साक्षात्कार : डिजिटल समय में महत्त्वपूर्ण है मीडिया शिक्षा की भूमिका (प्रो. संजय द्विवेदी से प्रो. नीलम राठी की बातचीत)

डिजिटल समय में महत्त्वपूर्ण है मीडिया शिक्षा की भूमिका
- (प्रो. संजय द्विवेदी से प्रो. नीलम राठी की बातचीत)




(प्रसिद्ध मीडिया विशेषज्ञ, भारतीय जन संचार संस्थान के पूर्व महानिदेशक एवं माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. संजय द्विवेदी से प्रो. नीलम राठी की बातचीत)

 

प्रश्न : मीडिया शिक्षा को प्रारंभ हुए 100 वर्ष हो गए हैं। पत्रकारिता और जनसंचार का क्षेत्र आज शिक्षा की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया है। पत्रकारों के लिए शिक्षा या प्रशिक्षण पर आपके क्या विचार हैं?

उत्तर : आज पत्रकारिता पेशा बनती जा रही है,व्यवसाय बनती जा रही है, लेकिन यह विशिष्ट व्यवसाय है। यही विशिष्टता इस पेशे को दायित्वों से जोड़ती है। व्यवसाय होने के बावजूद आज भी पत्रकारिता जनतंत्र का चौथा स्तम्भ है और जरूरी यही नहीं कि यह स्तम्भ मजबूत रहे, इस स्तम्भ का एक काम यह देखना भी है कि जनतंत्र के बाकी तीनों स्तम्भ अपना दायित्व अच्छे से निभाते रहें। यानि पत्रकारिता करने वाला उसके योग्य भी होना चाहिए। यह योग्यता अर्जित करनी होती है। अर्जित करने की क्षमता किसी में भी हो सकती है, लेकिन सवाल इस क्षमता के उपयोग का है और पत्रकारिता का प्रशिक्षण एक बड़ी सीमा तक यह काम करता है। 

प्रश्न : मीडिया शिक्षा में एकरूपता नहीं है इसमें वैभिन्न्य के क्या परिणाम हैं? क्या देश भर के मीडिया पाठ्यक्रमों में एकरूपता होनी चाहिए?

उत्तर : दरअसल भारत में मीडिया शिक्षा मोटे तौर पर छह स्तरों पर होती है। एक सरकारी विश्वविद्यालयों या कॉलेजों में, दूसरे विश्वविद्यालयों से संबंद्ध संस्थानों में, तीसरे भारत सरकार के स्वायत्तता प्राप्त संस्थानों में, चौथे पूरी तरह से प्राइवेट संस्थान, पांचवें डीम्ड विश्वविद्यालय और छठे किसी निजी चैनल या समाचार पत्र के खोले गए अपने मीडिया संस्थान।

प्रश्न : भारतीय भाषाओं के मीडिया शिक्षण के लिए भारतीय भाषाओं में पाठ्यपुस्तकों का अभाव है। इसके लिए आप किसे जिम्मेदार समझते हैं?

उत्तर : हमारे सामने जो सबसे बड़ी समस्या है, वह है किताबों की कमी। हमारे देश में मीडिया के विद्यार्थी विदेशी पुस्तकों पर अधिक निर्भर हैं। लेकिन अगर हम देखें तो भारत और अमेरिका के मीडिया उद्योग की संरचना और कामकाज के तरीके में बहुत अंतर है। इसलिए मीडिया के शिक्षकों की ये जिम्मेदारी है कि वे भारत की परिस्थितियों के हिसाब से पुस्तकें लिखें। ऐसी पुस्तकों से भारतीय मीडिया के विद्यार्थियों को स्वयं को तैयार करने मे मदद मिलेगी। लेकिन इसके लिए व्यावहारिक ज्ञान का होना भी आवश्यक है। जिन्होंने कभी रिपोर्टिंग की हो और वे रिपोर्टिंग की पुस्तक लिखें तो अच्छी किताबों की उम्मीद नहीं की जा सकती। हालांकि भारतीय भाषाओं में और भारत की परिस्थितियों के अनुरूप पाठ्यपुस्तक निर्माण भी हमारे लिए एक बड़ी चुनौती है, लेकिन अगर हम प्रयास करें तो इसका भी समाधान संभव है। नई शिक्षा नीति के अनुरूप भी हमे भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता के नए पाठ्यक्रमों का निर्माण करना होगा, जो आज के समय के हिसाब से हो हमे अपना विजन बनाना होगा कि हम पत्रकारिता शिक्षण को किस दिशा में लेकर जाना चाहते हैं।

प्रश्न : मीडिया शिक्षा में तकनीक और विचार के समन्वय को लेकर आपके क्या विचार हैं?

