अनुवाद पारिस्थितिकी : एक अनुशीलन / श्रीनिकेत कुमार मिश्र

अनुवाद पारिस्थितिकी : एक अनुशीलन
- श्रीनिकेत कुमार मिश्र

शोध सार : अनुवाद पारिस्थितिकी अनुवाद अध्ययन का एक उभरता प्रक्षेत्र है, जिसमें अनुवाद को पारिस्थितिकी अर्थात् अनुवाद को प्रभावित करने वाले वातावरण-कारकों के परिप्रेक्ष्य में देखा-समझा जाता है। यह अनुवाद अध्ययन के क्षेत्र में नई अध्ययन-दृष्टि एवं नए आयाम से अनुसंधान करने की पहल है। प्रस्तुत शोध आलेख में इसी दृष्टिकोण को जानने-समझने का प्रयास किया गया है। इसमें इसके सभी पक्षों एवं इसके अध्ययन की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

बीज शब्द : पारिस्थितिकी, भाषा पारिस्थितिकी, इकोक्रिटिसिज्म, अनुवादशास्त्र, अनुवाद पारिस्थितिकी।

मूल आलेख : पारिस्थितिकी, जीवों और वे अपने आसपास के पर्यावरण के साथ कैसे संवाद करते हैं, का अध्ययन है। पारिस्थितिकी जीवविज्ञान की एक शाखा है, जिसमें मानव विज्ञान, जनसंख्या, समुदाय, पारिस्थितिकी तंत्र और जीवमंडल शामिल है। पारिस्थितिकी शब्द अंग्रेजी शब्द ‘Ecology’ के पर्याय के रूप में हिंदी में व्यवहृत होता है। इकोलॉजी शब्द मूलत: ग्रीक भाषा के दो शब्दों ‘οἶκος’ (ओइकोस) और ‘-λογία’ (लोजिया) से मिलकर बना है।ओइकोसका अर्थ घर या रहने की जगह है, परिवेश औरलोजियाकिसी भी प्रकार के अध्ययन को इंगित करता है। इस प्रकार, इकोलॉजी अथवा पारिस्थितिकी को किसीविषयऔर उसकेपरिवेशअर्थात वातावरण के अंतर्संबंध के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।इकोलॉजीशब्द जर्मन प्राणीविज्ञानी अर्न्स्ट हेकेल (Ernst Haeckel) द्वारा पहली बार सन् 1866 में प्रयुक्त किया गया।1 उन्होंने इकोलॉजी शब्द कोजीवों के जैविक और अकार्बनिक पर्यावरण दोनों के संबंध में लागू किया था।इस प्रकार, पारिस्थितिकी जीवों के वितरण और प्रचुरता, जीवों के बीच परस्पर क्रिया तथा ऊर्जा एवं पदार्थ के परिवर्तन और प्रवाह को प्रभावित करने वाली प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन है। किसी भी विषय को समझने के लिए उसके आस-पास के कारकों एवं उसके परिवेश को समझना आवश्यक है।

आज, पारिस्थितिकी शब्द का प्रयोग केवल प्राणीविज्ञान तक सीमित नहीं है, वरन् यह अन्य संदर्भों और अध्ययनों में भी प्रयुक्त हो रहा है। इस संबंध में एलन वाट का कथन महत्वपूर्ण है कि हर वैज्ञानिक विषयानुशासन को उसके पर्यावरण में समझने के लिए उसमें पारिस्थितिकी अध्ययन को शामिल करना चाहिए।2 इस प्रकार, कहा जा सकता है कि अन्य विषयानुशासनों के अध्ययनों को एक नया आयाम देने और नवीन अध्ययन दृष्टि के विकास में पारिस्थितिकी अध्ययन सहायक है। अनुवाद पारिस्थितिकी भी इसी दिशा में अध्ययन एवं शोध का नवीन प्रयास है।

