फिल्में यानी मनोरंजन का वह माध्यम जिसकी पटकथा हमारे दैनिक जीवन में घटित घटनाओं पर आधारितहोतीहै। हालांकि सभी फिल्मों के आरम्भ में यह घोषणा नहीं की जाती है कि यह कहानी सत्य घटनाओं पर आधारित है, लेकिन कहीं न कहीं वे कहानियां हमारे बीच की ही होती है। यद्यपि, मनोरंजन की दृष्टि से उनमें थोड़ा फेर-बदल अवश्य किया जाता होगा, किन्तु वे पूर्णत: कल्पना तो नहीं हो सकती। साहित्य में समाज का जीवंत और गतिशील यथार्थ दर्ज होता है। इसलिए साहित्य हमें हमारे समाज, हमारी संस्कृति और हमारी सभ्यता से परिचय कराता है, तो फिल्में भी अपने एकमात्र उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ कहीं न कहीं दर्शकों के मन में हमारे समाज, हमारी संस्कृति और हमारी सभ्यता की छाप अवश्य छोड़ती है। दरअसल, वैश्वीकरण व्यापार और प्रोद्योगिकी के माध्यम से विश्व के सभी देशों को परस्पर अंतर्संबंधित और निर्भर बना देना है। कालांतर में वैश्वीकरण की अवधारणा ने जैसे-जैसे वैश्विक समाज में अपने पैर पसारे, वैसे-वैसे मानव जीवन से जुड़ी लगभग हर वस्तु, माध्यम और स्रोत की सीमा का विस्तार हुआ। परिणामस्वरूप आज वैश्विक समाज का कोई भी कोना इससे अछूता नहीं है। ऐसे में फिल्मों पर इसका प्रभाव भला कैसे न पड़ता। एक समय था जब हमारे देश में मनोरंजन और फिल्मों की दुनिया में केवल और केवल बॉलीवुड का राज था। यदि हम कहें कि बॉलीवुड फिल्मों का पर्याय हुआ करता था, तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी। परन्तु हम इस तथ्य को भी अनदेखा नहीं कर सकते हैं कि वर्तमान में मनोरंजन और फिल्मों के क्षेत्र में बॉलीवुड का एकाधिकार नहीं रहा, अब इस क्षेत्र में टॉलीवुड (विशेष रूप से दक्षिण भारतीय फिल्मों) और हॉलीवुड ने अपनी जुड़ें मजबूत कर ली है। भारतीय समाज में टॉलीवुड एवं हॉलीवुड तथा विदेशी समाज में बॉलीवुड के आगमन में अनुवाद ने एक बहुत ही अहम एवं महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है।
अनुवाद अर्थात् किसी एक भाषा में बोली या लिखी गई बात को किसी दूसरी भाषा में व्यक्त करना। अनुवाद, जिसकी शिक्षा अथवा प्रोफेशन से लगभग अधिकांश लोग शायद अनभिज्ञ होंगे, लेकिन अपने रोजमर्रा के जीवन में लगभग सभी को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से अनुवाद का सहारा लेना ही पड़ता है और हमें इस सत्य को भी स्वीकार करना पड़ेगा कि वर्तमान जीवन शैली में अनुवाद मानव जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है। ऐसे ही अनुवाद के कारण वर्तमान में अन्य वस्तुओं और सामग्रियों के साथ-साथ फिल्मों ने भी वैश्विक रूप धारण कर लिया है।
वैश्वीकरण की परिकल्पना ने इस व्यवसाय के पोषण हेतु फिल्म निर्माताओं को विविध भाषाओं को अपनाने पर विवश कर दिया। शीघ्र ही फिल्म निर्माताओं को यह आभास हो गया कि यदि उन्हें अपनी फिल्मों को वैश्विक बाजार में परोसना है, तो उन्हें विविध भाषाओं को साथ लेकर चलना होगा, तभी उनके व्यवसाय के साथ – साथ फिल्मों का भी विकास और विस्तार संभव हो पाएगा। एक ही फिल्म को विविध भाषाओं में निर्मित अथवा रिलीज कर पाना अनुवाद का सहारा लिए बिना संभव नहीं था।
