व्यतिरेकी विश्लेषण की सैद्धांतिक व्याख्या: हिन्दी और तमिल अनुवाद के विशेष सन्दर्भ में / ऋषि पाल वसुहंस

व्यतिरेकी विश्लेषण की सैद्धांतिक व्याख्या: हिन्दी और तमिल अनुवाद के विशेष सन्दर्भ में
- ऋषि पाल वसुहंस 

व्यतिरेकी विश्लेषण का लक्ष्य दूसरी भाषा के अधिग्रहण के दौरान अनुभव की गई भाषाई कठिनाइयों की भविष्यवाणी करना है। एक नई (दूसरी) भाषा सीखने में कठिनाइयाँ द्वितीयक भाषा और भाषा सीखने वाले की मातृभाषा के बीच के अंतर से उत्पन्न होती हैं। इस संबंध में, दूसरी भाषा के विद्यार्थीयों द्वारा मातृभाषा के बीच होने वाले संभावित रूप से की गई त्रुटियों की भविष्यवाणी की जाती है। ऐसी घटना को आमतौर पर नकारात्मक हस्तांतरण के रूप में भी जाना जाता है। इस प्रकार के त्रुटि विश्लेषण अन्तर-भाषिक होते हैं, जो मूल भाषा अथवा मातृभाषा के लिए विशिष्ट नहीं होते हैं। प्रत्येक भाषा की अपनी एक विशेषता है और यह विशेषता ही भाषा को एक दूसरे से भिन्न पहचान प्रदान करती है। व्यतिरेकी विश्लेषण का उपयोग उन्हीं भिन्नताओं को सूक्ष्म रूप से समझने के लिए होता है। कह सकते हैं कि व्यतिरेकी विश्लेषण भाषा शिक्षण में आने वाली कठिनाइयों की पहचान कर भाषा शिक्षण को विद्यार्थियों के लिए सुगम बनाने का भरसक प्रयास करता है। मनुष्य दूसरी भाषा सीखने के लिए पहले से सीखी हुई भाषा का सहारा लेता है। व्यतिरेकी विश्लेषण यहीं पर कार्यरत होता है। इसके द्वारा दोनों भाषाओं में मौजूद आसमान बिंदुओं को प्रकाश में लाया जाता है। इस प्रणाली से शिक्षण के समय भाषा शिक्षक द्वारा अभ्यास करने से भाषा शिक्षार्थी कम से कम त्रुटियां करते हैं। इस प्रकार व्यतिरेकी विश्लेषण भाषा शिक्षण में प्रमुख भूमिका निभाता है। व्यक्ति द्वारा मातृभाषा के अलावा द्वितीय भाषा से संपर्क होने पर उस भाषा को सीखने अनुवाद करने की लालसा तक ले जाता है। चूँकि अनुवाद दो भाषाओं के बीच होने वाले भाषाई सांस्कृतिक आदान-प्रदान का माध्यम है और स्रोत तथा लक्ष्य भाषा में अन्तर होना स्वाभाविक है अतः भिन्नताओं की जाँच के लिए अनुवादक को व्यतिरेकी विश्लेषण की आवश्यकता पड़ती है। व्यतिरेक ही अनुवादक के समक्ष समस्याएं प्रस्तुत करता है। अनुवाद की दृष्टि से भाषा के सार्थक तत्वों रूप विधान, वाक्य विधान और शब्द विधान का व्यतिरेकी विश्लेषण विशेष महत्व रखता है। इस तरह व्यतिरेकी विश्लेषण का कार्य क्षेत्र भाषा शिक्षण से अनुवाद तक प्रसारित है।

व्यतिरेकी विश्लेषण का अर्थ -

जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है व्यतिरेकी विश्लेषण की सहायता से भाषा विज्ञान में दो भाषाओं की तुलना करके दोनों भाषाओं विरोधी तत्त्वों का पता लगाते हैं। व्यतिरेकी का अर्थ है असमानता या विरोध। राबर्ट लाडो का मत है कि दोनों भाषाओं की व्यवस्थित तुलना के द्वारा समान, असमान और अर्धसमान तत्त्वों के कारण भाषा शिक्षण में व्याघात की स्थिति पैदा होती है। अतः इस व्याघात की स्थिति को दूर करने के लिए व्यतिरेकी विश्लेषण की सहायता ली जाती है। Difficulties in learning  a language can be predicted on the basis of a systematic comparison of the system of the learner’s first language [its grammar, phonology and lexicon] with the system of a second language.

