शोध सार : कैंपस उपन्यास का आशय ऐसे उपन्यासों से हैं, जिनकी विषयवस्तु कॉलेज या विश्वविद्यालयों के परिसर जीवन पर आधारित है। कथानक के रूप में छात्र, प्राध्यापक एवं विभिन्न शैक्षणिक अधिकारियों के परस्पर कार्यव्यापारों को रचनात्मकता के साथ औपन्यासिक रूप प्रदान किया जाता है। जैसे, पीली छतरी वाली लड़की (उदय प्रकाश), कैंपस (के. एल. कमल), कैंपस कथा (देवेश ठाकुर), हॉस्टल के पन्नों से (मनोज सिंह), राग मक्कारी अथ कैंपस कथा (केशव पटेल), बनारस टॉकीज (सत्य व्यास), यूपी 65 (निखिल सचान) आदि हिंदी के कुछ कैंपस उपन्यास के उदाहरण हैं। कैंपस में छात्र जीवन के विविध सन्दर्भों में ‘रैगिंग’ भी एक आयाम है जिससे अमूमन छात्र अपने कैंपस जीवन में सामना करते हैं। उक्त आलेख में रैगिंग की इस समस्या को हिंदी कैंपस उपन्यासों के सन्दर्भों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। रैगिंग की औपन्यासिक घटनाओं को प्रमाणिकता प्रदान करने हेतु रैगिंग की वास्तविक घटनाओं के सन्दर्भों को भी सम्मिलित किया गया है।
बीज शब्द : रैगिंग, कैम्पस, हिंदी उपन्यास, कैंपस उपन्यास, परिसर-जीवन, विश्वविद्यालय, कॉलेज, छात्र-जीवन, अकादमिक क्षेत्र, मानसिक प्रताड़ना, कुंठा।
मूल आलेख : पाश्चात संस्कृति से आई ‘रैगिंग’ का वर्तमान स्वरूप एवं अर्थ गत कई वर्षों में बहुत बदल गया है। शुरुआती दौर में जब नए-नए कॉलेज, विश्वविद्यालय एवं विभिन्न मेडिकल एवं इंजीनियरिंग जैसे व्यवसायिक शिक्षण संस्थानों की स्थापना हुई तब रैगिंग का अर्थ कुछ और ही था। रैगिंग से आशय था सीनियर छात्रों द्वारा शिक्षण संस्थानों में दाखिला लिए नए छात्रों से हँसी-मजाक के माध्यम से परिचय करना, उनसे जान-पहचान बढ़ाना अर्थात् एक अनौपचारिक साक्षात्कार। इस इंट्रो से मतलब था कि जूनियर के मध्य सीनियर छात्रों के प्रति सम्मान एवं आदर बना रहे तथा सीनियर छात्र भी जूनियर छात्रों के साथ मैत्री सम्बन्ध बनाए रखें। कालांतर में यह इंट्रो अश्लीलता और क्रूरता में परिवर्तित होता गया। मेडिकल एवं इंजीनियरिंग जैसे उच्च व्यावसायिक शिक्षण संस्थानों में तो रैगिंग का स्वरूप बद से बदतर होता गया।
अब कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में सीनियर छात्र नए छात्रों पर अपना रोब प्रकट करने के लिए उनके साथ बहुत ही अपमानजनक रूप से पेश आते हैं। अभद्र और अनिष्ट कार्यों को करने पर जोर देते हैं। रैगिंग एक तरह से अपनी वरिष्ठता और श्रेष्ठता को प्रदर्शित करना है। जिससे जूनियर्स को अपने नियंत्रण में रखा जा सके। सीनियर्स अपने जूनियर्स के साथ वही करना चाहते हैं जो अतीत में उन पर व्यतीत हुआ है।
सन् 2001 ई. में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक रैगिंग के मामले को निपटाते हुए रैगिंग को ‘मोटे तौर पर’ परिभाषित करते हुए कहा था कि- “कोई भी उच्छृंखल आचरण, चाहे बोले गए या लिखे गए शब्दों से या किसी कार्य से जिसका प्रभाव किसी अन्य छात्र को चिढ़ाने, व्यवहार करने या अशिष्टता से निपटने का हो, उपद्रवी या अनुशासनहीन गतिविधियों में शामिल होना जो झुंझलाहट, कठिनाई या मनोवैज्ञानिक नुकसान का कारण बनता है या होने की संभावना है या किसी नए जूनियर छात्र में डर या आशंका पैदा करना या छात्रों को कोई ऐसा कार्य करने या कुछ ऐसा करने के लिए कहना जो ऐसा छात्र सामान्य पाठ्यक्रम में नहीं करेगा और जिसके कारण शर्म या शर्मिंदगी की भावना उत्पन्न हो या उत्पन्न हो सकती है जिसका नए या जूनियर छात्र के शरीर या मानस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े। रैगिंग में शामिल होने का कारण परपीड़क आनंद प्राप्त करना या सीनियर्स द्वारा अपने जूनियर्स या नए छात्रों पर शक्ति, अधिकार या श्रेष्ठता का प्रदर्शन करना है।”¹ अर्थात् सीनियर्स की छोटी से छोटी गतिविधियाँ जिससे जूनियर छात्रों को किसी भी तरह की परेशानी का सामना करना पड़े, रैगिंग के अंतर्गत आएगा।
