प्रथम स्कूली भाषा से अंग्रेजी में अनुवाद : उत्तर भारतीय राज्य बिहार में हिंदी और अंग्रेजी अनुवाद में आने वाली चुनौतियाँ / शशि जायसवाल

प्रथम स्कूली भाषा से अंग्रेजी में अनुवाद : उत्तर भारतीय राज्य बिहार में हिंदी और अंग्रेजी अनुवाद में आने वाली चुनौतियाँ

- शशि जायसवाल

शोध सार : भारत को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता मिलने के दो दशक बाद Three Language Formula (तीन भाषा फॉर्मूला) (NPE, 1968) लागू किया गया था, जिसमें देश के विभिन्न राज्यों में प्रत्येक संभावित भाषा के महत्वपूर्ण योगदान और लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखा गया था। इस फॉर्मूले के सकारात्मक प्रभाव को नगण्य देखते हुए, वर्ष 1986 में भारत सरकार द्वारा तीन भाषा फॉर्मूला” (Three Language Formula) को संशोधित किया गया, जो देश भर में स्कूली पाठ्यक्रम में अनिवार्य भाषाओं के रूप में अंग्रेजी और हिंदी को पढ़ाने की वकालत करता है। हमारे अध्ययन में पाया गया है कि एक सरकारी स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाना और सीखना अभी भी कई छात्रों के लिए एक चुनौती का विषय है, जहाँ हिंदी भाषा को प्रथम भाषा (first language) के रूप में शिक्षण के माध्यम के रूप में पढ़ाया जाता है। इस अध्ययन में हमने हिंदी को मातृभाषा (Mother Tongue) के रूप में नहीं माना, क्योंकि सामान्यतया छात्र दैनिक उपयोग में घर पर अन्य भाषा(एँ) बोलते हैं। इस लेख का उद्देश्य उन छात्रों के सामने आने वाली चुनौतियों को हल करने में सरकार की रणनीतियों (strategies) की जाँच करना है, जो अपने विचारों को हिंदी से अंग्रेजी में मुश्किल से अनुवाद और भाषांतर कर पाते हैं और उच्च शिक्षा में अनुवाद के क्षेत्र में अपना करियर बनाने का सपना देखते हैं, जहाँ ज़्यादातर अंग्रेजी माध्यम की पृष्ठभूमि वाले छात्र ही होते हैं। शोध गुणात्मक प्रकृति (qualitative nature) का है, जहाँ डेटा का विश्लेषण करने के लिए केस स्टडी (case study) मोडैलिटी को अपनाया गया है। हमारे निष्कर्षों से पता चलता है कि आजादी के सत्तर साल बाद भी उत्तर भारत में छात्रों को अंग्रेजी और हिंदी में अपने विचार व्यक्त करने में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण वे उच्च शिक्षा भी छोड़ देते हैं। छात्रों के सामने आने वाली चुनौतियों को हल करने के लिए मौखिक कौशल विकास” (oral skill development) पर ध्यान केंद्रित करते हुए संचारात्मक शिक्षण-अधिगम प्रक्रियाओं” (Communicative Teaching-Learning Processes) की आवश्यकताओं का सुझाव दिया गया है, जिससे उनकी मातृभाषा (Mother Tongue) या प्रथम भाषा (First Language) से अंग्रेजी में अनुवाद प्रक्रिया को हल करने में आसानी होगी।

बीज शब्द : मीडिया और अनुवाद; हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद; राय अनुवाद में चुनौतियां; त्रिभाषा फार्मूला; Three Language Formula; स्कूली शिक्षा और अनुवाद।

