- डॉ. शिवशंकर सिंह
शोध सार
: वैश्विक परिदृश्य
में
जब
18-19 सदी में साम्राज्यवादी
नीति
के
तहत
औपनिवेशिक
विस्तार
हो
रहा
था,
इसी
क्रम
में
भारत
को
अंग्रेजों
द्वारा
ब्रिटिश
उपनिवेश
के
रूप
में
प्रयोग
किया
गया।
धीरे
धीरे
ब्रिटिश
नीतियों
के
शोषण
तथा
ब्रिटिश
एवं
अन्य
देशों
ने
व्यापारिक
फसलों
को
यथा
कहवा
तथा
चाय
को
बढ़ावा
देने
के
लिए
विभिन्न
बागान
लगवाए,
जहां
औपनिवेशिक
देशों
से
सस्ते
तथा
बंधुआ
मज़दूरों
को
लाया
गया,
इसी
के
तहत
गिरमिटिया
मज़दूर
भी
भारत
से
बाहर
गए,
जिनमें
उनकी
अच्छी
जीवन
दशा,
रोज़गार,
जमींदारों
के
शोषण
से
मुक्ति
आदि
की
अपेक्षाएं
थी,
जिन्हें
आर्कटियों
द्वारा
प्रलोभन
देकरमारीशसले
जाया
गया।
गिरमिटिया
शब्द
एग्रीमेंट
का
ही
बिगड़ा
रूप
है,
जो
शुरुआत
में
गिरमेंट
अंततः
गिरमिट
बन
गया।
जब
गिरमिट
लोगों
ने
मारीशस
में
अपने
को
स्थापित
कर
लिया
तो
इन्होंने
भारतीय
संस्कृति,
लोकनृत्य,
त्योहारों,
भाषा
तथा
अन्य
सामाजिक
मूल्यों
को
अपनाया,
जिसकी
झलक
आज
भी
देखने
को
मिलती
है,
यहाँ
के
त्योहारों
में
भारत
के
तरह
ही
महाशिवरात्रि,
गणेश
चतुर्थी,
दीपावली,
मकरसंक्रांति
तथा
होली
आदि
प्रमुख
हैं,
इसलिए
मारीशसको
छोटा
भारत
भी
कहा
जाता
है।
यहाँ
अधिकांशतः
बिहार,
उड़ीसा,
महाराष्ट्र,
तमिलनाडू
तथा
आंध्रप्रदेश
जैसे
क्षेत्रों
का
प्रवासन
ज़्यादा
है।
समाज
में
अहीर,
कहार,
कुम्हार
कुर्मी,
आदिवासी
तथा
दक्षिण
भारतीय
लोगों
की
प्रधानता
है,
जो
हिन्दी,
उर्दू,
तेलुगु,
मराठी,
भोजपुरी
तथा
मंदारिन
चीनी
जैसी
भाषाएँ
बोलते
हैं।
इस
तरह
मारीशस
में
भारतीय
संस्कृति
तथा
सामाजिक
सद्भाव
के
साथ
समरसता
देखने
को
मिलती
है।
मुख्य
शब्द : मारीशस,
धर्म,
भाषा,
समाज,
राजनीति,
हिंदी,
भोजपुरी,
लोकगीत,
गीत
गवई
तथा
संस्कृति।
मूल आलेख : मारीशस गणराज्य
अफ्रीका
के
दक्षिणी
पूर्वी
तट
के
दक्षिण
पश्चिम
महासागर
में
स्थित
एक
द्वीप
है,
इसके
अलावा
यहाँ
इसके
प्रमुख
द्वीपों
में
अगालेगा,
कारगाडोस,
कारजोस
तथा
रोड्रिग्स
शामिल
हैं
(रामशरण,2004,पृ.15-16)।1मारीशस1968
में
ब्रिटेन
से
स्वतंत्र
हुआ,
इसकी
राजधानी
पोर्ट
लुईस
है,
जिसका
क्षेत्रफल
2040 वर्ग किमी में
विस्तृत
है,
यहाँ
की
राजनीतिक
व्यवस्था
में
संसदीय
गणतंत्र
पाया
जाता
है।
संयुक्त
राष्ट्र
के
आंकड़ों
के
अनुसार
2019 तक यहाँ की
जनसंख्या
1270454 है, जिसमें
अधिकांशतः
लोग
भारतीय
मूल
के
है,
पूरे
अफ्रीका
महाद्वीप
मेंमारीशसही
एक
ऐसा
देश
है,
जहाँ
हिन्दू
प्रमुख
धर्म
है।
यहाँ
भारत
की
तरह
ही
दूर-दूर
तक
गन्ने
के
खेत
नज़र
आते
हैं,
इसके
साथ
यहाँ
भी
काली
मिटटी
की
प्रधानता
पाई
जाती
है
(मारीशस,2015,पृ.7-9)।2
डोडो पक्षी
जो
भारत
में
विलुप्त
हो
चुका
है
जो