एक तरफ जहाँ नए छात्रों में कॉलेज या विश्वविद्यालय में दाखिला लेने तथा कैंपस जीवन का आनंद लेने की खुशी होती है तो दूसरी तरफ उनके मन में रैगिंग का डर हमेशा बैठा रहता है। जूनियर छात्र कई बार इसके आतंक से गलत कदम भी उठा लेते हैं। कॉलेज के शुरुआती तीन-चार महीने नए छात्र रैगिंग के डर से मानसिक रूप से त्रस्त रहते हैं और अपने आप को इससे बचाने का हर संभव प्रयास करते हैं। अगस्त 2023 ई. में पश्चिम बंगाल के जादवपुर विश्वविद्याल में घटित रैगिंग की घटना में एक जूनियर छात्र रैगिंग से बचने के लिए एक कमरे से दूसरे कमरे में भागता रहा। एनडीटीवी इंडिया समाचार चैनल के एक रिपोर्ट के अनुसार- “जाँच में पाया गया कि एक घंटे से अधिक समय तक उसकी रैगिंग की गई और वह रैगिंग से बचने के लिए एक कमरे से दूसरे कमरे में भागता रहा। सूत्रों ने बताया कि रैगिंग प्रकरण के दौरान छात्र को समलैंगिक टिप्पणियों का भी सामना करना पड़ा।”²
अकादमिक परिसर जीवन पर आधारित हिन्दी उपन्यासों में भी रैगिंग प्रकरणों का प्रमाणिक-सा चित्रण किया गया है। ‘हॉस्टल के पन्नों से’ उपन्यास में लेखक मनोज सिंह ने इंजीनियरिंग कॉलेज के हॉस्टल में नए छात्रों के साथ हुए रैगिंग का नाटकीय दृश्य चित्रित किया है। छात्रों को रैगिंग से बचाने के लिए सभी नए छात्रों को एक ही हॉस्टल में रखा गया था। कुछ प्रोफेसर आकर इन लोगों को समझा गए थे। जिसका वर्णन कुछ इस प्रकार है- “पहली रात कुछ प्रोफेसर आकर रैगिंग के बारे में बता गए थे। ...डरने की जरूरत नहीं है। यहाँ चौकीदार है और गेट अन्दर से बंद कर दिया जाएगा। कोई रैगिंग करने आए तो हमें बताइएगा...सख्त कार्यवाही की जाएगी।”³ परन्तु इस सुरक्षा कवच को भेदना सीनियर छात्रों को भली-भाँति आता था। दूसरे दिन देर रात अचानक बहुत सारे सीनियर अन्दर घुस आए और सबको कमरे से निकालकर छत पर रैगिंग के लिए इकट्ठा किया गया। कॉलेज या हॉस्टल में रैगिंग निषेध होने के बावजूद भी सीनियर छात्र जबरदस्ती जूनियर के हॉस्टल में घुस ही जाते हैं, या तो गार्ड को डरा धमकाकर या फिर झाँसा देकर और फिर जबरजस्ती रैगिंग करते हैं। छत पर इकट्ठे जूनियर छात्रों को सीनियर छात्रों के समूह में से एक छात्र जिसको सभी गुप्ता नाम से संबोधित कर रहे थे, चीखते हुए बोलता है- “थर्ड बटन...मुर्गो, सुना नहीं क्या? एक बार में आदेश का पालन होना चाहिए, समझे ? थर्ड बटन...”⁴ रैगिंग में ‘थर्ड बटन’ शब्द बहुत प्रचलित है। इसका अर्थ है-जब भी कोई सीनियर सामने दिखे तो अपनी नजर शर्ट के तीसरे बटन पर होनी चाहिए अर्थात् सिर झुका होना चाहिए। सीनियर से नजरें मिलाकर बात करना निडरता व अवमानना का प्रतीक है। फर्स्ट ईयर के छात्र सीनियर के लिए मुर्गा समान हैं, जिनसे अपना काम निकलवाना मानो इनका अधिकार है। इस बात की पुष्टि के लिए एक सीनियर कहता है कि- “लगता है इनमें से तो कईयों को यह भी नहीं पता कि फर्स्ट इयर में ये हमारे मुर्गे हैं।”⁵
हॉस्टल में रैगिंग करना आसान होता है इसलिए ज्यादातर रैगिंग की खबरें हॉस्टल से ही आती हैं। इसका एक मुख्य कारण है कि हॉस्टल में सभी छात्र बाहर से पढ़ने आते हैं जिनका यहाँ कोई अपना जान-पहचान का नहीं होता है। ये बिलकुल अकेले होते हैं। हॉस्टल में रैगिंग को अधिकांशतः रात में अंजाम देते हैं जिससे कोई शिक्षक या सुरक्षाकर्मी बचाने के लिए उपस्थित न हो या वे शीघ्रातिशीघ्र घटनास्थल पर पहुँच न पाए।
सीनियर गुप्ता फिर सबको लगभग आदेश देते हुए कहता है- “अब तुम सभी लोग पहले अपनी शर्ट उतारो और फिर पैंट।”⁶ जूनियर्स को सुनकर थोड़ा अटपटा लगा परन्तु एक-दो को तमाचे पड़ने के बाद सभी आदेश का पालन करने लगे। इसके बाद गुप्ता की तरफ से एक और आदेश आया जो कुछ ज्यादा ही हैरतंगेज था। “अब बनियान उतारो...और उसके बाद अंडरवियर।”⁷ पिटाई के डर से सभी नंगा हो गए। यह बहुत ही अपमानजनक एवं संवेदनहीन स्थिति को दर्शाता है। यह सिलसिला यहीं नहीं थमता है, तभी दूसरे सीनियर का आदेश आता है कि इन नए छात्रों को अब फैंटम लुक बनाया जाए। जिस पर गुप्ता सभी को समझाते हुए कहता है कि- “सबसे पहले अपनी शर्ट उल्टी करो, उसे पहनो और उसके ऊपर उल्टी बनियान...