मूल आलेख : भारत के उत्तरी राज्यों में सरकारी शिक्षण संस्थानों में हिंदी प्राथमिक भाषा है, इसलिए यह आवश्यक है कि शिक्षक इसे कक्षाओं में भी संचार के माध्यम के रूप में उपयोग करें। बिहार राज्य में भाषाई विविधताओं (Linguistic Variations) के कारण और सभी प्रकार के सरकारी कार्यों के लिए हिंदी आधिकारिक राज्य भाषा होने के बावजूद, लोग आमतौर पर राज्य के भीतर संचार (Medium of Communication) के लिए विभिन्न भाषाओं का उपयोग करते हैं। बिहार मुख्य रूप से मैथिली, मगधी, अंगिका और भोजपुरी भाषाओं का घर है। लेकिन इन सभी स्थानीय भाषाओं में से कोई भी भाषा सरकारी स्कूल में स्कूली पाठ्यक्रम (School Curriculum) में शिक्षा निर्देश अथवा शिक्षा ग्रहण करने की भाषा का हिस्सा नहीं है, जबकि ये चारों उपर्युक्त भाषाएँ दैनिक जीवन में, घर पर या कार्यालय में, कई लोगों द्वारा अक्सर बोली जाती हैं। यह सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों के लिए एक बड़ी समस्या पैदा करता है। मैथिली भाषी क्षेत्र का उदाहरण लें, तो छात्र आपस में शायद ही कभी हिंदी में संवाद करते हैं, जबकि वेलोग सभी विषयों की पढ़ाई हिंदी माध्यम में करते हैं, सिवाय अंग्रेजी के, जो अंग्रेजी भाषा में पढ़ाया जाने वाला एकमात्र विषय है। यहाँ तक कि सामान्यतः शिक्षक भी छात्रों के साथ स्थानीय भाषा (उदाहरण के लिए मैथिली) में ही संवाद करते हैं। इससे छात्र हिंदी का गहन ज्ञान प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं, जो उनकी पहली भाषा (First Language) है। राज्य में इसकी स्थिति (status) के कारण हम हिंदी को मातृभाषा (Mother Tongue) भी कह सकते हैं। अंग्रेजी, जिसे Three Language Formula (NPE, 1968, 1986) के अनुसार दूसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए था, वह भी स्कूली पाठ्यक्रम में तीसरे स्थान पर आती है। यह कई संभावित छात्रों के लिए मुश्किल पैदा करता है जो राष्ट्रीय स्तर पर अपना पेशेवर करियर बनाना चाहते हैं, जहाँ अंग्रेजी बुनियादी शिक्षा पूरी करने वाले किसी भी छात्र के जीवन को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शिक्षक और छात्रों के बीच संचार में हिंदी का कम उपयोग होने के कारण छात्र इस भाषा का गहन ज्ञान प्राप्त करने में भी असमर्थ हैं। यह उन्हें हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद करने के लिए उपयुक्त और पर्याप्त शब्दों की तलाश करने में सीमित करता है।

            बिहार की आम जनता इस बात से वाकिफ है कि यहां सभी सरकारी काम हिंदी और अंग्रेजी में होते हैं। यहां तक ​​कि यह भी पढ़ाया जाता है कि हिंदी हमारी मातृभाषा और राष्ट्रभाषा भी है। लेकिन, कई अभिभावकों को यह नहीं पता कि उनके बच्चे अपने सहपाठियों और शिक्षकों से हिंदी में संवाद करते हैं या नहीं। अभिभावक का प्रयास यह सुनिश्चित करना होता है कि उनके बेटे और बेटी व्यावहारिक तरीके (Pragmatic way) से स्कूल में हिंदी और अंग्रेजी सीखें। यहां तक ​​कि राज्य सरकार द्वारा लागू पाठ्यक्रम के अनुसार स्कूल में अंग्रेजी भाषा के शिक्षक की मौजूदगी भी है। लेकिन, हम पाते हैं कि शिक्षक का ध्यान हमेशा व्याकरणिक पूर्णता (Grammatical Perfection) पर होता है, इसलिए छात्र शायद ही कभी अंग्रेजी भाषा में संवादात्मक कौशल (Communicative Skill) हासिल कर पाते हैं। कक्षा में पढ़ने का कौशल (reading skill) पर भी कम ध्यान दिया जाता है। शिक्षकों द्वारा कार्य-आधारित भाषा शिक्षण(Task-based Language Teaching) भी नहीं किया जाता है। अंग्रेजी भाषा के शिक्षक भी छात्रों को संवादात्मक कौशल (Communicative Competence) हासिल करने के लिए प्रशिक्षित करने का शायद ही कभी प्रयास करते हैं। अंग्रेजी केवल स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा है, और छात्रों को यह समझने के लिए बाध्य किया जाता है कि केवल हिंदी में बोलना अंग्रेजी से अधिक महत्वपूर्ण है।

