शोध आलेख : नेपाली में अनूदित मैला आँचल का सामाजिक-वैचारिक परिप्रेक्ष्य / निमा लामा

नेपाली में अनूदित मैला आँचल का सामाजिक-वैचारिक परिप्रेक्ष्य
- निमा लामा

अनुवाद रचना को क्षेत्र विशेष की सीमा से बाहर निकालकर वैश्विक पटल पर ले जाता है। बहुसांस्कृतिक सामाजिक संवेदना को एकता के सूत्र में पिरोने के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है। बहुभाषी समाज होने के कारण भारत के परिप्रेक्ष्य में अनुवाद की अपनी महत्ता है। किसी रचना के अनुवाद की संकल्पना अनुवादक अपने साहित्य और समाज के लिए करता है। मैला आँचल भारत का बहुचर्चित आँचालिक उपन्यास है जिसका प्रभाव हिन्दी से इतर अन्य भाषाओं में देखा जा सकता है। नेपाली साहित्य में इस उपन्यास ने अपनी एक अलग छाप छोड़ी है। इस उपन्यास की भाषा के साथ ही इसके शैल्पिक पक्ष ने नेपाली साहित्य को प्रभावित किया है। नेपाली साहित्य में हिन्दी साहित्य का प्रभाव प्रारंभ से ही देखा जा सकता है। नेपाली भाषा की पहली कहानी ‘नासो’ प्रेमचंद की कहानी ‘सौत’ से प्रभावित होकर लिखी गयी थी। अनुवाद से साहित्य हमेशा समृद्ध होता है। अनुवादक एकीकरण के उद्देश्य को केंद्र में रखकर ही इस कार्य में आगे बढ़ता है। "संसार में असंख्य भाषाएं हैं और अनेक ऐसी भाषाएं है, जिनका साहित्य बहुत समृद्ध है। यदि विश्व की सभी भाषाओं के समस्त साहित्य का हर भाषा में अनुवाद हो जाए तो मनुष्य जाति सांस्कृतिक, वैचारिक और संवेदनात्मक दृष्टि से कितनी समृद्ध हो जाएगी, इसका अनुमान नहीं लगा सकते।"1  