यहाँ
का
प्रमुख
पक्षी
है,
अधिक
वजन
के
कारण
ये
उड़
नहीं
पाते
हैं,
इसलिए
इनका शिकार आसान
है।मारीशसकी
अर्थव्यवस्था
ऊपरी
मध्यम
आय
वाली
है।3
मारीशस
में भाषायी
विविधता हिन्दी,
भोजपुरी तथा
अन्य भाषाएँ
मारीशस
के
संविधान
में
किसी
भी
आधिकारिक
भाषा
का
उल्लेख
नहीं
है,
नागरिक
अंग्रेज़ी,
फ्रेंच,मारीशसक्रियोल
तथा
एक
जातीय
भाषा
बोलते
हैं,
लेकिन
संसद
की
आधिकारिक
भाषा
अंग्रेज़ी
है,
उसे
ही
स्वीकार
किया
गया
है।
इसके
अलावा
भारतीय
भाषाओं
में
हिन्दी,
तमिल,
तेलुगु,
मलयालम,
उर्दू,
मराठी,
हक्का,
भोजपुरी
तथा
गुजराती
बोली
जाती
है।4 जैसा
कि
हम
जानते
हैं,
वर्तमान
समय
में
विभिन्न
देश
वैश्विक
परिदृश्य
में
अन्य
देशों
से
संबंध
मजबूत
करना
चाहते
हैं,
इसके
लिए
भाषा
एक
महत्त्वपूर्ण
कड़ी
है,
इन
उद्देश्यों
को
ही
पूर्ण
करने
के
लिए
विभिन्न
देशों
द्वारा
भाषायी
संबंधों
को
मजबूत
किया
जाता
है,
इस
क्रम
में
हिन्दी
एक
प्रमुख
भाषा
बन
गई,
इसका
आँकलन
हम
एक
आँकड़े
से
कर
सकते
हैं
कि
वर्तमान
समय
में
सम्पूर्ण
विश्व
में
हिन्दी
बोलने
वालों
की
संख्या
50 करोड़ है, हिन्दी
बोले
जाने
वाले
देशों
में मारीशस,
फ़िजी,
सूरीनाम,
नेपाल,
जापान,
इंग्लैंड,
पाकिस्तान,
वर्मा,
भूटान,
चीन
तथा
अमेरिका
जैसे
देश
शामिल
हैं।5
खासकरमारीशसमें
देखें
तो
इसकी
कहानी
गिरमिटिया
मज़दूरों
से
जुड़ी
है
क्योंकिमारीशसजैसे
देश
में
जब
ये
प्रवासी
के
रूप
में
यहाँ
आए
तो
स्वतंत्रता
के
बाद
वे
यहाँ
ही
रह
गए
और
हिन्दी
के
विकास
में
अपना
अहम
योगदान
दिया।6
अगर
हम
दूसरे
कारण
को
देखें
तो
ये
अनपढ़
थे
इसलिए
फ्रेंच
एवं
अंग्रेज़ी
समझने
मे
सक्षम
नहीं
थे।मारीशसजाने
के
बाद
भी
इन्होंने
भारतीय
भाषा
तथा
संस्कृति
को
नहीं
छोड़ा
दिनोंदिन
इसे
आगे
ही
बढ़ाया।
भारत की तरह ही गाँधी जी ने एकता एवं शिक्षा को मारीशस में प्रवास के दौरान भारतीय लोगों को वहाँ भी जागरूक किया, साथ ही यहाँ के मज़दूरों की स्थिति में सुधार लाने के लिए हिन्दी के प्रचार-प्रसार का आश्वासन दिया, बाद में माणिकलाल को हिन्दी के प्रचार के लिएमारीशसभेजा, तत्पश्चात इन्होंने ही सर्वप्रथम यहाँ छपाई की मशीन मंगाकर छापेखाने की शुरुआत की। फलस्वरूप इन मज़दूरों में सांस्कृतिक, धार्मिक तथा सामाजिक एकता का संचार हुआ।7 इसके अलावा सामाजिक संगठनों ने भीमारीशसमें आर्य पत्रिका, आर्यवीर, जागृति, जनता और जमाना आदि पत्रिकाओं के माध्यम से हिन्दी के विकास को बढ़ावा दिया, इन पत्रिकाओं में आर्य समाज के सिद्धांतों, भारतीय समाज के नियम एवं मूल्यों तथा भारतीय संस्कृति आदि के प्रकाशन को ही महत्त्व दिया। इसके साथ ही हिन्दी को बढ़ावा देने के लिएमारीशसमें तिलक पाठशाला के नाम से हिन्दी विद्यालय आरंभ किया गया, आगेमारीशससरकार ने 1975 में हाईस्कूल परीक्षा प्रणाली में हिन्दी को मुख्य विषय के रूप में शामिल किया, जिसके लिए अलग से शिक्षक नियुक्त किए जाते हैं, इसी का परिणाम है कि वर्तमान समय में यहाँ की 50 % से अधिक जनसंख्या हिन्दी भाषा का प्रयोग करने वाली है।