यद्यपि विश्व के विभिन्न भागों में निर्मित फिल्मों में एक ही प्रकार के तत्व या प्रक्रियाएं पाई जाती हैं। लेकिन इन फिल्मों में एक ही प्रकार के पात्र या अन्य विशेषताएं मिलती हैं, वे इन फिल्मों के बीच सीधे संपर्क के परिणाम नहीं होती। वास्तव में विभिन्न फिल्मों में पाई जाने वाली समानताएं इसलिए पैदा होती हैं, क्योंकि उनको जन्म देने वाली परिस्थितियां एक ही प्रकार की होती हैं। ये समानताएं फिल्मों में तनावों, संवेदनाओं, सरोकारों, पात्रों या अन्य अनेक पहलूओं में झलकती हैं। किंतु ये समानताएं अनुवाद के माध्यम से स्रोत भाषा से लक्ष्य भाषा में संप्रेषित होने में उतनी ही अधिक जटिल होती हैं। इसलिए फिल्मों का अनुवाद सामान्य अनुवाद की अपेक्षा अधिक चुनौतीपूर्ण होता है। चूंकि फिल्मों का अनुवाद केवल पाठ पर नहीं बल्कि अभिनेता-अभिनेत्री के होठों के संचालन, हलचल और चेहरे के हावभाव के साथ संवाद की प्रस्तुति पर निर्भर करता है। ऐसे में जिन फिल्मों के अनुवाद में इन सब चीजों का ध्यान रखा जाता है वे बेहतर अनूदित फिल्में होती हैं।
फिल्मों के वैश्वीकरण की प्रक्रिया री-मेक और सबटाइटलिंग से शुरु हुई, जिसमें धीरे-धीरे डबिंग ने भी अपना स्थान बना लिया। चाहे री-मेक की प्रक्रिया हो या सबटाइटलिंग अथवा डबिंग की अनुवाद के बिना ये प्रक्रिया संपन्न नहीं की जा सकती। फिल्म जगत में अनुवाद के महत्व को आंकते हुए पाश्चात्य चिंतक निकोलस बूरियो ने कहा है कि “आने वाला युग डबिंग और सबटाइटलिंग का है, अनुवाद के इस प्रकार के रूपों को विशेष महत्व प्राप्त होगा ” और ऐसा हुआ भी। धीरे – धीरे अनुवाद ने फिल्म जगत में अपनी जगह बना ली और वर्तमान में यह फिल्म जगत का एक अभिन्न अंग बन चुका है।
फिल्म अनवुाद को व्यापक संदर्भ में दृश्य - श्रव्य अनवुाद की विधा में रखा गया है। सामान्य अनुवाद की अपेक्षा फिल्मों के अनुवाद में “विशिष्ट सामाजिक अथवा वैयक्तिक आचार-विचार, संस्कार, कर्मकांड, अंधविश्वास अथवा रूढ़िगत मान्यताओं के पर्यायों या विभिन्न पारिवारिक संबंधों के सूचक पदों- संबोधनों आदि के भाषांतर में समस्या आती है।“[1] ये अनवुाद के अन्त: भाषिक और अंतर भाषिक दोनों आयामों को समेटे हुए है। वृत्तचित्रों और फिल्मों के अनवुाद में डबिंग और सबटाइटलिंग दो प्रकार हैं। लेकिन इससे अलग देखें तो भी अनुवाद की उपयोगिता फिल्म निर्माण की प्रक्रिया के दौरान सहयोगी होती है जैसै आवश्यक स्क्रिप्ट और लेख सहित सभी लिखित सामग्रियों का अनुवाद होता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिलीज के लिए फिल्मों की कई भाषाओं में डबिंग और सबटाइटलिंग की जाती है। विपणन सामग्री, समीक्षा और सारांश में भी अनवुाद कार्य की आवश्यकता होती है। फिल्म निर्माण के बाद की प्रक्रिया में अनवुाद की आवश्यकता होती है। अंतरराष्ट्रीय वितरण के लिए प्रचार सामग्री में मूवी ट्रेलर, ऑनलाइन सामग्री, टीवी, रेडियो और प्रिंट विज्ञापन तथा ट्रेलर का अनुवाद करके विभिन्न देशों में पहुंचाया जाता है जिससे वहां के दर्शक अपनी ज्ञात भाषा में इससे जुड़ सकें। कुछ मामलों में, फिल्म निर्माण कंपनियों को विदेशों में आयोजित फिल्म समारोह को प्रस्तुत करने के लिए अपने आवदेन और दस्तावेजों का अनवुाद करने की भी आवश्यकता होती है।[2]