कार्ल जेम्स के अनुसार, ‘Contrastive Analysis is a linguistic enterprise aimed at producing inverted [i.e. contrastive, not comparative] two – valued typologies [a C.A. is always concerned with a pair of the languages], and founded on the assumption that languages can be compared.

क्रिस्टल के अनुसार, ‘In the study of foreign language learning, the identification of points of structural similarity and difference between two languages is defined as Contrastive Analysis.

कृष्ण कुमार गोस्वामी के अनुसारव्यतिरेकी विश्लेषण द्वारा भाषा विज्ञान दो भाषाओं की समकालीन संरचनाओं में निहित समानताओं असमानताओं या भिन्नताओं को स्पष्ट रूप से सामने लाता है। इसकी सहायता से भाषा सीखने समय होने वाली त्रुटियों का अनुमान लगाया जाता है

डॉ. भोलानाथ तिवारी के अनुसार, ‘दो या दो से अधिक भाषाओं के सभी स्तरों पर तुलनात्मक अध्ययन द्वारा समानताओं और असमानताओं के निकालने को व्यतिरेकी विश्लेषण कहते हैं। 

व्यतिरेकी की विश्लेषण के संबंध में प्रो. सूरजभान सिंह कहते हैं- ‘ध्वनि, लिपि, व्याकरण, शब्द, अर्थ, वाक्य और संस्कृति जैसे विभिन्न स्तरों पर दो भाषाओं की संरचनाओं की परस्पर तुलना कर उनमें समान और असमान तत्वों का विश्लेषण करना व्यतिरेकी विश्लेषण कहलाता है

इस प्रकार व्यतिरेकी विश्लेषण पदावली अंग्रेजी के Contrastive Analysis का हिंदी पर्याय शब्द है। जिसमें किन्हीं दो भाषाओं की तुलना करते हुए उनमें समता और विषमता का अध्ययन तथा विश्लेषण किया जाता है। अनुवाद की दृष्टि से भाषा के सार्थक तत्वों- रूप विधान, शब्द विधान और वाक्य विधान का व्यतिरेकी विश्लेषण विशेष महत्व रखता है। व्यतिरेकी विश्लेषण प्रणाली के अंतर्गत भाषा के इन तत्वों के प्रभेदों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। दो भाषाओं की तुलना करते हुए उनमें आयी विषमता का पता चलता है। विषमता का यह विश्लेषण भाषा वैज्ञानिक शब्दावली में व्यतिरेकी विश्लेषण कहलाता है।

