शोध आलेख : अनुवाद के उपकरण / सुमित पी. वी.

अनुवाद के उपकरण
- सुमित पी.वी
शोध सार : अनुवाद की संकल्पना आज विश्व व्यापक हो चुकी है। अत: अनुवादक का दायित्व बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। असल में अनुवाद को तुलनात्मक भाषाविज्ञान की शाखा के रूप में माना जाता रहा है। अनुवाद असल में मनुष्य को जोड़ने का कार्य करता है। पुराने जमाने से कहीं अधिक आज अनुवाद की भूमिका हमारी जिन्दगी में है। अनुवाद को अनदेखा करते हुए हम वर्तमान समय को पूरी तरह नहीं समझ पाएंगे। यानी हमारे इस युग को अनुवाद का युग कहने में कोई दो राय नहीं है। भूमंडलीकरण, बाजारवाद और सूचना क्रांति के परिवेश में अनुवाद सिर्फ एक सिद्धांत बन कर नहीं रहा बल्कि उसकी महत्ता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अनुवाद के उपकरण - माने जिनका प्रयोग करने पर अनुवादक का काफी समय और ऊर्जा बच सकती है। यदि वह जानता है कि अपना कर्तव्य अधिक प्रभावी ढंग से कैसे निभा सकता है तो उसे न केवल अपने काम का आनंद मिलेगा, बल्कि उसके ग्राहक को भी संतुष्टि मिलेगी। इस लेख के माध्यम से अनुवादक के कार्य को अधिक प्रभावी बनाने में सहायक उन महत्त्वपूर्ण उपकरणों की जानकारी देना वांछित है जिनके बारे में अधिकांश लोग अनभिज्ञ रहते हैं।

बीज शब्द : अनुवाद, कंप्यूटर, उपकरण, स्रोतभाषा, लक्ष्यभाषा, अनुवादक, कोश, विश्वकोश, पाठ प्रस्तुति उपकरण, पारिभाषिक शब्दावली

मूल आलेख : पिछले लगभग बीस साल से अनुवाद का विद्यार्थी होने के नाते मैं इसे केवल एक सामान्य कार्य नहीं मानता हूं। जो व्यक्ति अनुवाद कार्य को बिलकुल कायदे से करता होगा उसकी नींद खराब होनी तय है। क्योंकि अनुवाद एक ऐसा महत्त्वपूर्ण कार्य है, जिसमें अनुवादक कितना भी अव्वल दर्जे का हो कभी न कभी किसी शब्द को लेकर परेशान रहा होगा। शाब्दिक अनुवाद की अपेक्षा जो अनुवादक भावानुवाद पर जोर देता है, उसके लिए तो यह कार्य कठिन जरूर होगा। किसी ने सही कहा है – “Translation is a custom-house through which passes, if the custom officers are not alert, more smuggled goods of foreign idioms, than through any other linguistic frontier.”1 मैंने अपने अध्ययन के दौरान जितनी परिभाषाओं को जाना, उनमें से अनुवाद के लिए सबसे उपयुक्त परिभाषा के रूप में इसी को मानता हूं क्योंकि अनुवादक असल में अपने कार्य के सिलसिले में कस्टम अधिकारी ही होता है। अपने कार्य में जितनी सतर्कता बरतने की आवश्यकता उसे होती है उतनी अगर नहीं बरती जाती है तो दुर्घटना तो घटेगी ही। अनुवाद कार्य सड़क पर गाड़ी चलाने जैसा, आसमान में हवाई जहाज चलाने जैसा, समुंदर में नाव चलाने जैसा दुष्कर जरूर है। अनुवादक को अपने कार्य को सुचारु ढंग से चलाने हेतु कई उपकरणों का इस्तेमाल करना पड़ेगा। जिससे उसे काम को आगे बढ़ाने में सुविधा तो मिलेगी ही उसके साथ भविष्य के पाठक-अनुवादकों के सामने प्रभावी अनुवाद कार्य प्रस्तुत करने में सहायता भी मिलती है। “वास्तविक अनुवाद की अवधारणा यानी संपूर्ण संप्रेषण प्रक्रिया (total communication process) के अंतर्गत स्रोत भाषा पाठ के कथ्य/संदेश और अभिव्यक्ति शैली की लक्ष्य भाषा में निकटतम समतुल्य प्रस्तुति शामिल है। यह अनूदित पाठ को ‘closest natural equivalent’ (निकटतम सहज समतुल्य) अस्तित्व प्रदान करती है क्योंकि एक भाषा में कही गई बात को दूसरी भाषा में समान रूप से प्रस्तुत करना कठिन होता है।”2