रचनाकार और समाज का घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। वह अपने समाज को लेकर चिंतित और सजग रहता है। अपने साहित्य में अनुपलब्ध चेतना को अन्य भाषाओं से अनूदित कर उपलब्ध कराने की पूरी कोशिश करता है। भारतेन्दु युग में ऐसे अनेक कार्य हुए हैं। इसी सन्दर्भ में डॉ. रमण सिन्हा कहते हैं- “हिन्दी नवजागरण के अग्रदूत भारतेन्दु को अपने क्षेत्र की अनैतिहासिक चेतना की व्याप्ति का अनुभव था और वे स्वयं ‘कालचक्र’, ‘प्राचीन काल का संवत निर्णय’, ‘काश्मीर कुसुम’, ‘बादशाह दर्पण’ के सहारे इसे दूर करने की कोशिश कर रहे थे। इस अभियान में भारतेन्दु का ऐसा मानना था कि बांग्ला के ऐतिहासिक उपन्यास सहायक सिद्ध हो सकते थे। भारतेन्दु ने बंकिम के उपन्यास राजसिंह को अनूदित करना आरंभ किया।”2  धीरे-धीरे अनुवाद के महत्त्व को पूरे विश्व ने स्वीकार किया। साहित्यकार अपने साहित्य को समृद्ध करने में हमेशा सृजनशील और कार्यरत रहता है। अपने साहित्यिक अवकाश को भरने की पुरजोर कोशिश करता है। यही नेपाली के साहित्यकार आई.के. सिंह ने भी किया। ‘मैला आँचल’ में चित्रित प्रश्नों को नेपाली समाज तक पहुँचाने के लिए उसका नेपाली भाषा में अनुवाद किया। यह अनुवादक का धैर्य और सजगता है कि यह उपन्यास नेपाली भाषा में उपलब्ध है। आई.के. सिंह नेपाली साहित्य जगत के प्रसिद्ध कथाकार, नाटककार, उपन्यासकार और निबंधकार हैं। नेपाली साहित्य में इनका योगदान अतुलनीय है। फणीश्वरनाथ रेणु की कृति ‘मैला आँचल’ आंचलिकता को प्रस्तुत करने में मील का पत्थर है। यह उपन्यास अपने समय के साथ भविष्य की समस्या को भी इंगित करता है। मेरीगंज की तरह कई ऐसे गाँव हैं जहाँ की संस्कृति, भाषा और भौगोलिक संरचना अलग हैं किन्तु समस्या वही है। आई.के. सिंह अपने समाज को इस उपन्यास में मौजूद ग्रामीण जीवन, स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी, नशीली पदार्थ का बढ़ता प्रभाव, स्त्री शोषण, अंधविश्वास, छुआछूत, राजनीतिक समस्या आदि तमाम विषयों से अवगत कराना चाहते हैं। हर समाज की अपनी कहानी और अपनी समस्या है किन्तु उसे ठीक करना अपनी जिम्मेदारी है। प्रेरणा स्रोत के लिए साहित्यकार दूसरे साहित्य से अनुवाद करता है, ताकि समाज प्रेरित हो। इससे साहित्य भी उन्नति करता है और अपने अभाव को पूरा करता है। इसी सन्दर्भ में महावीर प्रसाद द्विवेदी कहते हैं- “जैसे अंग्रेजों ने ग्रीक और लैटिन भाषा की सहायता से अंग्रेजों की उन्नति की और उन भाषाओं के उत्तमोत्तम ग्रंथों का अनुवाद करके अपने साहित्य की शोभा बढ़ाई, वैसे ही हमको भी करना चाहिए। इस समय अंग्रेजों का साहित्य अत्यंत उन्नत दशा को प्राप्त है।”3 अनुवादक किसी भी रचना का चुनाव पारखी नज़र से समाजहित के लिए करता है, क्योंकि जब रचना अनूदित होती है तो उसके नकारात्मक और सकारात्मक दोनों पक्ष समाज के सामने पहुँचते हैं। अनुवादक अनुवाद के कार्य में काफी सतर्क रहता है क्योंकि अनुवाद करने से ज्यादा उससे पड़ने वाले प्रभाव पर चिंतन-मनन करना होता है।

स्त्री को प्रकृति का पर्याय माना जाता है। वह नवनिर्माण की क्षमता रखती है लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उसकी स्थिति काफी नाजुक है। आज स्त्री सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में ख़ुद को सबल कर रही है, तो वहीं दूसरी ओर स्त्री शोषण की समस्या भी सामने आ रही है। उदाहरण के लिए, मैला आँचल की लक्ष्मी जिसकी स्थिति बहुत दयनीय थी। वह महंत के जाल में धीरे-धीरे फँसती जाती है। रेणु जी काफ़ी दूरदृष्टि रखते थे, जिन्होंने पहले ही स्थिति को भाँप लिया था। दिन-प्रतिदिन जैसी घटनाएँ सामने आ रही हैं, काफी शोचनीय है। लक्ष्मी जैसी कई छोटी बच्ची परोक्ष या अपरोक्ष रूप से शोषण का शिकार हो रही है। “अंधा महंत अपने पापों का प्राच्छित कर रहा है।...पांच बरस तक मठ में नौकरी किया है; हमसे बढ़कर कौन जानेगा मठ की बात? और कोई देखे या नहीं देखे, ऊपर परमेश्वर तो है। महंत जब लक्ष्मी दासिन को मठ...अबोध थी...कहाँ वह बच्ची और कहाँ पचास बरस का बूढ़ा गिद्ध।”रेणु जी ने अपने उपन्यास में स्त्री को कमजोर नहीं दिखाया है बल्कि उसके अंदर विरोध का बीज भी बोया है। एक विरोध कई स्त्रियों को साहस देता है, उन्हें उद्वेलित करता है।औरत के हक़ में’ जैसी प्रसिद्ध रचना स्त्री के ऊपर हुए अत्याचार का दस्तावेज है, जिसका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है। नेपाली साहित्यकार खगेन्द्र भट्टराई नेपाली भाषा में अनूदित ‘आईमाईको हकमा’ रचना की भूमिका में लिखते हैं- “ऐसी पुस्तकें पढ़कर पाठकों में सामान्य बौद्धिक परिवर्तन मात्र भी आए तो भी हम आनंदित होंगे।”5 आज ऐसे उपन्यासों की आवश्यकता पूरे समाज को है। आई.के. सिंह अपने समाज को मैला आँचल में मौजूद लक्ष्मी जैसी स्त्री पात्र से अवगत कराना चाहते हैं। वे अपने समाज की स्त्री में भी वही साहस और विरोध की भावना भरना चाहते हैं, ताकि वे ख़ुद अपनी परिस्थितियों से लड़ सकें।