 व्यतिरेकी विश्लेषण का इतिहास -

व्यतिरेकी विश्लेषण का संबंध व्यतिरेकी भाषाविज्ञान से है, जो अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की एक शाखा है। व्यतिरेकी भाषाविज्ञान अपने आधुनिक रूप में बहुत पुराना नहीं है। 18वीं 19वीं शताब्दी के ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक भाषाविज्ञान में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सामान भाषाओँ के तुलनात्मक अथवा ऐतिहासिक अध्ययन के लिए तुलनात्मक शब्द का प्रयोग होता था, इसलिए भाषा विज्ञान की नई शाखा को व्यतिरेकी की कहा गया। क्योंकि इसमें समकालीन भाषाओं की केवल समानताओं और असमानताओं को देखा जाता है। बल्कि उनकी तुलनीय विशेषताओं का भी अध्ययन होता है। व्यतिरेकी विश्लेषण संक्षेप में मूल भाषा और उस भाषा की व्यवस्थित तुलना है जिसे शिक्षार्थी सीखना चाहता है। दूसरे शब्दों में, यह संरचनात्मक समानता और दो भाषाओं के बीच अंतर के बिंदुओं की पहचान करता है। 1950 और 1960 के दशक में भाषा शिक्षण के लिए संरचनात्मक भाषाविज्ञान के अनुप्रयोग के रूप में व्यतिरेकी विश्लेषण विकसित हुआ। व्यतिरेकी विश्लेषण पद्धति का सर्वप्रथम प्रयोग भाषा शिक्षण के संदर्भ में किया गया। जिसमें अन्य भाषा सीखने वालों को उसकी मातृभाषा एवं लक्ष्य भाषा के बीच स्थित समान एवं आसमान तत्वों से अवगत कराना निहित रहा साथ ही इस विश्लेषण के आधार पर शिक्षण सामग्री निर्मित की गई। इस दृष्टि से भाषा शिक्षण के क्षेत्र में व्यतिरेकी विश्लेषण का प्रमुख योगदान रहा। लाडो के अनुसार व्यतिरेकी विश्लेषण इस धारणा पर आधारित था कि दूसरी भाषा को सीखने वाला व्यक्ति अपनी पुरानी आदतों को दूसरी भाषा में स्थानांतरित कर देगा। व्यक्ति अपनी मूल भाषा, संस्कृति के रूपों और अर्थों के वितरण को स्थानांतरित करते हैं। वे रूप जो स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा में समान हैं, शिक्षार्थियों के लिए यह सुविधाजनक होता है, हालांकि जो अलग हैं वे उनके लिए कठिनाई का कारण बनते हैं। ऐसी स्थिति में व्यतिरेकी विश्लेषण शिक्षार्थीयों की द्वितीय भाषा अर्जन में मददगार सिद्ध होती है, और इसलिए इसमें द्वितीयक भाषा अधिग्रहण की सफल महारत के लिए प्रमुखबाधायाविरोधी तत्त्वशामिल हैं।

यदि हम व्यतिरेकी विश्लेषण सिद्धांत को भाषा शिक्षण के अतिरिक्त अनुवाद आदि के संदर्भ में भी देखते हैं तो यह बातें हैं कि इन दोनों क्षेत्रों में व्यतिरेकी विश्लेषण की पद्धति में कुछ अंतर भले ही हो किंतु प्रासंगिकता निर्विवाद है। वैसे भी यदि दूसरी भाषा शिक्षण को विस्तृत रूप प्रदान किया जाए तो यह एक प्रकार से अनुवाद सिखाना ही है। क्योंकि भाषा शिक्षण के अंतर्गत विद्यार्थी यदि अन्य भाषा सीख रहा होता है। तो इस शिक्षण प्रक्रिया के दौरान वह मातृभाषा और लक्ष्य भाषा के नियमों में परस्पर भेद करना ही सकता है। व्यतिरेकी है स्थित माना स्थिति में व्यावहारिक स्तर पर विद्यमान मातृभाषा के संरचनात्मक ढांचे का उपयोग अनुवाद करते हुए दूसरी भाषा सीखने में करता है। वह अपने मन मस्तिष्क पर लक्ष्य भाषा के नियमों का व्याकरण बना लेता है। इस तरह अनुवाद के क्षेत्र में भी व्यतिरेकी विश्लेषण की प्रक्रिया बहुत पहले से सांकेतिक रूप में दिखने लगती है।

व्यतिरेकी की विश्लेषण के विभिन्न स्तर -

व्यतिरेकी विश्लेषण की प्रक्रिया में मुख्यतः चार चरण होते हैं- विवरण, चयन, विषमता और अनुमान। विवरण के चरण में विश्लेषणकर्ता को दोनों भाषाओं का सामान्य विवरण प्रदान किया जाता है। चयन के समय विश्लेषणकर्ता विषमता का अध्ययन करने के लिए कुछ चुनिंदा स्वरूपों जैसे भाषा वैज्ञानिक अवयव नियम संरचना आदि का चयन करता है। तीसरे चरण में विषमता को चिन्हित किया जाता है परंतु दो भाषाओं के प्रत्येक समय को चिन्हित करना लगभग असंभव होता है। इसलिए दोनों भाषाओं के चुनिंदा अवयवों में से ही समानता और असमानता को दर्ज किया जाता है। अंतत अनुमान का चरण आता है जिसमें विश्लेषणकर्ता उन समस्याओं और कठिनाइयों का अनुमान करता है। जिनका अनुवाद अनुवादक को अन भाषा के पाठ का अर्थ समझने में सामना करने में पड़ सकता है। इस प्रकार व्यतिरेकी विश्लेषण द्वारा दो भाषाओं के अंतर निहित संबंधों को समझा जाता है और उसके आधार पर अंतर अतः संप्रेषण को प्रभावी बनाया जा सकता है। इस प्रकार व्यतिरेकी विश्लेषण अनुवाद प्रक्रिया में भी सहायक होता है।

