शोध आलेख : राष्ट्रीय शिक्षा नीति : 2020 के संदर्भ में विद्यालय स्तर पर अधिगम संवर्धन और आईसीटी / मोनू सिंह गुर्जर

राष्ट्रीय शिक्षा नीति : 2020 के संदर्भ में विद्यालय स्तर पर अधिगम संवर्धन और आईसीटी
- मोनू सिंह गुर्जर

शोध सार : प्राचीन काल से प्रत्येक राष्ट्र अपने नागरिकों को शिक्षित व दीक्षित करके स्वंय को ज्ञानवान और विवेक सम्मत समाज बनाने हेतु सदैव प्रयत्नशील रहा है। वस्तुत: सामाजिक और राष्ट्रीय विकास के संदर्भ में शिक्षा की भूमिका और महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता है। भारतीय ज्ञान परम्परा में शिक्षा का स्थान सदैव सर्वोपरि रहा है। भारतीय ज्ञान परम्परा के आधार पर आधुनिक भारत में इतिहास की गौरवशाली परम्परा को पुनर्जीवित करने हेतु 34 वर्षो की दीर्घावधि के बाद 29 जुलाई, 2020 को राष्ट्रीय शिक्षा नीति–2020 का पदार्पण हुआ। यह नीति सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी –4) के विभिन्न लक्ष्यों को पूर्ण करने में प्रयत्नशील है। जिससे विद्यार्थियो को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान की जा सके। राष्ट्रीय शिक्षा नीति–2020 में पुरातन एवं नूतन मूल्यों को  समन्वित कर विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास की अवधारणा प्रस्तुत की गई है। जिसमें परम्परागत समृद्ध विरासत के साथ-साथ विज्ञान, प्रौद्योगिकी, कला, संगीत, अवधारणात्मक सोच, तार्किक चिन्तन के साथ-साथ नवाचारयुक्त आउट आफ द बॉक्स विचारों को प्रोत्‍साहित करने पर बल दिया गया है। जिससे प्रत्येक स्तर के विद्यार्थियों में अन्तर्निहित क्षमता का विकास किया जा सके। क्योंकि पूर्व की शिक्षा नीतियों 1968 में जहाँ शिक्षा तक पहुँच, 1986 में प्रारम्भिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण की बात की गई थी वहीं राष्ट्रीय शिक्षा नीति–2020 गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर विशेष जोर देकर विद्यार्थियों को अधिगम संवर्धन  हेतु प्रोत्साहित  करती है। प्रस्तुत लेख में हम विद्यालयी स्तर पर अधिगम संवर्धन का अर्थ तथा आज के बदलते वैश्विक परिवेश में सूचना और संचार तकनीक (ICT) विद्यालयी बच्चों के लिए सीखने-सिखाने में किस प्रकार सहायक हैं इस विषय पर चर्चा करेंगे। साथ ही हम विभिन्न प्रकार के संचार और तकनीकी उपकरणों की चर्चा करेंगे जो वर्तमान परिप्रेक्ष्य के अनुसार विद्यालयों में अधिगम संवर्धन के लिए प्रयोग किये जा रहे हैं, इन उपकरणों का लाभ तथा इनके प्रयोग में आने वाली चुनौतियों के साथ-साथ सुझाव पर भी प्रस्तुत लेख में चर्चा करेंगे।

बीज शब्द : राष्ट्रीय शिक्षा नीति–2020, अधिगम संवर्धन, आई.सी.टी., विद्यालयी शिक्षा, डिजिटल लर्निंग।

मूल आलेख  :

