहकारिता है। इस सहकारिता में कौन-कौन विद्यार्थी भाग ले रहे हैं, इसे देखने के लिए घनचक्कर अपनी गर्दन को लंबी करके दूसरे माले के रोशनदान तक पहुँचता है। परीक्षा रूम का नजारा मिला-जुला है। वीक्षक पड़ोसी वीक्षक के साथ बातों में मशगूल हैं। बच्चें खिड़कियों से कारतूस ले लेकर लिख रहे हैं। कोई विद्यार्थी दूसरे को बता रहा है तो कोई दूसरे की कॉपी लेकर के ही उत्तर लिख रहा है। इन सबके बीच कुछ विद्यार्थी ऐसे भी दिखे जो इस सारी हलचल से दूर केवल अपने प्रश्न-पत्र और अपनी कॉपी पर नजर गड़ाए हुए है। आजू-बाजू की आवाज़ें अनसुना करते हुए वे अपनी परीक्षा में डूबे हुए हैं पूरी ईमानदारी से। इन अपवाद स्वरूप विद्यार्थियों को देख कर घनचक्कर का दिल भर गया। आखिर इस सार्वजनिक लूट से यह विद्यार्थी कब तक बचा पाएँगे? वह अब और ज्यादा नहीं देख सकता था, सो घर चला गया।

अचानक खबर आई कि रिज़ल्ट घोषित हो गए। अभी तो परीक्षा हुई है और रिज़ल्ट भी जारी हो गए? आश्चर्य तो हुआ पर यह ज्यादा समय तक नहीं टिका। अरे भाई! जब 14 तारीख को घोषित होने वाला रिज़ल्ट चार तारीख को घोषित हो सकता है तो फिर जिस दिन परीक्षा हुई, उसी दिन रिज़ल्ट जारी क्यों नहीं हो सकता? और यह ध्यान में रखने की जरूरत है कि यह सब कुछ सपने में चल रहा है। घनचक्कर देखता है कि इस बार क्लास के 50 बच्चों में से 45 फर्स्ट डिवीज़न हुए हैं और 40 के तो प्रथम रैंक आई है। कुछ बदला हो हो, यह बदलाव तो देखने में आया है कि जहाँ पहले मेरिट के शिखर पर एक या दो विद्यार्थी और फिसड्डी विद्यार्थियों की संख्या ज्यादा मात्रा में हुआ करती थी, वह अब बदल चुकी थी। किसी कक्षा में 40 विद्यार्थियों की पहली रैंक जाए तो यह किसी चमत्कार से अलग नहीं है। शिक्षा व्यवस्था कितनी सुधर गई है। उसे लगा अब जगद्गुरु बनने से हमे कोई नहीं रोक सकता। पर जब उससे पता चला कि जो विद्यार्थी बड़ी मुश्किल से प्रथम श्रेणी हासिल कर सके वे वे हैं जो ईमानदारी से परीक्षा देकर के पास हुए हैं, तो दुख हुआ। उसका दिया हुआ भाषण उसे बार-बार चिढ़ा रहा था। विद्यार्थी अब ईमानदारी, मेहनत और सच्चाई जैसे जुमलों को शक की नजर से देखने लगे थे। कुछ विद्यार्थी समसामयिक मुद्दों पर अपनी भड़ास अक्सर स्टेटस पर निकालते हैं। यह सोचकर घनचक्कर ने भी व्हाट्सएप स्टेटस को खंगालना शुरू किया तो देखा कि वहाँ पर ढीठ विद्यार्थियों के फोटो उसे चिढ़ा रहे थे। कुछ विद्यार्थियों के मैसेज भी आए, “मास्टर साहब! आपकी भविष्यवाणी गलत साबित हुई। देखो हम बिना पढ़े पास हो गए। तो आपकी कथा सुननी पड़ी, ही पढ़ने के लिए रात को ज़्यादा माथापच्ची करनी पड़ी।बेचारा घनचक्कर, अपने पर कुढने के अलावा क्या कर सकता था? इन सबके बीच वह देख रहा था कि समय अपनी गति से चल रहा है।