सामान्यतः व्यतिरेकी विश्लेषण में हम परस्पर विरोधी तत्वों की खोज करते हैं और उनके आधार पर भाषा में आये व्यतिरेकों का पता लगाते हैं। चुंकि भाषाओं की विकास यात्रा अपनी निजी होती है अतः यहां व्यतिरेकी विश्लेषण का महत्व बढ़ जाता है। तमिल से हिन्दी अथवा हिन्दी से तमिल अनुवाद में व्यतिरेकी विश्लेषण के दौरान निम्नलिखित स्तरों पर असमानताएं देखी जा सकती हैं।

ध्वन्यात्मक व्यतिरेक ध्वनि विश्लेषण के समय प्राय संज्ञा वाचक व्यतिरेकी मिलते हैं। व्यतिरेकी  विश्लेषण करते समय स्रोत तथा लक्ष्य भाषा में विरोध उत्पन्न करने वाले ध्वनियों को ध्वनि विज्ञान के स्तर पर समझना पड़ता है। ध्वनियों का व्यतिरेकी विश्लेषण करते समय चार प्रकार दिखते हैं।

  1. वे ध्वनियां जो दोनों भाषाओं में समान होती हैं।
  2. वे ध्वनियां जो आंशिक रूप से समान होती हैं।
  3. वे ध्वनियां जो दोनों भाषाओं में मौजूद होती हैं, पर एक दूसरे से पूरी तरह भिन्न होती हैं।
  4. वे ध्वनियां जो स्रोत भाषा में होती हैं, पर लक्ष्य भाषा में बिल्कुल नहीं होती है।

उदाहरण के लिए तमिल भाषा में 12 स्वर और 18 व्यंजनों के साथ 247 ध्वन्यात्मक शामिल है। जबकि हिंदी भाषा में 11 स्वर और 35 व्यंजनों के साथ 372 ध्वन्यात्मक  संयोजन होते हैं। हिंदी में कुछ लोग तामिल या तमिल कुछ लोग तमिल् तथा कुछ लोग तमिष़ लिखने तथा बोलते हैं जबकि वस्तुत: मूल शब्द इन तीनों से ही अलग है। तो निकटतम में परिवर्तन के आधार पर तमिल या तामिल (जो ज्यादा प्रचलित है) को ही मान्यता मिलनी चाहिए। कुछ लोग तो यह मानते हैं कि अनुवाद करने में स्रोत भाषा की प्रत्येक नई ध्वनि को लक्ष्य भाषा में अपना लेना चाहिए तथा उसके लिए नए लिपि चिन्ह भी बना लेने चाहिए।तमिष़लिखने के पीछे यही धारणा रही है। तमिऴ’, हिंदी के , , तथा चारों ध्वनियों के लिए प्रयोग में लाया जाता है। क्योंकि तमिल एक ऐसी भाषा है जो अपनी लंबी परंपरा पर अत्यधिक निर्भर है इसलिए समय के साथ इस भाषा में काफी बदलाव आया है। जिसके कारण लिखित और मौखिक तमिल में कई अंतर उभर कर सामने आते हैं। इस समय अनुवादकों को सभी ध्वनियों को पहचानने में सावधानी से काम करना पड़ता है।

