अनुवाद विशेषांक विमोचन रिपोर्ट
- विकास शुक्ल
- विकास शुक्ल
विश्व अनुवाद दिवस के अवसर पर विश्व के अलग-अलग हिस्सों में अनुवाद-कर्म को प्रोत्साहित करने के साथ ही अनुवादकों के अधिकारों की रक्षा को लेकर महत्त्वपूर्ण विषयों पर सेमिनार आयोजित हुए। हिब्रू से लैटिन में बाइबल का अनुवाद करके बाइबल का संरक्षण करने के लिए यूनाइटेड नेशन ने संत जेरोम के पुण्यतिथि पर विश्व अनुवाद दिवस के आयोजन की घोषणा की थी। इसलिए सम्पूर्ण विश्व में 30 सितम्बर को विश्व अनुवाद दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस बार विश्व अनुवाद दिवस के अवसर पर यूनाइटेड नेशन ने थीम रखी-“Translation, an Art Worth Protecting: Moral and Material Rights for Indigenous Languages” इस अवसर पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। ‘अपनी माटी’ एवं हिंदी अनुवाद शाखा, भारतीय भाषा केंद्र, जे.एन.यू, के संयुक्त तत्वाधान में विगत 30 सितंबर 2024 को अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। ‘अपनी माटी’ के पाठक इस तथ्य से परिचित हैं कि ‘अपनी माटी’ की ओर से दिए अतिथि संपादन का कार्य डॉ. गंगा सहाय मीणा, डॉ. बृजेश कुमार यादव एवं विकास शुक्ल कर रहे थे। ‘अपनी माटी’ के अनुवाद विशेषांक पर पिछले पांच महीनों से कार्य किया जा रहा था। दोस्तों, इस ऐतिहासिक विशेषांक का लोकार्पण 30 सितम्बर 2024 को भारतीय भाषा केंद्र जे.एन.यू में हुआ। संचालन की भूमिका निभाते हुए गंगा सहाय मीणा ने बताया कि ‘मित्रों, आप सभी को सूचित करते हुए ख़ुशी हो रही है कि देश के विभिन्न कोने से आए सौ से अधिक आलेखों में से पचपन बेहतरीन आलेखों को चुनकर पाठकों के समक्ष उपस्थित करने का प्रयास बतौर अतिथि संपादक किया गया है।
दोस्तों साहित्य के क्षेत्र में अनुवाद की महती भूमिका हमेशा से रही है परन्तु माध्यम के रूप में उपस्थित अनुवाद की प्रक्रिया को हम सब के द्वारा भुला दिया जाता है। दुनिया में हुए विभिन्न साहित्यिक आन्दोलनों के केंद्र में अनुवाद चिंतन हमेशा से उपस्थित रहा है।‘संस्कृतियाँ जोड़ते शब्द’ अनुवाद विशेषांक का लोकार्पित करने के उपरांत संपादकीय वक्तव देते हुए डॉ. गंगा सहाय ने बताया कि इस विशेषांक में अनुवाद की सैद्धांतिकी, बौद्ध साहित्य और अनुवाद, धर्म ग्रंथों की अनुवाद परम्परा, हिंदी नवजागरण एवं अनुवाद परम्परा, अनुवाद का वैश्विक संदर्भ, राष्ट्रीय एकीकरण और अनुवाद, मशीनी अनुवाद और कृत्रिम मेधा और रंगमंच, सिनेमा और अनुवाद, अनुवाद का सत्ता विमर्श एवं अनुवाद की विभिन्न छवियाँ शीर्षक दस खण्डों में कुल आलेख प्रकाशित हुए हैं। इन आलेखों में अनुवाद की विभिन्न सांस्कृतिक संदर्भों को एक मंच प्रदान किया है जिससे विभिन्न संस्कृतियों को संवाद हेतु प्रस्तुत किया जा सके।
लोकार्पण के अवसर पर आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर वक्ता प्रसिद्ध दलित चिन्तक एवं हिंदी के पहले दलित सुप्रसिद्ध उपन्यासकार जयप्रकाश कर्दम, प्रसिद्ध इतिहासकार एवं सी.एस.डी.एस में प्रोफ़ेसर रविकांत, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के अनुवाद अध्ययन एवं प्रशिक्षण विद्यालय अध्ययन की ओर प्रोफ़ेसर ज्योति चावला एवं प्रसिद्ध असमिया उपन्यासकार और अनुवादक रूमी लस्कर ब’रा एवं तुरीन विश्वविद्यालय, इटली से प्रो.अलेसांद्रा कोंसोलारो उपस्थित थीं। ‘अपनी माटी’ पत्रिका के संस्थापक सदस्यों में से इस कार्यक्रम में पत्रिका के प्रधान संपादक माणिक जी भी बतौर अतिथि इस कार्यक्रम का हिस्सा बने। इस अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में भारतीय भाषा केंद्र के वरिष्ठ प्रो. देवशंकर नवीन, प्रो.रामचंद्र, प्रो.अजमेर सिंह काजल, प्रो.देवेन्द्र चौबे, प्रो.वंदना झा एवं डॉ.परवेज़ अहमद भी इस कार्यक्रम में उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन कर रहे डॉ. गंगा सहाय ने ज्ञान के क्षेत्र में अनुवाद की महती योजनाओं पर प्रकाश डालते हुए अनुवाद को विभिन्न संस्कृतियों को जोड़ने वाले ज्ञान अनुशासन के रूप में व्याख्यित किया।
