शोध आलेख : राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 एवं अनुवाद / ध्रुव कुमार

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 एवं अनुवाद
ध्रुव कुमार

शोध सार : हमारा देश एक ज्ञान आधारित समाज एवं अर्थव्यवस्था बनने की ओर प्रयासरत है। इस सामाजिक और राष्ट्रीय प्रयास में अनुवाद की अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। अनुवाद तमाम भाषाई और सांस्कृतिक खाइयों को पाटकर सूचना के निर्बाध आदान-प्रदान को संभव बनाता है। पिछले कुछ समय में दुनिया बहुत तेजी से आपस में जुड़ी है। वैश्वीकरण ने इस जुड़ाव को यथार्थ स्वरूप प्रदान किया है। ऐसी दुनिया में तरह-तरह के शोधों, सूचनाओं, दस्तावेजों आदि का एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद व्यापक स्तर पर लोगों की सूचना तक पहुँच सुनिश्चित करता है। यह पहुँच नागरिकों द्वारा किसी समाज की सामूहिक, बौद्धिक एवं आर्थिक वृद्धि में योगदान सुनिश्चित करती है। इसीलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 में अनुवाद को विशिष्ट महत्त्व दिया गया है। प्रस्तुत आलेख ज्ञान आधारित समाज के रूप में अग्रसरित भारत में अनुवाद की भूमिका को परिलक्षित करने का प्रयास करता है।

बीज शब्द : अनुवाद, राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020, ज्ञान आधारित समाज, अर्थव्यवस्था, सूचना, साहित्य, वैश्वीकरण, प्रौद्योगिकी, मानव संसाधन, वैज्ञानिक प्रगति।

मूल आलेख : अनुवाद अपने आप में एक व्यापक अवधारणा है जो महज़ भाषाई रूपांतर तक ही सीमित न होकर विभिन्न समाजों एवं समूहों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान का मार्ग प्रशस्त करता है। साहित्य आदि के अनुवाद की दृष्टि से अनुवाद का इतिहास कुछ हजार साल पहले तक से प्रारंभ माना जा सकता है पर गहराई से इसकी जाँच की जाए तो इसकी जड़ें हमें मानव समाज की आदिम अवस्था से ही मिलनी प्रारंभ हो जाएँगी। शोधकर्ता मानते हैं कि "अनुवाद का इतिहास संभवतः मानव भाषा के जितना ही पुराना है।"1 अपनी इस सुदीर्घ यात्रा में अनुवाद ने विश्व भर में मानव समाजों के बीच ज्ञान और सूचनाओं के आदान-प्रदान के माध्यम से उन्हें समृद्ध किया और नयी दिशा दी।

        आज दुनिया सतत नए-नए बदलावों से गुजर रही है। लगातार हो रहे सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और तकनीकी विकास ने लोगों के जीवन, रहन-सहन और उनके सोचने के तरीके को प्रभावित किया है। इन वैश्विक प्रभावों ने दुनिया को ज्ञान आधारित समाज बनने की ओर उन्मुख किया है। ज्ञान आधारित समाज से तात्पर्य एक ऐसे समाज से है जहाँ मानव समाज अपनी ज्ञान पूँजी के आधार पर अपनी आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी स्थिति को सुदृढ़ कर सके। किसी राष्ट्र द्वारा ज्ञान पूँजी का निर्माण करने और उसका उपयोग कर मानव को सशक्त और सक्षम बनाने की क्षमता ही राष्ट्र की वास्तविक क्षमता होती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 विद्यार्थियों की बाल्यावस्था से ही अनुवाद के माध्यम से देश-दुनिया के विविध समाजों के विविध साहित्यों के परिचय की संकल्पना करती है। “सभी भारतीय और स्थानीय भाषाओं में दिलचस्प और प्रेरणादायक बाल साहित्य और सभी स्तर के विद्यार्थियों के लिए स्कूल और स्थानीय पुस्तकालय में बड़ी मात्रा में पुस्तक उपलब्ध कराई जाएगी। इसके लिए आवश्यकता अनुसार उच्चतर गुणवत्ता के अनुवाद आवश्यकता अनुसार तकनीकी मदद से भी करवाए जाएंगे।”2