जैसे बोलते जाऊँ, फटाफट करो, नहीं तो सालों रातभर यहाँ मुर्गा बनाकर रखूँगा। उसके बाद पैंट उल्टी करो, उसे पहनो। उसके ऊपर उल्टी अंडरवियर पहनो। एक मिनट में। आर्मी में जवानों को देखा है, कैसे तुरंत तैयार हो जाते हैं। यहाँ लड़कियों की तरह सजना-सँवरना नहीं है...”⁸ जिन्होंने विलम्ब किया उन्हें चाँटे भी मारे गए। इसके साथ ही सीनियर छात्रों ने जूनियर्स को हॉस्टल में कैसे रहना है वो भी बता दिया। गुप्ता फिर से सभी को संबोधित करते हुए बोला-“आगे मेरी बात ध्यान से सुनो। आज के बाद रात दो बजे तक कोई लड़का सोयेगा नहीं। दिनभर शर्ट इन और रात तक जूता-मोजा नहीं उतारेगा। डेली क्लीन शेव, सुबह-सुबह...समझे । जब भी कोई सीनियर दिखाई दे उसे विश करना है। गुड मोर्निंग, आफ्टर नून और इवीनिंग बोलते समय...आँखें और चेहरा हमेशा नीचे।...समझ में आया।”⁹ इस तरह का अमानवीय व्यवहार सरासर ज़्यादती है। सभी को अपने तरीके से जीने का अधिकार है। किसी के व्यक्तिगत जीवन पर अंकुश लगाना मानवीय संवेदनाओं का हनन है। कॉलेज या विश्वविद्यालय में बच्चे उन्मुक्त जीवन जीने आते हैं परन्तु जब उनके जीवन पर इस तरह का अतिक्रमण हो जाए तो वे अंदर से खिन्न हो जाते हैं। बहुत सारे छात्र तो पहली बार घर से दूर हॉस्टल में रहकर पढ़ने आते हैं, जब ये लोग इस तरह की अपमानजनक घटनाओं का सामना करते हैं तो उनके अन्दर हीन भावना आ जाती है। वे मानसिक रूप से त्रस्त हो जाते हैं।
रैगिंग से बचने के लिए नए छात्र बहुत तरह के हथकंडे भी अपनाते हैं। छुपने के लिए सिनेमा हॉल, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन या कॉलेज की झाड़ियों तक का सहारा लेते हैं। इसका चित्रण लेखक ने इस उपन्यास में किया है। उक्त उपन्यास में प्रवीन और उसके दोस्त छुट्टी के दिन रैगिंग से बचने के लिए सिनेमा हॉल की शरण में चले जाते हैं। “शनिवार, छुट्टी का दिन था। दिन में रैगिंग से बचने के नाम पर मैंने ही प्लान बनाया था कि इस बार एक साथ चार पिक्चरें देखेंगे।....पिछले शनिवार बगीचे और तालाब के किनारे-किनारे घूमते-घूमते थक गए थे। और फिर रात बारह बजे तक घूमने की कोई ऐसी जगह नहीं थी।”¹⁰ कुछ छात्रों ने बचने का दूसरा तरीका अपनाया। जैसे- “कुछ लोग रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर बैठकर समय बिताते तो कुछ देर रात तक हॉस्टल के सामने की झाड़ियों में छुपकर बैठे रहने की कोशिश करते। मगर इसमें डर लगता, अँधेरे से, कीड़ों और जानवरों से।”¹¹ इससे यह प्रदर्शित होता है कि छात्र रैगिंग से इतना आतंकित रहते हैं कि उन्हें इससे बचने के लिए जगह-जगह छुपना पड़ता है। कभी-कभी देर रात तक हॉस्टल से बाहर रहना पड़ता है। इससे उनके अकादमिक जीवन पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना इतनी रहती है कि शुरू के तीन-चार महीने ठीक से पढा़ई तक नहीं हो पाती है। उपन्यास का कथावाचक प्रवीन एक और घटना का वर्णन करते हुए कहता है- “सुना है सीनियर के एक ग्रुप ने बहुत जलील किया था, रोशनी में सभी को नंगा कर दिया गया था...उस रात वे बड़े शर्मिंदा हुए थे...छह के छह हिल गए थे।”¹² इस तरह का अपमानजनक एवं गरिमाहीन व्यवहार किसी भी इन्सान को अन्दर से झकझोर देगा। रैगिंग के नाम पर अपने कुंठित मन की भड़ास को निकालने के लिए किसी निर्दोष के साथ शारीरिक हिंसा करना अमानवीय है। यह जूनियर्स के लिए एक ऐसा जाल है जहाँ से बच पाना मुश्किल हो जाता है। यही वो समय है जब कुछ छात्र अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं और गलत कदम उठा लेते हैं। उपन्यासों में वर्णित इस तरह की अश्लील और अपमानजनक घटनाएँ कैंपस के नग्न यथार्थ को दर्शाती हैं। उपन्यासों में रचनात्मक रूप से चित्रित रैगिंग की घटनाएँ कहीं ना कहीं सत्य घटनाओं पर ही आधारित होती हैं। इसकी पुष्टि आए दिन समाचार पत्रों में छपती रैगिंग की घटनाओं से की जा सकती हैं। एनडीटीवी इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार- “जादवपुर विश्वविद्यालय के 17 वर्षीय छात्र की मौत से रैगिंग पर बहस छिड़ गई है। पुलिस जांच में पता चला है कि छात्र को हॉस्टल कैंपस में निवस्त्र कर घुमाया गया था। 