        घनचक्कर करवट बदलता है। सपना चल रहा है। नए सत्र में गुरु पूर्णिमा के दिन विद्यार्थी अब नकल करवाने वाले गुरुओं की पूजा करने में लगे हुए हैं। ईमानदारी का पाठ पढ़ाने वाले शिक्षक की ओर कोई देख तक नहीं रहा था। 15 अगस्त के दिन मंच संचालन करने वाले मारसाब गला फाड़-फाड़कर विद्यालय के शत-प्रतिशत परिणाम का बखान कर रहे थें। यह लाइन बार बार दोहराई जा रही थी कि इस बार 50 में से 40 विद्यार्थियों के प्रथम रैंक आई है। इसके लिए मंच संचालक विद्यालय के संस्था प्रधान, स्टाफ साथियों और ग्राम वासियों का बार-बार शुक्रिया अदा कर रहे थे। अचानक उसे एक दृश्य दिखाई देता है। जिन संस्था प्रधान का माथा दर्जनों पगड़ियों से भरा हुआ है, ये वहीं संस्था प्रधान हैं जो परीक्षा केंद्र में बैठकर फ्लाइंग वालों के साथ में समोसे खा रहे थे।

वह अब और ज्यादा नहीं देख सकता था इसीलिए वहाँ से गायब होकर गाँव के उन विद्यार्थियों से मिलने के लिए निकल गया जो कड़ी मेहनत और ईमानदारी के बावजूद अच्छे अंक प्राप्त नहीं कर सके। जब एक बच्चे के घर घनचक्कर पहुँचा तो वह बच्चा अपनी बात कुछ इस तरह से रखता है,  “सर ईमानदारी इतनी खतरनाक होती है, हमने कभी सोचा नहीं था। जितने अंक हमने ईमानदारी से हासिल किये है, उनकी बदौलत अब हमें जिले की सरकारी कॉलेज में दाखिला नहीं मिल पायेगा। मेरिट 80% पर रुकी है और हमने तो सिर्फ 60% अंक ही प्राप्त किए हैं।वह जब थोड़ा आगे बढ़ता है तो फर्स्ट रैंक वाले एक विद्यार्थी के अभिभावक ने उसे रोक लिया। वह अभिभावक सवाल करता है,मास्टर साहब! जब मेरा बच्चा किताब भी नहीं पढ़ना जानता है तब उसकी पहली रैंक कैसे बनी? भले ही मेरे बच्चे ने पहली रैंक हासिल कर ली हो, पर मैं उसे अब आगे नहीं पढाऊँगा। जिस शिक्षा के मंदिर में ईमानदारी, सच्चाई और मेहनत जैसे गुण सीखने के लिए बच्चों को भेजते हैं, वहाँ पर ऐसे धूल में रस्सी बटी जाती है? जब स्कूल स्तर पर ही यह हालत है तो आगे कॉलेज में क्या होता होगा?”

अभिभावक की बात सुनकर वह आगे बढ़ा ही था कि एक अभिभावक अपने बच्चे के साथ उसे घेर लेता है और घनचक्कर का गिरेबान पकड़ कर पूछता है,आखिर मेरे बच्चे को ही सच्चाई, ईमानदारी का पाठ क्यों पढ़ाया? तुम्हारी इन थोथी बातों के चक्कर में आकर उसने ईमानदारी से परीक्षा दी और वह अच्छे अंक नहीं ला पाया। इस कारण वह सदमे में है।घनचक्कर उस बच्चे और अभिभावक के सामने नीची गर्दन कर ज़मीन देखने के अलावा क्या कर सकता था। एक दृश्य ने तो उससे पत्थर ही बना डाला। वह देख रहा था कि पढ़ने में जो सबसे होशियार लड़की थीं सजे-धजे कपड़ों में रोते हुए घनचक्कर को देखते हुए जा रही थी। वह ससुराल जा रही थी। घनचक्कर ने उसे आगे पढ़ने के लिए कई रास्ते बताये थे, पर कम नंबर के कारण उसकी पढ़ाई अब छूट चुकी थी। पर वह भूल गया था कि लड़कियों की एक असफलता उसका रास्ता बदलने के लिए काफी होती है। उस लड़की की नजरें पूछ रही थी,सर, आपने हमें झूठे सपने क्यों दिखाये?” अब घनचक्कर का सपना टूट गया।