        मानव एवं समाज के विकास के लिए शिक्षा का महत्त्व निर्विवाद है। अनेक भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों ने मानव के सर्वांगीण विकास एवं जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए शिक्षा को सर्वोत्तम साधन माना है। नयी शिक्षा नीति मानव क्षमता के पूर्ण दोहन एवं उसके समुचित विकास के लिए शिक्षा को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माध्यम मानती है। इसके अनुसार, “शिक्षा पूर्ण मानव क्षमता को प्राप्त करने, एक न्यायसंगत और न्यायपूर्ण समाज के विकास और राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा देने के लिए मूलभूत आवश्यकता है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुँच प्रदान करना, वैश्विक मंच पर सामाजिक न्याय और समानता, वैज्ञानिक उन्नति, राष्ट्रीय एकीकरण और सांस्कृतिक संरक्षण के संदर्भ में भारत की सतत प्रगति और आर्थिक विकास की कुंजी है।”3 ऐसे में राष्ट्रीय विकास के लिए उसके नागरिकों का सर्वांगीण सशक्तीकरण अनिवार्य हो जाता है। सशक्तीकरण की यह प्रक्रिया बिना शिक्षा के आदान-प्रदान एवं बिना वैश्विक शिक्षा एवं मूल्य के संभव नहीं हो सकती है। इस प्रकार अनुवाद ही एक ऐसा रास्ता है जो हमारे समाज को वैश्विक समाज से जोड़ सकता है और हमारे देश के नागरिकों को दुनिया के अन्य समाजों और नागरिकों से कंधे से कंधा मिलाकर चलने में सक्षम बना सकता है।

        बदलते समय के साथ ही राष्ट्र एवं समाज की चुनौतियों एवं संभावनाओं में भी परिवर्तन अवश्यम्भावी है। विश्व के बड़े राष्ट्र अनेक प्रकार की तकनीकी और प्रौद्योगिकी प्रगति के माध्यम से आसमान छू रहे हैं। उनकी अर्थव्यवस्था अपने अब तक के इतिहास में चरम पर है। इसके बावजूद मानव संसाधन के मामले में वे राष्ट्र भारत की ओर नज़रें गड़ाए रहते हैं। पिछले अनेक दशकों से भारत के नागरिकों, खासकर भारत के युवाओं ने दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में अपनी सेवाएं देकर उनको मजबूत बनाया है। ऐसे राष्ट्रों के सशक्त होने के पीछे भारतीय युवाओं का बड़ा योगदान रहा है। प्रौद्योगिकी का क्षेत्र हो अथवा चिकित्सा क्षेत्र, रक्षा क्षेत्र हो अथवा विनिर्माण का क्षेत्र, भारतीय युवाओं ने हर जगह अपनी एक क्षमता और काबिलियत के बल पर दूसरे बड़े राष्ट्रों को मजबूती प्रदान करने का कार्य किया है। अब समय आ गया है जब देश अपने मानव संसाधन की ओर ध्यान दे एवं उन्हें शिक्षित, सशक्त और सक्षम बनाकर अपने आप को विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में लाकर खड़ा करे। नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस संबंध में भी सजग है। नीति के अनुसार, “अगले दशक में भारत दुनिया का सबसे युवा जनसंख्या वाला देश होगा और इन युवाओं को उच्चतर गुणवत्तापूर्ण शैक्षिक अवसर उपलब्ध कराने पर ही भारत का भविष्य निर्भर करेगा।”4 गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से तात्पर्य ऐसी शिक्षा से है जो मानव की समस्त संभावनाओं को उजागर कर उन्हें राष्ट्र एवं समाज की नयी जिम्मेदारियों के प्रति सचेत कर सके एवं उन्हें समाज सेवा में संलग्न कर सके। इसलिए प्रयास यह होना चाहिए कि विद्यार्थी जहाँ एक ओर भारतीय पारंपरिक एवं सांस्कृतिक शिक्षा से परिपूर्ण हों वहीं वे दुनिया की आधुनिक शिक्षा प्रणाली से भी जुड़ें एवं बदलती परिस्थितियों के अनुरूप शिक्षा ग्रहण करें। यह तभी संभव हो सकेगा जब हम अनुवाद के माध्यम से अपने विद्यार्थियों को दुनिया में प्रचलित उत्तम शिक्षा प्रदान कर सकेंगे एवं उन्हें नवीन शिक्षा प्रणाली से जोड़ सकेंगे।

