शोध आलेख : आधुनिक टेक्नोलॉजी और किसान : संभावनाएं और चुनौतियाँ (छत्तीसगढ़ राज्य के विशेष संदर्भ में) / फलेन्द्र कुमार एवं प्रो. एल. एस. गजपाल

आधुनिक टेक्नोलॉजी और किसान : संभावनाएं और चुनौतियाँ
(छत्तीसगढ़ राज्य के विशेष संदर्भ में) 
- फलेन्द्र कुमार एवं प्रो. एल. एस. गजपाल


शोध सार : कृषि क्षेत्र के सुधार में प्रौद्योगिकी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, डिजिटल प्रौद्योगिकी के आगमन के साथ, दायरा व्यापक हो गया है। कृषि में नवाचार से कृषि पद्धतियों में विकास हो रहा है, जिससे नुकसान कम हो रहा है और दक्षता बढ़ रही है। वर्तमान युग में कृषि में नई-नई प्रणालियों एवं मशीनरी का प्रयोग किया रहा है। इससे पहले जब कोई तकनीक नहीं थी, किसानों को कृषि के सभी पहलुओं को मैन्युअल रूप से करना पड़ता था। लेकिन अब तकनीक ने बहुत आसान बना दिया है। प्रस्तुत अध्ययन छ.. राज्य के चार जिलों के 8 गांव पर आधारित है। अध्ययन का उदेश्य किसानों मे आधुनिक टेक्नोलॉजी के संभावनाओ एवं चुनौतियाँ का अध्ययन करना है। चयनित उत्तरदाताओं से प्राथमिक आंकड़ों को एकल विषय अध्ययन एवं साक्षात्कार के माध्यम से एकत्र किया गया है। इस अध्ययन से, ज्ञात होता हैं कि खेती मे तकनीकों के प्रयोग से किसानों की उत्पादकता और आय में वृद्धि हो रही है। हालांकि, इस प्रक्रिया में कई चुनौतियाँ भी हैं। कृषकों के पास तकनीकी ज्ञान की कमी और वित्तीय संसाधनों की अभाव भी उन्हें आधुनिक तकनीकों का उपयोग करने में रोकता रहा है। कृषि निकायों, सरकारी अधिकारियों, और सामाजिक संगठनों को आधुनिक तकनीक के उपयोग के लिए किसानों को प्रेरित करने, तकनीकी ज्ञान को बढ़ावा देने, और संभावित समस्याओं का समाधान करने के लिए सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।


बीज शब्द :
कृषि विकासखेती, आधुनिक, टेक्नोलॉजी, किसान, कृषक, तकनीकी, कृषि, डिजिटल, ग्रामीण 


मूल आलेख :

प्रस्तावना – भारतीय सभ्यता का विकास मुख्य रूप से कृषि विकास पर निर्भर रहा है। भारत देश की आधी से अधिक आबादी गाँव में निवास करती है व देश की आधे से अधिक आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर अपना जीवन यापन कृषि या कृषि कार्यों से जुड़ी गतिविधियों के माध्यम से करते है।(सुरेन्द्र आहूजा एवं तिलक राज : 2022) कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था व ग्रामीण जन जीवन का आधार है। हालाँकि धीरे धीरे भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान घट कर केवल 18 प्रतिशत रह गया है लेकिन देश की 56 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या प्रत्यक्ष रूप से कृषि क्षेत्र पर ही निर्भर है। भारत में कृषि काफी हद तक प्रकृति पर निर्भर है, लेकिन जलवायु और ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दे खेती को अप्रत्याशित बनाते हैं। समय की मांग है कि उत्पादकता बढ़ाने और लाभप्रदता बढ़ाने के लिए किसानों को आधुनिक तकनीक और नवीन दृष्टिकोण के उपयोग के बारे में शिक्षित किया जाए। कृषि क्षेत्र के सुधार में प्रौद्योगिकी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आधुनिक मशीनरी का उपयोग, खाद, बीज, सिंचाई व्यवस्था, कटाई, फसल काटना तकनीक के कारण और अधिक उन्नत हो गया है। किसानों के पास आधुनिक कृषि उपकरण बहुत हैं। वर्तमान युग में कृषि में नई-नई प्रणालियों एवं मशीनरी का प्रयोग किया जा रहा हैं। इससे पहले जब कोई तकनीक नहीं थी, किसानों को कृषि के सभी पहलुओं को मैन्युअल रूप से करना पड़ता था। लेकिन अब तकनीक ने किसानों के लिए फसल काटना और काटना बहुत आसान बना दिया है।

 

कुल कार्यबल के लगभग 65 प्रतिशत को रोजगार देने के बावजूद कृषि क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद का केवल 18 प्रतिशत हिस्सा है। खाद्यान्न उत्पादन में उल्लेखनीय सुधार के बावजूद, निपटने के लिए कई चुनौतियाँ हैं क्योंकि सरकार का लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के रूप में कृषि उत्पादन को बढ़ाना है(सहगल फाउंडेशन : 2023)। पिछले कुछ समय से ऐसा माना जा रहा है कि कृषि विकास पद्धतियाँ प्राकृतिक संसाधनों का नवीकरण की तुलना में अधिक तेजी से दोहन करती हैं। मानव आबादी में तेजी से वृद्धि के परिणामस्वरूप भोजन और आश्रय की मांग बढ़ गई है, जिसे प्रदान करने के लिए भूमि की "प्राकृतिक" वहन क्षमता पर दबाव है। प्राकृतिक असंतुलन प्रदूषण, मिट्टी के क्षरण, वन्यजीवों की आबादी में गिरावट और वनस्पतियों और जीवों में मानव-निर्मित परिवर्तनों में दिखाई देता है।