9 अगस्त की रात को, परिसर के पास में हॉस्टल की दूसरी मंजिल की बालकनी से कथित तौर पर गिरने के बाद किशोर की मौत हो गई।”¹³ आखिरकार रैगिंग के कारण एक 17 वर्षीय मासूम छात्र को अपनी जान गँवानी पड़ी। उक्त छात्र अपने साथ विश्वविद्यालय में न जाने कितने सपने और उम्मीदों के साथ आया होगा परन्तु रैगिंग जैसे घृणित कार्य ने सभी उम्मीदों को धराशायी कर दिया। यह घटना बस एक उदाहरण है। प्रत्येक वर्ष इस तरह की अनेक घटनाएँ सामने आती है।
‘बनारस टॉकीज’ उपन्यास में लेखक सत्य व्यास ने भी रैगिंग का बहुत ही मनोरंजक एवं नाटकीय चित्रण किया है। इस उपन्यास में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के लॉ कॉलेज एवं ‘भगवान दास’ हॉस्टल का वर्णन है। उपन्यास के मुख्य पात्र सूरज, अनुराग, जयवर्धन और नवेंदु आदि के माध्यम से रैगिंग का चित्रण किया गया है। वैसे तो एडमिशन के समय ही यह जानकारी हो गई थी की लॉ फैकल्टी में रैगिंग का चलन नहीं है। बाहर ‘रैगिंग निषेध’ का बोर्ड भी लगा हुआ था परन्तु हॉस्टल में बच पाना मुश्किल है। “भगवानदास में कहते हैं कि दाई से पेट छिपाना और सीनियर से बच पाना, दोनों असंभव है।”¹⁴ इससे स्पष्ट है कि अगर कॉलेज में प्रोफेसरों के डर से सीनियर कुछ ना भी करें परन्तु हॉस्टल में तो उनका ही राज चलता है। सूरज, रैगिंग की तैयारी के बारे में कहता है कि- “हमारे स्वागत की पूरी तैयारी गुप-चुप तरीके से की जा रही थी। रैग का बनारसी संस्करण था-‘रगड़’, जो आज शाम ही हमपर आजमाया जाने वाला था।”¹⁵
भगवान दास हॉस्टल में रैगिंग के कुछ नियम थे। सूरज और अनुराग को रैगिंग देने जाने से पहले नवेंदु जी ने उन्हें बता दिया था। सूरज कहता है कि “बाहर निकलने पर मालूम हुआ की ‘रगड़ाई’ के कुछ नियम हैं। लॉटरी के अनुसार एक दिन में 5 जूनियर्स को ही रगड़ा जाएगा। हमारे अलावा आज लॉटरी जीतने वाले अन्य लोग थे- जयवर्धन शर्मा, नवेंदु जी और राम प्रताप नारायण दूबे अर्थात् दूबेजी; जो बेसब्री से बाहर घूम रहे थे।”¹⁶ सभी को कॉमन रूम में बुलाया गया तथा कद के अनुसार एक पंक्ति में खड़ा होने का आदेश दिया गया। पाँचों नए छात्र जिनके साथ आज रैगिंग होने वाली थी बहुत घबराए हुए थे सिवाय अनुराग के। हर सत्र में ऐसे कुछ छात्र होते हैं जो सीनियर के रैगिंग का डट कर सामना करते हैं। भले ही उनको इसका खामियाजा भुगतना पड़े। जो होगा देखा जाएगा की भावना लिए अनुराग निश्चिन्त था। दूसरे छात्रों ने अपनी-अपनी लेवल पर तैयारियाँ कर ली थी। जैसे सूरज ने पैंट के अन्दर तीन अंडरवियर पहन रखा था तो जयवर्धन इस बात से परेशान था की क्या प्रश्न पूछे जायेंगे। नवेंदु जी सिनेमा में दिखाए गए रैगिंग की घटनाओं से अपनी तुलना करने लगे थे। लेखक सूरज के माध्यम से कॉमन रूम का चित्र प्रस्तुत करते हुए लिखते हैं “कॉमन रूम में पहुँचने पर वैसा ही अनुभव हुआ, जैसा माँ अपने कलेजे को कॉलेज भेजने से पहले का बताती है। जैसा दलदल में फँसे हिरण का हाल घड़ियाल को देखकर होता है। जैसा निहत्थे का लठैत को देखकर होता है।...भीतर पूरे 10 लोग थे-मतलब दस सीनियर। रैगिंग करने वाले ये दसों सीनियर्स ऐसे थे जिनके चहरे पर आखिरी बार मुस्कान तब आई होगी जब कुम्बले ने 10 विकेट लिए थे।”¹⁷ अर्थात् सीनियर को देख कर ही ऐसा लग रहा था की वो अपने जीवन से बहुत उदास है। मन कुंठा और अवसाद से भरा हुआ है। उनके मन का यह भड़ास नए छात्रों के साथ अश्लील मजाक एवं उनको बेइज्जत करके निकालना चाहते हैं। सीनियर रैगिंग को मनोरंजन का साधन बना लेते हैं। इनके लिए भले ही यह एक मजाक-मस्ती तथा मनोरंजन का काम हो परन्तु जिसकी रैगिंग ली जाती है उसके लिए यह बहुत ही भयावह, असंवेदनशील एवं अपमानजनक कार्य होता है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार रैगिंग किसी भी दृष्टि से मनोरंजन का साधन नहीं है।