        दुनिया भर में शैक्षिक परिदृश्य प्रौद्योगिकी प्रगति, नये-नये शिक्षण सिद्धांतों और बदलती सामाजिक जरूरतों के अनुरूप बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहा है। पारंपरिक शिक्षा और शिक्षण पद्धतियों पर प्रश्न चिह्न खड़े हो रहे हैं। डिजिटल लर्निंग उनका स्थान ले रही है। कोविड के प्रकोप के बाद इस प्रक्रिया में तेजी देखने को मिली है। यह तेजी जहां एक ओर समाज में वैज्ञानिक प्रगति सुनिश्चित कर रही है वहीं दूसरी ओर तकनीकी ज्ञान से रहित मानव संसाधन को पूंजी निर्माण तंत्र से बाहर का भी रास्ता दिखा रही है। ऐसे युवाओं के लिए आने वाला समय निश्चित ही बड़ा कठिन होगा। नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस विषय पर भी ध्यान देती है। “ज्ञान के परिदृश्य में पूरा विश्व तेजी से परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। बिग डेटा, मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्रों में हो रहे बहुत से वैज्ञानिक और तकनीकी विकास के चलते एक ओर विश्व भर में कुशल कामगारों की जगह मशीन काम करने लगेगी और दूसरी ओर डेटा साइंस, कंप्यूटर साइंस और गणित के क्षेत्र में ऐसे कुशल कामगारों की जरूरत और मांग बढ़ेगी जो विज्ञान, समाज विज्ञान और मानविकी के विविध विषयों में योग्यता रखते हों।”5 इस संबंध में भी अनुवाद की आवश्यकता अपरिहार्य हो जाती है। जिस तरह से हम विश्व समाज से जुड़ रहे हैं एवं उससे प्रभावित हो रहे हैं यह आवश्यक है कि हम दुनिया के तमाम समाजों के अध्ययन के लिए प्रचलित सिद्धांतों का अध्ययन करें एवं अगर कहीं जरूरत पड़ती है तो उन सिद्धांतों को अपने सामाजिक अध्ययन में शामिल भी करें। “राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 21वीं शताब्दी की पहली शिक्षा नीति है जिसका लक्ष्य हमारे देश के विकास के लिए अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करना है।”6 देश के विकास के लिए अनिवार्य आवश्यकताओं में इसके समाज का ज्ञान आधारित समाज होना आवश्यक है और यह तभी संभव है जब हम दुनिया भर में प्रचलित विशिष्ट ज्ञान धाराओं को अपने ज्ञान क्षेत्र में शामिल कर सकें। इस दिशा में अनुवाद की सर्वप्रथम आवश्यकता होगी।