शब्द और अर्थ के स्तर पर व्यतिरेक - शब्द और अर्थ के स्तर पर स्रोत और लक्ष्य भाषा में अनेक ऐसे शब्द होते हैं। जिनका ठीक-ठाक अनुवाद कर पाना प्राय संभव नहीं होता है। अतः उनके सम्मुख व्यतिरेकी विश्लेषण ही एक मात्र विकल्प बचता है। उदाहरण के लिए तमिल मेंपशुका अर्थगायहैं, हिंदी की तरहजानवरनहीं। इसलिए वहांगोवधकोपशुवधकहते हैं। इन तथ्यों से असावधान अनुवादकपशुवधका अर्थजानवरों का वधसमझकर अनुवाद कर सकता है। हालांकि हिंदी में प्रयुक्त होने पर यह पदपशुवधका वह अर्थ नहीं दे पाएगा जो वह तमिल में देता है। इसलिए स्रोत और लक्ष्य भाषा में यदि कोई एक ही शब्द चलता हो तो स्रोत भाषा के किसी पाठ में उसका प्रयोग देखकर ही करना चाहिए। इसी प्रकार तमिल भाषा में एक ही शब्द भिन्न-भिन्न स्थलों पर भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग किया जाता है, जैसे-

जल - पीने का पानी

तण्णीर - ठंडा पानी

वेन्नीर- गर्म पानी

नीर - हाथ पैर धोने का पानी

तीर्थ - पवित्र जल जो मंदिरों में दिए जाते हैं

तण्णी पोडुवल - व्यंग्य में शराब पीना।

अतः अनुवाद करते समय लक्ष्य भाषा में शब्दों के पर्याय रूप को प्रयोग करने में काफी सतर्कता बरतनी चाहिए। इस प्रकार के व्यतिरेक प्रायः अनुवादक से गलती करा देते हैं। इस प्रकार व्यतिरेकी विश्लेषण की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। क्योंकि शब्द तथा उनके अर्थ सन्दर्भ, काल तथा क्षेत्र के आधार पर परिवर्तित होते रहते हैं।

वाक्यपरक व्यतिरेक - वाक्य के स्तर पर व्यतिरेक पदक्रम, लिंग तथा वचन में भी दिखाई देता है। किंतु इनका समाधान अनुवादक के लिए बहुत कठिन नहीं होता है। तमिल और हिंदी भाषा के संदर्भ में बात करें तो दोनों ही भाषाओं की वाक्य रचना में पदक्रम कर्ता+कर्म+क्रिया के रूप में होता है। जैसे-

नान् तमिल माणवन्।

मैं तमिल का विद्यार्थी हूँ।

यहां हम स्पष्ट देख सकते हैं कि हिन्दी  भाषा की तरह इस वाक्य मेंहै’, ‘हूँआदि का प्रयोग नहीं होता है।

हिंदी भाषा में संज्ञा के अनुसार विशेषण में परिवर्तन होता है परंतु तमिल भाषा में ऐसा कोई परिवर्तन नहीं होता है। उदाहरण-

लता अच्छी लड़की है। - लता नल्ल पैण।

निर्मल अच्छा लड़का है। - निर्मल नल्ल पैथन।

वह अच्छे लड़के हैं। - अवरगल नल्ल माणवर्गल।

तमिल भाषा में पुरुषवाचक सर्वनाम में ही पुरुष वचन और लिंग संबंधी भेद किए जाते हैं। प्रथम पुरुष में बहुवचन के दो रूप मिलते हैं- (நாம்) नाम् (நாங்க) नां‌‌ङ् ग। नाम् का प्रयोग तब होता है जब कहने वाला अपने साथ श्रोता को भी सम्मिलित करता है।

नाम् इन्दियर्गऴ्। - हम भारतवासी।

इसका अर्थ है कि वक्त और श्रोता दोनों इस 'हम' में सम्मिलित हैं।

நாங்கनाङ्गमें श्रोता सम्मिलित नहीं होता है। நாங்க தமிழர்கள் नाङ्ग तमिऴर्गळ - हम तमिल हैं। इसका अर्थ यह है कि केवल वक्त तमिल है श्रोता नहीं।