14 अगस्त, 2023 ई. को ऐसी ही एक रैगिंग की घटना सामने आई। “आई.आई.टी. मंडी में जान-पहचान के बहाने जूनियरों से रैगिंग की गई।...14 अगस्त को दोपहर के बाद सीनियर ने जूनियरों को कक्षा में बुलाया। इनमें लडके-लडकियाँ दोनों शामिल थे। परिचय के बाद सभी को दिवार की ओर मुंह कर कई घंटे तक खड़ा रखा। उठक-बैठक करवाई गई। अश्लील हरकतें व इशारे किए गए। विरोध करने वाले जूनियरों को मुर्गा बनाकर धमकाया गया।”¹⁸ वास्तविकता में घटी ये घटनाएँ, उपन्यास में चित्रित रैगिंग के प्रसंगों को और भी स्पष्ट करता है। यहाँ एक और बात गौर करने लायक है कि जादवपुर विश्वविद्यालय और आई.आई.टी. मंडी में हुई रैगिंग की घटनाओं के मध्य मात्र चार दिन का अंतर है। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या जादवपुर विश्वविद्यालय में घटित रैगिंग के वारदात से आई.आई.टी. मंडी के छात्रों को कोई सबक नहीं मिला? इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी आई.आई.टी. मंडी में रैगिंग की गई। यह सीनियर छात्रों के दुस्साहस को प्रदर्शित करता है। अपने वर्चस्व को कायम रखने की कुंठित मानसिकता को दर्शाती है।
‘यूपी 65’ उपन्यास में भी रैगिंग का वर्णन मिलता है। BHU आई.आई.टी. पर आधारित इस उपन्यास में रैगिंग को लेकर नए छात्रों में फैले डर के माहौल को चित्रित किया गया है। उपन्यास का पात्र मोहित और प्रसाद अपने सहपाठी पांडे और निशांत को यहाँ की रैगिंग के बारे में बताते हुए कहता है- “अरे पंडित! ढे़र जोश में? नंगा करके दौड़ाते हैं यहाँ।” मोहित ने प्रसाद को बैक अप दिया।
“जुगनू बना देते हैं यहाँ। जुगनू समझते हो रे पंडित?” प्रसाद ने मोहित के तीर पे फॉलो अप लिया।
“जुगनू?” पांडे की त्योरी चढ़ी हुई थी ।
“हाँ जुगनू! अगरबत्ती खोंस देंगे पंडित जी, पिछवाड़े में। फिर नचवाएँगे बत्ती बुझा के।” प्रसाद ने कहा।¹⁹ इस तरह की घटनाएँ सुन कर छात्रों के मन में डर बैठना लाज़मी है। कब उनके साथ क्या हो जाए कोई ठीक नहीं। मन में विरोध की भावना आने पर भी कुछ कर नहीं सकते क्योंकि रहना तो वहीं पर है और हॉस्टल वार्डन या प्रोफेसर हमेशा मौजूद भी नहीं होते। नए छात्र रैगिंग से बचने के लिए हॉस्टल में छिपते या बाहर शहर में क्लास खत्म होने के बाद घूमते रहते। जब रात ज्यादा होती या रैगिंग होने की संभावना कम होती तो ये लोग हॉस्टल लौट आते। जूनियर्स हमेशा तनाव में रहते। इस उपन्यास में इस स्थिति का चित्रण हास्यात्मक रूप में किया गया है, परन्तु छात्रों के मन का तनाव को भी उकेरा गया है। जैसे- “पहले दो-एक महीने, शाम से ही रैगिंग का बुलावा आने लगता और छापा-मारी शुरू हो जाती थी। पांडे की भाषा में कहूँ तो, ‘हर छेद में बाँस हो रखा था’। दिन भर की क्लासेस ख़त्म होते ही छुपने-छुपाने की मशक्कत शुरू हो जाती थी। लडके हॉस्टल में खुद को ऐसे छुपा लेते थे जैसे नई बहुएँ छत पर सुखते हुए कुर्ते सलवार के नीचे अंडर गारमेंट्स छुपा लेती हैं।”²⁰ लेखक सीनियर-जूनियर के बीच के इस तनावपूर्ण सम्बन्ध को प्रतीकात्मक रूप में कहता है कि सीनियर रैगिंग के समय आवारागर्द शोहदे की तरह हो जाते हैं और जूनियर्स गर्ल्स कॉलेज की भोली-भली लड़कियाँ। इनसे छेड़खानी और बदतमीजी करना मानो इनका कर्तव्य है।
रैगिंग के कुछ अकथित नियम या परंपरा हैं। अगर किसी जूनियर ने सीनियर्स को रैगिंग दे दी तो उसके बाद दोनों के बीच का सम्बन्ध अच्छा एवं मैत्रीपूर्ण हो जाता है। इंट्रो होने के बाद वे सहज रूप से हॉस्टल एवं कॉलेज में अपना दैनिक जीवन तनावमुक्त व्यतीत कर सकते हैं। शुरू के एक-दो महीने इस अराजकता को झेलने के बाद स्थिति सामान्य हो जाती है। उपरोक्त उपन्यास का पात्र पांडे इस रोज-रोज के रैगिंग के जंजाल से मुक्त होना चाहता था। इसलिए “वह फ्रस्टिया के दूसरे ही हफ्ते ‘पूरी’ रैगिंग दे आया था और अब छुट्टे साँड़ की तरह बनारस घुमता था।”²¹ पांडे ऐसे प्रतिदिन रैगिंग के डर से इधर-उधर छुपना नहीं चाहता था बल्कि स्वच्छंद तरीके से कॉलेज जीवन का आनंद लेना चाहता था। उसका मानना था कि “यार एक बार न सिल तुड़वा ही ली जाए और टंटा ख़तम हो! एक बार हिचक खुल गई तो बाकी साल भर आराम रहेगा।”²² जो थोड़ा साहसी एवं मानसिक रूप से मजबूत होते हैं उनके लिए ये सब झेलना थोड़ा आसान हो जाता है। वे इसे एक कैंपस फ़ेज मानकर स्वीकार कर लेते हैं।
