शोध सार : लोक परंपराएं सामाजिक जीवन के सबसे सांस्कृतिक रूप से अद्वितीय तथ्यों में से एक हैं। किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह, उत्तर प्रदेश के लोकगीत इसकी समृद्ध संस्कृति को दर्शाते हैं जो गीतों जैसी कला के माध्यम से उत्पन्न होती है। लोक तथा लोकगीतों को परिभाषित करते हुए ब्रज लोकगीतों में अभिव्यक्त नारी के विविध स्वरूपों का सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है उत्तर आधुनिक नारी विमर्श से अलग यह नारी के जीवन के विविध पक्षों को लोक की दृष्टि से देखने का प्रयास किया गया है प्रपत्र में प्रयोग किए गए गीत मूलतः प्राथमिक स्रोत के रूप में संकलित किए गए हैं प्रस्तुत प्रपत्र में सर्वेक्षण विधि द्वारा तथ्य संकलित किए गए हैं लोक साहित्य के अन्तर्गत लोकगीतों के अध्ययन से नारी जीवन पर जितना प्रकाश पड़ता है, उतना अन्य किसी विधा से नहीं। ब्रज के लोकगीतों में, नारी को गांव की संस्कृति और समाज का प्रतिनिधित्व करते हुए दिखाया गया है। उनका काम घरेलू कार्यों में, प्यार और समर्थन में होता है तथा उनका समर्पण अपने परिवार और समुदाय के लिए होता है। इस रूप में, ब्रज के लोकगीतों में नारी का चित्रण गांव की जीवनशैली के साथ मिलान बनाता है और उन्हें समाज की महत्त्वपूर्ण अधिकारिणी बनाता है।
बीज शब्द : लोक, लोकगीत, ब्रजभाषा, भावना, समानता, ब्रज क्षेत्र नारी के विविध स्वरूप, नारी की स्थिति, संस्कृति और समाज।
मूल आलेख : “ब्रज, भारतीय सांस्कृतिक एवं धार्मिक ऐतिहासिक भूमि का नाम है, जो वर्तमान उत्तर प्रदेश राज्य के मध्य भाग में स्थित है। यह क्षेत्र हिन्दू धर्म के महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है और यहाँ पर हिन्दू धर्म के प्रमुख देवी-देवताओं का पूजन किया जाता है। ब्रज का प्रमुख आकर्षण गोकुल और वृंदावन हैं, जहाँ भगवान कृष्ण के बचपन की लीलाओं का केंद्र है।”¹ यहाँ पर उनकी विभिन्न लीलाएं, “गोपियों के संग रासलीला, और उनके भक्तों के प्रेम और आदर्शों का उल्लेख किया जाता है। ब्रज के इस क्षेत्र में कई मंदिर हैं, जहाँ पर भक्ति और पूजा की जाती है।”² ब्रज का अन्य महत्त्वपूर्ण स्थान मथुरा है, जो कृष्ण के जन्मस्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ पर जन्माष्टमी जैसे धार्मिक उत्सवों को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। ब्रज का इतिहास, संस्कृति और धार्मिक महत्त्व उत्तर भारतीय साहित्य और कला में अद्वितीय स्थान रखता है, साथ ही यहाँ के लोकगीतों और कथाओं का अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है।
ब्रज के लोकगीतों में भक्ति और प्रेम का अत्यंत गहरा संबंध दिखाया जाता है। ये गीत भगवान कृष्ण और उनकी प्रेमिका राधा के प्रेम के बारे में होते हैं, जो ब्रज की धार्मिक और सांस्कृतिक धारा का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। यहाँ कुछ ब्रज के लोकगीतों के उदाहरण हैं:
"राधा
कृष्ण की प्रेम गाथा": यह गीत राधा और कृष्ण के प्रेम को बताता है, जिनकी प्रेम कथाएं ब्रज में प्रसिद्ध हैं। इस गीत में “राधा और कृष्ण की प्रेम लीलाओं का वर्णन किया जाता है।”³