            “त्रिभाषा सूत्र” (Three Language Formula) (NPE, 1986) का समुचित रूप से पालन करने से हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में वाक्यों को समझने की समस्या का समाधान किया जा सकता है। इससे शिक्षार्थी को हिंदी से अंग्रेजी और इसके विपरीत अनुवाद करने के अपने ज्ञान को गहरा करने में मदद मिलेगी। मैं परियोजना लागू करने वाले अधिकारियों का ध्यान भाषा शिक्षण नीति” (Policy on Language Teaching) की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ, जो भाषा नीति” (Language Policy) से अलग है। साथ ही, एक अनुवादक के लिए अपनी मातृभाषा पर ठोस पकड़ होना आवश्यक है, जिससे वह अपने विचारों का अंग्रेजी में अनुवाद आसानी से कर सके। अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं में छात्रों के ज्ञान को गहरा करने की प्रक्रिया में स्कूल की कक्षा में द्विभाषी शिक्षा आवश्यक है (NPE, 1986) शिक्षक को स्थानीय भाषा मैथिली से अलग हिंदी भाषा में संवाद और निर्देश देना चाहिए। यह प्रक्रिया तीन साल की अवधि में छात्रों के बीच एक बड़ा बदलाव लाएगी, जहाँ मध्य एवं उच्च विद्यालय के छात्रों को हिंदी और अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ होगी। वे हिंदी में अच्छी तरह से संवाद करेंगे और अर्जित ज्ञान के आधार पर, अपने विचारों को अंग्रेजी में अनुवाद करने में कम कठिनाइयों का सामना करेंगे।

पद्धति (Methodology)

            यह बिहार, भारत की स्कूली शिक्षा का एक केस स्टडी है। अनुवाद, शिक्षण माध्यम और संचार पर इस शोध की प्रकृति गुणात्मक प्रकृति (Qualitative Nature) की है (PUNCH, 1994) यह अध्ययन दस्तावेजी विश्लेषण पर आधारित है, जहाँ हमने सरकारी अधिकारियों द्वारा तैयार किए गए दस्तावेजों और पाठ्यक्रम से डेटा लाया है (FALTIS, 1997; STAKE, 1994) और, लेखक के व्यक्तिगत अनुभव भी साझा किए गए हैं, जिन्होंने सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की थी और उसी राज्य से अपनी उच्चतर माध्यमिक शिक्षा पूरी की थी। अधिकांश डेटा बिहार में बुनियादी शिक्षा प्रणाली में हाल के विकास और राष्ट्रीय स्तर पर एक सरकारी स्कूल के छात्रों के प्रदर्शन से लिए गए हैं। हिंदी से अंग्रेजी में एक व्यक्ति की संचार क्षमता और राय संप्रेषण का विश्लेषण किया गया है। स्कूली पाठ्यक्रम में शिक्षण के माध्यम को किसी भी विषय के लिए छात्र के ज्ञान अधिग्रहण के आधार के रूप में लिया गया है।

सैद्धांतिक पृष्ठभूमि

            संचार माध्यम (Medium of Communication) और शिक्षण माध्यम (Medium of Instruction) एक दूसरे से समान रूप से जुड़े हुए हैं। कक्षा में शिक्षण माध्यम के रूप में जिस भाषा का उपयोग किया जाता है, संचार में उसका उपयोग नहीं किया जाता है। यह अनौपचारिक प्रक्रिया छात्रों के बीच विचारों को संप्रेषित करने में संचार की एक बड़ी समस्या उत्पन्न करती है। यहाँ, हम इस बात पर जोर देते हैं कि बुनियादी शिक्षा में शिक्षण माध्यम को संचार माध्यम के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए ताकि छात्रों के सामने प्रथम अथवा मातृ भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद करने की समस्या कम हो (AGNIHOTRI, 2001) बिहार में, हिंदी और अंग्रेजी ही एकमात्र भाषाएँ हैं जिनका उपयोग छात्र कक्षाओं में या सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों के लिए किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में शिक्षण माध्यम के रूप में करते हैं। जहाँ एक ओर कम संख्या में निजी स्कूल अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा प्रदान करते हैं, वहीं दूसरी ओर, अधिकांश निजी स्कूल हिंदी माध्यम में शिक्षा प्रदान करते हैं।