स्पष्ट है कि अन्य वस्तुओं और सामग्रियों के वैश्वीकरण के साथ-साथ फिल्मों के वैश्वीकरण में भी अनुवाद एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रहा है, जिसे निम्न बिन्दुओं के माध्यम से देखा जा सकता है :
फिल्मों के री-मेक में अनुवाद की भूमिका :
फिल्मों के क्षेत्र विस्तार में री-मेक की अहम भूमिका है। विशेषकर भारतीय सिनेमा उद्योग ने फिल्मों के री-मेक के माध्यम से अपने व्यवसाय के साथ – साथ अपने क्षेत्र में भी विस्तार किया है। बॉलीवुड ने अपनी फिल्म जगत की यात्रा के दौरान असंख्य उतार-चढ़ाव देखे हैं। इस सफ़र में कभी इन्हें प्रशंसा मिली तो, कभी इन्हें आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा।
फिल्मों के री-मेक की यदि बात की जाए, तो फिल्म जगत में रीमेक का भी एक इतिहास रहा है। पिछले एक दशक में रिलीज हुई अधिकांश बड़ी और हिट फिल्में किसी न किसी फिल्म का रीमेक रही हैं। चाहे बॉलीवुड में टॉलीवुड की री-मेक फिल्म वांटेड (पोकिरी) हो या फिर गजनी (गजनी) और हॉलीवुड में बॉलीवुड की री-मेक लीप ईयर (जब वी मेट), ए कॉमन मैन (ए वेडनेसडे), डिलिवरी मैन (विकी डोनर), जस्ट गो दि इट (मैंने प्यार क्यों किया), फियर 1996 (डर), पर्ल हार्बर (संगम), इन सभी फिल्मों के री-मेक में अनुवाद ने अपने उत्तरदायित्व का बखूबी निर्वहन किया है।
किसी भी फिल्म का री-मेक बनाने का अर्थ है - किसी एक भाषा में रिलीज हुई फिल्म को किसी दूसरी भाषा में रिलीज करना। एक भाषा से दूसरी भाषा में फिल्मों के री-मेक का कार्य अनुवाद के बिना संपन्न नहीं किया जा सकता। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि फिल्मों के री-मेक में क्या केवल डायलॉग का अनुवाद होता है? विचार करने योग्य बात है कि किसी भी एक भाषा में रिलीज की गई फिल्म को किसी दूसरी भाषा में री-मेक करने का अर्थ केवल उस फिल्म के डायलॉग अर्थात् संवाद का अनुवाद करना नहीं होता है, री-मेक की प्रक्रिया के दौरान अनुवाद होता है उस फिल्म के क्षेत्र का, उसके रहन-सहन का, उसकी परम्पराओं, सभ्यता और संस्कृति का, अनुवाद होता है उस फिल्म की आत्मा का। इस संबंध में मराठी साहित्यकार मामा वरेरकर का यह कथन सटीक है कि ‘लेखक होना आसान है, किंतु अनुवादक होना अत्यंत कठिन है।’[3] दूसरे शब्दों में कहें तो लेखक के भाव और विचार का सामान्यत: उसकी अपनी भाषा में नि:सृत होते हैं अर्थात् वह अपने भाषा रूपी शरीर में भाव रूपी आत्मा को ढालता है, संवारता है। लेकिन अनुवादक का कार्य एक भाषा रूपी शरीर से उसके भाव रूपी आत्मा को सुरक्षित रखते हुए उसे दूसरे भाषा रूपी शरीर में प्रत्यारोपित, ढालना और संवारना होता है। मगर भाषा कोई स्थिर और निष्क्रिय वस्तु नहीं है, बल्कि यह अपने सामाजिक, सांस्कृतिक, परंपरागत तथा भौगोलिक परिवेश में पलती और पनपती है। इसलिए किसी एक भाषा का कथ्य दूसरी भाषा में आसानी से प्रतिस्थापित या प्रत्यारोपित नहीं होता है।