संसार में छह हजार से ज्यादा भाषाएं हैं, उन भाषाओं की अपनी अलग-अलग विशेषताएं होनी भी तय हैं। अनुवाद प्रक्रिया के दौरान स्रोत भाषा की सामग्री के लक्ष्यभाषा में अनूदित हो जाने की संभावना तो है, लेकिन वह अनुवाद अगर अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सका तो क्या किया जाए। यानी अनुवाद प्रक्रिया के बाद अनूदित साहित्य का अर्थ हमेशा सही हो जाता है फिर भी कभी-कभार अर्थ परिवर्तित हो जाता है या फिर अर्थ का अनर्थ हो जाता है। “अनुवाद, मूल को पुन: सृजित करता है। किंतु अनुवाद में कभी-कभी मूल का-सा आनंद नहीं आ पाता और कभी-कभी अनूदित पाठ मूल से भी अधिक प्रसिद्ध होकर नोबल पुरस्कार तक प्राप्त करने का निमित्त बन जाता है।”3

चूंकि अनुवाद भाषाओं से संबंधित गतिविधि है, इसलिए इस गतिविधि में उपयोगी अधिकांश उपकरण भाषाई उपकरण हैं। इसके अलावा, गैर-भाषाई लेकिन बौद्धिक उपकरणों का भी इस कार्य में समान महत्त्व होता है। इस गतिविधि में कई भाषाओं का, कम से कम स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा का ज्ञान बुनियादी बौद्धिक भाषाई उपकरण है जिसके बिना कोई भी अनुवाद और कोई भी अनुवादक आगे नहीं बढ़ सकता। इसके साथ ही, यदि किसी के पास इस कार्य के लिए आवश्यक विशेष प्रतिभा और गुण विद्यमान है, तो काम अधिक आसान होगा। इन बौद्धिक भाषाई उपकरणों के अलावा, बौद्धिक गैर-भाषाई उपकरण जैसे संबंधित विषय का ज्ञान, अनुवाद के क्षेत्र में अनुभव और सहकर्मी जिनके साथ कोई जरूरत पड़ने पर बातचीत की जा सकती है आदि भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण उपकरण हैं।

भौतिक उपकरणों में, शब्दकोश, व्याकरण ग्रंथ, संदर्भ सामग्री और अन्य विभिन्न प्रकार की जानकारी जैसे भाषाई उपकरण अनुवादकों के कार्य को अपेक्षाकृत आसान बनाते हैं। कोई भी अनुवादक इन उपकरणों को पूरी तरह नजरअंदाज नहीं कर सकता और ऐसा करता है तो वह अपने काम में पूरी तरह सफल नहीं हो सकता। इस क्षेत्र में यांत्रिक उपकरणों का आगमन आज प्रबल रूप से हुआ तो है। डेटा लिंक और कम्प्यूटरीकृत शब्दकोश जैसे भाषाई यांत्रिक उपकरण पूरी तरह से विकसित हो चुके हैं। कंप्यूटर और मोबाइल फोन जैसे गैर-भाषाई यांत्रिक उपकरण आजकल आमतौर पर उपयोग किए जा रहे हैं, साथ ही साथ डिक्टेटिंग मशीन, कॉपी करने वाली मशीनें, इलेक्ट्रॉनिक भंडारण और पुनर्प्राप्ति मशीनें भी अनुवाद के संदर्भ में इस्तेमाल की जा रही हैं। इन उपकरणों का प्रयोग व्यक्तियों के लिए कम और संस्थानों के लिए अधिकतर किया जा रहा है।

उपर्युक्त विभिन्न उपकरणों का वर्गीकरण निम्नलिखित चित्र में हम देख सकते हैं और उसके महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर आगे विस्तार से चर्चा किया जाएगा –

1. बौद्धिक उपकरण -

1) भाषाओं का पर्याप्त ज्ञान - अनुवाद किसी पाठ का दूसरी भाषा में रूपांतरण की प्रक्रिया है। दूसरे शब्दों में जब एक भाषा में लिखे किसी पाठ को दूसरी भाषा में प्रस्तुत या पुनः लिखा जाता है तो उसे अनुवाद कहा जाता है। मूल पाठ की भाषा को स्रोत भाषा और जिस भाषा में इस पाठ को अनूदित किया जाना अपेक्षित है उसे लक्ष्य भाषा कहा जाता है। इस प्रकार, अनुवाद प्रक्रिया में कम से कम दो भाषाएँ शामिल होती हैं।