हिंदी भाषा में दो ही लिंग है- पुलिंग और स्त्रीलिंग। जिस प्रकार हिंदी में निर्जीव वस्तुओं के लिए भी पुल्लिंग या स्त्रीलिंग का ही प्रयोग होता है वैसे तमिल में नहीं होता है। इसके लिए हिंदी व्याकरण में कई नियम है उन नियमों में भी कुछ अपवाद उपस्थित हैं जैसे - खेत पुलिंग है जबकि जमीन स्त्रीलिंग और ग्रंथ पुलिंग है और पुस्तक स्त्रीलिंग परंतु तमिल भाषा में संस्कृत की तरह तीन लिंग होते हैं- आणपाल्पुल्लिंग, पेणपाल् - स्त्रीलिंग और पलविनपाल् - नपुंसकलिंग।

इसलिए तमिल से हिंदी में अनुवाद करना चुनौती पूर्ण हो जाता है। कभी-कभी तमिल शब्द के लिए सटीक पर्यायवाची शब्द ढूंढना काफी नहीं होता। उन शब्दों का लिंग निर्धारण भी आवश्यक होता है। जैसे तमिल में कडिदम् शब्द के लिए हिंदी में दो पर्यायवाची शब्द पत्र और चिट्ठी है। इनमें पहला शब्द पुल्लिंग है और दूसरा स्त्रीलिंग इन शब्दों का प्रभाव पूरे वाक्य में दिखाई देता है।

इसी प्रकार तमिल भाषा के लिंग वचन और पुरुष के चिन्ह भविष्य काल के वाक्य के क्रिया रूपों में वैसे ही होते हैं। जैसे वर्तमान काल के क्रिया रूपों में होते हैं। सिर्फ नपुंसकलिंग एक वचन में अंतर है। भविष्य काल के क्रिया रूपों में नपुंसकलिंग एकवचन और बहुवचन दोनों का चिन्ह एक ही होता हैं- उम् உம்

அது வரும் - वह आएगा।

அவை வரும் - वे आएंगे।

भाषिक तमिल में नपुसंक लिंग के लिए संज्ञा या सर्वनाम का बहुवचन रूप प्राय नहीं होता है। यहां तक की क्रिया रूपों में भी कोई बदलाव नहीं होता है। हिंदी के सर्वनाम में लिंग भेद नहीं दिखाई पड़ता मगर क्रिया में लिंग भेद का पता चलता है। जैसे- वह जाता है। वह जाती है। मैं जाता हूं। मैं जाती हूं।

तमिल भाषा के प्रथम पुरुष में सर्वनाम के लिंग भेद नहीं है। परंतु उत्तम पुरुष के सर्वनाम के लिए तीन लिंग होते हैं, अवन - पुलिंग, अवल - स्त्रीलिंग,अदु - नपुंसकलिंग। इसलिए हिंदी से तमिल या तमिल से हिंदी में अनुवाद करते समय प्रसंग को ध्यान में रखकर अनुवाद करना पड़ता है।

संयोजक शब्दों का विश्लेषण

संयोजक शब्दों का प्रयोग लगभग दुनिया की प्रत्येक भाषाओं में दो शब्दों अथवा वाक्य को जोड़ने के लिए होता है। हिंदी में और तथा से दो शब्दों अथवा वाक्य को जोड़ा जाता है। तमिल भाषा में भी इसी के समकक्ष दो शब्दों को जोड़ने के लिएउम्உம் शब्द का प्रयोग किया जाता है। यह उन शब्दों के अंत में प्रत्यक्ष रूप में जोड़ा जाता है। हिंदी भाषा में और तथा को जोड़े जाने वाले दो शब्दों के बीच में लिखा अथवा बोला जाता है जैसे- कुत्ता और लड़का। परंतु तमिल भाषा में शब्द दोनों शब्दों के साथ जुड़ता है। यदि दो से अधिक संख्याओं अथवा शब्दों को जोड़ना हो तब और अंतिम शब्द के पहले लिखा जाता है परंतु तमिल भाषा में उम् शब्द सभी शब्दों अथवा संज्ञाओं के साथ जोड़ा जाता है। जैसे- ‘नाय्நாய் , ‘पैयन्பையன் – ‘नायुम् पैयनुम्தாருல் பையனும்कुत्ता और लड़का