        यूनेस्को (2005) की रिपोर्ट में ज्ञान समाज को एक ऐसे समाज के रूप में वर्णित किया गया है जो अपनी विविधता और अपनी क्षमताओं से पोषित होता है।7 इसके पीछे अभिप्राय यह है कि प्रत्येक समाज की अपनी एक विशिष्ट ज्ञान संपदा होती है जिसका प्रयोग कर वह समाज प्रगति करता है। यद्यपि विविध समाजों की विविध ज्ञान संपदा होती है तथापि उस ज्ञान संपदा को अनुवाद के माध्यम से एक समाज से दूसरे समाज तक प्रसारित कर और आवश्यकता अनुरूप उनका उपयोग कर विश्व के सभी समाजों को प्रगति के पथ पर अग्रसर किया जा सकता है। नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति समस्त भारत को एक सूत्र में बांधने एवं भारत के सभी समाजों के साथ संवाद स्थापित करने की संकल्पना के साथ एक-दूसरे के समाज की भाषा, शब्दों, लिपियों और व्याकरण के अध्ययन की बात करती है। “इस प्रकार देश में प्रत्येक विद्यार्थी पढ़ाई के दौरान 'द लैंग्वेजेज ऑफ इंडिया' पर एक मजेदार प्रोजेक्ट/गतिविधि में भाग लेगा; उदाहरण के लिए, ग्रेड 6-8 में ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत' पहल। इस प्रोजेक्ट/गतिविधि में, छात्र अधिकांश रूप से प्रमुख भारतीय भाषाओं की उल्लेखनीय एकता के बारे में जानेंगे, जिसके तहत उनके सामान्य ध्वन्यात्मक और वैज्ञानिक रूप से व्यवस्थित वर्णमाला और लिपियों, उनकी सामान्य व्याकरणिक संरचनाओं, संस्कृत और अन्य शास्त्रीय भाषा से इनकी शब्दावली के स्रोत और उद्भव को ढूँढ़ने से लेकर इन भाषाओं के समृद्ध अंतर-प्रभाव और अंतरों को समझना शामिल है। वे यह भी जानेंगे कि कौन-से भौगोलिक क्षेत्र में कौन-सी भाषाएं बोलते हैं, आदिवासी भाषाओं की प्रकृति और संरचना को समझेंगे, और भारत की हर प्रमुख भाषा में कुछ पंक्तियाँ और प्रत्येक के समृद्ध और उभरते साहित्य के बारे में कुछ कहना सीखेंगे (आवश्यक अनुवाद के माध्यम से)।” इस तरह की गतिविधि से उन्हें भारत की एकता और सुंदर सांस्कृतिक विरासत और विविधता दोनों का एहसास होगा और अपने पूरे जीवन भर वे भारत के अन्य हिस्सों के लोगों से मिलने और घुलने-मिलने में सहज महसूस करेंगे।”8 इस तरह ज्ञान का अर्थ केवल सैद्धांतिक न होकर मानव और मानव समाज के व्यवहार और अनुभव से उत्पन्न ज्ञान होगा जो मानव की जमीनी आवश्यकताओं के अनुरूप समस्याओं का हल निकाल सकेगा और उनका मार्गदर्शन कर सकेगा। देश में विभिन्न समाजों एवं समुदायों के बीच अनुवाद एक ऐसे सेतु के रूप में कार्य कर सकेगा जिससे एक-दूसरे से ज्ञान का आदान-प्रदान कर दोनों ही पक्ष सशक्त एवं समृद्ध हो सकेंगे। इसलिए नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति देश में जिन अनुशासनों एवं विभागों के सशक्तीकरण की बात करती है उनमें अनुवाद एवं व्याख्या के विभाग का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। “देश के विभिन्न उच्च शिक्षा संस्थानों (एचईआई) में भाषा, साहित्य, संगीत, दर्शन, भारत विद्या, कला, नृत्य, नाट्य कला, शिक्षा, गणित, सांख्यिकी, सैद्धांतिक तथा व्यावहारिक विज्ञान, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, खेल, अनुवाद एवं व्याख्या और अन्य ऐसे विषयों के विभागों को बहुविषयक भारतीय शिक्षा और वातावरण को प्रोत्साहित करने के लिए स्थापित और मजबूत किया जाएगा।”9

        नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति भाषाई समृद्धि पर भी पर्याप्त विचार करती है। बिना भाषाई समृद्धि के ज्ञान का सृजन एवं प्रसरण संभव नहीं है। बदलते समय एवं आवश्यकताओं के अनुसार न केवल नित नवीन ज्ञान-सृजन की आवश्यकता होती है अपितु ज्ञान के प्रसार के महत्त्वपूर्ण माध्यम अर्थात नवीन भाषा और शब्दावलियों की भी नितांत आवश्यकता होती है। किसी भी समाज को ज्ञान आधारित समाज बनाने के लिए उसकी भाषा एवं शब्दों का अद्यतन होते रहना भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है। दुनिया के बड़े देशों को उदाहरण के रूप में सामने रखते हुए नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति कहती है, “भाषाओं के शब्दकोशों और शब्द भंडार को आधिकारिक रूप से लगातार अपडेट/अद्यतन होते रहना चाहिए और उनका व्यापक प्रसार भी करना चाहिए ताकि समसामयिक मुद्दों और अवधारणाओं पर इन भाषाओं में चर्चा की जा सके। शब्द भंडार को लगातार अद्यतन किया जाता है। परंतु, अपनी भाषाओं को जीवंत और प्रासंगिक बनाए रखने में मदद के लिए ऐसी अधिगम सामग्री प्रिंट सामग्री और शब्दकोश बनाने के मामले में भारत की गति काफी धीमी रही है।”10 अर्थात जो भी राष्ट्र आज दुनिया के शीर्ष राष्ट्रों में शुमार हैं उनकी अपनी कुछ ख़ास रणनीतियाँ रही हैं और विभिन्न भाषाओं से ज्ञानार्जन उनमें एक प्रमुख नीति रही है। ऐसे राष्ट्र अपनी सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्थिति सुदृढ़ करते हुए दुनिया पर अपना प्रभाव और प्रभुत्व जमाने में सफल रहे।

        प्रसिद्ध ब्रिटिश लेखक एंथनी बर्गेस का मानना था, “अनुवाद महज़ शब्दों तक ही सीमित नहीं होता है। यह पूरी की पूरी संस्कृति को बोधगम्य बनाने में मदद करता है।”11 वर्तमान में जब समस्त विश्व किसी न किसी सांस्कृतिक तनाव और टकराव से गुजर रहा है तब यह आवश्यक हो जाता है कि एक संस्कृति दूसरी संस्कृति को उसके मूल रूप में समझे, उसे आत्मसात करे और एक-दूसरे के संरक्षण-संवर्धन का प्रयास करे। इसके लिए अनुवाद से बेहतर माध्यम और कोई नहीं हो सकता है। यद्यपि अनुवाद का अकादमिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्त्व हमेशा ही रहा है तथापि नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति अनुवाद विज्ञान के सांस्थानिक महत्त्व की भी वकालत करती है। अभी तक सामान्यतः देश के विश्वविद्यालयों में अनुवाद के सर्टिफिकेट एवं डिप्लोमा पाठ्यक्रम ही देखने को मिलते हैं पर नयी शिक्षा नीति अनुवाद और विवेचना के क्षेत्र में डिग्रियों की शुरुआत की बात करती है। नीति कहती है, “उच्चतर शिक्षा व्यवस्था के अंतर्गत अनुवाद और विवेचना, कला और संग्रहालय, प्रशासन, पुरातत्व, कलाकृति संरक्षण, ग्राफिक डिजाइन एवं वेब डिजाइन के उच्चतर गुणवत्तापूर्ण कार्यक्रम एवं डिग्रियों का सृजन भी किया जाएगा।”12 इस कदम से अनुवाद के क्षेत्र में रोजगार आदि के सृजन की संभावना बढ़ सकेगी और अधिकाधिक लोगों की रुचि अनुवाद में बढ़ेगी।