कभी-कभी, इसमें तीन भाषाएँ भी शामिल हो सकती हैं। मूल पाठ ऐसी भाषा में लिखा जा सकता है जिसे अनुवादक नहीं जानता हो। चूँकि अधिकांश भाषा पाठ आजकल किसी न किसी अंतरराष्ट्रीय भाषा (विशेष रूप से अंग्रेजी, फ्रेंच या जर्मन आदि) में प्रस्तुत किए जाते हैं, अनुवादक इस मध्यस्थ भाषा के माध्यम से पाठ तक पहुंच सकता है। यदि अनुवादक मूल भाषा भी जानता है और उस पाठ को उसके अंग्रेजी या फ्रेंच अनुवाद के साथ अपने सामने रखता है तो स्पष्ट रूप से वह बहुत अच्छा अनुवाद कर सकेगा। अनुवादक को स्रोत भाषा या मध्यस्थ भाषा (या दोनों) का अच्छा ज्ञान होना चाहिए ताकि वह मूल पाठ का अर्थ सही ढंग से समझ सके। तभी वह पाठ का लक्ष्य भाषा में निष्ठापूर्वक अनुवाद कर सकेगा। “अनुवाद बुनियादी तौर पर हमारी सभ्यता के आदिम पेशों में से एक है और अनुवादक आदिम पेशेवर। अनुवाद के आदिम और अनगढ़ रूप से आधुनिक स्वरूप तक की विकासयात्रा वस्तुत: अनुवाद के स्वभाव में निहित नवोन्मेष तथा सृजनशीलता का परिचायक होती है। इसी स्वभाव के बल पर अनुवाद आज न केवल भाषाओं के बीच के संवाद का माध्यम बना है, बल्कि दो समुदायों, राष्ट्रीयताओं और देशों को समझने और उनके मत-मतांतरों को जानने का जरूरी औजार भी बन गया है।”4

अधिक भाषाओं को सफलतापूर्वक जानने और उनका उपयोग करने की क्षमता निश्चित रूप से एक अनुवादक के लिए बड़ी मददगार होगी। लेकिन भाषाएँ सीखने की अपनी सीमाएँ हैं। इसलिए, यह बेहतर होगा कि अनुवादक उस भाषा का विस्तृत ज्ञान प्राप्त कर ले जिससे उसे अक्सर अनुवाद करने की आवश्यकता होती है।

2) विशेष प्रतिभा और गुण - यह अक्सर कहा जाता है कि अनुवादक पैदा होते हैं, बनाए नहीं जाते और प्रशिक्षण उन्हें केवल अधिक कुशल बना सकता है। इसका मतलब यह है कि अनुवादक के पास कुछ जन्मजात प्रतिभाएँ और गुण होते हैं। प्रतिभा का अर्थ है कुछ भी करने की उच्च स्वाभाविक क्षमता। अपनी उच्च मानसिक क्षमता के कारण एक प्रतिभाशाली व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। अच्छे अनुवादक में उच्च मानसिक योग्यताओं के साथ-साथ कुछ विशेष गुण भी होते हैं।

केवल बुद्धिमान व्यक्ति उच्च मानसिक क्षमता रख सकता है। बुद्धि का अर्थ है मनुष्य के सोचने की क्षमता। अनुवाद प्रक्रिया में कई बार शब्दों, वाक्यांशों और अभिव्यक्तियों को तुरंत याद करने की आवश्यकता होती है। यह व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता पर निर्भर करती है। बिना समझे अनुवादक वैज्ञानिक और तकनीकी पाठों का अनुवाद नहीं कर पायेगा। इसके लिए उसमें तार्किक सोच और विश्लेषणात्मक सटीकता की क्षमता होनी चाहिए। उसके बौद्धिक प्रयास में तर्क और विश्लेषण का महत्त्वपूर्ण स्थान होना चाहिए।

अनुवादक के अंदर हमेशा जिज्ञासा का गुण होना बहुत जरूरी है। उसे पता होना चाहिए कि उसके क्षेत्र में क्या हो रहा है, उसे अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। अनुवादक में धैर्य भी होना चाहिए क्योंकि उसे केवल एक नहीं बल्कि दो भाषाओं की जटिलता के बीच से अपना रास्ता निकालना होता है। कभी-कभी उसे सही अभिव्यक्ति के लिए धैर्यपूर्वक इंतजार करना पड़ता है या स्रोत पाठ में छिपे तार्किक पैटर्न की खोज करनी पड़ती है।

3) विषय का ज्ञान - अनुवादक को वह जिस नयी भाषा में काम करना चाहता है, उसे लगातार पढ़ना चाहिए और अपनी रुचि के विषयों पर संदर्भ नोट्स भी तैयार करने चाहिए। उसे उन विषयों पर पुस्तकों, पत्रिकाओं, रिपोर्टों, शोध पत्रों और तकनीकी शब्दावलियों के साथ अपनी लाइब्रेरी का भी विकास कर लेना चाहिए।

