राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और कक्षा 6 की हिंदी पाठ्यपुस्तक 'मल्हार’
- विश्वास एवं नविन्द्रा बाई
शोध सार : राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अस्तित्व में आने के बाद से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के निरन्तर प्रयास किये जा रहे हैं। देश में विद्यालयी शिक्षा की गुणवत्ता के लिए सन् 1961 से कार्यरत राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एन.सी.ई.आर.टी.) ने इसके लिए क्रमबद्ध रूप से अनेक कार्य किये हैं। इसी क्रम में एन.सी.ई.आर.टी. ने जुलाई 2024 में कक्षा 6 की हिन्दी की पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ का भी निर्माण किया है। यह पाठ्यपुस्तक राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एवं विद्यालयी शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF-SE) 2023 की संकल्पनाओं के अनुरूप तैयार की गई है। इसी आलोक में कक्षा 6 की हिन्दी की पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया गया। विश्लेषण के लिए जिन मानदंडों को अपनाया गया, वें राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एवं विद्यालयी शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF-SE) 2023 में वर्णित संकल्पनाओं के आधार पर तय किये गये हैं।
बीज शब्द : भाषाई कौशल, भारतीय संस्कृति, सामाजिक एवं नैतिक मूल्य, शिक्षण उपागम, आकलन, कौशल, बहु-अनुशासन, अंतःअनुशासन।
मूल आलेख : भाषा मानव को अद्वितीय देन है। भाषा के माध्यम से मनुष्य अपनी उच्चतम क्षमताओं का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। भाषाई पक्ष ही मनुष्य को अन्य जीवों से श्रेष्ठ बनाता है। औपचारिक शिक्षा की प्रक्रिया में भाषा केवल एक विषय ही नहीं अपितु अन्य विषयों की समझ विकसित करने और नये संप्रत्ययों को जानने में भी सेतु का कार्य करती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी भाषा को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इसके द्वितीय अध्याय बुनियादी साक्षरता एवं संख्याज्ञान में बाल्यावस्था में भाषा विकास और भावी जीवन से इसके घनिष्ठ संबंध को इंगित किया गया है। भाषा से जुड़े मूलभूत कौशलों (सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना) पर प्रारम्भ से ही ध्यान देना आवश्यक है। इसके साथ-साथ भावी जीवन से जुड़े विभिन्न कौशलों (यथा आत्म-विश्वास के साथ शिक्षकों और अन्य लोगों तक अपनी बात सही ढ़ंग से पहुंचा पाना, अपनी संस्कृति के प्रति श्रद्धावान होना, मन, वचन और कर्म से भारतीयता का विकास, सामाजिक और नैतिक मूल्यों का विकास करना, दूसरों के प्रति समानुभूति रखना और अन्य) का विकास भी भाषा-शिक्षण के माध्यम से किया जा सकता है।
विद्यालयी शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF-SE) 2023 में भाषाई पाठ्यचर्या के लक्ष्य -