लिपि के स्तर परहिन्दी की तुलना में तमिल भाषा में स्पष्टतः कम अक्षर हैं। देवनागरी लिपि की तुलना में इसमें हृस्व () तथा हृस्व () भी शामिल हैं। प्रत्येक वर्ग (कवर्ग, चवर्ग आदि) का केवल पहला और अंतिम अक्षर उपस्थित है, बीच के अक्षर नहीं हैं जबकि अन्य द्रविड भाषाओं तेलुगु, कन्नड और मलयालम में ये अक्षर उपस्थित हैं। और के अधिक तीव्र रूप भी उपस्थित हैं। वहीं का कोमलतर रूप भी शामिल है। , एक ही अक्षर द्वारा लिखे जाते हैं। तमिऴ भाषा की एक विशिष्ट प्रतिनिधि ध्वनिहै जिसे देवनागरी लिपि मेंके समकक्ष नया जोडा गया है, जो स्वयंतमिऴशब्द में प्रयुक्त होता है (தமிழ்तमिऴ्)

उपसंहार : इस प्रकार व्यतिरेकी विश्लेषण भाषा शिक्षण के दौरान आने वाली कठिनाइयों की पहचान करता है और भाषा शिक्षण को शिक्षार्थियों के लिए सुगम बनाता है। जापानी अंग्रेजी पढ़ रहे हैं, फारसी लोग अंग्रेजी पढ़ रहे हैं, और अंग्रेजी बोलने वाले हिंदी पढ़ रहे हैं। अतः भाषाई प्रतिस्पर्धा  के इस दौर में व्यतिरेकी विश्लेषण एक आवश्यकता बन गया है।

सन्दर्भ : 
1-    गोस्वामी, कृष्ण कुमार. अनुवाद विज्ञान की भूमिका. राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली. 2022
2-    चौधरी, इन्द्रनाथ, तुलनात्मक साहित्य; भारतीय परिप्रेक्ष्य. वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली. 2018
3-    प्रभिला, के. पी. अनुवाद के व्यावहारिक आयाम, नई किताब. दिल्ली 2013
4-    बोरा, राजमल, भह. राजूरकर, तुलनात्मक अध्यायन. वाणी प्रकाशन नयी दिल्ली. 2015.
5-    मेहेर, डॉ. छबिल कुमार, भाषा-प्रयुक्ति और अनुवाद. नयी किताब प्रकाशन, नयी दिल्ली. 2020
6-    तिवारी, डॉ. बालेन्दु शेखर. अनुवाद विज्ञान, प्रकाशन संस्थान नयी दिल्ली. 2021
7-    समीर, डॉ. श्रीनारायण, अनुताद की प्रक्रिया तकनीक और समस्याएँ. लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद. 2012
8-    सिंह, अवधेश कुमार. अनुवाद विमर्श. साहित्य अकादमी. नई दिल्ली. 2019
9-    तिवारी, भोलानाथ. विदेशी भाषाओं से अनुवाद की समस्याएँ. प्रभात प्रकाशन, दिल्ली. 1981
10- तिवारी, भोलानाथ डॉ. किरण बाला. व्यतिरेकी भाषा विज्ञान. पृष्ठ संख्या 13
11- तिवारी, भोलानाथ. अनुवाद विज्ञान. किताबघर प्रकाशन. नयी दिल्ली. 2018.
12- James, C. Contrastive analysis. Longman. 1986
13- Bassnett and Lefevere, Translation, History and Culture, New York, Cassell. 1990
14- Berlin: Mouton de Gruyter. Gast, V. (forthcoming). Contrastive analysis: Theories and methods. In Kortmann, B. and J. Kabatek (eds.), Dictionaries of Linguistics and Communication Science: Linguistic theory and methodology.
15- Baker, Mona and Saldanha, Gabrial. Routledge encyclopedia of translation studies, 1990
 
ऋषि पाल वसुहंस
शोधार्थी (हिन्दी अनुवाद), जे.एन.यू, नई दिल्ली 
rpvasuhans@gmail.com

संस्कृतियाँ जोड़ते शब्द (अनुवाद विशेषांक)
अतिथि सम्पादक : गंगा सहाय मीणा, बृजेश कुमार यादव एवं विकास शुक्ल
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित UGC Approved Journal
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-54सितम्बर, 2024

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