‘बनारस टॉकीज’ उपन्यास में भी रैगिंग के तौर पर दिए गए टास्क को पूरा करने के बाद सीनियर की तरफ से मैत्रीपूर्ण व्यवहार का उल्लेख है। जब सूरज और अनुराग अपना टास्क पूरा करके लौटते हैं तो सीनियर उनसे प्रभावित होकर कॉलेज में उन सबका स्वागत करते हैं। एक सीनियर इन लोगों से कहता है- “आप सब लोगों से मिलकर बहुत अच्छा लगा। welcome to B.H.U. welcome to law school. Enjoy the journey- called the golden phase of life. No hard feelings. No personal bias. Everything done here is just to break the ice between us.”²³ यहाँ सीनियर साफ तौर पर स्पष्ट कर देते हैं कि ये सब चीजे केवल परिचय हेतु की गई थी और किसी से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी या रंजिश नहीं है। कॉलेज जीवन का भरपूर आनंद उठाया जाए। शुरू के दो-तीन महीने रैगिंग चलने के बाद माहौल को मैत्रीपूर्ण बनाने के लिए सीनियर्स द्वारा जूनियर्स को फ्रेशर पार्टी भी दी जाती है। फ्रेशर पार्टी एक तरह से स्वागत पार्टी है जो सीनियर्स, जूनियर्स को नए कॉलेज, विश्वविद्यालय एवं छात्रावास में स्वागत हेतु आयोजन करते हैं। इसका एक वर्णन उपरोक्त उपन्यास में भी कुछ इस प्रकार है- “रैगिंग पीरियड का ख़त्म होना उम्रकैद काट आने जैसा था। सीनियर्स ने एक फ्रेशर पार्टी देकर माहौल काफी दोस्ताना कर दिया था और किसी भी तरह की मदद का आश्वासन भी दे दिया था। मैं, दादा और जयवर्धन इस रगड़ाई के बाद सीनियर्स के चहेते भी थे और आपस में अच्छे दोस्त भी।”²⁴ यहाँ रैगिंग काल को उम्र कैद के समान माना गया है। इससे यह प्रतीत होता है कि रैगिंग सच में कितना घुटनमय और निराशाजनक है। घर के प्रेमपूर्ण परिवेश से निकलकर एक अलग ही परिवेश में आना और वहाँ इस तरह का अपमानजनक एवं संवेदनहीन घटनाओं का सामना करना किसी उम्र कैद की सजा के समान ही है।
उपन्यास ‘हॉस्टल के पन्नों से’ में भी लेखक ने रैगिंग का एक सकारात्मक पक्ष दिखाया है। परन्तु यह पक्ष इतना छोटा है कि रैगिंग के नकारात्मक पक्ष के सामने तुच्छ प्रतीत होता है। उपन्यास का एक पात्र उमेश की एक बार रैगिंग हो चुकी थी जिससे वह थोड़ा आश्वस्त था। उसका एक सीनियर से पढा़ई के सिलसिले में मिलना भी हुआ था। वह “एक दिन लौटा तो उसके साथ ढेर सारी किताबें, नोट्स थे...पता चला की हॉस्टल में उन्होंने बढ़िया खाना भी खिलाया था...दूसरी बार वह उसे मार्केट ले गए थे...ब्रज मिष्ठान की स्पेशल रबड़ी खिलाई थी...पैसा भी नहीं देने दिया था...कहने लगे...सीनियर के सामने जूनियर पैसा नहीं देते...उमेश खुश हुआ था...रैगिंग के बड़े फायदे भी हैं...उन्होंने बताया तो उसे राहत मिली थी।”²⁵ इतना सब कुछ होने के बाद भी रात में फिर से उमेश और दूसरे लडकों के साथ रैगिंग हुआ। लड़को के कपड़े एवं उनके रंग पर भद्दी टिप्पणियाँ की गई। उनका मजाक उड़ाया गया और नंगा भी किया गया था। सभी छात्र डरे-सहमे हुए थे। इन घटनाओं से नए छात्रों का आत्मसम्मान बिलकुल खत्म हो गया था। सभी हॉस्टल छोड़कर भाग जाना चाहते थे। उस रात “कोई भी सो न सका था...उमेश तो एक बार फिर रोया भी था...। रहा नहीं गया तो उन सभी ने अचानक योजना बनाई कि अपने-अपने घर जाएँगे।”²⁶ कभी-कभी बात इतनी बढ़ जाती है कि छात्र कॉलेज छोड़ देते हैं या फिर आत्महत्या जैसे गलत कदम उठा लेते हैं। ‘द हिन्दू’ समाचार पत्र में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार- “यू.जी.सी. ने खुलासा किया है कि पिछले साढ़े पाँच सालों में रैगिंग के चलते 25 छात्रों की आत्महत्या से मृत्यु हुई है। इन 25 आत्महत्याओं के केस में, आठ घटनाएँ 2018 ई. में, दो 2019 ई. में, दो 2020 ई. में, चार 2022 ई. में और नौ 2023 ई. में घटित हुई है।”²⁷ हालाँकि ये तो बस उन मामलों की सूची हैं जो यू.जी.सी. के पास दर्ज है, परन्तु ऐसे अनेक आत्महत्या के मामले हैं जो सरकारी खाते में दर्ज ही नहीं होते हैं।