8 भारत के तरह ही जिस प्रकार से भारत में संविधान संशोधन के तहत 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा का अधिकार प्राप्त है, उसी तरह कमोबेश मारीशसमें भी प्रथम कक्षा से लेकर पी.एच.डी तक निःशुल्क हिन्दी शिक्षण की व्यवस्था है, यहाँ के साहित्यकारों में अभिमन्यु अनंत, विष्णुदत्त, रामदेव धुरंधर, पूजानंद नेमन, ब्रजेन्द्र कुमार तथा दीपचन्द बिहारी आदि प्रमुख हैं। हिन्दू महासभा तथा अन्य धार्मिक संस्थाएं किसी न किसी रूप से हिन्दी भाषा के माध्यम से ही धर्म प्रचार कर रहीं हैं। मारीशस में हिंदी के साथ साथ संस्कृत का भी पठन पाठन होता है, मात्र संस्कृत की परीक्षाएं भारतीय विद्या भवन मुंबई द्वारा संचालित तथामारीशसके श्री सनातन धर्मीय ब्राह्मण महासभा द्वारा आयोजित होती हैं। वर्ष में हिंदी को प्रोत्साहन देने के लिए तीन सभाएँ होती थीं। पहली सभा जून माह में स्थापना दिवस के रूप में होती थी, दूसरी सभा जुलाई- अगस्त में तुलसी जयंती के उपलक्ष्य में तो वहीँ तीसरी सभा समावर्तन समारोह के दौरान, जिसमें हिंदी में उतीर्ण छात्रों को पुरस्कार वितरित किया जाता था। इस तरह हम देखें तो हिन्दी भाषा का पहला घर भारत है तो दूसरा घर मारीशस है, इसके बारे में 2018 मे हंसराज कालेज में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में ध्यानुनन्द जी ने भी कहा कि आधुनिक समय में हिन्दी का दूसरा घर मारीशस है।
संस्कृति,
संगीत, लोकगीत
तथा समाज
मारीशस
को सांस्कृतिक विविधता के साथ एक बहु धार्मिक, शांतिपूर्ण तथा जातीय द्वीप के रूप में देखा जाता है, ये द्वीप सांस्कृतिक विविधता के साथ ही साहित्य, नृत्य, संगीत, स्थानीय शिल्प, धर्म, और परम्परा के रूप में देखा जाता है, इसके साथ ही संवृद्ध सांस्कृतिक, ऐतिहासिक तथा प्राकृतिक विरासत लिए हुए है। यहाँ कई जातियों का समूह पाया जाता है, जिनमें भारत, अफ्रीका, फ्रांस, ब्रिटेन तथा चीनी लोग शामिल है, धर्म में 48.5 % लोग हिन्दू, 26.3 % रोमन कैथोलिक, 6.4 % ईसाई, 17.3 % मुस्लिम तथा 1.5 % अन्य शामिल हैं। मारीशस जब डचों, फ्रांसिसीयों तथा अंगेजों से आज़ाद हो गया, फिर भी यहाँ चीन, क्रियोल, फ्रांसिसी, ब्रिटेनवासी तथा भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक मिश्रण पाया जाता है, जो इसे बहुल राष्ट्रीय बनाता है।