भाषा के संदर्भ मेंपारिस्थितिकीशब्द का प्रयोग सत्तर के दशक में मिलता है।भाषायी पारिस्थितिकीयाभाषा पारिस्थितिकीकी संकल्पना पहली बार एइनर हौगेन (Einar Haugen) ने वर्ष 1971/72 में की।3 यह संकल्पना, नॉआम चॉम्स्की द्वारा दी गई भाषा की अमूर्त अवधारणा जिसमें भाषा को एक अखंड, गैर-संदर्भित, स्थिर इकाई के रूप में बताया गया था, की प्रतिक्रिया थी। एइनर हौगेन ने भाषा पारिस्थितिकी कोकिसी भी भाषा और उसके पर्यावरण के बीच संवाद का अध्ययनके रूप में परिभाषित किया। इसकी संकल्पना व्यापक और अंतःविषयक ढाँचे के रूप में की गई थी। हौगेन ने बताया कि भाषा का वातावरण दो आयामी होता है- 1. भाषा प्रयोक्ता का मानस; और  2. समाज, जिसमें वह प्रयुक्त  होती है।4 भाषाविज्ञान में प्राणी विज्ञान के रूपक के रूप में 'पारिस्थितिकी' के उपयोग में, हौगेन ने दस प्रश्न तैयार किए जो एक साथ उनके वातावरण में भाषाओं की स्थिति से संबंधित कारकों को व्यापक रूप से संबोधित करते हैं। इनमें से प्रत्येक प्रश्न भाषा के अध्ययन के एक पारंपरिक उप-क्षेत्र से संबंधित है - जिसमें ऐतिहासिक भाषाविज्ञान, भाषायी जनसांख्यिकी, समाजभाषाविज्ञान, संपर्क, विविधता, भाषाविज्ञान, योजना और नीति, भाषा की राजनीति, नृतत्व विज्ञानी और टाइपोलॉजी शामिल हैं - और उनमें से प्रत्येक एक-दूसरे से संबंधित हैं। इसके अतिरिक्त अन्य उप-क्षेत्रों में से एक या अधिक अध्ययन भी इसके अंतर्गत सकते हैं।  इस प्रकार, इसमें सामाजिक और मनोवैज्ञानिक, दोनों प्रकार के वातावरण का अध्ययन किया जाता है। भाषायी पारिस्थितिकी या भाषा पारिस्थितिकी इस बात का अध्ययन है कि भाषाएँ एक-दूसरे के साथ कैसे संवाद करती हैं और वे जिस स्थान पर बोली जाती हैं, और प्राय: जैविक प्रजातियों के संरक्षण की तरह ही लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण के लिए युक्ति करती हैं। अपने शोध आलेखलैंग्वेज इकोलॉजी’ (1974) में जो डार्विन पामर (J.D. Palmer) 10 बिंदुओं के अध्ययन की अनुशंसा करते हैं – 1. भाषा का वर्गीकरण, 2. भाषा प्रयोक्ता, 3. भाषा प्रयोग के प्रक्षेत्र, 4. सहवर्ती या सहगामी भाषाएँ, 5. आतंरिक विविधता या बहुरूपता, 6. भाषा की लेखन परंपरा, 7. भाषा का मानकीकरण, 8. संस्थागत समर्थन, 9. भाषा प्रयोक्ताओं का व्यवहार; और 10. पारिस्थितिक वर्गीकरण की टाइपोलॉजी।5 भाषा को पूर्णता में समझने के लिए उसके सामाजिक, मनोवैज्ञानिक एवं सामयिक आयाम को समझना महत्वपूर्ण है। भाषाओं की स्थिति एवं उसके विकास के अध्ययन में उसकी पारिस्थितिकी का बहुत योगदान है। प्रत्येक भाषा की अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि होती है, जिसमें उसके प्रयोक्ता की परंपरा, इतिहास, भौगोलिक अवस्थिति, नृतत्व विज्ञानी परिप्रेक्ष्य आदि शामिल हैं। प्रत्येक भाषा की अपनी सामाजिक, मनोवैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक पारिस्थितिकी होती है। यह पारिस्थितिकी अनुवाद कर्म को कई प्रकार से प्रभावित कर सकती है।

साहित्य में भीपारिस्थितिकीशब्द का प्रयोग सत्तर के दशक से मिलने लगता है।इकोक्रिटिसिज्म’ (Ecocriticism) शब्द विलियम रयुकर्ट (William Rueckert) द्वारा वर्ष 1978 में पहली बार उनके आलेख ‘Literature and Ecology: An Experiment in Ecocriticism’ में प्रयोग किया गया था।6 सत्तर के बाद यह पुन: 21वीं सदी में काफी लोकप्रिय हो गया है। संक्षेप में कहें तोइकोक्रिटिसिज्मयापारिस्थितिकीय समीक्षाको साहित्य के अध्ययन में पारिस्थितिकी और पारिस्थितिक अवधारणाओं के अनुप्रयोग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यह सांस्कृतिक अध्ययन से उपजा साहित्य को पढ़ने-समझने का एक दृष्टिकोण है। शेरिल ग्लोटफेल्टी (Cheryll Glotfelty) (1996) अपनी पुस्तक इकोक्रिटिसिज्म रीडर’ (The Ecocriticism Reader) की भूमिका में लिखती हैं किइकोक्रिटिसिज्म साहित्य और भौतिक पर्यावरण के बीच संबंधों का अध्ययन है7 वे आगे कहती हैं किजिस प्रकार नारीवादी आलोचना जेंडर केंद्रित दृष्टिकोण से भाषा और साहित्य की जांच करती है, और मार्क्सवादी आलोचना अपने पाठों को पढ़ने के लिए उत्पादन के तरीकों और आर्थिक वर्ग के बारे में विचार करती है, उसी प्रकारपारिस्थितिकीय आलोचनासाहित्यिक अध्ययन के लिए पृथ्वी-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाती है8 इस प्रकार, ‘इकोक्रिटिसिज्मयापारिस्थितिकीय समीक्षाएक बहु-विषयक दृष्टिकोण है।