"मैया
यशोदा के लाला": यह गीत भगवान कृष्ण के बचपन की लीलाओं को बयान करता है। इसमें माता यशोदा के प्रेम और कृष्ण के चालाकियों का वर्णन है।
"श्याम
तेरी बंसी पुकारे": यह गीत भगवान कृष्ण के लालन और मोहनीयता को गाता है। इसमें कृष्ण के गोपियों के प्रेम की कथा है और उनके मनमोहक संगीत का वर्णन है।
"ब्रज
की
होली": यह गीत ब्रज की होली के रंग-बिरंगे उत्सव को वर्णित करता है। इसमें गोपियों और कृष्ण के बीच होली के खेल का मजा है।
ये गाने “ब्रज के समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं और लोगों के दिलों में गहरी भक्ति और प्रेम की भावना को उत्पन्न करते हैं।”⁴
ब्रज के लोकगीतों में नारी का चित्रण अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। ये गीत नारी को समृद्ध, सुंदर और शक्तिशाली चरित्र के रूप में प्रस्तुत करते हैं। “ब्रज के लोकगीतों में नारी के विभिन्न रूपों का वर्णन किया गया है, जैसे कि माता, पत्नी, प्रेमिका, गोपियाँ और भक्त। ये गाने नारी के समर्पण, साहस, प्रेम, और विश्वास को उत्कृष्ट करते हैं। ब्रज के लोकगीतों में गोपियों का विशेष उल्लेख होता है, जो भगवान कृष्ण की प्रेमिकाओं के रूप में प्रस्तुत की जाती है। ये गाने गोपियों के ब्रज की सुंदरता, प्रेम, और आत्मसमर्पण को व्यक्त करते हैं।”⁵ उनका प्रेम भगवान कृष्ण के प्रति अद्वितीय और अटल होता है, और ये गाने उनकी प्रेम कथाओं को सुनाते हैं। ब्रज के लोकगीतों में माताओं का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। ये गाने माताओं के समर्पण, स्नेह, और बलिदान को स्वीकार करते हैं। माताओं का आदर, सहानुभूति, और प्रेम ब्रज के लोकगीतों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन सभी तत्वों के साथ, ब्रज के लोकगीतों में नारी का चित्रण समृद्धता और सम्मान के साथ किया गया है, और उन्हें समाज की महत्त्वपूर्ण अधिकारिणी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार, ब्रज के लोकगीतों में नारी का चित्रण अत्यंत प्रेरणादायक और प्रभावशाली है।
ब्रज के लोकगीतों में नारी के जीवन के विभिन्न पक्षों की अभिव्यक्ति हुई है। ब्रज के “लोकगीतों में नारी का चित्रण बहुत ही सामाजिक और सांस्कृतिक मायनों में किया गया है। ये गीत नारी की भूमिका को समर्थन और सम्मान के साथ प्रस्तुत करते हैं, जो उनकी महत्ता को उजागर करता है।”⁶ ब्रजभाषा में कोमलकांत स्वर लहरी ने ब्रज ललनाओं के दुख-सुख का मार्मिक वर्णन किया है। पारिवारिक दायित्वों के बोझ, सास व जग-हँसाई के डर के भय को बड़े हृदयस्पर्शी ढंग से व्यक्त किया है।
समाज में पुत्री की अपेक्षा पुत्र को अधिक महत्त्व दिया जाता है। ब्रज क्षेत्र में पुत्री जन्म जश्न का माहौल लाता है लोकगीतों में कन्या का जन्म पर भी पुत्र जन्म की तरह वर्णित हुआ है, इस भावना की अभिव्यक्ति प्रस्तुत ब्रज लोकगीत में देखी जा सकती है जहाँ कन्या जन्म पर नेग की मांग की जा रही है संलग्न सभी गीतों को ब्रजवासियों से चर्चा के माध्यम से संकलित किया गया है:
लाली की सुनके मैं आयी
कीरत मैया दे दे बधाई
लहंगा भी लुंगी और चुनरी भी लुंगी..
