अनुवाद रचना को क्षेत्र विशेष की सीमा से बाहर निकालकर वैश्विक पटल पर ले जाता है। बहुसांस्कृतिक सामाजिक संवेदना को एकता के सूत्र में पिरोने के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है। बहुभाषी समाज होने के कारण भारत के परिप्रेक्ष्य में अनुवाद की अपनी महत्ता है। किसी रचना के अनुवाद की संकल्पना अनुवादक अपने साहित्य और समाज के लिए करता है। मैला आँचल भारत का बहुचर्चित आँचालिक उपन्यास है जिसका प्रभाव हिन्दी से इतर अन्य भाषाओं में देखा जा सकता है। नेपाली साहित्य में इस उपन्यास ने अपनी एक अलग छाप छोड़ी है। इस उपन्यास की भाषा के साथ ही इसके शैल्पिक पक्ष ने नेपाली साहित्य को प्रभावित किया है। नेपाली साहित्य में हिन्दी साहित्य का प्रभाव प्रारंभ से ही देखा जा सकता है। नेपाली भाषा की पहली कहानी ‘नासो’ प्रेमचंद की कहानी ‘सौत’ से प्रभावित होकर लिखी गयी थी। अनुवाद से साहित्य हमेशा समृद्ध होता है। अनुवादक एकीकरण के उद्देश्य को केंद्र में रखकर ही इस कार्य में आगे बढ़ता है। "संसार में असंख्य भाषाएं हैं और अनेक ऐसी भाषाएं है, जिनका साहित्य बहुत समृद्ध है। यदि विश्व की सभी भाषाओं के समस्त साहित्य का हर भाषा में अनुवाद हो जाए तो मनुष्य जाति सांस्कृतिक, वैचारिक और संवेदनात्मक दृष्टि से कितनी समृद्ध हो जाएगी, इसका अनुमान नहीं लगा सकते।"1
रचनाकार और समाज का घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। वह अपने समाज को लेकर चिंतित और सजग रहता है। अपने साहित्य में अनुपलब्ध चेतना को अन्य भाषाओं से अनूदित कर उपलब्ध कराने की पूरी कोशिश करता है। भारतेन्दु युग में ऐसे अनेक कार्य हुए हैं। इसी सन्दर्भ में डॉ. रमण सिन्हा कहते हैं- “हिन्दी नवजागरण के अग्रदूत भारतेन्दु को अपने क्षेत्र की अनैतिहासिक चेतना की व्याप्ति का अनुभव था और वे स्वयं ‘कालचक्र’, ‘प्राचीन काल का संवत निर्णय’, ‘काश्मीर कुसुम’, ‘बादशाह दर्पण’ के सहारे इसे दूर करने की कोशिश कर रहे थे। इस अभियान में भारतेन्दु का ऐसा मानना था कि बांग्ला के ऐतिहासिक उपन्यास सहायक सिद्ध हो सकते थे। भारतेन्दु ने बंकिम के उपन्यास राजसिंह को अनूदित करना आरंभ किया।”2 धीरे-धीरे अनुवाद के महत्त्व को पूरे विश्व ने स्वीकार किया। साहित्यकार अपने साहित्य को समृद्ध करने में हमेशा सृजनशील और कार्यरत रहता है। अपने साहित्यिक अवकाश को भरने की पुरजोर कोशिश करता है। यही नेपाली के साहित्यकार आई.के. सिंह ने भी किया। ‘मैला आँचल’ में चित्रित प्रश्नों को नेपाली समाज तक पहुँचाने के लिए उसका नेपाली भाषा में अनुवाद किया। यह अनुवादक का धैर्य और सजगता है कि यह उपन्यास नेपाली भाषा में उपलब्ध है। आई.के. सिंह नेपाली साहित्य जगत के प्रसिद्ध कथाकार, नाटककार, उपन्यासकार और निबंधकार हैं। नेपाली साहित्य में इनका योगदान अतुलनीय है। फणीश्वरनाथ रेणु की कृति ‘मैला आँचल’ आंचलिकता को प्रस्तुत करने में मील का पत्थर है। यह उपन्यास अपने समय के साथ भविष्य की समस्या को भी इंगित करता है। मेरीगंज की तरह कई ऐसे गाँव हैं जहाँ की संस्कृति, भाषा और भौगोलिक संरचना अलग हैं किन्तु समस्या वही है। आई.