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को ध्यान में रखते हुए विद्यालयी शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF-SE) 2023 में स्तरानुसार (बुनियादी स्तर, आरम्भिक स्तर, मध्य स्तर और माध्यमिक स्तर) भाषा के पाठ्यचर्या के उद्देश्य (Curricular Goals), दक्षताऐं (Competencies) एवं सीखने के प्रतिफल (Learning Outcomes) दिये है। मध्य स्तर (Middle Stage) पर विद्यालयी शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF-SE) 2023 में भाषा के संदर्भ में निम्नलिखित पाठ्यचर्या लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं-
1.मातृभूमि,
2. गोल,
3 पहली बूंद,
4. हार की जीत,
5. रहीम के दोहे,
6. मेरी मां,
7. जलाते चलो,
8. सत्रिया और बिहू नृत्य,
9. मैया मैं नंहि माखन खायो,
10. परीक्षा,
11. चेतक की वीरता,
12. हिन्द महासागर में छोटा सा हिन्दुस्तान,
13. पेड़ की बात
परन्तु प्रश्न यह है कि क्या वास्तव में यह पाठ्यपुस्तक राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एवं विद्यालयी शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF-SE) 2023 में वर्णित उद्देश्यों की पूर्ति करने में सक्षम है। इस प्रश्न के साथ कक्षा 6 की हिन्दी की इस पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ का विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है। पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ का विश्लेषण निम्नलिखित मानदंड के आधार पर किया गया हैं-
- पाठ्यपुस्तक का भौतिक पक्ष
- संवैधानिक, वैज्ञानिक, मानवीय मूल्य एवं आचार
- 21वीं सदी के कौशल
- सामाजिक-भावनात्मक, अधिगम कौशल एवं जीवन कौशल
- भारतीय ज्ञान प्रणाली- प्राचीन एवं शाश्वत
- भारतीय मौलिकता, भारतीय संस्कृति, बहु-भाषा एवं बहु-धार्मिक समाज
- उभरती हुई शिक्षण विधियां- अनुभवात्मक, कला-एकीकृत, खेल-एकीकृत, कहानी सुनना आदि
- बहु-अनुशासनात्मक एवं अंतःअनुशासनात्मक प्रकृति
- एन.ई.पी. एवं एन.सी.एफ. के क्रॉसकटिंग विषय
- संकल्पनात्मक समझ एवं संकल्पनात्मक शुद्धता
- गतिविधियों की प्रासांगिकता एवं पर्याप्तता
- सतत् विकास
- सीखने के संसाधन
- समग्र आकलन, 360 डिग्री बहुविध तरीके
पुस्तक का भौतिक पक्ष : आवरण पृष्ठ -
पुस्तक का शीर्षक ‘मल्हार’ है। मल्हार वर्षा ऋतु में प्रकृति के नूतन रूप, सृजन, सौन्दर्य और नयेपन का सूचक है। उसी प्रकार यह पुस्तक भी अपने गठन, विषयवस्तु और गतिविधियों में सृजन, सौन्दर्य और नयेपन पर बल देती है। इस पुस्तक का आवरण पृष्ठ पुस्तक के शीर्षक को भलिभांति प्रदर्शित करने में स फल रहा है। आवरण पृष्ठ पर रिमझिम होती बरसात और उसके साथ संगीत से जुडे़ चिन्हों का प्रदर्शन इसे सार्थक बनाता है। यह हमारी संगीत की प्राचीन विरासत को दिखाता है। बरसात में भीगते हुए पेड़, पशु-पक्षी व कुछ लोग दिखाई दे रहे हैं। सम्भवतः उनका बरसात के साथ मनभावन संबंध दर्शाने का प्रयास किया गया है। जेन्डर समानता भी आवरण पृष्ठ पर देखी जा सकती है। प्रकृति के साथ मानवजन का सामंजस्य भी इसमें दिखाई पड़ता है जो संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र का द्योतक है। वृक्ष के नीचे मनुष्यों का चित्रण उनकी प्रकृति के साथ निकटता को दिखाता है जो विद्यार्थियों को प्रकृति से निकटता बनाने के लिए प्रेरित करने का एक बेहतर प्रयास है। परन्तु मानवजनों के मनोभाव की स्पष्टता इसमें प्रतीत नहीं हो रहा है और अनुपातिक दृष्टि से वृक्ष बहुत बड़ा और मनुष्य बहुत ही छोटे प्रतीत हो रहे हैं।