चोली की.. चोली की.. हाँ जी चोली की दे दे सिलाई..
कीरत मैया दे दे बधाई
लाली की सुनके मैं आयी
कीरत मैया दे दे बधाई।
भावार्थ : ब्रज के लोकगीतों में कन्या का जन्म पुत्र के जन्म की तरह ही प्रसन्नतादायक बताया गया है। मध्य युग में जब लड़कियों का जन्म दुख का कारण समझा जाता था, उस समय शायद ब्रज में कन्या का जन्मोत्सव मनाना अपने आप में अनूठा था राधा जी के जन्म पर पूरा ब्रजमंडल दुल्हन की तरह सजाया गया था । ब्रज में आज भी कन्या के पैदा होने पर सोहर गीत गए जाते है इस गीत में कन्या के पैदा होने की ख़ुशी में नेग माँगा जा रहा है और वर्णन किया है कि मैं नेग लेने कन्या जन्म का सुन कर आई हूँ।
इन लोक गीतों में ब्रज में नारी-पुरुषों के समारोहों में सामूहिक रूप से सम्मिलित होने व पूजा आदि करने का सुंदर विवरण मिलता है। गोवर्धन पूजा पर ब्रजकुमार-ब्रजनारियाँ एक साथ गोवर्धन पूजते तथा मंगल गान गाते थे। एक लोक गीत के कुछ अंश:
“ब्रजवासी
ब्रजगोपी आई, वह पकवान डला भर लाई,
पूजा करि परकम्मा दीनी, करि दंडौत स्तुति कीनी
सबन मिली बोलो जय जयकार।”
दूसरे लोक गीत में गोपियाँ कहती हैं:
“नाय
मानें मेरौ मनुवा, मैं तो गोवर्धन कूं जाऊँ मेरे बीर।”
भावार्थ : यह गीत ब्रजभाषा में लिखा गया है, जो कृष्ण भगवान और उनकी गोपियों के लोकप्रिय कथाओं और काव्य के अध्ययन के लिए प्रसिद्ध है। यह गीत भक्ति और प्रेम के भावों को व्यक्त करता है। पहले भाग में, गोपियाँ कह रही हैं कि उनकी आई, यानी माता यशोदा, एक पकवान बना रही हैं और उसे पूजा के लिए तैयार कर रही हैं। उन्होंने उस पकवान की पूजा की और उसकी महिमा गाई। गाने के अंत में, सभी लोगों ने उनकी प्रशंसा की। दूसरे भाग में, एक गोपिका कह रही है कि वह गोवर्धन पर्वत के पास जाना चाहती है, जो कृष्ण भगवान के अद्वितीय खेल का एक प्रमुख स्थल है। उसका मन उस पर्वत की ओर ही लगा हुआ है और वह वहाँ जाने के लिए तैयार है। इस गीत में भक्ति, प्रेम और कृष्ण भगवान की प्रशंसा के भाव प्रकट होते हैं। यह गीत भक्तों को दिव्य और अनुभवशील परम्पराओं के अनुसार उनके भगवान के प्रति उनकी प्रेम भावना को व्यक्त करने में मदद करता है। इस प्रकार हम देख सकते हैं की कृष्ण और गोपी एक ही समारोह में सम्मिलित हो रहे हैंI
ब्रज क्षेत्र में “नारी की स्वतंत्रता पर कभी रोक नहीं लगाई गयी पर समाज में नारी ने हमेशा घर से बाहर जाने के लिए पुरुष के साथ को महत्त्व दिया।”⁷ इसी का वर्णन इस लोकगीत के द्वारा दिया गया है कि किसी मेले को देखने के लिए नारी लांगुर(पुरुष) से गुहार कर रही है।
मेला लग रहो देवी मइया पै दिखायला लांगुरिया।
दिखायला लांगुरिया दरस करायला लांगुरिया।
जग जननी देवी मैया की महिमा अमित अपार
आदि न अंत अनंत है रे सदा सुख कौसार ॥
मेला.............