के. सिंह अपने समाज को इस उपन्यास में मौजूद ग्रामीण जीवन, स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी, नशीली पदार्थ का बढ़ता प्रभाव, स्त्री शोषण, अंधविश्वास, छुआछूत, राजनीतिक समस्या आदि तमाम विषयों से अवगत कराना चाहते हैं। हर समाज की अपनी कहानी और अपनी समस्या है किन्तु उसे ठीक करना अपनी जिम्मेदारी है। प्रेरणा स्रोत के लिए साहित्यकार दूसरे साहित्य से अनुवाद करता है, ताकि समाज प्रेरित हो। इससे साहित्य भी उन्नति करता है और अपने अभाव को पूरा करता है। इसी सन्दर्भ में महावीर प्रसाद द्विवेदी कहते हैं- “जैसे अंग्रेजों ने ग्रीक और लैटिन भाषा की सहायता से अंग्रेजों की उन्नति की और उन भाषाओं के उत्तमोत्तम ग्रंथों का अनुवाद करके अपने साहित्य की शोभा बढ़ाई, वैसे ही हमको भी करना चाहिए। इस समय अंग्रेजों का साहित्य अत्यंत उन्नत दशा को प्राप्त है।”3
स्त्री को प्रकृति का पर्याय माना जाता है। वह नवनिर्माण की क्षमता रखती है लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उसकी स्थिति काफी नाजुक है। आज स्त्री सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में ख़ुद को सबल कर रही है, तो वहीं दूसरी ओर स्त्री शोषण की समस्या भी सामने आ रही है। उदाहरण के लिए, ‘
समाज में अन्धविश्वास बहुत समस्या खड़ी कर देता है। इसके प्रभाव के कारण कई लोग अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठते हैं। अन्धविश्वास का वर्चस्व गाँव में बहुत अधिक देखने को मिलता है। यही हाल मेरीगंज का भी है जहाँ डॉक्टर को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उनकी भावना को ठेस पहुँचाए बिना उन्हें इलाज के लिए तैयार करना कितनी बड़ी विडम्बना है। नेपाली समाज की ग्रामीण स्थिति भी ऐसी है, जहाँ अन्धविश्वास का ऐसा ही प्रभाव दिखता है जिसके कारण लोग अपना इलाज नहीं करवाना चाहते हैं। हैजा जैसी महामारी से सभी जूझ रहे थे और वे अन्धविश्वास के कारण अपना इलाज नहीं करवाना चाह रहे थे। “हैजा के पहले रोगी को बचा लिया गया, लेकिन गांव को नहीं बचाया जा सकता। डॉक्टर ने ढोल दिलवाकर लोगों को सूई...। कुआं में दवा डालने के समय लोगों ने दल बांधकर विरोध किया- चालाकी रहने दो। डॉक्टर कूपों में दवा डालकर सारे गांव में हैजा फैलाना चाहता है। खूब समझते हैं।... यदि लोगों ने सूई नहीं लगवाई और कुआं में दवा नहीं डालने दी तो एक भी गांव को बचाना मुश्किल होगा।”6
नशा
विश्वस्तरीय
समस्या
बनकर
उभरा
है।
नशीला
पदार्थ
प्राचीन
काल
से
ही
मौजूद
रहा
है
परन्तु
उसकी
अपनी
सीमा
थी।
वर्तमान
परिप्रेक्ष्य में लोगों ने इसे व्यवसाय का जरिया बना लिया है। नशीले पदार्थ का व्यवसाय जिस गति से आसमान छू रहा है, वह भयावह स्थिति का सूचक है। सरकार इसकी रोकथाम के लिए कितनी गहराई से काम कर रही है, यह जानने का विषय है। समाज के चिन्तक समाज की ऐसी परिस्थितियों से चिंतित हैं। आई.के. सिंह अपने समाज को ऐसे दलदल से बाहर निकालने में कार्यरत हैं। रेणु की जो चिंता अपने समाज को लेकर है, वही चिंता नेपाली साहित्यकार आई.के. सिंह की भी है। नशीले पदार्थ के प्रति थोड़ी सी भी जागरूकता लोगों के अन्दर आ जाए तो एक साहित्यकार को और क्या चाहिए। "लारसिंघदास, नेपाली गांजा में बड़ा नफा होता है। दस रुपए का लाओ और चार सौ बनाओ। नेपाल में चार आने सेर गांजा मिलता है।"7 नशे ने बच्चों से लेकर युवाओं और बूढ़ों सभी को प्रभावित किया है। युवा वर्ग इसकी चपेट में अपनी जिंदगी और करियर को दाँव पर लगा रहा है। ऐसी स्थिति में ‘