समाज में अन्धविश्वास बहुत समस्या खड़ी कर देता है। इसके प्रभाव के कारण कई लोग अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठते हैं। अन्धविश्वास का वर्चस्व गाँव में बहुत अधिक देखने को मिलता है। यही हाल मेरीगंज का भी है जहाँ डॉक्टर को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उनकी भावना को ठेस पहुँचाए बिना उन्हें इलाज के लिए तैयार करना कितनी बड़ी विडम्बना है। नेपाली समाज की ग्रामीण स्थिति भी ऐसी है, जहाँ अन्धविश्वास का ऐसा ही प्रभाव दिखता है जिसके कारण लोग अपना इलाज नहीं करवाना चाहते हैं। हैजा जैसी महामारी से सभी जूझ रहे थे और वे अन्धविश्वास के कारण अपना इलाज नहीं करवाना चाह रहे थे। “हैजा के पहले रोगी को बचा लिया गया, लेकिन गांव को नहीं बचाया जा सकता। डॉक्टर ने ढोल दिलवाकर लोगों को सूई...। कुआं में दवा डालने के समय लोगों ने दल बांधकर विरोध किया- चालाकी रहने दो। डॉक्टर कूपों में दवा डालकर सारे गांव में हैजा फैलाना चाहता है। खूब समझते हैं।... यदि लोगों ने सूई नहीं लगवाई और कुआं में दवा नहीं डालने दी तो एक भी गांव को बचाना मुश्किल होगा।”6 नशा विश्वस्तरीय समस्या बनकर उभरा है। नशीला पदार्थ प्राचीन काल से ही मौजूद रहा है परन्तु उसकी अपनी सीमा थी। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में लोगों ने इसे व्यवसाय का जरिया बना लिया है। नशीले पदार्थ का व्यवसाय जिस गति से आसमान छू रहा है, वह भयावह स्थिति का सूचक है। सरकार इसकी रोकथाम के लिए कितनी गहराई से काम कर रही है, यह जानने का विषय है। समाज के चिन्तक समाज की ऐसी परिस्थितियों से चिंतित हैं। आई.के. सिंह अपने समाज को ऐसे दलदल से बाहर निकालने में कार्यरत हैं। रेणु की जो चिंता अपने समाज को लेकर है, वही चिंता नेपाली साहित्यकार आई.के. सिंह की भी है। नशीले पदार्थ के प्रति थोड़ी सी भी जागरूकता लोगों के अन्दर आ जाए तो एक साहित्यकार को और क्या चाहिए। "लारसिंघदास, नेपाली गांजा में बड़ा नफा होता है। दस रुपए का लाओ और चार सौ बनाओ। नेपाल में चार आने सेर गांजा मिलता है।"7  नशे ने बच्चों से लेकर युवाओं और बूढ़ों सभी को प्रभावित किया है। युवा वर्ग इसकी चपेट में अपनी जिंदगी और करियर को दाँव पर लगा रहा है। ऐसी स्थिति में मैला आँचल का नेपाली भाषा में अनुवाद होना वहाँ के लिए बहुत सार्थक है। "तहसीलदार साहब अब नीचे नहीं उतरते हैं। ऊपर ही रहते हैं। दिन भर ताड़ी पीकर रहते हैं, रात में संथालटोली का महुआ का रस। कभी होश में नहीं रहते हैं।" 