अष्ट भुजाधारी मैया की देव करें गुणगान
संकट हरनी मंगल करनी दैयो साँचो वरदान ॥
मेला.............
भावार्थ : यह गीत माँ दुर्गा की महिमा और उनके पूजन से जुड़ा हुआ है। इस गीत में लोग मेला लगाते हैं और माँ दुर्गा के दर्शन के लिए उन्हें लांगुरिया, यानी लंबी वार्ताओं में गाया गाना, करने का आह्वान किया जा रहा है। प्रशंसा गीतों में, दुर्गा माँ की अमित महिमा, उनकी असीम शक्ति और उनके विभिन्न स्वरूपों की भक्ति की जाती है। गीत में माँ दुर्गा का अष्टभुजा रूप, उनके गुणगान, उनके संकटों को हरने और मंगल करने की क्षमता, और उनकी प्रतिष्ठा का वर्णन किया गया है। इसके अलावा, मंदिर के ऊंचे तल पर, जहां माँ दुर्गा का मंदिर स्थित है और उनके रजत सिंहासन का वर्णन भी किया गया है। इस गीत में माँ दुर्गा की प्रशंसा और उनके भक्तों की श्रद्धा को उजागर किया गया है।
ब्रज के लोक गीतों में बहू को मान-मर्यादा, पतिव्रत धर्म का पालन करता दिखाया गया है। रीतिकाल के कवियों ने पतियों को कृष्ण से गोपियों के मिलन में बाधक दर्शाया है। लोकाचार, कुलटा व लोकापवाद के भय से ब्रजबालायें भयभीत चित्रित की हैं। जबकि “महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ब्रज के लोकगीतों में पतिव्रत धर्म तथा प्रेम भक्ति अलग-अलग स्तरों पर स्थापित की गई है। उसमें पतिव्रत धर्म लौकिक परस्पर रमण की ओर संकेत करता है तो प्रेम भक्ति संसार की सुध-बुध भुला कर परमात्मा में लीन होने का संदेश देती है।”⁸ एक लोक गीत के कुछ अंश:
“ऐसी
बाजी पीर नेह की, सुधि गई बिसर देह की,
कंघा बेंदी सब धर दीनी . . .
लोकलाज कुल कान न कीनी, बौरी भई श्याम रंग भीनी,
पहुँची जहाँ घनश्याम, सुधि सब भूली घर बर की।”
भावार्थ : यह गीत भक्ति और प्रेम के भावों को व्यक्त करता है, जो कृष्ण भगवान और उनकी गोपियों के रोमांचक कथाओं और काव्य को उजागर करता है। गीत में, गोपियाँ कह रही हैं कि उन्होंने अपने प्रेम के प्याले को इतनी गहराई से पी लिया है कि वह अपने शरीर को भूल गई हैं। उनका प्रेम इतना उत्कृष्ट है कि वे अपने बालों को बांधने वाली चोटी (कंघा) को भी भगवान कृष्ण को समर्पित कर देती हैं। गोपियों का दिल केवल कृष्ण के प्रेम के लिए धड़कता है, और उनकी आत्मा उनके प्रियतम के प्रति भरपूर प्रेम में रत हो गई है। उनको भगवान के दर्शन के लिए अत्यंत उत्सुकता और आकांक्षा होती है। जब वे अपने प्रियतम के दर्शन के लिए उन्हें ढूँढ़ती हैं, तो वे अपने घर और अपने सामान्य कर्तव्यों को भूल जाती हैं।