 

कृषि में नवाचार से कृषि पद्धतियों में विकास हो रहा है, जिससे नुकसान कम हो रहा है और दक्षता बढ़ रही है। किसानों की आय दोगुनी करने संबंधी समिति ने डिजिटल प्रौद्योगिकी की भूमिका की सराहना की है, जो ग्रामीण भारत की कृषि गतिविधियों को आधुनिक बनाने और व्यवस्थित करने में परिवर्तनकारी भूमिका निभा सकती है। जियो-एग्री (जियो-कृषि)प्लेटफॉर्म को फरवरी 2020 में प्रारंभ किया गया था, और इसने किसानों को सशक्त बनाने के लिए संपूर्ण मूल्य श्रृंखला के साथ कृषि पारिस्थितिकी तंत्र को डिजिटल बना दिया। भारत में डिजिटल कृषि पहल डिजिटल कृषि मिशन 2021–2025 की शुरुआत सितंबर 2021 में की थी(ए.अली.खान : 2021)।

 

डिजिटल कृषि मिशन 2021–2025 का उद्देश्य एआई, ब्लॉकचेन, रिमोट सेंसिंग, रोबोट और ड्रोन सहित अत्याधुनिक तकनीकों पर आधारित परियोजनाओं को प्रोत्साहित करना और गति देना है। जून 2021 में, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने 6 राज्यों के 100 गांवों के लिए एक पायलट कार्यक्रम चलाने के लिए माइक्रोसॉफ्ट और भारत सरकार ने 'यूनिफाइड फार्मर सर्विसेज इंटरफेस' नामक पायलट कार्यक्रम शुरू किया गया जो भारत के छोटे-जोत वाले किसानों को टेक्नोलॉजी का लाभ प्रदान करने के लिए हाथ में लिया गया। इस गठबंधन का उद्देश्य एआई सेंसर का उपयोग करके बेहतर मूल्य प्रबंधन और कृषि उपज में वृद्धि के माध्यम से किसानों की आय को बढ़ावा देना है।

 

हाल ही में सरकार ने इंडिया डिजिटल इकोसिस्टम ऑफ एग्रीकल्चर (आईडीईए) ढांचे की मूल अवधारणा को अंतिम रूप दे दिया है, जो संघबद्ध किसानों के डेटाबेस के लिए संरचना निर्धारित करेगा। इसके अलावा, विभाग द्वारा संचालित योजनाओं से संबंधित डेटाबेस को एकीकृत किया जाएगा। आईडिया भारत में कृषि के लिए एक बेहतर पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में प्रभावी ढंग से योगदान करने के लिए उभरती प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने के लिए अभिनव कृषि-केंद्रित समाधान बनाने के लिए एक नींव के रूप में काम करेगा। यह पारिस्थितिकी तंत्र विशेष रूप से किसानों की आय बढ़ाने और समग्र रूप से कृषि क्षेत्र की दक्षता में सुधार लाने की दिशा में प्रभावी योजना बनाने में सरकार की मदद करेगा।

 

भारतीय संघ के 26वें राज्य के रूप में दिनांक 01 नवंबर, 2000 को छत्तीसगढ़ का गठन हुआ। छ.ग. राज्य की भौगोलिक स्थिति 17°46' से 24°5' उत्तर अक्षांश तथा 80°15' से 84°20' पूर्व देशांश है। राज्य की औसत वार्षिक वर्षा 1207 मि.मी. है। राज्य का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल लगभग 138 लाख हे. है, जिसमें से फसल उत्पादन का निरा क्षेत्र 46.51 लाख हे. है, जो कि कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 34 प्रतिशत है। राज्य के लगभग 57 प्रतिशत क्षेत्र में मध्यम से हल्की भूमि है। छ.ग. देश के सबसे सम्पन्न जैव विविध क्षेत्रों में से एक है, जिसका लगभग 63.40 लाख हे. क्षेत्र वनाच्छादित है, जो कि राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 46 प्रतिशत है(संचालनालय कृषि छत्तीसगढ़ रायपुर : 2024)।

 

छत्तीसगढ़ राज्य की कुल जनसंख्या लगभग 2.55 करोड़ है, जिसमें से लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्य में संलिप्त है। राज्य में लगभग 37.46 लाख कृषक परिवार है, जिसमें से लगभग 80 प्रतिशत लघु एवं सीमांत श्रेणी के है। धान, सोयाबीन, उड़द एवं अरहर खरीफ मौसम की मुख्य फसलें है तथा रबी मौसम में मुख्य रूप से चना एवं तिवड़ा का उत्पादन लिया जाता है। राज्य के कुछ जिले गन्ना उत्पादन हेतु उपयुक्त हैं तथा वर्तमान में राज्य में 04 सहकारी शक्कर कारखानें सफलतापूर्वक संचालित किए जा रहे हैं। राज्य की अन्य फसलों में मक्का, लघु-धान्य, मूंग, गेहूं, मूंगफली इत्यादि सम्मिलित हैं(वही : 2024)।

 