अंधविश्वास अशिक्षा की कमी के कारण उत्पन्न होता है। डॉक्टरी जाँच छोड़ व्यक्ति तंत्र और टोटका पर ज्यादा विश्वास करता है। डायन प्रथा जैसी समस्या काफी व्यापक हो गयी है। इसके कारण कई स्त्रियाँ जिन्दा भी जली हैं। नेपाली समाज में भी ऐसी डायन (बोक्सी) जैसी समस्या मौजूद है। “पारबती की माँ थी। डायन है। तीन कुल में एक को भी नहीं छोड़ा। सबको खा गई। पहले भतार को, इसके बाद देबर-देबरानी, बेटा-बेटी, सबको खा गई। अब एक नाती है, उसको भी चबा रही है।”9
अंधविश्वास
को
रेणु
ने
अपने
उपन्यास
में
तोड़ने
की
कोशिश
की
है।
डॉ.
प्रशान्त
पढ़ा-लिखा है, जो तर्क को महत्त्व देता है। वह ऐसे अंधविश्वास को नहीं मानता है और उस भ्रम को तोड़ने की कोशिश भी करता है। नेपाली साहित्यकार अपने समाज में ऐसी ही चिंगारी विकसित करना चाहता है। जहाँ हर व्यक्ति बौद्धिकता से काम करे। "डॉक्टर जब मौसी के घर से निकला तो उसने लक्ष्य किया, कालीचरन के कुएं पर पानी भरनेवाली स्त्रियों की भीड़ लग गई। सभी आंखें फाड़े, मुंह बाए, आश्चर्य से डॉक्टर को देखती हैं- इस डॉक्टर को काल ने घेरा है शायद।"10
प्रत्येक समाज की अपनी-अपनी ख़ासियत है लेकिन आधुनिकीकरण के इस दौर में हर व्यक्ति खुद को आधुनिक बनाना चाहता है। अपने लोकगीत, त्यौहार, रहन-सहन को धीरे-धीरे मॉडर्निज्म में परिवर्तित कर रहे हैं। लोकगीत का अपना ही महत्त्व है जिसे नयी पीढ़ी समझना नहीं चाहती। लोकगीत केवल गीत नहीं, बल्कि उसके बोल में हमारी संस्कृति समायी हुई है। यह गीत हमेशा समूह में मिलकर गाया जाता है। भारतीय संस्कृति में गीत हो या नृत्य हमेशा ही समूह में होता है। हमारी विडम्बना यही है कि हम पाश्चात्य संस्कृति को ज्यादा महत्त्व देते हैं। पाश्चात्य संस्कृति के प्रति यह मोह पूरे समाज को प्रभावित करता है। रेणु जी ने अपने उपन्यास में बहुत ही सुन्दर लोकगीतों का उल्लेख किया है और उसके महत्त्व को उजागर करने का प्रयास किया है।
आई रे !
...बल्लभ है अभिमान हमारो.
जयप्रकाश जैसो भाई रे !...होली है!11
भारत में आज भी छुआछूत, राजनीतिक भ्रष्टाचार जैसी कई समस्याएं पनप रही हैं। उपन्यासकार रेणु इसे लेकर चिंतित हैं। बालदेव, कालीचरण जैसे सीधे लोग ऐसी घिनौनी राजनीति के शिकार होते हैं। नेपाली समाज में भी ऐसे ही कालीचरण और बालदेव हैं, जो इस दलदल में फँसते जा रहे हैं। आई.के. सिंह अपने समाज में दुबारा कालीचरण और बालदेव जैसे सीधे लोगों को दलदल में जाने से रोकना चाहते हैं। वे ‘
निःसंदेह आई.के. सिंह का कार्य नेपाली साहित्य के लिए कारगर सिद्ध हुआ है। इस उपन्यास की वैचारिकी ने नेपाली साहित्य को बहुत अधिक प्रभावित किया है। ‘
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