ब्रज क्षेत्र राधा-कृष्ण के प्रेम की नगरी माना जाता है। ब्रज इनके प्रेम कथाओं का गवाह है जहाँ प्रेम को प्रार्थना माना जाता है, जिससे प्रेम हुआ जीवन उसी के लिए समर्पित होता है। ब्रज के लोकगीत इस बात का प्रमाण है कि प्रेम के वियोग में नारी अपना सब कुछ त्याग कर जोगन तक बनी है इसी के सन्दर्भ में लोक गीत के कुछ अंश:
हमें तो जोगनिया, बनाये गयो रे,
वो छलिया नन्द को री, जोगनिया बनाये गयो रे,
वो लाला नन्द को री, जोगनिया बनाये गयो रे।।
आप तो जाए श्याम, मथुरा बिराजे,
हमें तो गोकुल में, बसाये गयो री,
वो छोरा नन्द को री, जोगनिया बनाये गयो रे।
भावार्थ : यह गीत प्रेम के विषय में है यह गाना नारी और कृष्ण के प्रेम की भावना को व्यक्त करता है, जहां वे एक-दूसरे के बिना अपना जीवन नहीं सोच सकते। इस गीत में नारी के प्रेम वियोग को दर्शाया गया है, प्रेम के दर्द में नारी कृष्ण को छलिया बता कर बोल रही कि हमको प्रेम करना सीखा कर वो हमको अकेला छोड़ मथुरा जा रहे हैं, हम जोगनिया बन गये हैं, कृष्ण प्रेम में हमको प्रेम-प्रेम बोल खुद मथुरा जा रहे और हम को गोकुल में बसने का बोल दिया, हम उनके प्रेम में जोगन बन गये।
लोक जीवन में ऐसे अनेक लोकगीत प्रचलित हैं जिसमें स्त्रियों ने थोपे हुए संबंधों में अपनी नाराज़गी जाहिर की है।
“बिन
मेल
बिगड़ गया खेल, बुढ़े से मेरी जोड़ी ना मिले,
पांच बरस की मैं मेरी मैना ,पंचपन के भरतार,
वे तो ले गए लगन लिखाया,
बुढ़े से मेरी जोड़ी ना मिले, छ:बरस की मैं मेरी मैना,
पचपन के भरतार, वे तो ले गए तोरन मार, बूढ़े से मेरी जोड़ी ना मिले,
याकू बाबा कहूं भरतार, बुढ़े से मेरी जोड़ी ना मिले।”
भावार्थ : यह गीत एक प्रसिद्ध हिंदी लोकगीत है जिसमें नारी की विवाह संबंधित दुखभरी कहानी बताई गई है। गीत में “नारी की असहायता, समाज में उसके आधारशिला के बिगड़ने बिन मेल की शादी का वर्णन किया गया है। उसके जीवनसाथी की अनुपस्थिति और उसकी आकांक्षा को अधूरी छोड़ देने का दर्द इस गीत में अभिव्यक्त है।”⁹ उसकी विदाई अपने माता-पिता के घर से नये गहनों और सौंदर्य के साथ होती है, जो इसे बड़ा उत्साहित करता है। परंतु, उसका जीवनसाथी उसे वह सम्मान और सुख नहीं देता है, जिसकी वह अपेक्षा करती है। गीत में इस असहाय और विवाहिता की भावनाओं का व्याकुल वर्णन किया गया है, जो उसके अज्ञात भविष्य की ओर दिशा देता है।
“नारी के कमज़ोर पक्ष को दिखाने के लिए एक लोक गीत के कुछ अंश: जिसमें नारी को एक पुरुष पर निर्भर दिखाया गया है कि जब-जब नारी पर कोई कष्ट आता है तो मदद के लिए उसको पुरुष से गुहार करनी पड़ती है, क्योंकि नारी को शारीरिक कमज़ोर दिखाया गया है।”¹⁰
आओ घनश्याम मेरा चीर खिंचा जाता है
न्याय की रीत में अन्याय हुआ जाता है
पांच पति मौन हुए धर्म के बंधन में फंसे
क्या करूं नाथ नजर कोई नहीं आता है