प्रस्तावना : राष्ट्रीय शिक्षा नीति–2020 के भाग–1 विद्यालयी शिक्षा के अन्तर्गत  वर्तमान व्यवस्था 10+2 के स्थान  पर 5+3+3+4 के शैक्षिक ढाँचे को अपनाते हुए विद्यालयी शिक्षा में नवोन्मेषी परिवर्तन लाया गया है। विद्यार्थियों में अधिगम संवर्धन के लिए भारत सरकार की महत्वाकांक्षी  योजना डिजिटल-इंडिया  का विजन भी दृष्टिगोचर  होता है। द डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर फॉर नॉलेज शेयरिंग (दीक्षा), ई-कंटेंट, भाषाओं से जुड़े कार्यक्रमों के संचालन के लिए सॉफ्टवेयर सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों की  मदद के लिए एनसीईआरटी में सीआईईटी के द्वारा और एनआईओएस के माध्यम  से शैक्षिक और तकनीकी से जुड़े कार्यक्रम भी शिक्षा में शैक्षिक उन्नयन के लिए प्रसारित किए जा रहे हैं साथ ही शिक्षा को सरल, सुगम और समावेशी बनाने के लिए ओपन–डिस्टेंस  लर्निंग कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाना जिससे दूर–दराज और पिछड़े क्षेत्रों में स्थित विद्यार्थियों  तक ज्ञान का प्रकाश सुगमता और सरलता पूर्वक पहुँच सके। इस ज्ञान के प्रकाश के विस्तार में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी मील का पत्थर साबित हो रही है। विद्यार्थियों का डाटाबेस बनाकर उनकी स्तर मॉनिटरिंग करना जिससे उनके अधिगम स्तर को जाना जा सके (एनईपी - 2020- 3.7) जो विद्यार्थियों के अधिगम संवर्धन में काफी सहायक सिद्ध हुई है। वैश्वीकरण के इस दौर में जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जो सूचना और संचार तकनीकी के प्रभाव से अछूता रहा हो ऐसे में शिक्षा के क्षेत्र में भी अधिगम संवर्धन हेतु सूचना और संचार तकनीकी (आईसीटी) की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण  हो जाती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति–2020 में विद्यालयी शिक्षा के अंतर्गत वर्तमान व्यवस्था 10+2 के स्थान पर 5+3+3+4 के शैक्षिक ढाँचे को अपनाते हुए विद्यालयी शिक्षा में नवोन्मेषी परिवर्तन लाया गया है जिससे बच्चों की उम्र 3 वर्ष से 18 वर्ष तक होगी। विद्यालयी शिक्षा, शिक्षा का वह स्तर होता है जहाँ प्रत्येक स्तर के विद्यार्थियों को मार्गदर्शन, सहयोग और निर्देशन की जरूरत होती है।

अधिगम का अर्थ और परिभाषा : अधिगम या सीखना शिक्षा के सभी स्वरूपों में केंद्र बिंदु माना जाता है। शिक्षा का स्वरूप चाहे जैसा हो (औपचारिक, अनौपचारिक और निरौपचारिक) शिक्षा के हर स्वरूप में अधिगम की भूमिका केंद्रीय रही है। अधिगम को मानवीय संदर्भ में जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया के रूप में शामिल किया गया है। शिशु जन्म से ही नही बल्कि गर्भ से ही सीखना प्रारम्भ कर देता है ये बाते भारतीय ज्ञान परम्परा में पौराणिक ग्रंथो में मिलती है। इस बात को विभिन्न वैज्ञानिक अनुसंधानों ने भी सत्यापित किया है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि अधिगम जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। वुडवर्थ के अनुसार- “सीखना विकास की प्रक्रिया है।” जे.पी. गिलफोर्ड ने अधिगम पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि- “व्यवहार के कारण, व्यवहार में परिवर्तन ही सीखना है। इस प्रकार सीखना एक सतत् और व्यापक प्रक्रिया है।”


अधिगम संवर्धन : अधिगम संवर्धन से तात्पर्य विद्यार्थी के व्यावहारिक ज्ञान मे बढ़ोत्तरी से है। व्यवहार में स्थायी प्रगति को ही अधिगम संवर्धन कहा जाता है। अधिगम संवर्धन के लिए निम्न बातों का होना आवश्यक है-