फसल क्षेत्र का राज्य के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (स्थिर भाव) में भागीदारी वर्ष 2023-24 (अग्रिम) 26,12,897 लाख रूपये अनुमानित हैं। फसल बीमा योजनांतर्गत 2022-23 खरीफ में 14,13,225 कृषकों का बीमा कराया गया, राज्य में अब तक 3,473 कृषि यंत्र सेवा केन्द्रों की स्थापना की जा चुकी हैं। राज्य में वर्तमान में 69 कृषि उपज मंडियाँ एवं 121 उप-मंडियाँ कार्यरत हैं। छत्तीसगढ़ राज्य की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या का जीवन यापन कृषि पर निर्भर हैं। प्रदेश के 40.10 लाख कृषक परिवारों में से 82 प्रतिशत लघु एवं सीमांत श्रेणी में आते हैं(छ.ग.आर्थिक सर्वेक्षण, 2023-24)। वर्तमान में छत्तीसगढ़ प्रदेश के सभी सिंचाई स्त्रोतों से लगभग 36 प्रतिशत क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध हैं जिसमें से सर्वाधिक 52 प्रतिशत क्षेत्र जलाशयों / नहरों के माध्यम से सिंचित हैं एवं 29 प्रतिशत क्षेत्र नलकूप से सुनिश्चित सिंचाई के अंतर्गत आते हैं। अधिकांशतः वर्षा पर निर्भर है (छ.ग.आर्थिक सर्वेक्षण : 2022-23)। छत्तीसगढ़ राज्य में बढ़ती जनसंख्या में प्रवास के कारण न केवल उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति कमजोर हो रही है, बल्कि प्रवास का प्रभाव बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। इस परिस्थिति में, राज्य में प्रवास को रोकने के लिए कृषकों को सामाजिक आर्थिक रूप से समर्थवान बनाने की आवश्यकता है, यह कार्य कृषि में उन्नत प्रौद्योगिकी के प्रयोग से ही संभव है(गजपाल : 2009)।

 

भारत में कृषि में आधुनिक प्रौद्योगिकी का महत्व


              विश्व की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था भारत की आबादी का ज्यादातर हिस्सा आज भी कृषि और इससे क्षेत्रों में कार्यरत है। (बनवारी लाल यादव : 2022) कृषि में प्रौद्योगिकी कृषि के कई क्षेत्रों को प्रभावित करती है, जैसे कि उर्वरक, कीटनाशक, बीज प्रौद्योगिकी, आदि। जैव प्रौद्योगिकी और आनुवंशिक इंजीनियरिंग के परिणामस्वरूप कीट प्रतिरोध हुआ है और फसल की पैदावार में वृद्धि हुई है। मशीनीकरण के कारण कुशल जुताई, कटाई और शारीरिक श्रम में कमी आई है। सिंचाई के तरीकों और परिवहन प्रणालियों में सुधार हुआ है, प्रसंस्करण मशीनरी से बर्बादी कम हुई है और इसका प्रभाव सभी क्षेत्रों में दिखाई दे रहा है। नए जमाने की प्रौद्योगिकियाँ रोबोटिक्स, सटीक कृषि, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ब्लॉकचेन तकनीक और बहुत कुछ पर ध्यान केंद्रित करती हैं। 1960 में, हरित क्रांति के दौरान, भारत कृषि के आधुनिक तरीकों जैसे रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों, उच्च गुणवत्ता वाले बीजों और उचित सिंचाई का लाभ उठाकर खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने में कामयाब रहा। अंततः भारत में कृषि विकास में तकनीकी प्रगति सामने आई। ट्रैक्टरों की शुरूआत के बाद नए जुताई और कटाई के उपकरण, सिंचाई के तरीके और वायु बीजारोपण तकनीक का आगमन हुआ, जिससे भोजन और फाइबर की गुणवत्ता में सुधार हुआ। किसान फसल की पैदावार बढ़ाने और खेती के अत्याधुनिक तरीकों से खुद को परिचित रखने के लिए वैज्ञानिक डेटा और प्रौद्योगिकी का लाभ उठा सकते हैं।

 

भारत में कृषि में आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग

 

प्रौद्योगिकियाँ क्षेत्र में आधुनिक कृषि के परिवर्तन को सक्षम कर सकती हैं। जबकि कुछ प्रौद्योगिकियों ने हमारे काम करने के तरीके को बदल दिया है, कृषि में तकनीकी प्रगति फैलाने की आवश्यकता है, जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन विजन। कृषि में आधुनिक तकनीक का उपयोग लाखों किसानों को वास्तविक समय की कृषि जानकारी प्राप्त करने से लाभान्वित करने में सक्षम बना सकता है। किसानों को मौसम की जानकारी और आपदा चेतावनियों की तत्काल उपलब्धता हो सकती है, और कृषि डेटा तक त्वरित पहुंच भी हो सकती है।

 

भारत में डिजिटल कृषि का भविष्य

 

'डिजिटल परिवर्तन' अब लगभग एक दशक से कृषि-खाद्य क्षेत्र में हलचल पैदा कर रहा है। इसने निजी और सरकारी संस्थाओं को प्रक्रियाओं को सुधारने और नए व्यापार मॉडल की पहचान करने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी में नवाचारों को लागू करने में सक्षम बनाया है। भारत में भविष्य में डिजिटल कृषि को अपनाने से सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मोड के तहत विकसित कर उपयोग किया जाएगा। डिजिटल टेक्नोलॉजी सुदूर संवेदन, मृदा संवेदकों, मानव रहित हवाई सर्वेक्षण और बाजार अंतर्दृष्टि आदि पर आधारित तकनीकी हस्तक्षेप, किसानों को सुविधाजनक तरीक़े से उत्पादन लागत को कम करने, उत्पादन के विभिन्न चरणों में फसल और मिट्टी के स्वास्थ्य के आँकड़ों को इकट्ठा करने, अनुमान करने और मूल्यांकन करने की सुविधा देती है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस/मशीन लर्निंग (एआई/एमएल) एल्गोरिदम फसल की उपज में सुधार, कीटों को नियंत्रित करने, मिट्टी की जांच में सहायता करने, किसानों के लिए कार्रवाई योग्य डेटा प्रदान करने और उनके कार्यभार को कम करने में मदद करने के लिए वास्तविक समय पर कार्रवाई योग्य अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकती हैं।