उत्तर : मीडिया शिक्षा का इतिहास 100 वर्ष पुराना है, किन्तु यह अभी तक इस उलझन से मुक्त नहीं हो पाया है कि यह तकनीकी है या वैचारिक। तकनीकी एवं वैचारिकता का द्वन्द्व मीडिया शिक्षा की उपेक्षा के लिए जहां उत्तरदायी है, वहाँ सरकारी उपेक्षा और मीडिया संस्थानों का सक्रिय सहयोग होना भी मीडिया शिक्षा के इतिहास की तस्वीर को धुंधली प्रस्तुत करने पर विवश करता है। निश्चय ही इनमें समन्वय रहना चाहिए।

प्रश्न : मीडिया शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए क्या उपाय करने चाहिए? आपके अनुसार आज मीडिया शिक्षा के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

उत्तर : मीडिया शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए आज मीडिया एजुकेशन काउंसिल की आवश्यकता है। इसकी मदद से सिर्फ पत्रकारिता एवं जनसंचार शिक्षा के पाठ्यक्रम में सुधार होगा, बल्कि मीडिया इंडस्ट्री की जरूरतों के अनुसार पत्रकार भी तैयार किए जा सकेंगे। आज मीडिया शिक्षण में एक स्पर्धा चल रही है। इसलिए मीडिया शिक्षकों को ये तय करना होगा कि उनका लक्ष्य स्पर्धा में शामिल होने का है या फिर पत्रकारिता शिक्षण का माहौल बेहतर बनाने का है। आज के समय में पत्रकारिता बहुत बदल गई है, इसलिए पत्रकारिता शिक्षा में भी बदलाव आवश्यक है। हमें पत्रकारिता शिक्षण में ऐसे कोर्स तैयार करने होंगे, जिनमें कंटेन्ट के साथ-साथ नई तकनीक का भी समावेश हों। हमे ये भी देखना होगा कि हमारे पत्रकारिता का मकसद क्या है? हमारी पत्रकारिता बाजार के लिए है, कॉर्पोरेट के लिए है, सरकार के लिए है या फिर समाज के लिए है। अगर हमें सच्चा लोकतंत्र चाहिए, तो पत्रकारिता को अपने लक्ष्यों के बारे में बहुत गहराई से सोचना होगा। मीडिया शिक्षा का काम सिर्फ छात्रों को ज्ञान देना नहीं है, बल्कि उन्हें मीडिया उद्योग के हिसाब से तैयार भी करना है। इसलिए मीडिया शिक्षकों को इस विषय पर ध्यान देना होगा। मीडिया शिक्षा के अलग-अलग पहलुओं पर ध्यान देना होगा। बाजार के हिसाब से प्रोफेशनल तैयार करने होंगें। नई शिक्षा नीति के मद्देनजर जनसंचार शिक्षा के क्षेत्र में भी क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम तैयार करना होगा। 

प्रश्न : मीडिया शिक्षा के क्षेत्र में देश भर की प्रादेशिक भाषा के मार्केट का महत्त्व लगातार बढ़ रहा हैं। भारतीय भाषाओं के मीडिया शिक्षण के भविष्य के विषय को लेकर क्या आप आशान्वित हैं?

उत्तर : भाषा वही जीवित रहती है, जिससे आप जीविकोपार्जन कर पाएं और भारत में एक सोची समझी साजिश के तहत अंग्रेजी को जीविकोपार्जन की भाषा बनाया जा रहा है। ये उस वक्त हो रहा है, जब पत्रकारिता अंग्रेजी बोलने वाले बड़े शहरों से हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के शहरों और गांवों की ओर मुड़ रही है। आज अंग्रेजी के समाचार चैनल भी हिन्दी में डिबेट करते हैं। इसलिए मीडिया शिक्षकों के लिए ये आवश्यक है कि वे हिन्दी और अंग्रेजी के अलावा क्षेत्रीय भाषाओं में भी कोर्स तैयार करें। आज सीबीएससी  के पाठ्यक्रम में मीडिया एक विषय के रूप में पढ़ाया जा रहा है। हम अन्य राज्यों के पाठ्यक्रमों में भी इस तरह की व्यवस्था कर सकते हैं ,जिससे मीडिया शिक्षण को एक नई दिशा मिले। मैं इसके भविष्य को लेकर पूर्णत: आश्वस्त हूँ। 

प्रश्न : आपकी दृष्टि में मीडिया की पढ़ाई का फील्ड में कितना उपयोग होता है?