  • अधिगम संवर्धन के लिए सहयोगपूर्ण शैक्षिक परिवेश होना चाहिए।
  • अधिगम संवर्धन के लिए विद्यार्थियों में समस्या समाधान क्षमता का विकास करना चाहिए।
  • अधिगम में सृजनात्मकता तथा नवाचार होना चाहिए।
  • अधिगम संवर्धन के लिए सूचना संचार तकनीकी और सम्प्रेषण के माध्यम महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • शिक्षण के नवीन उपागम (ग्रुप लर्निंग, सहयोगात्मक अधिगम, लर्निंग आउट कम बेस्ड टीचिंग, गतिविधि आधारित शिक्षण आदि) महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • अच्छी आदतों के विकास से भी अधिगम बढ़ता है।
  • विद्यालय ज्ञान को समाज के ज्ञान से जोड़ने पर अधिगम में बढ़ोतरी होती है (राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा-2005)।

अधिगम संवर्धन और आई.सी.टी. : आज के बदलते वैश्विक परिवेश में सूचना और संचार तकनीकी के प्रयोग से विद्यार्थियों के सीखने और सिखाने की प्रक्रिया में आईसीटी काफी सहायक सिद्ध हुई है। कोविड -19 के बाद हमारे देश में आईसीटी का प्रयोग तेजी से बढ़ा है। आज आईसीटी न केवल एक टूल बल्कि सीखने, सिखाने का सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। सीखने और सिखाने की प्रक्रिया में आईसीटी के प्रयोग इस प्रकार है- 


ब्लेंडेड लर्निंग (मिश्रित प्रणाली शिक्षा) : शिक्षा जगत में ब्लेंडेड लर्निंग के प्रचलन ने विद्यार्थी की शिक्षा तक पहुँच को आसान बना दिया है। सीखना शब्द अब कक्षा की चार दीवारी से काफी आगे निकल चुका है। डिजटलीकरण के इस युग में कई तरह के बदलाव आए हैं, जो पहले कभी नहीं देखे गये थे। आज सीखने की प्रक्रिया में प्रौद्योगिकी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। ब्लेंडेड लर्निंग सीखने की एक ऐसी विधि है जो पारम्परिक शिक्षण में काफी बदलाव लाई है। छात्रों में सीखने के साथ-साथ उत्कृष्टतम कौशल विकास में काफी सहायक सिद्ध हुई है। मिश्रित प्रणाली शिक्षा या ब्लेंडेड लर्निंग एक औपचारिक शिक्षा कार्यक्रम है, जिसमें विद्यार्थी पाठ्यक्रम का एक भाग कक्षा में पूरा करता है और दूसरा भाग डिजिटल एवं ऑनलाइन संसाधनों का प्रयोग करके सिद्ध करता है। ब्लेंडेड लर्निंग में समय, जगह, विधि तथा गति का नियंत्रण विद्यार्थी के हाथ में है। डिजिटल लर्निंग से छात्रों को स्वतंत्रता और आगे बढ़ने का अवसर भी मिलता है जिससे विद्यार्थी स्वगति से अपने पाठ्यवस्तु उद्देश्य की ओर आगे बढ़ते हैं। ब्लेंडेड लर्निंग विद्यार्थियों के अधिगम में काफी सहायक है जो इस प्रकार है-

  1. समय की बचत और प्रभावी उपयोग में सहायक
  2. सीखने और सिखाने में स्वतंत्रता
  3. रचनात्मक कार्यों में सहायक
  4. नवाचार और खोजी प्रवृति को बढ़ाने में सहायक
  5. सीखने और सिखाने की सामग्री तक आसानी से पहुँच
  6. सम्प्रेषण क्षमता के विकास में सहायक
  7. छात्रों के अधिगम संवर्धन में सहायक
  8. अधिकतम छात्र सहभागिता को बढ़ावा देता है
  9. बेहतर छात्र प्रदर्शन और मूल्यांकन में सहायक
  10. छात्रों की प्रेरणा और प्रदर्शन में सुधार करता है।