स्पष्ट है कि फिल्म की भाषा बदलते ही उसके संवाद के साथ-साथ फिल्म का पूरा परिवेश बदल जाता है, जिसमें अनुवाद की महत्वपूर्ण भूमिका है। उदाहरण के लिए यदि किसी हॉलीवुड फिल्म का बॉलीवुड में री-मेक बनाना हो और फिल्म में किसी विशेष त्योहार का कोई सीन हो, तो सबसे पहले फिल्म में परिवेश के आधार पर त्योहार में परिवर्तन किया जाएगा और फिर उसके अनुरूप संवाद का अनुवाद किया जाएगा। अब निश्चित तौर पर हॉलीवुड की फिल्मों में क्रिसमस को मुख्य त्योहार के रूप में दर्शाया जाएगा, लेकिन बॉलीवुड तक आते – आते क्रिसमस का यह त्योहार होली या दीवाली में परिवर्तित हो जाएगा और उसी के अनुरूप फिल्म में मेहमान केक के स्थान पर मिठाई या पटाखे लेकर आएंगे और उसके अनुसार ही संवाद भी करेंगे। इतना ही नहीं प्रत्येक समाज की अपनी सांस्कृतिक पहचान होती है जो भाषा, वेशभूषा, खान-पान इत्यादि के जरिए प्रदर्शित होती है। ऐसे में एक भाषा से दूसरी भाषा में किसी फिल्म के री-मेक के प्रक्रिया में पात्रों द्वारा पहने जाने वाले वस्त्र तक फिल्म की भाषा को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए पाश्चात्य सभ्यता में सफेद रंग के वस्त्र विवाह के अवसर पर शुभ माने जाते हैं लेकिन भारत जैसे देश में सफेद रंग के वस्त्र मृत्यु जैसे शोकपूर्ण मौकों पर पहने जाते हैं। इसलिए संबंधित सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश भी री-मेक की भाषा को प्रभावित करता है।
अब कहने की आवश्यकता नहीं है कि फिल्मों के री-मेक में अनुवाद और अनुवादक की कितनी अहम भूमिका होती है। यदि अनुवादक फिल्म की आत्मा का अनुवाद कर पाता है, तो वह फिल्म सुपरहिट की श्रेणी में आ जाती है और यदि अनुवादक केवल संवाद के अनुवाद तक ही सीमित रह जाता है, तो फिल्म को कड़ी आलोचना से गुजरते हुए फ्लॉप होने तक का सामना भी करना पड़ता है। बॉलीवुड पर ही अगर हम एक नज़र डालें, तो सतीश कौशिक ने वर्ष 2003 में ‘तेरे नाम’ फिल्म बनाई, जो तमिल भाषा में बनी फिल्म सेतु (1999) का रीमेक थी। पुरी जगन्नाथ की लिखी व निर्देशित फिल्म ‘पोकिरी’ एक तेलुगू एक्शन फिल्म थी, जिसका हिंदी री-मेक ‘वॉन्टेड’ नाम से बनाया गया। बॉलीवुड की कई सुपरहिट फिल्में जैसे रेडी, बॉडीगार्ड, किक, वांटेड, सिंबा, गजनी, साथिया आदि तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम भाषा में बनी फिल्मों की ही रीमेक हैं। इन फिल्मों का अनुवादित संस्करण फिल्म की मूल आत्मा को बचाए रखने में सफल रहा जिसके कारण ये सभी फिल्में सुपरहिट की सूची में शामिल हुईं। लेकिन बॉलीवुड में ही ऐसी भी कुछ फिल्में हैं, जो किसी न किसी फिल्म की री-मेक है और वह सफल होने में पूरी तरह से असफल रहीं। फिल्म 'स्लीपिंग विद द एनिमी' की कहानी पर वर्ष 1995 में बॉलीवुड की फिल्म 'याराना' आई और फिर वर्ष 1996 में फिल्म 'दरार'। ये दोनों ही फिल्में फ्लॉप हुईं। खजाने की खोज की कहानी है ग्रेगरी पेक की 'मैकेनाज गोल्ड' जो वर्ष 1969 में आई। इस कहानी से प्रेरित बहुत सी फिल्में बनीं। बॉलीवुड में इस पर पहले वर्ष 1988 में 'जलजला' और फिर वर्ष 1992 में 'दौलत की जंग' रिलीज हुई। ये दोनों फिल्में भी फ्लॉप हुईं। इनके फ्लॉप होने के कारण को शायद दुबारा दोहराए जाने की आवश्यकता नहीं है।
फिल्मों के डबिंग में अनुवाद की भूमिका :