सामान्यतः यह देखा जाता है कि रैगिंग पीरियड समाप्त होने के बाद सीनियर-जूनियर के बीच का सम्बन्ध दोस्ताना हो जाता है। सीनियर अपने जूनियर्स की सहायता करते हैं चाहे वो पढ़ाई में हो या दूसरे कामों में, परन्तु सवाल यहाँ यह है कि जब दो-तीन महीनों के बाद एक मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनना ही है तो शुरू में इतनी मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना क्यों दी जाए? यह सम्बन्ध तो पहले दिन से ही बनाया जा सकता है। सीनियर हल्के-फुल्के मस्ती मजाक के माध्यम से भी अपने जूनियर्स के साथ परिचय कर सकते हैं। इससे जूनियर्स के मन में अपने सीनियर के प्रति सही मायने में सम्मान और प्यार की भावना होगी। परन्तु इनके अपने मन की दमित कुंठाओं और भड़ास को निकालने के लिए मासुमों के साथ इस तरह का पाश्विक व्यवहार करते हैं जो कि बहुत ही निंदनीय है। किसी के रंग-रूप, जाति या उसके शारीरिक बनावट पर हँसना या मजाक उड़ाना तथा शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित करना अमानवीय एवं असंवैधानिक है। यह एक तरह से मानवाधिकारों का उल्लंघन है।
हमारे देश में रैगिंग कानूनन जुर्म है। भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत रैगिंग के विरोध में अनेक प्रावधान सम्मिलित हैं। हमारे देश के कुछ राज्यों में रैगिंग के विरुद्ध उनका अपना कानून है और जहाँ नहीं है वहाँ केन्द्रीय कानून लागू होता है। भारत में रैगिंग लॉ प्रिवेंशन ऑफ रैगिंग एक्ट 1997 और इसके अमेंडमेंट् के अंतर्गत आता है। दोषी पाए गए छात्र को दो साल तक जेल की सजा और दस हजार रुपये तक का जुर्माना देना पड़ सकता है। उनका कैरियर भी खत्म हो सकता है। उदाहरण हेतु आई.आई.टी. मंडी में हुए रैगिंग मामले में “छात्र संगठन के पदाधिकारियों सहित 10 छात्रों को निलंबित कर दिया और 62 अन्य के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की है। अधिकारियों के अनुसार छात्रों के खिलाफ की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई में घटना में उनकी संलिप्तता की सीमा के अनुसार 15,000 रुपये से 25,000 रुपये तक का जुर्माना और 20 से 60 घंटों की सामुदायिक सेवा शामिल है।”²⁸
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के प्रावधान अनुसार सभी कॉलेज, विश्वविद्यालय एवं अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों में ‘एंटी रैगिंग सेल’ का होना आवश्यक है। जहाँ पीड़ित छात्र-छात्राएँ अपनी शिकायत दर्ज कर सके और रैगिंग के खिलाफ उचित कार्रवाई हो सके। इसके अलावा यू.जी.सी. की अपनी ‘एंटी रैगिंग सहायता केंद्र’ है जो 24 घंटा सक्रिय रहती है। यू.जी.सी. के चेयरमैन ममिडाला जगदीश कुमार ने ‘द हिन्दू’ समाचार पत्र को 24*7 ‘एंटी रैगिंग सहायता केंद्र’ के बारे में बताते हुए कहा है कि- “यू.जी.सी. एंटी रैगिंग सेल छात्रों और शैक्षिक अधिकारियों के मध्य एक पुल की तरह काम करता है। सहायता केंद्र द्वारा प्राप्त प्रतिवेदन एवं शिकायत को समय पर कार्रवाई करने के लिए उपयुक्त अधिकारियों को भेजा जाता है। (अनुवाद, शोधार्थी द्वारा)”²⁹ इतने सारे कानून एवं सहायता केंद्र होने के बाद भी हमारे देश में रैगिंग की वारदात कम नहीं हो रही है। प्रत्येक वर्ष सैकड़ों केस दर्ज होते हैं, अनेक अपराधी छात्रों को सजा भी होती है परन्तु फिर भी रैगिंग का पूर्ण रूप से उन्मूलन नहीं हो पाया है। अक्सर रैगिंग से हुई आत्महत्या की घटनाएँ समाचार पत्रों में छपती हैं। “अमन सत्या कचरू ट्रस्ट के 23 पृष्ठों का एक प्रतिवेदन के अनुसार 15 जून, 2009 ई. से 31 दिसंबर, 2020 ई. तक में 7059 रैगिंग की शिकायतें प्राप्त हुई हैं । उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा शिकायतें (1202) प्राप्त हुई हैं, इसके बाद पश्चिम बंगाल से (808), मध्य प्रदेश से (758), ओड़िसा से (542) और बिहार से (377) शिकायतें प्राप्त हुई है। (अनुवाद, शोधार्थी द्वारा )”³⁰