फ्लिप्ड क्लासरूम : फ्लिप्ड क्लासरूम की अवधारणा 2000 में आई। इस अवधारणा के अनुसार कक्षा-कक्ष मे व्याख्यान विद्यार्थियों के सीखने-सिखाने में उतना सहायक नहीं हैं, जितना कि उनको ब्लेंडेड लर्निंग के माध्यम से गृह कार्य और ऑनलाइन सपोर्ट करने से हैं। फ्लिप्ड क्लासरूम अनुदेशात्मक रणनीति और ब्लेंडेड लर्निंग का एक प्रकार है। फ्लिप्ड क्लास रूम में विद्यार्थी घर पर भी कक्षा-कक्ष की गतिविधियों में प्रतिभाग कर सकते हैं। ऑनलाइन क्लास घर पर ले सकते हैं। शिक्षक द्वारा भेजे गये ई.कन्टेन्ट को पढ़ सकते हैं। भेजे गये ई.कान्टेन्ट पर असाइनमेण्ट बना सकते हैं। यदि किसी विषयवस्तु पर काॅन्सेप्ट क्लियर न हो तो कक्षा शिक्षक से समस्या पर समाधान के लिए कर सकते हैं। इसमें शिक्षक प्रत्येक विद्यार्थी पर आसानी से ध्यान दे पाता है। साथ ही साथ छात्र समूह में भी सीख सकतें हैं और अपने विचारों को साझा कर सकते हैं। इस प्रकार फ्लिप्ड क्लास रूम प्राचीन परम्परागत शिक्षण शैली को उन्नतशील बनाते हुए नवीन नवाचार युक्त शैली को प्रोत्साहित करती है, जिससे विद्यार्थियों में रचनात्मकता का विकास होता है।


स्वयं (SWAYAM) प्लेटफार्म : स्वयं भारत सरकार की एक ऑनलाइन शैक्षिक प्रौद्योगिकी पहल है। यह एक ऑनलाइन शिक्षा कार्यक्रम है। यह एक मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्स (MOOCs) प्लेटफॉर्म है। यह प्लेटफार्म शिक्षा नीति के तीन प्रमुख सिद्धान्तों - पहुँच, समता, गुणवत्ता को प्राप्त करने के उद्देश्य से लाॅन्च की गई है। यह प्लेटफार्म विद्यालयी शिक्षा में माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध है। इस प्लेटफार्म पर वीडियो लेक्चर, विशेष रूप से तैयार की गई पठन सामग्री, स्व-मूल्यांकन परीक्षण, ऑनलाइन चर्चा आदि उपलब्ध है, जहाँ विद्यार्थी स्वतंत्रता पूर्वक पढ़-लिख और सीख सकते हैं एवं अपनी शंका का समाधान कर सकते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में विद्यार्थियों के अधिगम संवर्धन के लिए ऑन लाइन अधिगम, ओडी.एल. पहल को प्रोत्साहित भी किया गया है। (राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020)


दीक्षा पोर्टल : राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में विद्यार्थियों के अधिगम संवर्धन और गुणवत्तापूर्व शिक्षा प्रदान करने के लिए ऑनलाइन अधिगम के लिए दीक्षा प्लेटफार्म का जिक्र किया गया है। दीक्षा यानी ‘डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर फॉर नालेज शेयरिंग’ एक मोबाइल फोन या लैपटॉप में इंस्टॉल करने वाला ऑनलाइन ऐप है। जिसमें विद्यालयी स्तर के सभी विद्यार्थियों के लिए अधिगम सामग्री उपलब्ध है। चाहे वे केन्द्रीय बोर्ड के विद्यार्थी हो या किसी राज्य बोर्ड के विद्यार्थी ऐप पर विभिन्न भाषाओं में भी सामग्री उपलब्ध है जैसे- अंग्रेज़ी, बंगाली, तमिल, तेलगू, ओड़िया, पंजाबी, हिंदी आदि। इस प्रकार दीक्षा ऐप के माध्यम से एक छात्र न केवल पढ़ाई कर सकता है, बल्कि कमेंट बॉक्स में जाकर अपने शंका का समाधान भी कर सकता है। यह ऐप न केवल शिक्षकों के लिए बल्कि छात्रों और अभिभावकों के लिए भी उपलब्ध है। यह ऐप आकर्षित शिक्षण सामग्री से भरा हुआ है, जो निर्धारित स्कूल पाठ्यक्रम की आवश्यकताओं को पूरा करता है।

दीक्षा ऐप के निम्नलिखित लाभ हैं :