 

ब्लॉकचैन टेक्नोलॉजी खेतों, इन्वेंट्री, त्वरित और सुरक्षित लेनदेन और खाद्य ट्रैकिंग के बारे में छेड़छाड़-सबूत आदि का सटीक डेटा प्रदान करती है। इस प्रकार, किसानों को महत्वपूर्ण डेटा रिकॉर्ड करने और संग्रहीत करने के लिए कागजी कार्रवाई या फाइलों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है। मोबाइल-आधारित कृषि ऐप, सेंसर, ड्रोन, कृषि उपकरण और मशीनरी, रोबोट डिवाइस उपकरणों सहित स्रोतों के संयोजन से प्राप्त फार्म-स्तरीय डेटा उत्पादकों के लिए महत्वपूर्ण कृषि डेटा को चौबीसों घंटे कैप्चर करना संभव बनाता है।

 

सरकार द्वारा उठाए गए कदम

 

·         एग्रीस्टैक: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने 'एग्रीस्टैक' के निर्माण की योजना बनाई है, जो कि कृषि में प्रौद्योगिकी आधारित हस्तक्षेपों का संग्रह है। यह किसानों को कृषि खाद्य मूल्य शृंखला में एंड टू एंड सेवाएँ प्रदान करने हेतु एक एकीकृत मंच का निर्माण करेगा। एग्रीस्टैक कृषि क्षेत्र में नवाचारी तकनीकों और डिजिटल समाधानों का एक संग्रह है। यह उत्पादकता और उत्पाद क्षमता में सुधार के लिए उपयोगी है।

·         डिजिटल कृषि मिशन:  कृषि क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ब्लॉकचेन, रिमोट सेंसिंग और GIS तकनीक, ड्रोन व रोबोट के उपयोग जैसी नई तकनीकों पर आधारित परियोजनाओं को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा वर्ष 2021 से वर्ष 2025 तक के लिये यह पहल शुरू की गई है। डिजिटल कृषि मिशन का लक्ष्य कृषि सेक्टर में डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाना है।

·         एकीकृत किसान सेवा मंच (UFSP): यह एक प्लेटफ़ॉर्म है जो कृषि क्षेत्र के किसानों को विभिन्न सेवाओं और संसाधनों तक पहुंचने में मदद करता है। यह उन्हें बेहतर कृषि प्रविधि, बाजार जानकारी, संसाधनों के लिए सही स्रोत, और सरकारी योजनाओं के लिए जानकारी प्रदान करता है।

·         कृषि यांत्रिकीकरण :- कृषि यंत्र सेवा केंद्रों की स्थापना से कृषि कार्यों की सुगमता और उत्पादन में वृद्धि हो रही है। लघु सीमांत किसानों को उन्नत कृषि यंत्रों की सुविधा मिल रही है, और ग्रामीण युवाओं को स्वरोजगार के अवसर प्राप्त हो रहे हैं। छ.ग. राज्य में अब तक 3473 कृषि यंत्र सेवा केन्द्रों की स्थापना की जा चुकी है(छ.ग. आर्थिक सर्वेक्षण : 2021-22)

 

साहित्य की समीक्षा –

 

जितेन्द्र यादव (2022), ने अपने अध्ययन भारतीय किसान की चुनौतियाँ और संभावनाएं में बताया कि भारतीय किसान आर्थिक रूप से आज भी अभिशप्त है। भारत में व्यक्तिगत कृषि जोत कम हो गई है, इसलिए ज़्यादातर किसान खुद के लिए ही पैदा कर पाते हैं, उनके पास कृषि से आय की संभावना कम हो गई है। सरकार को ऐसी नीति बनाने की जरूरत है जिसमें बिचौलिया के बजाय किसान की आय में बढ़ोत्तरी हो सके।

सुरेश कुमार  भावरियाँ (2022), ने अपने अध्ययन किसानों पर आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण एवं वैश्वीकरण के प्रभावो का एक समाजशास्त्रीय अध्ययन मे बताया है कि आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण एवं वैश्वीकरण से तकनीकी ज्ञान का प्रसार हुआ है और किसानों के जीवन में आशातीत परिवर्तन हुआ है।

धीर सिंह शेखावत (2018), ने अपने अध्ययन “कृषि का आधुनिकीकरण - आलोचनात्मक अध्ययन” में बताया कि आधुनिक वैज्ञानिक प्रयास से आज अनेक नवीन तकनीकी एवं मशीनों का प्रादुभार्व हुआ है, जिसमें ट्रैक्टर,             हार्वेस्टर, नलकूप, थ्रेसर, स्प्रिंकलर सिस्टम आदि के साथ ऊर्जा के साधन एवं रासायनी में बीजों का आविष्कार हुआ है।

दिवाकर दिव्य दिव्यांशु (2017), ने अपने अध्ययन बदलते सामाजिक परिदृश्य और किसान में बताया कि आज जरुरत है उन ढांचागत विकास कार्यों को अंजाम तक पहुँचाने का जिससे कृषि योग्य परिस्थिति सिंचाई के साधन विकसित हो सकें।

 

अध्ययन का महत्व -

 