अनुक्रमणिका, अक्षरों का आकार, चित्रों की गुणवत्ता, चित्रण, रंग, भाषा, आदि -
पुस्तक के भीतर अनुक्रमणिका को साधारण ढंग से ‘विषय-क्रम’ नामक शीर्षक से दिया गया है। आरम्भिक स्तर की हिन्दी पाठ्यपुस्तक की भांति इसमें पाठ से संबंधित चित्र नहीं दिये गये हैं। अनुक्रमणिका से पूर्व पुस्तक के शीर्षक ‘मल्हार’ अर्थ बताया गया है, जो इसमें नवीनता लाता है। वहीं अनुक्रमणिका के पश्चात् तमिल भाषा की हिन्दी में अनुदित कविता भारतवर्ष दी गई है। यह कविता विद्यार्थियों को देश के प्रति जोड़ने का एक सफल प्रयास है। साथ ही बहु-भाषिकता का पोषित करती भी प्रतीत होती है।
पुस्तक में दर्शायें गये दृष्टांत एवं उनसे जुड़े चित्रों को स्पष्ता से चित्रित किया गया है। इनमें न केवल चित्रकारों द्वारा बनाये गये चित्र दर्शाये गये है, बल्कि वास्तविक चित्र भी पुस्तक में देखने को मिलते हैं (पाठ संख्या 02 ‘गोल’, पृष्ठ संख्या 15 एवं पाठ संख्या 12, ‘हिन्द महासागर में छोटा सा हिन्दुस्तान’ पृष्ठ संख्या 130-131)। ये चित्र विषयवस्तु को सार्थकता प्रदान कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर पाठ संख्या 01 ‘मातृभूमि’ में पृष्ठ संख्या 09 पर दर्शायें गये वाद्ययंत्र, पाठ संख्या 08 ‘सत्रिया और बिहू नृत्य’ में पृष्ठ संख्या 77-80 पर दर्शायें असम की सांस्कृतिक छवियां, पाठ संख्या 09 ‘मैया मैं नहिं माखन खायों’ में पृष्ठ संख्या 101 पर दर्शाए गए वर्षों पहले प्रयोग में लाये जाने वाले घर के सामान के चित्र। पुस्तक में दिये गये दृष्टान्त विषयवस्तु की बेहतर समझ को विकसित करने के लिए पूरक सामग्री का कार्य कर रहे हैं। पाठ के बाद दी गई गतिविधियों के साथ विभिन्न प्रकार की दृश्य सामग्री समुचित ढंग से दी गई है। उदाहरणार्थ पृष्ठ संख्या 98 पर कविता की रचना गतिविधि के साथ लेखन करती हुई बालिका का चित्र।
इस पुस्तक में प्रत्येक पाठ के बाद रचनाकार का संक्षिप्त सचित्र परिचय दिया गया है। परिचय के साथ रचनाकार का चित्र का होना एक नई पहल है। इसकी विशेषता यह भी है कि इसमें रचनाकार की जीवनी देने के स्थान पर उनके जीवन के कृतित्व एवं व्यक्तित्व के विशिष्ट पक्षों का उल्लेख किया गया है।
पुस्तक में रंगो का संयोजन बेहद आकर्षक है (पाठ संख्या 03 ‘पहली बूंद’, पृष्ठ संख्या 25-26)। अक्षरों का आकार समुचित है तथा अलग-अलग रंगों में दिया गया है। गतिविधियों को व्यवस्थित ढ़ंग से संजोया गया है। पुस्तक के चित्र एवं अन्य दृष्टान्त दी गई विषयवस्तु के पूरक का कार्य कर रहे हैं।
संवैधानिक वैज्ञानिक, मानवीय मूल्य एवं आचार -
पुस्तक में पाठ संख्या 01 ‘मातृभूमि’ में पृष्ठ संख्या 10 पर वंदेमातरम् का भावार्थ समझाकर समूह में चर्चा करने के लिए कहा गया है। पाठ संख्या 02 ‘गोल’ में पृष्ठ संख्या 17 पर पंक्तियों पर चर्चा के माध्यम से मानवीय मूल्यों को पोषित करने का प्रयास किया गया है । पाठ संख्या 05 ‘रहीम के दोहे’ में पृष्ठ संख्या 47 पर नीतिपरक दोहे एवं उनसे जुड़ी गतिविधियां उपरोक्त मूल्य एवं आचार की प्रेरणा देते हैं। पाठ संख्या 07 ‘जलाते चलो’ में पृष्ठ संख्या 61-62 व 69 पर मानवीय मूल्यों की चर्चा की संभावनाऐं है।