  • इस ऐप का प्रयोग पूरी तरह मुफ्त है और यह गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध है। इसके माध्यम से विद्यार्थी घर बैठे अपने मोबाइल या कंप्यूटर से ही मुफ्त में पढ़ाई कर सकते हैं।
  • इस ऐप के माध्यम से देश के सभी शैक्षणिक परिषदों की शिक्षा सामग्री प्राप्त की जा सकती है।
  • यह ऐप विद्यार्थियों के अलावा शिक्षक, शिक्षाविद, विशेषज्ञ, संगठन, संस्थाएं इत्यादि सभी के लिए लाभदायक है।
  • इस ऐप में कई प्रकार की शिक्षा सामग्री दी गई है, जो कई प्रकार के प्रारूपों में उपलब्ध है जैसे पीडीएफ(pdf), वीडियो, ऑडियो इत्यादि।
  • विद्यार्थी शिक्षा सामग्री को अपने फोन में सेव कर सकते हैं, और जब चाहे तब उसे पढ़ सकते हैं क्योंकि यह एप ऑनलाइन भी काम करता है।
  • इस ऐप में प्रथम कक्षा से लेकर दसवीं कक्षा तक की अध्ययन सामग्री उपलब्ध है।

रीड अलोंग ऐप :  यह एक मजेदार रीडिंग ट्यूटर अथवा रीड एलांग ऑनलाइन रीडिंग ऐप है, जिसे 5 वर्ष या उससे अधिक आयु के बच्चों के लिए विकसित किया गया है। बच्चे कंप्यूटर या एंड्रॉयड डिवाइस पर पढ़ने के कौशल को विकसित करने के लिए इस ऐप का प्रयोग करते हैं, जो बच्चों को खेल के माध्यम से पढ़ाने और सिखाने में मदद करता है। इसमें दीया नाम की एक सहायक कृत्रिम बुद्धिमत्ता है जो पढ़ाने का काम करती है। यह ऐप खास कर बच्चों के पढ़ने के कौशल में संवर्धन के लिए बनाया गया है। इस ऐप में 3 फोरम उपलब्ध हैं-

  • लाइब्रेरी
  • इनाम
  • गतिविधि

      इस प्रकार रीड एलांग ऐप  के माध्यम से न केवल विद्यार्थियों के रीडिंग स्किल का विकास होता है बल्कि इनाम / पुरुस्कार के माध्यम से उनको प्रोत्साहित भी किया जाता है। यह ऐप राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 के अंतर्गत निपुण भारत- लक्ष्य को प्राप्त करने में काफी सहायक है।


अधिगम संवर्धन हेतु  शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में प्रयुक्त अन्य आई.सी.टी. टूल्स उपकरण : उपर्युक्त ऐप के अलावा कक्षा-कक्ष शिक्षण में टीचिंग- लर्निंग ऐप और अधिगम सामग्री या शिक्षण सहायक सामग्री के रूप में आई.सी.टी. के अन्य उपकरणों (ऐप) का प्रयोग किया जाता है जो अधिगम के उन्नयन में काफी सहायक है।

  1. व्हाट्सएप ग्रुप
  2. फेसबुक लाइव क्लास
  3. गूगल क्लास रूम।
  4. यूट्यूब
  5. ऑनलाइन क्विज़।
  6. विकिपीडिया आदि।

अधिगम संवर्धन हेतु कक्षा-कक्ष को रोचक बनाते हेतु प्रयुक्त आई.सी.टी. सहायक सामग्री : वर्तमान समय में वैश्वीकरण के इस दौर में परम्परागत ‘चाक और टाक’ क्लास रूम से काफी आगे बढ़कर स्मार्ट क्लासरूम की अवधारणा और डिजिटल क्लासरूम के प्रचलन से शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। क्लास रूम में प्रोजेक्टर का प्रयोग, ऑडियो-वीडियो का प्रदर्शन, एजुसेट के माध्यम से एनसीईआरटी और इग्नू द्वारा तैयार किये गये ऑनलाइन लेक्चर और प्रिंट रिच मैटेरियल का उपयोग कक्षा-कक्ष में सीखने की गति को काफी बढ़ाता है, जिससे सीखना काफी सरल, सुगम और व्यावहारिक हो गया है।