यह अध्ययन किसानों की जीवन गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए है। यह अध्ययन किसानों को उनके कृषि कार्यों को सुधारने के लिए नवीनतम तकनीक के बारे में जागरूक करेगा। साथ ही, यह उनके लिए उपलब्ध तकनीक के उपयोग के लाभ का मूल्यांकन करेगा और विभिन्न चुनौतियों का समाधान ढूंढेगा। इससे कृषि क्षेत्र में उत्पादकता और आय में वृद्धि होगी और किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। इसके अलावा, यह अध्ययन संबंधित निकायों और सरकारी अधिकारियों को नई नीतियों और कार्यक्रमों के आविष्कार के लिए प्रेरित करेगा जो किसानों के हित में होंगे।

 

अध्ययन का उदेश्य

 

1. नवीनतम तकनीक के प्रति किसानों मे जागरूकता कि स्थिति को ज्ञात करना

2. तकनीक का उपयोग करके कृषि उत्पादन में वृद्धि का मूल्यांकन करना।

3. किसानों को तकनीकी और आर्थिक परिवेश में आने वाली चुनौतियों का अध्ययन करना।

 

शोध पद्धति - प्रस्तुत शोध हेतु अन्वेषणात्मक एवं वर्णात्मक शोध विधि का प्रयोग किया गया है।

 

1.  अध्ययन क्षेत्र .. देश के सबसे सम्पन्न जैव विविध क्षेत्रों में से एक है , प्रस्तुत शोध कार्य के लिए छ.. राज्य के 4 जिला रायपुर, राजनन्दगाँव, जांजगीर-चांपा एवं दंतेवाड़ा के कुल 8 गांव का चयन किया गया हैं।

2.  उत्तरदाताओं का चुनाव – प्रस्तुत अध्ययन मे छत्तीसगढ़ राज्य के 8 गांव का चयन किया गया है, जिसमे मे प्रत्येक गांव से एक-एक (कुल 8) उत्तरदाताओं के चयन असंभावना निर्देशन के उद्देश्यपूर्ण प्रणाली द्वारा किया गया हैं।

3.  तथ्य संकलन की प्रविधि एवं उपकरण प्रविधि - प्रस्तुत अध्ययन हेतु चयनित उत्तरदाताओं से प्राथमिक आंकड़ों को एकल विषय अध्ययन एवं साक्षात्कार के माध्यम से एकत्र किया गया है। साथ ही आंकड़ों के संतुष्टि के लिए अवलोकन तथा अनुभावणात्मक पद्धति का प्रयोग किया गया है। अध्ययन को पूर्ण करने के लिए द्वितीय स्त्रोत विभिन्न विभागों द्वारा प्रकाशित हुआ प्रकाशित स्त्रोतों से एकत्र किया गया हैं।

 

तथ्यों का विश्लेषण और व्याख्या –

 

1.  केस स्टडी  - रमेश (परिवर्तित नाम), छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के मुररा गाँव के एक साधारण किसान है जो पारंपरिक तरीके से कृषि व्यवसाय चलाते थे। उनकी मासिक आय केवल 10000/- थी। उन्होंने 12 तक कि शिक्षा प्राप्त किया है। घर में माँ, पत्नी और दो बच्चे है। उनकी जमीन का आकार 5 एकड़ था और वे कृषि और उत्पादकता में संघर्ष कर रहे थे। रमेश के लिए विकास का मार्ग खोजना मुश्किल था। पारंपरिक तरीके से कृषि करने के कारण उन्हें प्राकृतिक आपातकाल, मंदी और ऊपरी हवाओं के असरों से जूझना पड़ रहा था। उनकी कम आय से उन्हें परिवार के जीवन निर्धारित करने में मुश्किल हो रही थी। फिर एक दिन, उन्हें छत्तीसगढ़ सौर ऊर्जा योजना के बारे में सुना। इसके तहत, सरकार सौर ऊर्जा के उत्पादन और उपयोग के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है। रमेश ने इस योजना का लाभ लेने का निर्णय किया और अपने खेतों पर सौर पैनल लगाने का काम शुरू किया। सौर ऊर्जा योजना के फलस्वरूप, रमेश के जीवन में बड़ा बदलाव आया। सौर पैनलों के उपयोग से उन्होंने अपने खेतों को सस्ते और स्थायी ऊर्जा सप्लाई की आपूर्ति की। इससे उनकी उत्पादकता बढ़ी और वे अधिक समय और ध्यान कृषि में लगा सके। उनकी आय में भी वृद्धि हुई और उनका परिवार अब अधिक सुख और सुरक्षित महसूस कर रहा है। इससे रमेश ने न केवल अपने व्यक्तिगत जीवन को सुधारा, बल्कि अपने समुदाय को भी प्रेरित किया है कि वे आधुनिक तकनीक के लाभों को अपनाएं और अपने कृषि उत्पादन को सुधारें।

 

2.  केस स्टडी – सीमा (परिवर्तित नाम), छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के कांदुल गाँव के एक साधारण महिला किसान है, वह अपने परिवार के साथ रहती हैं। उनका परिवार खेती पर निर्भर है और उनकी मुख्य आय कृषि से होती है। सीमा की शिक्षा स्तर 8वीं कक्षा तक की है और उनके परिवार में चार सदस्य हैं। सीमा के लिए सबसे बड़ी समस्या थी उनकी कम उत्पादकता और उत्पादन की कमी। वे पारंपरिक तरीके से कृषि करती थीं, लेकिन उत्पादकता में कमी और मार्केट में उनकी फसलों की कम डिमांड के कारण उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं थी। सीमा ने आधुनिक तकनीक का अध्ययन किया और उसे अपने कृषि उत्पादन में शामिल करने का निर्णय लिया। उन्होंने बीजों की अधिक संशोधित विधियों का उपयोग किया, सही खाद और पानी की प्रबंधन किया और आधुनिक कृषि उपकरणों का उपयोग किया। उन्होंने अपनी फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए उत्पादकता और क्वालिटी में सुधार किया। सीमा के उपायों के परिणाम स्पष्ट हैं। उनके द्वारा अपनाई गई आधुनिक तकनीक ने उन्हें अधिक उत्पादक बनाया और उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत की। उनकी आय में वृद्धि हुई और उनका परिवार अब अधिक सुरक्षित महसूस कर रहा है। उन्होंने न केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति की, बल्कि वे अपने समुदाय के लिए भी एक प्रेरणा स्त्रोत बनीं, जो आधुनिक तकनीकों को समझने और उन्हें अपनाने के लिए प्रेरित किया है।