            यहाँ, हम निश्चित नहीं हैं कि अंग्रेजी को शिक्षण माध्यम के रूप में उपयोग करने वाले निजी स्कूल छात्रों के बीच अंग्रेजी भाषा के संचार पर ध्यान केंद्रित करते हैं या नहीं। यह परिकल्पना अंग्रेजी में बोलते समय छात्रों के प्रदर्शन पर आधारित है। निजी स्कूलों के अधिकांश छात्र शिकायत करते हैं कि शिक्षक छात्रों के साथ अंग्रेजी में बात नहीं करते हैं और छात्रों को अंग्रेजी में कक्षा निर्देश (Classroom instruction) मिलता है और उन्हें शिक्षकों द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार पाठ याद करना पड़ता है। छात्र यह भी दावा करते हैं कि स्कूल में दैनिक संचार में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा हिंदी है। इसका मतलब है कि भाषा के शिक्षण और निर्देशों की भाषा का स्कूली शिक्षा प्रणाली द्वारा पालन नहीं किया जाता है। एक ओर, जैसा कि हम जानते हैं कि हिंदी, राज्य की मुख्य आधिकारिक भाषा है, सरकारी स्कूल के छात्र केवल दैनिक संचार में इसका उपयोग करते हैं। इससे वैश्विक स्तर पर हिंदी में इस्तेमाल होने वाले अधिकांश शब्दों के ज्ञान को प्राप्त करने में अंतर पैदा होता है, या हम कह सकते हैं कि छात्र मानक हिंदी ज्ञान प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं।

            हम इस बात पर प्रकाश डालना चाहते हैं कि एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद करने के लिए अनुवादक को अपनीप्रथम भाषा” (First Language) या मातृभाषा पर पकड़ होना चाहिए। छात्र अपनी खुद की स्थानीय भाषा का इस्तेमाल घर पर या अपने रिश्तेदारों के साथ दैनिक जीवन में कर सकते हैं, लेकिन दैनिक जीवन में और साथ ही स्कूल के माहौल में स्कूल की प्रथम भाषा का इस्तेमाल दूसरों तक अपने ज्ञान को आसानी से पहुँचाने में सबसे महत्वपूर्ण है (JOHNSON, 1982) यही कारण है कि संचारी भाषा शिक्षण (Communicative Language Teaching) में शिक्षक का ध्यान छात्रों को लक्षित भाषा (Target Language) में संवाद करने में निपुणता हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करना होता है। यह लक्ष्य भाषा में पढ़ने, लिखने और बोलने से आता है (KRASHEN, 1982, 2013)

            बिहार राज्य, जहाँ पर द्विभाषी शिक्षा प्रणाली (Bilingual Education System) मौजूद है, स्कूल पाठ्यक्रम में दूसरी भाषा के रूप में अंग्रेजी पढ़ाने पर गंभीरता से विचार नहीं किया जा रहा है। राज्य त्रिभाषा सूत्र (NPE, 1968, 1986) का पालन नहीं करता है। इसलिए छात्रों को विज्ञान विषयों से लेकर कला और मानविकी तक सभी विषयों की शिक्षा हिंदी में मिलती है। सभी विषयों की हिंदी भाषा में पढ़ाई हमारी चिंता का विषय नहीं है। राज्य में हिंदी मातृभाषा है, इसलिए सभी छात्रों के लिए राज्य के मूल निवासियों के साथ बातचीत करना अनिवार्य है। हमारी चिंता यह है कि, "क्या हिंदी में दी जाने वाली शिक्षा का शिक्षक और छात्र गंभीरता से पालन करते हैं, या भविष्य में करेंगे?"

            शिक्षक छात्रों को हिंदी में शिक्षा देते हैं, लेकिन स्कूली समुदाय द्वारा संवाद में उसी भाषा का उपयोग नहीं किया जाता। जबकि हम समझते हैं कि छात्र को मातृभाषा में पत्रकार, वक्ता, वक्ता बनाने में संचार माध्यम सबसे महत्वपूर्ण है। छात्रों द्वारा हिंदी का कम उपयोग उन्हें अपनी राय या भावना व्यक्त करने से हतोत्साहित करता है। उन्हें अपनी स्थानीय भाषा में सोचना पड़ता है और फिर हिंदी में उपयुक्त शब्द खोजना पड़ता है। छात्र संवाद में दैनिक कार्यों में कई ऐसे शब्दों का उपयोग करते हैं जो मानक हिंदी भाषा में उपयोग नहीं होते मानक हैं। नतीजतन, वे अपनी स्थानीय भाषा, जैसे केस स्टडी के तौर पर मैथिली, को हिंदी के साथ मिला देते हैं। और वे मैथिली के साथ मिश्रित एक अलग तरह की हिंदी तैयार करते हैं।