डबिंग यानी किसी एक कलाकार की आवाज को किसी दूसरे कलाकार की आवाज के रूप में प्रदर्शित करना। फिल्म जगत में डबिंग की प्रक्रिया बहुत पुरानी और महत्वपूर्ण है। एक ही फिल्म को विभिन्न भाषाओं में रिलीज करने के लिए फिल्म निर्माताओं को डबिंग का सहारा लेना पड़ता है, जिसमें अनुवाद की अहम भूमिका होती है। मुख्य रूप से डबिंग का अर्थ अनुवाद के माध्यम से अन्य भाषा में अंतरण करने से है। मूल भाषा में जब कोई फिल्म बनती है, तो उनके संवादों, गीतों आदि को डबिंग करते हुए अन्य भाषा या भाषाओं में संयोजित किया जाता है। इस प्रकार डबिंग एक भाषा से दूसरी भाषा में किए गए अनुवाद को दर्शकों एवं श्रोताओं तक पहुंचाने का माध्यम है।
डबिंग अनुवाद में यथासंभव यह प्रयास रहता है कि संवादों की अभिव्यक्तियों से भावों और विचारों का संप्रेषण लक्ष्य भाषा में हो जाए। डबिंग अनुवाद की प्रक्रिया के दौरान क्लोजशॉट में संवादों के भावों को बनाए रखने के साथ-साथ लॉंगशॉट के अनुवाद में थोड़ी स्वतंत्रता होती है। डबिंग अनुवाद के समय भाषा की मुखरता, गति, रवानी, मुहावरा आदि का ध्यान तो रखा जाता ही है, साथ ही अभिनेता या अभिनेत्री के मुख से निकली मूल भाषा की ध्वनियों से हुए होठों के अनुरूप संचालन (lip synchronization) का भी अधिकाधिक ध्यान रखना पड़ता है। दूसरे शब्दों में अनुवाद को इस ढंग से शैलीबद्ध करके उच्चरित किया जाता है कि डब करने वाले अभिनेता का उच्चारण पर्दे पर दिखाई देने वाले अभिनेता के होठों के संचालन से मेल खाए। इसके अलावा डबिंग-अनुवाद में संवादों के दौरान होठों के हिलने के साथ-साथ अभिनेताओं के चेहरे की भंगिमाओं और कंधे उचकाने या झटकाने जैसी शारीरिक चेष्टाओं का तालमेल भी लक्ष्य भाषा में प्रस्तुत संवादों से मिलाना होता है।[4]
डबिंग अनुवाद में संवादों का समय निर्धारण दो स्तर पर करना होता है – पहला, अक्षरों को बोलने का समय और दूसरा, शब्दों या वाक्यों के बीच आने वाले विराम का समय। वास्तव में डबिंग – अनुवाद की सफलता इस बात में है कि जब दर्शक फिल्म का डब किया हुआ संस्करण देखें, तब उन्हें यह पता न चले कि पर्दे में दिखाई देने वाला अभिनेता जो संवाद बोल रहा है, वह मूल भाषा में है या किसी अन्य भाषा में। डबिंग अनुवाद के समय भाषा की प्रकृति, संरचना, सामाजिक –सांस्कृतिक स्थिति, देश काल, लक्षण-व्यंजना आदि को तो ध्यान में रखना होता ही है, साथ ही पात्रों के अनुकूल भाषा को भी ध्यान में रखते हुए लक्ष्य भाषा में अभिव्यक्ति अपेक्षित होती है।
डबिंग अनुवाद ने फिल्म जगत को एक नया आयाम प्रदान किया है। डबिंग अनुवाद के अस्तित्व में आने से फिल्मों के री-मेक की आवश्यकता लगभग न के समान हो गई है। फिल्मों के री-मेक में एक बार किसी एक भाषा में बना दी गई किसी फिल्म को दुबारा उतनी ही राशि व्यय करके दूसरी भाषा में दर्शकों तक पहुंचाया जाता है। डबिंग अनुवाद का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें एक बार बना दी गई फिल्म को दुबारा बनाने के लिए पुन: उतनी ही राशि व्यय करने की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि किसी एक भाषा में बनाई गई फिल्म का दूसरी भाषाओं में अनुवाद और उस अनुवादित संवादों को डब करवाने के लिए पैसे खर्च करने की आवश्यकता होती है। यानी डबिंग अनुवाद ने फिल्म जगत को कम व्यय में अधिक लाभ का माध्यम प्रशस्त किया है।