अधिगम संवर्धन में आई.सी.टी. के प्रयोग में बाधाएँ और चुनौतियाँ : निसंदेह आई.सी.टी. के प्रयोग से जहाँ शिक्षण अधिगम प्रक्रिया बहुत ही आसान, सरल, बोधगम्य और सहज हुई है, लेकिन फिर भी बहुत सी ख़ामियों के चलते शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में आईसीटी से सम्बन्धित कुछ समस्याएँ और चुनौतियाँ भी हैं जो इस प्रकार हैं -
  1. स्पैम और आकर्षण विज्ञापन : उपभोक्ता संस्कृति के बढ़ते हुए प्रभाव के चलते, ऑनलाइन अधिगम के दौरान उपभोक्ता बाज़ार से सम्बन्धित अनेक स्पैम / विज्ञापन बच्चों को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया से विमुख कर देते हैं, क्योंकि ये विज्ञापन बच्चों की रुचि के अनुरूप तैयार किए जाते हैं, जिसके चलते विद्यार्थी तेज़ी से इन विज्ञापनों की तरफ़ आकर्षित होता है और धीरे-धीरे उसमें ऑनलाइन / डिजिटल गेम की लत लग जाती है। और एक समय ऐसा आता है, जब बच्चा भटक कर, सीखने के मुख्य लक्ष्य से विमुख हो जाता है और उसका अधिगम स्तर बढ़ने के बजाय घटने लगता है।
  2. बच्चों का सोशल मीडिया या डिजिटल एब्यूज में लिप्त हो जाना : यद्यपि फिलिप्ड क्लासरूम या ब्लेंडेड लर्निंग से बच्चों के सीखने की गति में काफी सुधार हुआ है, लेकिन फिर भी कभी-कभी विद्यार्थी सोशल मीडिया या डिजिटल एब्यूज का शिकार हो जाता है। जिसको नेटिकेट्स (इन्टरनेट एडिक्टेट) भी कहा जाता है। जिसके चलते विद्यार्थी की लर्निंग काफी प्रभावित होती है और वह अपने लक्ष्य से भटक जाता है। सोशल मीडिया पर बालक कभी-कभी साइबर बुलिंग और साइबर अपराध में लिप्त हो जाता है अथवा शिकार हो जाता है जैसे- हैकिंक, फिशिंग, ऑनलाइन एब्यूज आदि का शिकार हो जाना या लिप्त हो जाना, जिससे बच्चा अपने लक्ष्य से भटक जाता है। आकड़ों के अनुसार वर्ष 2018-19 में फेसबुक, ट्विटर समेत कई सोशल साइटों पर 3245 सामग्रियों के मिलने की शिकायत की गई थी।(स्रोत-द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस : एडिटोरियल) इस प्रकार अभिभावक द्वारा बच्चों पर ध्यान न देने से या शिक्षकों द्वारा सही दिशा-निर्देशन और पर्याप्त देखभाल के अभाव में कभी-कभार सोशल मीडिया अधिगम के लिए हानिकारक हो जाती है इसलिए बच्चों की सही परवरिश की ज़रूरत है जिससे वह सोशल मीडिया का सही प्रयोग कर सकें।
  3. डिजिटल डिवाइडेसन : आक्सफैम इण्डिया रिपोर्ट-2022 (इण्डिया इनइक्वैलिटी रिपोर्ट-2020) के अनुसार भारत की 70% जनसंख्या निर्धन है और उनके पास डिजिटल डिवाइस एवं तकनीकी का पूर्णतः अभाव है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि केवल 38% लोग ही डिजिटल रूप से साक्षर हैं। और यह डिजिटल डिवाइडेसन शहरी और ग्रामीण विद्यार्थियों के प्रति स्पष्ट दिखाई देती है। टेक्नोलॉजी के माध्यम से लर्निंग के विषय में ग्रामीण विद्यार्थी अभी भी काफ़ी पीछे हैं क्योंकि उनके पास डिवाइस के अभाव के साथ-साथ बिजली, इंटरनेट कनेक्टिविटी जैसी समस्यायें विद्यमान हैं।


डिजिटल डिवाइडेसन के कारण :