जयप्रकाश कर्दम ने अनुवाद का सत्ता विमर्श विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सत्ता का प्रभाव साहित्य के साथ-साथ अनुवाद को भी प्रभावित करता है। हिंदी दलित साहित्य के प्रचार-प्रसार में अनुवाद की भूमिकाओं के साथ बाबा साहेब आंबेडकर के समग्र ग्रन्थ का अनुवाद हिंदी में आने को लेकर अनेक पक्षों पर विस्तार से बात की।
रूमी लस्कर ब’रा ने असमिया और हिंदी अनुवाद के माध्यम से दो भाषाओं के मध्य सेतु के रूप अनुवाद को परिभाषित किया।
डॉ ज्योति चावला ने जेंडर और अनुवाद विषय पर अपना मत रखते हुए कहा कि लम्बे समय तक पितृसत्ता के प्रभावी रहने का परिणाम यह हुआ कि भाषाओं में पितृसत्तात्मक व्यवहार दिखाई देने लगा। अनुवाद और साहित्य के लिए यह आवश्यक है कि भाषाओं को जेंडर निरपेक्ष बनाया जाए। डॉ. ज्योति ने विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से भाषाओं को जेंडर निरपेक्ष बनाने पर जोर दिया।
डॉ रविकांत ने साहित्य और सिनेमा की जुगलबंदी विषय पर बोलते हुए साहित्य का सिनेमा में रूपांतरण विषय पर वक्तव देते हुए कहा कि बिना साहित्य के सिनेमा किसी भी रूप में चल नहीं सकता। साहित्य का रूपांतरण अनेक रूप में संचार माध्यम में हमेशा से होता रहा है यह संवाद दो तरफ़ा होता है, साहित्य भी सिनेमा से प्रभावित होता है और साहित्य से सिनेमा।
तुरीन विश्वविद्यालय इटली में हिंदी की अध्यापिका अलेसांद्रा कोंसोलारो जो व्यक्तिगत रूप से अनुवाद कर्म में लम्बे समय तक सक्रिय रहीं। अलेसांद्रा कोंसोलारो ने कुवंर नारायण के काव्य संग्रह कुमारजीव एवं गीतांजलि के रेत समाधि का अनुवाद हिंदी से इटैलियन भाषा में किया है। अलेसांद्रा ने अनुवाद एवं प्रकाशन उद्योग के मध्य खींचातानी एवं दो संस्कृतियों के मध्य संक्रमण के बिन्दुओं पर विस्तार से बात की। प्रो. वंदना झा ने अनुवाद के क्षेत्र पर अनौपचारिक चर्चा के दौरान हनुमान प्रसाद पोद्दार एवं उनके द्वारा स्थापित गीता प्रेस की स्थापना एवं धार्मिक साहित्य के अनेक संस्करणों पर अनुवाद के दृष्टिकोण से शोध करने की ओर शोधार्थियों का ध्यान आकर्षित किया।
अपनी माटी के संपादक के रूप में माणिक के धन्यवाद ज्ञापन के साथ-साथ अनुवाद की महत्ता को विस्तार से बताते हुए संगोष्ठी समापन की घोषणा की। इस कार्यक्रम के आयोजन में विकास शुक्ल, ऋषि पाल वसुहंस, शिवानी वर्मा, रणविजय सिंह, सचिन मीणा ने कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। इस कार्यक्रम को ऑनलाइन प्रसारण यूट्यूब और फेसबुक पर किया गया। यूट्यूब के ऑनलाइन प्रसारण को अधोलिखित लिंक पर देखा जा सकता है।
शोधार्थी (हिन्दी अनुवाद), जे.एन.यू, नई दिल्ली
vishu.jnu2017@gmail.com
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-53, जुलाई-सितम्बर, 2024 UGC Care Approved Journal
इस अंक का सम्पादन : विष्णु कुमार शर्मा चित्रांकन : चन्द्रदीप सिंह (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)
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