डबिंग अनुवाद की इस कला का लाभ उठाते हुए हॉलीवुड ने जुरासिक पार्क, टाइटैनिक, होम अलोन, डीप-इंपेक्ट, मैन-इन-ब्लैक, अनाकोंडा, जंगल बुक जैसी उल्लेखनीय फिल्मों का हिंदी डब रिलीज किया, जिसे भारतीय दर्शकों द्वारा बहुत पसंद भी किया गया और हॉलीवुड का व्यापार भी काफी अधिक मात्रा में बढ़ा। इसी प्रकार हिंदी की अनेक फिल्में दक्षिण भारतीय भाषाओं में डब करके दिखाई जाती हैं और दक्षिण भारतीय भाषाओं की फिल्में हिंदी में डब करके उत्तर भारत में दिखाई जाती है। उत्तर भारतीय नागरिकों में दक्षिण भारतीय फिल्मों के प्रति रूझान का पूरा श्रेय डबिंग अनुवाद को जाता है। चाहे पुष्पा हो या बाहुबली दक्षिण भारतीय इन फिल्मों ने जिस मात्रा में लाभ अर्जन किया है, उससे कहीं अधिक मात्रा में इन फिल्मों ने उत्तर भारतीय नागरिकों के ह्रदय में अपनी जगह बनाई है। फिल्म जगत की वर्तमान स्थिति को देखते हुए यदि हम कहें कि एक ही फिल्म को कई भाषाओं में डब करने और रिलीज करने की परम्परा बन गई है, तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी।
सबटाइटलिंग में अनुवाद की भूमिका :
फिल्म जगत में सबटाइटलिंग और उसकी भूमिका पर विचार करने से पहले हमें एक बार डबिंग और सबटाइटलिंग के अंतर को समझ लेना चाहिए। डबिंग फिल्मों का मौखिक अनुवाद का रूप है और सबटाइटलिंग लिखित अनुवाद का स्वरूप है। अनुवाद के सिद्धांत के अनुसार एक ही भाषा में मौखिक भाषा से लिखित भाषा में कथ्य का अंतरण करना अंत:भाषिक अनुवाद है और एक भाषा से दूसरी भाषा में कथ्य का अंतरण करना अंतरभाषिक अनुवाद है। ऐसे अनुवाद समकालिक या तात्कालिक रूप में दर्शकों को फिल्म के संवाद का रूपांतरण प्रस्तुत करते है। अनुवाद – सामग्री की न केवल यह सबसे तीव्र और सस्ती पद्धति है वरन इसे प्राथमिकता भी दी जाती है, क्योंकि इससे मूल संवाद के पाठ को और अभिनेताओं की आवाज को देखा और सुना जा सकता है।[5]
फिल्मों के री-मेक और डबिंग अनुवाद तथा सबटाइटल के अनुवाद में यह अंतर है कि फिल्म के री-मेक और डबिंग के उद्देश्य से किए जाने वाले अनुवाद में कला, संस्कृति, सभ्यता, भाव-भंगिमा, पात्र आदि सभी बातों का ध्यान रखना पड़ता है, लेकिन सबटाइटल के अनुवाद में केवल भाव की अभिव्यक्ति कर पाना ही अनुवादक की सफलता होती है। किसी एक भाषा में बनाई गई फिल्म को विभिन्न भाषाओं में सबटाइटल के साथ रिलीज करना फिल्म जगत की अन्य परम्पराओं में से एक है। री-मेक और डबिंग की तरह ही सबटाइटलिंग फिल्म निर्माण की एक पद्धति है। फिल्म निर्माण की यह पद्धति री-मेक और डबिंग की तुलना में कम खर्चीला है क्योंकि इसमें केवल संवादों के अनुवाद पर व्यय किया जाता है और एक ही भाषा में फिल्म रिलीज की जाती है, जिसमें विभिन्न भाषाओं के सबटाइटल उपलब्ध होते हैं। लेकिन इस तथ्य को भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि फिल्म निर्माण की यह पद्धति अन्य भाषा-भाषी दर्शकों को समझ तो आ जाती है, लेकिन अन्य पद्धतियों की तुलना में यह कम प्रभावी है।