9 इसलिए इसे एक धार्मिक विविधता वाले देश के रूप में जाना जाता है, जहाँ हिन्दू धर्म की प्रधानता देखने को मिलती है। भारतीय मूल के ज़्यादातर लोग हिन्दू धर्म और इस्लाम का पालन करते हैं, इसके अलावा फ्रेंको मारीशस, क्रियोल चीनी मारीशस ईसाई धर्म का पालन करते हैं, यहाँ हम एक साथ ईसाई चर्च, मस्जिदों, चीनी पैगोड़ों और हिन्दू मंदिरों को एक साथ खड़े देख सकते हैं। जनसांख्यिकी विविधता के कारण यहाँ वर्ष भर कई त्योहार आयोजित होते हैं; जैसे तमिल त्योहार, चीनी नववर्ष, दिपावली, ईद, क्रिसमस, होली, दुर्गा पूजा, छठ तथा कई अन्य त्योहार मनाये जाते हैं, खासकर दीवाली को मारीशस में विभिन्न समुदायों द्वारा एकजुट होकर मनाया जाता है, जो उनकी एकजुटता को प्रतिबिंबित करता है।10 इस त्योहार को रोशनी की छुट्टी के रूप में मनाया जाता है, स्थानीय लोग भी इसे नकारात्मकता से दूर नई शुरुआत तथा उम्मीद के साथ मनाते हैं। यहाँ भारतीय संस्कृति की झलक हम माँ दुर्गा की 33 फुट की प्रतिमा एवं 108 फुट की शिव प्रतिमा के रूप में देख सकतें हैं, जो भारतीय स्थापत्य और मंदिरों एवं आस्था को प्रतिबिंबित करते हैं।
मारीशस
के
साहित्यकार
भी
बताते
हैं
कि
हमारे
साहित्य
में
भारतीय
संस्कृति
है।
प्रवासी
लेखन
भारतीय
संस्कृति
के
बिना
कुछ
नहीं
है,
भारत
के
तरह
यहाँ
भी
वहीँ
कोड़े
दिखेंगे
जो
दो
सौ
साल
से
हमारी
पीठ
पर
है,
मारीशस
ने
भारत
के
तरह
ही
विभिन्न
उपनिवेशिक
ताक़तों
का
सामना
करते
हुए
अपनी
संस्कृति
एवं
सभ्यता
को
बनाये
रखा,
गोष्ठियों
में
भी
साहित्यकारों
ने
स्वीकार
किया
की
मारीशस
के
लोग
वहाँ
आज
भी
भारतीय
संस्कृति
को
सहेजे
हुए
हैं,
साथ
ही
भारतीय
लोक
परम्पराओं
एवं
विश्वासों
को
भी
प्रासंगिक
बनाये
रखे
हैं।
भारत
की
मिठास
को
संजोकर
रखने
वाला
मारीशस
ही
है
क्योंकि
परतंत्रता
के
बाद
यहाँ
ही
भारतीय
संस्कृति
और
हिंदी
भाषा
की
झलक
देखने
को
मिलती
है,
यहाँ
के
लोगों
ने
अपने
बच्चों
को
इससे
अभिभूत
कराया।
स्वाधीनता
से
पूर्व
भी
मारीशस
में
धार्मिक,
शैक्षिक,
सामाजिक
तथा
साहित्यिक
झलक
देखने
को
मिलती
है।
एक
बार
मारीशस
के
प्रधानमंत्री
कार्यालय
ने
भी
स्पष्ट
किया
कि
यहाँ
लोग
रामायण
पढ़ते
और
इसका
गायन
करते
हैं,
इसके
लिए
यहाँ
इंडिया
म्यूजिक
अकादमी
नाम
से
संस्था
है,
जहाँ
भारतीय
संगीत
और
रामायण
सिखाया
जाता
है।11
धीरे-धीरे
मारीशस
में
बैठकें
मज़दूरों
का
केंद्र
बन
गई,
जो
भारतीय
उत्सव
तथा
परम्पराओं
को
बनाए
रखें
हैं,
लोग
भी
इन
स्थानों
पर
सामूहिक
रूप
से
होली
तथा
दीवाली
मनाते
थे,
इस
तरह
धार्मिक
तथा
सांस्कृतिक
विचारों
का
प्रसार
मारीशस
में
हुआ।नेल्सन
मंडेला
तथा
इंदिरा
गाँधी
जैसे
राजनीतिज्ञों
ने
यहाँ
पम्प्लेमोउस
बटानियल
गार्डन