 

3.  केस स्टडी – सुरेश (परिवर्तित नाम), छत्तीसगढ़ के जंजगीर-चांपा जिले के देवरी गाँव का एक किसान हैं। उनका परिवार कृषि पर निर्भर है और उनकी मुख्य आय कृषि से होती है। उनकी शिक्षा स्तर 10वीं कक्षा तक का है और उनके परिवार में पांच सदस्य हैं। सुरेश के लिए मौसम आपदाओं से निपटना मुश्किल हो गया हैं। अनियमित बारिश और तूफानों के कारण उनकी फसलें नुकसान उठा रही हैं, जिससे उनकी आय में कमी हो रही है। इस समस्या का समाधान करने के लिए, सुरेश ने आधुनिक तकनीक का सहारा लिया। उन्होंने मौसम पूर्वानुमान तकनीक का उपयोग किया, जिससे वे बारिश के आने की संभावना और तूफानों के आगमन को पहले ही पहचान सकें। इसके अलावा, उन्होंने बीजों को बेहतर तरीके से चुनने और खेतों का सही से संचालन करने के लिए आधुनिक कृषि उपकरणों का उपयोग किया। सुरेश के उपायों का परिणाम स्पष्ट रूप से दिखाई दिया। उनके द्वारा अपनाई गई आधुनिक तकनीक ने उन्हें मौसम आपदाओं के खिलाफ बेहतर तैयारी की सामर्थ्य प्रदान की और उनकी फसलों को सुरक्षित रखा। उनकी उत्पादनता में वृद्धि हुई और उनकी आय में सुधार हुआ। आधुनिक तकनीक का उपयोग करके, सुरेश ने न केवल अपनी फसलों को सुरक्षित बनाया, बल्कि उनकी आय में भी वृद्धि की।

 

4.  केस स्टडी – सीताराम (परिवर्तित नाम), छत्तीसगढ़ के जंजगीर-चांपा जिले के फरहदा गाँव में निवास करते हैं। उनका शिक्षा स्तर हाईस्कूल तक है और उनका परिवार छोटा है। वह अपने परिवार का मुख्य आय अभिभावकों के साथ कृषि से हासिल करते हैं। सीताराम के लिए कृषि कार्यों को समय पर सम्पन्न करना मुश्किल हो रहा था। उनके पास पर्याप्त कृषि उपकरण नहीं थे और मनुअल काम करने से उन्हें समय भी ज्यादा लग रहा था। इस समस्या को हल करने के लिए, सीताराम ने सरकार की ट्रैक्टर सब्सिडी योजना का लाभ उठाया। उन्होंने सब्सिडी के साथ एक ट्रैक्टर खरीदा और अब उन्हें कृषि के कार्यों को समय पर सम्पन्न करने में मदद मिल रही है। नतीजा: सीताराम के द्वारा ट्रैक्टर की खरीद करने से उनका कृषि कार्य अब अधिक अद्यतन और तेज हो गया है। उन्हें मैन्युअल काम करने की आवश्यकता नहीं है और अब वे अपने खेतों को और भी प्रभावी ढंग से प्रबंधित कर सकते हैं। ट्रैक्टर के साथ सब्सिडी का लाभ उठाने से, सीताराम ने अपने कृषि उत्पादन को बढ़ावा दिया और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया।

 

5.  केस स्टडी – मीनाक्षी (परिवर्तित नाम), एक छत्तीसगढ़ के राजनन्दगाँव जिले के नावागाँव की महिला किसान हैं, जो अपने परिवार के साथ एक छोटे से गाँव में रहती हैं। वह अपने परिवार का सहारा बनाने के लिए कृषि कार्यों में सक्रिय रहती हैं। मीनाक्षी के लिए फसलों को कीटों से बचाना मुश्किल हो रहा था। उन्हें अपने पिछले कुछ सीजनों में कई फसलों को कीटों और कीटाणुओं के हमले का सामना करना पड़ा था, जिससे उनकी उत्पादकता पर असर पड़ा था। मीनाक्षी ने आधुनिक तकनीक का सहारा लिया और कीटों से बचाव के लिए उपयोगी फसलों को बुआई करने का निर्णय लिया। उन्होंने उचित समय पर पेस्टिसाइड और कीटनाशक का उपयोग करने के लिए अद्यतन तकनीक का भी उपयोग किया। इसके अलावा, वह मशीनरी का उपयोग कर फसलों की बुआई और फसल काटने के कार्य को सुगम बना रही हैं। मीनाक्षी के द्वारा अपनाए गए उपायों ने उन्हें कीटों और अन्य नुकसानकारी कीटाणुओं से फसलों को सुरक्षित रखने में मदद की। उनकी उत्पादकता में वृद्धि हुई और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। इस अनुभव ने मीनाक्षी को आधुनिक तकनीक के लाभों को समझने और अपने कृषि प्रयासों को बेहतर बनाने की प्रेरणा दी।

 