  • दूर दराज ग्रामीण क्षेत्रो में डिजिटल कनेक्टिविटी का अभाव : ग्रामीण क्षेत्र जो काफी दूर दराज हैं, वहाँ इन्टरनेट कनेक्टिविटी का अभाव है। (आक्सफेम इण्डिया रिपोर्ट:2022) जिसके चलते अधिकांश विद्यार्थी सूचना और संचार तकनीकी के प्रयोग से वंचित रह जाते हैं। (माइकेल वेस्ट-2015) अभिषेक सिंह (2013) ने अपने लेख ‘डिजिटल डिवाइड इन- रूरल इण्डिया: अ केस। स्टडी आफ उ.प्र. में स्पष्ट किया है कि इन्टरनेट कनेक्टिविटी के मामले में ग्रामीण क्षेत्रों में कनेक्टिविटी का आभाव दिखाई देता है।
  • “इन्टरनेट एण्ड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इण्डिया”(IAMAI) की स्टेट ऑफ रुरल कनेक्टिविटी 2020 में यह प्रकाशित किया है कि भारतीय राज्यों के ग्रामीण क्षेत्र इन्टरनेट। कनेक्टिविटी की समस्या और चुनौतियों से जूझ रहे हैं। इस बात को टेलीकॉम रेगुलेटरी। ऑफ इण्डिया (ट्राई ) ने स्वीकार किया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी बेहतर इन्टरनेट कनेक्टिविटी हेतु बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।

अभिभावकों में डिजिटल और तकनीकी ज्ञान का आभाव : राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद’ (एनसीईआरटी) - नई दिल्ली एवं ‘राष्ट्रीय ग्रामीण विकास और पंचायतीराज संस्थान’- हैदराबाद जैसे संस्थानों ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों में डिजिटल ज्ञान की कमी के कारण उनके बच्चों की शिक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि अभिभावकों में डिजिटल साक्षरता के अभाव के चलते शिक्षण अधिगम में आई.सी.टी. से सम्बन्धित कार्यों में अपने बच्चों का सहयोग नहीं कर पाते हैं और अपने बच्चों को आई.सी.टी. से संबंधित शिक्षा भी नहीं दे पाते हैं जिससे डिजिटल गैप देखने को मिलता है। 


सुझाव : उपर्युक्त बिंदुओं पर विश्लेषण करने से स्पष्ट होता है कि डिजिटल लर्निंग या शिक्षा में आई.सी.टी. का प्रयोग विद्यालयी स्तर के विद्यार्थियों के अधिगम संवर्धन में काफी सहायक है। निसंदेह आई.सी.टी. के प्रयोग से शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया काफी सरल और सुगम हुई है। शिक्षा में लर्निंग ऐप के प्रयोग से शिक्षा तक विद्यार्थियों की पहुँच काफ़ी सरल और सुगम हुई है। (राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020) साथ ही साथ फ्लिप्ड क्लास रूम, ब्लेंडेड लर्निंग, स्वयं प्लेटफार्म, दीक्षा ऐप आदि के प्रयोग से सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में काफी सुधार आया है। आई.सी.टी. के जो नकारात्मक प्रभाव हैं उनको दूर करने के लिए शिक्षकों को चाहिए कि वे विद्यार्थियों को सही दिशा में मार्गदर्शन करें। शिक्षण में आईसीटी का प्रयोग सही निर्देशन में ही होना चाहिए। साथ ही साथ शिक्षक और विद्यालय की यह नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वे विद्यालय तथा समाज में आई.सी.टी. की उपयोगिता और महत्त्व के प्रति जन-जागरुकता का विकास करें। जिससे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में आईसीटी का प्रयोग अधिगम संवर्धन और सृजनात्मक विकास की दिशा में सही हो सके। अभिभावकों को भी आई.सी.टी. के सकारात्मक एवं नकारात्मक पहलू को जानना और समझना चाहिए जिससे अपने बच्चों को गृह कार्य और अधिगम हेतु प्रोत्साहित कर सकें। इस प्रकार जब विद्यार्थियों और अभिभावकों को आई.सी.टी. के उपयोग की समुचित जानकारी रहेगी, तो वे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया हेतु आई.सी.टी. का बेहतर प्रयोग कर सकेंगे, जो अधिगम संवर्धन और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए काफी सहायक होगी।