अनुवाद ऐसा कर्म है जो भाषाओं पर संपन्न होता है। अत: अनुवाद अध्ययन में भाषाओं के अध्ययन को शामिल करना अपरिहार्य है। जे.सी. कैटफ़ोर्ड अनुवाद को भाषायी प्रक्रिया या भाषावैज्ञानिक प्रक्रिया ही मानते थे।9 किंतु, अनुवाद केवल अपने भाषिक पक्ष तक ही सीमित नहीं है। अनुवाद्शास्त्र के विकास में तुलनात्मक साहित्य और सांस्कृतिक अध्ययन का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। अनुवाद में भाषिक पक्ष के साथ ही सांस्कृतिक एवं साहित्यिक अभिगमों को समझना आवश्यक है। माइकल क्रोनिन अपनी पुस्तकट्रांसलेशन एंड ग्लोबल इकॉनमीमें कहते हैं कि अनुवाद को हम केवल चिंतन का माध्यम ही नहीं मानते बल्कि यह हमें विश्व में अपने अस्तित्व एवं कर्म का बोध कराता है 10 आज, अनुवाद अध्ययन या ट्रांसलेटोलॉजी विश्व में एक विषयानुशासन के रूप में स्थापित हो चुका है। अनुवाद अध्ययन या अनुवादशास्त्र को हम अनुवाद कर्म के विभिन्न पहलुओं को व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करने वाला विषयानुशासन के रूप में परिभाषित कर सकते हैं। भारत में यह विद्या अपने प्रारंभिक काल में है, किंतु राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में प्रस्तावित अनुशंसाओं एवं प्रावधानों को देखते हुए कहा जा सकता है कि जल्द ही अनुवाद अध्ययन या अनुवादशास्त्र एक मुख्य विषय के रूप में स्थापित होगा। भारत के कई विश्वविद्यालयों में अनुवाद को स्नातकोत्तर या एम.. स्तर पर एक विषयानुशासन के तौर पर पढ़ाया जा रहा है, यथा- महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय (2003), इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (2007), जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (2022), एवं हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (2023) आदि। भारत में अखिल भारतीय स्तर पर भारतीय अनुवाद परिषद सन् 1964 से ही अनुवाद अध्ययन एवं भारतीय भाषाओं में अनुवाद की दिशा में कार्य करने वाली समर्पित एवं अग्रणी स्वयंसेवी संस्था है।11 इसने अनुवाद से संबंधित पुस्तकों के प्रकाशन एवं अल्पावधि कार्यक्रम के संचालन में भी अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। अनुवाद अध्ययन के विभिन्न कार्यक्रमों में कई प्रकार की पाठ्यचर्याओं यथा- अनुवाद का इतिहास, कोशविज्ञान, भाषा विज्ञान और अनुवाद, अनुवाद पुनरीक्षण और मूल्यांकन आदि को शामिल किया जाता है। किंतु, भारत में अनुवाद पारिस्थितिकी की दिशा में प्रयास प्रायः नगण्य हैं। अनुवादशास्त्र के इस अध्ययन दृष्टिकोण का विकास एवं इसकी समझ धीरे-धीरे बढ़ रही है। यद्यपि भारत में अनुवाद पारिस्थितिकी के क्षेत्र में अध्ययन के पर्याप्त प्रयास नहीं दिखते हैं। परंतु, इस दिशा में पहली पहल वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा देखा जा सकता है, जहाँ सन् 2020 से एम.. अनुवाद अध्ययन कार्यक्रम के अंतर्गतअनुवाद पारिस्थितिकीके नाम से एक अलग पाठ्यचर्या आरंभ की गई है।12 किंतु, अनुवाद पारिस्थितिकी के बारे में हिंदी में पाठ्य-सामग्री देखने को नहीं मिलती है।

भाषा और साहित्य के अध्ययन में पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण के विकास के उपरांत आज अनुवाद अध्ययन में पारिस्थितिकी विमर्श या दृष्टिकोण का प्रयोग हो रहा है। अनुवाद पारिस्थितिकी अनुवादशास्त्र को देखने-समझने का एक उदीयमान दृष्टिकोण है। 21वीं सदी के प्रारंभ से आरंभ इस अध्ययन परिप्रेक्ष्य में शोध एवं चिंतन का विकास हो रहा है। मैलिनोव्स्की (Bronisław Kasper Malinowski) जैसे नृतत्व शस्त्रियों एवं समाजशास्त्रियों ने अनुवाद के सामाजिक-सांस्कृतिक महत्त्व की ओर ध्यानाकर्षण किया है। विश्व में इस दिशा में माइकल क्रोनिन ने पहली बार 2003 में अपनी पुस्तकट्रांसलेशन एंड ग्लोबलाइजेशन’ (Translation and Globalisation) मेंअनुवाद पारिस्थितिकीपद का उल्लेख किया है 13 उन्होंने इस विषय पर पुस्तक में अलग से एक प्रविष्टि या पाठ भी लिखा है। किंतु, स्वतंत्र रूप से प्रथम प्रयास चीन के विद्वानों द्वारा दिखता है। चीनी भाषा में Jianzhong Xu द्वारा लिखितTranslation Ecologyनामक पुस्तक 20वीं सदी के अंतिम दशक में ही प्रकाशित हो गई थी,14 किंतु इसका अंग्रेजी संस्करण अनुवाद अभी तक देखने को नहीं मिल सका है। अनुवाद पारिस्थितिकी को सरल शब्दों में अनुवाद और उसके आसपास के पारिस्थितिक पर्यावरण के मध्य संवाद का अध्ययन करने की क्रियाविधि एवं व्यवस्था विधान कहा जा सकता है। हमने पूर्व में देखा है कि किस प्रकार भाषा पारिस्थितिकी और पारिस्थितिकीय समीक्षा कार्य करती हैं, ठीक उन्हीं के परिप्रेक्ष्य में अनुवाद पारिस्थितिकी भी देखने एवं समझने का प्रयास है। जिस तरह से भाषा पारिस्थितिकी में वातावरण दो आयामी होता है, उसी तरह से अनुवाद पारिस्थितिकी में भी यह द्विआयामी होता है – (1). अनुवादक का मानस ; और (2). स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा का समाज।