21वीं शताब्दी के कौशल -
पाठ संख्या 01 ‘मातृभूमि’ में पृष्ठ संख्या 01 पर पंक्तियों पर चर्चा के अन्तर्गत दी गई गतिविधि से संप्रेषण एवं आपसी सहयोग के कौशलों के विकास के अवसर दिये गये हैं। पाठ संख्या 02 ‘गोल’ में पृष्ठ संख्या 19 पाठ से आगे में विश्लेषणात्मक कौशल से जुड़ी चर्चा की गई है। पाठ संख्या 03 ‘पहली बूंद’ में पृष्ठ संख्या 30 पर आपकी बात गतिविधि के अन्तर्गत सृजनात्मक कौशल को पोषित किया जा सकता है। इसी प्रकार पाठ संख्या 04 ‘हार की जीत’ में पृष्ठ संख्या 40, पाठ संख्या 06 ‘मेरी मां’ में पृष्ठ संख्या 57, पाठ संख्या 07 ‘जलाते चलो’ में पृष्ठ संख्या 64, पाठ संख्या 08 ‘सत्रिया एवं बिहू नृत्य’ में पृष्ठ संख्या 84, पाठ संख्या 09 ‘मैया मैं नहिं माखन खायो’ में पृष्ठ संख्या 101 एवं पाठ संख्या 10 ‘परीक्षा’ में पृष्ठ संख्या 117 पर दी गई विभिन्न गतिविधियां 21वीं सदी के कौशलों को विकसित करने सहायक है।
सामाजिक-भावनात्मक अधिगम कौशल एवं जीवन कौशल -
पुस्तक में पाठ संख्या 02 ‘गोल’ में पृष्ठ संख्या 13-15 पर दिये इस पाठ में खेल भावना एवं टीम भावना के महत्व को बताया गया है। इस पाठ में पृष्ठ संख्या 18 में मेजर ध्यानचंद के संस्मरण से ली गई पंक्ति पर चर्चा करके भावनात्मक कौशल पर चर्चा की जा सकती है। पुस्तक में पाठ संख्या 05 ‘रहीम के दोहे’ में पृष्ठ संख्या 47 पर सोच विचार के लिये में ‘पारस्परिक संबध कौशल’ को पोषित करने की संभावनाऐं उपस्थित है। पाठ संख्यां 07 ‘जलाते चलो’ में पृष्ठ संख्या 60-61 पर दी गई विषयवस्तु निरंतर कार्य में जुटे रहने की प्रेरणा दे रही है।
भारतीय ज्ञान प्रणालियाँ-प्राचीन एवं शाश्वत -
पाठ संख्या 01 ‘मातृभूमि’ पृष्ठ संख्या 01-02, 09-10 पर ‘देश की गौरवगाथा’ का वर्णन किया गया है और विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से राष्ट्रीयता विकसित करने का प्रयास किया गया है। ‘चित्रों व शब्द-जाल’ गतिविधि के द्वारा भारतीय वाद्ययंत्रों से विद्यार्थियों परिचय कराने का प्रयास किया गया है। पाठ संख्या 02 ‘गोल’ में पृष्ठ संख्या 21 पर ‘डांडी और गोथा’ खेलो के विषय में चर्चा की गई है, जो भारत के पुरातन खेल है। यह पुरातन भारतीय खेल वर्तमान दौर में विलुप्त होने के कगार पर हैं जिन्हें इस पाठ के माध्यम से पुनर्जीवित करने का प्रयास किया गया है। पाठ संख्या 07 ‘जलाते चलो’ पृख्ठ संख्या 63 पर अमावस्या एवं पूर्णिमा पर चर्चा की गई है। वहीं इसी पाठ के पृष्ठ संख्या 72-73 पर हिन्दी पंचांग दिया है जो भारत के प्राचीन परंपरा एवं संस्कृति की द्योतक है।
भारतीय मौलिकता, भारतीय संस्कृति, बहुभाषी और बहु-धार्मिक समाज -
पाठ संख्या 01 ‘मातृभूमि’ पृष्ठ संख्या 04 पर पंक्तियों पर चर्चा में भारतीय शौर्य और शांति की विरासत पर चर्चा करने के अवसर उपस्थित हैं। इसी पाठ में पृष्ठ 05 पर में भारतीय संस्कृति पर चर्चा की जा सकती है। पाठ संख्या 03 ‘पहली बूंद’ पृष्ठ संख्या 31 पर भारतीय संस्कृति से जुड़ा पारम्परिक वाद्य यन्त्र नगाड़ा के चर्चा की गई है। पाठ संख्या 08 ‘सत्रिया और बिहू नृत्य’ में पृष्ठ संख्या 75-93 पर पूर्वोत्तर राज्य असम के सांस्कृति नृत्य, वहां के प्राकृतिक सौन्दर्य एवं व्यंजनों की विस्तार से चर्चा की गई है। पाठ संख्या 09 ‘मैया मैं नहिं माखन खायो’ में पृष्ठ संख्या 103 पर समय का माप के अन्तर्गत पहर और सांझ, वेला जैसे शब्दों से परिचित कराया गया है।