यह सूचना-प्रसार का युग है और आम आदमी के लिए भी ज्ञान का विशाल भंडार हर दिन खुल रहा है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी रोजमर्रा की जिंदगी में भी बदलाव ला रही है और हमारी सभी अवधारणाएं तेजी से बदल रही हैं। भाषाओं में नये शब्द और अभिव्यक्तियाँ जोड़ी जाती हैं। मेमोरी जो मानव मस्तिष्क का एक गुण था, आज कंप्यूटर की भंडारण क्षमता पर भी लागू होती है। किसी भी व्यक्ति के लिए सभी विषयों का ज्ञान प्राप्त करना असंभव है। अब विशेषज्ञता का समय है और अनुवादक को भी यह तय करना होगा कि वह किन विषयों और किन विशेष शाखाओं में काम करना चाहता है। इस निर्णय के बाद उसे उस विषय का नवीनतम ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करने के साथ स्वयं के संसाधनों का निर्माण कर लेना चाहिए। “अनुवाद करते समय एक (स्रोत) भाषा के पाठ (सामग्री) को दूसरी (लक्ष्य) भाषा में प्रस्तुत किया जाता है। लेकिन यह प्रस्तुति, स्रोत भाषा सामग्री का लक्ष्य भाषा में केवल शब्दों का अंतरण मात्र नहीं होता है। अनुवाद करते समय, शब्दार्थ के साथ-साथ मूल आशय (कथ्य) का भी अंतरण होता है। इसीलिए यह स्वीकार किया जाता है कि अनुवाद में स्रोत भाषा का नहीं बल्कि पाठ के कथ्य का अंतरण होता है। अनुवादक यह अंतरण, स्रोत भाषा के शब्दों-वाक्यों आदि के साथ सामंजस्य बैठाते हुए करता है। लेकिन सामंजस्य की इस प्रक्रिया में सटीक शब्दावली/पर्याय के चयन एवं प्रयोग का विशेष महत्त्व है।”5

4) अनुभव - लोग शौकिया अनुवादक के बजाय अनुभवी अनुवादक पर भरोसा करते हैं। खासकर यदि दस्तावेज़ संवेदनशील प्रकृति का हो, या फिर कोई विशेष पाठ जो गंभीर अनुवाद की मांग करता हो तो अनुभवी अनुवादक का अनुभव काम आता है। स्वाभाविक रूप से, अनुवादक अपने ग्राहकों को खुश कर सकता है और अपने व्यापार और अभ्यास को केवल इस कड़ी मेहनत से अर्जित परिपक्वता के साथ आगे बढ़ा सकता है। अनुभव और उसके साथ आने वाली परिपक्वता के बलबूते, वह अपने कार्य में आने वाले नुकसानों का पूर्वानुमान लगाकर उनसे बच सकता है। वह भाषाओं का ज्ञाता हो जाता है और स्रोत के समतुल्य भाव उसे आसानी से आ जाते हैं। वह ज्ञान का विशाल भण्डार बन जाता है और स्वाभाविक रूप से अनुवाद जीवंत हो जाता है।

5) सहकर्मी-समूह - अनुभव के साथ अनुवादक ज्ञान का भंडार बन जाता है, परंतु वह सर्वज्ञ नहीं बन पाता। यूं तो हर अनुवादक को कभी न कभी दूसरों की मदद लेनी ही पड़ती है। उसे ऐसी मदद माँगने में कभी शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए। संदर्भ के लिए किसी पाठ को समझने या उसका पता लगाने में आमतौर पर सहायता की आवश्यकता होती है। अनुभवी अनुवादक इस क्षेत्र में नये अनुवादकों के लिए सहायक हो सकता है। एक अनुवादक को इतना विनम्र होना चाहिए कि वह अपनी अज्ञानता को स्वीकार कर सके, चाहे वह किसी भी क्षेत्र या उप-क्षेत्र में अज्ञानी हो। इससे उसका काफी समय और ऊर्जा बचेगी, अन्यथा उसे अपनी समस्या के समाधान के लिए अनावश्यक खोज पर समय बरबाद करना पड़ सकता है। जो लोग समान सामग्री पर काम करने में लगे हैं उनके बीच विचारों का आदान-प्रदान हमेशा अच्छा होता है। अनुवादकों को संघ बनाकर बार-बार मिलना चाहिए और विचारों का आदान-प्रदान करना चाहिए। उसे देखना चाहिए कि दूसरे कैसे काम करते हैं, और इससे लाभान्वित होना चाहिए। कठिनाई के समय, व्यक्ति हमेशा बहुभाषियों और विशेषज्ञ विश्लेषकों का सहारा ले सकता है।

2. यांत्रिक उपकरण -

1) अनुवाद करने वाली मशीनें - पिछली कई सदियों में इलेक्ट्रॉनिक्स का विकास त्वरित गति से हो रहा है। फलस्वरूप कंप्यूटर जैसी मशीनों का आकार छोटा हो गया। कंप्यूटर तार्किक सोच के आधार पर अत्यधिक जटिल कार्य और गणना को पूरा करने की क्षमता वाली मशीन है। पहले कंप्यूटर केवल गणितीय संक्रियाओं के लिए उपयोग किया जाता रहा है। लेकिन आज स्थिति बदल गयी है। इस क्षेत्र के शोधकर्ताओं ने उत्साहपूर्वक मशीनी अनुवाद की संभावनाओं पर विचार किया। मशीनी अनुवाद यानी कंप्यूटर द्वारा स्रोत भाषा को लक्ष्य भाषा में रूपांतरित करना। लेकिन इस दिशा में हमें और आगे जाने की जरूरत है।