भीम क्या आज तुम्हारी भी गदा टूट गई
आज अर्जुन का भी गांडीव डिगा जाता है
न्याय की रीत में अन्याय हुआ जाता है।
भावार्थ : यह गीत दुःख, असमानता और न्याय के अभाव के बारे में है। यह एक नारी के अंतर्निहित दर्द और निराशा को व्यक्त करता है, जो समाज में न्याय के लिए संघर्ष करती है और उसके विरुद्ध अन्याय का सामना करती है। यह गीत नारी की आत्मा के गहरे अनुभवों को उजागर करता है, जब वह समाज में न्याय की कमी को महसूस करती है। गीत में व्यक्त किए गए भाव और भावनाएं बहुत ही गहरी हैं, जो सामाजिक न्याय के महत्त्व को उजागर करती हैं। गीत में न्याय के लिए भीम की गदा और अर्जुन के गांडीव (अर्जुन को अग्निदेव द्वारा दिया गया धनुष) का भी वर्णन किया गया है कि ये अस्त्र किस काम के जब न्याय के काम ही नहीं आते।
ब्रज की नारी हमेशा से अपनी व्यथा सुनाने के लिए किसी अभौतिक वस्तु का प्रयोग कर अपनी पीड़ा सुनाती थी जब वह किसी भी कार्य करने को असमर्थ हुई तब-तब लोकगीतों के द्वारा उन्होंने अपनी पीड़ा अभौतिक वस्तुओं का सहारा ले जग को सुनाये एक लोक गीत के कुछ अंश:
अरे नागिनियां बनकर डस गई रे मोहन तेरी बांसुरिया
रिमझिम रिमझिम मेघा बरसे तड़पे बिजुरिया
अरे मैं कैसे आऊं श्याम हमारी भीगे चुनरिया
अरे नागिनियां बनकर डस गई रे मोहन तेरी बांसुरिया
अटा चढ़त मोरी पिंडली दुखनी टूटे कमरिया
अरे श्याम में कैसे आऊं हमारी जगत ससुरी
नागिनियां बनकर डस गई रे मोहन तेरी बांसुरिया।
यह गीत प्रेम और विचारों को व्यक्त करता है, जो एक प्रेमी या प्रेमिका के द्वारा उनके प्रिय के प्रति भावनात्मक व्यक्ति करता है। नारी अपनी असमर्थता को व्यक्त करती हैं, जब वह अपने प्रिय के सामने अपने भावों को व्यक्त करने के लिए बोलती है कि मोहन तेरी बांसुरिया की आवाज भी अब नागिन बन कर डस रही है तुमसे मिलने का मन है पर मेघ भी बरस रहा है, जिससे मेरी चुनरी भीग गयी, आप बताओ मैं कैसे आऊँ, अटा चढ़ नहीं पाऊँगी। यह गीत भावनात्मक और रोमांचक है, जो प्रेम के गहराई की भावनाओं को उजागर करता है।
“ब्रज क्षेत्र की नारियां हमेशा से आदर भाव के लिए जानी गयी हैं कई जगह इस बात का वर्णन है कि ब्रज की नारी के द्वारा सीखें कि आदर भाव स्वागत कैसे किया जाता है। अगर ब्रज की नारियों को पता लग जाता है कि उनके घर कोई आने वाला है तो वह अपनी थकान भूल अतिथि की सेवा भाव में लग जाती है।”¹¹ ब्रज की नारी ने अतिथि
देवो भव: को आज भी कायम बना रखा है:
बधाए आए अँगना लिपाए रखती रे॥
जो मैं ऐसो जानती, ससुरजी आयेँगे आज,
ससुरजी लिए, हुक्का मँगाए रखती रे। बधाए...
जो मैं ऐसो जानती, जेठजी आयेँगे आज,
जेठजी लिए चाय बनाए रखती रे।बधाए...