निष्कर्ष : इस प्रकार कहा जा सकता है कि परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है किसी भी नवीन विधि को आत्मसात करने में या अपनाने में कुछ समय लगता है या कठिनाई अवश्य होती है। जिस प्रकार प्रारंभिक दिनों में समाज के सभी लोगों ने रेल या कम्प्यूटर को स्वीकार नहीं किया था बल्कि इन आविष्कारों और तकनीकों का विरोध किया था, लेकिन आज रेल और कम्प्यूटर मानवीय जीवन के परिवहन और सूचना संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहें हैं। आज जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जो सूचना तथा संचार तकनीकी से अछूता हो। ऐसे में स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया और अधिगम संवर्धन हेतु आई.सी.टी. की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण है। इस प्रकार शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में सूचना संचार प्रौद्योगिकी अधिगम संवर्धन में काफ़ी सहायक है जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 और सतत विकास लक्ष्य-4 के विजन  को पूरा करने में सहायक है। 


संदर्भ :
  1. राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (https://www.educaton.gov.in
  2. सतत् विकास लक्ष्‍य (https://sdgs.un.org/goals)
  3. हैरिस,एस. इन्‍नोवेटिव पेडागाजिकल पैक्टिस यूजिंग आई.सी.टी. इन स्‍कूल इग्‍लैण्‍ड जर्नल ऑफ कंप्‍यूटर असिस्टेंट लर्निग, 2002, पेज 449-459
  4. सिंह,ए.के. शिक्षा मनोविज्ञान, भारती भवन पब्लिकेशन पटना, 2020,  पृष्‍ठ सं. 372, 373
  5. पाठक, आर.पी. एण्‍ड चौधरी जे. एजुकेशनल टेक्‍नोलाजी, नई दिल्‍ली पियर्सन, 2012
  6. इन्‍टरनेट एण्‍ड मोबाइल एसो ऑफ इंडिया (https://www.iamai.in
  7. पलगर्म, डब्‍लू जे एण्‍ड लॉएन. आई.सी.टी. इन एजुकेशन, एराउण्‍ड द वर्ल्‍ड ट्रेंड प्राब्‍लम एण्‍ड प्रोस्‍पेक्‍ट यूनेष्‍को इन्‍टरनेशनल इन्‍स्‍टीटयूट  फॉर एजुकेशनल प्‍लानिंग, 2003
  8. आक्‍सफैम इण्‍टरनेशनल (इण्डिया इन इक्‍वैलिटी रिपोर्ट 2020) 
  9. (https://www.oxfam.org>India-extreme-inwquality-num
  10. कुमार एस.एण्‍ड.ए.आर. रोल ऑफ आई.सी.टी. इन्‍डैन्सिंग क्‍वालिटी ऑफ एजुकेशन वैलूम 3 इश्‍यू सितम्‍बर, 2018 इन्‍टरनेशनल जर्नल आफ इन्‍नोवेटिव साइन्‍स एण्‍ड रिसर्च  टेक्‍नोलॉजी, 2018
  11. वेबसाइट: भारतीय दूर संचार विनियामक प्राधिकरण (https://www.trai.gov.in)
  12. एन.सी.ई.आर.टी. नेशनल फोकस गुप ऑफ एजुकेशनल टेक्‍नोलॉजी, पोजीशन पेपर(http://ncert.nic/pdf.in/pdf-focusgroup/Educationaltechnology.pdf, 2006
  13. राष्‍ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेख    2005 (https://Ncert.nic.in>nc-framework nf2005 Hindi)
  14. https://epathsala.nic.in/
  15. https://www.mmc.org/
  16. https://swayam.gov.in/
  17. https://pmevidya.education.gov.in
  18. https://ciet.nic.in
मोनू सिंह गुर्जर 
सहायक आचार्य, प्रारम्भिक शिक्षा विभाग
एन. सी. ई. आर. टी., नई दिल्ली

चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-53, जुलाई-सितम्बर, 2024 UGC Care Approved Journal
इस अंक का सम्पादन  : विष्णु कुमार शर्मा चित्रांकन  चन्द्रदीप सिंह (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)

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