 

डॉ. मोहम्मद हुसैन डायर
व्याख्याता, हिंदी, रा. . मा. वि. आलमास, भीलवाड़ा
dayerkgn@gmail.com, 9887843273

चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक ई-पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-52, अप्रैल-जून, 2024 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक-जितेन्द्र यादव चित्रांकन  भीम सिंह (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)

6 टिप्पणियाँ

  1. सर आपने बहुत अच्छा लिखा है हम आप की बातो से सहमत है 👍

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  2. शारदा जाटअगस्त 06, 2024 10:03 pm

    यथार्थ पर आधारित रचना

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  3. सोचने वाला संस्मरण है इस बार सर और घनचक्कर का सपना अपनी स्कूल में इस बार जो रिजल्ट आया उसमे ऐसे ही हुआ ,शिक्षक साथियों का बिल्कुल योगदान है यदि टाइम रहते नही संभले तो मां बाप जल्दी अपनी स्कूल में यह कहेंगे की मेरा बेटा पढ़ा नही फर्स्ट रैंक केसे आई , मेहनत करने वाले शिक्षक और छात्र के लिया बहुत बड़ा अभिशाप होगा ,और जो शिक्षक नही पढ़ा रहे उसके बाद उसके सब्जेक्ट में सब फर्स्ट रैंक आ रहे ह लेकिन उसकी अंतरात्मा उसको भी पता मेने कितनी मेहनत की कितनी नकल करवाई लेकिन बस ,ढोंगी बनने में वो भी पीछे नहीं सोशल मीडिया पर रिजल्ट की वाही वाही लूटने

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  4. हेमंत कुमारअगस्त 10, 2024 3:41 pm

    व्यवस्था को दीमक इस कदर लग चुकी है कि इसका काफी बड़ा हिस्सा खोखला हो चुका है। व्यवस्था का हिस्सा होते ही आपके हाथ भी काफी-कुछ बँध जाते हैं। फिर प्रतीकात्मकता काम आती है। घनचक्कर घनचक्कर नहीं है , यदि है तो बाकी लोग घुनचक्कर हैं। वीक्षक की आँखें ही नहीं हाथ और कलम तक परीक्षार्थी की कॉपी तक पहुँच जाए इससे भयावह यथार्थ और क्या हो सकता है! जिस दिन सपने में दिखे अभिभावक जागकर जागती दुनिया में यह सवाल करेंगे कि बच्चे को पढ़ना तक नहीं आता फिर वह फर्स्ट कैसे आया? उस दिन 'अध्यापकी के अनुभव' लिखनेवाली कलम के लिखे की सार्थकता होगी। बहरहाल इस रोचक मगर सोचने को मजबूर करते लेखन के लिए डायर साहब आपको बधाई!

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  5. बहुत ही उम्दा लेख🙏 पढ़कर अच्छा लगा और वर्तमान परीक्षा प्रणाली पर सटीक व्यंग्य 👌 बहुत बहुत बधाई💐🌹 प्रयास करेंगे कि हम इस समूह का हिस्सा ना बने🙏

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  6. अच्छा सही और व्यंग्यात्मक प्रयास , लेकिन मेरी दृष्टि में इसके लिए केवल शिक्षक को पूर्णत : उत्तरदायी ठहराना उचित नहीं है , पहली बात तो ये कि पूरा शिक्षक समुदाय ऐसा नहीं है , दूसरी ये कि यदि शिक्षक ऐसा करता है तो इसके पीछे क्या कारण हैं, उनकी तह तक भी जाना होगा

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