जो मैं ऐसो जानती देवर जी आयेँगे आज,
देवर जी लिए रंग मँगाए रखती रे। बधाए...
जो मैं ऐसो जानती, नंदेऊ आयेँगे आज,
नंदेऊ लिए पान मँगाए रखती रे। बधाए...
जो मैं ऐसो जानती राजाजी आयेँगे आज,
राजाजी लिए पलंग सजाए रखती रे। बधाए...
भावार्थ : यह गीत “एक ग्रामीण भारतीय महिला की भावनाओं और उत्साह को दर्शाता है, जब उसके घर में परिवार के विभिन्न सदस्य आने वाले होते हैं। गीत में वह कह रही है कि अगर उसे पहले से पता होता कि उसके ससुर, जेठ, देवर, ननदोई और पति (राजाजी) आने वाले हैं, तो वह उनके स्वागत के लिए विशेष तैयारियाँ करती। हर सदस्य के लिए वह अलग-अलग चीजें तैयार करने की बात करती है।”¹² ससुर जी के लिए हुक्का: वह कहती है कि अगर उसे पता होता कि ससुर जी आ रहे हैं, तो वह उनके लिए हुक्का मंगवाती और रखती। जेठ जी के लिए चाय: वह कहती है कि अगर उसे पता होता कि जेठ जी आ रहे हैं, तो वह उनके लिए चाय बनाकर रखती। देवर जी के लिए रंग: वह कहती है कि अगर उसे पता होता कि देवर जी आ रहे हैं, तो वह उनके लिए रंग मंगवाती। नंदेऊ के लिए पान: वह कहती है कि अगर उसे पता होता कि ननदोई आ रहे हैं, तो वह उनके लिए पान मंगवाती। राजाजी (पति) के लिए पलंग: वह कहती है कि अगर उसे पता होता कि उसके पति आ रहे हैं, तो वह उनके लिए पलंग सजाती। इस प्रकार, इस गीत के माध्यम से वह अपने घर के हर सदस्य के स्वागत के लिए उसकी विशेष तैयारियों को व्यक्त कर रही है। गीत में पारिवारिक बंधनों की मधुरता और पारंपरिक भारतीय ग्रामीण जीवन की सादगी को खूबसूरती से चित्रित किया गया है।
समान भावना का वर्णन एक ब्रज लोकगीत में भी हुआ है। जहाँ “एक राजा किसी गरीब स्त्री के रूप पर मोहित होकर उसे अपने पति का साथ छोड़ उसके साथ चलने के लिए कहता है किन्तु वह पतिव्रता नारी उस राजा को अपमानित करती है और अपने पति की सुन्दरता का वर्णन करती हैं।”¹³
“जो
हम
चली
राजा तोहरे गोइनवा रे ना।
राजा तोरे ले सुन्दर मोर भरतार रे
ना।”
भावार्थ : यह गीत एक भारतीय महिला की पतिव्रता उत्साह को दर्शाता है, इस गीत में स्त्री राजा से बोलती है कि हे राजा, मैं आपके साथ चलती, किन्तु आप से सुन्दर तो मेरा पति है। मेरे पति का गांव ही मेरी दुनिया है।
रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, गोपियों का यह प्रेम सांसारिक बंधनों से मुक्त और एक विशुद्ध आत्मिक प्रेम है। यह प्रेम समाज की मर्यादाओं और सीमाओं से परे है और इसमें एक अद्वितीय स्वतंत्रता का अनुभव होता है। गोपियों का कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति उन्हें मानसिक और भावनात्मक स्वतंत्रता प्रदान करता है, जो उनके समर्पण और आत्मसमर्पण में प्रकट होता है।
रामचंद्र शुक्ल के निबंध
"सूरदास"