अनुवाद पारिस्थितिकी के नियम और अवधारणाएँ प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की समझ औरअनुवाद के अनुकूलन और चयन सिद्धांतपर आधारित हैं 15 यह प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र और अनुवाद पारिस्थितिक तंत्र का अनुरूपण करता है, ‘योग्यतम की उत्तरजीविताके सिद्धांत को एक से दूसरे में प्रतिरोपित करता है, और जीवन की अंतर्निहित भावना सिद्धांत औरअनुवादक-समुदायके अस्तित्व से जोड़ती है। यहाँअनुवादक-समुदायमें अनुवादक, पाठक, प्रकाशक, संरक्षक, टिप्पणीकार, समीक्षक और अनुवाद गतिविधि में शामिल अन्य मानव कारक सम्मिलित हैं

अनुवाद पारिस्थितिकी में पारिस्थितिकी के तत्वों एवं सिद्धांतों का पारिस्थितिक नियमों की अनुरूपता और सादृश्यता में अनुप्रयोग किया जाता है। इसी आधार पर अनुवाद पारिस्थितिकी के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं  -

1.                  अनुवादक समुदाय (Translator-Community) : अनुवाद गतिविधि में शामिलप्रतिभागी सभी व्यक्तियोंका एक एकत्रीकृत समुदाय जो लेखक, लक्ष्य पाठ को समायोजित करते हुए, अनुवाद गतिविधियों की उत्पत्ति, विकास, संचालन, परिणाम, कार्य और प्रभावों के साथ बातचीत और अंतर्संबंध स्थापित करता है। पाठक वर्ग, अनुवाद समीक्षक, प्रकाशक, विपणक, संरक्षक, प्रेषक, और अनुवादक, आदि, इस समुदाय के प्रतिनिधि हैं।

2.                  अनुवाद श्रृंखला (Translation Chain) : अनुवाद पारिस्थितिकी में अनुवाद को एक उत्पाद की तरह देखा जाता है तथा अंतिम उत्पाद की निर्माण शृंखला में अनुवाद के तीन चरणों – 1. अनुवाद-पूर्व प्रक्रिया (Pre-translating), 2. अनुवाद-दौरान प्रक्रिया (During translating),  एवं 3. अनुवाद-पश्च प्रक्रिया (Post translating) के मध्य परस्पर संबंधो एवं अंतरक्रिया का अध्ययन किया जा सकता है।

3.                  अनुवाद के मूल तत्व (Essence of Translation) : अनुवाद पारिस्थितिकी अनुवाद के अनुकूलन और चयन सिद्धांत के आधार पर अनुवाद को अनुवादक की चयनात्मक गतिविधियों के रूप में परिभाषित करती है। इसका अंतिम उद्देश्य अंतर-सांस्कृतिक सूचना का संप्रेषण या प्रसारण है और इसमें पाठ, आधार का काम करता है तथा अनुवादक अग्रणी भूमिका निभाता है।

4.                  अनुवादकीय पारिस्थितिकी तंत्र (Translational Ecosystem) : यह समाज, संचार, संस्कृति और भाषा की एक प्रणाली है जो एक निश्चित स्थानिक संरचना और सामयिक परिवर्तन दर्शाता है और यह भी प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के समान स्व नियंत्रित और ग्रहणशील है। अनुवादकीय पारिस्थितिकी तंत्र को भाषाओं के मध्य और अनुवाद के घटकों और गैर-घटकों (समाज, संवाद और संस्कृति) के बीच लगातार पदार्थ चक्रण और ऊर्जा प्रवाह के माध्यम से गठित अनुवाद अध्ययन में संवाद और परस्पर निर्भरता की एक कार्यात्मक इकाई के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

5.                  अनुवादकीय पारिस्थितिकी (Translational Ecology): यह अनुवाद विषयों और उनके आसपास के परिवेश के बीच अंतर्संबंध और अंतःक्रिया की स्थिति है।  दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अनुवादकीय पारिस्थितिकी किसी परिवेश में अनुवाद संबंधी विषयों की अस्तित्वगत और कार्यशील स्थिति को दर्शाती है।