6.  केस स्टडी – सुनील (परिवर्तित नाम), छत्तीसगढ़ के राजनन्दगाँव के एक छोटे से गाँव रेंगकठेरा के एक मशरूम उत्पादक हैं। उनका परिवार कृषि पर निर्भर है और उनकी मुख्य आय मशरूम उत्पादन से होती है। उनका शिक्षा स्तर 12वीं कक्षा तक का है और उनके परिवार में पांच सदस्य हैं। सुनील के लिए बड़ी समस्या थी उनकी फसलों की उत्पादनता में कमी और उत्पादन में वृद्धि की कमी। उनकी मशरूम उत्पादन कम था और वह उसे बढ़ाने के लिए उपाय ढूंढ रहे थे। सुनील ने आधुनिक तकनीक का सहारा लिया और अपने मशरूम उत्पादन को बढ़ाने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया। उन्होंने अपने मशरूम की खेती में हाइड्रोपोनिक्स का उपयोग किया, जिससे वे मशरूमों को समृद्धि से उत्पादित कर सकें। इसके अलावा, उन्होंने उत्पादित मशरूम की बाजार में बेहतर मार्गदर्शन के लिए आधुनिक विपणन तकनीकों का भी उपयोग किया। सुनील के उपायों के परिणाम स्पष्ट हैं। उनके द्वारा अपनाई गई आधुनिक तकनीक ने उन्हें मशरूम उत्पादन की उत्पादकता में वृद्धि दिखाई और उनकी आय में वृद्धि हुई। इससे उनका परिवार अब अधिक सुरक्षित और समृद्ध महसूस कर रहा है। उनके उत्पादन और आय में वृद्धि का परिणाम है कि उन्होंने अपने समुदाय को भी सशक्त बनाया है और आधुनिक तकनीक के लाभों को समझने और उन्हें अपनाने के लिए प्रेरित किया है।

 

7.  केस स्टडी – रामलाल (परिवर्तित नाम), जनजाति बाहुल्य जिले दाँतेवाड़ा के पोन्डम गांव के एक मुड़िया जनजाति के किसान हैं। उनका परिवार बहुत गरीब है और उनकी मुख्य आय कृषि से होती है। उनके पास केवल एक एकड़ जमीन है और उन्हें बहुत संकटों का सामना करना पड़ता है। वह अपने जीवन के लिए वनोपज के माध्यम से भी आधारित किसान हैं। रामलाल के लिए जीवन बहुत ही कठिन है। उनकी जमीन में अपर्याप्त जल होने के कारण फसलों में प्रतिफल की कमी होती है। वे ट्रेडिशनल तरीके से कृषि करते हैं और नई तकनीक का उपयोग नहीं कर पाते हैं। इसके अलावा, उन्हें वनोपज से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। रामलाल ने अपने समस्याओं का समाधान करने के लिए साहाय्यक संगठनों का सहारा लिया। उन्होंने अपनी जमीन पर सिंचाई का प्रणाली स्थापित की और जल संरक्षण के उपायों का अनुसरण किया। इसके अलावा, वह उन्नत बीजों का उपयोग करने लगे और खेती के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग करने लगे। वह वनोपज के माध्यम से भी अपने आय को बढ़ाने का प्रयास करते हैं। रामलाल के उपायों ने उनके जीवन में बड़ा बदलाव लाया। उनकी फसलों की उत्पादनता में वृद्धि हुई और उनकी आय में सुधार हुआ। उन्होंने अपने परिवार को सुरक्षित रखने के लिए आत्मनिर्भर बनने का प्रयास किया और अपनी समाज के लिए एक आदर्श बने। उनकी कहानी बताती है कि जीवन की कठिनाइयों का सामना करने के लिए साहाय्यक संगठनों का सहारा लेकर और आधुनिक तकनीक का उपयोग करके, किसान अपने जीवन को सुधार सकते हैं। वनोपज के माध्यम से भी उन्होंने अपने आय को बढ़ाने का साहस दिखाया।

 

8.  केस स्टडी – सविता (परिवर्तित नाम), एक आदिवासी महिला, दाँतेवाड़ा जिले के चंदेनाल गाँव के हलबा जनजाति की निवासी हैं। उनका शिक्षा स्तर माध्यमिक है और उनके पास तीन बच्चे हैं। स्थानीय स्तर पर, वह स्वसहायता समूह के सक्रिय सदस्य हैं। सविता के लिए रोजगार की समस्या सदैव थी। उनके ग्राम्य इलाकों में रोजगार के अवसर कम थे, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं थी। सविता ने स्वसहायता समूह के सहयोग से स्वरोजगार का अवसर खोजा। उन्होंने आधुनिक पाठ्यक्रमों के माध्यम से हस्तशिल्प और बुनाई का प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्होंने गांव के बाजारों में अपने निर्मित उत्पादों की बिक्री शुरू की और इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन बिक्री को भी बढ़ावा दिया। सविता के प्रयासों ने उन्हें आत्मनिर्भर बनाया और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार लाया। उनके स्वरोजगार के प्रयास ने गांव के साथी आदिवासियों को भी प्रेरित किया और समुदाय के विकास में मदद की। इससे न केवल सविता का अधिक आत्मविश्वास बढ़ा, बल्कि उनके स्वरोजगार के प्रयास ने उनके परिवार को भी सशक्त बनाया।

 