            इस संदर्भ में हरिशंकर परसाई ने कहा था कि, “राष्ट्रीय हिंदी भाषा दिवस के शुभ अवसर पर एक हिंदी भाषा बोलने वाला व्यक्ति दूसरे हिंदी भाषी से कहता है कि हमें हिंदी में बात करनी चाहिए इसे हम व्यंग्य कह सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वे इस तथ्य से अवगत थे कि उत्तर भारत का हिंदी भाषा बोलने वाला भी आम तौर पर अपने दैनिक कार्यों में इसका प्रयोग नहीं करता।

            अब बात करते हैं कि दुनिया के भाषाविदों के अनुसार, अगर हम कोई ऐसी भाषा सीखते हैं और उसका दैनिक कामकाज में इस्तेमाल नहीं करते हैं, तो उसे एक मृत भाषा” (Dead Language) माना जाता है (JAISWAL, 2019) इस समस्या के समाधान के लिए यह ज़रूरी है कि हम उस भाषा का इस्तेमाल संवाद के लिए करें और उस भाषा के बारे में अपने ज्ञान को और गहरा करें (LABOV, 2007, 1974; KRASHEN, 1989) इसलिए, चूंकि उत्तर भारत में, खासकर स्कूली शिक्षा प्रणाली में, अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए छात्रों को कम से कम हिंदी में महारत हासिल करनी चाहिए, ताकि उन्हें हिंदी से अंग्रेज़ी में अपने विचारों का अनुवाद करने में आसानी हो।

            शिक्षकों और छात्रों दोनों को सीखने और अनुवाद करने की प्रक्रिया पर विचार करना चाहिए। हिंदी में महारत हासिल किए बिना, अंग्रेजी में अनुवाद करना बहुत दूर की बात है। भाषा सिखाने की नीति की कमी कई संभावित छात्रों को अस्पष्टता में छोड़ देती है। मीडिया और अनुवाद एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। एक बार जब हिंदी भाषी छात्र मानक हिंदी में महारत हासिल कर लेता है तो वह आसानी से अंग्रेजी में अनुवाद करने का उपयुक्त तरीका खोज सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि अंग्रेजी द्वतीय भाषा के रूप में अनिवार्य रूप से पढ़ाई जाती है एवं रज्य में अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र भी छपते हैं। इसके लिए, उसे अपनी पहली भाषा या जैसा कि हम मातृभाषा कहते हैं, उस पर पूरा नियंत्रण यानि पकड़ होना चाहिए।

परिणाम

            बिहार के छात्रों के लिए अनुवाद के पेशे में करियर बनाना मुश्किल रहा है, खासकर सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के लिए, क्योंकि उन्हें हिंदी भाषा का सही ज्ञान नहीं है, या अगर हम दूसरी भाषा में कहें तो उन्हें संचार की मानक हिंदी नहीं पढाई गयी है। यहाँ तक कि स्कूल की कक्षाओं और स्कूल के माहौल में समाजभाषा विज्ञान (Sociolinguistics) की प्रक्रिया का ठीक से पालन नहीं किया गया है (LABOV, 1974) शिक्षकों ने कक्षाओं में छात्रों के साथ किसी भी विषय पर संवाद करने (Communicating) के लिए शायद ही कभी हिंदी का इस्तेमाल किया हो। शिक्षक और छात्र अपनी स्थानीय भाषा में संवाद करते हैं, जो स्कूली शिक्षा का हिस्सा नहीं है। हिंदी माध्यम में पढ़ाई करने से भाषा अधिग्रहण की समस्या हल नहीं होती, जब तक कि शिक्षक और छात्र हिंदी में संवाद करें। अंग्रेजी एक अनिवार्य आधिकारिक भाषा है जिसे केवल अंग्रेजी विषय (पाठ्यक्रम) के लिए एक ही शिक्षक द्वारा पढ़ाया जाता है।

            हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद करने का प्रयास करने वाले छात्र को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सबसे पहले, उसे हिंदी भाषा संरचना पर अच्छी पकड़ नहीं होती। व्याकरण संबंधी ज्ञान का भी उचित उपयोग नहीं होता। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि शायद उनकी स्थानीय भाषा की व्याकरणिक संरचना हिंदी की व्याकरणिक संरचना से बिल्कुल अलग होती है। हिंदी और मैथिली दोनों भाषाओं में लिंग संबंधी मुद्दे भी हैं (उदाहरण के लिए)

विचार विमर्श/ चर्चा

            स्कूली पाठ्यक्रम में Three Language Formula (त्रिभाषा फार्मूले) का क्रियान्वयन (Implementation) जरूरी है। और सबसे महत्वपूर्ण है राज्य सरकार द्वारा लागू की गई शिक्षा प्रक्रिया का व्यावहारिक तरीके से क्रियान्वयन। त्रिभाषा फार्मूला लागू होने के बाद छात्रों और शिक्षकों के बीच हिंदी में संवाद की समस्याएँ हल हो जाएँगी। दूसरी बात, अंग्रेजी भाषा के अधिग्रहण (Acquisition of English Language) पर भी कम ध्यान दिया जाएगा। दूसरी भाषा (Second Language) का अधिग्रहण (Acquisition) पूरी तरह से उस भाषा के शिक्षक के प्रयासों पर निर्भर करता है (MUNBY, 1981) यह कक्षाओं में और कक्षा के बाहर भी मौखिक और पढ़ने के अभ्यासों (Oral and Reading Practices) के साथ आता है। Krashen (2013) का कहना है कि छात्रों के बीच पढ़ने (Reading) के अभ्यासों पर ध्यान दिए बिना, एक शिक्षार्थी के लिए दूसरी भाषा सीखना मुश्किल है। ज्ञान का ज्ञान का प्रसारण (Transmission of Knowledge) मौखिक रूप से शुरू होता है और इसके लिए कक्षाओं में उपयोग की जाने वाली नई तकनीकों के माध्यम से संचार कौशल (Communicative Competence) हासिल करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।

            मीडिया और अनुवाद में भी अपना करियर बनाने वाले छात्र आम तौर पर अच्छी शैक्षणिक पृष्ठभूमि से होते हैं। इसका मतलब है कि आम लोगों के लिए मीडिया और अनुवाद का रास्ता एक सपना बन जाता है (AKBAR, 2012) भाषा शिक्षण (Language Education) पर सरकार की नीति में बहुत सारी पहलों का अभाव है। सरकार भाषा नीति बनाती है, लेकिन वह "भाषा शिक्षण नीति" से अलग है। कई लोगों को लगता है कि "भाषा नीति" और "भाषा शिक्षण नीति" दोनों एक ही हैं। भाषा शिक्षण पर नीति का अभाव संभावित अनुवादक के लिए रास्ता कठिन बना देता है (CALVET, 2007)

            एक भाषा सीखने वाले को उत्सुकता से उस भाषा में महारत हासिल करनी चाहिए जिसमें वह सभी विषयों का अध्ययन करता है। भारत एक बहुभाषी देश है, इसलिए लगभग सभी राज्यों में द्विभाषी शिक्षा (Bilingual Education) को अपनाया जाता है। इसलिए, लगभग सभी हिंदी भाषी राज्य जो हिंदी को अपनी प्रथम भाषा (First Language) के रूप में उपयोग करते हैं, वे अंग्रेजी को अपनी दूसरी भाषा (Second Language) के रूप में भी उपयोग करते हैं। इसलिए, छात्र और शिक्षक दोनों ही लिखित और संचारात्मक तरीके से हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं के अधिग्रहण पर ध्यान केंद्रित करते हैं। व्याकरणिक संरचना पर ध्यान देना अच्छा है, लेकिन शिक्षकों को अब यह मत भूल जाना चाहिए कि किसी भाषा की मौखिक क्षमता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।