6.                  अनुवादकीय परिवेश (Translational Eco-environment): अनुवाद संबंधी पर्यावरण अनिवार्य रूप से अनुवादक के इष्टतम अनुकूलन और चयन से संबंधित सभी कारकों का एक एकत्रीकरण है। यह सूक्ष्म-परिवेश (micro-environment), मेसो-परिवेश (meso-environment) और स्थूल-परिवेश (macro-environment) में विभाज्य है, जिसमें अंतःभाषी वातावरण और बाह्यभाषी वातावरण, भौतिक वातावरण और आध्यात्मिक वातावरण और, इसके अलावा, विषय वातावरण (अनुवादक, लेखक, पाठक, प्रकाशक, संपादक, पर्यवेक्षक, आदि सभी व्यक्तियों) और वस्तु वातावरण (स्रोत भाषा पाठ, लक्ष्य भाषा पाठ, पाठ्य कार्य, अनुवाद रणनीतियाँ और अनुवाद नियमितताएँ, आदि) शामिल हैं।

यहाँ अनुवादकीय पारिस्थितिकी और अनुवादकीय वातावरण के बीच विभ्रांति हो सकती है इसलिए इन्हें एक साथ समझना आवश्यक है। अनुवादकीय पारिस्थितिकी में विषयों को उनके वातावरण में अस्तित्वगत और कामकाजी स्थिति की संपूर्णता को दर्शाया जाता है, जबकि अनुवादकीय वातावरण को अनुवाद के लिए प्रासंगिक विविध बाहरी तत्वों के एक समूह के रूप में बताया जा सकता है।

7.                  शक्तिशाली का संरक्षण और कमजोर का उन्मूलन (Preservation of the Strong and Elimination of the Weak): प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र में योग्यतम की उत्तरजीविता (survival of the fittest) का नियम लागू होता है। इसे दूसरे शब्दों में शक्तिशाली का संरक्षण और कमजोर का उन्मूलन कहा जा सकता है। किन्तु, अनुवाद पारिस्थितिकी के लिए यह सिद्धांत थोड़ा भिन्न है।

मुख्य अंतर इस तथ्य में निहित है कि प्राकृतिक प्रजातियों (जानवरों और पौधों) का प्राकृतिक वातावरण में अनुकूलन और प्राकृतिक चयन के तहत उनका पूर्ण उन्मूलन है, जो जैविक प्रजातियों के विलुप्त होने, गायब होने का संकेत देता है। अनुवादक या अनूदित पाठ (TT) का अनुवाद जगत में अनुवादात्मक पर्यावरण वातावरण के प्रति अनुकूलन और अनुवादात्मक पर्यावरण-पर्यावरण के चयन के तहत "उन्मूलन", इसके विपरीत, सापेक्ष हैं या, रूपक अर्थ में, "हताशा", "इनकार" को दर्शाते हैं। मानवीय व्यवहार या भावनाओं का "विलोपन," "प्रतिस्थापन," "गलत दिशा," या "नुकसान" दूसरे शब्दों में, अनुवाद गतिविधियों में अनुवादक या अनूदित पाठ की "अनुकूलन" या "कु-अनुकूलन," "ताकत" या "कमजोरी" निरपेक्ष नहीं बल्कि रूपक रूप से सापेक्ष हैं। इस बीच, विभिन्न अनूदित पाठ में सह-अस्तित्व के लिए जगह हो सकती है, क्योंकि वे विभिन्न अनुवाद उद्देश्यों के लिए अनुकूल हैं या विभिन्न पाठकों को संतुष्ट कर सकते हैं।

इस अर्थ में "मजबूत का संरक्षण और कमजोर का उन्मूलन" और "सह-अस्तित्व" प्रारंभिक के अनुरूप हैं: ‘इको-ट्रांसलेटोलॉजीका नाम और प्रकृति, पारिस्थितिकी के बुनियादी सिद्धांत हैं।

8. अनुकूलन और चयन की समग्रता (Holistic Degree of Adaptation and Selection): यह भाषायी, सांस्कृतिक और संचार आयामों में एक पाठ का निर्माण करते समय अनुवादक केचयनात्मक अनुकूलनकी समग्रता है और, तदनुसार, अनुवादात्मक पर्यावरण-पर्यावरण में अन्य तत्वों में भाग लेने कीअनुकूली चयनकी डिग्री है। आम तौर पर, अनुकूलन और चयन की समग्र डिग्री टीटी कीचयनात्मक अनुकूलनऔरअनुकूली चयनकी डिग्री के साथ सकारात्मक रूप से सहसंबद्ध होती है। इको-ट्रांसलैटोलॉजी के अनुप्रयोग के साथ, इष्टतम अनुवाद, तुलनात्मक रूप से, उच्चतम "अनुकूलन और चयन की समग्र डिग्री वाला संस्करण है।

यहाँ ऊपर दिए गए बिंदुओं को गेंशेन हू (Gengshen Hu) की पुस्तकइको-ट्रांसलेटलोजी : टुवर्ड्स एन इको-पाराडाइम ऑफ़ ट्रांसलेशन स्टडीजमें वर्णित अनुवाद पारिस्थितिकी के विशेष संदर्भ में स्पष्ट किया गया है।