उत्तर : मेरा मानना है कि पत्रकारिता की पढ़ाई किया हुआ एक पत्रकार, अन्य पत्रकारों की तुलना में अपना कार्य ज्यादा कुशल और बेहतर तरीके से करता है। यह सही है कि भारत में अभी प्रैक्टिकल पढ़ाई की जगह किताबी ज्ञान पर ज्यादा फोकस किया जाता है, लेकिन धीरेधीरे ये परिदृश्य भी बदल रहा है। आज पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान छात्र अखबार प्रकाशित करने से लेकर, न्यूज बुलेटिन और डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाना सीख रहे हैं। इस प्रक्रिया में वे फील्ड के लिए तैयार होते हैं। लेकिन इसका अर्थ ये नहीं है कि किताबी ज्ञान महत्त्वपूर्ण नहीं है। 

प्रश्न : आज आप मीडिया संस्थानों में किस प्रकार के बदलाव की आवश्यकता अनुभव करते हैं?

उत्तर : आज मीडिया शिक्षण संस्थानों को अपने पाठ्यक्रमों में इस तरह के बदलाव करने चाहिए कि वे न्यू मीडिया के लिए छात्रों को तैयार कर सकें। आज तकनीक किसी भी पाठ्यक्रम का हिस्सा है। मीडिया में दो तरह के प्रारूप होते हैं। एक है पारंपरिक मीडिया जैसे अखबार और पत्रिकाएं और दूसरा है डिजिटल मीडिया। अगर हम वर्तमान संदर्भ में बात करें तो सबसे अच्छी बात ये है कि आज ये दोनों प्रारूप मिलकर चलते हैं। आज पारंपरिक मीडिया स्वयं को डिजिटल मीडिया में परिवर्तित कर रहा है। ये परिवर्तन दरअसल डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन का है।

प्रश्न : मीडिया के क्षेत्र में डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन क्या है और ये कैसे होता है? या इसमें किन चुनौतियों से गुजरना पड़ता है?

उत्तर : एक मीडिया शिक्षक होने के नाते मेरा मानना है कि इस डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन को अगर कोई चला रहा है तो वो चारहैं। इन चार C का मतलब है Content, Communication, Commerce aur Context. जब ये चारों C मिल जाते हैं तब एक पारंपरिक मीडिया हाउस डिजिटल मीडिया हाउस में बदलता है। इसी को डिजिटल ट्रांसफॉर्म कहते हैं। कल्चरल ट्रांसफॉर्मेशन में सबसे ज्यादा परेशानी आती है। हमारी जिम्मेदारी है कि हम विद्यार्थियों को इस पूरी प्रक्रिया से अवगत कराएं।  इस परिवर्तन में उन लोगों को डिजिटल के बारे में बताना पड़ता है, जो आराम से ट्रेडिशनल कामों में लगे हुए हैं। ये चुनौतीपूर्ण जरूर है, लेकिन देश के अधिकतर मीडिया समूह इस कार्य को कर रहे हैं। जब देश के प्रमुख मीडिया संस्थान इस प्रक्रिया में लगे हुए हैं, तो क्यों मीडिया शिक्षण संस्थान अपने छात्रों को डिजिटल ट्रांसफॉर्म के लिए पहले से तैयार करें।  

प्रश्न : मीडिया में पक्षधरता और एजेंडा सेटिंग जैसे मुद्दों का चलन बढ़ गया है, जो निश्चित ही मीडिया की विश्वसनीयता को संदेह के कठघरे में खड़ा करते हैं। मीडिया शिक्षा के द्वारा ऐसे मुद्दों से कैसे पार पाया जा सकता है?

उत्तर : मीडिया में पक्षधरता और एजेंडा सेटिंग जैसे मुद्दों से मीडिया की छवि को धक्का लगा है, जिस कारण मीडिया को अपनी छवि पर विचार करने की जरूरत है। सब पर सवाल उठाने वाले माध्यम ही जब सवालों के घेरे में हो तो हमे सोचना होगा कि रास्ता सरल नहीं है। मूल्य आधारित पत्रकारिता ही किसी भी समाज का लक्ष्य है। मीडिया में प्रकट पक्षधरता और एजेंडा सेटिंग का चलन उसकी विश्वसनीयता और प्रामाणिकता के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। मीडिया शिक्षा अकेले इस पर कुछ नहीं कर सकती, अपितु हमारे संपादकों, मीडिया समूह के मालिकों, शेष पत्रकारों के साथ साथ मीडिया शिक्षकों को भी इस पर विचार करना चाहिए। वह मीडिया के मंच का इस्तेमाल भावनाओं को भडकाने, राजनीतिक दुरभि संधियों, एजेंडा सेटिंग अथवा नैरेटिव बनाने के लिए होने दें। हम विचार करें तो पाते हैं कि देश में ऐसे पत्रकारों का प्रतिशत बहुत कम है, किन्तु मीडिया को लांछित करने के लिए पर्याप्त है। हालांकि देश में आज भी लोकतंत्र की जीवंतता का सबसे बड़ा कारण मीडियाकर्मियों की सक्रियता और ईमानदारी ही है। 

प्रश्न : आपकी मीडिया संस्थानों से क्या अपेक्षाएं हैं?