पाठ संख्या 05 ‘रहीम के दोहे’ में पृष्ठ संख्या 48 पर शब्दों की बात गतिविधि में बहु-भाषिकता को पोषित करने का प्रयास किया गया है। पाठ संख्या 06 ‘मेरी मां’ में पृष्ठ संख्या 58 पर मां को अन्य भाषाओं में क्या कहकर पुकारते है, यह पूछा गया है जो बहु-भाषिकता को बढ़ावा देता है। पाठ संख्या 08 ‘सत्रिया और बिहू नृत्य’ में पृष्ठ संख्या 85-86 पर असम से जुडे़ शब्दों को पहचानकर लिखने को कहा गया है। इस गतिविधि के अन्तर्गत विद्यार्थीगण नये क्षेत्र के शब्दों से परिचित होंगे। पाठ संख्या 09 ‘मैया मैं नहिं माखन खायो’ में पृष्ठ संख्या 94 पर बृजभाषा की जानकारी मिलने के अवसर उपस्थित हैं।
उभरती हुई शिक्षण-विधियाँ-अनुभवात्मक, कला एकीकृत, खेल एकीकृत, कहानी सुनाना आदि -
पुस्तक के सभी पाठों में पाठ से एवं पाठ सं आगे के अन्तर्गत विभिन्न गतिविधियां दी गई है जो अनुभवात्मक, कला एकीकृत एवं खेल एकीकृत गतिविधियां है। वहीं भाषा शिक्षण के दौरान अनेक अवसर उपस्थित है जिनको कहानी सुनाने के माध्यम से उपयोग में लाया जा सकता है। उदाहरणार्थ पृष्ठ संख्या 20 पर डायरी लेखन, पृष्ठ संख्या 31 पर इन्द्रधनुषण का चित्रण, पृष्ठ संख्या 50 पर दोहे को गाकर रिकार्डिंग करने, पहेली बूझों, पृष्ठ संख्या 57 पर आत्मकथा लेखन, पृष्ठ संख्या 89 पर खिलौने बनाना, पृष्ठ संख्या 101 पर चित्र पहचानकर मातृभाषा के शब्दों को लिखना, पृष्ठ संख्या 104 पर चित्रों की सहयता से शब्द पहेली, पृष्ठ संख्या 115 पर रोल प्ले (अभिनय), पृष्ठ संख्या 118 पर सामूहिक गतिविधि वाद-विवाद, एवं पृष्ठ संख्या 124 पर शब्द-सीढ़ी के माध्यम से नवाचारी शिक्षण विधियों को अपनाने के अनेक अवसर उपस्थित हैं।
बहु-अनुशासनात्मक और अंतःअनुशासनात्मक प्रकृति -
पाठ संख्या 06 ‘मेरी मां’ में पृष्ठ संख्या 58 पर आपकी बात में रामप्रसाद ‘बिसमिल’ के मित्रों के नाम खोजिए और स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भागीदारी पर कक्षा में चर्चा कीजिए। यह चर्चा विद्यार्थियों को इतिहास विषय से जोड़ती है। पाठ संख्या 07 ‘जलाते चलो’ में पृष्ठ संख्या 70 पर अमावस्या व पूर्णिमा पर चर्चा विद्यार्थियों को खगोल विज्ञान की ओर ले जाती है। पाठ संख्या 08 ‘सत्रिया और बिहू नृत्य’ में पृष्ठ संख्या 84 बिहू एक कृषि आधारित त्यौहार है। इस पर चर्चा इसे कृषि विज्ञान से जोडती है। पाठ संख्या 12 ‘हिन्द महासागर में छोटा सा हिन्दुस्तान’ में पृष्ठ संख्या 142-143 पर उलझन सुझाओं में गणित विषय को समाविष्ट किया गया है। पाठ संख्या 13 ‘पेड़ की बात’ पृष्ठ संख्या 153 पर बीज को रोपित करने और उसके के अंकुरण की प्रक्रिया का अवलोकन करने की गतिविधि दी गई है। यह कृषि विज्ञान और वनस्पति विज्ञान दोनों से जुड़ी गतिविधि है।
एनईपी/एनसीएफएसई के क्रॉस कटिंग विषय -