अंधविश्वास अशिक्षा की कमी के कारण उत्पन्न होता है। डॉक्टरी जाँच छोड़ व्यक्ति तंत्र और टोटका पर ज्यादा विश्वास करता है। डायन प्रथा जैसी समस्या काफी व्यापक हो गयी है। इसके कारण कई स्त्रियाँ जिन्दा भी जली हैं। नेपाली समाज में भी ऐसी डायन (बोक्सी) जैसी समस्या मौजूद है। “पारबती की माँ थी। डायन है। तीन कुल में एक को भी नहीं छोड़ा। सबको खा गई। पहले भतार को, इसके बाद देबर-देबरानी, बेटा-बेटी, सबको खा गई। अब एक नाती है, उसको भी चबा रही है।”9 अंधविश्वास को रेणु ने अपने उपन्यास में तोड़ने की कोशिश की है। डॉ. प्रशान्त पढ़ा-लिखा है, जो तर्क को महत्त्व देता है। वह ऐसे अंधविश्वास  को नहीं मानता है और उस भ्रम को तोड़ने की कोशिश भी करता है। नेपाली साहित्यकार अपने समाज में ऐसी ही चिंगारी विकसित करना चाहता है। जहाँ हर व्यक्ति बौद्धिकता से काम करे। "डॉक्टर जब मौसी के घर से निकला तो उसने लक्ष्य किया, कालीचरन के कुएं पर पानी भरनेवाली स्त्रियों की भीड़ लग गई। सभी आंखें फाड़े, मुंह बाए, आश्चर्य से डॉक्टर को देखती हैं- इस डॉक्टर को काल ने घेरा है शायद।"10   

प्रत्येक समाज की अपनी-अपनी ख़ासियत है लेकिन आधुनिकीकरण के इस दौर में हर व्यक्ति खुद को आधुनिक बनाना चाहता है। अपने लोकगीत, त्यौहार, रहन-सहन को धीरे-धीरे मॉडर्निज्म में परिवर्तित कर रहे हैं। लोकगीत का अपना ही महत्त्व है जिसे नयी पीढ़ी समझना नहीं चाहती। लोकगीत केवल गीत नहीं, बल्कि उसके बोल में हमारी संस्कृति समायी हुई है। यह गीत हमेशा समूह में मिलकर गाया जाता है। भारतीय संस्कृति में गीत हो या नृत्य हमेशा ही समूह में होता है। हमारी विडम्बना यही है कि हम पाश्चात्य संस्कृति को ज्यादा महत्त्व देते हैं। पाश्चात्य संस्कृति के प्रति यह मोह पूरे समाज को प्रभावित करता है। रेणु जी ने अपने उपन्यास में बहुत ही सुन्दर लोकगीतों का उल्लेख किया है और उसके महत्त्व को उजागर करने का प्रयास किया है।     

आई रे होरिया आई फिर से!
आई रे !
गावत गाँधी राग मनोहर
चरखा चलावे बाबू राजेंदर
गूंजल भारत अमहाई रे ! होरिया आई फिर से
...बल्लभ है अभिमान हमारो.
जयप्रकाश जैसो भाई रे !...होली है!11 

भारत में आज भी छुआछूत, राजनीतिक भ्रष्टाचार जैसी कई समस्याएं पनप रही हैं। उपन्यासकार रेणु इसे लेकर चिंतित हैं। बालदेव, कालीचरण जैसे सीधे लोग ऐसी घिनौनी राजनीति के शिकार होते हैं। नेपाली समाज में भी ऐसे ही कालीचरण और बालदेव हैं, जो इस दलदल में फँसते जा रहे हैं। आई.के. सिंह अपने समाज में दुबारा कालीचरण और बालदेव जैसे सीधे लोगों को दलदल में जाने से रोकना चाहते हैं। वे मैला आँचल उपन्यास की राजनीति की आबोहवा से अपने समाज को सचेत करना चाहते है।

निःसंदेह आई.के. सिंह का कार्य नेपाली साहित्य के लिए कारगर सिद्ध हुआ है। इस उपन्यास की वैचारिकी ने नेपाली साहित्य को बहुत अधिक प्रभावित किया है। मैला आँचल के कथाशिल्प के प्रति नेपाली उपन्यासकारों का अलग ही झुकाव है। मैला आँचल के अतिरिक्त भी कई अन्य उपन्यासों का नेपाली में अनुवाद है और यह निरंतरता अभी भी बरकरार है।            