में
वृक्ष
लगाया
है,
जो
सांस्कृतिक
तथा
साहित्यिक
दृष्टि
से
अहम्
है।
यहाँ
गंगा
तालाब
स्थित
है,
जिसे
यहाँ
के
लोग
गंगा
के
रूप
में
प्रमुख
तीर्थ
स्थल
मानते
हैं।
यहाँ
पक्षियों
के
अनोखे
रंग
आकर्षण
का
प्रमुख
केंद्र
है,
जो
विश्व
में
यहीं
पाए
जाते
हैं।
मार्क
ट्वेन
ने
यहाँ
के
दृश्य
को
देखकर
कहा
था
कि
मारीशस
को
देखकर
स्वर्ग
का
निर्माण
हुआ
होगा।
मारीशस
में
भारत
के
तरह
ही
अधिकांश
घरों
में
तुलसी
के
वृक्ष
पाए
जाते
हैं,
जिनकी
पूजा
की
जाती
है
(मारीशस,2015,पृ.8-10)।12
सेगा
स्थानीय
लोगों
द्वारा
बनाया
गया
संगीत
है,
जिसकी
उत्पत्ति
मारीशस
लोगों
के
अनुकूल
है, जिसे
अफ्रीकी
संगीत
के
साथ
गाया
जाता
है,
इसे
विभिन्न
पारम्परिक
वाद्ययंत्रों
के
साथ
गाया
जाता
है,
जिनमें
रावन्ने,
ट्रायंगल
तथा
मारवर्न
शामिल
हैं,
लेकिन
आधुनिक
समय
में
बस, ड्रम, तथा
गिटार
आदि
शामिल
हो
गये
है।
सेगा
में
नर्तक
आमतौर
पर
रंगीन
कपड़े
पहनते हैं।
ग्रामीण
क्षेत्रों
में
कजरी, झूमर तथा
सोहर
की
झलक
भी
देखने
को
मिलती
है।
मनोरंजन
के
लिए
यहाँ
फुटबॉल
प्रसिद्ध
है
लेकिन
प्रवासियों
और
पर्यटकों
के
बीच
गोल्फ
कोर्ष
मुख्य
आकर्षण
का
केंद्र
है।
गिरमिटियों
के
मारीशस
आने
के
बाद
स्वदेश
की
बहुत
याद
आती
लेकिन
यहाँ
भारत
के
तरह
ही
समानताएँ
पाई
जाती,
बुज़ुर्ग
भारत
की
तरह
यहाँ
भी
कहानियाँ
सुनाते
जो
भूत,
डायन,
जिन
तथा
देवी
देवताओं
से
संबंधित
होते।
गिरमिटिया
लोग
यहाँ
धोती
पहनते,
पगड़ी
बांधते,
अहीर
गाय
चराते
उनकी
पूजा
करते
तथा
कुश्ती
लड़ते।
महिलायें
भी
लोकलज्जा
का
ख्याल
रखती
और
ससुर
से
बात
करते
समय
सिर
पर
ओढ़नी
रखती।
यहाँ
विभिन्न
समुदायों
के
लोग
पाए
जाते
हैं
जिनमें
कुर्मी,
कुम्हार,
अहीर
कहार
तथा
आदिवासी
शामिल
थे।
सबसे
अधिक
यहाँ
गोंडा,
बस्ती,
फैजाबाद
तथा
दक्षिण
भारत
में
मद्रास,
कृष्णा
गोदावरी,
तंजौर
तथा
विशाखापत्तनम
जैसे
क्षेत्रों
से
लोग
आए।
यहाँ
एक
अच्छी
बात
यह
रही
कि
जातीय
भेदभाव
न
रहा,
जिसमें
अन्तर्जातीय
विवाह
कारगर
रहा।
गिरमिटिया
लोग
वहाँ
धार्मिक
किताबे
भी
पढ़े
यथा
रामायण,
रामचरितमानस,
महाभारत,
सुखसागर,
बेताल
पचीसी
तथा
आलहखंड
साथ
ही
हनुमान
चालीसा
आदि।
पहली
बार
रामलीला
वहाँ
1902 में आयोजित हुई,
यहाँ
मुस्लिम
तथा
हिन्दू
एवं
अन्य
संप्रदायों
के
लोग
एक
दूसरे
के
त्योहारों
में
भाग
लेते।
उल्लू
मेले
का
आयोजन
प्रचलित
था,
ग्रामीण
क्षेत्रों
में
दक्षिण
भारतीय
लोग
मंदिर
में
पूजा
करते,
अन्य
त्योहारों
में
दीपावली,
कृष्णजन्माष्टमी
तथा
क्रिसमस
शामिल
थे।
गिरमिटिया
लोग
यहाँ
संगीत
को
भी
ले
गए
जिसमें
वाम्बूरा
और
पंगुआ
खास
था।
भारत
की
तरह
यहाँ
भी
सत्यनारायण
भगवान
की
कथा
का
प्रचलन
था,
श्राद्ध
के
तहत
यहाँ