अनुवाद पारिस्थितिकी में हमें अनुवाद की तीन प्रकार की प्रवृतियाँ देखने को मिलती हैं

1. अनुवाद,

2. चालबाजी या छद्म योजना के तहत अनुवाद, एवं

3. पुनरनुवाद।

1. अनुवाद : भाषा की समृद्धि को बढ़ाने के लिए भी अनुवाद एक उत्तम साधन है। अन्य भाषाओं में उपलब्ध सर्वोत्कृष्ट साहित्य के अनुवाद से भाषा समृद्ध होती है तथा नये विचारों से देश-समाज परिचित होता है। इससे दूसरे या अन्य समाज/देश को समझने एवं उनकी मानसिकता को जानने का अवसर मिलता है। साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। किसी समाज के मूल्य एवं चिंतन को समझना हो तो उनके साहित्य को समझना अपेक्षित है। बिना किसी समाज या देश को समझे उससे सफल संवाद नहीं किया जा सकता। पंचतंत्र का फारसी, फारसी से अरबी और अरबी से अन्य यूरोपीय देशों में अनुवाद इसी तरह के प्रयास थे। संस्कृत और पालि आदि के बौद्ध ग्रंथों का तिब्बती और चीनी भाषा में अनुवाद भी इसी प्रयोजन से हुआ था। अनुवादों के माध्यम से ही भारतीय साहित्य, चेतना और जनमानस का प्रसार पश्चिमी देशों एवं अन्य एशियायी देशों में हुआ।

2. चालबाजी या छद्म योजना के तहत अनुवाद :  कई बार दूसरे देश के साहित्य एवं जन मानस की चेतना को जानने के लिए अनुवाद का सहारा लिया जाता है। जब इस अनुवाद के पीछे कोई छुपा हुआ उद्देश्य नहीं होता है तो कोई प्रश्न नहीं करता। किंतु, कई बार ये अनुवाद दूसरी संस्कृति को जानने के साथ-साथ उसे जानबूझकर कमतर दिखाने के साधन के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। कई बार स्रोत भाषा के पाठ को कमतर ही नहीं वरन् उसे नकारात्मक ढंग से लक्ष्य भाषा में प्रस्तुत किया जाता है। प्राचीन भारतीय ग्रंथों का अंग्रेज़ो और अन्य यूरोपीय विद्वानों द्वारा किए गए अधिकांश अनुवाद इसी चालबाजी या छद्म योजना के तहत किया गया अनुवाद था। इसमें अनुवाद का घोषित उद्देश्य बड़ा समरसतापूर्ण दिखता है, किंतु असल उद्देश्य बहुत ही विकृत होता है। इस तरह के अनुवाद पुनरनुवाद को प्रेरित करता है।

3. पुनर्नुवाद : यह प्रक्रिया हमें दो स्थितियों में देखने को मिलती है। पहली स्थिति, जब किसी विशेष प्रयोजन सिद्धि से किसी कृति का अनुवाद किया गया हो। ये उद्देश्य कई प्रकार के हो सकते हैं; जैसेस्रोत भाषा की कृति को छोटा या कमतर दिखाना, स्रोत भाषा की संस्कृति एवं समाज को हीन दिखाना या उसका अपमान करना आदि। इस प्रकार के अनुवाद किसी निश्चित स्वार्थपूर्ति के लिए किए जाते हैं। पुनरनुवाद की प्रक्रिया पूर्व में किए गए अनुवाद/अनुवादों को गलत सिद्ध करने और उनके पीछे के निहित स्वार्थों को उद्घाटित करने के लिए किया जाता है। दूसरी स्थिति, यह भी हो सकती है कि कई बार अनुवादक पहले किए गए अनुवादों से संतुष्ट नहीं होता है और उसे लगता है कि वह अपने अनुवाद द्वारा कुछ नई बात लक्ष्य भाषा के पाठकों तक संप्रेषित कर सकता है, अत: वह इस उद्देश्य से भी पुनरनुवाद करता है

अनुवाद के लिए पारिस्थितिक पर्यावरण से क्या तात्पर्य है? अनुवाद के संदर्भ में तीन प्रकार की पारिस्थितिकी का उल्लेख किया जाता है – 1. पाठीय पारिस्थितिकी, 2. अनुवादक समुदाय की पारिस्थितिकी, और 3. अनुवाद पर्यावरण पारिस्थितिकी 17 इसके अंतर्गत पाठ की स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा दोनों में स्थिति, अनुवादक समुदाय की स्थिति एवं अनुवाद को लेकर कैसी मानसिकता या वातावरण है, इन सभी पारिस्थितिकियों का अनुवाद पारिस्थितिकी में अध्ययन किया जा सकता है। ये पारिस्थितिकियाँ भौगोलिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं मानसिक सभी पहलुओं से संबंधित हो सकती हैं।

अनुवाद पारिस्थितिकी के अंतर्गत अनुवाद नैतिकताओं का भी अध्ययन किया जाता है, जिनमें गेंशेन हू के अनुसार कुछ प्रमुख अनुवाद नैतिकताएँ निम्नलिखित हैं  :18