सबसे बड़ी कठिनाई इस बात की होती है कि मशीन को संदर्भ का पता कराना कठिन नहीं नामुमकिन जैसा लगता है। मशीन को संदर्भ समझना है तो उसे प्रतीकात्मक तरीके से जानकारी प्रदान करनी होगी। इसके लिए बड़ी मात्रा में जानकारी को कंप्यूटर में फीड करने की आवश्यकता होती है। तकनीकी ग्रंथों का मशीनी अनुवाद अब काफी आगे बढ़ चुका है। आपको केवल कंप्यूटर में फीड करने के लिए टेक्स्ट तैयार करना या पूर्व-संपादित करना होता है। पूर्व-संपादन का अर्थ वास्तव में एक शब्दकोश तैयार करना है जो किसी शब्द के संभावित अर्थों और कार्यों को छांटने में सक्षम हो।

2) कम्प्यूटरीकृत शब्दकोश - मुद्रित पृष्ठों के स्थान पर जब कोई शब्दकोश कंप्यूटर की मेमोरी में संगृहीत किया जाता है तो उसे कंप्यूटरीकृत शब्दकोश कहा जाता है। एक मुद्रित शब्दकोश में आपको सबसे पहले उस वर्णमाला पर जाना होगा जिसमें दिया गया शब्द है और तब तक पृष्ठों को पलटते रहना होगा जब तक आपको वह शब्द नहीं मिल जाता। कम्प्यूटरीकृत शब्दकोशों में, आप बस शब्द टाइप कर सकते हैं, और यदि कंप्यूटर की मेमोरी में वह शब्द संगृहीत है तो प्रासंगिक जानकारी के साथ स्वचालित रूप से उस शब्द का पता चल जाएगा। एक कम्प्यूटरीकृत शब्दकोश को इस तरह से संरचित किया जा सकता है ताकि वह अपने उपयोगकर्ताओं को वांछित स्तर पर सहायता प्रदान कर सके। कंप्यूटर मेमोरी में संगृहीत एक साधारण शब्दकोश का वर्णानुक्रम में व्यवस्थित शब्द सूची के रूप में उपयोग किया जा सकता है। इसी शब्दकोश में शब्दों को उनके अर्थ के अनुसार व्यवस्थित किया जा सकता है ताकि इसे थिसॉरस के रूप में उपयोग किया जा सके। एक अनुवादक जिस पाठ का अनुवाद करने जा रहा है उसे पढ़ते समय ही वह कठिन शब्दों, वाक्यांशों, अभिव्यक्तियों आदि को टाइप कर उनका अनूदित रूप प्राप्त कर सकता है।

कुछ परीक्षणों से पता चला है कि जब पारंपरिक शब्दकोशों के बजाय कम्प्यूटरीकृत शब्दकोशों का उपयोग किया जाता है तो 50% से अधिक समय की बचत होती है। यह भी बताया गया है कि किसी निश्चित अनुवाद के लिए कंप्यूटर में विशेष रूप से संगृहीत शब्दावली या कोश की सहायता से अनुवादक के आउटपुट को 50% तक बढ़ाया जा सकता है।

वर्तमान में भारतीय भाषाओं के उपयोग के लिए आवश्यक सॉफ्टवेयर के साथ-साथ हार्डवेयर भी विकसित किए जा चुके हैं और कई कंप्यूटर-आधारित शब्दकोश भी उपलब्ध हैं। इस तरह के शोध में अनुप्रयोग की जबरदस्त संभावनाएं हैं और यह अनुवाद के छात्र को ऐसी चुनौतियों को गंभीरता से लेने का अवसर प्रदान करता है।

3) डेटा लिंक - हालाँकि एक पर्सनल कंप्यूटर में कई शब्दकोश एवं उपयोगी डेटा को संगृहीत किया जा सकता है, इसकी सीमाएं भी हैं। असल में कंप्यूटर, अनुवादक के लिए उपयोगी सारी सूचनाओं को संगृहीत नहीं कर सकता है। लेकिन बड़े, महंगे और अधिक शक्तिशाली कंप्यूटर हैं, जिन्हें केवल राष्ट्रीय स्तर के संस्थान ही खरीद सकते हैं। ऐसे संदर्भों में बड़े कंप्यूटर, केंद्रीय संपर्क बिंदु के रूप में काम कर सकते हैं और व्यक्तिगत अनुवादक अपनी मशीनों को इस केंद्रीकृत कंप्यूटर से जोड़ सकते हैं, जिसमें किसी विशेष कार्य से संबंधित जानकारी संगृहीत रहती है। अनुवादक अपने व्यक्तिगत कंप्यूटर के माध्यम से, ऐसे नेटवर्क से अपनी समस्याओं का समाधान बिना अपने स्थान से हटे या बिना समय बर्बाद किए पा सकता है। ऐसे डेटा लिंक की शृंखला भी हो सकती है। यानी अनुवादकों को आवश्यक डेटा के लिए एक-दूसरे तक पहुंचने में आज कोई बाधा नहीं है।