लोगों
को
जमीन
के
अंदर
दफन
कर
दिया
जाता,
इसे
हिन्दू
रिवाज
से
किया
जाता
है।
गिरमिटिया
युग
में
विवाह
नियम
से
कोर्ट
में
ही
होते
थे
बिना
बाजे
के।
यहाँ
भी
हिन्दू
मानदंडों
को
अपनाया
जाता
था
(झा,2019,पृ.103-108)।13
एक संस्कृत
मंत्रोच्चारण
के
साथ
नारियल
और
अग्नि
को
केंद्र
मे
रखकर
विवाह
सम्पन्न
किए
जाते
थे।
भोजपुरी
लोकगीत
गायन
का
भी
प्रचलन
था,
भोजपुरी
लोकगीतन
में
मेहरारून
के
दुख
दरद,
सुख-दुख
को
निम्न
ढंग
से
उजागर
कईल
जा(भोजपुरी
जनपद,2015,पृ.48)।14 गीत
गवई
एक
विवाह
पूर्व
समारोह
है,
जो
अनुष्ठानों,
प्रार्थना
तथा
नृत्यों
को
जोड़ता
है,
यह
भोजपुरी
भाषी
समुदायों
द्वारा
किया
जाता
है,
जो
भारतीय
मूल
के
हैं,
वर्तमान
समय
में
गीत
गवई
का
प्रचलन
सार्वजनिक
प्रदर्शनों
तक
फ़ैल
गया
है,
जिसमे
पुरुष
भी
भाग
लेते
हैं।15
मारीशस में भारतीय गणतंत्र दिवस भी धूमधाम से मनाया जाता है तथा विजयी विश्व तिरंगा प्यारा जैसा गीत भी गाया जाता है। साथ ही सभ्यता तथा संस्कृति को भी संरक्षित करने की बात की जाती (भोजपुरी जनपद,2012,पृ.87-88) है।16 गीत गवई मारीशस में जनसामान्य का संगीत है, जिसमें विभिन्न भोजपुरी संगीत शामिल हैं, एक बार मारीशस के प्रधानमंत्री प्रविन्द जगन्नाथ ने मारीशस के लोगों को दीपावली की सौगात देते हुए, पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए तथा गिरमिटिया मज़दूरों को ध्यान में रखते हुए धनतेरस के दिन को भोजपुरी भाषा के लिए ऐतिहासिक दिन बताया, इसी दिन छोटा भारत कहे जाने वाले मारीशस में भोजपुरी में टीवी चैनलों पर ब्राडकास्टिंग की गई जो लंबे समय से मारीशस में माँग की जा रही थी। मारीशस गणराज्य में किसी भी आधिकारिक भाषा का उल्लेख नहीं है, लेकिन अंग्रेज़ी तथा फ्रेंच नेशनल असेंबली की आधिकारिक भाषाएँ हैं, अधिकांश मारीशसवासी द्विभाषी हैं।
मारीशस समाज में भारत के तरह ही 60 वर्ष की आयु के बाद पेंशन योजना, शिक्षा, तथा आवागमन की मुफ्त सुविधाएँ उपलब्ध हैं, लेकिन भारत में ये सुविधाएँ मुफ्त नहीं हैं, उक्त तथ्य भारत के तरह ही वहाँ भी वसुधैव कुटुम्बकम की धारणा को रेखांकित करते हैं। भोजन के मिश्रण में वे मीठे स्वादों से लेकर मसालेदार मूल की विविधता को संरक्षित करते हैं, भोजन के व्यंजनों में भारतीय, चीनी, क्रियोल, अफ्रीकी तथा यूरोपीय व्यंजन शामिल हैं। विन्डे, रुगेल, चटनी, करी, मछली, माइन फ्राईट, व्रीड्स, पाम कर्नेल, तथा चावल आदि शामिल हैं।
मारीशस
के
विकास
का
प्रमुख
तत्त्व
सेवा
क्षेत्र
है,
सकल
घरेलु
उत्पाद
में
पर्यटन
का
खासा
महत्त्व
है,
इसका
आंकलन
हम
एक
आंकड़े
से
कर
सकते
हैं,
2017 में पर्यटकों
का
आगमन
5.2 % से बढ़कर 1.34 मिलियन
पहुँच