में गोपियों का कृष्ण के प्रति प्रेम एक महत्त्वपूर्ण और गहन भावनात्मक विषय है। इस प्रेम को उन्होंने सामाजिक बंधनों और मर्यादाओं से परे, स्वतंत्रता की ओर एक छलांग के रूप में देखा है। इस प्रेम की अभिव्यक्ति सूरदास की रचनाओं में बखूबी देखने को मिलती है। सूरदास के कुछ प्रसिद्ध पद्य इस भाव को स्पष्ट रूप से व्यक्त करते हैं। ब्रज की नारी गोपियों का ही प्रतिनिधित्व करती हैं, यहाँ एक ऐसा पद्य प्रस्तुत है:
"मेरो
मन
अनत
कहाँ सुख पावे
जैसे उड़ि जहाज को पंछी, पुनि जहाज पै आवे।।
सीतल, संतोष, बिरति, बहुतेरे, नाना भांति समझावे।
इन सों कहूँ, बासना बिसरी, परत, अनत नहिं भावे।।
सूर, श्यामसुंदर के चरनन की, मुरली मधुर सुहावे।
बसि सकै नाहीं, और ठौर अब, जनम जनम लप्टावे।।”
भावार्थ : इस पद्य में गोपी कह रही है कि मेरा मन कहीं और शांति नहीं पाता। जैसे जहाज का पंछी उड़कर फिर से जहाज पर ही लौट आता है, वैसे ही मेरा मन भी कृष्ण के चरणों के बिना कहीं और शांति नहीं पा सकता। भिन्न-भिन्न तरीके से समझाने पर भी, मुझे अन्यत्र कहीं सुख नहीं मिलता। श्यामसुंदर (कृष्ण) के चरणों की मधुर मुरली की ध्वनि मुझे इतनी प्यारी है कि मेरा मन कहीं और बस नहीं सकता। यह प्रेम जन्म-जन्मांतर तक उनके चरणों से लिपटा रहेगा।
निष्कर्ष
: ब्रज के लोकगीतों में नारी के जीवन के विभिन्न पक्षों की अभिव्यक्ति हुई है। ब्रजभाषा में कोमलकांत स्वर लहरी ने ब्रज ललनाओं के दुख-सुख का मार्मिक वर्णन किया है। पारिवारिक दायित्वों के बोझ, सास व जग-हँसाई के डर के भय को बड़े हृदयस्पर्शी ढंग से व्यक्त किया है। मुरली मनोहर की मुरली की धुन पर लोक-लाज, घर-द्वार, पति बच्चों को छोड़़ कर प्रेम योग में लीन होने का मनोहारी विहंगम चित्रण किया है। जिसने अनावश्यक कुलवंती पतिव्रता के छंद बंदों को सरलता से शिथिल कर स्वतंत्र जीवन, अध्यात्मिक मोक्ष का मार्ग प्रशस्त कर दिया। ब्रज बालायें घर की चारदीवारी में बंद, बंधनों से जकड़ी नहीं थी। वह घर से बाहर तक के कार्यों में हाथ बँटाती थी। सामाजिक व आर्थिक क्षेत्र में उनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण थी। ब्रज के लोकगीतों में नारी के विभिन्न रूपों का वर्णन हुआ है, कन्या पैदा होने पर भी पुत्र के पैदा होने के समान ही ख़ुशी के गीत ब्रज के लोकगीतों में नारी को प्रेम करने की स्वतंत्रता के साथ वियोग का भी वर्णन मिलता है।
2. आर. गुप्ता, रासलीला एवं गोपियाँ, मीरा प्रकाशक दिल्ली, पृ. सं. 53-72
5. कौर, आर.बी. पारंपरिक भारतीय रंगमंच में संगीत: रास लीला का विशेष संदर्भ। शुभि प्रकाशन, 2006, पृ. सं. 98
शोधार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल
ashas615@gmail.com
डॉ. रंजन सिंह
सहायक प्रध्यापक, पत्रकारिता विभाग
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल
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