1. संतुलन एवं समन्वय (Principle of Balance and Harmony) : स्रोत पाठ एवं लक्ष्य पाठ के मध्य संतुलन एवं समन्वय होनी चाहिए।

2. चयनित  / चयनात्मक अनुकूलन (selective adaptation) : अनुकूलन हेतु हमें सोच-समझकर          चुनाव करना चाहिए एवं लक्ष्य भाषा की संस्कृति, समाज एवं परिवेश को ध्यान में रखते हुए ही स्रोत भाषा के तत्वों का अनुकूलन होना चाहिए।

3. अनुकूलित चयन (adaptive selection) : अनुकूलित चयन से हमारा तात्पर्य यह है कि लक्ष्य भाषा की परिस्थितिकी के अनुसार ही चयन भी अनुकूलित होना चाहिए।

चूँकि भाषा पारिस्थितिकी के अंतर्गत हम भाषाओं के परिवेश, राजनीति और उत्तर-उपनिवेशवाद आदि का भी अध्ययन करते हैं, इसलिए हमअनुवाद की राजनीतिऔरउत्तर-उपनिवेशवादकी अवधारणा एवं इससे संबंधित अध्ययन को भी अनुवाद पारिस्थितिकी के अंतर्गत ही रख सकते हैं। उपनिवेशवाद के दौरान कैसे अनुवाद होते थे और उसके पश्चात कैसे अनुवाद देखने को मिलते हैं, यह भी अध्ययन का विषय हो सकता है। यद्यपि अनुवादक आदर्श स्थिति में अनुवाद में अनुपस्थित या ओझल होता है और अनुवाद के विश्लेषण या अध्ययन के दौरान अक्सर हमारा ध्यान अनुवादक की मानसिक, आर्थिक, सामायिक और सामाजिक वातावरण की तरफ नहीं जाता है, तथापि उसके आसपास के परिवेश और वातावरण का अनुवाद कर्म और उत्पाद पर बहुत हद तक प्रभाव पड़ता है। अत: अनुवादक की मानसिक, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति का अध्ययन भी इसका अभिन्न अंग है। किसी पाठ का अनुवाद कोई महिला कर रही है या पुरुष कर रहा है, इससे भी अनुवाद की गुणवत्ता और दृष्टि पर अंतर देखने को मिलता है। इस प्रकार, अनुवादक के लिंग के संदर्भ में अनुवाद पर प्रभाव का अध्ययन भी अनुवाद पारिस्थितिकी का हिस्सा हो सकता है। हम जिन बिंदुओं का अध्ययनअनुवाद की राजनीतिके अंतर्गत करते हैं, उन अध्ययनों को भी हम अनुवाद पारिस्थितिकी के तहत रख सकते हैं। इसी के साथ इसमें जेंडर और अनुवाद, हाशिए का समाज और अनुवाद आदि का अनुशीलन किया जा सकता है। वस्तुनिष्ठता और विषयनिष्ठता, विभिन्न मानव समूहों या नस्लों के मध्य अनुवाद का अध्ययन भी अनुवाद पारिस्थितिकी के अंतर्गत हो सकता है।

अनुवाद पारिस्थितिकी का लक्ष्य नस्लीय, जेंडर, औपनिवेशिक श्रेष्ठता आदि विचारों के खंडन करना है। अनुवाद की गुणवत्ता और वस्तुनिष्ठता अनुवादक की आस्था-नस्ल-लिंग, विचार एवं पूर्वाग्रह आदि से प्रभावित होती है इसलिए अनुवाद पारिस्थितिकी का उद्देश्य इन कारकों के अध्ययन-विश्लेषण से अनुवाद को वस्तुनिष्ठ बनाने का प्रयास है। अनुवाद पारिस्थितिकी का दूसरा लक्ष्य अनुवाद अध्ययन की शोध प्रणाली में संतुलन बनाने हेतु  विभिन्न अनुवादों के मध्य अंतर-नृजातीय संवाद की स्थापना करना है। अनुवाद पारिस्थितिकी का तीसरा लक्ष्य अनुवाद अध्ययन को अधिक वस्तुनिष्ठ तरीके से एक नई अध्ययन दृष्टि का विकास करना है, जिससे अनुवाद अध्ययन के फ़लक का और वैज्ञानिक विस्तार हो। इससे अनुवाद को एक घटना के रूप में विश्लेषण करने एवं अनुवाद सिद्धांत अध्ययन को और अधिक विकसित करने में सहायता मिल सकेगी।

अनुवाद पारिस्थितिकी अध्ययन अभिगम के रूप में अभी अपना आकार ग्रहण कर रहा है। विद्वानों में इसे लेकर सर्वस्वीकार्यता की स्थिति नहीं बनी है और कई बिंदुओं पर अंतर देखने को मिलते हैं। इसके बावजूद इतना तो निश्चय है कि अनुवाद पारिस्थितिकी अनुवाद अध्ययन में एक नया अध्ययन का आयाम दे रहा है, जिसे अनुवाद अध्ययन के सभी कार्यक्रमों में शामिल करना अपरिहार्य है। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय ने इस दिशा में सकारात्मक और प्रसंशनीय पहल की है।