गया,
जो
यहाँ
की
कुल
आबादी
के
बराबर
है,
यहाँ
की
अर्थव्यवस्था
का
मुख्य
आधार
चीनी,
पर्यटन, कपडा, परिधान
के
साथ
साथ
मछली
प्रसंस्करण,
आईटी,
संचार,
प्रोद्यौगिकी
आदि
हैं।17
निष्कर्ष
: इस तरह मारीशस
में
भाषायी,
सांस्कृतिक
तथा
लोकगीतों
का
सम्मिश्रण
देखने
को
मिलता
है,
जो
भारत
की
सांस्कृतिक,
भाषायी
विविधता
को
संजोये
हुए
है,
जिसकी
झलक
आज
भी
विभिन्न
त्योहारों
के
रूप
में
जैसे;
होली, दिवाली, छठ
तथा
मकर
संक्राति
के
रूप
में
देखा
जा
सकता
है।
भाषाओँ
की
बहुलता
भी
हम
यहाँ
हिंदी, तमिल, मलयालम
तथा
भोजपुरी
के
रूप
में
देख
सकते
हैं।
इसके
भौगोलिक
दृश्य
को
देखकर
इसकी
तुलना
मार्क
ट्वेन
ने
स्वर्ग
से
कर
दी।
इस
तरह
उपर्युक्त
तथ्य
स्पष्ट
करते
हैं
कि
मारीशस
ने
वसुधैव
कुटुम्बकम
की
धारणा
के
साथ-साथ
भारत
की
सभ्यता,
संस्कृति
एवं
लोकगीतों
को
बनाये
रखा
है,
जिसके
कारण
इसे
लघु
भारत
की
संज्ञा
दी
जाती
है।
1. रामशरण, प्रह्लाद, 2004, मारीशस का इतिहास, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ.15-16
पृ. 7-9
3. मगनलाल, मणिलाल इन्द्रधनुष, पृ.16
4. चिंतामणि, मुनीश्वरलाल, 2016, इन्द्रधनुष, पृ. 198
6. पर्तागर सेट आर्टिकल, 2023, 28 फ़रवरी 2024 को https://lexpress.mu/node/424648 से पुनः प्राप्त किया गया।
7. साउथ एशिया मल्टीडीस्प्लीनरी जनरल, 2015, 14 फ़रवरी 2024 को https://journals-openedition-org.translate से पुनः प्राप्त किया गया।
8. आसियंस व्हिस्पर ग्लोबल सीओई, 2021, 26 फ़रवरी 2024 को
9. राष्ट्रीय विरासत निधि यूनेस्को, 2015, 8 मार्च 2024 को https://ich:unesco.org/en/bhojpuri-folk से पुनः प्राप्त किया गया।
10. रामशरण, प्रह्लाद, 2004, मारीशस का इतिहास, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ. 110
11. साउथ एशिया मल्टीडीस्प्लीनरी जनरल, 2015, 14 फ़रवरी 2024 को https://journals-openedition-org.translate से पुनः प्राप्त किया गया।
12. मिश्रा, अमित कुमार, 2015, मारीशस, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, वसंत कुञ्ज नई दिल्ली, पृ.8-10
13. झा, प्रवीण कुमार, 2019, कुली लाइन्स, वाणी प्रकाशन नई दिल्ली, पृ.16-19,106
15. राष्ट्रीय विरासत निधि यूनेस्को, 2015, 8 मार्च 2024 को https://ich:unesco.org/en/bhojpuri-folk से पुनः प्राप्त किया गया।
16. भोजपुरी जनपद, 2012, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी, पृ.87-88
17. पर्तागर सेट आर्टिकल, 2023, 28 फ़रवरी 2024 को https://lexpress.mu/node/424648 से पुनः प्राप्त किया गया।
18. बीबीसी वर्ल्ड, 2022, 19 फ़रवरी 2024
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