हालांकि सबटाइटल का अनुवाद डबिंग अनुवाद की तुलना में कम कठिन है, किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि यह अन्य लिखित अनुवाद की तरह सीधा और सरल है। सबटाइटल का अनुवाद लिखित पाठ के अनुवाद से सामान्यता भिन्न है। किसी भी फिल्म के सबटाइटल के अनुवाद के दौरान अनुवादक द्वारा चित्र और श्रव्य के प्रत्येक वाक्य का विश्लेषण किया जाता है। अनुवाद की इस प्रक्रिया में संवाद के रूप की अपेक्षा अर्थ पर अधिक ध्यान दिया जाता है। इसलिए अनुवादक के समक्ष दोहरी चुनौती होती है कि वह एक तो मूल संवाद के भाव को सुरक्षित रख सके तथा दूसरा सबटाइटल संक्षिप्त भी हो ताकि दर्शक दृश्य की गति के साथ पढ़कर अर्थ ग्रहण कर सके। हालांकि कई बार इस प्रकार के अनुवाद में अनावश्यक शाब्दिक विस्तार होता है और इसमें सांस्कृतिक अर्थ का संप्रेषण भी नहीं हो पाता है। इसके अलावा सबटाइटल के अनुवाद में निर्धारित पठन गति प्राप्त करने के लिए संवाद को संक्षिप्त करना पड़ता है, जिसमें संवाद के रूप की अपेक्षा उसका प्रयोजन अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।
सबटाइटलिंग अनुवाद विभिन्न भाषाओं में बनाई गई फिल्मों को समझने में दर्शकों के लिए सहायक है। दर्शकों की संख्या में वृद्धि के उद्देश्य से विश्व स्तर पर रिलीज हो रही भारतीय और विदेशी भाषाओं की फिल्में सबटाइटल अनुवाद के साथ दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत की जा रही है।
निष्कर्ष : स्पष्ट है कि फिल्मों को वैश्विक रूप प्रदान करने में अनुवाद अपनी अहम भूमिका का निर्वहन कर रहा है। चाहे री-मेक के माध्यम से हो अथवा डबिंग अनुवाद के माध्यम से या फिल्मों के सबटाइटल का अनुवाद, इन तीनों पद्धतियों ने फिल्म जगत में एक क्रांति लाने का कार्य किया है। अनुवाद की इन प्रणालियों ने न केवल फिल्मों के क्षेत्र का विस्तार किया है बल्कि विभिन्न भाषाओं से जुड़ी संस्कृति को फिल्मों के माध्यम से विश्व स्तर तक पहुंचाने का कार्य किया है। अनुवाद के कारण फिल्म जगत के व्यवसाय में वृद्धि तो हुई है, साथ ही देश-विदेश के लोग विभिन्न भाषा, संस्कृति, सभ्यता, परम्परा आदि से भी परिचित हो रहे हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि फिल्म जगत में अनुवाद समय की मांग है और यह फिल्मों का एक अभिन्न अंग बन चुका है, जिसके माध्यम से फिल्म उद्योग का निरंतर विकास हो रहा है और बाजारवाद में फिल्मों को वैश्विक पहचान मिल रही है।
1. सृजनात्मक साहित्य के अनुवाद की समस्याएं : नैमिचंद्र जैन, हिंदी अनुवाद विमर्श भाग -2, साहित्य अकादमी
2. गौतम उपासना, फिल्म और वृत्तचित्र में अनुवाद की भूमिका : Academic Social Research – VOL.4.NO.1(2018) JAN TO MARCH,
4. House, Juliana. 1977 Model for Translation Quality. TBL, Verlag.
[1] सृजनात्मक साहित्य के अनुवाद की समस्याएं : नैमिचंद्र जैन, हिंदी अनुवाद विमर्श भाग -2, साहित्य अकादमी पृष्ठ संख्या 736
[2] फिल्म और वृत्तचित्र में अनुवाद की भूमिका : उपासना गौतम, Academic Social Research – VOL.4NO.1(2018)JAN TO MARCH, Page Number 166
[4] House, Juliana. 1977 Model for Translation Quality. TBL,Verlag.
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