भारत में आज इस तरह डेटा लिंक के माध्यम से कार्य हो रहा है और उसका नतीजा भी बिलकुल प्रभावकारी है। कुछ क्षेत्रों में, राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र या एनआईसी और अन्य एजेंसियों के माध्यम से, सूचना-प्रसारण के लिए इस प्रकार के संबंध पहले से ही विकसित किए जा चुके हैं। उदाहरण के लिए, मौसम की भविष्यवाणी और आपदा की चेतावनी के मामले में या रक्षा-सुरक्षा के लिए ऐसे नेटवर्क भारत में पहले से ही काम कर रहे हैं।

4) डिक्टेशन मशीन/डिक्टा फोन - किसी प्रोफेशनल या व्यस्त व्यक्ति के लिए पहले हस्तलिखित मसौदा तैयार करना और फिर टाइप करना आदि समय की बर्बादी है। तकनीकी अनुवादों में समय अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होता है। ऐसे मामलों में, यदि अनुवादक किसी को कहकर लिखवाएं तो काम आसान हो जाता है, या फिर मशीन, डिक्टाफोन या टाइपिस्ट से टाइप कराएं तो भी बेहतर होगा। इससे अनुवादक का कम से कम 25% समय बच जाता है अन्यथा वास्तविक अनुवाद करने में उसे तकलीफ होगी। हमें याद रखना होगा कि अनुवाद एक रचनात्मक कार्य है जो किसी टंकक या आशुलिपिक के कार्य से बढ़ कर ऊर्जा की मांग करता है।

डिक्टेटिंग मशीन कई तरह की सुविधाएं अनुवाद कार्य में अपलब्ध कराती है। माइक्रोफोन में रिवाइंड, फास्ट फॉरवर्ड या मिटाने की सुविधा है ताकि गलतियों को सही कर सकें। इसे टाइपिस्ट की सुविधानुसार धीरे-धीरे और निश्चित समय अंतराल में सुनाया भी जा सकता है। वर्तमान में एक मोबाइल फोन से ही ये सारे काम आसानी से किये जा सकते हैं।

5) कॉपी करने वाली मशीनें - जहां अनुवाद की कई प्रतियों की आवश्यकता पड़ती है, वहां फोटोकॉपी या ज़ेरॉक्स मशीनों का उपयोग करना हमेशा बेहतर होता है। विशेष रूप से ऐसे मामलों में जहां पाठ को एक बाउंड वॉल्यूम के रूप में ज़ेरॉक्स करने पर बाएँ हाशिए के निकट के पाठ धुंधले हो जाते हैं। ऐसे में अक्षरों को पहचानने में अनुवादक को अनावश्यक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। व्यावसायिक अनुवाद के संदर्भ में किसी पाठ की प्रतिलिपि बनाते समय कॉपीराइट अधिनियम का पालन करना चाहिए। ऐसे मामलों में मूल लेखक से लिखित अनुमति प्राप्त की जानी चाहिए।

कंप्यूटर वैज्ञानिकों ने जब स्कैनर को विकसित किया तो उसके माध्यम से पाठ को कंप्यूटर मेमोरी में कॉपी करने की सुविधा मिली। इस तरह के स्कैनर जरूर अनुवादकों के लिए मददगार साबित होंगे, उसके अलावा शैली वैज्ञानिकों, पाठ विश्लेषकों, भाषा वैज्ञानिकों के साथ-साथ रक्षा अनुसंधान में काम करने वाले सामग्री विश्लेषकों के लिए भी उपयोगी उपकरण बन गये हैं।

6) पाठ प्रदर्शन उपकरण - गतिविधि के रूप में अनुवाद सिखाने के लिए, कभी-कभी अन्य यांत्रिक उपकरणों जैसे एपिस्कोप का उपयोग किया जाता है। यह दीवार या स्क्रीन पर मुद्रित पृष्ठ को प्रस्तुत करता है। वैकल्पिक रूप से किसी ओएचपी या ओवर हेड प्रोजेक्टर के माध्यम से दीवार पर या स्क्रीन पर टेक्स्ट को प्रोजेक्ट भी किया जा सकता है।

7) भंडारण और पुनर्प्राप्ति मशीन - कंप्यूटर जैसे उपकरणों से अलग आज कई तरह के इलेक्ट्रॉनिक भंडारण और पुनर्प्राप्ति उपकरण (एक्सटर्नल हार्ड ड्राइव, मेमोरी कार्ड, फ्लैश कार्ड) उपलब्ध हैं। अगर अनुवादक अपने पास इस तरह के उपकरण रखते हैं तो वे आराम से अपने कार्य हेतु सामग्री, ई-शब्दकोश आदि का संग्रहण कर उनका प्रयोग आवश्यकतानुसार करने में सक्षम होगा।