निष्कर्ष : आधुनिक टेक्नोलॉजी का कृषि क्षेत्र में उपयोग व्यापक रूप से बदल रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य के 4 जिलों में स्थित 8 गाँवों के किसानों का केस स्टडी करके, यह अध्ययन ने कृषि क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों के प्रयोग की संभावनाओं और चुनौतियों को प्रकट किया है। आधुनिक टेक्नोलॉजी के उपयोग से कृषि क्षेत्र में कई लाभ हो रहे हैं। सौर ऊर्जा प्रणालियों, सिंचाई के उन्नत प्रणालियों, और अद्यतन खेती के तरीकों का उपयोग किया जा रहा है। इन तकनीकों के प्रयोग से किसानों की उत्पादकता और आय में वृद्धि हो रही है। हालांकि, इस प्रक्रिया में कई चुनौतियाँ भी हैं। कृषकों के पास तकनीकी ज्ञान की कमी और वित्तीय संसाधनों की अभाव भी उन्हें आधुनिक तकनीकों का उपयोग करने में रोकता रहा है। सामाजिक परिवेश की समस्याएं भी उत्पन्न हो रही हैं, जैसे कि विभिन्न समुदायों के बीच तकनीकी समर्थन की असमानता। इस अध्ययन से, ज्ञात होता हैं कि कृषि निकायों, सरकारी अधिकारियों, और सामाजिक संगठनों को आधुनिक तकनीक के उपयोग के लिए किसानों को प्रेरित करने, तकनीकी ज्ञान को बढ़ावा देने, और संभावित समस्याओं का समाधान करने के लिए सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। नई नीतियों और कार्यक्रमों के आविष्कार से, हम संभावित सुधारों की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं, जो किसानों के जीवन को सुधार सकते हैं और उन्हें संतुष्टि प्रदान कर सकते हैं।

 

सुझाव :

 

1. किसानों को उनके स्तर पर उपयुक्त तकनीकों का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

2. किसानों के लिए तकनीकी जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना चाहिए।

3. संगठनों की भूमिका महत्वपूर्ण है, जो किसानों को तकनीकी सहायता प्रदान कर सकते हैं।

4. सरकार को नवाचारों को प्रोत्साहित करने के लिए संरचित योजनाएं बनानी चाहिए।

5. किसानों को तकनीकी प्रशिक्षण और उनके अनुसार व्यवस्थापन का समर्थन मिलना चाहिए।

 

संदर्भ :
1.  21 वीं सदी की चुनौतियों के लिए कृषि का रूपांतरण, नीति आयोग की रिपोर्ट
2.  ए.अली.खान : ‘वाट इस द रोल आफ टेक्नोलोगी इन ऐग्रिकल्चर’, 2021.  https://www.linkedin.com/pulse/what-role-technology-agriculture-ahsan-ali-khan
3.  छ.ग. आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22, पृ. 95-98, https://descg.gov.in/pdf/publications/latest/ES2021-22/ES-7.pdf
4.  छ.ग. आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23, पृ. 91-98, https://descg.gov.in/pdf/publications/latest/ES2022-23/ES-7.pdf
5.  छ.ग. आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24, पृ. 93-112  https://descg.gov.in/pdf/publications/latest/ES2023-24/ES-7.pdf
6.  दिवाकर दिव्य दिव्यांशु : ‘सामाजिक परिदृश्य और किसान’, अपनी माटी, (अंक-25), अप्रैल-सितंबर 2017, https://www.apnimaati.com/2017/11/blog-post_56.html
7.  प्रदीप कुमार : ‘भारतीय  किसान जीवन और समकालीन परिदृश्य’, अपनी माटी, (अंक-25), अप्रैल-सितम्बर, 2017, https://www.apnimaati.com/2017/11/blog-post_31.html
8.  बनवारीलाल यादव : ‘कृषि विकास में जनसंचार माध्यमों का योगदान’, अपनी माटी , (अंक-39), जनवरी-मार्च 2022, https://www.apnimaati.com/2022/03/photo-issue.html
9.  भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, https://icar.org.in/hi
10. लुकेश्वर सिंह गजपाल : ‘कृषि मजदूरों का प्रवास’, सिंघाई पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, 2009, पृ. 2-6
11. शेखावत, धीर सिंह : ‘कृषि का आधुनिकीकरण - आलोचनात्मक अध्ययन’,JMME , पृ. 565-569
12. संचालनालय कृषि, छत्तीसगढ़ रायपुर, छत्तीसगढ़ शासन, कृषि विकास एवं किसान कल्याण तथा जैव प्रौद्योगिकी विभाग, https://agriportal.cg.nic.in/PortHi/
13. सहगल फाउंडेशन : रोल ऑफ मॉडर्टन टेक्नोलोगी इन ऐग्रिकल्चर, 2023. https://www.smsfoundation.org/role-of-modern-technology-in-agriculture/#introduction
14. सुरेन्द्र एवं डॉ. तिलक राज आहुज : कृषि कानूनों पर किसान आन्दोलन में मीडिया व ग्राम पंचायतों की भूमिका का आलोचनात्मक अध्ययन, अपनी माटी, (अंक-39), जनवरी-मार्च 2022, https://www.apnimaati.com/2022/03/blog-post_92.html
15. सुरेश कुमार भावरियॉ : ‘किसानों पर आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण एवं वैश्वीकरण के प्रभावो का एक समाजशास्त्रीय अध्ययन’ अपनी माटी, (अंक-39), जनवरी-मार्च  2022, https://www.apnimaati.com/2022/03/blog-post_97.html
फलेन्द्र कुमार
(रिसर्च स्कॉलर) समाजशास्त्र एवं समाजकार्य अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर, (छ.ग.), 492010
falendra.sociology@gmail.com, 7697832163
 
प्रो. एल. एस. गजपाल
प्रोफेसर, समाजशास्त्र एवं समाजकार्य अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर, (छ.ग.), 492010

चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक ई-पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-52, अप्रैल-जून, 2024 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक-जितेन्द्र यादव चित्रांकन  भीम सिंह (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)

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