पाठ संख्या 10 ‘परीक्षा’ पृष्ठ संख्या 105-121 के अन्तर्गत विषयवस्तु एवं उससे जुड़ी अन्य गतिविधियों के माध्यम से दया, करूणा, साहस एवं आत्मबल जैसे गुणों का महत्व बताया गया है। पुस्त क में जेन्डर समानता का पूरा-पूरा ध्यान रखा गया है। पाठ संख्या 09 ‘मैया मैं नहिं माखन खायो’ पृष्ठ संख्या 103-104 पर हम सब विशेष हैं के माध्यम से दिव्यांग व्यक्तियों के लिए समानुभूति एवं सम्मान का भाव उत्पन्न करने का प्रयास किया गया है, जो समाज में समावेशन को प्रोत्साहित करता है।
संकल्पनात्मक समझ, संकल्पनात्मक शुद्धता (Correctness) -
इस पुस्तक में प्रत्येक अध्याय में व्याकरण के संप्रत्ययों के प्रति समझ विकसित करने के लिए अलग से गतिविधियां दी गई है। उदाहरणार्थ पाठ संख्या 01 ‘मातृभूमि’ में पृष्ठ संख्या 06 पर कविता में पग-पग आया है। इसके अर्थ की सही समझ विकसित करने के लिए इसी प्रकार के अन्य उदाहरण दिये गये हैं।
गतिविधियों की प्रासंगिकता और पर्याप्तता -
इस पुस्तक में प्रत्येक पाठ के बाद भाषा कौशलों से जुड़ी अनेक गतिविधियां दी गई है। ये कौशलों के विकास में सहायक होने के साथ ही 21वीं सदी के कौशलों एवं विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिये भी उपयुक्त है। इन गतिविधियों को पुस्तक में पर्याप्त स्थान दिया गया है।
सतत् विकास -
इस पुस्तक में सतत् विकास से संबधित संकल्पना को पाठ संख्या 12 ‘पेड़ की बात’ पृष्ठ संख्या 145-149 पर, के माध्यम से दिया गया है। पाठ में की गई चचाओं के माध्यम से विद्यार्थियों को सतत् विकास के प्रति संवेदनशील बनाया जा सकता है।
सीखने के संसाधन -
इस पुस्तक में लगभग हरेक पाठ की चर्चा के दौरान पाठ्य सामग्री से संबंधित अधिगम-शिक्षण सामग्री के संसाधनों पर व्यापक रूप से उल्लेख किया गया है। पाठों में दिये गये विभिन्न दृष्टान्त अधिगम के महत्वपूर्ण संसाधन के रूप में प्रस्तुत किये गये हैं। उदाहरणार्थ पृष्ठ संख्या 10-11 पर वंदेमातरम् गीत सुनने के लिए लिंक, पृष्ठ संख्या 23 पर खोजबीन के लिए, पृष्ठ संख्या 24 पर एक दौड़ ऐसी भी, पृष्ठ संख्या 30 पर मौसम समाचार, पृष्ठ संख्या 31 पर नगाडे की जानकारी, पृष्ठ संख्या 50 पर रहीम के अन्य दोहे इंटनेट एवं पुस्तकायल से खोजना, पृष्ठ संख्या 70 पर अमावस्या एवं पूर्णिमा की जानकारी, पृष्ठ संख्या 87 पूर्वोत्तर की यात्रा एवं टाइम मशीन, पृष्ठ संख्या 89-90 पर डाक टिकट की जानकारी एवं पृष्ठ संख्या 92 पर मूंगा सिल्क की जारकारी।
समग्र आकलन, 360 डिग्री आकलन, बहुविध तरीके -
इस पुस्तक में प्रत्येक पाठ के बाद पाठ से की शुरूआत बहुविकल्पीय प्रश्नों से की गई है। परन्तु विद्यार्थियों से उत्तरों की व्याख्या भी मांगी गई है, जो एक नई पहल है। इसके अलावा खिलौने बनाने के दौरान विद्यार्थियों का मनोगतिकी पक्ष का आकलन करना भी संभव है। क्रियाशाल गतिविधियों के माध्यम से भी आकलन के अवसर उपस्थित हैं। इस पुस्तक में रूपात्मक एवं योगात्मक आकलन के अनेक अवसर प्रदान किये गये हैं। कुल मिलाकर यह पुस्तक सीखने का आकलन के स्थान पर सीखने के लिए आकलन पर आधारित है।