            कहानी सुनाना (Storytelling) और निबंध लेखन की विधा अनुवादक और विद्यार्थी को भाषा को सही तरीके से सीखने में मदद करती है। हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में शिक्षकों के साथ विद्यार्थियों की बातचीत पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग होनी चाहिए, जिसकी स्कूली शिक्षा प्रणाली में कमी है। विद्यार्थियों को यह नहीं सिखाया जाना चाहिए कि भारत में अंग्रेजी एक विदेशी भाषा है। सच तो यह है कि विदेशी भाषा (Foreign Language) और दूसरी भाषा (Second Language) में अंतर होता है। हिंदी के साथ अंग्रेजी भारत की दो राष्ट्रीय भाषाओं में से एक है। यह दर्शाता है कि उत्तर भारतीय पाठ्यक्रम में अनुवाद अध्ययन हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं के शिक्षण पर आधारित है।

            अगर छात्र उच्च शिक्षा या सरकारी नौकरियों में अपना करियर बनाना चाहते हैं तो अंग्रेजी के महत्व के बारे में छात्रों के बीच जागरूकता अभियान भी महत्वपूर्ण है। इसलिए, जैसा कि भारत ने 1968 में त्रिभाषा सूत्र (एनपीई, 1968) के शिक्षण को अपनाया था, बिहार के छात्रों के लिए कम से कम हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में महारत हासिल करना अनिवार्य है। एक बार जब कोई छात्र हिंदी में महारत हासिल कर लेता है, तो उसके लिए अगला कदम अंग्रेजी में संवादात्मक और लिखित दक्षता हासिल करना होगा। टेलीविज़न पर अंग्रेजी में समाचार प्रसारण का उपयोग अनुवादक के लिए बहुत मददगार है। अंग्रेजी में समाचार पत्र पढ़ने पर ध्यान केंद्रित करने से उनके शब्द भंडार में गहराई आएगी जो उन्हें अंग्रेजी में मीडिया अध्ययन में वाक्यों के उपयोग के साथ-साथ अंग्रेजी व्याकरणिक संरचना की मूल बातें समझने में मदद करेगी।

निष्कर्ष : किसी भाषा, जैसे कि हिंदी, का पर्याप्त शिक्षण अनुवादक में संचार कौशल के अधिग्रहण को बढ़ाएगा। हिंदी भाषा बोलने वाले में संचार कौशल के साथ हिंदी संरचना का उचित ज्ञान दूसरी भाषा में अनुवाद सीखने में अंतर पैदा करेगा। हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद करने के लिए हिंदी में पकड़ जरूरी है। शब्दों के ज्ञान की कमी के कारण छात्रों को मानक हिंदी (Standard Hindi) में अपनी राय व्यक्त करने में कठिनाई होती है। यह हिंदी में पर्याप्त अभ्यास से ही संभव होगा। स्कूल परिसर में स्थानीय भाषा का प्रयोग कम होना चाहिए। अगर मैं समाजभाषाई (Sociolinguistics) तरीके से बात करूं तो मैं स्थानीय भाषा के इस्तेमाल के खिलाफ नहीं हूं, लेकिन जब सभी विषयों के लिए हिंदी माध्यम की शिक्षा की बात आती है, तो यह आवश्यक है कि स्कूल के माहौल में सभी तरह के कामों के लिए हिंदी का इस्तेमाल किया जाए। छात्रों और अंग्रेजी भाषा के शिक्षक को स्कूली शिक्षा में अंग्रेजी के महत्व पर मिलकर काम करना चाहिए।

            अंग्रेजी सीखने में नई तकनीकों का उपयोग लागू नहीं किया जा रहा है। 10वीं कक्षा में अंग्रेजी भाषा को अनिवार्य विषय के रूप में नहीं पढ़ाया जाता है, जिससे छात्र हतोत्साहित होते हैं। इसलिए, 11वीं कक्षा में प्रवेश लेने पर छात्रों को अंग्रेजी के महत्व के बारे में कम जानकारी होती है। जबकि अंग्रेजी, अब तक उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण योगदान देती है जो विज्ञान और इंजीनियरिंग में अपना करियर बनाना चाहते हैं। स्कूली पाठ्यक्रम में भाषा शिक्षण की नीति को राज्य द्वारा संशोधित किया जाना अनिवार्य है।

संदर्भ :

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 शशि जायसवाल

संस्कृतियाँ जोड़ते शब्द (अनुवाद विशेषांक)
अतिथि सम्पादक : गंगा सहाय मीणा, बृजेश कुमार यादव एवं विकास शुक्ल
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित UGC Approved Journal
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-54, सितम्बर, 2024

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