        देश में अनुवाद और अनुवाद के माध्यम से विभिन्न भाषाओं के मध्य संवाद को बढ़ावा मिल सके इसके लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान के निर्माण की भी बात करती है। "भारत शीघ्र ही अनुवाद एवं विवेचना से संबंधित अपने प्रयासों का विस्तार करेगा, जिससे सर्वसाधारण को विभिन्न भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में उच्चतर गुणवत्ता वाली अधिगम सामग्री और अन्य महत्त्वपूर्ण लिखित एवं मौखिक सामग्री उपलब्ध हो सके। इसके लिए एक 'इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसलेशन एंड इंटरप्रिटेशन' (आईआईटी) की स्थापना की जाएगी। इस प्रकार का संस्थान देश के लिए महत्त्वपूर्ण सेवा प्रदान करेगा साथ ही अनेक बहुभाषी भाषा और विषय विशेषज्ञ तथा अनुवाद एवं व्याख्या के विशेषज्ञों को नियुक्त करेगा जिससे सभी भारतीय भाषाओं को प्रसारित और प्रचारित करने में मदद मिलेगी। आईआईटी को अपने अनुवाद और व्याख्या करने के प्रयासों को सुचारु रूप से चलने के लिए प्रौद्योगिकी का व्यापक उपयोग करेगा।"13 आईआईटी की स्थापना से यह सुनिश्चित हो सकेगा कि भारत न केवल अपनी विविध भाषाओं बल्कि समस्त विश्व की अधिकाधिक भाषाओं में व्याप्त ज्ञान-विज्ञान को अपनी भाषा में अनूदित करके अपनी मेधा के स्तर को वैश्विक एवं वर्तमान एवं भविष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप बना पाएगा।

        बात जब भविष्य की जरूरतों की होती है तो निश्चित ही उसका संबंध केवल भविष्य से नहीं होता है बल्कि अतीत के अनुभव और मार्गदर्शन की आवश्यकता भी किसी समाज को होती है। प्रसिद्ध लेखक और दार्शनिक जॉर्ज सांतायाना ने किसी समय कहा था, ''जो लोग अतीत को याद नहीं रख सकते, वे उसे दोहराने के लिए अभिशप्त होते हैं।"14 किसी राष्ट्र और समाज को अपने भविष्य का निर्माण करना है तो उसे अपने इतिहास से सीखना चाहिए। इसलिए नयी शिक्षा नीति अपने अतीत के गौरव और अनुभवों से सीख लेते हुए सशक्त और समृद्ध भविष्य के निर्माण की संकल्पना करती है। नीति कहती है कि "भारत इसी तरह सभी शास्त्रीय भाषण और साहित्य का अध्ययन करने वाले अपने संस्थानों और विश्वविद्यालयों का विस्तार करेगा और उन हजारों पांडुलिपियों को इकट्ठा करने, संरक्षित करने, अनुवाद करने और उनका अध्ययन करने के मजबूत प्रयास करेगा, जिन पर अभी तक ध्यान नहीं गया है।"15 हमारी विरासत में न जाने कितनी ऐसी निधियाँ हैं, न जाने कितने ऐसे ग्रंथ हैं जो ज्ञान का अथाह भंडार हैं पर वे अभी तक सामने नहीं आ पाए हैं। संस्कृति मंत्रालय के अनुसार, "भारत में अनुमानतः 50 लाख पांडुलिपियाँ हैं, जो संभवतः दुनिया का सबसे बड़ा संग्रह है। इनमें विभिन्न प्रकार के विषय, बनावट और सौंदर्य, लिपियाँ, भाषाएँ, सुलेख, प्रकाश और चित्रण शामिल हैं। साथ में, वे भारत के इतिहास, विरासत और विचार की 'स्मृति' का निर्माण करते हैं।"16 इनमें से अनेक पांडुलिपियों का अध्ययन नहीं हो सका है। अगर हम उन तक पहुँच कर उनमें निहित ज्ञान को आत्मसात कर सकें तो हमारा समाज ज्ञान आधारित समाज बनने की दिशा में तेजी से अग्रसर हो सकेगा। ऐसे में शिक्षा नीति का यह कथन महत्त्वपूर्ण है, "अभी तक उपेक्षित रहे लाखों अभिलेखों के संग्रह, संरक्षण, अनुवाद एवं अध्ययन के दृढ़ प्रयास किए जाएंगे।"17 ये प्रयास ज्ञान आधारित समाज बनने की दिशा में सशक्त कदम साबित होंगे।