‘एंटी रैगिंग सेल’ बना तो दिया जाता है लेकिन सामान्यतः यह सक्रीय नहीं होता या बहुत बार ऐसा भी होता है कि इस तरह की कोई समिति कॉलेज या विश्वविद्यालय में होती ही नहीं है। शिकायत करने पर केस को गंभीरता से नहीं लिया जाता है। रैगिंग से पीड़ित छात्र इस विषय में बहुत बार किसी शिक्षक या अपने माता-पिता से भी नहीं बोलते। इनको सीनियर्स की तरफ से कुछ भी खुलासा न करने का दबाव रहता है। कुछ छात्र अपने माता-पिता से ऐसे लज्जाजनक घटनाओं के बारे में बात करने से भी कतराते हैं, तो कभी पेरेंट्स खुद बोल देते है कि एडमिशन बहुत मुश्किल से मिला है तो कुछ दिन ‘एडजस्ट’ कर ले। जो इस प्रताड़ना को झेल नहीं पाते वो आत्महत्या तक कर लेते हैं।
निष्कर्ष : ऐसा देखा गया है कि साधारण कॉलेज और विश्वविद्यालय की तुलना में मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज में रैगिंग कल्चर अधिक प्रचलित है। अधिकतर आत्महत्या या शारीरिक प्रताड़ना की मार्मिक खबरें इन्ही कॉलेजों से आती हैं। वर्तमान में रैगिंग कल्चर के इस विकराल रूप को समाप्त करना छात्रों के हाथ में ही है। अगर कोई भी सीनियर नए छात्रों के साथ रैगिंग न करें तो अगले वर्ष यही छात्र अपने जूनियर्स के साथ भी अच्छे से पेश आएँगे। इस तरह से रैगिंग परंपरा की इस शृंखला को तोड़ा जा सकता है। सीनियर्स की मानसिकता होती है कि जब उनके साथ रैगिंग हुआ है तो वो भी अपने जूनियर्स के साथ रैगिंग क्यों न करें, लेकिन इस बदले की भावना को त्याग करके ही इस आपराधिक परंपरा को समाप्त करने का प्रयास किया जा सकता है। इसके साथ ही कॉलेज एवं विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इन मामलों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए तथा नए छात्रों को स्वस्थ वातावरण प्रदान किया जाना चाहिए।
- संपादन-केशव कुमार: रैगिंग के बारे में क्या कहता है देश का कानून, जनसत्ता, www.jansatta.com, दिनांक 21.08.2023
- संपादन-सैकत कुमार बोस: जादवपुर के किशोर को नंगा किया, रैगिंग से बचने हेतु कमरा दर कमरा भागा, एनडीटीवी इंडिया, www.ndtv.in, दिनांक 24.08.2023
- मनोज सिंह, हॉस्टल के पन्नों से, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, 2011, पृष्ठ- 18
- वही, पृष्ठ 17
- वही, पृष्ठ 17
- वही, पृष्ठ 18
- वही, पृष्ठ 19
- वही, पृष्ठ 20
- वही
- वही, पृष्ठ-33
- वही
- वही, पृष्ठ-35
- संपादन-सैकत कुमार बोस: जादवपुर के किशोर को किया नंगा, रैगिंग से बचने हेतु कमरा दर कमरा भागा, एनडीटीवी इंडिया, www.ndtv.in, दिनांक 24.08.2023
- सत्य व्यास, बनारस टॉकीज, हिन्दी युग्म, नॉएडा,2015, पृष्ठ-16
- वही
- वही, पृष्ठ- 17
- वही, पृष्ठ- 18
- जागरण संवाददाता मंडी: आईआईटी मंडी में रैगिंग को लेकर 10 छात्र निलंबित, 72 पर जुरमाना, दैनिक जागरण समाचार पत्र, 07.09.2023
- निखिल सचान, यूपी 65, हिन्दी युग्म, नॉएडा, 2017, पृष्ठ-17
- वही, पृष्ठ-34
- वही
- वही
- सत्य व्यास, बनारस टॉकीज, हिन्दी युग्म, नॉएडा, 2015, पृष्ठ- 34
- वही, पृष्ठ-35
- मनोज सिंह, होस्टल के पन्नों से, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, 2011, पृष्ठ- 34-35
- वही, पृष्ठ-35
- संपादन-मैत्री पोरेचा: यूजीसी का दावा, रैगिंग के कारण पिछले साढ़े पाँच साल में 25 छात्रों ने आत्महत्या की, द हिन्दू, www.thehindu.com, दिनांक- 18.08.2023
- आईआईटी मंडी में रैगिंग को लेकर 10 छात्र निलंबित, हिंदुस्तान समाचार पत्र, दिनांक-07.09.2023
- संपादन-मैत्री पोरेचा: यूजीसी का दावा, रैगिंग के कारण पिछले साढ़े पाँच साल में 25 छात्रों ने आत्महत्या की, द हिन्दू, www.thehindu.com, दिनांक- 18.08.2023
- रिपोर्ट-सौरभ शर्मा: रैगिंग फार फ्रॉम ओवर: ओवर 2,700 केसेस रिपोर्टेड इन 4 इयर्स इन इंडिया, www.Etvbharat.com, दिनांक- 15.09.2022
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