उत्तर : हमें अपने मीडिया को उसकी जड़ों ,संस्कारों और भावनाओं से प्रेरित करने के लिए जनसंचार शिक्षा पर ध्यान देने की जरूरत है। यदि मीडिया में रहे युवाओं को जड़ों से ही कुछ ऐसे विचार मिलें, जो उन्हें व्यावसायिकता के साथ-साथ संस्कारों की भी दीक्षा दें, तो शायद हम अपने मीडिया में मानवीय मूल्यों को ज्यादा स्थान दे पाएंगे। आज मीडिया जिस प्रकार के अत्याधुनिक प्रयोगों से लैंस है और आज के मीडियाकर्मियों से जिस प्रकार की तैयारी तथा क्षमताओं की अपेक्षाएं की जा रही है, मीडिया संस्थानों को उस कसौटी पर खरा उतरने की आवश्यकता है। जनसंचार शिक्षा सिर्फ पत्रकारिता तक सीमित नहीं है, उसने जनसम्पर्क से आगे बढ़कर कॉर्पोरेट और बिजनेस कम्युनिकेशन की ऊंचाई हासिल की है। विज्ञापन के क्षेत्र में अलग-अलग तरह के विशेषज्ञों की मांग हो रही है। प्रिन्ट मीडिया के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक, रेडियो, मनोरंजन, वेब के तमाम विकल्पों  की लोगों द्वारा मांग हो रही है। मीडिया के इस विस्तार ने आज मीडिया प्रोफेशनल्स की चुनौती बहुत बढ़ा दी  है। जनसंचार शिक्षा देने वाले संस्थान अपने आपको इन चुनौतियों के मद्देनजर तैयार करें, यह एक बड़ी जिम्मेदारी है। 

प्रश्न : भारतीय गुरु शिष्य परंपरा में आज गुरु-शिष्य के रिश्ते पर आपकी क्या राय है?

उत्तर : जब हर रिश्ते को बाजार की नजर लग गई है, तब गुरु-शिष्य के रिश्तों पर इसका असर हो ऐसा कैसे हो सकता है? नए जमाने के नए मूल्यों ने हर रिश्ते पर बनावट, नकलीपन और स्वार्थों की एक ऐसी चादर डाल दी है, जिसमें असली सूरत नजर ही नहीं आती। अब शिक्षा बाजार का हिस्सा है, जबकि भारतीय परंपरा में वह गुरु के अधीन थी, समाज के अधीन थी।  आज नई पीढ़ी बहुत जल्दी और ज्यादा पाने की होड में है। उसके सामने अध्यापक की भूमिका बहुत सीमित हो गई है। नए जमाने ने श्रद्धा भाव भी कम किया है। आज गुरु शिष्य रिश्तों की मर्यादाएं टूट रही हैं। अनुशासन भी भंग होता जा रहा है। सीखने और सिखाने की प्रक्रिया का मर्यादित होना जरूरी है। परिसरों में संवाद, बहसें और विषयों पर विमर्श की धारा लगभग सूख रही है। आज भी शिक्षक को चाहिए की वह छात्र में विषयों की गंभीर समझ पैदा करे। स्किल के साथ मूल्यों की शिक्षा भी जरूरी है। कॉर्पोरेट के लिए पुरजे और रोबोट तैयार करने की जगह हम उन्हें ईमानदारी और प्रामाणिकता की शिक्षा दे पाएं, खुद को एक रोल मॉडल के रूप में प्रस्तुत कर पाएं, तो नए समय में भी गुरु का सम्मान बनाए रखा जा सकता है। 

प्रश्न : आज के दौर में मीडिया शिक्षक से आपकी क्या अपेक्षाएं हैं?

उत्तर : प्रत्येक मीडिया शिक्षक की यह जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वह छात्रों को सोशल मीडिया के दौर में एक बेहतर पत्रकार के तौर पर विकसित करे, ताकि वह फेक न्यूज और प्रोपेगैंडा न्यूज से बचें और अपने कर्तव्यों का निर्वहन बेहतर तरीके से कर पाएं। इसके अतिरिक्त मीडिया शिक्षण के तहत रोजगारपरक शिक्षा पर ध्यान देना भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ज्ञान की सार्थकता तभी है, जब वो हमारे जीवन में उतरे। आइए हम सब मीडिया शिक्षण को एक नया आयाम देने के लिए साथ आएं और जनसंचार शिक्षा का एक बेहतर माहौल तैयार करने में मदद करें। 

प्रो. नीलम राठी
आचार्य (हिंदी विभाग), अदिति महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली

चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक ई-पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-52, अप्रैल-जून, 2024 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक-जितेन्द्र यादव चित्रांकन  भीम सिंह (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)

Post a Comment

और नया पुराने