टेलीफोन-मोबाइल फोन और संचार के अन्य साधन - किसी तकनीकी अनुवादक के लिए अपने ग्राहकों से संपर्क स्थापित करना बहुत जरूरी होता है, इस संदर्भ में समय की बचत के लिए टेलीफोन या मोबाइल की सख्त जरूरत पड़ती है। वर्तमान में सामग्री को संदेश या चित्र आदि रूपों में प्राप्त करने हेतु कई मोबाइल ऐप सुविधाएं उपलब्ध हैं।

3. भौतिक उपकरण -

1) शब्दकोश और शब्दावलियां - सभी अनुवादक चाहे वे तकनीकी सामग्री का अनुवाद कर रहे हों या साहित्यिक पाठ का, हमेशा अच्छे शब्दकोश की आवश्यकता होगी। एकभाषी शब्दकोश किसी दी गई भाषा में शब्दों के अर्थ समझाते हैं और आपको बताते हैं कि उन लोगों के लिए किसी विशेष शब्द का क्या मतलब है जो इसे अपनी मातृभाषा के रूप में उपयोग करते हैं। आमतौर पर इन शब्दकोशों को संबंधित भाषा के विशेषज्ञों की एक समिति द्वारा संकलित किया जाता है और इसलिए यह अनुवादक के लिए किसी दिए गए शब्द का सटीक अर्थ और उपयुक्त व्याख्याओं को उपलब्ध कराने में अधिक विश्वसनीय और उपयोगी हो सकता है। इससे अनुवादक को स्रोत भाषा के पाठ को अधिक स्पष्ट रूप से समझने में मदद मिलती है।

लक्ष्य भाषा में समकक्ष शब्दों का पता लगाने के लिए अनुवादक को द्विभाषी शब्दकोश की भी आवश्यकता होती है। स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा में द्विभाषी शब्दकोश हमेशा अनुवादक का समय बचाता है। इसलिए, इसे अनुवादक के लिए आवश्यक उपकरण माना जा सकता है। इसी तरह विशेष तकनीकी शब्दकोश उस क्षेत्र के अनुवादक के लिए बड़े मददगार साबित होते हैं। वर्तमान अधिकांश अनुवादक जो कंप्यूटर के माध्यम से स्रोत पाठ को लक्ष्य पाठ में रूपांतरित करते हैं ऑनलाइन शब्दकोशों का सहारा लेते हैं। जैसे – केंब्रिज शब्दकोश, शब्दकोश, विक्षनरी आदि।

जिस शब्दकोश को समय-समय पर संशोधित नहीं किया जाता है उसे तब तक एक आदर्श उपकरण नहीं कहा जा सकता जब तक उसमें नवीनतम जानकारी का अभाव हो। लेकिन यह एक सामान्य बात है कि दूसरे किसी प्रदेश में बोली जाने वाली भाषाओं के शब्दकोशों को इतनी बार और इतने व्यवस्थित रूप से संशोधित करना भी कई बार संभव नहीं होता।

यहीं पर शब्दावलियाँ अनुवादक को आवश्यक सहायता प्रदान कर सकती हैं। उनमें कठिन शब्द या किसी व्याख्या को समझाने के लिए कोई टिप्पणी आदि संगृहीत होते हैं। शब्दावली, शब्दकोश से इस अर्थ में भिन्न है कि इसमें उच्चारण, व्युत्पत्ति, व्याकरण संबंधी जानकारी आदि जैसी कई चीजें शामिल नहीं होती हैं। शब्दावलियों का निर्माण आज बढ़ रहा है। वे पुस्तकों, पत्रिकाओं, रिपोर्टों, शोध प्रबंधों आदि में दिखाई देती हैं। वर्तमान में ये सारी सुविधाएं ऑनलाइन प्लैटफार्म पर उपलब्ध हैं। माउस क्लिक करने पर दुनिया की सारी शब्दावलियाँ या कोश आपकी आंखों के सामने उपस्थित हो जाएंगे।

3) व्याकरण - सभी भाषाओं के व्याकरण की सूक्ष्मताओं को याद रखना बड़ा कठिन कार्य है। किसी अनुवादक से व्याकरण संबंधी पहलुओं पर अच्छे कार्य की अपेक्षा की जाती है। किसी भाषा का व्याकरण आपको शब्दों के लचीलेपन, वाक्य निर्माण के नियमों या किसी भाषा के वाक्य-विन्यास और सामान्य सिद्धांतों के बारे में सही जानकारी देता है। “शब्दावली पर अधिकार लेने पर भी उनका व्याकरणसम्मत प्रयोग करना अनुवादक के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होता है। अन्य भाषा भाषी जब कोई भाषा इस्तेमाल करते हैं तब व्याकरणिक बातों में वे गलतियां कर डालते हैं, क्योंकि अयाचित रूप से मातृभाषा का प्रभाव उन पर छा जाता है।”6