अनुवाद को परिघटना के रूप में देखने-समझने, अनुवाद सिद्धांत अध्ययन को समृद्ध करने और अंततः सामान्य रूप से अनुवाद अध्ययन के विकास को बढ़ावा देने के लिए अनुवाद पारिस्थितिकी (इको-ट्रांसलैटोलॉजी) को सामान्य अनुवाद अध्ययन की एक उप-शाखा के रूप में परिभाषित किया जा सकता है 19 अनुवाद पारिस्थितिकी अनुवाद और उसके आसपास के पारिस्थितिक वातावरण के मध्य संवाद का अध्ययन करने की क्रियाविधि एवं व्यवस्था विधान है। इसमें अनुवाद, भाषा, संस्कृति, मानव और उसका समाज और प्रकृति का अध्ययन शामिल है। जिस प्रकार गत्यात्मक समतुल्यता हो या स्कोपोस संप्रदाय अथवा विवरणात्मक अनुवाद अध्ययन, सभी से अनुवाद अध्ययन को एक नई दिशा मिली है और अनुवाद अध्ययन को एक विषयानुशासन के रूप में प्रतिष्ठित करने में मदद मिली है, उसी प्रकार अनुवाद पारिस्थितिकी से भी अनुवाद अध्ययन को अध्ययन हेतु एक नया दृष्टिकोण मिला है। पारिस्थितिकी विज्ञान और दर्शन को अनुवाद अध्ययन से जोड़ने एवं अंतरानुशासनिक अध्ययन को शामिल करने से अनुवाद अध्ययन निश्चय ही समृद्ध हुआ है। अनुवाद पारिस्थितिकी अनुवाद को नए परिप्रेक्ष्य में विचार-विमर्श और इसमें शोध करने का माध्यम है। अनुवाद पारिस्थितिकी अनुवाद के क्षेत्र में शोध एवं चिंतन को एक नया आयाम देता है, एक नवीन अभिगम प्रस्तुत करता है। इससे अनुवाद अध्ययन के क्षेत्र में एक नयी पद्धति से अनुवाद को समझने और देखने का दृष्टिकोण विकसित होगा तथा यह अनुवाद अध्ययन को एक विषयानुशासन के रूप में आगे विकसित करने में निश्चय ही सहायक होगा।

 

संदर्भ :

1- Gengshen, Hu. (2020).  Eco-Translatology: Towards an Eco-Paradigm of Translation Studies. Springer. पृष्ठ-04.
2- Watts, Alan. (1972). The book: On the taboo against knowing who you are. Vintage, Random House, पृष्ठ-84.
3- Palmer, J.D. (1974). ‘Language Ecology’ in TESOL Quarterly, Sep., 1974, Vol. 8, No. 3 (Sep., 1974), pp. 225-232, Teachers of English to Speakers of Other Languages, Inc. (TESOL).
4- वही
5- वही
6- RUEKERT, W. (1996). ‘Literature and Ecology: An Experiment in Ecocriticism.’ in The Ecocriticism Reader: Landmarks in Literary Ecology. Cheryll Glotfelty & Harold Fromm (eds.) Athens: University of Georgia Press.
7- Glotfelty, Cheryll & Fromm, Harold (eds.) (1996). The Ecocriticism Reader: Landmarks in Literary Ecology. Athens: University of Georgia Press.
8- वही, पृष्ठ- xviii.
9- Catford, J.C. (1965/1978). A Linguistic Theory of Translation: An Essay in Applied Linguistics. Oxford: Oxford University Press. पृष्ठ- 01.
10- Cronin, Michael. (2003). Translation and Globalization. New York: Routledge. पृष्ठ- 10.
11-https://bharatiyaanuvaparishad.org/#:~:text=%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6%E0%A5%8D%20%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B7%201964,%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A5%80%20%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4%20%E0%A4%A8%E0%A5%87%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%A5%E0%A5%80%E0%A5%A4  वर्धा, 28-10-2022, 21:42.
12- https://mgahv.in/Pdf/pathykram/LOCF_MA_Translation_2020_21.Pdf. वर्धा, 28-10-2023, 21:42.
13- Cronin, Michael. (2003). Translation and Globalization. New York: Routledge. पृष्ठ- 6, 165-169.
14- Jianzhong, Xu. (2009). Translation ecology. Beijing: China Three Gorges Press.
15- Gengshen, Hu. (2020).  Eco-Translatology: Towards an Eco-Paradigm of Translation Studies. Springer. पृष्ठ-08.
16- वही, पृष्ठ-10-13.
17- वही, पृष्ठ-15.
18- वही, पृष्ठ-68.
19- वही, पृष्ठ-15.


श्रीनिकेत
कुमार मिश्र

संस्कृतियाँ जोड़ते शब्द (अनुवाद विशेषांक)
अतिथि सम्पादक : गंगा सहाय मीणा, बृजेश कुमार यादव एवं विकास शुक्ल
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित UGC Approved Journal
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-54, सितम्बर, 2024

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