निष्कर्ष : मानव जीवन में समय बदलने के साथ-साथ अनुवाद की महत्ता बढ़ती जा रही है। वर्तमान में सूचना और प्रौद्योगिकी के विकास से दुनिया जिस तरह आपस में जुड़ती जा रही है उसमें बिना एक-दूसरे को जाने समझे और एक-दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार किए आगे बढ़ना मुश्किल कार्य है। कृषि और उद्योग आधारित समाज के बाद आने वाले समय में ज्ञान आधारित समाज का निर्माण हमारी प्राथमिक आवश्यकता है और इस सामाजिक परिवर्तन में अनुवाद की अहम भूमिका होने वाली है। इन्हीं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 अपनी संकल्पना में अनुवाद को पर्याप्त स्थान देती है। इसमें न केवल बाल्यावस्था अपितु माध्यमिक और उच्च शिक्षाओं में अनुवाद के महत्त्व को रेखांकित किया गया है। भारत को यदि ज्ञान आधारित समाज बनना है तो उसे उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा के साथ उच्च गुणवत्ता के अनुवाद को भी उचित स्थान देना होगा। 

संदर्भ

  1. तारिक ख़ानहिस्ट्री ऑफ ट्रांसलेशन इन इंडियानेशनल ट्रांसलेशन मिशनमैसूरू, 2017, पृ. VI
  2. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, मानव संसाधन विकास मंत्रालय (वर्तमान में शिक्षा मंत्रालय), बिंदु 2.8
  3. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, मानव संसाधन विकास मंत्रालय (वर्तमान में शिक्षा मंत्रालय), परिचय, पृ. 3
  4. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, मानव संसाधन विकास मंत्रालय (वर्तमान में शिक्षा मंत्रालय), परिचय, पृ. 3
  5. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, मानव संसाधन विकास मंत्रालय (वर्तमान में शिक्षा मंत्रालय), परिचय, पृ. 3
  6. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, मानव संसाधन विकास मंत्रालय (वर्तमान में शिक्षा मंत्रालय), परिचय, पृ. 4
  7. https://unesdoc.unesco.org/ark:/48223/pf0000141843
  8. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, मानव संसाधन विकास मंत्रालय (वर्तमान में शिक्षा मंत्रालय), बिंदु 4.16
  9. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, मानव संसाधन विकास मंत्रालय (वर्तमान में शिक्षा मंत्रालय), बिंदु 11.7
  10. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, मानव संसाधन विकास मंत्रालय (वर्तमान में शिक्षा मंत्रालय), बिंदु 22.6
  11. https://www.altissia.org/blog/international-translation-day-celebrating-the-discreet-art-behind-global-communication
  12. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, मानव संसाधन विकास मंत्रालय (वर्तमान में शिक्षा मंत्रालय), बिंदु 22.11
  13. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, मानव संसाधन विकास मंत्रालय (वर्तमान में शिक्षा मंत्रालय), बिंदु 22.14
  14. https://americanart.si.edu/artwork/those-who-cannot-remember-past-are-condemned-repeat-it-george-santayana-life-reason-1905
  15. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, मानव संसाधन विकास मंत्रालय (वर्तमान में शिक्षा मंत्रालय), बिंदु 22.16
  16. https://www.indiaculture.gov.in/manuscripts
  17. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, मानव संसाधन विकास मंत्रालय (वर्तमान में शिक्षा मंत्रालय), बिंदु 22.16

ध्रुव कुमार
सहायक प्रोफ़ेसरहिंदी विभागश्री वेंकटेश्वर कॉलेजदिल्ली विश्वविद्यालयदिल्ली
dhruv@svc.ac.in, 9313616166

संस्कृतियाँ जोड़ते शब्द (अनुवाद विशेषांक)
अतिथि सम्पादक : गंगा सहाय मीणा, बृजेश कुमार यादव एवं विकास शुक्ल
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित UGC Approved Journal
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-54सितम्बर, 2024

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