3) संदर्भ सामग्री - किसी भी अनुवादक के लिए विश्वकोश मुख्य संदर्भ सामग्री है। यह प्रत्येक विषय के सारे क्षेत्रों से संबंधित जानकारी प्रदान करता है। उसमें व्यक्तियों के नाम, स्थान, साहित्यिक कार्य और अवधारणाएँ आदि शामिल रहते हैं। संक्षेप में, विश्वकोश मानव जीवन के सभी पहलुओं पर जानकारी प्रदान करने में सक्षम होता है।

इसके अलावा पत्रिकाएं भी साहित्यिक और तकनीकी क्षेत्रों में ज्ञान प्रदान करती हैं। अनुवादक को बड़े पैमाने पर पढ़ना चाहिए और पढ़ते समय नयी अवधारणाओं को विकसित करने या शब्दों को नोट करने की आदत बना लेनी चाहिए। इस तरह वह तत्काल उपयोग के लिए अपने शब्द भंडार को विकसित कर सकता है।

भाषाई पत्रिकाएँ अब कई भाषाओं में छप रही हैं। भाषाओं की प्रकृति में अंतर्दृष्टि प्रदान करने के अलावा ये पत्रिकाएं अनुवादक को अपने कार्य में मदद भी करती है। भाषिक प्रयोगों से अपने आपको रूबरू कराने में, व्याकरण संबंधी नियमों को समझने में, नये प्रयोगों की जानकारी प्राप्त करने में नवीन पत्रिकाएं बहुत मददगार साबित होती हैं। ये पत्रिकाएँ अनुवाद के विभिन्न पहलुओं पर भी बात करती हैं। विशेष रूप से अनुवाद के लिए समर्पित कुछ पत्रिकाएँ (अनुवाद, वागर्थ, अंतरंग और समकालीन भारतीय साहित्य) भी वर्तमान बाजार में उपलब्ध हैं और अनुवादक को इनसे परामर्श लेना चाहिए, क्योंकि ये और अन्य पत्रिकाएँ उसे अनुवाद, नये शब्दकोश, व्याकरण, शब्दावली आदि के बारे में जानकारी प्रदान करती हैं जो अंततः अनुवादक की मदद करती है।

4) मूलभूत भौतिक जरूरतें - कार्य करने का अच्छा वातावरण हमेशा अनुवादक की निष्पादन क्षमता को बढ़ाता है। अनुवादक के लिए सामान्य तकनीकी जानकारी, लघु विषय-विशेष शब्दावलियाँ और फाइलें व्यवस्थित रखने की अलमारी वगैरह चाहिए। अच्छी मेज या टेबल भी हों, जहां अनुवादक अपना कंप्यूटर और अन्य आवश्यक उपकरण, मैनुअल और किताबें रख सकता है। एक अच्छी आरामदायक कुर्सी, बुक रैक, बुक शेल्फ आदि अनुवादक की न्यूनतम आवश्यकताएं हैं। कई भाषाओं में काम करने वाले अनुवादक को विभिन्न शब्दकोशों को अपने पास रखना पड़ता है।

निष्कर्ष : इस तरह अनुवाद के उपकरण (tools for translation) पर अगर गंभीरतापूर्वक सोचा जाए तो जितना प्रबल उपकरण उसके पास उपलब्ध होगा उसका कार्य उतना प्रभावी होगा। अनुवादक के कार्य की गुणवत्ता उसके बौद्धिक, यांत्रिक और भौतिक उपकरणों के आधार पर ही आंकी जाएगी। उपर्युक्त मुख्य बिंदुओं पर ध्यान देने पर अनुवादक अपने कार्य में प्रभावात्मकता का गुण ला सकता है जो कि आने वाले अनुवादकों के लिए जरूर सहायक सिद्ध होगा।

संदर्भ :
  1. भोलानाथ तिवारी: अनुवाद विज्ञान, शब्दकार प्रकाशन, दिल्ली, संस्करण 2002, पृ. 16
  2. अनुवाद पत्रिका, अप्रैल-जून 2018, पृ. 9
  3. संपादकीय, अनुवाद पत्रिका, अक्तूबर-दिसंबर 2011, पृ. iv
  4. अनुवाद पत्रिका, अक्तूबर-दिसंबर 2011, पृ. 2
  5. अनुवाद पत्रिका, अक्तूबर-दिसंबर 2011, पृ. 45
  6. सं. कैलाश चंद्र भाटिया: भारतीय भाषाएं और हिन्दी अनुवाद समस्या-समाधान, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण 2004, पृ.144

सुमित पी.वी
सहायक प्रोफेसर, पी आर एन एस एस कॉलेज, मटटनूर, कन्नूर, केरल 670702,  sumithpoduval@gmail.com9497388529

संस्कृतियाँ जोड़ते शब्द (अनुवाद विशेषांक)
अतिथि सम्पादक : गंगा सहाय मीणा, बृजेश कुमार यादव एवं विकास शुक्ल
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित UGC Approved Journal
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-54, सितम्बर, 2024

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