निष्कर्ष : राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद द्वारा निर्मित कक्षा 6 की हिन्दी भाषा की पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में साहित्य की प्रमुख विधाओं (कविता, कहानी, निबंध, आत्म-कथा, यात्रा वृतान्त एवं दोहे आदि) को लिया गया हैं। इस पाठ्यपुस्तक में देश प्रेम, पर्यावरण, विज्ञान, कला, इतिहास, खेल, और भारतीय समाज के अनुभवों को इन विधाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। इस पाठ्यपुस्तक में मूल पाठ के साथ रचनाकार से परिचय भी कराया गया है। साथ ही पाठ के बाद दी गई विभिन्न गतिविधियां एवं अभ्यास जैसे मेरी समझ से, मिलकर करें मिलान, पंक्तियों पर चर्चा, सोच-विचार के लिए, साहित्य की रचना, अनुमान या कल्पना से, शब्दों की बात, आपकी बात, आज की पहेली, व झरोखे आदि के माध्यम से विद्यार्थियों में भाषाई कौशलों के साथ-साथ उनमें तार्किक चिन्तन, रचनात्मक लेखन, समस्या-समाधान कौशल, निर्णयन क्षमता, एवं सम्प्रेषण क्षमता का विकास किया जा सकता है। जिस तरह की विषयवस्तु का चयन पाठ्यपुस्तक में किया गया है, उससे विद्यार्थियों में राष्ट्रीय एकता, नैतिक व सामाजिक मूल्यों का विकास एवं एक अच्छे नागरिक बनने का मार्ग प्रशस्त होने की सम्भावनाऐं उपस्थित है। हिन्दी की पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में राष्ट्रीय शिक्षा नीति की सिफारिश के अनुसार विषयवस्तु को कम किया गया है, परन्तु उसका समुचित विस्तार (Breath and Depth) भी किया गया है। उदाहरण के तौर पर पुस्तक मे दी गई कविता का मूल पाठ केवल दो पृष्ठों पर ही पूरी हो जाती है, परन्तु उससे अधिकाधिक सीखने के लिए जिन गतिविधियों का निर्माण किया गया है, वे लगभग दस पृष्ठों में दी गई हैं । इससे पता चलता है कि इस पुस्तक में सीखने के कितने अधिक अवसर उपलब्ध हैं।
विद्यालयी शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF-SE) 2023 में यह कहा गया है कि शिक्षक के लिए शिक्षण सम्बधी सुझाव पाठ्यपुस्तक में देने से पाठ्यपुस्तक का आकार (पृष्ठों की संख्या) अनावश्यक रूप से बढ जाता है (पृष्ठ सं 98, NCF-SE, 2023)। अतः इस पाठ्यपुस्तक में शिक्षकों के लिए कोई भी सुझाव शामिल नहीं किये गये हैं। ऐसी स्थिति में इस पाठ्यपुस्तक से पूर्ण लाभ अर्जित करने के लिए एक शिक्षक संदर्शिका तैयार करने की आवश्यकता प्रतीत होती है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद द्वारा निर्मित कक्षा 6 की हिन्दी भाषा की पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में उल्लिखित मूल संकल्पना एवं सिद्धान्तों को फलीभूत करने के लिए विद्यालयी शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF-SE) 2023 द्वारा दिये गये सुझावों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। जिसे शिक्षण प्रक्रिया के दौरान उचित शिक्षण उपागमों एवं आकलन प्रविधियों का प्रयोग करके प्राप्त किया जा सकता है।
1. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।
2. विद्यालयी शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF-SE) 2023, एन.सी.ई.आर.टी., नई दिल्ली।
3. मल्हार (2024), हिन्दी पाठ्यपुस्तक, कक्षा 6, एन.सी.ई.आर.टी., नई दिल्ली।
विश्वास
सहायक आचार्य, शिक्षा विभाग, क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, मैसूरू
vishwas.ncert@gmail.com, 9634397095
सहायक आचार्य, शिक्षा विभाग, क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, मैसूरू
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