सन्दर्भ :
1 . सं बोरा, राजमल, अनुवाद क्या है, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, तृतीय संस्करण: 2004, पृ. 29.
2. सिन्हा, डॉ.रमण, अनुवाद और रचना का उत्तर-जीवन, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण: 2002, पृ. 301.
3. शर्मा, रामविलास, महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली,  प्रथम संस्करण: 1977, पृ. 322.  
4 .  “अंधा महंत आफ्ना पापहरूको प्राश्यचित गर्दैछ।...पांचवर्षसम्म मठमा नोकरी गरेको छु। मभन्दा बेसी अरू कसले जान्दछ मठको कुरा? अरू कसैले देखोस नदेखोस, माथि परमेश्वर त छन। महंतले जब लक्ष्मी दासीलाई मठमा...अबोध थिई...कहाँ त्यों सानी केटी अनि कहाँ पपचास वर्षको बूढ़ों गिद्ध।” मैला आँचल, अनु. आई.के. सिंह, साहित्य अकादमी, नयी दिल्ली,  प्रथम संस्करण: 2009, पृ. 28. 
5. “यस्ता पुस्तकहरू पढेर पाठकहरूमा सामान्य बौद्धिक परिवर्तन मात्र आउन सकेमा पनि  हामी आनंदित हुनेछौ।” नसरीन, तसलीमा, आईमाइको हकमा, अनु. विवेक शर्मा, भूमिका, पैरवी प्रकाशन, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण: 2003.
6. “हैजाको पहिले रोगीलाई बचाइयो, तर गाऊंलाई बचाउना डॉक्टरले ढोल बजाउना  लगाएर मान्छेलाई सूई...। कूवांमा दवाई हाल्दा मानिसहरूले दल बांधेर विरोध गरे- चालाकी बंद गर। डॉक्टरले  कूवांमा दवाई हालेर गांऊमा हैजा फैलाउन  चाहन्छ है। खूब जान्दछौं हामी ।... यदि मानिसहरूले सूई लगाएनन अनि कूवांमा दवाई हल्ना दिएनन भने, गाऊंको सबैजनालाई बचाउनु पनि कठिन हुनेछ।” मैला आँचल, अनु. आई.के. सिंह, साहित्य अकादमी, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण: 2009, पृ. 140.   
7. “लारसिंघदास, नेपाली गांजाबाटा धेरै नाफा हुन्छ। दस रुपियाँको ल्याऊ अनि चारसौ बनाऊ। नेपालमा चारआना  सेर गांजा पाइन्छ।” वही, पृ. 63.
8. “तहसीलदार साहेब अचेल तल झर्दैनन। माथि नै बस्छन। दिनभरी ताड़ी पिएर बसिरहंछन, राती संथालटोलीको महुवाको रक्सी। कहिले होशमा में हुँदैनन।” वही, पृ. 300.
9. “पार्वतीकी आमा थिए। डाईनी हो। तीन कुलमा में एउटैलाई पनि छाड़िन। सबैलाई खाई। पहिले भादैलाई, त्यसपछि देवर-देवरानी, छोरा-छोरी, सपैलाई खाई। अब एउटा नाती छ, त्यसलाई पनि चबौउन्दैछे है।” वही, पृ. 95.
10. “डॉक्टर जब छेमाको घर झारबाट निस्कयो तब उसले लक्ष्य गर्यो, कालीचरनको कुवाँमा पानी भर्ने स्त्री हरूको भीड़ लागेको छ। सबै आँखा फारेर, मुख बाएरा,...काल ले घेर्दे छ शायद?” वही, पृ. 98.
11. “आई रे होरिया आई फिर से!/आई रे!/गावत गाँधी राग मनोहर/चरखा चलावे बाबू राजेंदर,/गूंजल भारत अमहाई रे! होरिया आई फिर से/...बल्लभ है अभिमान हमारो/जयप्रकाश जैसो भाई रे !...होली है! वही, पृ. 125.
 
निमा लामा
शोधार्थी, हिन्दी विभाग, उत्तर बंग विश्वविद्यालय, दार्जीलिंग, पश्चिम बंगाल,
संस्कृतियाँ जोड़ते शब्द (अनुवाद विशेषांक)
अतिथि सम्पादक : गंगा सहाय मीणा, बृजेश कुमार यादव एवं विकास शुक्ल
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित UGC Approved Journal
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-54, सितम्बर, 2024

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